- महेश्वर उवाच- शृणु नारद! वक्ष्यामि वैष्णवानां च लक्षणम् यच्छ्रुत्वा मुच्यते लोको ब्रह्महत्यादिपातकात् ।१।
- तेषां वै लक्षणं यादृक्स्वरूपं यादृशं भवेत् ।तादृशंमुनिशार्दूलशृणु त्वं वच्मिसाम्प्रतम्।२
- विष्णोरयं यतो ह्यासीत्तस्माद्वैष्णव उच्यते। सर्वेषां चैव वर्णानां वैष्णवःश्रेष्ठ उच्यते ।३।
महेश्वर- उवाच ! हे नारद , सुनो, मैं तुम्हें वैष्णव का लक्षण बतलाता हूँ। जिन्हें सुनने से लोग ब्रह्म- हत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाते हैं । १।
- वैष्णवों के जैसे लक्षण और स्वरूप होते हैं। उसे मैं बतला रहा हूँ। हे मुनि श्रेष्ठ ! उसे तुम सुनो ।२।
- चूँकि वह विष्णु से उत्पन्न होने से ही वैष्णव कहलाता है; और सभी वर्णों मे वैष्णव श्रेष्ठ कहे जाता है।३। "पद्म पुराण उत्तराखण्ड अध्याय(६८ श्लोक संख्या १-२-३।
- येषां पुण्यतमाहारस्तेषां वंशे तु वैष्णवः।क्षमा दया तपः सत्यं येषां वै तिष्ठति द्विज ४।
- तेषां दर्शनमात्रेण पापं नश्यति तूलवत् ।हिंसाधर्माद्विनिर्मुक्ता यस्य विष्णौ स्थिता मतिः।५।
- शंखचक्रगदापद्मं नित्यं वै धारयेत्तु यः। तुलसीकाष्ठजां मालां कंठे वै धारयेद्यतः ।६।
- तिलकानि द्वादशधा नित्यं वै धारयेद्बुधः।धर्माधर्मं तु जानाति यः स वैष्णव उच्यते ७।
- वेदशास्त्ररतो नित्यं नित्यं वै यज्ञयाजकः। उत्सवांश्च चतुर्विंशत्कुर्वंति च पुनः पुनः।८।
- तेषां कुलं धन्यतमं तेषां वै यश उच्यते ते। वै लोके धन्यतमाजाता भागवता नराः।९ ।
- एक एव कुले यस्य जातो भागवतो नरः ।तत्कुलं तारितं तेन भूयोभूयश्च वाडव ।१०।_________________
श्रीपाद्मे महापुराणे पंचपंचाशत्साहस्र्यां संहितायामुत्तरखंडे उमापतिनारदसंवादे वैष्णवमाहात्म्यंनाम अष्टषष्टितमोऽध्यायः ।६८।
- अनुवाद:-महेश्वर ने कहा:- हे नारद सुनो ! मैं वैष्णव के लक्षण बताता हूँ। उसके सुनने मात्र से मनुष्य ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है ।१।
- वैष्णवों के जैसे लक्षण और स्वरूप होते हैं। उसे मैं बतला रहा हूँ। हे मुनि श्रेष्ठ उसे तुम सुनो!।२।
- चूँकि वह विष्णु से उत्पन्न होता है। इस लिए वह वैष्णव हुआ।
- ("विष्णोरयं यतो हि आसीत् तस्मात् वैष्णव उच्यते सर्वेषां चैव वर्णानां वैष्णव श्रेष्ठ: उच्यते ।३।
- जिनका आहार ( भोजन )( दूध दधि और मट्ठा घृत आदि से युक्त होने से) अत्यन्त पवित्र होता है। उन्हीं के वंश में वैष्णव उत्पन्न होते हैं। वैष्णव में क्षमा, दया ,तप एवं सत्य ये गुण रहते हैं।४।
- उन वैष्णवों के दर्शन मात्र से पाप रुई के समान नष्ट हो जाता है। जो हिंसा और अधर्म से रहित तथा भगवान विष्णु में मन लगाता रहता है।५।
- जो सदा संख "गदा" चक्र एवं पद्म को धारण किए रहता है गले में तुलसी काष्ठ धारण करता है।६।
- प्रत्येक दिन द्वादश (बारह) तिलक लगाता है। वह लक्षण से वैष्णव कहलाता है।७।
- जो सदा वेदशास्त्र में लगा रहता है। और सदा यज्ञ करता है। बार- बार चौबीस उत्सवों को करता है।८।
- ऐसे वैष्णव का वंश अत्यन्त धन्य है। उन्ही का यश बढ़ता है। जो भागवत हो जाते हैं। वे मनुष्य अत्यंत धन्य हैं।९।
- जिसके वंश में एक भी भागवत हो जाता है हे नारद ! उस वंश को बार- बार तार देता है।१०।
- सन्दर्भ:-(पद्मपुराण खण्ड ६ (उत्तरखण्डः) अध्यायः -(६८)
- विशेष:- विष्णोरस्य रोमकूपैर्भत्वातस्मादणण्सन्तति वाची - विष्णु+अण् = वैष्णव= विष्णु के रोम रूप से उत्पन्न होकर (अण्) सन्तान वाची प्रत्यय से विष्णु से सम्बन्धित- जन वैष्णव होता हैं।
- स्पष्टीकरण- विष्णु के रोमकूपों से उत्पन्न वैष्णव- अण्- प्रत्यय सन्तान वाची भी है विष्णु पद में तद्धित अण् प्रत्यय करने पर ही वैष्णव शब्द निष्पन्न होता है। इसलिए गोप जन्म से ही वैष्णव वर्ण के हैं। वैष्णव वर्ण की एक स्वतन्त्र जाति आभीर है। पद्म पुराण उत्तराखण्ड के अतिरिक्त इसका संकेत ब्रह्मवैवर्त पुराण में भी है । प्रसंगानुसार वर्णित किया गया है।
श्री पद्ममहापुराण उत्तराखण्ड महेश्वरनारदसंवाद में वैष्णव माहात्म्य नामक अड़सठवाँ (68)अध्याय-
ब्रह्मवैवर्त पुराण एकादश -अध्याय श्लोक संख्या (४१)___________________ब्रह्मक्षत्रियविट्शूद्राश्चतस्रो जातयो यथा।स्वतन्त्रा जातिरेका च विश्वेष्वस्मिन्वैष्णवाभिधा ।४३।अनुवाद:-ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शूद्र जो चार जातियाँ जैसे इस विश्व में हैं और वैष्णव नाम कि एक स्वतन्त्र जाति भी है इस संसार में है ।४३।उपर्युक्त श्लोक में पञ्चम जाति के रूप में भागवत धर्म के प्रर्वतक आभीर / यादव लोगो को स्वीकार किया गया है ।क्योंकि वैष्णव शब्द भागवत शब्द का ही पर्याय है।
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