शास्त्रों में प्रमाण प्राप्त हुए हैं कि यादव अथवा अहीर लोग ब्रह्मा की सृष्टि न होने से ब्रह्मा के द्वारा बनायी गयी वर्णन व्यवस्था में शामिल नहीं -
आभीरों का वर्ण विष्णु से उत्पन्न होने के कारण वैष्णव है।
देखें ऋग्वेद के दशम मण्डल के नब्बे वें सूक्त की यह बारहवीं ऋचा कहती है कि ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हुए क्षत्रिय बाहों से वैश्य उरू( नाभि और जंघा ते मध्य भाग) से और शूद्र दोनों पैरों से उत्पन्न हुए।
"ब्राह्मणो अस्य मुखमासीद् बाहू राजन्यः कृतः।
ऊरू तदस्य यद्वैश्यः पद्भ्यां शूद्रो अजायत।।
(ऋग्वेद 10/90/12)
स्पष्टीकरण व अनुवाद:-
उपर्युक्त ऋचा ब्राह्मण आदि वर्णों की उत्पत्ति से सम्बन्धित है। 'ब्राह्मण' ब्रह्मा की सन्तान होने से ही ब्राह्मण कहलाते हैं।
"ब्रह्मणो जाताविति ब्राह्मण= पाणिनीय अष्टाध्यायी न टिलोपः ब्रह्मणो मुखजातत्वात् ब्रह्मणोऽपत्यम् वा अण् ।
अर्थ:- ब्रह्मा से उत्पन्न होने से ब्राह्मण ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न ब्रह्मा की सन्तान - ब्रह्मन्- पुल्लिंग शब्द में सन्तान वाची 'अण्' प्रत्यय करने पर ब्राह्मण शब्द बनता है।
ब्राह्मो जातौ ।(६-४-१७१) पाणिनीय -अष्टाध्यायी
योगविभागोऽत्र कर्तव्यः । 'ब्राह्मः' इति निपात्यतेऽनपत्येऽणि । ब्राह्मं हविः । ततो जातौ । अपत्ये जातावणि ब्रह्मणष्टिलोपो न स्यात् । ब्रह्मणोऽपत्यं ब्राह्मणः।'
इस लिए उपर्युक्त ऋचा ब्रह्मा से सम्बन्धित है जबकि ब्रह्मा विराट पुरुष की नाभि से उत्पन्न होने से विराट् पुरुष नहीं हैं।
(ब्रह्मा) के मुख से ब्राह्मण हुआ , बाहू से क्षत्रिय लोग हुए एवं उसकी जांघों से वैश्य हुआ एवं दौनों चरण से शूद्रो की उत्पत्ति हुई।-(10/90/12)
इस लिए अब सभी शात्र-अध्येता जानते हैं कि ब्रह्मा भी विष्णु की सृष्टि हैं। जबकि विराट-विष्णु स्वयं निराकार ईश्वर का अविनाशी साकार रूप हैं।
परन्तु हम आभीर लोग यदि इन शास्त्रीय मान्यताओं पर ही आश्रित होकर ब्राह्मणीय वर्णव्यवस्था का पालन और आचरण करते हैं ।
तो विचार करना होगा कि गोप साक्षात् विष्णु के ही शरीर(रोम-कूप) से उत्पन्न हैं । जबकि ब्राह्मण विष्णु की सृष्टि ब्रह्मा के मुख से उत्पन्न हैं ।
दौंनों के उत्पत्ति-श्रोत और उत्पत्ति अंगों में भेद है।
इस लिए गोप ब्राह्मणों से श्रेष्ठ और उनके भी पूज्य हैं।
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