रविवार, 7 जनवरी 2024

चन्द्रमा "बुध" इला 'के प्रक्षेप-कथानक

चन्द्रमा विराट् पुरुष विष्णु के मन से उत्पन्न है अत: चन्द्रा़मा भी वैष्णव है। गोप जो विष्णु के शरीर के रोमकूपों से उत्पन्‍न हैं। वह तो वैष्णव हैं ही  रही।
 नीचे पुरुष सूक्त से दो ऋचाऐं उद्धृत हैं। जो चन्द्रमा की उत्पत्ति का निर्देशन करती हैं।
"चन्द्रमा मनसो जातश्चक्षोः सूर्यो अजायत।
मुखादिन्द्रश्चाग्निश्च प्राणाद्वायुरजायत ॥१३॥
"नाभ्या आसीदन्तरिक्षं शीर्ष्णो द्यौः समवर्तत ।
पद्भ्यां भूमिर्दिशः श्रोत्रात्तथा लोकाँ अकल्पयन्॥१४॥ (ऋग्वेद मण्डल १० सूक्त ९० ऋचा १३)
श्रीमद्भगवद्गीता में भी विष्णु के विराट रूप में चन्द्रमा उनसे उत्पन्न रूप है। 

अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य
मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रम्
स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्।।11.19।।
 

"अनुवाद - 

आपको मैं आदि, मध्य और अन्तसे रहित, अनन्त प्रभावशाली, अनन्त भुजाओंवाले, चन्द्र और सूर्यरूप नेत्रोवाले, प्रज्वलित अग्निके समान मुखोंवाले और अपने तेजसे संसारको संतप्त करते हुए देख रहा हूँ।




सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥१॥
पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥२॥
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥३॥
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः ।
ततो विष्वङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि ॥४॥
तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥५॥
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥६॥


ऋग्वेदः सूक्तं १०.९०-५-६-७

तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥५॥

सायण-भाष्य-

विष्वङ् व्यक्रामदिति यदुक्तं तदेवात्र प्रपञ्च्यते । “तस्मात् आदिपुरुषात् “विराट् ब्रह्माण्डदेहः “अजायत उत्पन्नः । विविधानि राजन्ते वस्तून्यत्रेति विराट् । “विराजोऽधि विराड्देहस्योपरि तमेव देहमधिकरणं कृत्वा “पुरुषः तद्देहाभिमानी कश्चित् पुमान् अजायत । सोऽयं सर्ववेदान्तवेद्यः परमात्मा स्वयमेव स्वकीयया मायया विराड्देहं ब्रह्माण्डरूपं सृष्ट्वा तत्र जीवरूपेण प्रविश्य ब्रह्माण्डाभिमानी देवतात्मा जीवोऽभवत् । एतच्चाथर्वणिका उत्तरतापनीये विस्पष्टमामनन्ति---- स वा एष भूतानीन्द्रियाणि विराजं देवताः कोशांश्च सृष्ट्वा प्रविश्यामूढो मूढ इव व्यवहरन्नास्ते माययैव' (नृ. ता. २. १, ९) इति । “स “जातः विराट् पुरुषः “अत्यरिच्यत अतिरिक्तोऽभूत् । विराड्व्यतिरिक्तो देवतिर्यङ्मनुष्यादिरूपोऽभूत् । “पश्चात् देवादिजीवभावादूर्ध्वं “भूमिं ससर्जेति शेषः । “अथो भूमिसृष्टेरनन्तरं तेषां जीवानां “पुरः ससर्ज । पूर्यन्ते सप्तभिर्धातुभिरिति पुरः शरीराणि ॥॥१७॥


यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥६॥

सायणभाष्य-

यत् यदा पूर्वोक्तक्रमेणैव शरीरेषुत्पन्नेषु सत्सु "देवाः उत्तरसृष्टिसिद्धयर्थं बाह्यद्रव्यस्यानुत्पन्नत्वेन हविरन्तरसंभवात् पुरुषस्वरूपमेव मनसा हविष्ट्वेन संकल्प्य “पुरुषेण पुरुषाख्येन “हविषा मानसं यज्ञम् “अतन्वत अन्वतिष्ठन् तदानीम् “अस्य यज्ञस्य “वसन्तः वसन्तर्तुरेव “आज्यम् “आसीत् अभूत् । तमेवाज्यत्वेन संकल्पितवन्त इत्यर्थः । एवं “ग्रीष्म “इध्मः आसीत्। तमेवेध्मत्वेन संकल्पितवन्त इत्यर्थः। तथा “शरद्धविः आसीत् । तामेव पुरोडाशादिहविष्ट्वेन संकल्पितवन्त इत्यर्थः । पूर्वं पुरुषस्य हविःसामान्यरूपत्वेन संकल्पः । अनन्तरं वसन्तादीनामाज्यादिविशेषरूपत्वेन संकल्प इति द्रष्टव्यम् ॥


तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रतः ।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥७॥

सायणभाष्य-

विष्वङ् व्यक्रामदिति यदुक्तं तदेवात्र प्रपञ्च्यते । “तस्मात् आदिपुरुषात् “विराट् ब्रह्माण्डदेहः “अजायत उत्पन्नः । विविधानि राजन्ते वस्तून्यत्रेति विराट् । “विराजोऽधि विराड्देहस्योपरि तमेव देहमधिकरणं कृत्वा “पुरुषः तद्देहाभिमानी कश्चित् पुमान् अजायत । सोऽयं सर्ववेदान्तवेद्यः परमात्मा स्वयमेव स्वकीयया मायया विराड्देहं ब्रह्माण्डरूपं सृष्ट्वा तत्र जीवरूपेण प्रविश्य ब्रह्माण्डाभिमानी देवतात्मा जीवोऽभवत् । एतच्चाथर्वणिका उत्तरतापनीये विस्पष्टमामनन्ति---- स वा एष भूतानीन्द्रियाणि विराजं देवताः कोशांश्च सृष्ट्वा प्रविश्यामूढो मूढ इव व्यवहरन्नास्ते माययैव' (नृ. ता. २. १, ९) इति । “स “जातः विराट् पुरुषः “अत्यरिच्यत अतिरिक्तोऽभूत् । विराड्व्यतिरिक्तो देवतिर्यङ्मनुष्यादिरूपोऽभूत् । “पश्चात् देवादिजीवभावादूर्ध्वं “भूमिं ससर्जेति शेषः । “अथो भूमिसृष्टेरनन्तरं तेषां जीवानां “पुरः ससर्ज । पूर्यन्ते सप्तभिर्धातुभिरिति पुरः शरीराणि ॥॥१७॥



बुध की चन्द्रमा से उत्पत्ति भी पूर्णत: काल्पनिक थ्योरी पर आधारित है।

चंद्रमा के गुरु थे देवगुरु बृहस्पति। बृहस्पति की पत्नी तारा चंद्रमा की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी।

 तदोपरांत वह चंद्रमा के संग सहवास भी कर गई एवं बृहस्पति को छोड़ ही दिया। 

बृहस्पति के वापस बुलाने पर उसने वापस आने से मना कर दिया, जिससे बृहस्पति क्रोधित हो उठे तब बृहस्पति एवं उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध आरंभ हो गया।

 इस युद्ध में असुर गुरु शुक्राचार्य चंद्रमा की ओर हो गये और अन्य देवता बृहस्पति के साथ हो लिये। अब युद्ध बड़े स्तर पर होने लगा। 

क्योंकि यह युद्ध तारा की कामना से हुआ था, अतः यह तारकाम्यम कहलाया।

 इस वृहत स्तरीय युद्ध से सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को भय हुआ कि ये कहीं पूरी सृष्टि को ही लील न कर जाए, तो वे बीच बचाव कर इस युद्ध को रुकवाने का प्रयोजन करने लगे।

 उन्होंने तारा को समझा-बुझा कर चंद्र से वापस लिया और बृहस्पति को सौंपा।

 इस बीच तारा के एक सुंदर पुत्र जन्मा जो बुध कहलाया। चंद्र और बृहस्पति दोनों ही इसे अपना बताने लगे और स्वयं को इसका पिता बताने लगे यद्यपि तारा चुप ही रही।

माता की चुप्पी से अशांत व क्रोधित होकर स्वयं बुद्ध ने माता से सत्य बताने को कहा। तब तारा ने बुध का पिता चंद्र को बताया।

"दूसरा पौराणिक मत-

दूसरे मत से तारा बृहस्पति की पत्नी थी। चंद्र उनके सौंदर्य से मोहित होकर विवाह प्रस्ताव दिया तो तारा ने उसे ठुकरा दिया। इससे चंद्र क्रोधित हो परे और बलपूर्वक उनका बलात्कार किया। इस बलात्कार के कारण तारा गर्भवती हुई और बुध का जन्म हुआ।

अब इला की काल्पनिक सिद्धान्त हीन थ्योरी भी उने बुध की पत्नी नहीं बनाती हैं क्योंकि गर्भवास की पूर्ण अवधि नौ महीने होती है ।और नौ महीनों तक इला का स्त्री बने रहना सम्भव नहीं क्यों की उन्हें एक महीना स्त्री और एक महीना पुरुष होना पड़ता है। इस प्रकार उनका न तो स्त्रीत्व ही सुरक्षित है और न पुरुषत्व ही ।

पुराणों के इसी आख्यान को हम निम्नलिखित प्रस्तुत करते हैं


वैवस्वत मनुके पुत्र राजा सुद्युनकी कथा


अध्याय एक – राजा सुद्युम्न का स्त्री बनना (9.1)

राजा परीक्षित ने कहा: हे प्रभु श्रील शुकदेव गोस्वामीआप विभिन्न मनुओं से सारे कालों का विस्तार से वर्णन कर चुके हैं और उनमें असीम शक्तिमान पूर्ण भगवान के अद्भुत कार्यकलापों का भी वर्णन कर चुके हैं। मैं भाग्यशाली हूँ कि मैंने आपसे ये सारी बातें सुनीं।

2-3 द्रविड़ देश के साधु सदृश राजा सत्यव्रत को भगवतकृपा से गत कल्प के अन्त में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ और वह अगले मन्वन्तर में विवस्वान का पुत्र वैवस्वत मनु बना। मुझे इसका ज्ञान आपसे प्राप्त हुआ है। मैंने यह भी जाना कि इक्ष्वाकु इत्यादि राजा उसके पुत्र थेजैसा कि आप पहले बतला चुके हैं।

हे परम भाग्यशाली श्रील शुकदेव गोस्वामीहे महान ब्राह्मणकृपा करके हमको उन सारे राजाओं के वंशों तथा गुणों का पृथक-पृथक वर्णन कीजियेक्योंकि हम आपसे ऐसे विषयों को सुनने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं।

कृपा करके हमें वैवस्वत मनु के वंश में उत्पन्न उन समस्त विख्यात राजाओं के पराक्रम के विषय में बतलायें जो पहले हो चुके हैंजो भविष्य में होंगे तथा जो इस समय विद्यमान हैं।

सूत गोस्वामी ने कहा: जब वैदिक ज्ञान के पण्डितों की सभा में सर्वश्रेष्ठ धर्मज्ञ श्रील शुकदेव गोस्वामी से महाराज परीक्षित ने इस प्रकार से प्रार्थना कीतो वे इस प्रकार बोले।

श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे शत्रुओं का दमन करने वाले राजाअब तुम मुझसे मनु के वंश के विषय में विस्तार से सुनो। मैं यथासम्भव तुम्हें बतलाऊँगायद्यपि सौ वर्षों में भी उसके विषय में पूरी तरह नहीं बतलाया जा सकता।

जीवन की उच्च तथा निम्न अवस्थाओं में पाये जाने वाले जीवों के परमात्मा दिव्य परम पुरुष कल्प के अन्त में विद्यमान थेजब न तो यह ब्रह्माण्ड थान अन्य कुछ था। तब केवल वे ही विद्यमान थे।

हे राजा परीक्षितपूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की नाभि से एक सुनहला कमल उत्पन्न हुआजिस पर चार मुखों वाले ब्रह्माजी ने जन्म लिया।

10 ब्रह्माजी के मन से मरीचि ने जन्म लिया। दक्ष महाराज की कन्या और मरीचि के संयोग से कश्यप प्रकट हुए। कश्यप द्वारा अदिति के गर्भ से विवस्वान ने जन्म लिया।

11-12 हे भारतवंश के श्रेष्ठ राजासंज्ञा के गर्भ से विवस्वान को श्राद्धदेव मनु प्राप्त हुए। श्राद्धदेव मनु ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था। उन्हें अपनी पत्नी श्रद्धा के गर्भ से दस पुत्र प्राप्त हुए। इन पुत्रों के नाम थे – इक्ष्वाकुनृगशर्यातिदिष्टधृष्टकरुषकपृषध्रनभग तथा कवि।

13 आरम्भ में मनु को एक भी पुत्र नहीं था। अतएव आध्यात्मिक ज्ञान में अत्यन्त शक्ति सम्पन्न महर्षि वसिष्ठ ने (उसको पुत्र प्राप्ति के लिएमित्र तथा वरुण देवताओं को प्रसन्न करने के लिए एक यज्ञ सम्पन्न किया।

14 उस यज्ञ के दौरान मनु की पत्नी श्रद्धाजो केवल दूध पीकर जीवित रहने का व्रत कर रही थीयज्ञ करने वाले पुरोहित के निकट गईउन्हें प्रणाम किया और उनसे एक पुत्री की याचना की।

15 प्रधान पुरोहित द्वारा यह कहे जाने पर "अब आहुति डालोआहुति डालने वाले (होताने आहुति डालने के लिए घी लिया। तब उसे मनु की पत्नी की याचना स्मरण हो आई और उसने वषट शब्दोच्चार करते हुए यज्ञ सम्पन्न किया।

16 मनु ने वह यज्ञ पुत्र प्राप्ति के लिए प्रारम्भ किया थाकिन्तु मनु की पत्नी के अनुरोध पर पुरोहित के विपथ होने से इला नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई। इस पुत्री को देखकर मनु अधिक प्रसन्न नहीं हुए। अतएव वे अपने गुरु वसिष्ठ से इस प्रकार बोले।

17 हे प्रभुआप लोग वैदिक मंत्रों के उच्चारण में पटु हैं। तो फिर वांछित फल से विपरीत फल क्यों निकलायही मेरे लिए शोक का विषय है। वैदिक मंत्रों का ऐसा उल्टा प्रभाव नहीं होना चाहिए था।

18 आप सभी संयमितमन से संतुलित तथा परम सत्य से परिचित हो। आप सबने अपनी तपस्याओं के द्वारा सारे भौतिक कल्मषों से अपने आप को पूरी तरह स्वच्छ कर लिया है। आप सबके वचन देवताओं के वचनों की तरह कभी मिथ्या नहीं होते। तो फिर यह कैसे सम्भव हुआ कि आप सबका संकल्प विफल हो गया?

19 मनु के इन वचनों को सुनकर अत्यन्त शक्तिसम्पन्न प्रपितामह वसिष्ठ पुरोहित की त्रुटि को समझ गए। अतः वे सूर्यपुत्र से इस प्रकार बोले।

20 तुम्हारे पुरोहित द्वारा मूल उद्देश्य में विचलन के कारण लक्ष्य में यह त्रुटि हुई है। फिर भी मैं अपने पराक्रम से तुम्हें एक अच्छा पुत्र प्रदान करूँगा।

21 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा परीक्षितअत्यन्त सुविख्यात एवं शक्तिसम्पन्न वसिष्ठ ने यह निर्णय लेने के बादपरम पुरुष भगवान विष्णु से इला को पुरुष में परिणत करने के लिए प्रार्थना की।

22 परम नियन्ता परमेश्वर ने वसिष्ठ से प्रसन्न होकर उन्हें इच्छित वरदान दिया। इस तरह इला सुद्युम्न नामक एक सुन्दर पुरुष में परिणत हो गई।

23-24 हे राजा परीक्षितएक बार वीर सुद्युम्न अपने कुछ मंत्रियों और साथियों के साथसिंधुप्रदेश से लाये गये घोड़े पर सवार होकर शिकार करने जंगल में गया। वह कवच पहने था और धनुष-बाण से सुसज्जित था। वह अत्यन्त सुन्दर था। वह पशुओं का पीछा करते हुए तथा उनको मारते हुए जंगल के उत्तरी भाग में पहुँच गया।

25 वहाँ उत्तर में मेरु पर्वत की तलहटी में सुकुमार नामक एक वन है जहाँ शिवजी सदैव उमा के साथ आनन्द-विहार करते हैं। सुद्युम्न उस वन में प्रविष्ट हुआ।

26 हे राजा परीक्षितज्योंही अपने शत्रुओं को दमन करने में निपुण सुद्युम्न उस जंगल में प्रविष्ट हुआत्योंही उसने देखा कि वह एक स्त्री में और उसका घोड़ा एक घोड़ी में परिणत हो गये हैं।

27 जब उसके साथियों ने भी अपने स्वरूपों एवं अपने लिंग को विपरीत लिंग में परिणत हुआ देखातो वे सभी अत्यन्त खिन्न हो गये और एक दूसरे की ओर देखते रह गये।

28 महाराज परीक्षित ने कहाहे सर्वश्रेष्ठ शक्तिसम्पन्न ब्राह्मणयह स्थान इतना शक्तिशाली क्यों था और किसने इसे इतना शक्तिशाली बनाया थाकृपा करके इस प्रश्न का उत्तर दीजियेक्योंकि मैं इसके विषय में जानने के लिए अत्यधिक उत्सुक हूँ।

29 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: एक बार आध्यात्मिक अनुष्ठानों का दृढ़ता से पालन करने वाले महान साधु पुरुष उस जंगल में शिवजी का दर्शन करने आए। उनके तेज से समस्त दिशाओं का सारा अंधकार दूर हो गया।

30-31 जब देवी अम्बिका ने इन महान साधु पुरुषों को देखातो वे अत्यधिक लज्जित हुईं। साधु पुरुषों ने देखा कि गौरीशंकर इस समय विहार कर रहे हैंइसलिए वे वहाँ से लौट गए और नर-नारायण आश्रम की ओर चल पड़े।

32 तत्पश्चात अपनी पत्नी को प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने कहा, “कोई भी पुरुष इस स्थान में प्रवेश करते ही तुरन्त स्त्री बन जाएगा।”

33 उस समय से कोई भी पुरुष ने उस जंगल में प्रवेश नहीं किया था। किन्तु अब राजा सुद्युम्न स्त्री रूप में परिणत होकर अपने साथियों समेत एक जंगल से दूसरे जंगल में घूमने लगा।

34 सुद्युम्न सर्वोत्तम सुन्दर स्त्री रूप में परिणत कर दिया गया था और वह अन्य स्त्रियों से घिरी हुई थी। चन्द्रमा के पुत्र बुध को इस सुन्दरी को अपने आश्रम के निकट विचरण करते देखकर उसके साथ भोग करने की चाहत हुई।

35 उस सुन्दर स्त्री ने भी चन्द्रमा के राजकुमार बुध को अपना पति बनाना चाहा। इस तरह बुध ने उसके गर्भ से पुरूरवा नामक एक पुत्र प्राप्त किया।

36 मैंने विश्वस्त सूत्रों से सुना है कि मनु-पुत्र सुद्युम्न ने इस प्रकार स्त्रीत्व प्राप्त करके अपने कुलगुरु वसिष्ठ का स्मरण किया।

37 सुद्युम्न की इस शोचनीय स्थिति को देखकर वसिष्ठ अत्यधिक दुखी हुए। उन्होंने सुद्युम्न को उसका पुरुषत्व वापस दिलाने की इच्छा से फिर से शिवजी की पूजा प्रारम्भ कर दी।

38-39 हे राजा परीक्षितशिवजी वसिष्ठ पर प्रसन्न हुए। अतएव शिवजी ने उन्हें संतुष्ट करने तथा पार्वती को दिये गये अपने वचन को रखने के उद्देश्य से उस सन्त पुरुष से कहा, “आपका शिष्य सुद्युम्न एक मास तक नर रहेगा और दूसरे मास नारी होगा। इस तरह वह इच्छानुसार जगत पर शासन कर सकेगा।

मासं पुमान् स भविता मासं स्त्री तव गोत्रजः ।
 इत्थं व्यवस्थया कामं सुद्युम्नोऽवतु मेदिनीम् ॥ ३९ ॥

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40 इस प्रकार गुरु की कृपा पाकर शिवजी के वचनों के अनुसार सुद्युम्न को प्रत्येक दूसरे मास में उसका इच्छित पुरुषत्व फिर से प्राप्त हो जाता था और इस तरह उसने राज्य पर शासन चलायायद्यपि नागरिक इससे संतुष्ट नहीं थे।

41 हे राजनसुद्युम्न के तीन अत्यन्त पवित्र पुत्र हुए जिनके नाम थे उत्कलगय तथा विमलजो दक्षिणा-पथ के राजा बने।

42 तत्पश्चातसमय आने पर जब जगत का राजा सुद्युम्न काफी वृद्ध हो गयातो उसने अपना सारा साम्राज्य अपने पुत्र पुरूरवा को सौंप दिया और स्वयं जंगल में चला गया।


जातायत्तेन मानसाः।३.५।

मरीचिरभवत्‌ 
पूर्व ततोऽत्रिर्भगवान् ऋषिः।
अङिगराश्चाभवत्पश्चात् पुलस्त्यस्तदनन्तरम्।३.६।

बह्मा के मन से केवल मरीचि उत्पन्न हुए है। इस लिए वे ही मानस पुत्र कहलाए!



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परावरेषां भूतानां आत्मा यः पुरुषः परः।
 स एवासीद् इदं विश्वं कल्पान्ते अन्यत् न किञ्चन ॥८॥


 तस्य नाभेः समभवत् पद्मकोषो हिरण्मयः ।
 तस्मिन् जज्ञे महाराज स्वयंभूः चतुराननः ॥९॥

मरीचिः मनसस्तस्य जज्ञे तस्यापि कश्यपः ।
दाक्षायण्यां ततोऽदित्यां विवस्वान् अभवत् सुतः ॥१०॥

(भागवत पुराण स्कन्ध 9/1-अध्याय )

अनुवाद-

जीवन की उच्च तथा निम्न अवस्थाओं में पाये जाने वाले जीवों के परमात्मा दिव्य परम पुरुष कल्प के अन्त में विद्यमान थेजब न तो यह ब्रह्माण्ड थान अन्य कुछ था। तब केवल वे ही विद्यमान थे।

हे राजा परीक्षितपूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की नाभि से एक सुनहला कमल उत्पन्न हुआजिस पर चार मुखों वाले ब्रह्माजी ने जन्म लिया।

ब्रह्माजी के मनसे मरीचि और मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। उनकी धर्मपत्नी दक्षनन्दिनी अदितिसे विवस्वान् (सूर्य) का जन्म हुआ॥ 10।

इला - पृथ्वी । बुद्धि मती स्त्री ।गाय। वाणी- (काव्यत्व शक्ति)।

कृत्वा स्त्रीरूपमात्मानमुमेशो गोपतिध्वजः ।

देव्याः प्रियचिकीर्षुः संस्तस्मिन्पर्वतनिर्झरे । ७.८७.१२ ।


ये तु तत्र वनोद्देशे सत्त्वाः पुरुषवादिनः ।

वृक्षाः पुरुषनामानस्ते ऽभवन् स्त्रीजनास्तदा । ७.८७.१३ ।


यच्च किञ्चन तत्सर्वं नारीसञ्ज्ञं बभूव ह ।

एतस्मिन्नन्तरे राजा स इलः कर्दमात्मजः ।निघ्नन्मृगसहस्राणि तं देशमुपचक्रमे । ७.८७.१४।

____________________


स दृष्ट्वा स्त्रीकृतं सर्वं सव्यालमृगपक्षकम् ।आत्मनं स्त्रीकृतं चैव सानुगं रघुनन्दन ।। ७.८७.१५ ।।



वाल्मीकि  रामायणम्‎ - उत्तरकाण्ड सर्गः (87 इला और पुरुरवा की कहानी)

तच्छ्रुत्वा लक्ष्मणेनोक्तं वाक्यं वाक्य विशारदः।
प्रत्युवाच महातेजाः प्रहसन्राघवो वचः।। ७.८७.१।

एवमेव नरश्रेष्ठ यथा वदसि लक्ष्मण ।
वृत्रघातमशेषेण वाजिमेध फलं च यत् । ७.८७.२।

श्रूयते हि पुरा सौम्य कर्दमस्य प्रजापतेः।
पुत्रो बाह्लीश्वरः श्रीमान्-इलो नाम महाशयाः।७.८७.३।

स राजा पृथिवीं सर्वां वशे कृत्वा सुधार्मिकः ।
राज्यं चैव नरव्याघ्र पुत्रवत्पर्यपालयत् । ७.८७.४।

सुरैश्च परमोदारैर्दैतेयैश्च महाधनैः ।
नागराक्षसगन्धर्वैर्यक्षैश्च सुमहात्मभिः।७.८७.५।


पूज्यते नित्यशः सौम्य भयार्तै रघुनन्दन ।
अविभ्यंश्च त्रयो लोकाः सरोषस्य महात्मनः। ७.८७.६ ।

स राजा तादृशो ह्यासीद्धर्मे वीर्ये च निष्ठितः ।
बुद्ध्या च परमोदारो बाह्लीकेशो महायशाः । ७.८७.७ ।

स प्रचक्रे महाबाहुर्मृगयां रुचिरे वने ।
चैत्रे मनोरमे मासि सभृत्यबलवाहनः । ७.८७.८ ।

प्रजघ्ने च नृपोऽरण्ये मृगाञ्छतसहस्रशः।
हत्वैव तृप्तिर्नाभूच्च राज्ञस्तस्य महात्मनः। ७.८७.९ ।


नानामृगाणामयुतं वध्यमानं महात्मना।
यत्र जातो माहासेनस्तं देशमुपचक्रमे । ७.८७.१०।


तस्मिन्प्रदेशे देवेश शैलराजसुतां हरः।
रमयामास दुर्धर्षः सर्वैरनुचरैः सह । ७.८७.११ ।

कृत्वा स्त्रीरूपमात्मानमुमेशो गोपतिध्वजः।
देव्याः प्रियचिकीर्षुः संस्तस्मिन्पर्वतनिर्झरे । ७.८७.१२ ।


ये तु तत्र वनोद्देशे सत्त्वाः पुरुषवादिनः।
वृक्षाः पुरुषनामानस्ते ऽभवन् स्त्रीजनास्तदा । ७.८७.१३।


यच्च किञ्चन तत्सर्वं नारीसञ्ज्ञं बभूव ह ।
एतस्मिन्नन्तरे राजा स इलः कर्दमात्मजः।

निघ्नन्मृगसहस्राणि तं देशमुपचक्रमे । ७.८७.१४।
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स दृष्ट्वा स्त्रीकृतं सर्वं सव्यालमृगपक्षकम् ।
आत्मनं स्त्रीकृतं चैव सानुगं रघुनन्दन ।। ७.८७.१५ ।।


तस्य दुःखं महच्चासीद्दृष्ट्वा ऽऽत्मानं तथागतम् ।
उमापतेश्च तत्कर्म ज्ञात्वा त्रासमुपागमत् ।। ७.८७.१६ ।।


ततो देवं महात्मानं शितिकण्ठं कपर्दिनम् ।
जगाम शरणं राजा सभृत्यबलवाहनः।। ७.८७.१७।।

ततः प्रहस्य वरदः सह देव्या महेश्वरः ।
प्रजापतिसुतं वाक्यमुवाच वरदः स्वयम् ।७.८७.१८।


उत्तिष्ठोत्तिष्ठ राजर्षे कार्दमेय महाबल ।
पुरुषत्वमृते सौम्य वरं वरय सुव्रत ।।७.८७.१९।।


ततः स राजा दुःखार्तः प्रत्याख्यातो महात्मना।
न च जग्राह स्त्रीभूतो वरमन्यं सुरोत्तमात् ।। ७.८७.२०।।


ततः शोकेन महता शैलराजसुतां नृपः ।
प्रणिपत्य ह्युमां देवीं सर्वेणैवान्तरात्मना ।। ७.८७.२१ ।।


ईशे वराणां वरदे लोकानामसि भामिनी।
अमोघदर्शने देवी भज सौम्येन चक्षुषा।। ७.८७.२२ ।।


हृद्गतं तस्य राजर्षेर्विज्ञाय हरसन्निधौ।
प्रत्युवाच शुभं वाक्यं देवी रुद्रस्य संमता ।७.८७.२३।


अर्धस्य देवो वरदो वरार्धस्य तव ह्यहम् ।
तस्मादर्धं गृहाण त्वं स्त्रीपुंसोर्यावदिच्छसि ।। ७.८७.२४ ।।


तदद्भुततरं श्रुत्वा देव्या वरमनुत्तमम् ।
सम्प्रहृष्टमना भूत्वा राजा वाक्यमथाब्रवीत् ।। ७.८७.२५ ।।


यदि देवि प्रसन्ना मे रूपेणाप्रतिमा भुवि ।
मासं स्त्रीत्वमुपासित्वा मासं स्यां पुरुषः पुनः ।। ७.८७.२६ ।।


ईप्सितं तस्य विज्ञाय देवी सुरुचिरानना ।
प्रत्युवाच शुभं वाक्यमेवमेव भविष्यति ।। ७.८७.२७ ।।

राजन्पुरुषभूतस्त्वं स्त्रीभावं न स्मरिष्यसि ।
स्त्रीभूतश्च परं मासं न स्मरिष्यसि पौरुषम् ।। ७.८७.२८।।


एवं स राजा पुरुषो मासं भूत्वाथ कार्दमिः ।
त्रैलोक्यसुन्दरी नारी मासमेकमिला ऽभवत् ।। ७.८७.२९ ।।

इत्यार्षे श्रीमद्रामायणे वाल्मीकीये आदिकाव्ये श्रीमदुत्तरकाण्डे सप्ताशीतितमः सर्गः ।। ८७ ।।


लक्ष्मण की बात सुनकर हैरान रह गए ,
 वाक्पटु और ताकतवर राघव ने उत्तर दिया:-

“हे पुरुषश्रेष्ठ, लक्ष्मण, तूमने वृत्र के वध और अश्वबली के फल के बारे में जो कुछ कहा है, वह पूर्णतया सत्य है, हे सज्जन! ऐसा कहा जाता है कि पूर्व में अत्यंत पुण्यात्मा और धन्य ( इला,) नाम से  प्रजापति कर्दम के पुत्र, बाहलिका प्रांत में राज्य करते थे । 
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हे नरेश, उस परम प्रतापी राजा ने सारी पृथ्वी को अपने अधीन करके, अपनी प्रजा पर अपने पुत्रों के समान शासन किया।

“उदार  और धनी देवताओं  , नागों , राक्षसों  गंधर्वों  और  यक्षों ने, भय से प्रेरित होकर, निरंतर उसकी पूजा की, हे प्रिय मित्र,  और हे रघु के आनंद  त्रिलोक ने क्रोधी शक्तिशाली के सामने कांप उठे। ऐसा वह राजकुमार था, 

बहलिकों का प्रतापी शासक , ऊर्जा से भरपूर, अत्यधिक बुद्धिमान और अपनी कर्तव्यनिष्ठा में दृढ़।

"चैत्र के खूबसूरत महीने के दौरान , वह लंबे समय तक अपने पर्वतारोहियों, पैदल सेना और घुड़सवार सेना के साथ आकर्षक जंगलों में शिकार करने गया, और उस जंगल में उस उदार राजकुमार ने सैकड़ों और हजारों की संख्या में जंगली मृगों को मारा, फिर भी उसका पेट नहीं भरा।जब वह उस देश में पहुंचा, जहां कार्तिकेय का जन्म हुआ था, जहाँ सभी प्रकार के अनगिनत जानवर पहले ही नष्ट हो गए थे। वहाँ के देवताओं में सबसे प्रमुख, अजेय शिव, पहाड़ों के राजा की बेटी  पार्वती के साथ काम- क्रीडा कर  रहे थे, और, खुद को एक महिला में बदल कर, उमा के भगवान, जिसका प्रतीक बैल है, ने देवी का मनोरंजन करने की कोशिश की।

 झरनों के बीच। जंगल में जहां भिन्न प्राणी थे या पेड़ थे, जो कुछ भी था, उसने नारी का रूप धारण कर लिया। 

कर्दम के पुत्र राजा इल ने उस स्थान पर प्रवेश किया और उन्होंने देखा कि वे सभी महिलाएँ वहाँ थीं, उन्हें बाद में पता चला कि वह भी एक महिला में परिवर्तित  हो गये है।,

 साथ ही उनके कार्यस्थल पर भी और  इस कायापलट पर उन्हें बहुत परेशान किया गया और उन्होंने पहचान लिया कि यह उमा की पति का काम करती हैं और वे विश्वसनीय हो गई ।

तब वह राजा, अपने सेवकों, अपनी सेना और अपने रथों के साथ, उस शक्तिशाली नीले गले वाले देवता, कपालिन  की शरण में , गयी  और उदार महेश्वर ने उस देवी के साथ हँसते हुए, कृपा के दाता, प्रजापति के पुत्र से कहा: -

''उठो, उठो, हे राजऋषि, हे कर्दम के वीर पुत्र, मर्दानगी को ठीक करो, जो चाहो मांग लो!'

उदार शिव इस उत्तर से राजा अत्यंत निराश हो गये । एक महिला के रूप में परिवर्तित वीर , वह देवताओं के प्रमुखों से कोई अन्य आभूषण स्वीकार नहीं करना चाहती थी और, अपने गहन संकट में, वह राजकुमार, पहाड़ों के राजा की बेटी, उमा के चरणों में पूरे दिल से गिर गई। ये विनती करते हुए कहा:-

"'क्या आप सभी लोगों में अपनी-अपनी उपकार बाँटती हैं, हे आराध्य देवी, दृष्टि कभी निष्फल नहीं होती, मुझे अपनी-अपनी प्रतिष्ठा दृष्टि में स्थान मिलता है!'

"यह जानकर कि राजर्षि के दिल में क्या चल रहा था, वह देवी, जो शिव  के सामने खड़ी थी, वह,रुद्र की पत्नी ने यह उत्तर दिया:-

'''तुम हम दोनों से जो शोभा मांगोगे उसका आधा भाग।'महादेव के द्वारा दिया जाएगा और आधा भाग मेरे द्वारा दिया जाएगा, इसलिए यह आधा भाग अपनी इच्छा के अनुसार स्त्री और पुरुष रूप  प्राप्त करें!'

" देवी द्वारा बताए गए उस अद्भुत और अद्वितीय आभूषण को देखकर राजा ने खुशी से स्वीकार करते हुए कहा:-

"वह देवी, वास्तुशिल्प और पृथ्वी पर अद्वितीय है, अगर मुझ पर आपकी कृपा है, तो क्या मैं एक महीने के लिए एक महिला बन सकती हूं,

 दूसरे महीने में एक पुरुष का रूप धारण कर सकती हूं!"

"तब कृपालु देवी ने अपनी इच्छा को मूलभूत, पूर्ण रूप से उत्तर दिया: -

'हे राजा, ऐसा ही होगा, और जब तुम पुरुष हो, तो यह याद नहीं रहेगा कि तुम कभी एक स्त्री थे और, अगले महीने, एक स्त्री बन कर, तुम भूल गए कि तुम कभी एक पुरुष थे!'

"इस प्रकार कर्दम से वह राजा उत्पन्न हुआ इल, एक महीने के लिए पुरुष अगले महीने इला के नाम पर एक महिला बन गया, 

जो त्रिलोक की सबसे प्रिय महिला थी।"

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अध्याय 88 - बुध का सामना इला से हुआ
<पिछला
 उत्तर काण्ड 7 - 
 
राम ने  कहा लक्ष्मण भरत इला की कहानी ने बहुत से चमत्कारी  है।

 दोनों ने हाथ जोड़कर उदार राजा और उनके चित्रों के बारे में बताया और उनका वर्णन करते हुए कहा:-

"उस दुष्ट राजा ने तब क्या किया जब वह एक स्त्री बनी और जब वह एक बार फिर पुरुष बनी तो उसने क्या व्यवहार किया?"

जिज्ञासा से प्रेरित इन शब्दों को सुनकर,ककुत्स्थ ने उन्हें बताया कि उस राजा के साथ क्या हुआ, और कहा:-

"एक महिला के रूप में परिवर्तित होने के बाद, उन्होंने पहली बार अपनी महिला परिचार कक्ष में प्रवेश किया, अपने पूर्व दरबारियों और उस महिला के बीच की समृद्धि, जो पृथ्वी पर सबसे सुंदर थी, जैसे कि  कमल की संगति जैसी जगह, एक घने जंगल में प्रवेश किया,  संरक्षक के बीच यात्रा पर गए, झाड़ियाँ और लताएँ सभी शेष बचे जंगल में रहते हैं। अब उस जंगली इलाके में, पहाड़ से बहुत दूर नहीं, एक आकर्षक झील है जिसमें हर तरह के पक्षी आते हैं; वहाँ इला ने चाँद के पुत्र बुद्ध[यानी, बुध ग्रह को  को देखा, जो उगने पर उस गोले के समान दीप्तिमान था।

"बुद्ध, जो जल में दुर्गम रहते थे, ने स्वयं को कठोर तपस्या के लिए समर्पित किया था, और वह ऋषि परोपकारी और परम दयालु थे।" 

अपने आश्चर्य में, इला ने अपने साथियों के साथ पानी को उबाल कर दिया, और उसे देखकर, बुद्ध अपने बाणों से प्रेम के देवता के प्रभाव में आ गए और, अब आत्म-नियंत्रित नहीं रहे, झील में अनुयायी बने रहे।

इला को देखकर, आर्किटेक्चरल आर्किटेक्चरतीनों लोकोंअनोखी थी, उसने सोचा:-

'यह महिला कौन है, आकाशीय देवताओं से भी अधिक मित्र?'मैंने पहले कभी देवों,नागों,असुरोंयाअप्सराओंकी मूर्ति में ऐसी चमक नहीं देखी । अगर उसकी शादी पहले से किसी और से नहीं हुई है, तो उसने मुझ से उधार लिया है!'

“जैसे ही उसने देर की, ऐसा सोच में पड़ गया, कंपनी ने पानी छोड़ दिया और बुद्ध, विचार करते हुए, वहाँ से निकले।”

इसके बाद उन्होंने महिलाओं को अपने आश्रय स्थल पर जाकर बुलाया और उनकी पूजा की, जिसके बाद धर्मात्मा तपस्वी ने उनसे पूछताछ करते हुए कहा:-

“यह महिला, जो पूरी दुनिया में सबसे प्यारी है, किसकी है?” वह यहाँ क्यों आया है? 'मुझे बिना किसी हिचकिचाहट के सब बताओ।'

नम्र स्वर में बोले गए इन शब्दों को सुनकर सभी महिलाओं ने मधुर आवाज में उत्तर दिया, कहा:-

'''वह महिला कंपनी हमारी रहती है, उसका कोई पति नहीं है और वह हमारी जंगल में घूमती है।'

"उनकी महिलाओं के उत्तर आश्चर्य की बात है, वह द्विज ने उस विज्ञान को याद किया जिसे सभी ने कुछ न कुछ देखा होगा[1], उसके बाद राजा इला के संबंध में जो कुछ हुआ था, वह अज्ञात हो गया, और ऋषियों ने सबसे प्रमुख उन महिलाओं से कहा: -

“'यहाँ पर्वतीय क्षेत्र पर तुम किम्पुरुषियोंके रूप में निवास करोगे ![2]

इसी पर्वत पर अपना निवास बनाओ;तुम जड़, पत्ते और फल खाओगे और किम्पुरुषों को अपनी पत्नी के रूप में पाओगे!'

" सोम के पुत्र के आदेश पर , वे स्त्रियाँ, जो पुरुष थे, किम्पुरुषिशियों में परिवर्तित हो गए, उन्होंने पहाड़ के घाटों पर अपना निवास स्थान बना लिया।''

फ़ुटनोट और संदर्भ:
[1] :

आवर्तनी का पवित्र सूत्र।

[2] :

-किंपुरुषों की मादाएं, जो इंसान हैं, कभी-कभी किन्नरों के साथ पहचानी जाती हैं।



अध्याय 89 - पुरुरवा का जन्म
<पिछला
माता-पिता: पुस्तक 7 - उत्तर-कांड
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किंपुरुषियोंकी उत्पत्ति के बारे में जानकर आश्चर्य हुआ ,लक्ष्मण और भरत दोनों ने पुरुषों के भगवान रामसे कहा , "कितना अद्भुत है!"

इसके बाद यशस्वी और धर्मात्मा राम ने प्रजापति के बेटे इला की कहानी जारी करते  हुए कहा:-

"जब उन्होंने देखा कि किन्नरियों की सारी सेना चली गयी है, तो ऋषियों में अग्रणी ने कहा होए सुंदर इला :-

"'मैं सोमा का प्रिय पुत्र हूँ , वह कृपालु देवी, क्या आप मुझ पर कृपालु देवी लिखते हैं!'

"उसने लेखों से सुने उस एकांत जंगल में इस प्रकार की बात की, और उस दयालु और सुंदर एकांत निवासी ने उसे उत्तर देते हुए कहा:-

"'हे सोमा प्रिय पुत्र, मैं वहां पहुंचना चाहता हूं, मैं आपकी सेवा में हूं, जो भी आपको अच्छा लगेगा!'

“यह मनमोहक उत्तर चकित चंद्रमा की तस्वीर बहुत पसंद आई और उसका प्रेम बंधन में बंध गया।

इसके बाद असक्तबुद्ध ने मधुका महीना पार हो गया (अर्थात, वह महीना जो फरवरी और मार्च का हिस्सा है), वह इला के साथ रमण करता है एक क्षण की तरह मर गया, और, महीना खत्म होने पर, वह चंद्रमुखी अपने सपने से निकला।

 और सोमा के बेटे को पानी में तपस्वी के लिए समर्पित देखा, वह बिना किसी के नाम के, अपनी भुजाओं को फैलाए थी, और उसने कहा:-

'हे धन्य, मैं अपने सेवकों की टोली के साथ इस दुर्गम पर्वत पर आया था, मुझे वे कहीं दिखाई नहीं दिए, वे कहाँ चले गए?'

“अतीत का सारा ज्ञान खो चुके राजर्षिकी बातें हैरान कर देने वाली बुद्ध ने उन्हें प्रतिमान बनाने के लिए मैत्रीपूर्ण स्वर में कहा:-

“'जब आप हवा और बारिश के बीच आश्रम में शरण लेकर सो रहे थे, तब आपके सेवकों पर भारी ओलावृष्टि हुई थी। ख़ुश रहो, सभी सुविधाओं को दूर करो और खुद को शांत करो! हे वीर, यहां शांति से रहो, पत्ते और वृक्षों पर अपना पोषण करो।'

"इन शब्दों में से सूर्योदय से पहले राजा ने, अपनी प्रजा के दुःख के कारण परेशान होकर, यह उत्तर दिया:-

“मैं अपने नौकरों से मूल्य निर्धारण भी अपना राज्य नहीं छोड़ सकता; हे महातपस्वी, मुझे एक क्षण भी देर न करनी पड़े, मुझे प्रस्थान करने की अनुमति दे दो। हे ब्राह्मण, मेरा एक ज्येष्ठ पुत्र है जो अपनी कर्तव्यनिष्ठा में दृढ़ है और अत्यंत जवान है, नाम शशबिंदु  है ; वह मेरा उत्तराधिकारी होगा. नहीं, मैं अपने साथियों और अपने अच्छे सेवकों का त्याग नहीं कर सकता, हे महातपस्वी, मेरी निंदा मत करो।'

"इस प्रकार राजाओं के बीच इंद्र और बुद्ध ने कहा , पहले उन्हें बेहोश कर दिया, फिर उन्हें ये आश्चर्यजनक शब्द सुनाते हुए कहा:-

“'यहाँ रहने की कृपा करो; शोक मत करो, हे संभावित करदमेय; वर्ष के अंत में मैं 'शराबी सजावट दूँगा।'

वेदके ज्ञाता निवास अविनाशी कर्मयोगी बुध की ये बातें सुनकर इला ने कहीं का निश्चय किया। अगले महीने, एक महिला प्रकट होती है, वह बुद्ध के साथ प्रेम प्रसंगों में व्याख्या करती है और उसके बाद, एक बार फिर पुरुष प्रकट होती है, वह निष्ठा पालन में समय की परिभाषा देती है।
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 नौवें महीने में दैत्य इला ने एक पुत्र, शक्तिशाली बनाया पुरुरवाको जन्म दिया और उसके जन्म के बाद, वह बच्चे को बुद्ध के पिता के हाथों में सौंप दिया, जो दिखने में बुद्ध जैसा दिखता था।
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अध्याय 90 - इला को प्राकृतिक  स्थिति मिली
<पिछला
: पुस्तक 7 - उत्तर-कांड

[पूरा शीर्षक: इला ने अश्वमेधयज्ञ के माध्यम से अपनी प्राकृतिक स्थिति पुनः प्राप्त करें]।
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राम ने पुरुरवा के अद्भुत जन्म की कथा , तो यशस्वी लक्ष्मण और भरत ने एक बार फिर पूछा, और कहा:-

इला ने चंद्रमा-देवता के पुत्र के साथ एक वर्ष के अंतराल के बाद क्या किया? हे पृथ्वी के भगवान, हम सबको बताओ!”

इस प्रकार अपने दोनों भाइयों द्वारा स्नेहपूर्ण स्वर में पूछे जाने पर, राम ने प्रजापति के बेटे इला की कहानी सुनाना जारी रखी और कहा:-

"नायक ने, अपनी मर्दानगी को पुनः प्राप्त करने के बाद, बेहद बुद्धिमान और शानदार बुद्ध ने ऋषियों, अत्यंत महानसंवर्त, भृगु के पुत्रच्यवन, तपस्वी अरिष्टनेमि , रामोण, मोदकर और तपस्वी दुर्वासा को एक साथ बुलाया जाता है।

जब वे सभी शास्त्रीय हो गए, तो सत्य को समझने में सक्षम, वाकटु बुद्ध ने उन ऋषियों, अपने मित्रों, जो महान शक्ति से प्रिय थे, से कहा:-

''जानें कि कर्दम'के बेटे, वह लंबे समय तक भुजाओं वाले राजा के साथ क्या हुआ , ताकि उसकी खुशी फिर से स्थापित हो सके!'

“जब वे द्विज इस प्रकार बातचीत कर रहे थे, कर्दम पौलस्त्य,क्रतु,वषट-काराऔर महान तेज वालेओमकार के साथ उस जंगल में आए।

वे सभी तपस्वी, खुद को एक साथ खुश थे और बहलीक के भगवान की सेवा करना चाहते थे, हर किसी ने अपने बारे में अपने विचार व्यक्त किये; हालाँकि,
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 कर्दम ने अपने बेटे के लिए महान महान व्यक्तित्व की पेशकश की और कहा:-

“हे द्विजों, सुनो कि राजकुमार की खुशी के लिए मुझे क्या कहना है। मैं उस ईश्वर के अलावा कोई उपाय नहीं देखता जिसका प्रतीक चिन्ह है।

अश्वमेध से बढ़कर कोई यज्ञ नहीं है, जो शक्तिशाली रुद्र के दिल को प्रिय है । इसलिए आइए हम ये महान बलिदान दें।'

“इस प्रकार कर्दम ने कहा और सभी प्रमुख ऋषियों ने रुद्र को मंत्रमुग्ध कर दिया।

"इसके बाद एकराज ऋषि, संवर्त के शिष्य, शत्रुतापूर्ण गढ़ों के विजेता, उपनाम मरुत्त था, उस महान यज्ञ को संपन्न किया गया था जो बुध के आश्रम के पास हुआ था, जिसमें गौरवशाली रुद्र अत्यंत अवतरित हुए थे और, उत्सव पूरा होने पर, उमा की पत्नी बनीं। खुशी के अतिरेक में उन्होंने इला की उपस्थिति में सभी ऋषियों का वर्णन करते हुए कहा:-

“मैं अश्वमेध यज्ञ में विवाह भक्ति से प्रसन्न हूं। हे प्रतिष्ठित ब्राह्मणों, मैं इस राजा के लिए क्या करूँ?'

देवताओं के देवताओं ने इस प्रकार कहा, और ऋषियों ने कहा, गहरी याद में, देवताओं के देवताओं को एक कृपया दृष्टि रखने के लिए प्रेरित किया ताकि वे अपना पुरुषत्व पुनः प्राप्त कर सकें।

 तब आख़री बाज़ी  महादेव ने उसे उसका पौरुष वापस दे दिया गया और इला पर उसने प्रार्थना करते हुए कहा, शक्तिशाली भगवान गायब हो गए।

“अश्व-यज्ञ पूरा हो गया और।”शिव  नेखुद को अदृश्य कर लिया, वे सभी द्विज, मर्म दृष्टि वाले, जहां से आए थे, जहां लौट आए। हालाँकि, राजा ने अपनी राजधानी को त्यागकर, मध्य क्षेत्र में रखा था प्रतिष्ठान पुर  की स्थापना की, जो वैभव में अद्वितीय था, जबकि शशबिंदु, राजर्षि, शत्रुतापूर्ण शहर के विजेता, बहलीक
 में रहते थे। उस समय से पुरोहित और वैद्य पुत्र, राजा इला का निवास स्थान बन गया, अपना समय आने पर, वह ब्रह्माके निवास पर पता चला।

“इला के पुत्र, राजा पुरुरवा प्रतिष्ठा में उनके उत्तराधिकारी बने। इस सिद्धांत में बैल, अश्वमेध यज्ञ का यही गुण है। इला, जो पहले एक महिला थी, फिर से एक पुरुष बनी, जो किसी अन्य तरीके से असंभव थी।"




अध्याय 87 - इला की कहानी

यच्च किञ्चन तत्सर्वं नारीसञ्ज्ञं बभूव ह ।एतस्मिन्नन्तरे राजा स इलः कर्दमात्मजः।निघ्नन्मृगसहस्राणि तं देशमुपचक्रमे । ७.८७.१४।

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स दृष्ट्वा स्त्रीकृतं सर्वं सव्यालमृगपक्षकम् ।आत्मनं स्त्रीकृतं चैव सानुगं रघुनन्दन ।। ७.८७.१५ ।।


इला ( संस्कृत : इल ) या इला (  किंवदंतियों में एक देवता है , जो अपनी लिंग परिवर्तन के लिए जाना जाता है। पुरुष के रूप में उन्हें इला या सुद्युम्न के नाम से जाना जाता है और महिला के रूप में उन्हें इला कहा जाता है। इला को भारतीय राजवंश के चंद्र वंश का मुख्य पूर्वज माना जाता है - जिसे इलास ("इला के वंशज") के रूप में भी जाना जाता है।

इला/इला
बुध (बुध) पत्नी इला के साथ
देवनागरीइल/इला
संस्कृत लिप्यंतरणइला/इला
संबंधदेवी
धामबुधलोक
मंत्रॐ इल्ली नमः
व्यक्तिगत जानकारी
अभिभावक
भाई-बहनइक्ष्वाकु और 9 अन्य
बातचीत करनाबुद्ध (एक महिला के रूप में)
बच्चापुरुरवा (स्त्री के रूप में पुत्र)
उत्कल, गया और विनताश्व (पुरुष के रूप में पुत्र)

जबकि कहानी के कई संस्करण मौजूद हैं, इला को आम तौर पर वैवस्वत मनु की बेटी या बेटे के रूप में वर्णित किया गया है और इस प्रकार सौर राजवंश के संस्थापक इक्ष्वाकु के भाई-बहन के रूप में वर्णित किया गया है। जिन वर्जन में इला का जन्म महिला के रूप में हुआ है, वह अपने जन्म के तुरंत बाद डेविए प्लीज से पुरुष के रूप में परिवर्तित हो गई है। गलती से एक वयस्क के रूप में पवित्र उपवन में प्रवेश करने के बाद, इला को या तो हर महीने लिंग निर्धारण या एक महिला बनने का शाप दिया जाता है। एक महिला के रूप में, इला ने बुध ग्रह के देवता और चंद्र देवता चंद्र (सोम) के पुत्र बुध से विवाह किया, और उनके चंद्र वंश के पिता पुरुरवा ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुरुरवा के जन्म के बाद इला ने फिर एक आदमी की जगह ले ली और तीन बेटों को जन्म दिया।

वेदों में , इला की इदा ( संस्कृत : इड़ा ), वाणी की देवी के रूप में प्रशंसा की गई है, और इसे पुरुरवा की माँ के रूप में वर्णित किया गया है।

इला के महाकाव्य की कहानी पुराणों के साथ-साथ भारतीय महाकाव्यों , रामायण और महाभारत में भी वर्णित है।

जन्म

लिंग पुराणऔरमहाभारतके अनुसार , इला का जन्म मानव जाति के पूर्वज वैवस्वत मनु और उनकी पत्नी श्रद्धा की सबसे बड़ी बेटी के रूप में हुआ था।हालाँकि, माता-पिता एक बेटे की इच्छा रखते थे और इसलिए मित्रऔरवरुणदेवताओं को प्रणाम करने के लिए प्रार्थना और तपस्या की मांग की गई , इला का लिंग बदल दिया गया। लड़के का नाम सुद्युम्मा रखा गया। [1] [2] भागवतपुराण,देवी-भागवत पुराण[3] कूर्मपुराण,हरिवंश,मार्कंडेय पुराणऔरपद्म पुराण(आदि भागवत पुराण आदि ग्रंथों के रूप में) एक प्रकार का वर्णन करते हैं : इला के माता-पिता को लंबे समय तक कोई संत नहीं हुआ और उन्होंने समाधान के लिएअगस्त्य ऋषि के पास पहुंचे। ऋषि ने दंपत्ति के लिए पुत्रप्राप्ति के लिए मित्रा और वरुण ने एक को समर्पित कियायज्ञ (अग्नि यज्ञ) किया। या तो अनुष्ठान में त्रुटि के कारण या बलिदान में विफलता के कारण, मित्रा और वरुण ने एक बेटी को भेजा। एक संस्करण में, इसमें देवताओं से प्रार्थना की, प्रार्थना इला का लिंग बदल दिया गया। दूसरे संस्करण में, यह परिवर्तन तब होता है जब त्रुटिपूर्ण मंत्रों में सुधार किया जाता है और पुत्र को दोष दिया जाता है। [2] [4] [5] [6] एक प्रकार के अनुसार, श्रद्धा एक बेटी की कामना करती थी; यज्ञ समयवशिष्ठ ने उनकी इच्छा पर ध्यान दिया और इस प्रकार, एक बेटी का जन्म हुआ। हालाँकि, मनु एक बेटे की इच्छा रखते थे इसलिए सोया ने विष्णु से अपनी बेटी के लिंग परिवर्तन की अपील की। इला का नाम महिमा सुद्युम्न रखा गया। [7] वृत्तांतों में इला को मनु की सबसे बड़ी या सबसे छोटी संतान के बारे में बताया गया है। मनु के संत के रूप में इला के नौ भाई थे, जिनमें सबसे उल्लेखनीय सौर वंश के संस्थापक थेइक्ष्वाकुथे। [8] [9] [10] मनु के पुत्र के रूप में इला सूर्य के स्थान हैं । [11] वायु पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण में एक अन्य वृत्तान्त के अनुसार इला का जन्म स्त्री से हुआ था और वह स्त्री ही बनी रही। [10]

रामायणइला का जन्म भगवान ब्रह्मा की छाया से हुआप्रजापतिकर्दम के पुत्र के रूप में हुआ है। इला की कहानी रामायण के उत्तर कांड अध्याय में अश्वमेध -घोड़े के बलिदान की महिमा का वर्णन बताया गया है। [5] [12]

बुद्ध को श्राप और विवाह

बुध के साथ नर इला.

रामन ,लिंग पुराणऔरमहाभारतमें , इलाबहलिकाका राजा बन जाता है । एक जंगल में शिकार करते समय, इला ने गलती से श्रवण ("नरकट का जंगल"), जो भगवान शिव की पत्नी देवी थीपार्वतीका पवित्र उपवन था, में व्यवस्था कर ली । श्रवण में प्रवेश करने पर, शिव को ठीक करने के लिए सभी पुरुष, जिनमें पेड़ और जानवर भी शामिल हैं, महिलाओं को बदल दिया जाता है। [टिप्पणियाँ 1] एक किंवदंती है कि एक मादा यक्षिणी ने अपने पति को राजा से बचाने के लिए खुद को हिरण के रूप में प्रच्छन्न किया और इला को उपवन में ले लिया। [11] लिंग पुराण और महाभारत में इल के लिंग परिवर्तन से चंद्र वंश प्रारंभ होने के लिए शिव का एक रेखांकित कार्य बताया गया है। [1] भागवत पुराण और अन्य। पाठ हैं कि इला के पूरे दल ने, साथ ही उसके घोड़ों ने भी अपना लिंग बदल लिया। [4]

रामायणके अनुसार , जब इला मदद के लिएशिवके पास समुद्री डाकू, तो शिव ने हँसी उड़ाई, लेकिन प्यारी पार्वती ने श्राप को कम कर दिया और इला को हर महीने लिंग परिवर्तन की लंबाई दी। हालाँकि, एक पुरुष के रूप में, वह एक महिला के रूप में अपने जीवन को याद नहीं करती और इसके विपरीत। जब इला अपनी महिला परिचारिका के साथ अपने नए रूप में जंगल में घूम रही थी,बुध ग्रहचंद्रमा और देव के देवताचंद्रके पुत्र बुद्ध ने उस पर ध्यान दिया।हालाँकि वह तपस्याकर रहा था , लेकिन इला की स्वाभाविकता के कारण उसकी पहली नजर उसी से प्यार हो गई। बुद्ध ने इला के परिचारकों कोकिम्पुरुष(उभयलिंगी, अर्थात् "क्या यह एक आदमी है?") में बदल दिया गया और उन्हें भाग जाने का आदेश दिया गया, यह वादा करता है कि वे इला के समान मित्र की तलाश करते हैं। [14]

इला ने बुध से विवाह किया और उसके साथ पूरा एक महीना बिताया और विवाह संपन्न किया। हालाँकि, इला एक सुबह सुद्युम्न के रूप में उठी और उसे पिछले महीने के बारे में कुछ भी याद नहीं था। बुद्ध ने इला को बताया कि उसके अनुचर पत्थरों की बारिश में मारे गए हैं और इला को एक साल तक उसके साथ रहने के लिए मना लिया। एक महिला के रूप में बिताए प्रत्येक महीने के दौरान, इला ने बुद्ध के साथ अच्छा समय बिताया। एक पुरुष के रूप में प्रत्येक महीने के दौरान, इला ने पवित्र तरीकों की ओर रुख किया और बुद्ध के मार्गदर्शन में तपस्या की। नौवें महीने में इला ने पुरुरवा को जन्म दिया , जो बड़े होकर चंद्र वंश के पहले राजा बने। तब, बुध और इला के पिता कर्दम की सलाह के अनुसार, इला ने शिव को प्रसन्न किया और शिव ने इला का पुरुषत्व स्थायी रूप से बहाल कर दिया। [5] [14]

विष्णु पुराण की एक अन्य किंवदंती में विष्णु को सुद्युम्मा के रूप में इला की मर्दानगी बहाल करने का श्रेय दिया गया है। [2] [15] भागवत पुराण और अन्य। ग्रंथों से पता चलता है कि पुरुरवा के जन्म के बाद, इला के नौ भाइयों - घोड़े की बलि से - या ऋषि वशिष्ठ - इला के पारिवारिक पुजारी - ने शिव को प्रसन्न किया और उन्हें इला को एक महीने के पुरुषत्व का वरदान देने के लिए मजबूर किया, जिससे वह किम्पुरुष में बदल गया। . [3] [4] [9] लिंग पुराण और महाभारत में पुरुरवा के जन्म का वर्णन है, लेकिन इला की वैकल्पिक लिंग स्थिति के अंत का वर्णन नहीं किया गया है। वास्तव में, महाभारत में इला को पुरुरवा की माता और पिता दोनों बताया गया है। [16] वायु पुराण और ब्रह्मांड पुराण में पाए गए एक अन्य वृत्तांत के अनुसार , इला का जन्म महिला से हुआ था, उसने बुध से शादी की, फिर सुद्युम्न नामक एक पुरुष में बदल गई। तब सुद्युम्न को पार्वती ने श्राप दिया और वह एक बार फिर स्त्री में बदल गया, लेकिन शिव के वरदान से वह एक बार फिर पुरुष बन गया। [10]

कहानी के लगभग सभी संस्करणों में, इला एक पुरुष के रूप में रहना चाहती है, लेकिन स्कंद पुराण में , इला एक महिला बनना चाहती है। राजा इला (इला) ने सहया पर्वत पर पार्वती के उपवन में प्रवेश किया और इला स्त्री बन गयी। इला एक महिला बनकर रहना चाहती थी और गंगा नदी की देवी पार्वती (गौरी) और गंगा की सेवा करना चाहती थी। हालाँकि, देवी-देवताओं ने उसे मना कर दिया। इला ने एक पवित्र कुंड में स्नान किया और इला के रूप में लौट आई, दाढ़ी वाली और गहरी आवाज वाली। [5] [17]

बाद का जीवन और वंशज 

पुरुरवाके माध्यम से इला के वंशजों को इला के बाद ऐलास याचंद्र-देवता चंद्र के पुत्र बुद्ध से उनके वंश को चंद्र वंश (चंद्रवंश) के रूप में जाना जाता है। [18] [5] कहानी के अधिकांश संस्करण इला को ऐलास के पिता और माता भी कहते हैं। [19] लिंगपुराणऔरमहाभारत, जिसमें सुद्युम्मा का श्राप समाप्त नहीं हुआ है, में कहा गया है कि एक पुरुष के रूप में, सुद्युम्मा ने उत्कल दिया, औरविनताश्व(जिन्हें हरितश्व और विनता के नाम से भी जाना जाता है) तीन पुत्रों को जन्म दिया। [10] त्रिपुत्रों ने अपने पिता के लिए राज्य पर शासन किया क्योंकि सुद्युम्मा अपने बाल लिंग के कारण स्वयं ऐसा करने में अक्षम थी। पुत्रों और रियासतों को सौद्युम्न कहते हैं। उत्कल, गया और विनाश ने क्रमशःउत्कलदेश,गयाऔर उत्तरकौरवों सहित पूर्वी क्षेत्रों पर शासन किया। [20] [21] पारिवारिक पुजारी वसिष्ठ की सहायता से सुद्युम्मा ने पूरे राज्य पर फिर से नियंत्रण हासिल कर लिया। उनका उत्तराधिकारी पुरुरवा ने किया। [1]

मत्स्य पुराणमें , इला को स्त्री या किंपुरुष बनने के बाद वंशावली से शुरू किया गया था। इला के पिता ने अपनी विरासत सीधे पुरुरवा को दे दी, इला-सुद्युम्मा के पुरुष के रूप में जन्मे तीन पुत्रियों को जन्म दिया गया। पुरुरवा ने प्रतिष्ठानपुरा (वर्तमान)इलाहाबाद) से शासित, जहां इला उनके साथ रही। [9] [22] रामायण में कहा गया है कि मर्दानगी में वापसी के बाद, इला ने प्रतिष्ठा पर शासन किया, जबकि उनके पुत्र शशबिंदु ने बहलिका पर शासन किया ।किया।। [14] देवी -भागवत पुराण में बताया गया है कि एक पुरुष के रूप में सुद्युम्मा ने राज्य पर शासन किया था और एक महिला के रूप में वह घर के अंदर रहती थी। उनका पेज उनके लिंग परिवर्तन से संबंधित था और उनका अब पहले जैसा सम्मान नहीं था। जब पुरुरवा वयस्क हो गया, तो सुद्युम्मा ने अपना राज्य पुरुरवा पर विजय प्राप्त कर ली और तपस्या के लिए जंगल में चली गई। ऋषिनारदने सुद्युम्मा को नौ पेपर वालामंत्रनवाक्षर , निर्देशित , जोसर्वोच्च देवी कोइच्छा । उनकी तपस्या से अभिनीत, देवी सुद्युम्मा के रूप में प्रकट हुईं, जो उनकी महिला के रूप में इला में थीं। सुद्युम्मा ने देवी की स्तुति की, राजा की आत्मा को अपने साथ मिला लिया और इस प्रकार, इला को मोक्ष प्राप्त हुआ। [3]

भागवत पुराण , देवी-भागवत पुराण और लिंग पुराण में यह घोषणा की गई है कि इला पुरुष और महिला दोनों की शारीरिक रचना के साथ स्वर्ग में व्याख्या की गई है। [19] इला को पुरुरवा के माध्यम से चंद्र राजवंश का और उनके भाई इक्ष्वाकु और पुत्रों का उत्कल, और विन्तश्व के माध्यम से सौर राजवंश का मुख्य पूर्वज माना जाता है। [9] [23] सूर्य की संतान इला और चंद्रमा के पुत्र बुद्ध का विवाह, शास्त्रों में दर्ज सूर्य और चंद्र के पुत्र का पहला मिलन है। [11]

 "वैदिक साहित्य में इला-

वैदिक साहित्य इला को इदा के नाम से भी जाना जाता है।ऋग्वेदइदा में भोजन और जलपान का प्रतीक है, जिसे वाणी की देवी के रूप में जाना जाता है। [24] इला-इदा का संबंध ज्ञान की देवी से हैसरस्वती से भी है। [6] इला-इदा का उल्लेखऋग्वेदमें कई बार किया गया है, ज्यादातरअप्रसूक्त नामकभजनों में । उनका उल्लेख अक्सर सरस्वती और भारती (या माही) के साथ किया जाता है और पुरुरवा को उनके पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। [25] इडा अनुष्ठानिक यज्ञ करने में मनु के प्रशिक्षक हैं। वेदों के भाष्यकारसयानाके अनुसार - वह पृथ्वी की राजधानी है। [24] ऋग्वेद 3.123.4 में उल्लेख है कि "इला की भूमि" सरस्वती नदी के किनारे स्थित थी। [26] ऋग्वेद 3.29.3 में अग्नि को इला का पुत्र बताया गया है। [27]

शतपथ ब्राह्मणमें ,मनु नेसंतमूर्ति के लिए अग्नि-यज्ञ किया गया था। इदा यज्ञ से प्रकट हुई। उस परमित्र-वरुणने दावा किया था, लेकिन वह मनु के साथ रहे और उन्होंने मनु की रचना की शुरुआत की। [24] [28] इस पाठ में, इडा बलि के भोजन की देवी है। उन्हें मानवी (मनु की बेटी) और घृतपदी (घीटपकाने वाले पैर वाली) के रूप में वर्णित है और एक यज्ञ के दौरान उनके प्रतिनिधि एक गायक द्वारा किया जाता है, जिसे इडा भी कहा जाता है। [29] [30] पाठ में पुरुरवा का उल्लेख इला के पुत्र के रूप में किया गया है। [31]

" टिप्पणियाँ-

  1. ^ श्रवण ("नरकट का जंगल") को उस स्थान के रूप में वर्णित किया गया है जहाँ शिव के पुत्र हैं स्कंद का जन्म हुआ था। देवी -भागवत पुराण में बताया गया है कि एक बार ऋषियों ने शिव और पार्वती के प्रेम-प्रसंग में हस्तक्षेप किया, इसलिए शिव ने जंगल को शाप दिया कि इसमें प्रवेश करने वाले सभी पुरुष महिलाएं बदल जाएंगी।

 ( सन्दर्भ-)

उत्तर

  1. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी लिंग पुराण और महाभारत के लिए, ओफ्लेहर्टी पी. 303
  2. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी विलियम्स, जॉर्ज मेसन (2003)।हिंदू पौराणिक कथाओं की पुस्तिका. सेंट बारबरा: एबीसी-सीएलआईओ इंक। पी. 156 .आईएसबीएन 978-1-57607-106-9.
  3. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी अनुवाद के लिए देखें स्वामी विज्ञानानंद (2008) [1921]। श्रीमद् देवी भागवतम् । द. 1. बिब्लियोमार्केट, एलएलसी। प्र. 62-6.आईएसबीएन 978-1-4375-3059-9.
  4. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी ओ'फ्लेहर्टी पीपी। 303-4
  5. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी डी  पटनायक पृष्ठ 46
  6. ^ऊपर जाएँ:ए बी कोनर एंड स्पार्क्स (1998), पी. 183, "इला/सुद्युम्न"
  7. ^ हडसन, डी. डेनिस (2008)। भगवान का शरीर: आठवीं शताब्दी के कांचीपुरम में कृष्ण के लिए एक सम्राट का महल । ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस यू.एस. प्र. 413-4.आईएसबीएन 978-0-19-536922-9.
  8. ^ सैमुअल, जेफरी (2008)। योग और तंत्र की उत्पत्ति: 15वीं शताब्दी से भारतीय धर्म । कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी प्रेस. पी.एच.पी. 67-8.आईएसबीएन 978-0-521-69534-3.
  9. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी डी शशि, श्याम सिंह, एड. (1998). विश्वकोश इंडिका: भारत, पाकिस्तान, बांग्लादेश । द. 20 (1 संस्करण)। अनमोल प्रकाशन प्रा. लिमिटेड पी.आर. 517-8.आईएसबीएन 978-81-7041-859-7.
  10. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी डी  पारगिटर, एफ़आई (1972)। प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक परंपरा . दिल्ली: मोतीलाल बनारसीदास। प्र. 253-4.
  11. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी शुलमैन पृष्ठ 59
  12. ^ स्वामी वेंकटेशानंद (1988)। वाल्मिकी की रामायण । सनी प्रेस। प्र. 397-9.
  13. ^ वनिता, किदवई पृष्ठ 18
  14. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी रामायण के लिए, मेयर पी.आर. 374-5 या शुलमैन पृ. 58-9
  15. ^ ओफ़्लाहर्टी पी. 320
  16. ^ मेयर पी. 374
  17. ^ शुलमैन पीपी. 61-2
  18. ^ थापर 2013 , प्रे. 308.
  19. ^ऊपर जाएँ:ए बी पटनायक पृ.47
  20. ^ पारगिटर, एफ़आई (1972)। प्राचीन भारतीय ऐतिहासिक परंपरा , दिल्ली: मोतीलाल बनारसीदास, पृष्ठ 255।
  21. ^ गर्ग, गंगा राम (1992)। हिंदू जगत का विश्वकोश । द. 1. कॉन्सेप्ट पब्लिशिंग कंपनी। पी. 17.आईएसबीएन 978-81-7022-374-0.
  22. ^ ओफ़्लाहर्टी पृष्ठ 305
  23. ^ सिंह, नरेन्द्र, एड. (2001). जैन धर्म का विश्वकोश । अनमोल प्रकाशन प्रा. लिमिटेड पी. 1724.
  24. ^ऊपर जाएँ:ए बी सी डौसन, जॉन (2004) [1820-1881]। हिंदू पौराणिक कथाओं और धर्म, भूगोल, इतिहास का एक शास्त्रीय शब्दकोश । एशियाई स्टार्ट-अप सेवाएँ। प्रा. 122-23. आईएसबीएन 978-81-206-1786-5.
  25. ^ मिश्रा, फैक्ट्री (2007)। प्राचीन भारतीय राजवंश , मुंबई: भारतीय विद्या भवन, आईएसबीएन  81-7276-413-8, पृष्ठ 57
    • ऋग्वेद I.13.9, I.142.9, I.188.8, II.3.8, III.4.8, VII.2.8, X.70.8 और X.110.8 के लिए भजन देखें
    • पुरुरवा की माता के लिए, ऋग्वेद X.95,18
  26. ^ "ऋग्वेद के भजन" । बनारस, ईजे लेज़र एंड कंपनी 1920।
  27. ^ "ऋग्वेद के भजन" । बनारस, ईजे लेज़र एंड कंपनी 1920।
  28. ^ एगेलिंग, जूलियस (tr.) (1882)। शतपथ ब्राह्मण I.8.1" । शतपथ ब्राह्मण भाग 1 (SBI12) । पवित्र-texts.com पर । 2009-11-12 पुनःप्राप्ति .
  29. ^ उपाध्याय, जेपी (1967) शतपथ ब्राह्मण (हिन्दी अनुवाद के साथ संस्कृत पाठ), खंड I, नई दिल्ली: प्राचीन वैज्ञानिक अध्ययन अनुसंधान संस्थान, पीपी.158-67- शतपथ ब्राह्मण I.8.1
  30. ^ हेस्टरमैन, जेसी (1993)। पवित्र संस्कार की हुई दुनिया: प्राचीन भारतीय अनुष्ठान में एक निबंध । शिकागो: शिकागो यूनिवर्सिटी प्रेस। पी. 127.आईएसबीएन 0-226-32300-5.
  31. ^ मिश्रा, फैक्ट्री (2007)। प्राचीन भारतीय राजवंश , मुंबई: भारतीय विद्या भवन, आईएसबीएन  81-7276-413-8, पृष्ठ 59 - शतपथ ब्राह्मण XI.5.1

आख़िर का कहना हैसंपादन करना

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