जीव चराचर जगत पति, दीनबंधु भगवान,
मनसा वाचा कर्मणा, हरिकीर्तन गुणगान।
सुर नर मुनि जनगण करत,
गोप श्रेष्ठ का ध्यान।
कष्ट हरन,सन्मति भरन,
कष्ट हरन,सन्मति भरन,
कृष्णचन्द्र भगवान।।
(चौपाई छन्द)
१- जय केशव यदुनन्दन प्यारे ।
लाल यशोदा नन्द दुलारे ।।
(चौपाई छन्द)
१- जय केशव यदुनन्दन प्यारे ।
लाल यशोदा नन्द दुलारे ।।
भगतों की आँखों के तारे।
२- भादों भाग्य उदय यादव के।
तुझे पुकारें वंशी वारे ।।
यदुकुल चरण पड़े माधव के।।
३- यमुना धन्य चरण रज पाकर।
गोकुल में गोलोक से अव के
काज सबारे तुमने सब के।
छत्रप बने शेष लहराकर।
८- बलधर हलधर गोसेवक भारी।
१३- ब्रह्म मुहूर्त में जो जागे।
१५- वंशी वृंदावन गोपकुल गईया।
सबके बीच में बसे कन्हईया।।
२६- दुष्टदलन संतन हितकारी।
बका अघा धेनुका पछारी ।।
दोहाः - चरण कमल घनश्याम के, पड़ जाए मम धाम।
दिव्य दृष्टि हरिदास पर, बन जाएं बिगड़े काम।।
भक्त धन्य होते यश गाकर
गोकुल चले प्रभु मुस्काकर।।
४-मंगल मुरलि माखन छींको।
यही छवि रूप कन्हैया जी को।।
यही छवि रूप कन्हैया जी को।।
गोप- गोपिका वृन्दावन नीको।
वैष्णव कीर्तन करें हरी को ।।
५- नटवर नागर जय बनवारी।
गोपेश्वर गोविन्द मुरारी
राधा पति जय जय गिरधारी।।
इन नामों कि महिमा भारी।।
६- मुरली अधर पीताम्बर धारे।।
मोर मुकुट लकुटिया वारे
ग्वाल बाल सब तुम्हें निहारे।
मोहन हमसे दूर न जारे ।
७- महिमा धन्य गोप सम्बोधन।
धर्म विवेचक कर्म के शोधन।
कीन्ह इन्द्र यजन बलि रोधन।।
कीन्ह इन्द्र यजन बलि रोधन।।
रक्षा करी प्रभू पशु गोधन।।
८- बलधर हलधर गोसेवक भारी।
कृषि वृषी के पालन हारी।
तुम बिन सारा जग दु:खियारी ।
खबर लेऊ प्रभु कृष्ण मुरारी।।
९- रूप विराट धनञ्जय पाया।
छवि मनमोहक श्यामल काया।।
छवि मनमोहक श्यामल काया।।
भक्तों ने संकीरतन गाया
अद्भुत तेरी मोहन माया।
१०- नन्दक खड्ग सुदर्शन धारी।
पाञ्चजन्य जैत्रथ सवारी ।
युद्ध भूमि में सब पर भारी़।
कोइ उपमा नहीं तुम्हारी ।।
११- कमलनयन ओ मुरली वाले।
गायन- वादन नृत्य निराले।
गायन- वादन नृत्य निराले।
तान मधुर धुन ताल सम्हाले।
राग अहीर भैरवी वाले।।
१२- वन्दन नमन अखिल अधिपति का। नाश करें प्रभु कष्ट विपति का।।
मोह माया मद लोभ कुमति का
निर्मल विमल रूप हो मति का।
१३- ब्रह्म मुहूर्त में जो जागे।
प्रभू चिन्तन में मन लागे ।
मन निर्मल दु:ख दारिद भागे।।
मन निर्मल दु:ख दारिद भागे।।
कभी विपति नहीं आये आगे।
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१४- माखन चोर स्वभाव रसीला।
नटखट बालगोविन्द की लीला।।
नटखट बालगोविन्द की लीला।।
चित्र चरित्र विचित्र न हीला
मोर मुकुट मोहन संजीला।।
मोर मुकुट मोहन संजीला।।
१५- वंशी वृंदावन गोपकुल गईया।
सबके बीच में बसे कन्हईया।।
दूध फेरती जशोदा मइईया।
माँगें माखन दाऊ भइया।।
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१६- गोपों को गोलोक से लाकर।।
साथ रहे फिर यहाँ बसाकर।
धन्य धरा हरि तुमको पाकर।
बोध कराया गीता गाकर।।
१७-कर्म के फल फलों के भोगी।
जन्म- मरण बन्धन के रोगी।
योग साधना करते योगी।
मोक्ष हरि भजनों से होगी।।
१८- गोपेश्वर श्रीकृष्ण की जय हो।
गाय गोप गोलोक अभय हो।।
पूरण उनका हर निश्चय हो।
गाय गोप गोलोक अभय हो।।
पूरण उनका हर निश्चय हो।
जिन पर कान्हा सदा सदय हो।।
१९- लीलाधर प्रभु माटी खाए।
यशुमति मुख ब्रह्माण्ड दिखाए।।
ऐसे प्रभु ने खेल खिलाए।
उनको मूरख समझ न पाये।।
उनको मूरख समझ न पाये।।
२०-सुर नर मुनि सन्तन ने गाया ।
बड़ी विलक्षण प्रभु की माया।
आदि न अन्त पार नहिं पाया
समझा वो जो शरण में आया।
२१- तारन भक्त भूमि अवतारा।
गोपों में ही रूप पसारा।
दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।
दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।
दीन दु:खीयों को दिया सहारा।।√
२२- मातु पिता की जेल छुड़वाए।
उग्रसेन साम्राज्य दिलाए।।
२२- मातु पिता की जेल छुड़वाए।
उग्रसेन साम्राज्य दिलाए।।
व्रज को छोड़ द्वारिका आए।
कुछ ग्वालों को संग में लाए।।
२३-तारन भक्त भूमि अवतारा।
गोपों में ही रूप पसारा।
दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।
दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।
दीन दु:खीयों को दिया सहारा।।√
२४- शैशवकाल पूतना तारे।
रक्षा भक्त अधम संहारे।।
जिसके छूटे सभी सहारे
रक्षा भक्त अधम संहारे।।
जिसके छूटे सभी सहारे
उसके सहायक वंशी वारे।।
२५- निंदा शतक क्षमा गोपाला।
चक्रसुदर्शन वध शिशुपाला।।
उन्मत्त हुए नृप पीकर हाला।
चक्रसुदर्शन वध शिशुपाला।।
उन्मत्त हुए नृप पीकर हाला।
उनको भी प्रभु ने हन डाला।
२६- दुष्टदलन संतन हितकारी।
बका अघा धेनुका पछारी ।।
धर्म पर अधर्म हुआ जब भारी
युग-युग में प्रभु तुम अवतारी।
२७- बड़ती जग में होय कुकरम की।
कामी तुष्टि करे अहम की ।
़गीता में कहें बात मर्म की
प्रभु प्रतिष्ठा करें धर्म की।
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दोहाः - चरण कमल घनश्याम के, पड़ जाए मम धाम।
दिव्य दृष्टि हरिदास पर, बन जाएं बिगड़े काम।।
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