शुक्रवार, 26 जनवरी 2024

द्वितीय भागम्

१८-महात्मा अवगाह वृकदेवी के गर्भसे उत्पन्न हुए। इसी वृकदेवी के गर्भसे नन्दन नामक एक और पुत्र पैदा हुआ था॥

१८-राजन्! देवकी ने अपने सातवें पुत्र मदन को तथा संग्राम में अजेय एवं महान् भाग्यशाली और गवेषण को जन्म दिया था।

इससे पूर्व श्रद्धादेवीके साथ विहारके अवसरपर वनमें विचरण करते हुए शूरनन्दन वसुदेवने एक वैश्य-कन्याके उदरमें गर्भाधान किया, जिससे कौशिक नामक ज्येष्ठ पुत्र उत्पन्न हुआ। 

वसुदेवजी की (नवीं) सुतनु और (दसवीं) रथराजी नामकी दो पत्नियाँ और थीं। 

उनके गर्भसे वसुदेवके पुण्ड्र और कपिल नामक दो पुत्र तथा महान् बल-पराक्रमसे सम्पन्न सौभद्र और भव नामक दो पुत्र और उत्पन्न हुए थे। 

उनमें जो ज्येष्ठ था,वह जरा नामक निषाद हुआ, जो महान् धनुर्धर था । देवभागका पुत्र उद्धव नामसे प्रसिद्ध था। देवश्रवाके प्रथम पुत्रको पण्डित नामसे पुकारा जाता था।

 यशस्विनी ऐक्ष्वाकीने अनाधृष्टिके संयोगसे शत्रुसंहारक निधूतसत्त्व | नामक पुत्रको प्राप्त किया। निधूतसत्त्वसे श्राद्धकी उत्पत्ति हुई। 

संतानहीन करूषपर प्रसन्न होकर श्रीकृष्णने उसे एक सुचन्द्र नामक पुत्र प्रदान किया था, जो महान् भाग्यशाली, पराक्रमी और महाबली था।

जाम्बवतीके चारुदेष्ण और साम्ब ये दोनों पुत्र उत्तम लक्षणोंसे युक्त,  पराक्रमी और महान् बलसम्पन्न थे।

नन्दनके तन्तिपाल और तन्तिनामक दो पुत्र हुए। शमीकके चारों पुत्र विराज, धनु, श्याम और सृज्ञ्जय अत्यन्त पराक्रमी और महाबली थे। 

इनमें श्याम तो संतानहीन हो गया और शमीक भोजवंशके आचार-व्यवहारकी निन्दा करता हुआ वनमें चला गया, वहाँ आराधना करके उसने राजर्षिकी पदवी प्राप्त की। 

जो मनुष्य भगवान् श्रीकृष्णके इस जन्म एवं अभ्युदयका नित्य कीर्तन (पाठ) अथवा श्रवण करता है, वह समस्त पापोंसे मुक्त हो जाता है । ll 19 – 29 ।
  
 मत्स्यपुराण, अध्याय- (46)-

कुछ पुरोहितों ने अपने पूर्वदुराग्रह पूर्वक गोपों को कहीं वैश्य' तो कहीं शूद्र' बनाने की कोशिश की है। समस्त यादव अपनी गोपालन वृत्ति के द्वारा गोप थे   ।

आचाराधेन तत्साम्याद्- आभीराश्च स्मृता इमे।
आभीरा: शूरजातीया गोमहिषादि वृत्तय: ।।
घोषादि शब्द पर्याया: पूर्वतो उच्चतां गता: ।।९।।
___________________________________________
भाषानुवाद–आचरण में आभीर भी वैश्यों के समान जाने जाते हैं । ये शूर जातीया होते हैं ।
तथा गाय ' और भैस के पालन द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हैं ।
इन्हें घोष भी कहा जाता है ये पूर्व कथित वैश्यों से  उच्च माने जाते हैं ।९।।
_________________________________    
किञ्चिद् अभीरतो न्यूनाश्च छागादि पशुवृत्तय:।
गोष्ठप्रान्त कृतावासा: पुष्टांगा गुर्जरा: महाबला: स्मृता:।१०।

भाषानुवाद – अहीरों से कुछ हीन बकरी आदि पशुओं को पालन करने वाले  तथा गोष्ठ की सीमा पर वास करने वाले गोप ही गुर्जर कहलाते हैं
ये भी प्राय हृष्ट-पुष्टांग वाले महाबली होते हैं ।१०।

वास्तव में उपर्युक्त रूप में वर्णित तथ्य की अहीर और गुर्जरों के यदुवंश से उत्पन्न होकर भी वैश्य और शूर वीर होने के हैं ।

अब जो वैश्य होगा वह शूरवीर नहीं हो सकता  और जो शूरवीर है वह वैश्य नहीं हो सकता है।
ब्राह्मण वर्ण- व्यवस्था विधान करती है।

मार्कण्डेय पुराण में एक स्थान अध्याय 130/ के श्लोक 30 पर शास्त्रीय विधानों का निर्देशन करते हुए ।
वर्णित है अर्थात् ( परिव्राट् मुनि ने राजा दिष्ट से कहा कि ) हे राजन् आपका पुत्र नाभाग धर्म से पतित होकर वैश्य हो गया है; और वैश्य के साथ आपका युद्ध करना नीति के विरुद्ध अनुचित ही है ।।30।।

"तवत्पुत्रस् महाभागविधर्मोऽयं महातमन्।।
तवापि वैश्येन सह न युद्धं धर्म वन्नृप ।30।

(मार्कण्डेय पुराण अध्याय-130/30)

उपर्युक्त श्लोक जो  मार्कण्डेय पुराण से उद्धृत है उसमें स्पष्ट विधान है कि वैश्य युद्ध नहीं कर सकता अथवा वैश्य के साथ युद्ध नहीं किया जा सकता है

तो फिर यह भी विचारणीय है कि गोप जो नारायणी सेना के योद्धा थे  वे वैश्य कहाँ हुए ?
क्योंकि वे तो नित्य युद्ध करते थे।

यद्यपि गोपालन और कृषि करने से रूढ़िवादी पुरोहितों ने इन्हें वैश्य वर्ण में समाहित करने की चेष्टा की जो कि उनका पूर्व दुराग्रह ही है ।
गोपालन करने से ये  से ही वैश्य होने के तथ्य
शास्त्र सम्मत व युक्ति- युक्त नहीं  हो सकते हैं । 

क्योंकि गाय तो राजा, महाराजा और ऋषि मुनि भी पालते रहे हैं। क्या वे वैश्य हो गये ?

परं च ते यादवा एव "÷  परन्तु  ये सभी गोप  यादव ही हैं ! ऐसा भी इस श्रीधरी टीका में स्पष्ट ही है 

_____________________________

पर्जन्य की पत्नी वरियसी और देवमीढ की रानी का नाम" गुणवती " था |
 हिन्दी अनुवाद :● शूर की विमाता (सौतेली माँ) गुणवती के पुत्र पर्जन्य शूर के पिता की सन्तान होने से भाई ही हैं; जो गोपालन के कारण वैश्य वृत्ति वाहक हुए अथवा वैश्य कन्या से उत्पन्न होने के कारण 
यद्यपि दौनों तर्क पूर्वदुराग्रह पूर्ण और प्रक्षिप्त ही हैं । क्यों कि माता में भी पितृ बीज की ही प्रधानता होती है जैसे खेत में बीज के आधार पर फसल के स्वरूप का निर्धारण होता है।
 --दूसरा दुराग्रह भी बहुत दुर्बल है कि गाय पालने से ही यादव गोप के रूप में वैश्य हो गये परन्तु विचारणीय है कि गाय विश्व की माता है जिसका पालन करना पुण्य पूर्ण कार्य है ।

जिसका मल 'मूत्र 'दुग्ध घृत और तक्र जिसे पञ्चगव्य कहते हैं का सेवन करके ब्राह्मण भी पाप मुक्त और नीरोगी होने कामना करते थे।

"गावो विश्वस्य मातर: " महाभारत की यह सूक्ति वेदों का भावानुवाद है जिसका अर्थ है कि गाय विश्व की माता है !

और माता का पालन करना किस प्रकार तुच्छ या वैश्य वृत्ति का कारण हो सकता है ...


और माता का पालन करना किस प्रकार तुच्छ या वैश्य वृत्ति का कारण हो सकता है ...
____________________________________

 श्रीमद्देवीभागवते महापुराणेऽष्टादशसाहस्र्यां संहितायां चतुर्थस्कन्धे कृष्णावतारकथोपक्रमवर्णनं नाम विंशोऽध्यायः ।२०।  में देखें

शूरसेनाभिधः शूरस्तत्राभून्मेदिनीपतिः ।
माथुराञ्छूरसेनांश्च बुभुजे विषयान्नृप ॥ ५९ ॥

तत्रोत्पन्नः कश्यपांशः शापाच्च वरुणस्य वै ।
वसुदेवोऽतिविख्यातः शूरसेनसुतस्तदा ॥६०॥

वैश्यवृत्तिरतः सोऽभून्मृते पितरि माधवः ।
उग्रसेनो बभूवाथ कंसस्तस्यात्मजो महान् ॥ ६१ ॥
(देवीभागवत पुराण )

तब वहाँ के शूर पराक्रमी राजा  शूरसेन नाम से हुए । और वहां की सारी संपत्ति भोगने का शुभ अवसर उन्हें प्राप्त हुआ  !

तब वहाँ वरुण के शाप के कारण कश्यप अपने अंश रूप में शूरसेन के पुत्र वसुदेव के रूप में गोप बनकर उत्पन्न हुए और कालान्तरण में पिता के स्वर्गवासी हो जाने पर वासुदेव ने (वेैश्य-वृति- कृषि गोपालन आदि) से अपना जीवन निर्वाह करने लगे ।

_____ 
गर्ग सहिता  में वर्णन है कि

त्वत्समं वैभवं नास्ति नन्दराजगृहे क्वचित् ।
कृषीवलो नन्दराजो गोपतिर्दीनमानसः॥७॥

 सन्दर्भ:-  गर्ग संहिता गिरिराजखण्ड अध्याय (६)

तुम्हारे सामान वैभव नन्द राज के घर में कहीं नहीं है  नन्द राज तो किसान गोष्ठों के अधि पति और दीन हृदय वाले हैं ।७।

                 ( श्रीभगवानुवाच ) 
कृषीवला वयं गोपाः सर्वबीजप्ररोहकाः ।
क्षेत्रे मुक्ताप्रबीजानि विकीर्णीकृतवाहनम्॥ २६॥

गर्गसंहिता गिरिराज खण्ड अध्याय(६)

__________
आर्य शब्द कृषक और गो पालक अर्थ में सदी य
से रूढ़ है ।
संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है— अर् धातु के तीन अर्थ सर्व मान्य संस्कृत धातु पाठ में उल्लिखित हैं।
 १–गमन करना (To go  २– मारना to kill  ३– हल (अरम्) चलाना …. Harrow मध्य इंग्लिश—रूप Harwe कृषि कार्य करना ।
_______________________________
प्राचीन विश्व में सुसंगठित रूप से कृषि कार्य करने वाले प्रथम मानव आर्य  या आयर चरावाहे ही थे । 
इस तथ्य के प्रबल प्रमाण भी हमारे पास हैं ! 
पाणिनि तथा इनसे भी पूर्व  कार्त्स्न्यायन धातुपाठ में "ऋृ" (अर्) धातु कृषिकर्मे गतौ हिंसायाम् च.. के रूप में परस्मैपदीय रूप —-ऋणोति अरोति वा अन्यत्र ऋृ गतौ धातु पाठ .३/१६ प० इयर्ति -(जाता है) उद्धृत है।

वास्तव में संस्कृत की अर् धातु का तादात्म्य. 
identity. यूरोप की सांस्कृतिक भाषा लैटिन की क्रिया -रूप इर्रेयर Errare =to go से प्रस्तावित है । 
जर्मन भाषा में यह शब्द आइरे irre =to go के रूप में है पुरानी अंग्रेजी में जिसका प्रचलित रूप एर (Err) है …….इसी अर् धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशः Araval तथा Aravalis हैं । 
ire- मारना क्रोध करना आदि हैं ।


_________________________


कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें