दोहा: जीव चराचर जगत पति, दीनबन्धु भगवान,
मनसा वाचा कर्मणा, हरिकीर्तन गुणगान।
सुर नर मुनि जनगण करत, गोप श्रेष्ठ का ध्यान,
कष्ट हरन,सन्मति भरन, कृष्णचन्द्र भगवान।।
चौपाई
१- जय केशव यदुनन्दन प्यारे ।
लाल यशोदा नंद दुलारे ।।
जीवन नौका मझ में डूबे।
     भक्त विचारे तुम्हे पुकारे
२- भादो भाग्य उदय यादव के।
यदुकुल चरण पड़े माधव के।।
४- मंगल मुरली माखन छींको।
यही छवि रूप कन्हैया जी को।।
१६- नंदक खड्ग सुदर्शन धारी।
गुरू आंगीरस शिक्षा न्यारी।।
१८- गणपति चरण गोपाल नवाया।
सूर नर मुनि मनमोहक माया।।
२०- बंशी वृंदावन गोपकुल गईया।
सबके मध्य में बसे कन्हईया।।
२१- युगविराट माधव की महिमा।
अखिलभुवन गोपेश्वर गरिमा।।
२२- धन्य धरा प्रभु किए बसाकर।
गोपों को गोलोक से लाकर।।
२४- पांडव पक्ष जुगति कर नाना।
शकुनी क्षीण किए अभिमाना ।।
२५- निंदा शतक क्षमा गोपाला।
चक्रसुदर्शन वध शिशुपाला।।
उन्मत्त हुए नृप पीकर हाला।
२७- दुष्टदलन संतन हितकारी।
बका अघा धेनुका पछारी ।।      
२८- तारन भक्त भूमि अवतारा।                         
३१- धर्मयुद्ध निर्दोष है भारत।
गीता का उद्घोष है भारत।।
३२- गूंजे धरती गगन समंदर।
भगवतगीता धर्म धुरंधर।।
३३- कर्म कृपाण दिया अवगुन को।
गीताज्ञान सखा अर्जुन को।।
३४- युध आयुध कुरुक्षेत्र भयंकर।
धर्मपक्ष परिणाम शुभंकर।।
३५- ब्रह्मा रुद्र हरी मुसुकाए।
भार भूमि गोविंद छुड़ाए।।
३६- यादव कुलज कृष्ण प्रण लीन्हा।
हाथ यादवी ब्रह्मा दीन्हा।।
३७- मथुरा मुक्त कंस के डर से।
कालिंदी का नीर ज़हर से।।
३८- प्रभुपद पंकज पुण्य प्रसादा।
कृष्ण बसें उर अंतस राधा।।
३९- सूर नर मुनि आरती उतारें।
देवकी सुत वसुदेव दुलारे।।
४०- परमपुरुष महिपाल की जय-जय।
राधेकृष्ण गोपाल की जय-जय।।
दोहाः - चरण कमल घनश्याम के, पड़ जाए मम धाम।
दिव्य दृष्टि हरिदास पर, साँस-साँस प्रभु नाम।।
२- भादो भाग्य उदय यादव के।
यदुकुल चरण पड़े माधव के।।
 गोपों में गोपालक बनके 
काज सम्हारे तुमने सब के।
काज सम्हारे तुमने सब के।
३- यमुना धन्य चरण रज पाकर।
पुलकित दर्शन पाय दिवाकर।।
भक्त धन्य हुये गुण गाकर
पुलकित दर्शन पाय दिवाकर।।
भक्त धन्य हुये गुण गाकर
      गोलोक चले  राह दिखाकर।।
४- मंगल मुरली माखन छींको।
यही छवि रूप कन्हैया जी को।।
 छोटो बड़ो  और कटु  नीको 
      फल पाते हैं सभी करनी को।।
५- नटवर नागर जय बनवारी।
५- नटवर नागर जय बनवारी।
     वेग खबर लेयु प्रभु हम्हारी
     वृंदावन जय जय गिरधारी।।
      तेरे  नाम की महिमा भारी 
६- मुरली अधर गाय रखवारे।
मोर मुकुट पीतांबर धारे।।
६- मुरली अधर गाय रखवारे।
मोर मुकुट पीतांबर धारे।।
  ज्ञान की शिखा दिखा रहा रे ।
     मोहन मोह हन मुरलिया वारे।
७- महिमा धन्य गोप संबोधन।
७- महिमा धन्य गोप संबोधन।
     धर्म विवेचक कर्म का शोधन ।
माखन दूध दही घृत गोधन।।
माखन दूध दही घृत गोधन।।
      धन्य वही जिस पेट भक्त धन।।
८- दुर्गा दुर्गति पापनाशिनी।
८- दुर्गा दुर्गति पापनाशिनी।
    दुर्गं दैत्य की  कहते नाशिनी।
     वैष्णव शक्ति मन्द हासिनी।
कान्हा बहिन विंध्यवासिनी।।
९- रूप विराट धनञ्जय पाया।
छवि मनमोहक तुमने दिखाया।।
कान्हा बहिन विंध्यवासिनी।।
९- रूप विराट धनञ्जय पाया।
छवि मनमोहक तुमने दिखाया।।
भक्तों ने संकीर्तन गाया 
    तेरी अद्भुत मोहन माया।
१०- कमलनयन श्याम निराला।
दीनदयाल विप्र रखवाला।।
११- साग विदुर घर खाए मोहन।
छप्पन भोग त्याग दुर्योधन।।
१२- अंजुलि तीन दान घनश्यामा।
महिमा कृष्ण समर्थ सुदामा।।
१३- वंदन नमन अखिल अधिपति का।
नाश करें प्रभु कष्ट बिपति का।।
१४- ब्रह्म मुहूर्त गोप जो जागे। ❓
कृष्ण कथा सुनि भय दुःख भागे।।
दीनदयाल विप्र रखवाला।।
११- साग विदुर घर खाए मोहन।
छप्पन भोग त्याग दुर्योधन।।
१२- अंजुलि तीन दान घनश्यामा।
महिमा कृष्ण समर्थ सुदामा।।
१३- वंदन नमन अखिल अधिपति का।
नाश करें प्रभु कष्ट बिपति का।।
१४- ब्रह्म मुहूर्त गोप जो जागे। ❓
कृष्ण कथा सुनि भय दुःख भागे।।
 कृष्ण- कीर्तन में मन लागे ।
      कृष्ण के द्रोही रहे अभागे।
१५- बल्लभ प्राण गर्ग अभयंकर।
कृष्णचंद्र बलराम शुभंकर।।
१५- बल्लभ प्राण गर्ग अभयंकर।
कृष्णचंद्र बलराम शुभंकर।।
 यश का हनन  कुकर्म भयंकर
     कोई कर्म ऐसा मत कर।।
१६- नंदक खड्ग सुदर्शन धारी।
गुरू आंगीरस शिक्षा न्यारी।।
वन के हार नहीं हार तुम्हारी
       व्रज में चरण  व्रज के विहारी।
    
१७- लीलाधर प्रभु माटी खाए।
यसुमति मुख ब्रह्मांड दिखाए।।
लीला कला के मेल मिलाए
१७- लीलाधर प्रभु माटी खाए।
यसुमति मुख ब्रह्मांड दिखाए।।
लीला कला के मेल मिलाए
        संगीत कला को जग में लाए।।
१८- गणपति चरण गोपाल नवाया।
सूर नर मुनि मनमोहक माया।।
      चंचल मन क्षणभंगुर कराया।
      कौन ले गया कौन क्या लाया।
१९- माखन चोर स्वभाव रसीला।
नटखट बालगोविंद की लीला।।
१९- माखन चोर स्वभाव रसीला।
नटखट बालगोविंद की लीला।।
      चित्र चरित्र विचित्र न हीला 
डूबे नहीं बने रहे टीला।।
डूबे नहीं बने रहे टीला।।
२०- बंशी वृंदावन गोपकुल गईया।
सबके मध्य में बसे कन्हईया।।
 दूध फेरती जशोदा मइईया।
        माँगें माखन दाऊ भइया।।
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२१- युगविराट माधव की महिमा।
अखिलभुवन गोपेश्वर गरिमा।।
२२- धन्य धरा प्रभु किए बसाकर।
गोपों को गोलोक से लाकर।।
भक्त पड़े तेरे चरणों में आकर।
        धन्य बनाया गले लगाकर।।
२३- गोपेश्वर श्रीकृष्ण की जय हो।
गाय गोप गोलोक अभय हो।।
मन में भक्तों के निश्चय हो।
२३- गोपेश्वर श्रीकृष्ण की जय हो।
गाय गोप गोलोक अभय हो।।
मन में भक्तों के निश्चय हो।
       वही पूरण करे सदा सदय हो।
२४- पांडव पक्ष जुगति कर नाना।
शकुनी क्षीण किए अभिमाना ।।
  अर्जुन का भी अहम जब जाना।
       नारायणी  गोपों को पठाना।।
२५- निंदा शतक क्षमा गोपाला।
चक्रसुदर्शन वध शिशुपाला।।
उन्मत्त हुए नृप पीकर हाला।
        उनको  भी प्रभु ने मार डाला।
२६- शैशवकाल पूतना तारे।
रक्षा भक्त अधम संहारे।।
जिसके छूटे सभी सहारे
रक्षा भक्त अधम संहारे।।
जिसके छूटे सभी सहारे
      उसके सहायक वंशी वारे।।
२७- दुष्टदलन संतन हितकारी।
बका अघा धेनुका पछारी ।।
 युग-युग में प्रभु तुम अवतारी।
        धर्म पर अधर्म हुआ जब भारी
२८- तारन भक्त भूमि अवतारा।
       गोपों में ही रूप पसारा।
दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।
दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।
           तब भूमि का भार उतारा।।
२९- मातु पिता बेड़ी छुड़वाए।
उग्रसेन साम्राज्य दिलाए।।
२९- मातु पिता बेड़ी छुड़वाए।
उग्रसेन साम्राज्य दिलाए।।
जब जब प्रभु भक्त घबराए।
        तब तब तुम धरणी पेट आए।।
३०- जब जब होवे हानि धरम की।
काली छाया पड़े कुकरम की।।
३०- जब जब होवे हानि धरम की।
काली छाया पड़े कुकरम की।।
       गयी मर्यादा ना लाज शरम की 
३१- धर्मयुद्ध निर्दोष है भारत।
गीता का उद्घोष है भारत।।
३२- गूंजे धरती गगन समंदर।
भगवतगीता धर्म धुरंधर।।
३३- कर्म कृपाण दिया अवगुन को।
गीताज्ञान सखा अर्जुन को।।
३४- युध आयुध कुरुक्षेत्र भयंकर।
धर्मपक्ष परिणाम शुभंकर।।
३५- ब्रह्मा रुद्र हरी मुसुकाए।
भार भूमि गोविंद छुड़ाए।।
३६- यादव कुलज कृष्ण प्रण लीन्हा।
हाथ यादवी ब्रह्मा दीन्हा।।
३७- मथुरा मुक्त कंस के डर से।
कालिंदी का नीर ज़हर से।।
३८- प्रभुपद पंकज पुण्य प्रसादा।
कृष्ण बसें उर अंतस राधा।।
३९- सूर नर मुनि आरती उतारें।
देवकी सुत वसुदेव दुलारे।।
४०- परमपुरुष महिपाल की जय-जय।
राधेकृष्ण गोपाल की जय-जय।।
दोहाः - चरण कमल घनश्याम के, पड़ जाए मम धाम।
दिव्य दृष्टि हरिदास पर, साँस-साँस प्रभु नाम।।
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