सोमवार, 27 जनवरी 2025

(श्रीकृष्ण चालीसा) मूल - योगेश रेडियो वक्ता

श्रीकृष्ण चालीसा
दोहा: जीव चराचर जगत पति, दीनबंधु भगवान,
        मनसा वाचा कर्मणा, हरिकीर्तन गुणगान।
       सुर नर मुनि जन गण करत, गोप श्रेष्ठ का ध्यान,
       कष्ट हरन,सन्मति भरन, कृष्णचंद्र भगवान।।

चौपाई
१- जय केशव यदुनंदन प्यारे ।
     लाल  यशोदा  नंद  दुलारे ।।

२- भादो भाग्य उदय यादव के।
     यदुकुल चरण पड़े माधव के।।

३- यमुना धन्य चरण रज पाकर।
     पुलकित दर्शन पाय दिवाकर।।

४- मंगल मुरली माखन छींको।
     नित परनाम कन्हैया जी को।।

५- नटवर नागर जय बनवारी।
     वृंदावन जय जय गिरधारी।।

६- मुरली अधर गाय रखवारे।
     मोर मुकुट पीतांबर धारे।।

७- रूप विराट धनंजय पाया।
    छवि मनमोहक सूर दिखाया।।

८- महिमा धन्य गोप संबोधन।
     माखन दूध दही घी गोधन।।

९- ब्रह्म मुहूर्त गोप जो जागे।
    कृष्ण कथा सुनि भय दुःख भागे।।

१०- तारन भक्त भूमि अवतारा।
      दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।।

११- वंदन नमन अखिल अधिपति का।
      नाश करें प्रभु कष्ट बिपतिका।।

१२- कमलनयन घनश्याम भुवाला।
      दीनदयाल विप्र रखवाला।।

१३- बल्लभ प्राण गर्ग अभयंकर।
       कृष्णचंद्र बलराम शुभंकर।।

१४- नंदक खड्ग सुदर्शन धारी।
       गुरु सांदीपनि शिक्षा न्यारी।।

१५- लीलाधर प्रभु माटी खाए।
       यसुमति मुख ब्रह्मांड दिखाए।।

१६- गणपति चरण गोपालन वाया।
       सूर नर मुनि मनमोहक माया।।

१७- गूंजे धरती गगन समंदर।
      भगवतगीता धर्म धुरंधर।।

१८- माखन चोर स्वभाव रसीला।
       नटखट बालगोविंद की लीला।।

१९- मातु पिता बेड़ी छुड़वाए।
       उग्रसेन साम्राज्य दिलाए।।

२०- बंशी  वृंदावन  की   गईया।
       जय कान्हा गोपाल कन्हईया।।

२१- युगविराट माधव की महिमा।
      त्रिभुवन में यादव की गरिमा।।

२२- धन्य धारा प्रभु किए बसाकर।
       गोपों को गोलोक से लाकर।।

२३- आदिपुरुष केशव की जय हो।
       गाय गोप गोलोक अभय हो।।

२४- दुर्गा  दुर्गति   पपनाशिनी।
      कान्हा बहिनी विंध्यवासिनी।।

२५- शैशवकाल पूतना तारे।
      रक्षा भक्त अधम संहारे।।

२५- दुष्टदलन संतन हितकारी।
       बका अघा धेनुका संहारी।।

२७- साग विदुर घर खाए मोहन।
       छप्पन भोग त्याग दुर्योधन।।

२८- अंजुलि तीन दान घनश्यामा।
       महिमा कृष्ण समर्थ सुदामा।।

२९- ब्रह्मा रुद्र हरी मुसुकाए।
       भार भूमि गोविंद छुड़ाए।।

३०- जब जब होवे हानि धरम की।
      प्रभु सत्ता हो ज्ञान करम की।।

३१- धर्मयुद्ध निर्दोष है भारत।
      गीता का उद्घोष है भारत।।

३२- यादव कुलज कृष्ण प्रण लीन्हा।
       हाथ यादवी ब्रह्मा दीन्हा।।

३३- सूर नर मुनि आरती उतारें।
       देवकी सुत वसुदेव दुलारे।।

३४- पांडव पक्ष जुगति कर नाना।
      शकुनी क्षीण किए अभिमान।।

३५- युध आयुध कुरुक्षेत्र भयंकर।
       धर्मपक्ष परिणाम शुभंकर।।

३६- कर्म कृपाण दिया अवगुन को।
       गीताज्ञान सखा अर्जुन को।।

३७- निंदा शतक क्षमा गोपाला।
       चक्रसुदर्शन वध शिशुपाला।।

३८- मथुरा मुक्त कंस के डर से।
       कालिंदी का नीर ज़हर से।।

३९- प्रभुपद पंकज पुण्य प्रसादा।
       कृष्ण बसें उर अंतस राधा।।

४०-  परमपुरुष महिपाल की जय-जय।
        राधेकृष्ण   गोपाल  की जय-जय।।

दोहाः - चरण कमल घनश्याम के, पड़ जाए मम धाम।
           दिव्य दृष्टि हरिदास पर, साँस-साँस प्रभु नाम।।

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