मंगलवार, 28 जनवरी 2025

- श्रीकृष्ण चालीसा चौपाई छन्द (संशोधित)

श्रीकृष्ण चालीसा-


दोहा: जीव चराचर जगत पति, दीनबन्धु भगवान,
        मनसा वाचा कर्मणा, हरिकीर्तन गुणगान।
       सुर नर मुनि जनगण करत, गोप श्रेष्ठ का ध्यान,            
       कष्ट हरन,सन्मति भरन, कृष्णचन्द्र भगवान।।
                                          
चौपाई
१- जय केशव यदुनन्दन प्यारे ।
     लाल  यशोदा  नंद  दुलारे ।।
जीवन नौका मझ में डूबे।
     भक्त विचारे तुम्हे पुकारे


२- भादो भाग्य उदय यादव के।
     यदुकुल चरण पड़े माधव के।।
 गोपों में गोपालक बनके 
       काज सम्हारे तुमने सब के।

३- यमुना धन्य चरण रज पाकर।
     पुलकित दर्शन पाय दिवाकर।।
   भक्त धन्य हुये गुण गाकर
      गोलोक चले  राह दिखाकर।।

४- मंगल मुरली माखन छींको।
     यही छवि रूप कन्हैया जी को।।
 छोटो बड़ो  और कटु  नीको 
      फल पाते हैं सभी करनी को।।

५- नटवर नागर जय बनवारी।
     वेग खबर लेयु प्रभु हम्हारी
     वृंदावन जय जय गिरधारी।।
      तेरे  नाम की महिमा भारी 

६- मुरली अधर गाय रखवारे।
     मोर मुकुट पीतांबर धारे।।
  ज्ञान की शिखा दिखा रहा रे ।
     मोहन मोह हन मुरलिया वारे।

७- महिमा धन्य गोप संबोधन।
     धर्म विवेचक कर्म का शोधन ।
     माखन दूध दही घृत गोधन।।
      धन्य वही जिस पेट भक्त धन।।

८- दुर्गा    दुर्गति    पापनाशिनी।
    दुर्गं दैत्य की  कहते नाशिनी।
     वैष्णव शक्ति मन्द हासिनी।
     कान्हा बहिन  विंध्यवासिनी।।

९- रूप  विराट  धनञ्जय  पाया।
   छवि मनमोहक तुमने दिखाया।।
भक्तों ने संकीर्तन गाया 
    तेरी अद्भुत मोहन माया।

१०- कमलनयन श्याम निराला।
      दीनदयाल विप्र रखवाला।।

११- साग विदुर घर खाए मोहन।
       छप्पन भोग त्याग दुर्योधन।।

१२- अंजुलि तीन दान घनश्यामा।
       महिमा कृष्ण समर्थ सुदामा।।

१३- वंदन नमन अखिल अधिपति का।
      नाश करें   प्रभु   कष्ट   बिपति का।।

१४- ब्रह्म   मुहूर्त   गोप   जो    जागे। ❓
    कृष्ण कथा सुनि भय दुःख भागे।।
 कृष्ण- कीर्तन में मन लागे ।
      कृष्ण के द्रोही रहे अभागे।

१५- बल्लभ प्राण गर्ग अभयंकर।
       कृष्णचंद्र बलराम शुभंकर।।
 यश का हनन  कुकर्म भयंकर
     कोई कर्म ऐसा मत कर।।


१६- नंदक खड्ग सुदर्शन धारी।
       गुरू आंगीरस शिक्षा न्यारी।।
वन के हार नहीं हार तुम्हारी
       व्रज में चरण  व्रज के विहारी।
    
१७- लीलाधर प्रभु माटी खाए।
       यसुमति मुख ब्रह्मांड दिखाए।।
  लीला कला के मेल मिलाए
        संगीत कला को जग में लाए।।

१८- गणपति चरण गोपाल नवाया।
       सूर नर मुनि मनमोहक माया।।
      चंचल मन क्षणभंगुर कराया।
      कौन ले गया कौन क्या लाया।

१९- माखन चोर  स्वभाव  रसीला।
      नटखट बालगोविंद की लीला।।
      चित्र चरित्र विचित्र न हीला 
       डूबे नहीं बने रहे टीला।।

२०- बंशी  वृंदावन गोपकुल गईया।
       सबके मध्य में बसे कन्हईया।।
 दूध फेरती जशोदा मइईया।
        माँगें माखन दाऊ भइया।।
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२१- युगविराट माधव की महिमा।
      अखिलभुवन गोपेश्वर गरिमा।।

२२- धन्य धरा प्रभु किए बसाकर।
       गोपों को गोलोक से लाकर।।
भक्त पड़े तेरे चरणों में आकर।
        धन्य बनाया गले लगाकर।।

२३- गोपेश्वर श्रीकृष्ण की जय हो।
       गाय गोप गोलोक अभय हो।।
मन में भक्तों के निश्चय हो।
       वही पूरण करे सदा सदय हो।

२४- पांडव पक्ष जुगति कर नाना।
      शकुनी क्षीण किए अभिमाना ।।
  अर्जुन का भी अहम जब जाना।
       नारायणी  गोपों को पठाना।।


२५- निंदा शतक क्षमा गोपाला।
       चक्रसुदर्शन वध शिशुपाला।।
      उन्मत्त हुए नृप पीकर हाला।
        उनको  भी प्रभु ने मार डाला।

२६- शैशवकाल पूतना तारे।
      रक्षा भक्त अधम संहारे।।
      जिसके छूटे सभी सहारे 
      उसके सहायक वंशी वारे।।

२७- दुष्टदलन संतन हितकारी।
          बका अघा धेनुका पछारी ।।
 युग-युग में प्रभु तुम अवतारी।
        धर्म पर अधर्म हुआ जब भारी
      

२८- तारन भक्त भूमि अवतारा।
       गोपों में ही रूप पसारा।
      दुष्ट दलन अरि कंस संहारा।
           तब भूमि का भार उतारा।।

२९- मातु पिता बेड़ी छुड़वाए।
       उग्रसेन साम्राज्य दिलाए।।
जब जब प्रभु भक्त घबराए।
        तब तब तुम धरणी पेट आए।।

३०- जब जब होवे हानि धरम की।
           काली छाया पड़े कुकरम की।।
       गयी मर्यादा ना लाज शरम की 
            
             

३१- धर्मयुद्ध निर्दोष है भारत।
      गीता का उद्घोष है भारत।।

३२- गूंजे धरती गगन समंदर।
      भगवतगीता धर्म धुरंधर।।

३३- कर्म कृपाण दिया अवगुन को।
       गीताज्ञान सखा अर्जुन को।।

३४- युध आयुध कुरुक्षेत्र भयंकर।
       धर्मपक्ष परिणाम शुभंकर।।

३५- ब्रह्मा रुद्र हरी मुसुकाए।
       भार भूमि गोविंद छुड़ाए।।

३६- यादव कुलज कृष्ण प्रण लीन्हा।
       हाथ यादवी ब्रह्मा दीन्हा।।

३७- मथुरा मुक्त कंस के डर से।
       कालिंदी का नीर ज़हर से।।

३८- प्रभुपद पंकज पुण्य प्रसादा।
       कृष्ण बसें उर अंतस राधा।।

३९- सूर नर मुनि आरती उतारें।
       देवकी सुत वसुदेव दुलारे।।

४०-  परमपुरुष महिपाल की जय-जय।
        राधेकृष्ण   गोपाल  की जय-जय।।

दोहाः - चरण कमल घनश्याम के, पड़ जाए मम धाम।
           दिव्य दृष्टि हरिदास पर, साँस-साँस प्रभु नाम।।

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