श्रीकृष्ण चालीसा 
दोहा: जीव चराचर जगत पति, दीनबंधु भगवान,
        मनसा वाचा कर्मणा, हरिकीर्तन गुणगान।
       सुर नर मुनि जन गण करत, गोप श्रेष्ठ का ध्यान,
       कष्ट हरन,सन्मति भरन, कृष्णचंद्र भगवान।।
चौपाई 
१- जय केशव यदुनंदन प्यारे । 
     लाल  यशोदा  नंद  दुलारे ।।
२- भादो भाग्य उदय यादव के। 
     यदुकुल चरण पड़े माधव के।।
३- यमुना धन्य चरण रज पाकर।
     पुलकित दर्शन पाय दिवाकर।।
४- मंगल मुरली माखन छींको।
     नित परनाम कन्हैया जी को।।
५- नटवर नागर जय बनवारी।
     वृंदावन जय जय गिरधारी।।
६- मुरली अधर गाय रखवारे।
     मोर मुकुट पीतांबर धारे।।
७- रूप विराट धनंजय पाया।
    छवि मनमोहक सूर दिखाया।।
८- महिमा धन्य गोप संबोधन।
     माखन दूध दही घी गोधन।।
९- ब्रह्म मुहूर्त गोप जो जागे।
    कृष्ण कथा सुनि भय दुःख भागे।।
१०- तारन भक्त भूमि अवतारा।
      दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।।
११- वंदन नमन अखिल अधिपति का।
      नाश करें प्रभु कष्ट बिपतिका।।
१२- कमलनयन घनश्याम भुवाला।
      दीनदयाल विप्र रखवाला।।
१३- बल्लभ प्राण गर्ग अभयंकर।
       कृष्णचंद्र बलराम शुभंकर।।
१४- नंदक खड्ग सुदर्शन धारी।
       गुरु सांदीपनि शिक्षा न्यारी।।
१५- लीलाधर प्रभु माटी खाए।
       यसुमति मुख ब्रह्मांड दिखाए।।
१६- गणपति चरण गोपालन वाया।
       सूर नर मुनि मनमोहक माया।।
१७- गूंजे धरती गगन समंदर।
      भगवतगीता धर्म धुरंधर।।
१८- माखन चोर स्वभाव रसीला।
       नटखट बालगोविंद की लीला।।
१९- मातु पिता बेड़ी छुड़वाए।
       उग्रसेन साम्राज्य दिलाए।।
२०- बंशी  वृंदावन  की   गईया।
       जय कान्हा गोपाल कन्हईया।।
२१- युगविराट माधव की महिमा।
      त्रिभुवन में यादव की गरिमा।।
२२- धन्य धारा प्रभु किए बसाकर।
       गोपों को गोलोक से लाकर।।
२३- आदिपुरुष केशव की जय हो।
       गाय गोप गोलोक अभय हो।।
२४- दुर्गा  दुर्गति   पपनाशिनी।
      कान्हा बहिनी विंध्यवासिनी।।
२५- शैशवकाल पूतना तारे।
      रक्षा भक्त अधम संहारे।।
२५- दुष्टदलन संतन हितकारी।
       बका अघा धेनुका संहारी।।
२७- साग विदुर घर खाए मोहन।
       छप्पन भोग त्याग दुर्योधन।।
२८- अंजुलि तीन दान घनश्यामा।
       महिमा कृष्ण समर्थ सुदामा।।
२९- ब्रह्मा रुद्र हरी मुसुकाए।
       भार भूमि गोविंद छुड़ाए।।
३०- जब जब होवे हानि धरम की।
      प्रभु सत्ता हो ज्ञान करम की।।
३१- धर्मयुद्ध निर्दोष है भारत।
      गीता का उद्घोष है भारत।।
३२- यादव कुलज कृष्ण प्रण लीन्हा।
       हाथ यादवी ब्रह्मा दीन्हा।।
३३- सूर नर मुनि आरती उतारें।
       देवकी सुत वसुदेव दुलारे।।
३४- पांडव पक्ष जुगति कर नाना।
      शकुनी क्षीण किए अभिमान।।
३५- युध आयुध कुरुक्षेत्र भयंकर।
       धर्मपक्ष परिणाम शुभंकर।।
३६- कर्म कृपाण दिया अवगुन को।
       गीताज्ञान सखा अर्जुन को।।
३७- निंदा शतक क्षमा गोपाला।
       चक्रसुदर्शन वध शिशुपाला।।
३८- मथुरा मुक्त कंस के डर से।
       कालिंदी का नीर ज़हर से।।
३९- प्रभुपद पंकज पुण्य प्रसादा। 
       कृष्ण बसें उर अंतस राधा।।
४०-  परमपुरुष महिपाल की जय-जय।
        राधेकृष्ण   गोपाल  की जय-जय।।
दोहाः - चरण कमल घनश्याम के, पड़ जाए मम धाम।
           दिव्य दृष्टि हरिदास पर, साँस-साँस प्रभु नाम।।
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