रघुवंशम् महाकाव्य में राजा दिलीप, सिंह से कहते हैं-
"अर्थ -क्षत्रिय शब्द की संसार में प्रचलित जो व्युत्पत्ति है वह निश्चित ही 'क्षत अर्थात् नाश से बचाने वाले के अर्थ में है' (क्षतात् त्रायते)- क्षत्रिय। अतः उस क्षत्र शब्द से विपरीत वृत्ति वाले अर्थात नाश से रक्षा न करने वाले पुरुष के राज्य और अपकीर्ति से मलिन हुए प्राण ये दोनों व्यर्थ हैं।
"सन्दर्भ:-रघुवंश महाकाव्य द्वितीय सर्ग का तिरेपनवाँ(५३) श्लोक-
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