शनिवार, 4 जनवरी 2025

 62-भवः समुद्रः, कठिनः मार्गः अस्ति। 
 वयं स्वयमेव सम्झौतां कृतवन्तः! 
 जीवनस्य नौका न मज्जयेत्। 
 अत्र आसक्तिभ्रमाणि लोभगहनानि च।


 62-भवः समुद्रः, कठिनः मार्गः अस्ति। 
 वयं स्वयमेव सम्झौतां कृतवन्तः! 
 जीवनस्य नौका न मज्जयेत्। 
 अत्र आसक्तिभ्रमाणि लोभगहनानि च।

गुरुवार, 2 जनवरी 2025

आगम और निगम की परिभाषा-

१-निगम ( वेद' उपनिषद)
२-आगम (तांत्रिक परम्परा और गुरु शिष्य पद्धति से प्राप्त ज्ञान व पुराण)

तान्त्रिक ग्रन्थों में आगम का लक्षण निम्नलिखित है।
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आगतं पञ्चवक्त्रात्तु गतञ्च गिरिजानने ।
मतञ्च वासुदेवस्य तस्मादागममुच्यते
अनुवाद:-  शिव के मुख से आया हुआ और पार्वती को  मुख में पहुँचा हुआ तथा वासुदेव कृष्ण का मत( माना हुआ) उसी को आगम कहा जाता है।।
आगम की ही एक अपर संज्ञा है – तंत्र। तंत्र और आगम, समानार्थी अर्थों में  शास्त्रों में प्रयुक्त होते रहे हैं। 

आगम इन सात लक्षणों से समन्वित होता है :- सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म, (शांति, वशीकरण, स्तम्भन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन तथा ध्यानयोग। ये आगम ग्रन्थ के लक्षण हैं।

तन्त्रशास्त्र का वह अंग जिसमें सृष्टि, प्रलय, देवताओं की पूजा, उनका साधन, पुरश्चरण-(हवन आदि के समय किसी विशिष्ट देवता का नाम जप  अथवा किसी मंत्र, स्तोत्र आदि को किसी अभीष्ट कार्य की सिद्धि के लिये किसी निश्चित समय और परिमाण तक नियमपूर्वक जपना या पाठ करना)  और चार प्रकार का ध्यानयोग होता है ।
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आगम भारतीय साधना के दो रूपों में से एक  हैं। साधना के दो रूप एक बहिरंग दूसरी अन्तरंग।

यह बहिर्मुखी साधना ही निगम कहलाती है और अन्तर्मुखी  साधना का ही नाम आगम है।


आगम सर्वसुलभ होते हुए भी चूंकि वह अन्तरंग साधना से जुड़ते हैं, वह गुह्य ही रहे


शास्त्रों के एक स्वरूप को निगम कहा जाता है, जिसमें वेद, पुराण, उपनिषद आदि आते हैं।


इसमें ज्ञान, कर्म और उपासना आदि के विषय में बताया गया है। वेद-शास्त्रों को निगम कहते हैं।शास्त्रों के  उस स्वरूप को आगम कहते हैं जो  व्यवहार अथवा आचरण में उतारने वाले उपायों का रूप होता है।। तन्त्र अथवा आगम में व्यवहार पक्ष ही मुख्य है

 तन्त्र, क्रियाओं और अनुष्ठान पर बल देता है। 

निगम - शब्द, पद और शब्दों का मूल रूप या निरुक्ति। सामान्यतया निगम वेदों के लिए प्रयुक्त होता है। इसमें वैदिक मतों का निरूपण, प्रतिपादन और स्पष्टीकरण शामिल है। 

 जबकि आगम  सामान्यतया तंत्र के लिए प्रयुक्त होता है। तन्त्र-शास्त्र का एक नाम-रूपागम शास्त्र भी है। 

"आगमात् शिववक्त्राद् गतं च गिरिजा मुखम्। सम्मतं वासुदेवेनागमः इति कथ्यते ॥

जिससे अभ्युदय-लौकिक कल्याण और निःश्रेयस-मोक्ष के उपाय बुद्धि में आते हैं, वह आगम कहलाता है। [वाचस्पति मिश्र, योग भाष्य, तत्व वैशारदी व्याख्या]

उपास्य देवता की भिन्नता के कारण आगम के तीन प्रकार हैं :- वैष्णव आगम (पंचरात्र तथा वैखानस आगम), शैव आगम (पाशुपत, शैवसिद्धांत, त्रिक आदि) तथा शाक्त आगम। 

द्वैत, द्वैताद्वैत तथा अद्वैत की दृष्टि से भी इनमें तीन भेद माने जाते हैं। 

आगम वेदमूलक और सम्पूरक हैं। इनके वक्ता प्रायः भगवान् शिव हैं।

यह शास्त्र साधारणतया तंत्रशास्त्र के नाम से प्रसिद्ध है। निगमागम मूलक भारतीय संस्कृति का आधार जिस प्रकार निगम (वेद) है, उसी प्रकार आगम (तंत्र) भी है। 

दोनों स्वतंत्र होते हुए भी एक दूसरे के पोषक व सन् पूरक भी हैं। 

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निगम कर्म, ज्ञान तथा उपासना का स्वरूप बतलाता है तथा आगम इनके उपायभूत साधनों का वर्णन करता है।

(निगम  सैद्धांतिक है तो आगम प्रायौगिक) 

आगच्छन्ति बुद्धिमारोहन्ति अभ्युदयनि: श्रेयसोपाया यस्मात्‌, स आगम:। [वाचस्पति मिश्र -तत्ववैशारदी-योगभाष्य की व्याख्या] 

आगम का मुख्य लक्ष्य ‘क्रिया’ के ऊपर है, तथापि ज्ञान का भी विवरण यहाँ कम नहीं है। 

आगम इन सात लक्षणों से समन्वित होता है :- सृष्टि, प्रलय, देवतार्चन, सर्वसाधन, पुरश्चरण, षट्कर्म, (शांति, वशीकरण, स्तंभन, विद्वेषण, उच्चाटन तथा मारण) साधन तथा ध्यानयोग। [वाराहीतंत्र]

कलियुग में प्राणी मेध्य ( मेध-(यज्ञ) करने योग्य  तथा अमेध्य ( यज्ञ न करने योग्य)  विचारों से बहुधा किंकर्तव्यविमूढ होते हैं और इन्हीं के कल्याणार्थ भगवान् महादेव ने आगमों का उपदेश माता पार्वती को स्वयं दिया। [महानिर्वाण तंत्र] 



शिक्षा शास्त्र में जिस प्रकार आगमन विधि में विशिष्ट तथ्यों और घटनाओं के अध्ययन से सामान्य नियम या सिद्धांत बनाए जाते हैं.

 वहीं, निगमन विधि में सामान्य नियमों या सिद्धांतों को पहले बताया जाता है और फिर उनका उदाहरणों के ज़रिए पुष्टि की जाती है

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आगमन-निगमन विधि से जुड़ी कुछ और बातें:

  • १-आगमन विधि में, उदाहरणों के ज़रिए नियमों को समझाया जाता है।                  
  • इस विधि में, ज्ञात से अज्ञात, स्थूल से सूक्ष्म , और मूर्त से अमूर्त की ओर जाने के सिद्धांतों का इस्तेमाल किया जाता है.         
  • आगमन विधि में, छात्र उदाहरणों के ज़रिए सरल संप्रत्ययों को समझकर नए ज्ञान को हासिल करते हैं।                      सामान्यतः किसी शब्द के वास्तविक अर्थ को ही प्रत्यय अथवा संप्रत्यय कहते हैं, परन्तु मनोविज्ञान  भाषा में मनुष्य के मस्तिष्क में किसी वस्तु, प्राणी, क्रिया अथवा भावना के किसी मूलभूत गुण के आधार पर बनी जातीय प्रतिमा( प्रतिबिम्ब) को प्रत्यय अथवा संप्रत्यय कहते हैं।                                                        
  • निगमन विधि में, नियमों और सिद्धांतों को बताया जाता है और फिर उनकी उदाहरणों के ज़रिए पुष्टि की जाती है. 
  • निगम विधि में, तर्क के ज़रिए प्रक्रिया के कैसे और क्यों को समझाया जाता है. 
  • निगमन विधि को काल्पनिक रीति, विश्लेषण रीति, अमूर्त रीति जैसे नामों से भी जाना जाता है.                                   
  • निगमन विधि, विज्ञान और गणित पढ़ाने के लिए बहुत उपयोगी है.