"कृष्णोत्पत्तिवर्णनम्।
सूत उवाच।
ऐक्ष्वाकी सुषुवे शूरं ख्यातमद्भुत मीढुषम्।
पौरुषाज्जज्ञिरे शूरात् भोजायां पुत्रकादश।४६.१।
वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः।
देवमार्गस्ततो जज्ञे ततो देवश्रवाः पुनः। ४६.२ ।।
अनाधृष्टिः शिनिश्चैव नन्दश्चैव ससृञ्जयः।
श्यामः शमीकः संयूपः पञ्च चास्य वराङ्गनाः। ४६.३ ।
श्रुतकीर्तिः पृथा चैव श्रुतदेवी श्रुतश्रवाः।
राजाधिदेवी च तथा पञ्चैता वीरमातरः।४६.४।
कृतस्य तु श्रुता देवी सुग्रहं सुषुवे सुतम्।
कैकेय्यां श्रुतकीर्त्यान्तु जज्ञे सोऽनुव्रतो नृपः। ४६.५।
श्रुत श्रवसि चैद्यस्य सुनीथः समपद्यत।
वार्षिको धर्म्मशारीरः स बभूवारिमर्दनः।। ४६.६ ।।
अथ सख्येन वृद्धेऽसौ कुन्तिभोजे सुतां ददौ।
एवं कुन्ती समाख्याता वसुदेवस्वसा पृथा।४६.७।
वसुदेवेन सा दत्ता पाण्डोर्भार्या ह्यनिन्दिता।
पाण्डो रर्थेन सा जज्ञे देवपुत्रान् महारथान्।४६.८।
धर्माद्युधिष्ठिरो जज्ञे वायोर्जज्ञे वृकोदरः।
इन्द्राद्धनञ्जयश्चैव शक्रतुल्य पराक्रमः।। ४६.९ ।।
माद्रवत्यान्तु जनितावश्विभ्यामिति शुश्रुमः।
नकुलः सहेदवश्च रूपशीलगुणान्वितौ।। ४६.१०।।
रोहिणी पौरवी सा तु ख्यातमानकदुन्दुभेः।
लेभे ज्येष्ठसुंतं रामं सारणञ्च सुतं प्रियम्।। ४६.११ ।।
दुर्दमं दमनं सुभ्रु पिण्डारक महाहनू।
चित्राक्ष्यौ द्वे कुमार्य्यौ तु रोहिण्यां जज्ञिरे तदा। ४६.१२।
देवक्यां जज्ञिरे शौरेः सुषेणः कीर्तिमानपि।
उदासी भद्रसेनश्च ऋषिवासस्तथैव च।।
षष्ठो भद्रविदेहश्च कंसः सर्वानघातयत्।४६.१३।
प्रथमाया अमावास्या वार्षिकी तु भविष्यति।
तस्यां जज्ञे महाबाहुः पूर्वकृष्णः प्रजापतिः।। ४६.१४ ।
अनुजात्वभवत् कृष्णात् सुभद्रा भद्रभाषिणी।
देवक्यान्तु महातेजा जज्ञे शूरो महायशाः।। ४६.१५।
सहदेवस्तु ताम्रायां जज्ञे शौरिकुलोद्वहः।
उपासङ्गधरं लेभे तनयं देवरक्षिता।।
एकां कन्याञ्च सुभगां कंसस्तामभ्यघातयत्।। ४६.१६ ।।
विजयं रोचमानञ्च वर्द्धमानन्तु देवलम्।
एते सर्वे महात्मानो ह्युपदेव्याः प्रजज्ञिरे।४६.१७ ।।
अवगाहो महात्मा च वृकदेव्यामजायत।
वृकदेव्यां स्वयं जज्ञे नन्दको नामनामतः।। ४६.१८।
सप्तमं देवकी पुत्रं मदनं सुषुवे नृप।
गवेषणं महाभागं संग्रामेष्वपराजितम्।। ४६.१९।।******
श्रद्धा देव्या विहारे तु वने हि विचरन् पुरा।
वैश्यायामदधात् शौरिः पुत्रं कौशिकमग्रजम्।। ४६.२० ।।
सुतनू रथराजी च शौरेरास्तां परिग्रहौ।
पुण्ङ्रश्च कपिलश्चैव वसुदेवात्मजौ बलौ।४६.२१ ।
जरा नाम निषादोऽभूत् प्रथमः स धनुर्धरः।****
सौभद्रश्च भवश्चैव महासत्वौ बभूवतुः।४६.२२।
देवभाग सुतश्चापि नाम्नाऽसावुद्धवः स्मृतः।
पण्डितं प्रथमं प्राहुर्देवश्रवः समुद्भवम्।४६.२३।
ऐक्ष्वाक्यलभतापत्य आनाधृष्टेर्यशस्विनी।
निर्धूतसत्वं शत्रुघ्नं श्राद्धस्तस्मादजायत।४६.२४।
करूषायानपत्याय कृष्णस्तुष्टः सुतन्ददौ।
सुचन्द्रन्तु महाभागं वीर्यवन्तं महाबलम्।४६.२५।
जाम्बवत्याः सुतावेतौ द्वौ च सत्कृतलक्षणौ।
चारुदेष्णश्च साम्बश्च वीर्यवन्तौ महाबलौ।४६.२६।
तन्तिपालश्च तन्तिश्च नन्दनस्य सुतावुभौ।
शमीकपुत्राश्चत्वारो विक्रान्ताः सुमहाबलाः।।
विराजश्च धनुश्चैव श्याम्यश्च सृञ्जयस्तथा।। ४६.२७ ।।
अनपत्योऽभवच्छ्यामः शमीकस्तु वनं ययौ।
जुगुप्समानो भोजत्वं राजर्षित्वमवाप्तवान्। ४६.२८।
कृष्णस्य जन्माभ्युदयं यः कीर्तयति नित्यशः।
श्रृणोति मानवो नित्यं सर्वपापैः प्रमुच्यते।४६.२९।
(मत्स्य पुराण अध्याय-46)
हिन्दी- अनुवाद:-
वृष्णिवंशका वर्णन
१-सूतजी कहते हैं-ऋषियों! ऐक्ष्वाकी (माद्री) अन्य नाम अश्मिका भी उसने शूर (शूरसेन) नामक एक अद्भुत पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर ईदुष (देवमीढुष) नामसे विख्यात हुआ।
२-पुरुषार्थी शूरके सम्पर्क से भोजा (मारिषा) के गर्भ से दस पुत्रों और पाँच सुन्दरी कन्याओं की उत्पत्ति हुई। पुत्रों में सर्वप्रथम महाबाहु वसुदेव उत्पन्न हुए, जिनकी आनकदुन्दुभि नामसे भी प्रसिद्धि हुई। उसके बाद देवभाग- ( देवमार्ग) का जन्म हुआ। तत्पश्चात् पुनः देवश्रवा,
३-अनाधृष्टि, शिनि, नन्द, सृञ्जय, श्याम, शमीक और संयूप आदि पैदा हुए। कन्याओं के नाम हैं- श्रुतकीर्ति, पृथा, श्रुतादेवी, श्रुतश्रवा और राजाधिदेवी। ये पाँचों शूरवीर पुत्रों की माताएँ हुईं।
४-कृत की पत्नी श्रुतदेवी ने सुग्रीव नामक पुत्रको जन्म दिया। केकय देशकी राजमहिषी श्रुतकीर्तिके गर्भसे राजा अनुव्रत ने जन्म लिया। @@@
५-चेदि-नरेशकी पत्नी श्रुतश्रवाके गर्भसे एक सुनीथ नामक पुत्र उत्पन्न हुआ, जो अनेकों प्रकारके धर्मोका आचरण करनेवाला एवं शत्रुओंका विनाशक था।
६-तत्पश्चात् शूरने अपनी पृथा नामकी कन्याको मित्रतावश वृद्ध राजा कुन्तिभोजको पुत्री रूप में दे दिया।
७-इसी कारण वसुदेव की बहन यह पृथा कुन्ती नामसे विख्यात हुई।
८-उसे वसुदेव ने पाण्डु को (पत्नीरूप में) प्रदान किया था।
९-उस अनिन्द्यसुन्दरी पाण्डु-पत्नी कुन्तीने पाण्डुकी वंशवृद्धिके लिये (पतिकी आज्ञासे) महारथी देवपुत्रों को जन्म दिया था।
१०-इधर आनकदुन्दुभि (वसुदेव) के संयोग से रोहिणी (उनकी चौबीस पत्रियों में प्रथम ) ने विश्वविख्यात ज्येष्ठ पुत्र राम ( बलराम) को, तत्पश्चात् प्रिय पुत्र सारण, दुर्दम, दमन, सुभु, पिण्डारक और महाहनु वामक सात पुत्रों को उत्पन्न किया।
११-(उनकी दूसरी पत्नी पौरवी के भी भद्र, सुभदादि पुत्र हुए।) पैरवी रोहिणी की बहिन थी।
१२-उसी समय रोहिणो के गर्भसे चित्रा और अक्षी नामवाली (अथवा सुन्दर नेत्रोंवाली) दो कन्याएँ और भी पैदा हुई।
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१३-वसुदेवजी के सम्पर्क से देवकी के गर्भ से सुषेण, कीर्तिमान्, उदासी और, भद्रसेन, ऋषिवास और छठा भद्रविदेह नामक पुत्र उत्पन्न हुए थे, जिन्हें कंस ने मार डाला।
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१४-फिर उसी समय (देवकी के गर्भ से) आयुष्मान् | लोकनाथ महाबाहु प्रजापति श्रीकृष्ण उत्पन्न हुए।
१५-श्रीकृष्णके बाद उनकी छोटी बहन शुभभाषिणी सुभद्रा पैदा हुई।
तदनन्तर देवकी के गर्भ से महान् तेजस्वी एवं महायशस्वी शूरी नामक पुत्र उत्पन्न हुआ।
विशेष:-
(भागवत पुराण में भी सुभद्रा देवकी की पुत्री है। परन्तु महाभारत और हरिवंश पुराण में सुभद्रा रोहिणी क पुत्री है।
१६-वसुदेव से ताम्रा के गर्भसे शौरिकुल का उद्वहन करने वाला सहदेव नामक पुत्र पैदा हुआ। देवरक्षिता ने उपासङ्गधर नामक पुत्र को और एक सुन्दरी कन्या को, उत्पन्न किया जिसे कंस ने मार डाला,
१७-विजय, रोचमान, वर्धमान और देवल- ये सभी महान् आत्मबलसे सम्पन्न पुत्र उपदेवी के गर्भ से पैदा हुए थे।
१८-महात्मा अवगाह वृकदेवी के गर्भसे उत्पन्न हुए। इसी वृकदेवी के गर्भसे नन्दन नामक एक और पुत्र पैदा हुआ था॥
१८-राजन्! देवकी ने अपने सातवें पुत्र मदन को तथा संग्राम में अजेय एवं महान् भाग्यशाली और गवेषण को जन्म दिया था।
इससे पूर्व श्रद्धादेवीके साथ विहारके अवसरपर वनमें विचरण करते हुए शूरनन्दन वसुदेवने एक वैश्य-कन्याके उदरमें गर्भाधान किया, जिससे कौशिक नामक ज्येष्ठ पुत्र उत्पन्न हुआ।
वसुदेवजी की (नवीं) सुतनु और (दसवीं) रथराजी नामकी दो पत्नियाँ और थीं।
उनके गर्भसे वसुदेवके पुण्ड्र और कपिल नामक दो पुत्र तथा महान् बल-पराक्रमसे सम्पन्न सौभद्र और भव नामक दो पुत्र और उत्पन्न हुए थे।
उनमें जो ज्येष्ठ था,वह जरा नामक निषाद हुआ, जो महान् धनुर्धर था । देवभागका पुत्र उद्धव नामसे प्रसिद्ध था। देवश्रवाके प्रथम पुत्रको पण्डित नामसे पुकारा जाता था।
यशस्विनी ऐक्ष्वाकीने अनाधृष्टिके संयोगसे शत्रुसंहारक निधूतसत्त्व | नामक पुत्रको प्राप्त किया। निधूतसत्त्वसे श्राद्धकी उत्पत्ति हुई।
संतानहीन करूषपर प्रसन्न होकर श्रीकृष्णने उसे एक सुचन्द्र नामक पुत्र प्रदान किया था, जो महान् भाग्यशाली, पराक्रमी और महाबली था।
जाम्बवतीके चारुदेष्ण और साम्ब ये दोनों पुत्र उत्तम लक्षणोंसे युक्त, पराक्रमी और महान् बलसम्पन्न थे।
नन्दनके तन्तिपाल और तन्तिनामक दो पुत्र हुए। शमीकके चारों पुत्र विराज, धनु, श्याम और सृज्ञ्जय अत्यन्त पराक्रमी और महाबली थे।
इनमें श्याम तो संतानहीन हो गया और शमीक भोजवंशके आचार-व्यवहारकी निन्दा करता हुआ वनमें चला गया, वहाँ आराधना करके उसने राजर्षिकी पदवी प्राप्त की।
जो मनुष्य भगवान् श्रीकृष्णके इस जन्म एवं अभ्युदयका नित्य कीर्तन (पाठ) अथवा श्रवण करता है, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है । ll 19 – 29 ।
मत्स्यपुराण, अध्याय- ।46l-
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