गुरुवार, 22 फ़रवरी 2024

वैष्णव नाम कि एक स्वतन्त्र जाति भी इस विश्व में जानी जाती है।४३।

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ब्रह्मक्षत्रियविट्शूद्राश्चतस्रो जातयो यथा। 
स्वतन्त्रा जातिरेका च विश्वेष्वस्मिन्वैष्णवाभिधा ।४३।
अनुवाद:-ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र  जो चार जातियाँ इस विश्व में हैं वैसे ही वैष्णव नाम कि एक स्वतन्त्र जाति भी इस विश्व में जानी जाती है।४३।
उपर्युक्त श्लोक में पञ्चम जाति के रूप में भागवत धर्म के प्रर्वतक आभीर / यादव लोगो को स्वीकार किया गया है । क्योंकि वैष्णव शब्द भागवत शब्द का ही पर्याय है।
सन्दर्भ:-ब्रह्मवैवर्त पुराण-अध्याय११ श्लोक संख्या (४३) 
  1. महेश्वर उवाच- शृणु नारद! वक्ष्यामि वैष्णवानां च लक्षणम् यच्छ्रुत्वा मुच्यते लोको ब्रह्महत्यादिपातकात् ।१।
  2. तेषां वै लक्षणं यादृक्स्वरूपं यादृशं भवेत् ।तादृशंमुनिशार्दूलशृणु त्वं वच्मिसाम्प्रतम्।२
  3. विष्णोरयं यतो ह्यासीत्तस्माद्वैष्णव उच्यते। सर्वेषां चैव वर्णानां वैष्णवःश्रेष्ठ उच्यते ।३।                                      -१-महेश्वर- उवाच ! हे नारद , सुनो, मैं तुम्हें वैष्णव का लक्षण बतलाता हूँ। जिन्हें सुनने से लोग ब्रह्म- हत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाते हैं । १।                            २-वैष्णवों के जैसे लक्षण और स्वरूप होते हैं। उसे मैं बतला रहा हूँ। हे मुनि श्रेष्ठ ! उसे तुम सुनो ।२।                                    ३-चूँकि वह विष्णु से उत्पन्न होने से ही वैष्णव कहलाता है; और सभी वर्णों मे वैष्णव श्रेष्ठ कहे जाता है।३।          "पद्म पुराण उत्तराखण्ड अध्याय(६८  श्लोक संख्या १-२-३।

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