शनिवार, 11 जनवरी 2025

      (श्रीकृष्ण-स्तुति)
"वन्दे वृन्दावन-वन्दनीयम्।                              सर्व लोकैरभिनन्दनीयम्।।  
कर्मस्य फल इति ते नियम। 
कर्मेच्छा सङ्कल्पो वयम्।।१।।      
             
भक्त-भाव सुरञ्जनम् ।                      
राग-रङ्ग त्वं सञ्जनम्।।                         
बोध -शोध मनमञ्जनम्।                      नमस्कार खल-भञ्जनम्।२।      
                 
मयूर पक्ष तव मस्तकम्।                     
मुरलि मञ्जु शुभ हस्तकम्।।                  
ज्ञान रश्मि त्वं प्रभाकरम्।                        गुणातीत गुरु-गुणाकरम्।३।    
                  
नमामि याम: त्वमष्टकम्- ।                   
हरि-शोक अति कष्टकम्।।                        
भव-बन्ध मम मोचनम् ।                          
सर्व भक्तगण रोचनम्।४।    
                       
कृष्ण श्याम त्वं मेघनम्,                    
लभेमहि जीवन धनम्।।                        
रोमैभ्यो गोपा: सर्जकम्।                          सकल सिद्धी: त्वमर्जकम्।५। 
                 
कृपा- सिन्धु गुरु-धर्मकम्।                   
नमामि प्रभु उरु-कर्मकम्।।                        इन्द्र-यजन त्वं निवारणम्।                       
पशु-हिंसा तस्या कारणम्।६।
                          
स्नातकं प्रभु- सुगोरजम् ।                      
सदा विराजसे त्वं व्रजम्।।                
दधान ग्रीवायां मालकम्।                        नमामि-आभीर बालकम्।७। 
                    
कृषि कर्मणेषु प्रवीणम् ।                         
ते आपीड केकी-पणम्।।                          कृषाणु शाण हल कर्पणम्।                        
वन्दे कृष्ण-संकर्षणम्।८।      
               
गोप-गोपयो रधिनायकम्।                    
वैष्णव धर्मस्य विधायकम्।।                       
व्रज रज ते प्रभु भूषणम् ।                        नमामि कोटिश: पूषणम्।९।  
                
निष्काम कर्मं निर्णायकम्।                   
सुतान वेणु लय - गायकम्।।                  
दीन बन्धो: त्वं सहायकम्।                      
नमामि यादव विनायकम्।१०।   
              
किशोर वय- सुव्यञ्जितम्।                     
राग-रङ्ग शोभित नितम्।।                      नमस्कार प्रभु सद्-व्रतम्।।                        
"पेय ज्ञान गीतामृतम्।११।   
       
वन्यमाल कण्ठे धारिणम्।                      
नमामि  व्रज- विहारिणम्।।                    वैजयन्ती लालित्य हारिणं।                      
लीला विलोल विस्तारिणं।१२।

अनुवदति:-
वृन्दावनजनानामादरणीयश्च सर्वेषां स्वागतयोग्यो भगवान् श्रीकृष्णः कर्मसिद्धान्तस्य नियामकोऽस्ति। सृष्टेरारम्भे स एव अहङ्कारसंकुलाद्  जनयित्वा संकल्पम् संकल्पादेच्छां च जनयित्वा जगति कर्मास्तित्वं निर्धारितवान्।१।

"अनुवाद:-
वृन्दावन के लोगों के लिए वन्दनीय और सभी लोगों के द्वारा अभिनन्दन (स्वागत ) करने योग्य भगवान श्रीकृष्ण ही कर्म- सिद्धान्त के नियामक हैं। उन्होंने ही सृष्टि के प्रारम्भ में अहं समुच्चय ( वयं ) से संकल्प और संकल्प से इच्छा उत्पन्न करके संसार में कर्म का अस्तित्व निश्चित किया।१।

 "अनुवदति:-
भक्तानां भावान् भक्तिवर्णैः पूरयति, रागरङ्गयो: समग्ररूपं, भक्त्या मनस्स्नात्वा शुद्धं कृत्वा ज्ञानप्रकाशेन पूरयति, दुष्टानां दण्डं ददाति च तस्मै भगवन्तं श्रीकृष्णं नमस्कारं वयं कुर्मः।2।

"अनुवाद:-
भक्तों के भावों में समर्पण के रंग भरने वाले ,राग और रंग के समष्टि रूप, मन को भक्ति में स्नान कराकर उसे शुद्ध करके  ज्ञान का प्रकाश भरने वाले,  खलों (दुष्टों) को दण्डित करने वाले प्रभु  को हम नमस्कार करते हैं।२।


अनुवदति:- अहो भगवन् !  शिरसि मयूरपक्षमुकुटं रम्यं शुभं वेणुं च हस्ते ।  हे मन मोहन !  नमो नमस्ते । प्रभाकर (सूर्य) ज्ञान रश्मी विकिरण।  आत्मनो ज्ञानप्रदो गुरुर्प्रकृतेर् गुणत्रयात् परोऽपि त्वं निहितगुणानां भण्डारोसि।३।



अनुवाद:- हे प्रभु ! मयूर के पंख से निर्मित मुकुट तेरे मस्तक पर और हाथों में सुन्दर और शुभ मुरली है। हे मन मोहन ! तुम्हें अनेक बार नमस्कार! तुम ज्ञान की किरणें विकीर्ण करने वाला़े प्रभाकर (सूर्य)हो। तुम आत्मा का ज्ञान देने वाले गुरु, प्रकृति के तीन गुणों से परे होने पर भी, कल्याणकारी गुणों का भण्डार हो।३।



अनुवदति:- हे मनमोहन ! अहं भवन्तं सर्वदा प्रणमिष्यामि !  अपारशोकदुःखं च हर्ता त्वं साक्षाद् हरिः !  मोहन त्वं  जगति द्वन्द्वमयीभ्यां बन्धनभ्यां मां मोचय सर्वभक्तप्रियः । त्वां प्रणमाम्यहम्।4।

अनुवाद:- हे मनमोहन ! मैं आठो पहर तुमको नमन करूँ ! तुम अत्यधिक शोक और कष्टों को हरने वाले हो साक्षात् हरि हो ! संसार के द्वन्द्व मयी बन्धनों से मुझे मुक्त करने वाले और सब भक्तों को प्रिय हे मोहन ! मैं तुझे नमन करता हूँ।४।


अनुवदति:  हे कृष्ण ! कृष्ण मेघेव तव तेजोऽसि ।  भवतो जीवनस्य धनं प्राप्नुमः।  गोलोके एव पुरा त्वया सर्वाणि गोपाः स्वलोम कूपान्निर्मिताः आसन् ।  सर्वाणि सिद्धयः स्वयमेव प्राप्नुहि॥५॥

अनुवाद:- हे कृष्ण तुम्हारी कान्ति काले बादलों के समान है। हम जीवन के धन रूप आपको प्राप्त करें। तुमने गोलोक में ही पूर्वकाल में सभी गोपों की सृष्टि अपने ही रोम कूपों से की थी। तुम सभी सिद्धियों को स्वयं ही प्राप्त हो।५।

अनुवदति:- कृपाया: सागर, धर्मं  यथार्थं बोधयिता गुरु !  महाकर्मकर्ता !  वयं भवन्तं नमस्कारं कुर्मः। इन्द्रस्य यज्ञं पूजनं च निवारयित्वा त्वं  निर्दोषपशुनां हिंसां निवारयसि ।५।

अनुवाद:- कृपा के समुद्र, धर्म का यथार्थ बोध कराने वाले गुरु ! महान कर्मों के कर्ता प्रभु ! हम तुझे नमस्कार करते हैं। तुमने इन्द्र का यजन- पूजन बन्द कराकर, निर्दोष पशुओं की हिंसा को  रोकते हो ।६।



अनुवदति:- हे भगवन् !  यो गोनिवासस्य सुन्दर- रजे स्नानं करोति, यः सदा व्रज (गोवेष्टने) उपविष्टः, यः कण्ठे वनमालं धारयति, योभीर  बालरूपेण व्रजे वसति !  अहं भवन्तं नमस्कारं करोमि।७।.

अनुवाद:-  गाय के निवास स्थान की सुन्दर रज ( मिट्टी) से स्नान करने वाले, सदैव व्रज( गायों का बाड़ा) में विराजने वाले, गले में वन माला धारण करने वाले, अहीर बालक के रूप में रहने वाले हे प्रभु ! मैं तुम्हें नमस्कार हूँ।७।


 अनुवदति:- हे कृष्ण त्वं गोपगोपीनां नेता (मार्गदर्शकः) असि,  वैष्णव वर्णधर्मौ जगति स्थापयति, भक्तानां पोषणं च करोषि।  भगवन् त्वां कोटिवारं नमामहे।९।.

अनुवाद:- हे कृष्ण ! तुम गोप और गोपियों के अधिनायक (मार्गदर्शन करने वाले), वैष्णव वर्ण और धर्म का संसार में विधान करने वाले, तथा भक्तों का पोषण करने वाले हो ! प्रभु तुम्हें हम कोटि-कोटि नमस्कार करते हैं।९।


अनुवदति- यो जगति निःस्वार्थकर्मप्रवचनं करोति, वेणुना सुन्दरैर्धुनैर्लयपूर्वकं गायति, निर्धनानाम्, अभाविनां च साहाय्यं करोति, यादवानां विशेषनायकं च भवन्तं नमस्कारं कुर्मः।  १०।



अनुवाद:- संसार को निष्काम कर्म का उपदेश देने वाले ,बाँसुरी पर सुन्दर तान के द्वारा लय से गायन करने वाले , दीन दु:खीयों की सहायता करने वाले, यादवों के विशेष नेता तुमको हम नमस्कार करते हैं।१०।

अनुवदति:- किशोरावस्थायां गोलोके सदा वर्तमानः, राग-वर्णैरलङ्कृतो राग-शक्ति-सम्पन्नः, सत्यव्रत-पालक: हे भगवन् ! भवतः अमृतसदृशं गीता ज्ञानं सेवनीयम् ।११।

अनुवाद:-  गोलोक में सदैव किशोर अवस्था में विद्यमान, राग -रंग से सुशोभित, रासधारी, सत्य व्रतों का पालन करने वाले, हे प्रभु! तुम्हारा गीता का अमृतरूपी ज्ञान सेवन करने  योग्य है ।११।

 अनुवदति:- कण्ठे वनानां सुन्दरमालाधारिणं समस्तं व्रजं परिभ्रमति, सुन्दरं क्रीडाविस्तारं, सुन्दरं वैजयन्तीं मालाधारिणं च भगवान् कृष्णं  अभिवादनं कुर्मः।१२।

अनुवाद:- वनों की सुन्दर माला कण्ठ में धारण करने वाले और सम्पूर्ण व्रज में भ्रमण करने वाले, सुन्दर लीलाओं का विस्तार करने वाले, सुन्दर वैजयन्ती माला धारण करने वाले, भगवान कन्हैया को हम नमस्कार करते हैं।१२।

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