पुराण और इतिहास (महाकाव्य) आदि की प्राचीन कथाऐं-
भरद्वाजः शब्द की व्युत्पत्ति भागवतपुराण आदि ग्रन्थों में है।
एक बार बृहस्पति ने अपने भाई उतथ्य की गर्भवती पत्नी ममता से मैथुन करना चाहा।
उस समय ममता के गर्भ में जो बालक था ,उसने बृहस्पति से मना किया।
किन्तु बृहस्पति ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया क्यों कि बृहस्पति उस समय कामोत्तेजित हो गये थे।
और बृहस्पति ने उस गर्भस्थ शिशु से कहा:- तू अन्धा हो जा ऐसा शाप सुनकर बालक गर्भ से निकल भागा !
तब बृहस्पति ने बलपूर्वक ममता का गर्भाधान कर दिया। उतथ्य की पत्नी ममता इस बात से डर गई कि कही मेरा पति मेरा साथ हुए बलात्कार के कारण मेरा त्याग न कर दे।
बृहस्पति द्वारा ममता से ( अर्थात अपने छोटे भाई की पत्नी) से जबरन बलात्कार के परिमाण स्वरूप जो सन्तान जन्म हुई 'वह भरद्वाज कहलायी और माता - पिता द्वारा त्याग देने से इस वर्णसंकर (द्वाज) सन्तान का भरण( लालन पालन) मरुद्गणों ने किया तथा और देवताओं ने इसका भरद्वाज नाम रखा।
अर्थात् उतथ्य और बृहस्पति दोनों का पुत्र द्वाज है। और बृहस्पति और ममता दोनों उसको छोड़कर चले गए। इसका लालन पालन मरुदगणों ने किया क्योंकि देवों ने मरुद्गणों से कहा कि तुम इस दो पुरुषों से उत्पन्न बालक का भरण करो - भर द्वाभ्यां जायते अस्य शिशो: तू से उस बालक का नाम भरद्वाज रखा गया ।
भरद्वाज शब्द का व्याकरण परक अर्थ होता है।
भर (मध्यम पुरुष लोट् लकार एक वचन परस्मैपदीय रूप ) + द्वाज= द्वाभ्याम् ( दो पुरुषों द्वारा उत्पन्न) भरद्वाज= दो पुरुषों द्वारा उत्पन्न सन्तान को भरद्वाज कहने लगे।
और आज --जो स्वयं को भारद्वाज कहते हैं वे ब्राह्मण इन्हीं भरद्वाज की सन्तानें हैं ।
भरद्वाज- शब्द में सन्तान वाचक अण् प्रत्यय करने पर भारद्वाज शब्द बनता है जिसका अर्थ है भरद्वाज की सन्तान, जै से वशिष्ठ की सन्तान वाशिष्ठ।
__________________________________________
भरद्वाजः शब्द की व्युत्पत्ति भागवतपुराण आदि पुराण ग्रन्थों में इस प्रकार दर्शायी गयी है !👇
"भरद्वाभ्यां जायते इति भरद्वाज: कथ्यते
भरद्वाजः-( भर द्वाभ्यां जायते इति भरद्वाज: कथ्यते
अर्थात् दो पुरुषों अर्थात् बृहस्पति और उनके छोटे भाई उतथ्य के द्वारा उतथ्य की पत्नी ममता से उत्पन्न सन्तान= द्वाज ।
और आकाशवाणी द्वारा यह कहने पर कि "भर द्वाभ्यां जायते इति भरद्वाज: ततः पृषोदरादित्वात् द्वाजः सङ्करः।
अब ये कथाऐं शास्त्रों में उस समय समायोजित हुईं जब समाज में अवैध यौनाचार भी स्वीकृत हो गया था।
यद्यपि लिखने वालों ने अपने मनोवृत्तियों का ही प्रकाशन शास्त्रीय सम्मति से करना चाहा है।।
भरद्वाज के जन्म की यह कथा एक पुराण में नही अपितु अनेक पुराणों में इसी प्रकार है
जैसे - वायुपुराण ,विष्णु पुराण,हरिवंश पुराण, महाभारत ,भागवतपुराण, देवीभागवतपुराण आदि- आदि
यद्यपि यह कथा कई कारणों से सैद्धान्तिक नहीं है। क्यों चोरी और सीना जोरी जैसी बात तो यही है कि बृहस्पति पहले तो ममता के साथ बलात्कार करते हैं परन्तु उसके मना करने पर उसे उल्टा शाप देने की धमकी भी देते हैं। और गर्भस्थ शिशु के मना करने पर भी बृहस्पति उसे अन्धा होने की शाप देते हैं।
जो व्यक्ति स्वयं अपराध है वह किसी निरपराध और निर्दोष को शाप दे ही नहीं सकती है।
निस्संदेह इस प्रकार की शास्त्रीय आख्यानों ने भारतीय समाज में धर्म की आढ़ मे व्यभिचार को पनपने को बढ़ावा ही दिया है।
_______________________________
भागवतपुराण 9/20/36, में भरद्वाज की उत्पत्ति का प्रसंग इस प्रकार है ।
एक बार बृहस्पति ने अपने छोटे भाई उतथ्य की पत्नी ममता के साथ उसको पहले से भी गर्भवती होने पर बलात्कार करना चाहा उस समय गर्भस्थ शिशु ने मना किया परन्तु बृहस्पति नहीं माने काम वेग ने उन्हें बलात्कार करने के लिए विवश कर दिया ।
गर्भस्थ शिशु ने मना करने पर
बृहस्पति नें बालक को शाप दे दिया की तू दीर्घ काल तक अन्धा (तमा) हो जाय ।
भागवतपुराण स उद्धृत मूल संस्कृत पाठ निम्न है ! 👇
________________________________________
बृहस्पतेरग्रजस्योतथ्यस्य ममताख्या पत्नी गर्भिण्यासीत् तस्यां बृहस्पतिः कामाभिभूतो वीर्य्यं व्यसृजत् ।
तच्च गर्भं प्रविशद्गर्भस्थेन स्थानसङ्कोचभयात् पार्ष्णिप्रहारेणापास्तं बहिः पतितमपि अमोघ वीर्य्यतया बृहस्पतेर्भरद्वाजनामपुत्त्रोऽभूत् ।
गर्भस्थश्च बृहस्पतिना तस्मादेवापराधादन्धो भवेति शप्तो दीर्घतमा नामाभवत् !
यह सुनकर बालक तो निकल भागा परन्तु बृहस्पति ने ममता के साथ बलात्कार करके उसे पुन: गर्भ वती कर दिया तब वह बालक उत्थ्य और बृहस्पति दौनों की सन्तान होने से
भरद्वाज कहलाया ।
शाप के कारण 'वह बालक दीर्घतमा कहलाया -
फिर बृहस्पति बोले ममता से !
हे मूढे ममते द्बाजं द्वाभ्यामावाभ्यां जातमिमं पुत्त्रं त्वं भर रक्ष ।
अर्थात् हे ममता मुझ बृहस्पति और उतथ्य द्वारा उत्पन्न इस पुत्र का तू पालन कर !
एवं बृहस्पतिनोक्तेव ममता तमाह हे बृहस्पते !
द्वाजं द्बाभ्यां जातमिममेकाकिनी किमित्यहं भरिष्यामि । त्वमिमं भरेति परस्परमुक्त्वा तं पुत्त्रं त्यक्त्वा यस्मात् पितरौ ममताबृहस्पती ततो यातौ
ततो भरद्वाजाख्योऽयम् ।
पाठान्तरे एवं विवदमानौ ।
यद्दुःखात् यन्निमित्ताद् दुःखात् पितरौ यातावित्यर्थः । तदेवं ताभ्यां त्यक्तो मरुद्भिर्भृतः ।
मरुत्सोमाख्येन च यागेनाराधितैर्मरुद्भिस्तस्य वितथे पुत्त्र- जन्मनि सति दत्तत्वाद्बितथसंज्ञाञ्चावाप ।
इति विष्णुपुराण ४ अंशे १९ अध्यायः।
(द्वादशद्बापरेऽसावेव व्यासः ।
यथा, देवीभागवते । १ । ३ । २९ ।
“एकादशेऽथ त्रिवृषो भरद्वाजस्ततःपरम् ।
त्रयोदशे चान्तरिक्षो धर्म्मश्चापि चतुर्द्दशे ॥
यथा च भावप्रकाशस्य पर्व्वूर्खण्डे प्रथमे भागे ।
“रोगाः कार्श्यकरा वलक्षयकरा देहस्य चेष्टाहराः दृष्टा इन्द्रियशक्तिसंक्षयकराः सर्व्वाङ्गपीडाकराः । धर्म्मार्थाखिलकाममुक्तिषु महाविघ्नस्वरूपा बलात् प्राणानाशु हरन्ति सन्ति यदि ते क्षेमं कुतः प्राणिनाम् ॥ तत्तेषां प्रशमाय कश्चन विधिश्चिन्त्यो भवद्भिर्बुधै- र्योग्यैरित्यभिधाय संसदि भरद्वाजं मुनिं तेऽब्रुवन् ।
त्वं योग्यो भगवन् !
ज्येष्ठस्य भ्रातुरुतथ्यस्य पत्न्यां ममतायां वृहस्पतिना जनिते मुनिभेदे । तदुत्पत्तिकथा विष्णु पु० ४ अं० १९ अ० । भाग० ९ । २० अ० ।
द्वाजशब्दे ३७९५ पृ० तन्निरुक्ति- रुक्ता । भा० अनु० ९३ अ० अन्यथा निर्वचनमुक्तं यथा “भरेऽसुतान् भरेऽशिष्यान् भरे देवान् भरे द्विजान्
भरे भार्य्या भरद्वाजं भरद्वाजोऽस्वि शोभने!” । “प्रजा वै वाजस्ता एष विभर्त्ति यद्बिभर्त्ति तस्याद्भरद्वाज इति श्रुत्यनुसारेण खनामाह ।
अर्थात् बड़े भाई उतथ्य की पत्नी ममता से बृहस्पति द्वारा बलात्कार से उत्पन्न सन्तान भरद्वाज।
(जन् + डः)
ततः पृषोदरादित्वात् द्वाजः =सङ्करः ।
भ्रियते मरुद्भिरिति ।
भृ + अप् = भरः । भरश्चासौ द्बाजश्चेति कर्म्मधारयः) मुनिविशेषः ।
श्लोक 9.20.34 |
तस्यासन् नृप वैदर्भ्य: पत्न्यस्तिस्र: सुसम्मता: जघ्नुस्त्यागभयात् पुत्रान् नानुरूपा इतीरिते॥ ३४ ॥ |
शब्दार्थ |
तस्य—उसकी (भरत की); आसन्—थीं; नृप—हे राजा परीक्षित ! वैदर्भ्य:—विदर्भ की कन्याएँ; पत्न्य:—पत्नियाँ; तिस्र:—तीन; सु-सम्मता:—अत्यन्त मनोहर तथा उपयुक्त; जघ्नु:—मार डाला; त्याग-भयात्—त्यागे जाने के भय से; पुत्रान्—अपने पुत्रों को; न अनुरूपा:—अपने पिता की तरह न होने से; इति—इस तरह; ईरिते—विचार करते हुए पर ।. |
अनुवाद |
हे राजा परीक्षित, महाराज भरत की तीन मनोहर पत्नियाँ थीं जो विदर्भ के राजा की पुत्रियाँ थीं। जब तीनों के सन्तानें हुईं तो वे राजा के समान नहीं निकलीं, अतएव इन पत्नियों ने यह सोचकर कि राजा उन्हें कृतघ्न रानियाँ समझकर त्याग देंगे, उन्होंने अपने अपने पुत्रों को मार डाला। |
श्लोक 9.20.35 |
तस्यैवं वितथे वंशे तदर्थं यजत: सुतम् । मरुत्स्तोमेन मरुतो भरद्वाजमुपाददु: ॥ ३५ ॥ |
शब्दार्थ |
तस्य—उसके; एवम्—इस प्रकार; वितथे—परेशान होकर; वंशे—सन्तान उत्पन्न करने में; तत्-अर्थम्—पुत्र प्राप्ति के लिए; यजत:— यज्ञ सम्पन्न करते हुए; सुतम्—एक पुत्र को मरुत्-स्तोमेन—मरुत्स्तोम यज्ञ करने से; मरुत:—मरुत्गण देवता; भरद्वाजम्—भरद्वाज को; उपाददु:—भेंट कर दिया ।. |
अनुवाद |
सन्तान के लिए जब राजा का प्रयास इस तरह विफल हो गया तो उसने पुत्रप्राप्ति के लिए मरुत्स्तोम नामक यज्ञ किया। सारे मरुत्गण उससे पूर्णतया सन्तुष्ट हो गये तो उन्होंने उसे भरद्वाज नामक पुत्र उपहार में दिया। |
श्लोक 9.20.36 | ||||||||||||||||||||||||||||||
अन्तर्वत्न्यां भ्रातृपत्न्यां मैथुनाय बृहस्पति: । प्रवृत्तो वारितो गर्भं शप्त्वा वीर्यमुपासृजत् ॥ ३६ ॥ | ||||||||||||||||||||||||||||||
शब्दार्थ:- | ||||||||||||||||||||||||||||||
अन्त:-वत्न्याम्—गर्भवती; भ्रातृ-पत्न्याम्—भाई की पत्नी से; मैथुनाय—संभोग की इच्छा से; बृहस्पति:—बृहस्पति नामक देवता; प्रवृत्त:—प्रवृत्त; वारित:—मना किया गया; गर्भम्—गर्भ के भीतर के पुत्र को; शप्त्वा—शाप देकर; वीर्यम्—वीर्य; उपासृजत्— स्खलित किया ।. | ||||||||||||||||||||||||||||||
___________________________________ | ||||||||||||||||||||||||||||||
अनुवाद | ||||||||||||||||||||||||||||||
बृहस्पति देव ने अपने भाई की पत्नी ममता पर मोहित होने पर उसके गर्भवती होते हुए भी उसके साथ संभोग करना चाहा। उसके गर्भ के भीतर के पुत्र ने मना किया लेकिन बृहस्पति ने उसे शाप दे दिया और बलात् ममता के गर्भ में वीर्य स्थापित कर दिया। ____ "क्या अपराधी निरपराध को शाप देने की सामर्थ्य रखता है। | ||||||||||||||||||||||||||||||
तात्पर्य | ||||||||||||||||||||||||||||||
इस संसार में संभोग की इच्छा इतनी प्रबल होती है कि देवताओं के गुरु तथा अत्यन्त पंडित बृहस्पति ने भी अपने भाई की गर्भवती पत्नी के साथ संभोग करना चाहा। जब उच्चतर देवताओं के समाज में ऐसा हो सकता है तो मानव समाज के विषय में क्या कहा जाये ? संभोग की इच्छा इतनी प्रबल है कि बृहस्पति जैसा विद्वान व्यक्ति भी विचलित हो सकता है।
|
भागवतपुराण 9,20,36, में भरद्वाज की उत्पत्ति का प्रसंग इस प्रकार है । एक वार बृहस्पति ने अपने छोटे भाई उतथ्य की पत्नी ममता के साथ उसको पहले से भी गर्भवती होने पर बलात्कार करना चाहा उस समय गर्भस्थ शिशु ने मना किया परन्तु बृहस्पति नहीं माने काम वेग ने उन्हें विवश कर दिया ।
बृहस्पति नें बालक को शाप दे दिया की तू दीर्घ काल तक अन्धा (तमा) हो जाय ।
यह सुनकर बालक तो निकल भागा परन्तु बृहस्पति ने ममता के साथ बलात्कार करके उसे पुन: गर्भवती कर दिया तब वह बालक उतथ्य और बृहस्पति दौनों की सन्तान होने से
भरद्वाज कहलाया ।
___________________________
माता भस्त्र पितुः पुत्रो येन जातः स एव सः ।
भरस्व पुत्रं दुष्यंतमावमंस्थाश्शकुंतलाम् ।१२ ।
रेतोधाः पुत्रो नयति नरदेव यमक्षयात् ।
त्वं चास्य धाता गर्भस्य सत्यमाह शकुंतला ।१३ ।
भरतस्य पत्नित्रये नव पुत्रा बभूवुः ।१४ ।
नैते ममानुरूपा इत्यभिहितास्तन्मातरः परित्यागभयात्तत्पुत्राञ्जघ्नुः ।१५ ।
ततोस्य वितथे पुत्रजन्मनि पुत्रार्थिनो मरुत्सोमयाजिनो दीर्घतमसः पार्ष्ण्यपास्तद्बृहस्पतिवीर्यादुतथ्यपत्न्यां ममतायां समुत्पन्नो भरद्वाजाख्यः पुत्रो मरुद्भिर्दत्तः ।१६ ।
तस्यापि नामनिर्वचनश्लोकः पठ्यते ।१७ ।
मूढे भर द्वाजमिमं भरद्वाजं बृहस्पते।
यातौ यदुक्त्वा पितरौ भरद्वाजस्ततस्त्वयम् इति ।।।१८ ।
भरद्वाजस्स तस्य वितथे पुत्रजन्मनि मरुद्भिर्दत्तः ततो वितथसंज्ञामवाप ।१९ ।
वितथस्यापि मन्युः पुत्रोऽभवत् ।२० ।
बृहत्क्षत्रमहावीर्यनगरगर्गा अभवन्मन्युपुत्राः ।२१ ।
नगरस्य संकृतिस्संकृतेर्गुरुप्रीतिरंतिदेवौ ।२२ ।
गर्गाच्छिनिः ततश्च गार्ग्याश्शैन्याः क्षत्रोपेता द्विजातयो बभूवु ।२३ । इति विष्णुपुराणे ४ अंशे १९ अध्यायः।
__________
देवीभागवतरुराणे-।१। ३ । २९ ।
“एकादशेऽथ त्रिवृषो भरद्वाजस्ततःपरम् ।
त्रयोदशे चान्तरिक्षो धर्म्मश्चापि चतुर्द्दशे ॥
।
“शाण्डिल्यः काश्यपश्चैव वात्स्यः सावर्णकस्तथा । भरद्वाजो गौतमश्च सौकालीनस्तथापरः ॥
इत्यादि गोत्रशब्दे द्रष्टव्यम् ॥
भृ + शतृ । भरत् + वाजः । संभ्रियमाणहविर्लक्षणान्नेयज- मानादौ, त्रि ।
यथा, ऋग्वेदे । १ । ११६ । १८ ।
“यदयातं दिवोदासाय वर्त्तिर्भरद्वाजायाश्विना हयन्ता ॥” “भरद्वाजाय संभ्रियमाणहविर्लक्षणान्नाय यज- मानाय ।” इति तद्भाष्ये सायनाचार्य्यः )
__________________________________________
माता भस्त्रा पितुः पुत्रो येन जातः स एव सः।। ४९.१२ ।।
भर स्वपुत्रं दुष्यन्त! मावमंस्थाः शकुन्तलाम्।
रेतोधां नयते पुत्रः परेतं यमसादनात्।।
त्वं चास्य धाता गर्भस्य सत्यमाह शकुन्तला।। ४९.१३ ।
माता भस्त्रा पितुः पुत्रो येन जातः स एव सः ।। ११ ।।
भरस्व पुत्रं दुष्यन्त मावमंस्थाः शकुन्तलाम् ।
रेतोधाः पुत्र उन्नयति नरदेव यमक्षयात् ।। १२ ।।
त्वं चास्य धाता गर्भस्य सत्यमाह शकुन्तला ।
भरतस्य विनष्टेषु तनयेषु महीपतेः ।। १३ ।।
मातॄणां तात कोपेन मया ते कथितं पुरा ।
बृहस्पतेराङ्गिरसः पुत्रो राजन् महामुनिः ।
संक्रामितो भरद्वाजो मरुद्भिः क्रतुभिर्विभुः ।।१४ ।।
अत्रैवोदाहरन्तीमं भरद्वाजस्य धीमतः ।
धर्मसंक्रमणं चापि मरुद्भिर्भरताय वै ।। १५ ।।
अयाजयद् भरद्वाजो मरुद्भिः क्रतुभिर्हि तम् ।
पूर्वं तु वितथे तस्य कृते वै पुत्रजन्मनि ।। १६ ।।
ततोऽथ वितथो नाम भरद्वाजसुतोऽभवत् ।
ततोऽथ वितथे जाते भरतस्तु दिवं ययौ ।। १७ ।।
वितथं चाभिषिच्याथ भरद्वाजो वनं ययौ ।
स राजा वितथः पुत्राञ्जनयामास पञ्च वै ।१८ ।।
सुहोत्रं च सुहोतारं गयं गर्गं तथैव च ।
कपिलं च महात्मानं सुहोत्रस्य सुतद्वयम् ।। १९ ।।
काशिकश्च महासत्त्वस्तथा गृत्समतिर्नृपः ।
तथा गृत्समतेः पुत्रा ब्राह्मणाः क्षत्रिया विशः ।। 1.32.२० ।।
भारद्वाज (भारद्वाज):—बृहस्पति ने अपने भाई (उतथ्य) की पत्नी मन्मता को बलपूर्वक गर्भवती कर दिया। क्योंकि बृहस्पति और ममता दोनों उसकी देखभाल नहीं करना चाहते थे (उसके अवैध जन्म के कारण), बच्चे को भारद्वाज कहा गया था। अंततः देवताओं ने उसे भरत (दुष्मंत का पुत्र) को दे दिया क्योंकि वह एक पुत्र की इच्छा रखता था। ( भागवत पुराण 9.20.36 देखें
भारद्वाज को मरुत देवताओं ने जन्म दिया था, उन्हें वितथ के नाम से जाना जाता था। उनका एक पुत्र था जिसका नाम मन्यु रखा गया।
( भागवत पुराण 9.21.1 देखें )
स्रोत : Archive.org: पौराणिक विश्वकोश1) भारद्वाज (भारद्वाज)।—दीर्घतमस का दूसरा नाम। ****) दीर्घतमस को भारद्वाज भी कहा जाता है। लेकिन पौराणिक ख्याति के भारद्वाज दीर्घतमस नहीं हैं। दीर्घतमस वह पुत्र है जिसे बृहस्पति ने अपने भाई की पत्नी ममता से अवैध रूप से प्राप्त किया था।
तब ममता के गर्भ में एक और वैध बच्चा था। यह जानकर देवताओं ने उन्हें 'भारद्वाज' कहा जिसका अर्थ है 'दो का खामियाजा भुगतना' और इसलिए बृहस्पति के पुत्र का नाम भारद्वाज भी पड़ गया। इस पुत्र का वास्तविक नाम दीर्घतमस या वितथ था। दीर्घतमस भारद्वाज नहीं हैं जो द्रोण के पिता थे।
प्रसिद्ध भारद्वाज अत्रि के पुत्र थे। दीर्घतमस या वितथ, दुष्यन्त के पुत्र भरत के दत्तक पुत्र थे। (भागवत और कम्पारामायण। विवरण के लिए भारत I और दीर्घतमस के अंतर्गत देखें। ( वेट्टम मणि द्वारा लिखित पौराणिक विश्वकोश से भारद्वाज की कहानी पर पूरा लेख देखें )
प्रसिद्ध ऋषि। पुरु वंश के राजा भरत के कोई पुत्र नहीं था और जब वह दुःख में अपने दिन बिता रहे थे तो मरुत्त ने भरत को यह भारद्वाज पुत्र के रूप में दिया। भारद्वाज जो जन्म से ब्राह्मण थे, बाद में क्षत्रिय बन गये।
(मत्स्य पुराण 49. 27-39 एवं वायु पुराण 99. 152158)।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें