अनुवाद:-
"स्पृहायुतायास्तस्यास्तु संक्लेदः समजायत।
विचेतनाम्भसा क्लिन्ना त्रस्ता सा स्वाश्रमं ययौ। ८३.११ ।।
अनुवाद:-
राजा की इच्छा करती हुई वह रज:स्रवित हो गयी
"अबोधि जमदग्निस्तां रेणुकां विकृतां तथा।
धिग् धिक्काररतेत्येवं निनिन्द च समन्ततः। ८३.१२ ।। )दा
अनुवाद:-
उस रेणुका को जमदग्नि ने विकृत अवस्था में जानकर उसकी सब प्रकार से निन्दा की और उस रति पीडिता को धिक्कारा।१२।
क्रोधित जमदग्नि ने उन सबको शाप दिया की सभी जड़ बुद्धि हो जाएं । कि तुम सब सदैव के लिए घृणित जड़ गो बुद्धि को प्राप्त हो जाओ।१५।
एक बार परशुराम की माता रेणुका स्नान के लिए गयीं तभी  गंगा के जल में स्नान करते हुए  चित्ररथ नामक एक राजा को देखा।८।
वह अपनी सुन्दर पत्नीयों के साथ शुभ जल क्रीडा में रत था। वह राजा सुन्दर मालाओं  सुन्दर वस्त्र  से युक्त युवा चन्द्रमा के समान सुशोभित हो रहा था।९।
अनुवाद:-
उस प्रकार राजा को देखकर वह रेणुका अत्यधिक काम से पीडित हो गयी और रेणुका ने उस वर्चस्व शाली राजा की इच्छा की।१०।
"स्पृहायुतायास्तस्यास्तु संक्लेदः समजायत।
विचेतनाम्भसा क्लिन्ना त्रस्ता सा स्वाश्रमं ययौ। ८३.११ ।।
अनुवाद:-
राजा की इच्छा करती हुई वह रज:स्रवित हो गयी
और चेतना हीन रज स्राव के जल से भीगी हुई डरी हुई अपने आश्रम को गयी।।११।
"अबोधि जमदग्निस्तां रेणुकां विकृतां तथा।
धिग् धिक्काररतेत्येवं निनिन्द च समन्ततः। ८३.१२ ।। )दा
अनुवाद:-
उस रेणुका को जमदग्नि ने विकृत अवस्था में जानकर उसकी सब प्रकार से निन्दा की और उस रति पीडिता को धिक्कारा।१२।
"ततः स तनयान् प्राह चतुरः प्रथमं मुनिः।
रुषण्वत्प्रमुखान् सर्वानेकैकं क्रमतो द्रुतम्।८३.१३।
अनुवाद:-
तब क्रोधित जमदग्नि ने अपने रुषणवत् आदि चारों पुत्रों से एक एक से कहा। १३।
रुषण्वत्प्रमुखान् सर्वानेकैकं क्रमतो द्रुतम्।८३.१३।
अनुवाद:-
तब क्रोधित जमदग्नि ने अपने रुषणवत् आदि चारों पुत्रों से एक एक से कहा। १३।
जल्दी ही पाप में निरत इस  रेणुका को  काट दो 
लेकिन  पुत्र उनकी बात न मान कर मूक और जड़ ही बने रहे।१४।
क्रोधित जमदग्नि ने उन सबको शाप दिया की सभी जड़ बुद्धि हो जाएं । कि तुम सब सदैव के लिए घृणित जड़ गो बुद्धि को प्राप्त हो जाओ।१५।
अथाजगाम चरमो जामदग्न्येऽतिवीर्यवान्।।
तं च रामं पिता प्राह पापिष्ठां छिन्धि मातरम्।
 ८३.१६ ।।
अनुवाद:-तभी जमदग्नि के अन्तिम पुत्र शक्तिशाली परशुराम आये  जमदग्नि ने परशुराम से कहा पापयुक्ता इस माता को तुम काट दो।१६।
स भ्रातृंश्च तथाभूतान् दृष्ट्वा ज्ञानविवर्जितान्।। 
पित्रा शप्तान् महातेजाः प्रसूं परशुनाच्छिनत्।
८३.१७ ।।
अनुवाद:-पिता के  द्वारा  शापित ज्ञान से शून्य अपने भाइयों को देखकर उस परशुराम ने अपनी माता रेणुका का शिर फरसा से काट दिया ।
अनुवाद:-
परशुराम के द्वारा कटी हुई रेणुका को देखकर 
जमदग्नि क्रोधरहित हो गये। और जमदग्नि प्रसन्न होते हुए यह वचन बोले!।१८।
अनुवाद:-
मैं प्रसन्न हूँ। पुत्र तेरा कल्याण हो !  तू मुझसे कुछ माँग ले!।१९।
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