गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप- भाग तृतीय-पद विचार प्रकरण-



"हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप- भाग तृतीय-पद विचार प्रकरण-

हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप ।
भाग तृतीय

"पद-विचार:– सार्थक वर्ण-समूह शब्द कहलाता है, पर जब इसका प्रयोग वाक्य में होता है तो वह स्वतंत्र नहीं रहता बल्कि व्याकरण के नियमों में बँध जाता है और प्रायः इसका रूप भी बदल जाता है।

"जब कोई शब्द वाक्य में प्रयुक्त होता है तो उसे शब्द न कहकर पद कहा जाता है"

हिन्दी में पद पाँच प्रकार के होते हैं-
1. संज्ञा 2. सर्वनाम 3. विशेषण 4. क्रिया 5. अव्यय

संज्ञा - किसी वस्तु ,व्यक्ति अथवा स्थान का नाम है। 

सर्वनाम- और सर्वनाम जो शब्द किसी संज्ञा के स्थान पर प्रयोग किए जायें वे सर्वनाम हैं।

विशेषण की परिभाषा, भेद और उदाहरण विशेषण क्या होता है :- जो शब्द संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता बताते हैं उसे विशेषण कहते हैं।

अथार्त जो शब्द गुण , दोष , भाव , संख्या , परिमाण आदि से संबंधित विशेषता (गुण)का बोध कराते हैं उसे विशेषण कहते हैं।
विशेषण को सार्थक शब्दों के आठ भेदों में से एक माना जाता है।

विशेषण  एक विकारी शब्द होता है।

जो शब्द विशेषता बताते हैं उन्हें विशेषण कहते हैं।
जब विशेषण रहित संज्ञा में जिस वस्तु का बोध होता है विशेषण लगने के बाद उसका अर्थ सिमित हो जाता है। जैसे :- बड़ा , काला , लम्बा , दयालु , भारी , सुंदर , कायर , टेढ़ा – मेढ़ा , एक , दो , वीर पुरुष , गोरा , अच्छा , बुरा , मीठा , खट्टा आदि।

विशेषण के उदाहरण :-
(i) आसमान का रंग नीला है।

(ii) मोहन एक अच्छा लड़का है।

(iii) टोकरी में मीठे संतरे हैं।

(iv) रीता सुंदर है।

(v) कौआ काला होता है।

(vi) यह लड़का बहुत बुद्धिमान है।

(vii) कुछ दूध ले आओ।

(viii) पांच किलो दूध मोहन को दे दो।

(ix) यह रास्ता लम्बा है।

(x) खीरा कडवा है।

(xi) यह भूरी गाय है।

(xii) सुनीता सुंदर लडकी है।

विशेष्य (Characteristic/substantive ) क्या होता है :- जिसकी विशेषता बताई जाती है; उसे विशेष्य कहते हैं।
अथार्त जिस संज्ञा और सर्वनाम की विशेषता बताई जाती है उसे विशेष्य कहते हैं।

विशेष्य को विशेषण के पहले या बाद में भी लिखा जा सकता है।
जैसे :- १-विद्वान् अध्यापक , २-सुंदर गीत , ३-थोडा सा जल लाओ , ४-खीरा कडवा है , ५-सेब मीठा , ६-आसमान नीला है , ७-मोहन अच्छा लड़का है , ८-सुंदर फूल ,९-काला घोडा , १०- श्वेत गाय मैदान में खड़ी है आदि वाक्यों मे रेखांकित पद  विशेषण हैं ।

प्रविशेषण क्या होता है :- जिन शब्दों से विशेषण की विशेषता का पता चलता है उन्हें प्रविशेषण कहते हैं।

जैसे :- यह आम (बहुत मीठा) है , यह लड़की (बहुत अच्छी) है , मोहित (बहुत चालाक) है।

उपर्युक्त वाक्यों में क्रमशः बहुत शब्द प्रविशेषण है। जो मीठा , अच्छा और चालाक शब्द की विशेषता बताते हैं।

२-उद्देश्य विशेषण किसे कहते हैं :- विशेष्य से पहले जो विशेषण लगते हैं उन्हें उद्देश्य विशेषण कहते हैं।
जैसे :- सुंदर लडकी , अच्छा लड़का , काला घोडा आदि।

विधेय विशेषण किसे कहते हैं :- जो विशेष्य संज्ञा और सर्वनाम आदि के बाद प्रयुक्त होने वाले विधेय  विषय में बताते हैं उसे विधेय विशेषण कहते हैं।
जैसे :- ये सेब मीठे हैं , वह लडकी सुंदर है आदि।

विशेषण के आठ भेद हैं  :-
(क)१- गुणवाचक विशेषण (ख)२- परिमाण वाचक विशेषण (ग) ३-संख्यावाचक विशेषण (घ)४- सार्वनामिक विशेषण (ड)५- व्यक्तिवाचक विशेषण (च)६- प्रश्नवाचक विशेषण (छ)७- तुलना वाचक विशेषण (ज)८- सम्बन्धवाचक विशेषण।

(क) गुणवाचक विशेषण :- जो शब्द संज्ञा या सर्वनाम के गुण के रूप की विशेषता बताते हैं; उन्हें गुणवाचक विशेषण कहते हैं।

जैसे :- कालिदास विद्वान् व्यक्ति थे , वह लम्बा पेड़ है , उसने सफेद कमीज पहनी है , मंजू का घर पुराना है , यह ताजा फल है , पुराने फर्नीचर को बेच दो। गुणवाचक विशेषण के कुछ रूपों के उदाहरण इस प्रकार हैं :-

(1)सद् गुणबोधक = सुंदर , बलवान , विद्वान् , भला , उचित , अच्छा , ईमानदार , सरल , विनम्र , बुद्धिमानी , सच्चा , दानी , न्यायी , सीधा , शान्त आदि।

(2) दुर्गुण बोधक = बुरा , लालची , दुष्ट , अनुचित , झूठा , क्रूर , कठोर , घमंडी , बेईमान , पापी आदि।

(3) रंगबोधक = लाल , पीला , सफेद ,नीला , हरा , काला , बैंगनी , सुनहरा , चमकीला , धुंधला , फीका आदि।

(4) अवस्थाबोधक = लम्बा , पतला , अस्वस्थ ,दुबला , मोटा , भारी , पिघला , गाढ़ा , गीला , सूखा , घना , गरीब , उद्यमी , पालतू , रोगी , स्वस्थ , कमजोर , हल्का , बूढ़ा , अमीर आदि।

(5) स्वादबोधक = खट्टा ,मीठा , नमकीन , कडवा , तीखा , कसैला आदि।

(6) आकारबोधक = गोल , चौकोर , सुडौल , समान , , नुकीला , लम्बा , चौड़ा , सीधा , तिरछा , बड़ा , छोटा , चपटा ,ऊँचा , मोटा , पतला , पोला आदि।

(7) स्थानबोधक = उजाड़ , चौरस , भीतरी , बाहरी , उपरी , सतही , पूर्वीय , पच्छिमी , दायाँ , बायाँ , स्थानीय , देशीय , क्षेत्रीय , आसामी , पंजाबी , अमेरिकीय , भारतीय , विदेशी , ग्रामीण , जापानी आदि।

(8) कालबोधक = नया , पुराना , ताजा , भूत , वर्तमान , भविष्य , प्राचीन , अगला , पिछला , मौसमी , आगामी , टिकाऊ , नवीन , सायंकालीन , आधुनिक , वार्षिक , मासिक  दोपहर , संध्या , सवेरा आदि।

(9) दिशाबोधक = निचला , उपरी , उत्तरी , पूर्वीय , दक्षिणी , पश्चिमी आदि।

(10) स्पर्शबोधक = मुलायम , सख्त , ठंडा , गर्म , कोमल , खुरदरा आदि।

(11) भावबोधक = अच्छा , बुरा , कायर , वीर , डरपोक आदि।

(ख) परिमाण वाचक विशेषण :– परिणाम का अर्थ होता है – मात्रा
जो विशेषण संज्ञा या सर्वनाम की मात्रा या नाप – तौल के परिणाम की विशेषता बताएं उसे परिणामवाचक विशेषण कहते हैं।

जैसे :-

"उपर्युक्त वाक्यों में वह और कौन शब्द सार्वनामिक विशेषण हैं।

 पुरूषवाचक और निजवाचक सर्वनामों को छोड़ बाकी सभी सर्वनाम संज्ञा के साथ प्रयुक्त होकर सार्वनामिक विशेषण बन जाते हैं।

जैसे-

1.निश्चयवाचक विशेषण- यह मूर्ति, ये मूर्तियाँ, वह मूर्ति, वे मूर्तियाँ आदि।

2.अनिश्चयवाचक विशेषण- कोई व्यक्ति, कोई लड़का, कुछ लाभ आदि।

3.प्रश्नवाचक.विशेषण- कौन आदमी? कौन लौग?, क्या काम?, क्या सहायता? आदि।

4.सम्बन्धवाचक विशेषण- जो पुस्तक, जो लड़का, जो वस्तु।

व्युत्पत्ति की दृष्टि से सार्वनामिक विशेषण के दो प्रकार हैं-

1.मूल सार्वनामिक विशेषण और

2.यौगिक सार्वनामिक विशेषण।

1.मूल सार्वनामिक विशेषणः जो सर्वनाम बिना किसी रूपान्तरण के विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है ;
उसे मूल सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।

जैसे-
1. वह लड़की विद्यालय जा रही है।
1.That Girl is going to school .

2. कोई लड़का मेरा काम कर दे।
2.Let any boy do my work.

3. कुछ विद्यार्थी अनुपस्थित हैं।
3. Some students are absent.

उपयुक्त वाक्यों में वह,कोई और कुछ शब्द( पद) मूल सार्वनामिक विशेषण हैं।

2.यौगिक सार्वनामिक विशेषणः- जो सर्वनाम मूल सर्वनाम में प्रत्यय आदि जुड़ जाने से विशेषण के रूप में प्रयुक्त होता है ; उसे यौगिक सार्वनामिक विशेषण कहते हैं।
जैसे- 1.( ऐसा )आदमी कहाँ मिलेगा?

2.( कितने )रूपये तुम्हें चाहिए?

3. मुझसे (इतना )बोझ उठाया नहीं जाता।

उपर्युक्त वाक्यों में ऐसा, कितने और इतना शब्द यौगिक सार्वनामिक विशेषण हैं।

यौगिक सार्वनामिक विशेषण निम्नलिखित सार्वनामिक विशेषणों से बनते हैं- यह से इतना, इतने, इतनी, इस से ऐसा, ऐसी, ऐसे

वह से उतना, उतने, उतनी, वैसा, वैसी, वैसे।

जो से जितना, जितनी, जितने, जैसा, जैसी, जैसे

कौन से कितना, कितनी, कितने, कैसा, कैसी, कैसे।

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 "पदबन्ध (Phrase) की परिभाषा-

पद:-
वाक्य से अलग रहने पर संज्ञा 'शब्द' और वाक्य में प्रयुक्त हो जाने पर संज्ञा शब्द 'पद' कहलाते हैं।
दूसरे शब्दों में- शब्द विभक्तिरहित और पद विभक्तिसहित होते हैं।

पद-बन्ध:- जब दो या अधिक शब्द नियत क्रम और निश्चित अर्थ में किसी पद का कार्य करते हैं तो उन्हें पदबन्ध कहते हैं।

दूसरे शब्दों में- कई पदों के योग से बने वाक्यांशो को, जो एक ही पद का काम करता है, 'पदबन्ध' कहते है।

डॉ० हरदेव बाहरी ने 'पदबन्ध' की परिभाषा इस प्रकार दी है- "वाक्य के उस भाग को, जिसमें एक से अधिक पद परस्पर सम्बद्ध होकर अर्थ तो देते हैं, किन्तु पूरा अर्थ नहीं देते- पदबन्ध या वाक्यांश कहते हैं"।

जैसे-
(1) (सबसे तेज दौड़ने वाला छात्र )जीत गया।

(2) यह लड़की (अत्यन्त सुशील और परिश्रमी )है।

(3) नदी (बहती चली जा रही) है।

(4) नदी (कल-कल करती हुई ) बह रही थी।

उपर्युक्त वाक्यों में कुछ शब्द पद-बन्ध हैं। जैसे
पहले वाक्य के 'सबसे तेज दौड़ने वाला छात्र' में पाँच पद है, किन्तु वे मिलकर एक ही पद अर्थात् संज्ञा का कार्य कर रहे हैं।

दूसरे वाक्य के 'अत्यन्त सुशील और परिश्रमी' में भी चार पद हैं, किन्तु वे मिलकर एक ही पद अर्थात् विशेषण का कार्य कर रहे हैं।

तीसरे वाक्य के 'बहती चली जा रही है' में पाँच पद हैं किन्तु वे मिलकर एक ही पद अर्थात क्रिया का काम कर रहे हैं।

चौथे वाक्य के 'कल-कल करती हुई' में तीन पद हैं, किन्तु वे मिलकर एक ही पद अर्थात क्रिया विशेषण का काम कर रहे हैं।

इस प्रकार रचना की दृष्टि से पदबन्ध में तीन बातें आवश्यक हैं-

-एक तो यह कि इसमें एक से अधिक पद होते हैं।

२-दूसरे ये पद इस तरह से सम्बद्ध होते हैं कि उनसे एक इकाई बन जाती है।

३-तीसरे, पदबन्ध किसी वाक्य का अंश होता है।


अँग्रेजी में इसे (phrase)कहते हैं।

इसका मुख्य कार्य वाक्य को स्पष्ट, सार्थक और प्रभावकारी बनाना है।

शब्द-लाघव के लिए भी इसका उपयोग किया जाता है- खास तौर से समास, मुहावरों और कहावतों में।

"ये पदबन्ध पूरे वाक्य नहीं होते, बल्कि वाक्य के टुकड़े हैं, किन्तु निश्चित अर्थ और क्रम के परिचायक हैं।

हिन्दी व्याकरण में इन पर अभी स्वतन्त्र अध्ययन नहीं हुआ है।
पदबन्ध के भेद :-

"पदबन्ध के चार भेद किये गये हैं-(1संज्ञा-पदबन्ध-

(2) विशेषण-पदबन्ध-

(3) क्रिया पद -बन्ध

(4) क्रिया विशेषण पद-बन्ध -

(1) संज्ञा-पदबन्ध- जब किसी वाक्य में पद-समूह या पदबन्ध संज्ञा का भाव नियत क्रम और निश्चित अर्थ में प्रकट करें तब वे संज्ञा-पदबन्ध कहलाते हैं।

दूसरे शब्दों में-पदबन्ध का अन्तिम अथवा शीर्ष शब्द यदि संज्ञा हो और अन्य सभी पद उसी पर आश्रित हो तो वह 'संज्ञा पद-बन्ध' कहलाता है।

जैसे-
(a) चार ताकतवर (मजदूर )इस भारी चीज को उठा पाए।

(b) राम ने लंका के राजा (रावण )को मार गिराया।

(c) अयोध्या के राजा (दशरथ) के चार पुत्र थे।

(d) आसमान में उड़ता हुआ (गुब्बारा) फट गया।

उपर्युक्त वाक्यों में काले रेखांकित छपे शब्द 'संज्ञा पदबंध' है।

(2) विशेषण-पदबन्ध- जब किसी वाक्य में पदबंध किसी संज्ञा की विशेषता नियत क्रम और निश्चित अर्थ में बतायें तब वे विशेषण-पदबंध कहलाते हैं।

दूसरे शब्दों में- पदबन्ध का शीर्ष अथवा अन्तिम शब्द यदि विशेषण हो और अन्य सभी पद उसी पर आश्रित हों तो वह 'विशेषण पदबन्ध' कहलाता है।

जैसे-
(a) तेज चलने वाली गाड़ियाँ प्रायः देर से पहुँचती हैं।

(b) उस घर के कोने में बैठा हुआ आदमी जासूस है।

(c) उसका घोड़ा अत्यंत सुंदर, फुरतीला और आज्ञाकारी है।

(d) बरगद और पीपल की घनी छाँव से हमें बहुत सुख मिला।

उपर्युक्त वाक्यों में काला छपे शब्द 'विशेषण पदबंध' है।

(3) क्रिया पद-बन्ध:-

क्रिया पद-बन्ध में मुख्य क्रिया पहले आती है।
उसके बाद अन्य क्रियाएँ मिलकर एक समग्र इकाई बनाती हैं।
यही 'क्रिया पद-बन्ध' है।

जैसे-
(a) वह बाजार की ओर( आया होगा)

(b) मुझे मोहन छत से (दिखाई दे रहा है)

(c) सुरेश नदी में (डूब गया)

(d) अब दरवाजा (खोला जा सकता है)
उपर्युक्त वाक्यों में काला छपे शब्द 'क्रिया पदबन्ध' है।

(4) क्रिया विशेषण पदबन्ध- यह पदबन्ध मूलतः क्रिया का विशेषण रूप होने के कारण प्रायः क्रिया से पहले आता है।

इसमें क्रियाविशेषण प्रायः शीर्ष स्थान पर होता है, अन्य पद उस पर आश्रित होते है।
जैसे-
(a) मैंने रमा की (आधी रात तक) प्रतीक्षा की।

(b) उसने साँप को (पीट-पीटकर) मारा।

(c) छात्र मोहन की शिकायत (दबी जबान) से कर रहे थे।

(d) कुछ लोग (सोते-सोते )चलते है।

उपर्युक्त वाक्यों में काला छपे शब्द 'क्रिया विशेषण पदबन्ध' है। __________________________________________

"पदबन्ध (Phrase) और उपवाक्य (Clause) में अन्तर" 

  "उपवाक्य (Clause) भी पदबन्ध (Phrase) की तरह पदों का समूह है, लेकिन इससे केवल आंशिक भाव प्रकट होता है, पूरा नहीं। और पदबन्ध में क्रिया नहीं होती, उपवाक्य में क्रिया रहती है;

जैसे उपवाक्य:--' ज्योंही वह आया, त्योंही मैं चला गया।'
यहाँ 'ज्योंही वह आया' एक उपवाक्य है, जिससे पूर्ण अर्थ की प्रतीति नहीं होती।

दौनों में अन्तर ---उपवाक्य (Clause) की परिभाषा ऐसा पदसमूह, जिसका अपना अर्थ हो, जो एक वाक्य का भाग हो और जिसमें उदेश्य और विधेय हों, उपवाक्य कहलाता हैं।

उपवाक्यों के आरम्भ में अधिकतर ये शब्दाँश आते हैं :- जैसे
कि, जिससे ताकि, जो, जितना, ज्यों-त्यों, चूँकि, क्योंकि, यदि, यद्यपि, जब, जहाँ इत्यादि...

"उपवाक्य के प्रकार:- उपवाक्य तीन प्रकार के होते हैं-

(1) संज्ञा-उपवाक्य (Noun Clause)

(2) विशेषण-उपवाक्य (Adjective Clause)

(3) क्रियाविशेषण-उपवाक्य (Adverb Clause)

1-संज्ञा-उपवाक्य(Noun Clause)- जो आश्रित उपवाक्य संज्ञा की तरह व्यवहृत हों, उसे 'संज्ञा-उपवाक्य' कहते हैं।

यह कर्म (सकर्मक क्रिया) या पूरक (अकर्मक क्रिया) का काम करता है, जैसा कि एक संज्ञा करती है।

'संज्ञा-उपवाक्य' की पहचान यह है कि इस उपवाक्य के पूर्व में 'कि' सम्बन्ध बोधक अव्यय  होता है।

जैसे- 'राम ने कहा कि मैं पढूँगा' यहाँ 'मैं पढूँगा' संज्ञा-उपवाक्य है।

'मैं नहीं जानता कि वह कहाँ है'- इस वाक्य में 'वह कहाँ है' संज्ञा-उपवाक्य है।

(2) विशेषण-उपवाक्य (Adjective Clause)- जो आश्रित उपवाक्य विशेषण की तरह व्यवहृत हो, उसे विशेषण-उपवाक्य कहते हैं।

जैसे- वह आदमी, जो कल आया था, आज भी आया है।

यहाँ 'जो कल आया था' विशेषण-उपवाक्य है।

इसमें 'जो', 'जैसा', 'जितना' इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता हैं।

(3) क्रियाविशेषण-उपवाक्य (Adverb Clause)- जो उपवाक्य क्रियाविशेषण की तरह व्यवहृत हो, उसे क्रियाविशेषण-उपवाक्य कहते हैं।

जैसे- जब पानी बरसता है, तब मेढक बोलते हैं यहाँ 'जब पानी बरसता है'
क्रियाविशेषण-उपवाक्य हैं।

इसमें प्रायः 'जब', 'जहाँ', 'जिधर', 'ज्यों', 'यद्यपि' इत्यादि शब्दों का प्रयोग होता हैं।

इसके द्वारा समय, स्थान, कारण, उद्देश्य, फल, अवस्था, समानता, मात्रा इत्यादि का बोध होता हैं।
अत्यधिक स्पष्टता के लिए उपवाक्य :-
(1) प्रधान उपवाक्य  (2) आश्रित उपवाक्य l

प्रधान उपवाक्य :→ प्रधान उपवाक्य (मुख्य उपवाक्य) किसी दूसरे उपवाक्य पर निर्भर नहीं होता है। वह स्वतन्त्र उपवाक्य होता है।

आश्रित उपवाक्य :→ आश्रित उपवाक्य दूसरे उपवाक्य पर आश्रित होता है।

→ आश्रित उपवाक्य ,क्योंकि, कि, यदि, जो, आदि सम्बन्ध बोधक अव्ययों से आरम्भ होते हैं।

आश्रित उपवाक्य के प्रकार
(1) संज्ञा उपवाक्य (2) विशेषण उपवाक्य (3) क्रियाविशेषण उपवाक्य ।

=संज्ञा उपवाक्य → जब किसी आश्रित उपवाक्य का प्रयोग प्रधान उपवाक्य की किसी संज्ञा के स्थान पर होता तो उसे संज्ञा उपवाक्य कहते है।

→ ‘संज्ञा उपवाक्य’ का प्रारम्भ ‘कि’ से होता है।

जैसे → गाँधी जी ने कहा कि सदा सत्य बोलो।

→ इस वाक्य में ‘‘कि सदा सत्य बोलो’’ संज्ञा उपवाक्य हैं।
विशेषण उपवाक्य → जब कोई आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य के किसी ‘संज्ञा’ या सर्वनाम शब्द की विशेषता बतलाये तो उस उपवाक्य को विशेषण उपवाक्य कहते हैं।

→ विशेषण उपवाक्य का प्रारम्भ जो, जिसका, जिसकी, जिसके में से किसी शब्द से होता है।

जैसे →1. यह वही लड़का है, जो कक्षा में प्रथम आया था।

विशेषण उपवाक्य :→
जो कक्षा में प्रथम आया था।

यह वही फि़ल्म है जिसे अवाॅर्ड मिला था।

विशेषण उपवाक्य :→
जिसे अवाॅर्ड मिला था।

क्रियाविशेषण उपवाक्य  → जब कोई आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बताये या सूचना दे, उस आश्रित उपवाक्य को क्रिया विशेषण उपवाक्य कहते है। :→
क्रिया विशेषण उपवाक्य यदि, जहाँ, जैसे, यद्यपि, क्योंकि, जब, तब आदि में से किसी शब्द से शुरू होता है। जैसे :→

1. यदि मोहन मेहनत करता, तो अवश्य उत्तीर्ण होता।

क्रियाविशेषण उपवाक्य → तो अवश्य उत्तीर्ण होता।

श्याम को गाड़ी नहीं मिली, क्योंकि वह समय पर नहीं गया।

क्रियाविशेषण उपवाक्य → क्योंकि वह समय पर नहीं गया।

वाक्यों में उपवाक्यों का समायोजन -  ।

"रचना के अनुसार वाक्य के निम्नलिखित तीन भेद हैं

१ - सरल वाक्य => जिस वाक्य में केवल एक ही क्रिया हो, वह सरल या साधारण वाक्य कहलाता है।
जैसे=>१- चिड़िया उड़ती है ।

२-श्रेयांश पतंग उड़ा रहा है ।

३-गाय घास चरती है ।

२ - संयुक्त वाक्य => जब दो अथवा दो से अधिक सरल या साधारण वाक्य किसी सामानाधिकरण योजक (और - एवम् - तथा , या - वा -अथवा, लेकिन -किन्तु - परन्तु आदि) से जुड़े होते हैं, तो वह संयुक्त वाक्य कहलाता हैं।

जैसे=>

(अ) - चन्दन खेल कर आया और सो गया ।

(ब) - मैंने उसे बहुत मनाया परन्तु वह नहीं मानी।

(स) - कम खाया करो अन्यथा मोटे हो जाओगे ।

३ - मिश्र वाक्य => जब दो अथवा दो से अधिक सरल या संयुक्त वाक्य किसी व्यधिकरण योजक (यदि...तो , जैसा...वैसा, क्योंकि...इसलिए , यद्यपि....तथापि ,कि आदि )
से जुड़े होते हैं, तो वह मिश्र या मिश्रित वाक्य कहलाता है।

ऐसे वाक्य में एक प्रधान (मुख्य) उपवाक्य और एक या एक से अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं।

जैसे => (अ) - यदि अधिक दौड़ोगे तो थक जाओगे।

(ब) -यद्यपि मैंने उसे बहुत मनाया तथापि वह नहीं माना।

(स) - जैसा काम करोगे वैसा फल मिलेगा।

(द) - क्षितिज ने बताया कि वह पटना जाएगा ।

मिश्र या मिश्रित वाक्य के भी दो भेद होते हैं =>
(क) प्रधान उपवाक्य => किसी वाक्य में जो उपवाक्य किसी पर आश्रित नहीं होता अर्थात् स्वतन्त्र होता है; एवम् उसकी क्रिया मुख्य होती है , वह मुख्य या प्रधान उपवाक्य कहलाता है।

जैसे- मोदी जी ने कहा कि अच्छे दिन आएँगे।
इस वाक्य में ‘मोदी जी ने कहा’ प्रधान उपवाक्य है।

(ख) आश्रित उपवाक्य => किसी वाक्य में जो उपवाक्य दूसरे उपवाक्य पर निर्भर होता है अर्थात् स्वतंत्र नहीं होता है एवम् किसी न किसी व्यधिकरण योजक से जुड़ा होता है , वह आश्रित उपवाक्य कहलाता है।

जैसे- मोदी जी ने कहा कि अच्छे दिन आएँगे।
इस वाक्य में ‘अच्छे दिन आएँगे।’
आश्रित उपवाक्य है।

आश्रित उपवाक्य के तीन भेद होते हैं =>

(अ) - संज्ञा आश्रित उपवाक्य => किसी वाक्य में जो आश्रित उपवाक्य किसी दूसरे (प्रधान) उपवाक्य की संज्ञा हो अथवा कर्म का काम करता हो , वह संज्ञा आश्रित उपवाक्य कहलाता है।

यह ‘कि’ योजक से जुड़ा रहता है।
जैसे- बाबा रामदेव  ने कहा है कि प्रतिदिन योग करना चाहिए।
इस वाक्य में ‘प्रतिदिन योग करना चाहिए।’
संज्ञा आश्रित उपवाक्य है।

क्योंकि यह उपवाक्य ‘कि’ योजक से तो जुड़ा ही है , साथ ही प्रधान उपवाक्य ‘रामदेव बाबा ने कहा है’ के ‘क्या कहा है?’ का जवाब भी है
, अर्थात् कर्म भी है।

अत: यह संज्ञा आश्रित उपवाक्य है।

(ब) - विशेषण आश्रित उपवाक्य => किसी वाक्य में जो आश्रित उपवाक्य किसी दूसरे (प्रधान) उपवाक्य के संज्ञा या सर्वनाम की विशेषता बताता हो ,वह विशेषण आश्रित उपवाक्य कहलाता है।

यह ‘जो ,जिस, जिन’ योजकों से आरम्भ होता है।
जैसे-

(अ) - जो दुबला - पतला लड़का है उसे कमज़ोर मत समझो ।

(ब) - जिस लड़के का (जिसका) मन पढ़ाई में नहीं लगता, वह मेरा दोस्त नहीं हो सकता।

(स) - जिन लोगों ने (जिन्होंने) मेहनत की , वे अवश्य सफल होंगे।
इन वाक्यों में ‘जो ,जिस जिन’ से आरम्भ होनेवाले उपवाक्य अर्थात् ‘जो दुबला - पतला लड़का है’ , ‘जिस लड़के का (जिसका) मन पढ़ाई में नहीं लगता’ तथा ‘जिन लोगों ने (जिन्होंने) मेहनत की "अंशवाले उपवाक्य विशेषण आश्रित उपवाक्य हैं।

(स) - क्रियाविशेषण आश्रित उपवाक्य => किसी वाक्य में जो आश्रित उपवाक्य किसी दूसरे(प्रधान) उपवाक्य के क्रिया की विशेषता बताता हो , वह क्रियाविशेषण आश्रित उपवाक्य कहलाता है।

यह ‘जब , जहाँ, जैसे , जितना’ योजकों से आरम्भ होता है।
जैसे-
(अ) - जब घटा घिरने लगी , तब मोर नाचने लगा

(ब)-जहाँ बस रुकती है,वहाँ बहुत लोग खड़े रहते हैं।

(स)- जैसे ही पाकिस्तान हारा,लोग टीवी तोड़ने लगे ।

(द) - जितना कहा जाय , उतना ही किया करो।

इन वाक्यों में ‘जब , जहाँ, जैसे , जितना’ से आरम्भ होने वाले उपवाक्य अर्थात् ‘जब घटा घिरने लगी,’ ‘जहाँ बस रुकती है’ , ‘जैसे ही पाकिस्तान हारा’ तथा ‘जितना कहा जाय’ अंशवाले उपवाक्य क्रियाविशेषण आश्रित उपवाक्य हैं।

सबसे पहले यह जानना जरूरी है कि वाक्य क्या है । एक विचार को पूर्ण रूप से प्रकट करने वाला शब्द-समूह वाक्य कहलाता है ।
जैसे- मैं दो दिन से बीमार हूं ।

इसी तरह, किसी वाक्य के विभिन्न घटकों (पदों या पदबंधों) को अलग-अलग करके उनके परस्पर संबंध को बताना वाक्य विश्लेषण कहा जाता है ।

इस प्रक्रिया को वाक्य विग्रह भी कहते हैं ।

"वाक्य-विग्रह वाक्य के प्रमुख दो खण्ड हैं-


1. उद्देश्य- जिनके विषय में कुछ कहा जाए ।

2. विधेय- उद्देश्य (कर्ता) जो कुछ करता है ;वह विधेय है ।
जैसे- वाक्य में उद्देश्य (कर्ता) विधेय

कबूतर डाल पर बैठा है ।

मैं दो दिन से परेशान हूं ।


उद्देश्य का विस्तार- कई बार वाक्य में उसका परिचय देने वाले अन्य शब्द भी साथ आए होते हैं 

ये अन्य शब्द उद्देश्य का विस्तार कहलाते हैं ।

जैसे- काला साँप पेड़ के नीचे बैठा है।
इनमें काला शब्द उद्देश्य का विस्तार हैं ।

वाक्य के भेद रचना के अनुसार वाक्य के निम्नलिखित भेद हैं- 1. साधारण वाक्य 2. संयुक्त वाक्य 3. मिश्रित वाक्य  ।
ये पहले भी बताया जा चुका है ।

1. साधारण वाक्य जिस वाक्य में केवल एक ही उद्देश्य (कर्ता) और एक ही समापिका क्रिया हो, वह साधारण वाक्य कहलाता है ।

जैसे- लड़का खेलता है ।
इसमें लड़का उद्देश्य है और खेलता है विधेय ।
इसमें कर्ता के साथ उसके विस्तारक विशेषण और क्रिया के साथ विस्तारक सहित कर्म एवं क्रिया-विशेषण आ सकते हैं ।

जैसे- अच्छे लड़के अच्छी तरह खेलते हैं ।
यह भी साधारण वाक्य है ।

2. संयुक्त वाक्य दो अथवा दो से अधिक साधारण वाक्य जब ‘पर, किन्तु, और, या’ इत्यादि से जुड़े होते हैं, तो वे संयुक्त वाक्य कहलाते हैं ।

ये चार प्रकार के होते हैं –

(i) संयोजक- जब एक साधारण वाक्य दूसरे साधारण या मिश्रित वाक्य से संयोजक
अव्यय द्वारा जुड़ा होता है ।

जैसे- गीता गई और सीता आई ।

(ii) विभाजक- जब साधारण अथवा मिश्र वाक्यों का परस्पर भेद या विरोध का सम्बन्ध रहता है ।
जैसे- वह मेहनत तो बहुत करता है पर फल नहीं मिलता ।

(iii) विकल्पसूचक- जब दो बातों में से किसी एक को स्वीकार करना होता है।

जैसे- या तो उसे मैं अखाड़े में पछाड़ूँगा या अखाड़े में उतरना ही छोड़ दूँगा ।

(iv) परिणामबोधक- जब एक साधारण वाक्य दसूरे साधारण या मिश्रित वाक्य का परिणाम होता है ।

जैसे- आज मुझे बहुत काम है 'इसलिए' मैं तुम्हारे पास नहीं आ सकूँगा ।

3. मिश्रित वाक्य:- जब किसी विषय पर पूर्ण विचार प्रकट करने के लिए कई साधारण वाक्यों को मिलाकर एक वाक्य की रचना करनी पड़ती है तब ऐसे वाक्य मिश्रित वाक्य कहलाते हैं ।

इन वाक्यों में एक मुख्य या प्रधान उपवाक्य और एक अथवा अधिक आश्रित उपवाक्य होते हैं ;

जो समुच्चयबोधक अव्यय(‘पर, किन्तु, और, या’) से जुड़े होते हैं ।

मुख्य उपवाक्य की पुष्टि, समर्थन, स्पष्टता या विस्तार हेतु ही आश्रित वाक्य आते हैं ।
आश्रित वाक्य तीन प्रकार के होते हैं-

(i) संज्ञा उपवाक्य

(ii) विशेषण उपवाक्य

(iii) क्रिया-विशेषण उपवाक्य ।

संज्ञा उपवाक्य:- जब आश्रित उपवाक्य किसी संज्ञा अथवा सर्वनाम के स्थान पर आता है तब वह संज्ञा उपवाक्य कहलाता है।
वह चाहता है (कि मैं यहाँ कभी न आऊँ)

यहाँ (कि मैं कभी न आऊँ,) यह संज्ञा उपवाक्य है।

विशेषण उपवाक्य- जो आश्रित उपवाक्य मुख्य उपवाक्य की संज्ञा शब्द अथवा सर्वनाम शब्द की विशेषता बतलाता है ;वह विशेषण उपवाक्य कहलाता है ।
जो किताब मेज पर रखी है वह मुझे इनाम में मिली है । यहाँ (जो किताब मेज पर रखी है ) यह विशेषण उपवाक्य है ।

क्रिया-विशेषण उपवाक्य- जब आश्रित उपवाक्य प्रधान उपवाक्य की क्रिया की विशेषता बतलाता है तब वह क्रिया-विशेषण उपवाक्य कहलाता है ।

जब वह मेरे पास आया तब मैं कहीं गया था ।
यहाँ पर 'जब वह मेरे पास आया' यह क्रिया-विशेषण उपवाक्य है ।

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वाक्य-परिवर्तन :-

सरल वाक्य से मिश्र वाक्य बनाना- :-

1-मैं तुम्हारे साथ खेलना चाहता हूं ।

मैं चाहता हूं कि तुम्हारे साथ खेलूँ ।

2-उसके बैठने की जगह कहां है ?

वह जगह कहां है जहां वह बैठे ?

3-यह किसी बुरे आदमी का काम है ।

वह कोई बुरा आदमी है जिसने यह काम किया है ।

सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य'🌷
1-सरल वाक्य से संयुक्त वाक्य "पानी बरसता हुआ देखकर बच्चे ने एक मकान में शरण ली ।
बच्चे ने पानी बरसता हुआ देखा और एक मकान में शरण ली ।

2-वह खाना खाकर सो गया ।
उसने खाना खाया और सो गया ।

3-परिश्रम करके सफलता हासिल करो ।
परिश्रम करो और सफलता हासिल करो ।

4- जल्दी करो, नहीं तो ट्रेन चली जाएगी । जल्दी नहीं करने पर ट्रेन छूट जाएगी ।

5-वह अमीर है फिर भी सुखी नहीं है ।
वह अमीर होने पर भी सुखी नहीं है ।

6-न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसूरी ।
बाँस और बाँसूरी दोनों नहीं रहेंगे ।

मिश्र वाक्य से सरल वाक्य :-
मिश्र वाक्य से सरल वाक्य
1- "ज्यों ही मैं वहां पहुंचा त्यों ही वह भागा ।
मेरे वहां पहुंचते ही वह भागा ।

2-तुम्हारे लौटकर आने पर मैं ऑफिस जाऊँगा ।
जब तुम लौटकर आओगे तब मैं ऑफिस जाऊँगा। 

3-यदि मानसून नहीं बरसा तो फसल चौपट हो जाएगी।
मानसून नहीं बरसने से फसल चौपट हो जाएगी ।

मिश्र वाक्य से संयुक्त वाक्य
मिश्र वाक्य संयुक्त वाक्य "

1-मुझे यकीन है कि गलती तुम्हारी है ।
गलती तुम्हारी है और इसका मुझे यकीन है ।

2-मुझे वह कलम मिल गई जो गुम हो गई थी ।
वह कलम खो गई थी लेकिन मुझे मिल गई ।

3-जैसा बोओगे, वैसा काटोगे ।
जो जैसा बोएगा वैसा ही काटेगा ।

संयुक्त वाक्य से मिश्र वाक्य
संयुक्त वाक्य मिश्र वाक्य"

4- काम पूरा करो नहीं तो वेतन कटेगा ।
अगर काम पूरा नहीं करोगे तो वेतन कटेगा ।

5-रमेश या तो स्वयं आएगा या फिर चिट्ठी भेजेगा।
यदि रमेश स्वयं नहीं आया तो चिट्ठी भेजेगा ।

6-वक्त निकल जाता है पर बात याद रहती है ।
भले ही वक्त निकल जाता है लेकिन बात याद रहती है ।
7- विधि वाक्य से निषेध वाक्य विधि वाक्य निषेध वाक्य

8-तुम सफल हो जाओगे ।
तुम्हारी सफलता में कोई संदेह नहीं है ।

9-यह प्रस्ताव सभी को मान्य है ।
इस प्रस्ताव पर कोई विरोधाभास नहीं है ।

10-शिवाजी एक बहादुर बादशाह थे ।
शिवाजी से बहादुर कोई बादशाह नहीं था ।

निश्चयवाचक वाक्य से प्रश्नवाचक निश्चय वाचक प्रश्नवाचक
1-सुभाषचंद्र बोस का नाम सबने सुना होगा ।
सुभाषचंद्र बोस का नाम किसने नहीं सुना ?

2-तुम्हारी चीजें मेरे पास नहीं हैं ।
तुम्हारी चीजें मेरे पास कहाँ हैं ?

विस्मयादि बोधक वाक्य से विधि वाक्य
विस्मयादि बोधक विधि वाक्य

3-काश ! उसके दिल में मैरे लिए प्यार होता ।
मैं चाहता हूं कि उसके दिल में मेरे लिए प्यार हो ।

कितना सुंदर नजारा है !
बहुत ही सुंदर नजारा है !

संयुक्त वाक्य से सरल वाक्य
संयुक्त वाक्य सरल वाक्य

4-"जल्दी करो, नहीं तो ट्रेन चली जाएगी ।
जल्दी नहीं करने पर ट्रेन छूट जाएगी ।

5-वह अमीर है फिर भी सुखी नहीं है ।
वह अमीर होने पर भी सुखी नहीं है ।

6-न रहेगा बाँस, न बजेगी बाँसूरी ।
बाँस और बाँसूरी दोनों नहीं रहेंगे ।

मिश्र वाक्य से सरल वाक्य मिश्र
वाक्य सरल वाक्य

7-"ज्यों ही मैं वहां पहुंचा त्यों ही वह भागा ।
मेरे वहां पहुंचते ही वह भागा ।

8-तुम्हारे लौटकर आने पर मैं ऑफिस जाऊँगा ।
जब तुम लौटकर आओगे तब मैं ऑफिस जाऊँगा।

9-अगर मानसून नहीं बरसा तो फसल चौपट हो जाएगी । मानसून नहीं बरसने से फसल चौपट हो जाएगी ।

मिश्र वाक्य से संयुक्त वाक्य मिश्र वाक्य संयुक्त वाक्य।

मुझे यकीन है कि गलती तुम्हारी है ।
गलती तुम्हारी है और इसका मुझे यकीन है ।

मुझे वह कलम मिल गई जो गुम हो गई थी ।
वह कलम खो गई थी लेकिन मुझे मिल गई ।

जैसा बोओगे, वैसा काटोगे ।
जो जैसा बोएगा वैसा ही काटेगा ।

संयुक्त वाक्य से मिश्र वाक्य संयुक्त वाक्य मिश्र वाक्य

काम पूरा करो नहीं तो वेतन कटेगा ।
अगर काम पूरा नहीं करोगे तो वेतन कटेगा ।

रमेश या तो स्वयं आएगा या फिर चिट्ठी भेजेगा ।
यदि रमेश स्वयं नहीं आया तो चिट्ठी भेजेगा ।

वक्त निकल जाता है पर बात याद रहती है ।
भले ही वक्त निकल जाता है लेकिन बात याद रहती है ।

विधि वाक्य से निषेध वाक्य विधि वाक्य निषेध वाक्य तुम सफल हो जाओगे ।
तुम्हारी सफलता में कोई संदेह नहीं है ।

यह प्रस्ताव सभी को मान्य है ।
इस प्रस्ताव पर कोई विरोधाभास नहीं है ।

शिवाजी एक बहादुर बादशाह थे ।
शिवाजी से बहादुर कोई बादशाह नहीं था ।

निश्चयवाचक वाक्य से प्रश्नवाचक निश्चय वाचक  है ! _________________________________________

"कर्म का स्वरूप " साधारण बोलचाल की भाषा में कर्म का अर्थ होता है 'क्रिया'।
व्याकरण में क्रिया से निष्पाद्यमान फल के आश्रय को कर्म कहते हैं।
"हरि घर जाता है' इस उदाहरण में "घर" गमन क्रिया के फल का आश्रय होने के नाते "जाना क्रिया' का कर्म है। _______________________________________

प्रेरणार्थक/कारण-वाचक क्रिया (Causative Verb)
causative verbs are used very frequently.
Though the uses of causative verb is very simple.

The verb that indicate an action which is directly not done by the subject but indirectly done by the third party is called causative verb.

प्रेरक क्रियाओं का उपयोग बहुत बार किया जाता है।
यद्यपि कारणात्मक- क्रिया का उपयोग बहुत सरल है।

 कार्य को जो क्रिया  इंगित करती है वह सीधे विषय (कर्ता) द्वारा नहीं की जाती है
लेकिन अप्रत्यक्ष रूप से तीसरे पक्ष द्वारा किया जाने वाली कारणात्मक- क्रिया कहलाती है।

(वैसा क्रिया जो किसी तीसरे के माध्यम से कार्य पूरा करती हो इसलिए उसे कारणात्मक- क्रिया कहते हैं )

Identification of causative verb is to add "Vana" word of the intransitive verb word. (कारण-वाचक क्रिया की पहचान जिस शब्द के अन्त में "वाना" शब्दाँश जुङा हो वो शब्द कारणात्मक-क्रिया शब्द होता हैं)

Table Below: Intransitive Verb Causative Verb

पकाना (Pakana - to be cooked) >पकवाना - (Pakvana - to cause to cook)

खाना (Khana - to be eat)खिलवाना -(Khilavana - to cause to eat).

पीना (Peena - to be drink)पिलवाना - (Pilvana - to cause to drink).

सिखना (Sikhana - to be learn)सिखवाना - (Sikhvana - to cause to learned)

जीतना (Jeetna -to be win)जीतवाना - (Jeetvana - to cause to win )

चलना (Chalna - to be walk) चलवाना - (Chalvana - to cause to walked)

पीटना (Peetna - to be beat)पिटवाना - (Pitvana - to cause to beaten)

मिलना (Milna - to be meet)मिलवाना - (Milvana - to cause to meet)

पढना (Padna - to be read)पढवाना - (Padvana - to cause to read)

करना (Karna - to be do)करवाना – (Karvana – to cause to do)

उठना (Uthna - to be rise) उठवाना – (Uthvana – to cause to raised)

जलना (Jalna – to be burned) जलवाना – (Jalvana – to cause to burn)

Note: These verbs also depends on the gender: For Masculine “वाना”

नोट: ये क्रियाएं हमेशा लिंग पर  निर्भर करती हैं:
लिंग पुल्लिंग  "वाना" के लिए

changes to “वाया” For Feminine “वाना” changes to “वाई”

क्रिया (Verb) की परिभाषा

जिस शब्द से किसी काम का करना या होना समझा जाय, उसे क्रिया कहते है। 
जैसे- पढ़ना, खाना, पीना, जाना इत्यादि।

'क्रिया' का अर्थ होता है- करना। प्रत्येक भाषा के वाक्य में क्रिया का बहुत महत्त्व होता है। प्रत्येक वाक्य क्रिया से ही पूरा होता है। क्रिया किसी कार्य के करने या होने को दर्शाती है। क्रिया को करने वाला 'कर्ता' कहलाता है।

'हरि पुस्तक पढ़ रहा है। 
बाहर बारिश हो रही है। 
बाजार में दंगा हआ। 
बच्चा पलंग से गिर गया।

उपर्युक्त वाक्यों में 'हरि और बच्चा कर्ता हैं और उनके द्वारा जो कार्य किया जा रहा है या किया गया, वह क्रिया है; जैसे- पढ़ रहा है, गिर गया। 
अन्य दो वाक्यों में क्रिया की नहीं गई है, बल्कि स्वतः हुई है।
अतः इसमें कोई कर्ता प्रधान नहीं है।
वाक्य में क्रिया का इतना अधिक महत्त्व होता है कि कर्ता अथवा अन्य योजकों का प्रयोग न होने पर भी केवल क्रिया से ही वाक्य का अर्थ स्पष्ट हो जाता है; जैसे-

(1) पानी लाओ। 
(2) चुपचाप बैठ जाओ। 
(3) रुको। 
(4) जाओ।

अतः कहा जा सकता है कि, 
जिन शब्दों से किसी काम के करने या होने का पता चले, उन्हें क्रिया कहते है।

क्रिया का मूल रूप 'धातु' कहलाता है। इनके साथ कुछ जोड़कर क्रिया के सामान्य रूप बनते हैं; जैसे-

धातु रूप
सामान्य रूप
बोल, पढ़, घूम, लिख, गा, हँस, देख आदि।

बोलना, पढ़ना, घूमना, लिखना, गाना, हँसना, देखना आदि।

मूल धातु में 'ना' प्रत्यय लगाने से क्रिया का सामान्य रूप बनता है।

क्रिया के भेद
रचना के आधार पर क्रिया के भेद

रचना के आधार पर क्रिया के चार भेद होते हैं-
(1) संयुक्त क्रिया (Compound Verb)

(2) नामधातु क्रिया(Nominal Verb)

(3) प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verb)

(4) पूर्वकालिक क्रिया (Absolutive Verb)
______________________________________
(1)संयुक्त क्रिया (Compound Verb)- 

जो क्रिया दो या दो से अधिक धातुओं के मेल से बनती है, उसे संयुक्त क्रिया कहते हैं।
दूसरे शब्दों में- दो या दो से अधिक क्रियाएँ मिलकर जब किसी एक पूर्ण क्रिया का बोध कराती हैं, तो उन्हें संयुक्त क्रिया कहते हैं।

जैसे- बच्चा विद्यालय से लौट आया 
किशोर रोने लगा
वह घर पहुँच गया।

उपर्युक्त वाक्यों में एक से अधिक क्रियाएँ हैं; जैसे- लौट, आया; रोने, लगा; पहुँच, गया।
यहाँ ये सभी क्रियाएँ मिलकर एक ही कार्य पूर्ण कर रही हैं।
अतः ये संयुक्त क्रियाएँ हैं।

इस प्रकार,जिन वाक्यों की एक से अधिक क्रियाएँ मिलकर एक ही कार्य पूर्ण करती हैं, उन्हें संयुक्त क्रिया कहते हैं।

संयुक्त क्रिया में पहली क्रिया मुख्य (Main) क्रिया होती है तथा दूसरी क्रिया रंजक (Dyestuff) क्रिया।

रंजक क्रिया मुख्य क्रिया के साथ जुड़कर अर्थ में विशेषता लाती है;

जैसे- माता जी बाजार से आ गई। 
इस वाक्य में 'आ' मुख्य क्रिया है तथा 'गई' रंजक क्रिया है। दोनों क्रियाएँ मिलकर संयुक्त क्रिया 'आना' का अर्थ दर्शा रही हैं।

विधि और आज्ञा को छोड़कर सभी क्रियापद दो या अधिक क्रियाओं के योग से बनते हैं,
किन्तु संयुक्त क्रियाएँ इनसे भित्र है, क्योंकि जहाँ एक ओर साधारण क्रियापद 'हो', 'रो', 'सो', 'खा' इत्यादि धातुओं से बनते है, वहाँ दूसरी ओर संयुक्त क्रियाएँ 'होना', 'आना', 'जाना', 'रहना', 'रखना', 'उठाना', 'लेना', 'पाना', 'पड़ना', 'डालना', 'सकना', 'चुकना', 'लगना', 'करना', 'भेजना', 'चाहना' इत्यादि क्रियाओं के योग से बनती हैं।

इसके अतिरिक्त, सकर्मक तथा अकर्मक दोनों प्रकार की संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं। जैसे-
अकर्मक क्रिया से- लेट जाना, गिर पड़ना। 

सकर्मक क्रिया से- बेच लेना, काम करना, बुला लेना, मार देना।

संयुक्त क्रिया की एक विशेषता यह है कि उसकी पहली क्रिया प्रायः प्रधान होती है और दूसरी उसके अर्थ में विशेषता उत्पत्र करती है।
जैसे- मैं पढ़ सकता हूँ। इसमें 'सकना' क्रिया 'पढ़ना' क्रिया के अर्थ में विशेषता उत्पत्र करती है।
हिन्दी में संयुक्त क्रियाओं का प्रयोग अधिक होता है।

संयुक्त क्रिया के भेद
अर्थ के अनुसार संयुक्त क्रिया के 11 मुख्य भेद है-
(i) आरम्भबोधक- 
जिस संयुक्त क्रिया से क्रिया के आरम्भ होने का बोध होता है, उसे 'आरम्भबोधक संयुक्त क्रिया' कहते हैं।
जैसे- वह पढ़ने लगा, पानी बरसने लगा, राम खेलने लगा।

(ii) समाप्तिबोधक- 
जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया की पूर्णता, व्यापार की समाप्ति का बोध हो, वह 'समाप्तिबोधक संयुक्त क्रिया' है।
जैसे- वह खा चुका है; वह पढ़ चुका है। धातु के आगे 'चुकना' जोड़ने से समाप्तिबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।

(iii) अवकाशबोधक- 
जिससे क्रिया को निष्पत्र करने के लिए अवकाश का बोध हो, वह 'अवकाशबोधक संयुक्त क्रिया' है।
जैसे- वह मुश्किल से सोने पाया; जाने न पाया।

(iv) अनुमतिबोधक- 
जिससे कार्य करने की अनुमति दिए जाने का बोध हो, वह 'अनुमतिबोधक संयुक्त क्रिया' है। 
जैसे- मुझे जाने दो; मुझे बोलने दो। यह क्रिया 'देना' धातु के योग से बनती है।

(v) नित्यताबोधक- 
जिससे कार्य की नित्यता, उसके बन्द न होने का भाव प्रकट हो, वह 'नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया' है।
जैसे- हवा चल रही है; पेड़ बढ़ता गया; तोता पढ़ता रहा।
मुख्य क्रिया के आगे 'जाना' या 'रहना' जोड़ने से नित्यताबोधक संयुक्त क्रिया बनती है।

(vi) आवश्यकताबोधक- 
जिससे कार्य की आवश्यकता या कर्तव्य का बोध हो, वह 'आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रिया' है।
जैसे- यह काम मुझे करना पड़ता है; तुम्हें यह काम करना चाहिए। साधारण क्रिया के साथ 'पड़ना' 'होना' या 'चाहिए' क्रियाओं को जोड़ने से आवश्यकताबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।

(vii) निश्चयबोधक
जिस संयुक्त क्रिया से मुख्य क्रिया के व्यापार की निश्र्चयता का बोध हो, उसे 'निश्र्चयबोधक संयुक्त क्रिया' कहते हैं। 
जैसे- वह बीच ही में बोल उठा; उसने कहा- मैं मार बैठूँगा, वह गिर पड़ा; अब दे ही डालो। इस प्रकार की क्रियाओं में पूर्णता और नित्यता का भाव वर्तमान है।

(viii) इच्छाबोधक- 
इससे क्रिया के करने की इच्छा प्रकट होती है। 
जैसे- वह घर आना चाहता है; मैं खाना चाहता हूँ। क्रिया के साधारण रूप में 'चाहना' क्रिया जोड़ने से इच्छाबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।

(ix) अभ्यासबोधक- 
इससे क्रिया के करने के अभ्यास का बोध होता है। सामान्य भूतकाल की क्रिया में 'करना' क्रिया लगाने से अभ्यासबोधक संयुक्त क्रियाएँ बनती हैं।
जैसे- यह पढ़ा करता है; तुम लिखा करते हो; मैं खेला करता हूँ।

(x) शक्तिबोधक- 
इससे कार्य करने की शक्ति का बोध होता है। 
जैसे- मैं चल सकता हूँ, वह बोल सकता है। इसमें 'सकना' क्रिया जोड़ी जाती है।

(xi) पुनरुक्त संयुक्त क्रिया- 
जब दो समानार्थक अथवा समान ध्वनिवाली क्रियाओं का संयोग होता है, तब उन्हें 'पुनरुक्त संयुक्त क्रिया' कहते हैं।
जैसे- वह पढ़ा-लिखा करता है; वह यहाँ प्रायः आया-जाया करता है; पड़ोसियों से बराबर मिलते-जुलते रहो।

(2) नामधातु क्रिया (Nominal Verb)- 

संज्ञा अथवा विशेषण के साथ क्रिया जोड़ने से जो संयुक्त क्रिया बनती है, उसे 'नामधातु क्रिया' कहते हैं।

जैसे- लुटेरों ने जमीन हथिया ली। हमें गरीबों को अपनाना चाहिए। 
उपर्युक्त वाक्यों में हथियाना तथा अपनाना क्रियाएँ हैं और ये 'हाथ' संज्ञा तथा 'अपना' सर्वनाम से बनी हैं। अतः ये नामधातु क्रियाएँ हैं।

इस प्रकार,जो क्रियाएँ संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा अनुकरणवाची शब्दों से बनती हैं, वे नामधातु क्रिया कहलाती हैं।

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण तथा अनुकरणवाची शब्दों से निर्मित कुछ नामधातु क्रियाएँ इस प्रकार हैं :

संज्ञा शब्द:-नामधातु क्रिया

शर्म
शर्माना
लोभ
लुभाना
बात
बतियाना
झूठ
झुठलाना
लात
लतियाना
दुख
दुखाना

सर्वनाम शब्द:-नामधातु क्रिया

अपना
अपनाना
विशेषण शब्द:-नामधातु क्रिया

साठ
सठियाना
तोतला
तुतलाना
नरम
नरमाना
गरम
गरमाना
लज्जा
लजाना
लालच
ललचाना
फ़िल्म
फिल्माना
अनुकरणवाची शब्द:-नामधातु क्रिया

थप-थप
थपथपाना

थर-थर
थरथराना

कँप-कँप
कँपकँपाना

टन-टन
टनटनाना

बड़-बड़
बड़बड़ाना

खट-खट
खटखटाना

घर-घर
घरघराना

द्रष्टव्य- 
नामबोधक नाधातु क्रियाएँ संयुक्त क्रियाएँ नहीं हैं। संयुक्त क्रियाएँ दो क्रियाओं के योग से बनती है और नामबोधक नामधातु क्रियाएँ संज्ञा अथवा विशेषण के मेल से बनती है।
दोनों में यही अन्तर है।

(3) प्रेरणार्थक क्रिया (Causative Verb)-
जिन क्रियाओ से इस बात का बोध हो कि कर्ता स्वयं कार्य न कर किसी दूसरे को कार्य करने के लिए प्रेरित करता है, वे प्रेरणार्थक क्रिया कहलाती है। 

जैसे- काटना से कटवाना, करना से कराना।
एक अन्य उदाहरण इस प्रकार है- 

मालिक नौकर से कार साफ करवाता है।
अध्यापिका छात्र से पाठ पढ़वाती हैं।

उपर्युक्त वाक्यों में मालिक तथा अध्यापिका प्रेरणा देने वाले कर्ता हैं।
नौकर तथा छात्र को प्रेरित किया जा रहा है।
अतः उपर्युक्त वाक्यों में करवाता तथा पढ़वाती प्रेरणार्थक क्रियाएँ हैं।
प्रेरणार्थक क्रिया में दो कर्ता होते हैं :
(1) प्रेरक कर्ता-  causer / Inspirator प्रेरणा देने वाला; जैसे- मालिक, अध्यापिका आदि। 
(2) प्रेरित कर्ता-Inspirated Doer
प्रेरित होने वाला अर्थात जिसे प्रेरणा दी जा रही है; जैसे- नौकर, छात्र आदि।
प्रेरणार्थक क्रिया के रूप
प्रेरणार्थक क्रिया के दो रूप हैं :-

(1) प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया 
(2) द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया

(1) प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया
माँ परिवार के लिए भोजन बनाती है। 
जोकर सर्कस में खेल दिखाता है। 
रानी अनिमेष को खाना खिलाती है। 
नौकरानी बच्चे को झूला झुलाती है। 

इन वाक्यों में कर्ता प्रेरक बनकर प्रेरणा दे रहा है।
अतः ये प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया के उदाहरण हैं।
सभी प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक होती हैं।

(2) द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया
माँ पुत्री से भोजन बनवाती है। 
जोकर सर्कस में हाथी से करतब करवाता है। 
रानी राधा से अनिमेष को खाना खिलवाती है। 
माँ नौकरानी से बच्चे को झूला झुलवाती है।

इन वाक्यों में कर्ता स्वयं कार्य न करके किसी दूसरे को कार्य करने की प्रेरणा दे रहा है और दूसरे से कार्य करवा रहा है।
अतः यहाँ द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया है।
प्रथम प्रेरणार्थक और द्वितीय प्रेरणार्थक-दोनों में क्रियाएँ एक ही हो रही हैं, परन्तु उनको करने और करवाने वाले कर्ता अलग-अलग हैं।

प्रथम प्रेरणार्थक क्रिया प्रत्यक्ष होती है तथा द्वितीय प्रेरणार्थक क्रिया अप्रत्यक्ष होती है।

याद रखने वाली बात यह है कि अकर्मक क्रिया प्रेरणार्थक होने पर सकर्मक (कर्म लेनेवाली) हो जाती है। जैसे-
राम लजाता है। 
वह राम को लजवाता है।

प्रेरणार्थक क्रियाएँ सकर्मक और अकर्मक दोनों क्रियाओं से बनती हैं।
ऐसी क्रियाएँ हर स्थिति में सकर्मक ही रहती हैं।
जैसे- मैंने उसे हँसाया; मैंने उससे किताब लिखवायी। पहले में कर्ता अन्य (कर्म) को हँसाता है और दूसरे में कर्ता दूसरे को किताब लिखने को प्रेरित करता है।
इस प्रकार हिन्दी में प्रेरणार्थक क्रियाओं के दो रूप चलते हैं।
प्रथम में 'ना' का और द्वितीय में 'वाना' का प्रयोग होता है- हँसाना- हँसवाना।

प्रेरणार्थक क्रियाओं के कुछ अन्य उदाहरण
मूल क्रिया
प्रथम प्रेरणार्थक
द्वितीय प्रेरणार्थक

उठना
उठाना
उठवाना

उड़ना
उड़ाना
उड़वाना

चलना
चलाना
चलवाना

देना
दिलाना
दिलवाना

जीना
जिलाना
जिलवाना

लिखना
लिखाना
लिखवाना

जगना
जगाना
जगवाना

सोना
सुलाना
सुलवाना

पीना
पिलाना
पिलवाना

देना
दिलाना
दिलवाना

धोना
धुलाना
धुलवाना

रोना
रुलाना
रुलवाना

घूमना
घुमाना
घुमवाना

पढ़ना
पढ़ाना
पढ़वाना

देखना
दिखाना
दिखवाना

खाना
खिलाना
खिलवाना

(4) पूर्वकालिक क्रिया (Absolutive Verb)- 

जिस वाक्य में मुख्य क्रिया से पहले यदि कोई क्रिया हो जाए, तो वह पूर्वकालिक क्रिया कहलाती हैं। 
दूसरे शब्दों में- जब कर्ता एक क्रिया समाप्त कर उसी क्षण दूसरी क्रिया में प्रवृत्त होता है तब पहली क्रिया 'पूर्वकालिक' कहलाती है।

जैसे- पुजारी ने नहाकर पूजा की ।
राखी ने घर पहुँचकर फोन किया। 
उपर्युक्त वाक्यों में पूजा की तथा फोन किया मुख्य क्रियाएँ हैं।
इनसे पहले नहाकर, पहुँचकर क्रियाएँ हुई हैं। अतः ये पूर्वकालिक क्रियाएँ हैं।

पूर्वकालिक का शाब्दिक अर्थ है-पहले समय में हुई।
ये एक ही कर्ता के द्वारा सम्पादित होती हैं ।
पूर्वकालिक क्रिया मूल धातु में 'कर' अथवा 'करके' लगाकर बनाई जाती हैं; जैसे-

चोर सामान चुराकर भाग गया। 
व्यक्ति ने भागकर बस पकड़ी। 

छात्र ने पुस्तक से देखकर उत्तर दिया। 
मैंने घर पहुँचकर चैन की साँस ली।

कर्म के आधार पर क्रिया के भेद
कर्म की दृष्टि से क्रिया के निम्नलिखित दो भेद होते हैं :

(1)सकर्मक क्रिया(Transitive Verb) 
(2)अकर्मक क्रिया(Intransitive Verb)

(1)सकर्मक क्रिया :-
वाक्य में जिस क्रिया के साथ कर्म भी हो, तो उसे सकर्मक क्रिया कहते है।

इसे हम ऐसे भी कह सकते है- 'सकर्मक क्रिया' उसे कहते है, जिसका कर्म हो या जिसके साथ कर्म की सम्भावना हो, अर्थात जिस क्रिया के व्यापार का संचालन तो कर्ता से हो, पर जिसका फल या प्रभाव किसी दूसरे व्यक्ति या वस्तु, अर्थात कर्म पर पड़े।

दूसरे शब्दों में-वाक्य में क्रिया के होने के समय कर्ता का प्रभाव अथवा फल जिस व्यक्ति अथवा वस्तु पर पड़ता है, उसे कर्म कहते है।
सरल शब्दों में- जिस क्रिया का फल कर्म पर पड़े उसे सकर्मक क्रिया कहते है।

जैसे- अध्यापिका पुस्तक पढ़ा रही हैं।
माली ने पानी से पौधों को सींचा।

उपर्युक्त वाक्यों में पुस्तक, पानी और पौधे शब्द कर्म हैं, क्योंकि कर्ता (अध्यापिका तथा माली) का सीधा फल इन्हीं पर पड़ रहा है।

क्रिया के साथ क्या, किसे, किसको लगाकर प्रश्न करने पर यदि उचित उत्तर मिले, तो वह सकर्मक क्रिया होती है; जैसे- उपर्युक्त वाक्यों में पढ़ा रही है, सींचा क्रियाएँ हैं।
इनमें क्या, किसे तथा किसको प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं। अतः ये सकर्मक क्रियाएँ हैं।

कभी-कभी सकर्मक क्रिया का कर्म छिपा रहता है। जैसे- वह गाता है; वह पढ़ता है।
यहाँ 'गीत' और 'पुस्तक' जैसे कर्म छिपे हैं।

सकर्मक क्रिया के भेद
सकर्मक क्रिया के निम्नलिखित दो भेद होते हैं :

(i) एककर्मक क्रिया
(ii) द्विकर्मक क्रिया

(i) एककर्मक क्रिया :-
जिस सकर्मक क्रियाओं में केवल एक ही कर्म होता है, वे एककर्मक सकर्मक क्रिया 
कहलाती हैं।

जैसे- श्याम फ़िल्म देख रहा है। 
नौकरानी झाड़ू लगा रही है।

इन उदाहरणों में फ़िल्म और झाड़ू कर्म हैं। 'देख रहा है' तथा 'लगा रही है' क्रिया का फल सीधा कर्म पर पड़ रहा है, साथ ही दोनों वाक्यों में एक-एक ही कर्म है। अतः यहाँ एककर्मक क्रिया है।

(ii) द्विकर्मक क्रिया :- 
द्विकर्मक अर्थात दो कर्मो से युक्त। जिन सकमर्क क्रियाओं में एक साथ दो-दो कर्म होते हैं, वे द्विकर्मक सकर्मक क्रिया कहलाते हैं।

जैसे- श्याम अपने भाई के साथ फ़िल्म देख रहा है। 
नौकरानी फिनाइल से पोछा लगा रही है।

इन उदाहरणों में क्या, किसके साथ तथा किससे प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं; जैसे-
पहले वाक्य में श्याम किसके साथ, क्या देख रहा है ?
प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं कि श्याम अपने भाई के साथ फ़िल्म देख रहा है।

दूसरे वाक्य में नौकरानी किससे, क्या लगा रही है?
प्रश्नों के उत्तर मिल रहे हैं कि नौकरानी फिनाइल से पोछा लगा रही है। 
दोनों वाक्यों में एक साथ दो-दो कर्म आए हैं, अतः ये द्विकर्मक क्रियाएँ हैं।

द्विकर्मक क्रिया में एक कर्म मुख्य होता है तथा दूसरा गौण (आश्रित)।

मुख्य कर्म क्रिया से पहले तथा गौण कर्म के बाद आता है।

मुख्य कर्म अप्राणीवाचक होता है, जबकि गौण कर्म प्राणीवाचक होता है।

गौण कर्म के साथ 'को' विभक्ति का प्रयोग किया जाता है, जो कई बार अप्रत्यक्ष भी हो सकती है; जैसे-

बच्चे गुरुजन को प्रणाम करते हैं। 
(गौण कर्म)......... (मुख्य कर्म)
सुरेंद्र ने छात्र को गणित पढ़ाया। 
(गौण कर्म)......... (मुख्य कर्म)

(2)अकर्मक क्रिया :-

वाक्य में जब क्रिया के साथ कर्म नही होता तो उस क्रिया को अकर्मक क्रिया कहते है।
दूसरे शब्दों में- जिन क्रियाओं का व्यापार और फल कर्ता पर हो, वे 'अकर्मक क्रिया' कहलाती हैं।

अ + कर्मक अर्थात कर्म रहित/कर्म के बिना। जिन क्रियाओं के साथ कर्म न लगा हो तथा क्रिया का फल कर्ता पर ही पड़े, उन्हें अकर्मक क्रिया कहते हैं।

अकर्मक क्रियाओं का 'कर्म' नहीं होता, क्रिया का व्यापार और फल दूसरे पर न पड़कर कर्ता पर पड़ता है। 
उदाहरण के लिए -
श्याम सोता है।
इसमें 'सोना' क्रिया अकर्मक है।
'श्याम' कर्ता है, 'सोने' की क्रिया उसी के द्वारा पूरी होती है। अतः, सोने का फल भी उसी पर पड़ता है।
इसलिए 'सोना' क्रिया अकर्मक है।

अन्य उदाहरण 
पक्षी उड़ रहे हैं। बच्चा रो रहा है।

उपर्युक्त वाक्यों में कोई कर्म नहीं है, क्योंकि यहाँ क्रिया के साथ क्या, किसे, किसको, कहाँ आदि प्रश्नों के कोई उत्तर नहीं मिल रहे हैं।
अतः जहाँ क्रिया के साथ इन प्रश्नों के उत्तर न मिलें, वहाँ अकर्मक क्रिया होती है।

कुछ अकर्मक क्रियाएँ इस प्रकार हैं :
तैरना, कूदना, सोना, ठहरना, उछलना, मरना, जीना, बरसना, रोना, चमकना आदि।

सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान
सकर्मक और अकर्मक क्रियाओं की पहचान 'क्या', 'किसे' या 'किसको' आदि पश्र करने से होती है।
यदि कुछ उत्तर मिले, तो समझना चाहिए कि क्रिया सकर्मक है और यदि न मिले तो अकर्मक होगी।
जैसे-

(i) 'राम फल खाता हैै।' 
प्रश्न करने पर कि राम क्या खाता है, उत्तर मिलेगा फल। अतः 'खाना' क्रिया सकर्मक है।
(ii) 'सीमा रोती है।'
इसमें प्रश्न पूछा जाये कि 'क्या रोती है ?' तो कुछ भी उत्तर नहीं मिला। अतः इस वाक्य में रोना क्रिया अकर्मक है।

उदाहरणार्थ- मारना, पढ़ना, खाना- इन क्रियाओं में 'क्या' 'किसे' लगाकर पश्र किए जाएँ तो इनके उत्तर इस प्रकार होंगे-
पश्र- किसे मारा ?
उत्तर- किशोर को मारा। 
पश्र- क्या खाया ?
उत्तर- खाना खाया। 
पश्र- क्या पढ़ता है। 
उत्तर- किताब पढ़ता है। 
इन सब उदाहरणों में क्रियाएँ सकर्मक है।
कुछ क्रियाएँ अकर्मक और सकर्मक दोनों होती है और प्रसंग अथवा अर्थ के अनुसार इनके भेद का निर्णय किया जाता है। जैसे-

अकर्मक
सकर्मक

उसका सिर खुजलाता है।
वह अपना सिर खुजलाता है।

बूँद-बूँद से घड़ा भरता है।
मैं घड़ा भरता हूँ।

तुम्हारा जी ललचाता है।
ये चीजें तुम्हारा जी ललचाती हैं।
जी घबराता है।
विपदा मुझे घबराती है।

वह लजा रही है।
वह तुम्हें लजा रही है।
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                       इति तृत्तीय भाग :-
 

 


हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " चतुर्थ

 "हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप भाग 4-

हिन्दी व्याकरण का मानक स्वरूप " भाग चतुर्थ  "
काल (Tense) को किस तरह परिभाषित किया जाना चाहिए ? यह जाना आवश्यक है।

"क्रिया के जिस सामयिक रूप से उस क्रिया के होने का बोध होता है उसे काल कहते हैं ।

काल के तीन भेद हैं- 1. भूत काल (भू + क्तः ) अर्थात् --जो हुआ है ।

संस्कृत भाषा में यह भूत शब्द अतीत का वाचक शब्द “ 

"भूतं -हुआ-भवद्- होता हुआ- (वर्तमान)
-भविष्यद् - होगा- वा किं तत् स्यात् जगति प्रिये ।

भवती यन्न जानीयादिति शर्व्वोऽप्युवाच ताम् ।

"भूतकाल के पर्य्याय यथा :-१- वृत्तम् २- अतीतम् ३- ह्यस्तनम् ४- निभृतम् ५- गतम् ६-

इति राजनिर्घण्टः उत्तरपदस्थ एव भूतशब्दः समानार्थ इति शाब्दिकाः । ______________________________________

☀2. वर्तमान काल वृत+शानच् कालभेद शब्दप्रयोगाधार आरब्धापरिसमाप्त
१ काल २ तत्कालवृत्तौ त्रि० ।

"वर्त्तमानकालश्च चतुर्विधः ।
यथा १-“प्रवृत्तोतरत श्चैव वृत्ताविरत २ एव च नित्यः प्रवृत्तः ३ सामीप्यो ४ वर्त्तमानश्चतुर्विधः 


वर्तमान का अर्थ है (होता हुआ) वस्तुत: वर्तमान पल पल का प्रतिरूप है ।
जबकि भूत और भविष्य कल कल के प्रतिरूप हैं 
कल कभी आते नहीं और पल कभी जाते नहीं ।।

3. भविष्य काल  आगे आने वाला समय है ।

कालों की क्रमश: परिचय :-

"1.भूतकाल :- क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय अर्थात् (अतीत) में कार्य होने का बोध हो वह भूतकाल कहलाताहै।- 

जैसे- (i) बच्चा गया । (ii) बच्चा गया है । (iii) बच्चा जा चुका था । ( iv )बच्चा जा रहा था (v)बच्चा सुबह से जा रहा था ।

ये सब भूतकाल की क्रियाएँ हैं क्योंकि ‘गया’, ‘गया है’, ‘जा चुका था’/ गया था और सुबह से जा रहा था" ये सभीे क्रियाएँ भूतकाल का बोध कराती है ।

"हिन्दी भाषायी व्याकरणिक दृष्टि से यद्यपि भूतकाल के छह भेद हैं- परन्तु उनमें दो भेद अंग्रेजी व्याकरण में वर्तमान तथा भविष्य कालिक रूपों में निर्धारित कर दिये हैं ।


💐-आसन्न भूत को पूर्ण वर्तमान काल कहना  जैसे :-बच्चा गया है।
इस वाक्य में दो क्रियाऐं हैं पहली भूतकालिक तथा द्वितीय वर्तमान कालिक जैसे :-(गया + है ) "गया" भूतकाल की क्रिया तो "है" वर्तमान काल की क्रिया है।


दोनों भूत-वर्तमानिक संयुक्त क्रियाओं से यह स्वयं निर्धारित होता है ।

💐- दूसरा वाक्य "बच्चा गया होगा" जिसमें प्रथम क्रिया "गया" भूतकालिक तथा द्वितीय क्रिया "होगा" भविष्य कालिक है । अब ये भी वाक्य हिन्दी भाषायी व्याकरणिक दृष्टि से सन्दिग्ध भूत काल का है तो अंग्रेजी व्याकरण में भविष्य कालिक निर्धारित कर दिया है ।

यहाँ दौनों वाक्यों के काल में हिन्दी व्याकरणिक मान्यता सही है ।

💐-क्यों कि यहाँं पहली क्रियाऐं ही प्रभावशाली हैं।
वैसे भी प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष वाक्यों की संरचना में पूर्णवर्तमान का वाक्य और सामान्य भूतकाल का वाक्य होता है।
दोनों ही पूर्णभूत काल में ही निर्मित होते हैं अंग्रेजी व्याकरण के अन्तर्गत ...

"भूतकाल के छह भेद हैं-
(i) सामान्य भूत (अनिश्चित भूत).                    (ii) आसन्न भूत (पूर्ण वर्तमान ) आसन्न भूतकाल (Imminent Past Tense)(iii) अपूर्ण भूत ( सातत्य भूत)(iv) पूर्ण भूत(v) संदिग्ध भूत ( जिसे अंग्रेजी व्याकरण में पूर्ण भविष्य काल माना)(vi) हेतुहेतुमद भूत ( शर्त मूलक भूत काल-

__________________________________________
(i) सामान्य भूत - क्रिया के जिस रूप से (या, ये, यी, चुका, चुकी, चुके) समीप वर्ती भूतकाल अनिश्चित समय मूलक  बोध होता है, वह सामान्य भूत है ।

जैसे- बच्चा गया । श्याम ने पत्र लिखा ।

(ii) आसन्न भूत- क्रिया के जिस रूप से अभी-अभी निकट भूतकाल में क्रिया का होना प्रकट हो, वह आसन्न है।. इनके हिन्दी वाक्यों के अन्त में ये शब्दांश आते हैं जैसे- (या है, ये है, यी है अथवा चुका है, चुकी है, चुके है)
जैसे- १-प्रशान्त गया है । २-मधुरी आई है । ३-मोहन जा चुका है ।

वस्तुत इस भूत काल में दो क्रियाऐं होता हैं :-
प्रथम भूतकालिक तथा द्वितीय वर्तमान कालिक ।

जैसे :- गया है । चुका है।

वाक्यांश में गया भूतकालिक तथा "है" क्रिया वर्तमान कालिक है।

(iii) अपूर्ण भूत-inperfect Past Tense)  क्रिया के जिस रूप से- रहा था, रही थी, रहे थे- का बोध हो ।
जैसे- रामू आ रहा था ।
वस्तुत इस भूत काल की सातत्य (अपूर्ण) क्रिया में कोई समय ( Time) नहीं होता है ।

जबकि पूर्ण -अपूर्ण भूत काल की क्रिया में एक समय होता है ; चाहे 'वह निश्चित हो अथवा अनिश्चित जैसे :- "रामू सुबह से आ रहा था" अथवा रामू दो घण्टे से आ रहा था ।

(iv) पूर्ण भूत- क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि कार्य समाप्त हुए बहुत समय बीत चुका है उसे पूर्ण भूत कहते हैं ; इस भूत काल के वाक्य में दो भूत कालिक क्रियाऐं होती हैं ।
जैसे अर्थात् -आया + था, आयी + थी, आये +थे, चुका + था, चुकी+ थी, चुके +थी।

💐:- ये दो भूत कालिक क्रियाऐं साथ साथ हों तो समझ लीजिए की वाक्य पूर्ण भूत है ।

जैसे- बच्चा आया था । इस भूत काल में दो भूत कालिक क्रियाऐं हैं ।
जैसे आया (अनिश्चित भूतकालिक "आया" तथा द्वितीय "था" निश्चित भूतकालिक ।

(v) सन्दिग्ध भूत- (Doubtful past)Tense)   क्रिया के जिस रूप से भूतकाल का बोध तो हो किन्तु कार्य के होने में सन्देह हो अथवा सम्भावना हो वहाँ सन्दिग्ध भूत होता है।
जैसे:- श्याम ने पत्र लिखा होगा ।

यद्यपि सन्दिग्ध भूत अंग्रेजी व्याकरणिक में पूर्ण भविष्य काल के रूप में मान्य है ।

जबकि हिन्दी में भूत काल के रूप में । क्यों कि "लिखा" भूत कालिक क्रियात्मक रूप पहले है और "होगा" भविष्य कालिक क्रियात्मक रूप बाद में है ।
अतः यह पहले भूतकालिक ही है।

(vi) हेतुहेतुमद भूत-(-condition Past tense):-क्रिया के जिस रूप से बीते समय में एक क्रिया के होने पर दूसरी क्रिया का होना आश्रित हो ; वहाँ हेतुहेतुमद भूत काल होता है।:-
जैसे- यदि सुधा ने कहा होता , तो मैं अवश्य जाता । अर्थात् वर्तमान काल में इसमें क्रिया का आरम्भ हो चुका होना होता है लेकिन समाप्ति नहीं होती है। _________________________________________

वर्तमान काल:- दूसरे शब्दों में क्रिया के जिस रूप से कार्य का वर्तमान काल में होना पाया जाए उसे वर्तमान काल कहते हैं ।
जैसे:- भक्त माला फेरता है ।
वर्तमान काल के तीन भेद हैं-

(i) सामान्य वर्तमान

(ii) अपूर्ण वर्तमान

(iii) संदिग्ध वर्तमान

(i) सामान्य वर्तमान:- क्रिया के जिस रूप से यह बोध हो कि कार्य वर्तमान काल में सामान्य रूप से होता है वहाँ सामान्य वर्तमान होता है।
परन्तु यहाँ समय अनिश्चित ही होता है ।

जैसे- बाबू रोता है ।

(ii) अपूर्ण वर्तमान- क्रिया के जिस रूप से यह बोध हो कि कार्य अभी चल ही रहा है, समाप्त नहीं हुआ है वहाँ अपूर्ण वर्तमान होता है।
जैसे- यदु  स्कूल जा रहा है ।

💐-(iii) संदिग्ध वर्तमान- क्रिया के जिस रूप से वर्तमान में कार्य के होने में संदेह का बोध हो वहाँ संदिग्ध वर्तमान होता है । जैसे- रमेश इस समय खाता होगा ।

3. भविष्यत काल क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि कार्य भविष्य में होगा वह भविष्यत काल कहलाता है।
जैसे- यदु स्कूल जाएगा ।
भविष्य काल के तीन भेद हैं-
(i) सामान्य भविष्यत
(ii) संभाव्य भविष्यत
💐-(iii) प्रश्नमूलक इच्छाबोधक संभाव्यभविष्यत्काल
उदाहरण:- जब एक पत्नी पति से कहती है
" आप के लिए चाय बनाऊं"
" सेवक मालिक से कहता है
कमरे को साफ कर दूँ"

अंग्रेजी व्याकरण में दौंनो वाक्य भविष्यकाल सूचक सहायक क्रियाओं के भूतकालिक रूप " will- whould तथा Shell के भूतकालिक रूप Should से बनेंगे ।

💐:-🌸
1-आप के लिए चाय बनाऊं"
I Should make tea for you.
2- इस कमरे को साफ कर दूँ"
I whould clean this room.

(i) सामान्य भविष्यत - क्रिया के जिस रूप से कार्य के भविष्य में होने का बोध हो उसे सामान्य भविष्यत कहते हैं ।
जैसे:- हम घूमने जाएँगे ।

(ii) संभाव्य भविष्यत: - क्रिया के जिस रूप से कार्य के भविष्य में होने की संभावना या इच्छा का बोध हो वहाँ सम्भाव्य भविष्यत होता है ।

जैसे- शायद वह दिन आए ।
क्या मैं आपकी मदद करूँ ?

काल क्या होता है :- काल का अर्थ होता है – समय। क्रिया के जिस रूप से कार्य के होने के समय का पता चले उसे काल कहते हैं।
अथार्त कार्य – व्यापार के समय और उसकी पूर्ण और अपूर्ण अवस्था के ज्ञान के रूपांतरण को काल कहते हैं। काल के उदाहरण :-
(i) सुनील गीता पढ़ता है।
(ii) प्रदीप पढ़ रहा है।
(iii) रमेश कल दिल्ली जाएगा।
(iv) बच्चे खेल रहे हैं।
(v) अध्यापिका पढ़ा रही थीं।
(vi) वह खा रहा है।
______________________________________

__________________________________________ वाच्य (Voice) क्रिया के जिस रूप से यह ज्ञात हो कि वाक्य में क्रिया द्वारा सम्पादित विधान का विषय (उद्देश्य) कर्ता है, कर्म है, अथवा भाव है, उसे वाच्य कहते हैं।
वाक्य क्रिया का ही रूपान्तरण है ।

क्रिया के उस परिवर्तन को वाच्य कहते हैं, जिसके द्वारा इस बात का बोध होता है कि वाक्य के अन्तर्गत कर्ता, कर्म या भाव में से किसकी प्रधानता है।

इनमें किसी के अनुसार क्रिया के पुरुष, वचन आदि आए हैं।

वाच्य के तीन प्रकार हैं-

1. कर्तृवाच्य। (Active Voice) जिस वाक्य में वाच्य बिन्दु 'कर्ता' है उसे कर्तृवाच्य कहते है।

2. कर्मवाच्य। (Passive Voice)

3. भाववाच्य। (Imporsonal Voice) वाच्य के प्रयोग :-
वाक्य में क्रिया के लिंग, वचन तथा पुरुष का अध्ययन 'प्रयोग' कहलाता है।

ऐसा देखा जाता है कि वाक्य की क्रिया का लिंग, वचन एवं पुरुष कभी कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार होता है, तो कभी कर्म के लिंग-वचन-पुरुष के अनुसार, लेकिन कभी-कभी वाक्य की क्रिया कर्ता तथा कर्म के अनुसार न होकर एकवचन, पुंलिंग तथा अन्यपुरुष होती है; ये ही प्रयोग है।

(क) कर्तरि प्रयोग- जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार हों तब कर्तरि प्रयोग होता है; जैसे- मोहन अच्छी पुस्तकें पढता है।

(ख) कर्मणि प्रयोग- जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार हों तब कर्मणि प्रयोग होता है; जैसे- सीता ने पत्र लिखा।

(ग) भावे प्रयोग- जब वाक्य की क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष कर्ता अथवा कर्म के लिंग, वचन और पुरुष के अनुसार न होकर एकवचन, पुंलिंग तथा अन्य पुरुष हों तब भावे प्रयोग होता है; जैसे- मुझसे चला नहीं जाता।
सीता से रोया नहीं जाता।

वाच्य के भेद:- उपर्युक्त प्रयोगों के अनुसार वाच्य के तीन भेद हैं-
(1) कर्तृवाच्य(Active Voice)- क्रिया के उस रूपान्तर को कर्तृवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्ता की प्रधानता का बोध हो।
जैसे- राम पुस्तक पढ़ता है, मैंने पुस्तक पढ़ी।

(2) कर्मवाच्य(Passive Voice)- क्रिया के उस रूपान्तर को कर्मवाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में कर्म की प्रधानता का बोध हो।
जैसे- पुस्तक पढ़ी जाती है; आम खाया जाता है। यहाँ क्रियाएँ कर्ता के अनुसार रूपान्तररित न होकर कर्म के अनुसार परिवर्तित हुई हैं।

यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि अँग्रेजी की तरह हिन्दी में कर्ता के रहते हुए कर्मवाच्य का प्रयोग नहीं होता; जैसे- 'मैं दूध पीता हूँ' के स्थान पर 'मुझसे दूध पीया जाता है' लिखना गलत होगा।

हाँ, निषेध के अर्थ में यह लिखा जा सकता है- मुझसे पत्र लिखा नहीं जाता; उससे पढ़ा नहीं जाता।

(3) भाववाच्य(Impersonal Voice)- क्रिया के उस रूपान्तर को भाववाच्य कहते हैं, जिससे वाक्य में क्रिया अथवा भाव की प्रधानता का बोध हो ।

क्रिया के लिंग वचन कर्म के लिंग एवं वचन के अनुसार होते है। जैसे- मोहन से टहला भी नहीं जाता।
मुझसे उठा नहीं जाता।
धूप में चला नहीं जाता।

टिप्पणी- यहाँ यह स्पष्ट है कि कर्तृवाच्य में क्रिया सकर्मक और अकर्मक दोनों हो सकती है, किन्तु कर्मवाच्य में केवल सकर्मक और भाववाच्य में अकर्मक होती .

कर्तृवाच्य से कर्मवाच्य बनाना:- (1) कर्तृवाच्य की क्रिया को सामान्य भूतकाल में बदलना चाहिए।

(2) उस परिवर्तित क्रिया-रूप के साथ काल, पुरुष, वचन और लिंग के अनुरूप जाना क्रिया का रूप जोड़ना चाहिए।

(3) इनमें ‘से’ अथवा ‘के द्वारा’ का प्रयोग करना चाहिए।
जैसे- कर्तृवाच्य कर्मवाच्य:-

1.श्यामा उपन्यास लिखती है।
श्यामा से उपन्यास लिखा जाता है।

2.श्यामा ने उपन्यास लिखा।
श्यामा से उपन्यास लिखा गया।

3.श्यामा उपन्यास लिखेगी।
श्यामा से (के द्वारा) उपन्यास लिखा जाएगा।

2.कर्तृवाच्य से भाववाच्य बनाना-
(1) इसके लिए क्रिया अन्य पुरुष और एकवचन में रखनी चाहिए।
(2) कर्ता में करण कारक की विभक्ति लगानी चाहिए।

(3) क्रिया को सामान्य भूतकाल में लाकर उसके काल
के अनुरूप जाना क्रिया का रूप जोड़ना चाहिए।

(4) आवश्यकतानुसार निषेधसूचक ‘नहीं’ का प्रयोग करना चाहिए।
जैसे- कर्तृवाच्य भाववाच्य 1.बच्चे नहीं दौड़ते। बच्चों से दौड़ा नहीं जाता।

2.पक्षी नहीं उड़ते।
पक्षियों से उड़ा नहीं जाता।

3.बच्चा नहीं सोया। बच्चे से सोया नहीं जाता। ________________________________________

प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भाषण (Direct & indirect Narration )
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष भाषण (कथन) अंग्रेजी शिक्षार्थियों के लिए भ्रम का स्रोत हो सकता है।

आइए पहले शब्दों को परिभाषित करें, फिर देखें कि किसी ने क्या कहा है, और सीधे भाषण को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कैसे परिवर्तित किया जाए?

आप प्रश्न का उत्तर दे सकते हैं उसने क्या कहा? यह दो तरीके से: बोले गए शब्दों को दोहराकर ( Repeated Speech) (प्रत्यक्ष भाषण) तथा बोले गए शब्दों की (Report)विवरण वर्णन करके (अप्रत्यक्ष या रिपोर्ट
🌐 किया गया भाषण)।

प्रत्यक्ष भाषण प्रत्यक्ष भाषण दोहराया गया, या उद्धरण, बोली जाने वाले सटीक शब्द।

जब हम लिखित रूप में प्रत्यक्ष भाषण का उपयोग करते हैं, तो हम उद्धरण चिह्नों (" ") के बीच बोली जाने वाले शब्दों को रखते हैं और इन शब्दों में कोई बदलाव नहीं होता है।

हम कुछ ऐसा रिपोर्ट कर रहे हैं जो अब कहा जा रहा है (उदाहरण के लिए एक टेलीफोन वार्तालाप), या बाद में किसी पिछली बातचीत के बारे में बता रहा है।
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उदाहरण :-१-वह कहती है, "आप घर कब आएंगे?"

२-उसने कहा, "तुम घर कब रहोगे?"

३-मैंने कहा, "मुझे नहीं पता!" "मेरे सूप में एक फ्लाई है!" चिल्लाया सिमोन।

४- जॉन ने कहा, "खिड़की के बाहर एक हाथी है।"

अप्रत्यक्ष भाषण:--- रिपोर्ट या अप्रत्यक्ष भाषण आमतौर पर अतीत के बारे में बात करने के लिए प्रयोग किया जाता है, इसलिए हम आम तौर पर बोले गए शब्दों का  काल बदलते हैं।
हम 'कहें', 'बताएं', 'पूछें' जैसी रिपोर्टिंग क्रियाओं का उपयोग करते हैं, और हम रिपोर्ट किए गए शब्दों को पेश करने के लिए 'उस' शब्द का उपयोग कर सकते हैं। जिसे उद्धरण चिन्ह कहते हैं (उलटा कॉमा का उपयोग नहीं किया जाता है।

(प्रत्यक्ष-भाषण)उसने कहा, "मैंने उसे देखा।"

(प्रत्यक्ष भाषण) = उसने कहा कि उसने उसे देखा था ।

(अप्रत्यक्ष भाषण) 'वह' छोड़ा जा सकता है: उसने उसे बताया कि वह खुश थी।
= उसने उसे बताया कि वह खुश थी।

'कहो' और 'बताओ' कोई अप्रत्यक्ष वस्तु नहीं होने पर 'कहें' का प्रयोग करें: उसने कहा कि वह थक गया था। जब आप कहें कि किसके साथ बोली जा रही थी (यानी एक अप्रत्यक्ष वस्तु के साथ) हमेशा 'बताएं' (Tell)का उपयोग करें:
उसने मुझे बताया कि वह थक गया था। '

टॉक' और 'बोलो' संचार की कार्रवाई का वर्णन करने के लिए इन क्रियाओं का प्रयोग करें:

उसने हमसे बात की।
वह टेलीफोन पर बात कर रही थी।
क्या कहा गया था इसके संदर्भ में 'क्रिया' के साथ इन क्रियाओं का प्रयोग करें: उसने अपने माता-पिता के बारे में बात की (हमें)।
प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष कथनों में उद्धरण कोे उद्धृत करने में प्रयुक्त क्रिया (Reporting verb ) यदि भूतकाल में हों ;
तो (Repoted speech उद्धृत कथन )की क्रिया का काल एक चरण पीछे भूतकाल में  चला जाता है ।

बशर्ते  रिपोर्टेड स्पीच के वाक्य में शाश्वत या ऐैतिहासिक अथवा प्रवृत्ति या आदत मूलक भाव न हो अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा के आधार नैतिक मूल्यों जैसे इमानदारी ,सच्चाई, दया और उदारता आदि के सन्दर्भों में भी भूतकालिक रूप से एक चरण पीछे जाने का नियम लागू नहीं होता है ।...

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कारक प्रकरण---(Case Concept)
अंग्रेजी में व्याकरणिक सम्पदा:-
पुरानी अंग्रेज़ी में पाँच कारक थे:-

१-नामांकित -nominative,

२-आरोपक-accusative ,

३-सम्बन्धक-genitive ,

४-प्रदानात्मक-dative , और

५-करणमूलत - instrumental

आधुनिक अंग्रेजी में तीन कारक हैं:-

1. नामांकित (जिसे व्यक्तिपरक भी कहा जाता है)

2. आरोपक (उद्देश्य भी कहा जाता है)

3. सम्बन्धवाचक (जिसे स्वामित्व भी कहा जाता है)

उद्देश्य का मामला पुराने मूल और करण के मामलों को कम करता है।

कारक इस सम्बन्ध को सन्दर्भित  करता है; कि एक शब्द को वाक्य में दूसरे के पास है, अर्थात्, जहाँ एक शब्द दूसरे के संबंध में "आता है"।

वह कारक अर्थात् "case" है ।
यह शब्द लैटिन शब्द से आता है जिसका अर्थ है "गिरना, ।"

अन्य आधुनिक भाषाओं में, विशेषणों के मामले होते हैं, लेकिन अंग्रेजी में, मामला केवल संज्ञाओं और सर्वनामों पर लागू होता है।

नामांकित / विषय वस्तु --- जब एक संज्ञा को (ए) के रूप में प्रयोग किया जाता है) एक क्रिया का विषय या (बी) एक क्रिया क्रिया का पूरक, यह व्यक्तिपरक या नामांकित मामले में कहा जाता है।

👇 राजा दिल से हँसे।
राजा व्यक्तिपरक मामले में एक संज्ञा है क्योंकि यह हंसी क्रिया का विषय है।

राजा एक्विटाइन के एलेनोर का पुत्र है।
पुत्र व्यक्तिपरक मामले में एक संज्ञा है क्योंकि यह कार्य क्रिया का पूरक है ।

आक्रामक / उद्देश्य प्रकरण जब किसी संज्ञा को किसी क्रिया या ऑब्जेक्ट की वस्तु के रूप में उपयोग किया जाता है, तो इसे उद्देश्य या ऑब्जेक्ट मामले में कहा जाता है।

राजा ने अपने दुश्मनों को कम कर दिया। दुश्मन उद्देश्य के मामले में एक संज्ञा है क्योंकि इसे संक्रमित क्रियात्मक क्रिया की क्रिया प्राप्त होती है; यह कमजोर की सीधी वस्तु है।

दोस्त एक फिल्म में गए। मूवी उद्देश्य के मामले में एक संज्ञा है क्योंकि यह प्रीपोजिशन का उद्देश्य है ।

सैली ने चार्ली को एक पत्र लिखा था। चार्ली उद्देश्य के मामले में एक संज्ञा है क्योंकि यह क्रिया के अप्रत्यक्ष वस्तु को लिखा है ।

एक संक्रमणीय क्रिया हमेशा एक प्रत्यक्ष वस्तु है; कभी-कभी, इसमें "अप्रत्यक्ष वस्तु" नामक दूसरी वस्तु होगी।

पुरानी शब्दावली में, अप्रत्यक्ष वस्तु को "मूल मामले" में कहा जाता था।

आजकल, अप्रत्यक्ष वस्तु, प्रत्यक्ष वस्तु की तरह, में कहा जाता है आरोप या उद्देश्य का मामला व्याकरणिक दृष्टि से कर्म का स्पष्टीकरण संस्कृत में सम्यक् रूप से हुआ है ।
👇 कर्तुरीप्सिततमं कर्म अर्थात् कर्ता जिसे सबसे अधिक चाहता है 'वह कर्म है ।

अर्थात् करता की क्रिया का फल प्रभाव जिसपर पड़ता है 'वह कर्म है ।

"कर्तुः क्रियया यदाप्तुम् इष्टतमं तत् कारकं कर्मसंज्ञं भवति"
कर्ता की क्रिया के द्वारा जिसे प्राप्त करने के लिए सबसे अधिक चाहा जाता है 'वह कर्म है।👇

कर्तुरीप्सिततमं कर्म-- सूत्रच्छेद: कर्तुः - षष्ठ्येकवचनम् , ईप्सिततमम् - प्रथमैकवचनम् विशेषणस्य उत्तमावस्था, कर्म - प्रथमैकवचनम् सम्बन्ध कारक:-
तीन संज्ञा मामलों में से, केवल स्वामित्व वाले मामले को घुमाया जाता है (जिस तरह से लिखा गया है उसे बदलता है)।

स्वामित्व वाले मामले में नाम एक एस्ट्रोफ़े को जोड़ने के साथ-साथ "S " के साथ या बिना जोड़ दिए जाते हैं। लड़के का जूता ढीला है।

लड़का स्वामित्व वाले मामले में एकवचन संज्ञा है। लड़कों के जूते ढीले हैं।

लड़के 'संबंधित मामले में एक बहुवचन संज्ञा है।
यह एक समेकित संज्ञा मामला बहुत सारे मूल अंग्रेजी बोलने वालों के लिए त्रुटि का स्रोत है।

अंग्रेजी सर्वनाम भी त्रुटि का एक लगातार स्रोत हैं क्योंकि वे व्यक्तिपरक और उद्देश्य के मामले को दिखाने के लिए घुमावदार रूप बनाए रखते हैं:-

व्यक्तिपरक मामले में सर्वनाम- मैं, वह, वह, हम, वे, कौन उद्देश्य के मामले में सर्वनाम : मैं, उसे, उसे, हम, उन्हें, जिन्हें आपके और उसके दोनों का सर्वव्यापी और उद्देश्य दोनों मामलों में समान रूप है।

संज्ञाओं के लिए, मेरी और उनके जैसे।
विशेषण की तरह, मेरा , इसका , हमारा , आदि संज्ञाओं के सामने खड़ा है, इसलिए उन्हें "स्वामित्व विशेषण" कहने का अर्थ होता है।

उद्देश्य का स्वरूप जो आधुनिक भाषण से लगभग चला गया है; व्यक्तिपरक रूप जो कई वक्ताओं के लिए उद्देश्य के मामले में ले लिया है। _______________________________________ Old English had five cases:

1- nominative,

2-accusative,

3-genitive,

4-dative, and

5-instrumental.

Modern English has three cases:

1. Nominative (also called subjective)

2. Accusative (also called objective)

3. Genitive (also called possessive)

The objective case subsumes the old dative and instrumental cases.

Case refers to the relation that one word has to another in a sentence, i.e., where one word “falls” in relationship to another.

The word comes from a Latin word meaning “falling, fall. गिरता है ”

In other modern languages, adjectives have case, but in English, case applies only to nouns and pronouns.

Nominative/Subjective Case:-- When a noun is used as a) the subject of a verb or b) the complement of a being verb, it is said to be in the subjective or nominative case.

The king laughed heartily. King is a noun in the subjective case because it is the subject of the verb laughed.

The king is the son of Eleanor of Aquitaine. Son is a noun in the subjective case because it is the complement of the being verb is.

Accusative/Objective Case:- When a noun is used as the object of a verb or the object of a preposition, it is said to be in the objective or accusative case.
The king subdued his enemies.

Enemies is a noun in the objective case because it receives the action of the transitive verb subdued; it is the direct object of subdued. The friends went to a movie. Movie is a noun in the objective case because it is the object of the preposition to.

Sallie wrote Charlie a letter. Charlie is a noun in the objective case because it is the indirect object of the verb wrote. A transitive verb always has a direct object; sometimes, it will have a second object called the “indirect object.
” In the old terminology, the indirect object was said to be in the “dative case.” Nowadays, the indirect object, like the direct object, is said to be in the accusative or objective case.

Genitive/Possessive Case:- Of the three noun cases, only the possessive case is inflected (changes the way it is spelled). Nouns in the possessive case are inflected by the addition of an apostrophe–with or without adding an “s.” The boy’s shoe is untied. Boy’s is a singular noun in the possessive case. The boys’ shoes are untied. Boys’ is a plural noun in the possessive case.

This one inflected noun case is the source of error for a great many native English speakers. English pronouns are also a frequent source of error because they retain inflected forms to show subjective and objective case: Pronouns in the subjective case:
I, he, she, we, they, who Pronouns in the objective case: me, him, her, us, them, whom The pronouns you and it have the same form in both subjective and objective case.

Note: Strictly speaking, both my and mine and the other possessive forms are genitive pronoun forms, but students who have been taught that pronouns stand for nouns are spared unnecessary confusion when the teacher reserves the term “possessive pronoun” for words that actually do stand for nouns, like mine and theirs. Like adjectives, my, its, our, etc. stand in front of nouns, so it makes sense to call them “possessive adjectives.”
The objective form whom is almost gone from modern speech; the subjective form who has taken over in the objective case for many speakers.

कारक- (Cases)---- कारक के भेद व्याकरण के सन्दर्भ में, किसी वाक्य, मुहावरा या वाक्यांश में संज्ञा या सर्वनाम का क्रिया के साथ सम्बन्ध कारक कहलाता है।

अर्थात् व्याकरण में संज्ञा या सर्वनाम शब्द की वह अवस्था जिसके द्वारा वाक्य में उसका क्रिया के साथ संबंध प्रकट होता है उसे कारक कहते हैं।

कारक यह इंगित करता है कि वाक्य में संज्ञा या सर्वनाम का काम क्या है।

अन्य भाषाओं में कारक कई रूपों में देखने को मिलता है- संस्कृत भाषा में 6 कारक लैटिन में भी 6 कारक हैं ग्रीक 5 तथा आधुनिक ग्रीक 4 जर्मन में 4 और अंग्रेजी में 3 हैं ।

1-कर्ता 2- कर्म तथा 3-सम्बन्ध कारक शब्दों में विकार - जैसे
'लड़का' से 'लड़के' ; 'मैं' से 'मुझको', 'मेरा' आदि। शब्दों के बाद कुछ शब्द आना - 'गाय को', 'वृक्ष से', 'राम का', 'पानी में', अन्य रूप कुछ भाषाओं में संज्ञा और सर्वनाम के अतिरिक्त विशेषण और क्रियाविशेषण (Adverb) में भी विकार आते हैं।

जैसे संस्कृत में - 'शीतलेन जलेन' में 'शीतलेन' विशेषण है।
विभिन्न भाषाओं में कारकों की संख्या तथा कारक के अनुसार शब्द का रूप-परिवर्तन भिन्न-भिन्न होता है। संस्कृत तथा अन्य प्राचीन भारतीय भाषाओं में आठ कारक होते हैं।
जर्मन भाषा में चार कारक हैं।
कारक विभक्ति - संज्ञा अथवा सर्वनाम शब्दों के बाद ‘ने, को, से, के लिए’, आदि जो चिह्न लगते हैं वे चिह्न कारक 'विभक्ति' कहलाते हैं।

कारक के भेद - हिन्दी में आठ कारक होते हैं।
उन्हें विभक्ति चिह्नों सहित नीचे देखा जा सकता है- कारक :-विभक्ति चिह्न (परसर्ग)
1. कर्ता प्रथमा -- ने 2. कर्म द्वितीया -- को 3. करण -- से, के साथ, के द्वारा 4. संप्रदान -- के लिए, को 5. अपादान -- से (पृथक) 6. संबंध -- का, के, की, रा, रे, री 7. अधिकरण -- में, पर 8. संबोधन -- हे ! अरे ! ओ!

कारक चिह्न स्मरण करने के लिए इस पद की रचना की गई हैं-
किसी ने कहा -
कर्ता ने अरु कर्म को, करण रीति से जान।
संप्रदान को, के लिए, अपादान से मान।।

का, के, की, संबंध हैं, अधिकरणादिक में मान।
रे ! हे ! हो ! संबोधन, मित्र धरहु यह ध्यान।।

विशेष - कर्ता से अधिकरण तक विभक्ति चिह्न (परसर्ग) शब्दों के अंत में लगाए जाते हैं, किन्तु संबोधन कारक के चिह्न-हे, रे, आदि प्रायः शब्द से पूर्व लगाए जाते हैं। कर्ता कारक- जिस रूप से क्रिया (कार्य) के करने वाले का बोध होता है वह ‘कर्ता’ कारक कहलाता है।

इसका विभक्ति-चिह्न ‘ने’ है।
इस ‘ने’ चिह्न का वर्तमानकाल और भविष्यकाल में प्रयोग नहीं होता है।
इसका सकर्मक धातुओं के साथ भूतकाल में प्रयोग होता है।
जैसे:-
1.राम ने रावण को मारा।
2.लड़की स्कूल जाती है।
पहले वाक्य में क्रिया का कर्ता राम है।
इसमें ‘ने’ कर्ता कारक का विभक्ति-चिह्न है।

इस वाक्य में ‘मारा’ भूतकाल की क्रिया है।
‘ने’ का प्रयोग प्रायः भूतकाल में होता है।
दूसरे वाक्य में वर्तमानकाल की क्रिया का कर्ता लड़की है।
इसमें ‘ने’ विभक्ति का प्रयोग नहीं हुआ है।

विशेष- (1) भूतकाल में अकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ भी ने परसर्ग (विभक्ति चिह्न) नहीं लगता है।
जैसे-वह हँसा।

(2) वर्तमानकाल व भविष्यतकाल की सकर्मक क्रिया के कर्ता के साथ ने परसर्ग का प्रयोग नहीं होता है। जैसे-वह फल खाता है।
वह फल खाएगा।

(3) कभी-कभी कर्ता के साथ ‘को’ तथा ‘स’ का प्रयोग भी किया जाता है।
जैसे-
(अ) बालक को सो जाना चाहिए।
(आ) सीता से पुस्तक पढ़ी गई।
(इ) रोगी से चला भी नहीं जाता।
(ई) उससे शब्द लिखा नहीं गया।

कर्म कारक- क्रिया के कार्य का फल जिस पर पड़ता है, वह कर्म कारक कहलाता है।

इसका विभक्ति-चिह्न ‘को’ है।
यह चिह्न भी बहुत-से स्थानों पर नहीं लगता।
जैसे-
1. मोहन ने साँप को मारा।
2. लड़की ने पत्र लिखा।
पहले वाक्य में ‘मारने’ की क्रिया का फल साँप पर पड़ा है। अतः साँप कर्म कारक है।
इसके साथ परसर्ग ‘को’ लगा है।
दूसरे वाक्य में ‘लिखने’ की क्रिया का फल पत्र पर पड़ा।
अतः पत्र कर्म कारक है।
इसमें कर्म कारक का विभक्ति चिह्न ‘को’ नहीं लगा।

करण कारक- संज्ञा आदि शब्दों के जिस रूप से क्रिया के करने के साधन का बोध हो अर्थात् जिसकी सहायता से कार्य संपन्न हो वह करण कारक कहलाता है।
इसके विभक्ति-चिह्न ‘से’ के ‘द्वारा’ है।

जैसे- 1.अर्जुन ने जयद्रथ को बाण से मारा।
2.बालक गेंद से खेल रहे है।
पहले वाक्य में कर्ता अर्जुन ने मारने का कार्य ‘बाण’ से किया।
अतः ‘बाण से’ करण कारक है।
दूसरे वाक्य में कर्ता बालक खेलने का कार्य ‘गेंद से’ कर रहे हैं।
अतः ‘गेंद से’ करण कारक है।
संप्रदान कारक- संप्रदान का अर्थ है-देना।
अर्थात कर्ता जिसके लिए कुछ कार्य करता है, अथवा जिसे कुछ देता है उसे व्यक्त करने वाले रूप को संप्रदान कारक कहते हैं।
लेने वाले को संप्रदान कारक कहते हैं।
इसके विभक्ति चिह्न ‘के लिए’ को हैं।

1.स्वास्थ्य के लिए सूर्य को नमस्कार करो।
2.गुरुजी को फल दो।
इन दो वाक्यों में ‘स्वास्थ्य के लिए’ और ‘गुरुजी को’ सम्प्रदान कारक हैं।
अपादान कारक- संज्ञा के जिस रूप से एक वस्तु का दूसरी से अलग होना पाया जाए वह अपादान कारक कहलाता है।
इसका विभक्ति-चिह्न ‘से’ है।
जैसे- 1.बच्चा छत से गिर पड़ा।

2.संगीता घोड़े से गिर पड़ी।
इन दोनों वाक्यों में ‘छत से’ और घोड़े ‘से’ गिरने में अलग होना प्रकट होता है।
अतः घोड़े से और छत से अपादान कारक हैं।

संबंध कारक- शब्द के जिस रूप से किसी एक वस्तु का दूसरी वस्तु से संबंध प्रकट हो वह संबंध कारक कहलाता है।
इसका विभक्ति चिह्न ‘का’, ‘के’, ‘की’, ‘रा’, ‘रे’, ‘री’ है। जैसे- 1.यह राधेश्याम का बेटा है।
2.यह कमला की गाय है।
इन दोनों वाक्यों में ‘राधेश्याम का बेटे’ से और ‘कमला का’ गाय से संबंध प्रकट हो रहा है।
अतः यहाँ संबंध कारक है।
जहाँ एक संज्ञा या सर्वनाम का सम्बन्ध दूसरी संज्ञा या सर्वनाम से सूचित होता है, वहाँ सम्बन्ध कारक होता है। इसके विभक्ति चिह्न का, की, के; रा, री, रे; ना, नी, ने हैं।
जैसे- राम का लड़का, श्याम की लड़की, गीता के बच्चे।
मेरा लड़का, मेरी लड़की, हमारे बच्चे। अपना लड़का, अपना लड़की, अपने लड़के।

अधिकरण कारक- शब्द के जिस रूप से क्रिया के आधार का बोध होता है उसे अधिकरण कारक कहते हैं।
इसके विभक्ति-चिह्न ‘में’, ‘पर’ हैं।
जैसे-
1.भँवरा फूलों पर मँडरा रहा है।
2.कमरे में टी.वी. रखा है।
इन दोनों वाक्यों में ‘फूलों पर’ और ‘कमरे में’ अधिकरण कारक है।

संबोधन कारक- जिससे किसी को बुलाने अथवा सचेत करने का भाव प्रकट हो उसे संबोधन कारक कहते है और संबोधन चिह्न (!) लगाया जाता है।

जैसे- 1.अरे भैया ! क्यों रो रहे हो ? 2.हे गोपाल ! यहाँ आओ। इन वाक्यों में ‘अरे भैया’ और ‘हे गोपाल’ ! संबोधन कारक है।

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