अनादिमध्यान्तमनन्तवीर्य
मनन्तबाहुं शशिसूर्यनेत्रम्।
पश्यामि त्वां दीप्तहुताशवक्त्रम्
स्वतेजसा विश्वमिदं तपन्तम्।।11.19।।
आपको मैं आदि, मध्य और अन्तसे रहित, अनन्त प्रभावशाली, अनन्त भुजाओंवाले, चन्द्र और सूर्यरूप नेत्रोवाले, प्रज्वलित अग्निके समान मुखोंवाले और अपने तेजसे संसारको संतप्त करते हुए देख रहा हूँ।
सहस्रशीर्षा पुरुषः सहस्राक्षः सहस्रपात् ।
स भूमिं विश्वतो वृत्वात्यतिष्ठद्दशाङ्गुलम् ॥१॥
पुरुष एवेदं सर्वं यद्भूतं यच्च भव्यम् ।
उतामृतत्वस्येशानो यदन्नेनातिरोहति ॥२॥
एतावानस्य महिमातो ज्यायाँश्च पूरुषः ।
पादोऽस्य विश्वा भूतानि त्रिपादस्यामृतं दिवि ॥३॥
त्रिपादूर्ध्व उदैत्पुरुषः पादोऽस्येहाभवत्पुनः ।
ततो विष्वङ्व्यक्रामत्साशनानशने अभि ॥४॥
तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥५॥
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥६॥
ऋग्वेदः सूक्तं १०.९०-५-६-७
तस्माद्विराळजायत विराजो अधि पूरुषः ।
स जातो अत्यरिच्यत पश्चाद्भूमिमथो पुरः ॥५॥
सायण-भाष्य-
विष्वङ् व्यक्रामदिति यदुक्तं तदेवात्र प्रपञ्च्यते । “तस्मात् आदिपुरुषात् “विराट् ब्रह्माण्डदेहः “अजायत उत्पन्नः । विविधानि राजन्ते वस्तून्यत्रेति विराट् । “विराजोऽधि विराड्देहस्योपरि तमेव देहमधिकरणं कृत्वा “पुरुषः तद्देहाभिमानी कश्चित् पुमान् अजायत । सोऽयं सर्ववेदान्तवेद्यः परमात्मा स्वयमेव स्वकीयया मायया विराड्देहं ब्रह्माण्डरूपं सृष्ट्वा तत्र जीवरूपेण प्रविश्य ब्रह्माण्डाभिमानी देवतात्मा जीवोऽभवत् । एतच्चाथर्वणिका उत्तरतापनीये विस्पष्टमामनन्ति---- स वा एष भूतानीन्द्रियाणि विराजं देवताः कोशांश्च सृष्ट्वा प्रविश्यामूढो मूढ इव व्यवहरन्नास्ते माययैव' (नृ. ता. २. १, ९) इति । “स “जातः विराट् पुरुषः “अत्यरिच्यत अतिरिक्तोऽभूत् । विराड्व्यतिरिक्तो देवतिर्यङ्मनुष्यादिरूपोऽभूत् । “पश्चात् देवादिजीवभावादूर्ध्वं “भूमिं ससर्जेति शेषः । “अथो भूमिसृष्टेरनन्तरं तेषां जीवानां “पुरः ससर्ज । पूर्यन्ते सप्तभिर्धातुभिरिति पुरः शरीराणि ॥॥१७॥
यत्पुरुषेण हविषा देवा यज्ञमतन्वत ।
वसन्तो अस्यासीदाज्यं ग्रीष्म इध्मः शरद्धविः ॥६॥
सायणभाष्य-
यत् यदा पूर्वोक्तक्रमेणैव शरीरेषुत्पन्नेषु सत्सु "देवाः उत्तरसृष्टिसिद्धयर्थं बाह्यद्रव्यस्यानुत्पन्नत्वेन हविरन्तरसंभवात् पुरुषस्वरूपमेव मनसा हविष्ट्वेन संकल्प्य “पुरुषेण पुरुषाख्येन “हविषा मानसं यज्ञम् “अतन्वत अन्वतिष्ठन् तदानीम् “अस्य यज्ञस्य “वसन्तः वसन्तर्तुरेव “आज्यम् “आसीत् अभूत् । तमेवाज्यत्वेन संकल्पितवन्त इत्यर्थः । एवं “ग्रीष्म “इध्मः आसीत्। तमेवेध्मत्वेन संकल्पितवन्त इत्यर्थः। तथा “शरद्धविः आसीत् । तामेव पुरोडाशादिहविष्ट्वेन संकल्पितवन्त इत्यर्थः । पूर्वं पुरुषस्य हविःसामान्यरूपत्वेन संकल्पः । अनन्तरं वसन्तादीनामाज्यादिविशेषरूपत्वेन संकल्प इति द्रष्टव्यम् ॥
तं यज्ञं बर्हिषि प्रौक्षन्पुरुषं जातमग्रतः ।
तेन देवा अयजन्त साध्या ऋषयश्च ये ॥७॥
सायणभाष्य-
विष्वङ् व्यक्रामदिति यदुक्तं तदेवात्र प्रपञ्च्यते । “तस्मात् आदिपुरुषात् “विराट् ब्रह्माण्डदेहः “अजायत उत्पन्नः । विविधानि राजन्ते वस्तून्यत्रेति विराट् । “विराजोऽधि विराड्देहस्योपरि तमेव देहमधिकरणं कृत्वा “पुरुषः तद्देहाभिमानी कश्चित् पुमान् अजायत । सोऽयं सर्ववेदान्तवेद्यः परमात्मा स्वयमेव स्वकीयया मायया विराड्देहं ब्रह्माण्डरूपं सृष्ट्वा तत्र जीवरूपेण प्रविश्य ब्रह्माण्डाभिमानी देवतात्मा जीवोऽभवत् । एतच्चाथर्वणिका उत्तरतापनीये विस्पष्टमामनन्ति---- स वा एष भूतानीन्द्रियाणि विराजं देवताः कोशांश्च सृष्ट्वा प्रविश्यामूढो मूढ इव व्यवहरन्नास्ते माययैव' (नृ. ता. २. १, ९) इति । “स “जातः विराट् पुरुषः “अत्यरिच्यत अतिरिक्तोऽभूत् । विराड्व्यतिरिक्तो देवतिर्यङ्मनुष्यादिरूपोऽभूत् । “पश्चात् देवादिजीवभावादूर्ध्वं “भूमिं ससर्जेति शेषः । “अथो भूमिसृष्टेरनन्तरं तेषां जीवानां “पुरः ससर्ज । पूर्यन्ते सप्तभिर्धातुभिरिति पुरः शरीराणि ॥॥१७॥
बुध की चन्द्रमा से उत्पत्ति भी पूर्णत: काल्पनिक थ्योरी पर आधारित है।
चंद्रमा के गुरु थे देवगुरु बृहस्पति। बृहस्पति की पत्नी तारा चंद्रमा की सुंदरता पर मोहित होकर उनसे प्रेम करने लगी।
तदोपरांत वह चंद्रमा के संग सहवास भी कर गई एवं बृहस्पति को छोड़ ही दिया।
बृहस्पति के वापस बुलाने पर उसने वापस आने से मना कर दिया, जिससे बृहस्पति क्रोधित हो उठे तब बृहस्पति एवं उनके शिष्य चंद्र के बीच युद्ध आरंभ हो गया।
इस युद्ध में असुर गुरु शुक्राचार्य चंद्रमा की ओर हो गये और अन्य देवता बृहस्पति के साथ हो लिये। अब युद्ध बड़े स्तर पर होने लगा।
क्योंकि यह युद्ध तारा की कामना से हुआ था, अतः यह तारकाम्यम कहलाया।
इस वृहत स्तरीय युद्ध से सृष्टिकर्त्ता ब्रह्मा को भय हुआ कि ये कहीं पूरी सृष्टि को ही लील न कर जाए, तो वे बीच बचाव कर इस युद्ध को रुकवाने का प्रयोजन करने लगे।
उन्होंने तारा को समझा-बुझा कर चंद्र से वापस लिया और बृहस्पति को सौंपा।
इस बीच तारा के एक सुंदर पुत्र जन्मा जो बुध कहलाया। चंद्र और बृहस्पति दोनों ही इसे अपना बताने लगे और स्वयं को इसका पिता बताने लगे यद्यपि तारा चुप ही रही।
माता की चुप्पी से अशांत व क्रोधित होकर स्वयं बुद्ध ने माता से सत्य बताने को कहा। तब तारा ने बुध का पिता चंद्र को बताया।
दूसरे मत से तारा बृहस्पति की पत्नी थी। चंद्र उनके सौंदर्य से मोहित होकर विवाह प्रस्ताव दिया तो तारा ने उसे ठुकरा दिया। इससे चंद्र क्रोधित हो परे और बलपूर्वक उनका बलात्कार किया। इस बलात्कार के कारण तारा गर्भवती हुई और बुध का जन्म हुआ।
अब इला की काल्पनिक सिद्धान्त हीन थ्योरी भी उने बुध की पत्नी नहीं बनाती हैं क्योंकि गर्भवास की पूर्ण अवधि नौ महीने होती है ।और नौ महीनों तक इला का स्त्री बने रहना सम्भव नहीं क्यों की उन्हें एक महीना स्त्री और एक महीना पुरुष होना पड़ता है। इस प्रकार उनका न तो स्त्रीत्व ही सुरक्षित है और न पुरुषत्व ही ।
पुराणों के इसी आख्यान को हम निम्नलिखित प्रस्तुत करते हैं
वैवस्वत मनुके पुत्र राजा सुद्युनकी कथा
अध्याय एक – राजा सुद्युम्न का स्त्री बनना (9.1)
1 राजा परीक्षित ने कहा: हे प्रभु श्रील शुकदेव गोस्वामी, आप विभिन्न मनुओं से सारे कालों का विस्तार से वर्णन कर चुके हैं और उनमें असीम शक्तिमान पूर्ण भगवान के अद्भुत कार्यकलापों का भी वर्णन कर चुके हैं। मैं भाग्यशाली हूँ कि मैंने आपसे ये सारी बातें सुनीं।
2-3 द्रविड़ देश के साधु सदृश राजा सत्यव्रत को भगवतकृपा से गत कल्प के अन्त में आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त हुआ और वह अगले मन्वन्तर में विवस्वान का पुत्र वैवस्वत मनु बना। मुझे इसका ज्ञान आपसे प्राप्त हुआ है। मैंने यह भी जाना कि इक्ष्वाकु इत्यादि राजा उसके पुत्र थे, जैसा कि आप पहले बतला चुके हैं।
4 हे परम भाग्यशाली श्रील शुकदेव गोस्वामी, हे महान ब्राह्मण, कृपा करके हमको उन सारे राजाओं के वंशों तथा गुणों का पृथक-पृथक वर्णन कीजिये, क्योंकि हम आपसे ऐसे विषयों को सुनने के लिए सदैव उत्सुक रहते हैं।
5 कृपा करके हमें वैवस्वत मनु के वंश में उत्पन्न उन समस्त विख्यात राजाओं के पराक्रम के विषय में बतलायें जो पहले हो चुके हैं, जो भविष्य में होंगे तथा जो इस समय विद्यमान हैं।
6 सूत गोस्वामी ने कहा: जब वैदिक ज्ञान के पण्डितों की सभा में सर्वश्रेष्ठ धर्मज्ञ श्रील शुकदेव गोस्वामी से महाराज परीक्षित ने इस प्रकार से प्रार्थना की, तो वे इस प्रकार बोले।
7 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे शत्रुओं का दमन करने वाले राजा, अब तुम मुझसे मनु के वंश के विषय में विस्तार से सुनो। मैं यथासम्भव तुम्हें बतलाऊँगा, यद्यपि सौ वर्षों में भी उसके विषय में पूरी तरह नहीं बतलाया जा सकता।
8 जीवन की उच्च तथा निम्न अवस्थाओं में पाये जाने वाले जीवों के परमात्मा दिव्य परम पुरुष कल्प के अन्त में विद्यमान थे, जब न तो यह ब्रह्माण्ड था, न अन्य कुछ था। तब केवल वे ही विद्यमान थे।
9 हे राजा परीक्षित, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की नाभि से एक सुनहला कमल उत्पन्न हुआ, जिस पर चार मुखों वाले ब्रह्माजी ने जन्म लिया।
10 ब्रह्माजी के मन से मरीचि ने जन्म लिया। दक्ष महाराज की कन्या और मरीचि के संयोग से कश्यप प्रकट हुए। कश्यप द्वारा अदिति के गर्भ से विवस्वान ने जन्म लिया।
11-12 हे भारतवंश के श्रेष्ठ राजा, संज्ञा के गर्भ से विवस्वान को श्राद्धदेव मनु प्राप्त हुए। श्राद्धदेव मनु ने अपनी इन्द्रियों को जीत लिया था। उन्हें अपनी पत्नी श्रद्धा के गर्भ से दस पुत्र प्राप्त हुए। इन पुत्रों के नाम थे – इक्ष्वाकु, नृग, शर्याति, दिष्ट, धृष्ट, करुषक, पृषध्र, नभग तथा कवि।
13 आरम्भ में मनु को एक भी पुत्र नहीं था। अतएव आध्यात्मिक ज्ञान में अत्यन्त शक्ति सम्पन्न महर्षि वसिष्ठ ने (उसको पुत्र प्राप्ति के लिए) मित्र तथा वरुण देवताओं को प्रसन्न करने के लिए एक यज्ञ सम्पन्न किया।
14 उस यज्ञ के दौरान मनु की पत्नी श्रद्धा, जो केवल दूध पीकर जीवित रहने का व्रत कर रही थी, यज्ञ करने वाले पुरोहित के निकट गई, उन्हें प्रणाम किया और उनसे एक पुत्री की याचना की।
15 प्रधान पुरोहित द्वारा यह कहे जाने पर "अब आहुति डालो" आहुति डालने वाले (होता) ने आहुति डालने के लिए घी लिया। तब उसे मनु की पत्नी की याचना स्मरण हो आई और उसने वषट शब्दोच्चार करते हुए यज्ञ सम्पन्न किया।
16 मनु ने वह यज्ञ पुत्र प्राप्ति के लिए प्रारम्भ किया था, किन्तु मनु की पत्नी के अनुरोध पर पुरोहित के विपथ होने से इला नाम की एक कन्या उत्पन्न हुई। इस पुत्री को देखकर मनु अधिक प्रसन्न नहीं हुए। अतएव वे अपने गुरु वसिष्ठ से इस प्रकार बोले।
17 हे प्रभु, आप लोग वैदिक मंत्रों के उच्चारण में पटु हैं। तो फिर वांछित फल से विपरीत फल क्यों निकला? यही मेरे लिए शोक का विषय है। वैदिक मंत्रों का ऐसा उल्टा प्रभाव नहीं होना चाहिए था।
18 आप सभी संयमित, मन से संतुलित तथा परम सत्य से परिचित हो। आप सबने अपनी तपस्याओं के द्वारा सारे भौतिक कल्मषों से अपने आप को पूरी तरह स्वच्छ कर लिया है। आप सबके वचन देवताओं के वचनों की तरह कभी मिथ्या नहीं होते। तो फिर यह कैसे सम्भव हुआ कि आप सबका संकल्प विफल हो गया?
19 मनु के इन वचनों को सुनकर अत्यन्त शक्तिसम्पन्न प्रपितामह वसिष्ठ पुरोहित की त्रुटि को समझ गए। अतः वे सूर्यपुत्र से इस प्रकार बोले।
20 तुम्हारे पुरोहित द्वारा मूल उद्देश्य में विचलन के कारण लक्ष्य में यह त्रुटि हुई है। फिर भी मैं अपने पराक्रम से तुम्हें एक अच्छा पुत्र प्रदान करूँगा।
21 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: हे राजा परीक्षित, अत्यन्त सुविख्यात एवं शक्तिसम्पन्न वसिष्ठ ने यह निर्णय लेने के बाद, परम पुरुष भगवान विष्णु से इला को पुरुष में परिणत करने के लिए प्रार्थना की।
22 परम नियन्ता परमेश्वर ने वसिष्ठ से प्रसन्न होकर उन्हें इच्छित वरदान दिया। इस तरह इला सुद्युम्न नामक एक सुन्दर पुरुष में परिणत हो गई।
23-24 हे राजा परीक्षित, एक बार वीर सुद्युम्न अपने कुछ मंत्रियों और साथियों के साथ, सिंधुप्रदेश से लाये गये घोड़े पर सवार होकर शिकार करने जंगल में गया। वह कवच पहने था और धनुष-बाण से सुसज्जित था। वह अत्यन्त सुन्दर था। वह पशुओं का पीछा करते हुए तथा उनको मारते हुए जंगल के उत्तरी भाग में पहुँच गया।
25 वहाँ उत्तर में मेरु पर्वत की तलहटी में सुकुमार नामक एक वन है जहाँ शिवजी सदैव उमा के साथ आनन्द-विहार करते हैं। सुद्युम्न उस वन में प्रविष्ट हुआ।
26 हे राजा परीक्षित, ज्योंही अपने शत्रुओं को दमन करने में निपुण सुद्युम्न उस जंगल में प्रविष्ट हुआ, त्योंही उसने देखा कि वह एक स्त्री में और उसका घोड़ा एक घोड़ी में परिणत हो गये हैं।
27 जब उसके साथियों ने भी अपने स्वरूपों एवं अपने लिंग को विपरीत लिंग में परिणत हुआ देखा, तो वे सभी अत्यन्त खिन्न हो गये और एक दूसरे की ओर देखते रह गये।
28 महाराज परीक्षित ने कहा: हे सर्वश्रेष्ठ शक्तिसम्पन्न ब्राह्मण, यह स्थान इतना शक्तिशाली क्यों था और किसने इसे इतना शक्तिशाली बनाया था? कृपा करके इस प्रश्न का उत्तर दीजिये, क्योंकि मैं इसके विषय में जानने के लिए अत्यधिक उत्सुक हूँ।
29 श्रील शुकदेव गोस्वामी ने कहा: एक बार आध्यात्मिक अनुष्ठानों का दृढ़ता से पालन करने वाले महान साधु पुरुष उस जंगल में शिवजी का दर्शन करने आए। उनके तेज से समस्त दिशाओं का सारा अंधकार दूर हो गया।
30-31 जब देवी अम्बिका ने इन महान साधु पुरुषों को देखा, तो वे अत्यधिक लज्जित हुईं। साधु पुरुषों ने देखा कि गौरीशंकर इस समय विहार कर रहे हैं, इसलिए वे वहाँ से लौट गए और नर-नारायण आश्रम की ओर चल पड़े।
32 तत्पश्चात अपनी पत्नी को प्रसन्न करने के लिए शिवजी ने कहा, “कोई भी पुरुष इस स्थान में प्रवेश करते ही तुरन्त स्त्री बन जाएगा।”
33 उस समय से कोई भी पुरुष ने उस जंगल में प्रवेश नहीं किया था। किन्तु अब राजा सुद्युम्न स्त्री रूप में परिणत होकर अपने साथियों समेत एक जंगल से दूसरे जंगल में घूमने लगा।
34 सुद्युम्न सर्वोत्तम सुन्दर स्त्री रूप में परिणत कर दिया गया था और वह अन्य स्त्रियों से घिरी हुई थी। चन्द्रमा के पुत्र बुध को इस सुन्दरी को अपने आश्रम के निकट विचरण करते देखकर उसके साथ भोग करने की चाहत हुई।
35 उस सुन्दर स्त्री ने भी चन्द्रमा के राजकुमार बुध को अपना पति बनाना चाहा। इस तरह बुध ने उसके गर्भ से पुरूरवा नामक एक पुत्र प्राप्त किया।
36 मैंने विश्वस्त सूत्रों से सुना है कि मनु-पुत्र सुद्युम्न ने इस प्रकार स्त्रीत्व प्राप्त करके अपने कुलगुरु वसिष्ठ का स्मरण किया।
37 सुद्युम्न की इस शोचनीय स्थिति को देखकर वसिष्ठ अत्यधिक दुखी हुए। उन्होंने सुद्युम्न को उसका पुरुषत्व वापस दिलाने की इच्छा से फिर से शिवजी की पूजा प्रारम्भ कर दी।
38-39 हे राजा परीक्षित, शिवजी वसिष्ठ पर प्रसन्न हुए। अतएव शिवजी ने उन्हें संतुष्ट करने तथा पार्वती को दिये गये अपने वचन को रखने के उद्देश्य से उस सन्त पुरुष से कहा, “आपका शिष्य सुद्युम्न एक मास तक नर रहेगा और दूसरे मास नारी होगा। इस तरह वह इच्छानुसार जगत पर शासन कर सकेगा।
मासं पुमान् स भविता मासं स्त्री तव गोत्रजः ।
इत्थं व्यवस्थया कामं सुद्युम्नोऽवतु मेदिनीम् ॥ ३९ ॥
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40 इस प्रकार गुरु की कृपा पाकर शिवजी के वचनों के अनुसार सुद्युम्न को प्रत्येक दूसरे मास में उसका इच्छित पुरुषत्व फिर से प्राप्त हो जाता था और इस तरह उसने राज्य पर शासन चलाया, यद्यपि नागरिक इससे संतुष्ट नहीं थे।
41 हे राजन, सुद्युम्न के तीन अत्यन्त पवित्र पुत्र हुए जिनके नाम थे उत्कल, गय तथा विमल, जो दक्षिणा-पथ के राजा बने।
42 तत्पश्चात, समय आने पर जब जगत का राजा सुद्युम्न काफी वृद्ध हो गया, तो उसने अपना सारा साम्राज्य अपने पुत्र पुरूरवा को सौंप दिया और स्वयं जंगल में चला गया।
जातायत्तेन मानसाः।३.५।
मरीचिरभवत् पूर्व ततोऽत्रिर्भगवान् ऋषिः।
अङिगराश्चाभवत्पश्चात् पुलस्त्यस्तदनन्तरम्।३.६।
बह्मा के मन से केवल मरीचि उत्पन्न हुए है। इस लिए वे ही मानस पुत्र कहलाए!
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परावरेषां भूतानां आत्मा यः पुरुषः परः।
स एवासीद् इदं विश्वं कल्पान्ते अन्यत् न किञ्चन ॥८॥
तस्य नाभेः समभवत् पद्मकोषो हिरण्मयः ।
तस्मिन् जज्ञे महाराज स्वयंभूः चतुराननः ॥९॥
मरीचिः मनसस्तस्य जज्ञे तस्यापि कश्यपः ।
दाक्षायण्यां ततोऽदित्यां विवस्वान् अभवत् सुतः ॥१०॥
(भागवत पुराण स्कन्ध 9/1-अध्याय )
अनुवाद-
8 जीवन की उच्च तथा निम्न अवस्थाओं में पाये जाने वाले जीवों के परमात्मा दिव्य परम पुरुष कल्प के अन्त में विद्यमान थे, जब न तो यह ब्रह्माण्ड था, न अन्य कुछ था। तब केवल वे ही विद्यमान थे।
9 हे राजा परीक्षित, पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान की नाभि से एक सुनहला कमल उत्पन्न हुआ, जिस पर चार मुखों वाले ब्रह्माजी ने जन्म लिया।
ब्रह्माजी के मनसे मरीचि और मरीचि के पुत्र कश्यप हुए। उनकी धर्मपत्नी दक्षनन्दिनी अदितिसे विवस्वान् (सूर्य) का जन्म हुआ॥ 10।
इला - पृथ्वी । बुद्धि मती स्त्री ।गाय। वाणी- (काव्यत्व शक्ति)।
कृत्वा स्त्रीरूपमात्मानमुमेशो गोपतिध्वजः ।
देव्याः प्रियचिकीर्षुः संस्तस्मिन्पर्वतनिर्झरे । ७.८७.१२ ।
ये तु तत्र वनोद्देशे सत्त्वाः पुरुषवादिनः ।
वृक्षाः पुरुषनामानस्ते ऽभवन् स्त्रीजनास्तदा । ७.८७.१३ ।
यच्च किञ्चन तत्सर्वं नारीसञ्ज्ञं बभूव ह ।
एतस्मिन्नन्तरे राजा स इलः कर्दमात्मजः ।निघ्नन्मृगसहस्राणि तं देशमुपचक्रमे । ७.८७.१४।
____________________
स दृष्ट्वा स्त्रीकृतं सर्वं सव्यालमृगपक्षकम् ।आत्मनं स्त्रीकृतं चैव सानुगं रघुनन्दन ।। ७.८७.१५ ।।
अध्याय 87 - इला की कहानी
यच्च किञ्चन तत्सर्वं नारीसञ्ज्ञं बभूव ह ।एतस्मिन्नन्तरे राजा स इलः कर्दमात्मजः।निघ्नन्मृगसहस्राणि तं देशमुपचक्रमे । ७.८७.१४।
____________________
स दृष्ट्वा स्त्रीकृतं सर्वं सव्यालमृगपक्षकम् ।आत्मनं स्त्रीकृतं चैव सानुगं रघुनन्दन ।। ७.८७.१५ ।।
इला ( संस्कृत : इल ) या इला ( किंवदंतियों में एक देवता है , जो अपनी लिंग परिवर्तन के लिए जाना जाता है। पुरुष के रूप में उन्हें इला या सुद्युम्न के नाम से जाना जाता है और महिला के रूप में उन्हें इला कहा जाता है। इला को भारतीय राजवंश के चंद्र वंश का मुख्य पूर्वज माना जाता है - जिसे इलास ("इला के वंशज") के रूप में भी जाना जाता है।
इला/इला | |
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देवनागरी | इल/इला |
संस्कृत लिप्यंतरण | इला/इला |
संबंध | देवी |
धाम | बुधलोक |
मंत्र | ॐ इल्ली नमः |
व्यक्तिगत जानकारी | |
अभिभावक |
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भाई-बहन | इक्ष्वाकु और 9 अन्य |
बातचीत करना | बुद्ध (एक महिला के रूप में) |
बच्चा | पुरुरवा (स्त्री के रूप में पुत्र) उत्कल, गया और विनताश्व (पुरुष के रूप में पुत्र) |
जबकि कहानी के कई संस्करण मौजूद हैं, इला को आम तौर पर वैवस्वत मनु की बेटी या बेटे के रूप में वर्णित किया गया है और इस प्रकार सौर राजवंश के संस्थापक इक्ष्वाकु के भाई-बहन के रूप में वर्णित किया गया है। जिन वर्जन में इला का जन्म महिला के रूप में हुआ है, वह अपने जन्म के तुरंत बाद डेविए प्लीज से पुरुष के रूप में परिवर्तित हो गई है। गलती से एक वयस्क के रूप में पवित्र उपवन में प्रवेश करने के बाद, इला को या तो हर महीने लिंग निर्धारण या एक महिला बनने का शाप दिया जाता है। एक महिला के रूप में, इला ने बुध ग्रह के देवता और चंद्र देवता चंद्र (सोम) के पुत्र बुध से विवाह किया, और उनके चंद्र वंश के पिता पुरुरवा ने एक पुत्र को जन्म दिया। पुरुरवा के जन्म के बाद इला ने फिर एक आदमी की जगह ले ली और तीन बेटों को जन्म दिया।
वेदों में , इला की इदा ( संस्कृत : इड़ा ), वाणी की देवी के रूप में प्रशंसा की गई है, और इसे पुरुरवा की माँ के रूप में वर्णित किया गया है।
इला के महाकाव्य की कहानी पुराणों के साथ-साथ भारतीय महाकाव्यों , रामायण और महाभारत में भी वर्णित है।
जन्म
लिंग पुराणऔरमहाभारतके अनुसार , इला का जन्म मानव जाति के पूर्वज वैवस्वत मनु और उनकी पत्नी श्रद्धा की सबसे बड़ी बेटी के रूप में हुआ था।हालाँकि, माता-पिता एक बेटे की इच्छा रखते थे और इसलिए मित्रऔरवरुणदेवताओं को प्रणाम करने के लिए प्रार्थना और तपस्या की मांग की गई , इला का लिंग बदल दिया गया। लड़के का नाम सुद्युम्मा रखा गया। [1] [2] भागवतपुराण,देवी-भागवत पुराण, [3] कूर्मपुराण,हरिवंश,मार्कंडेय पुराणऔरपद्म पुराण(आदि भागवत पुराण आदि ग्रंथों के रूप में) एक प्रकार का वर्णन करते हैं : इला के माता-पिता को लंबे समय तक कोई संत नहीं हुआ और उन्होंने समाधान के लिएअगस्त्य ऋषि के पास पहुंचे। ऋषि ने दंपत्ति के लिए पुत्रप्राप्ति के लिए मित्रा और वरुण ने एक को समर्पित कियायज्ञ (अग्नि यज्ञ) किया। या तो अनुष्ठान में त्रुटि के कारण या बलिदान में विफलता के कारण, मित्रा और वरुण ने एक बेटी को भेजा। एक संस्करण में, इसमें देवताओं से प्रार्थना की, प्रार्थना इला का लिंग बदल दिया गया। दूसरे संस्करण में, यह परिवर्तन तब होता है जब त्रुटिपूर्ण मंत्रों में सुधार किया जाता है और पुत्र को दोष दिया जाता है। [2] [4] [5] [6] एक प्रकार के अनुसार, श्रद्धा एक बेटी की कामना करती थी; यज्ञ समयवशिष्ठ ने उनकी इच्छा पर ध्यान दिया और इस प्रकार, एक बेटी का जन्म हुआ। हालाँकि, मनु एक बेटे की इच्छा रखते थे इसलिए सोया ने विष्णु से अपनी बेटी के लिंग परिवर्तन की अपील की। इला का नाम महिमा सुद्युम्न रखा गया। [7] वृत्तांतों में इला को मनु की सबसे बड़ी या सबसे छोटी संतान के बारे में बताया गया है। मनु के संत के रूप में इला के नौ भाई थे, जिनमें सबसे उल्लेखनीय सौर वंश के संस्थापक थेइक्ष्वाकुथे। [8] [9] [10] मनु के पुत्र के रूप में इला सूर्य के स्थान हैं । [11] वायु पुराण और ब्रह्माण्ड पुराण में एक अन्य वृत्तान्त के अनुसार इला का जन्म स्त्री से हुआ था और वह स्त्री ही बनी रही। [10]
रामायणइला का जन्म भगवान ब्रह्मा की छाया से हुआप्रजापतिकर्दम के पुत्र के रूप में हुआ है। इला की कहानी रामायण के उत्तर कांड अध्याय में अश्वमेध -घोड़े के बलिदान की महिमा का वर्णन बताया गया है। [5] [12]
बुद्ध को श्राप और विवाह
रामन ,लिंग पुराणऔरमहाभारतमें , इलाबहलिकाका राजा बन जाता है । एक जंगल में शिकार करते समय, इला ने गलती से श्रवण ("नरकट का जंगल"), जो भगवान शिव की पत्नी देवी थीपार्वतीका पवित्र उपवन था, में व्यवस्था कर ली । श्रवण में प्रवेश करने पर, शिव को ठीक करने के लिए सभी पुरुष, जिनमें पेड़ और जानवर भी शामिल हैं, महिलाओं को बदल दिया जाता है। [टिप्पणियाँ 1] एक किंवदंती है कि एक मादा यक्षिणी ने अपने पति को राजा से बचाने के लिए खुद को हिरण के रूप में प्रच्छन्न किया और इला को उपवन में ले लिया। [11] लिंग पुराण और महाभारत में इल के लिंग परिवर्तन से चंद्र वंश प्रारंभ होने के लिए शिव का एक रेखांकित कार्य बताया गया है। [1] भागवत पुराण और अन्य। पाठ हैं कि इला के पूरे दल ने, साथ ही उसके घोड़ों ने भी अपना लिंग बदल लिया। [4]
रामायणके अनुसार , जब इला मदद के लिएशिवके पास समुद्री डाकू, तो शिव ने हँसी उड़ाई, लेकिन प्यारी पार्वती ने श्राप को कम कर दिया और इला को हर महीने लिंग परिवर्तन की लंबाई दी। हालाँकि, एक पुरुष के रूप में, वह एक महिला के रूप में अपने जीवन को याद नहीं करती और इसके विपरीत। जब इला अपनी महिला परिचारिका के साथ अपने नए रूप में जंगल में घूम रही थी,बुध ग्रहचंद्रमा और देव के देवताचंद्रके पुत्र बुद्ध ने उस पर ध्यान दिया।हालाँकि वह तपस्याकर रहा था , लेकिन इला की स्वाभाविकता के कारण उसकी पहली नजर उसी से प्यार हो गई। बुद्ध ने इला के परिचारकों कोकिम्पुरुष(उभयलिंगी, अर्थात् "क्या यह एक आदमी है?") में बदल दिया गया और उन्हें भाग जाने का आदेश दिया गया, यह वादा करता है कि वे इला के समान मित्र की तलाश करते हैं। [14]
इला ने बुध से विवाह किया और उसके साथ पूरा एक महीना बिताया और विवाह संपन्न किया। हालाँकि, इला एक सुबह सुद्युम्न के रूप में उठी और उसे पिछले महीने के बारे में कुछ भी याद नहीं था। बुद्ध ने इला को बताया कि उसके अनुचर पत्थरों की बारिश में मारे गए हैं और इला को एक साल तक उसके साथ रहने के लिए मना लिया। एक महिला के रूप में बिताए प्रत्येक महीने के दौरान, इला ने बुद्ध के साथ अच्छा समय बिताया। एक पुरुष के रूप में प्रत्येक महीने के दौरान, इला ने पवित्र तरीकों की ओर रुख किया और बुद्ध के मार्गदर्शन में तपस्या की। नौवें महीने में इला ने पुरुरवा को जन्म दिया , जो बड़े होकर चंद्र वंश के पहले राजा बने। तब, बुध और इला के पिता कर्दम की सलाह के अनुसार, इला ने शिव को प्रसन्न किया और शिव ने इला का पुरुषत्व स्थायी रूप से बहाल कर दिया। [5] [14]
विष्णु पुराण की एक अन्य किंवदंती में विष्णु को सुद्युम्मा के रूप में इला की मर्दानगी बहाल करने का श्रेय दिया गया है। [2] [15] भागवत पुराण और अन्य। ग्रंथों से पता चलता है कि पुरुरवा के जन्म के बाद, इला के नौ भाइयों - घोड़े की बलि से - या ऋषि वशिष्ठ - इला के पारिवारिक पुजारी - ने शिव को प्रसन्न किया और उन्हें इला को एक महीने के पुरुषत्व का वरदान देने के लिए मजबूर किया, जिससे वह किम्पुरुष में बदल गया। . [3] [4] [9] लिंग पुराण और महाभारत में पुरुरवा के जन्म का वर्णन है, लेकिन इला की वैकल्पिक लिंग स्थिति के अंत का वर्णन नहीं किया गया है। वास्तव में, महाभारत में इला को पुरुरवा की माता और पिता दोनों बताया गया है। [16] वायु पुराण और ब्रह्मांड पुराण में पाए गए एक अन्य वृत्तांत के अनुसार , इला का जन्म महिला से हुआ था, उसने बुध से शादी की, फिर सुद्युम्न नामक एक पुरुष में बदल गई। तब सुद्युम्न को पार्वती ने श्राप दिया और वह एक बार फिर स्त्री में बदल गया, लेकिन शिव के वरदान से वह एक बार फिर पुरुष बन गया। [10]
कहानी के लगभग सभी संस्करणों में, इला एक पुरुष के रूप में रहना चाहती है, लेकिन स्कंद पुराण में , इला एक महिला बनना चाहती है। राजा इला (इला) ने सहया पर्वत पर पार्वती के उपवन में प्रवेश किया और इला स्त्री बन गयी। इला एक महिला बनकर रहना चाहती थी और गंगा नदी की देवी पार्वती (गौरी) और गंगा की सेवा करना चाहती थी। हालाँकि, देवी-देवताओं ने उसे मना कर दिया। इला ने एक पवित्र कुंड में स्नान किया और इला के रूप में लौट आई, दाढ़ी वाली और गहरी आवाज वाली। [5] [17]
बाद का जीवन और वंशज
पुरुरवाके माध्यम से इला के वंशजों को इला के बाद ऐलास याचंद्र-देवता चंद्र के पुत्र बुद्ध से उनके वंश को चंद्र वंश (चंद्रवंश) के रूप में जाना जाता है। [18] [5] कहानी के अधिकांश संस्करण इला को ऐलास के पिता और माता भी कहते हैं। [19] लिंगपुराणऔरमहाभारत, जिसमें सुद्युम्मा का श्राप समाप्त नहीं हुआ है, में कहा गया है कि एक पुरुष के रूप में, सुद्युम्मा ने उत्कल दिया, औरविनताश्व(जिन्हें हरितश्व और विनता के नाम से भी जाना जाता है) तीन पुत्रों को जन्म दिया। [10] त्रिपुत्रों ने अपने पिता के लिए राज्य पर शासन किया क्योंकि सुद्युम्मा अपने बाल लिंग के कारण स्वयं ऐसा करने में अक्षम थी। पुत्रों और रियासतों को सौद्युम्न कहते हैं। उत्कल, गया और विनाश ने क्रमशःउत्कलदेश,गयाऔर उत्तरकौरवों सहित पूर्वी क्षेत्रों पर शासन किया। [20] [21] पारिवारिक पुजारी वसिष्ठ की सहायता से सुद्युम्मा ने पूरे राज्य पर फिर से नियंत्रण हासिल कर लिया। उनका उत्तराधिकारी पुरुरवा ने किया। [1]
मत्स्य पुराणमें , इला को स्त्री या किंपुरुष बनने के बाद वंशावली से शुरू किया गया था। इला के पिता ने अपनी विरासत सीधे पुरुरवा को दे दी, इला-सुद्युम्मा के पुरुष के रूप में जन्मे तीन पुत्रियों को जन्म दिया गया। पुरुरवा ने प्रतिष्ठानपुरा (वर्तमान)इलाहाबाद) से शासित, जहां इला उनके साथ रही। [9] [22] रामायण में कहा गया है कि मर्दानगी में वापसी के बाद, इला ने प्रतिष्ठा पर शासन किया, जबकि उनके पुत्र शशबिंदु ने बहलिका पर शासन किया ।किया।। [14] देवी -भागवत पुराण में बताया गया है कि एक पुरुष के रूप में सुद्युम्मा ने राज्य पर शासन किया था और एक महिला के रूप में वह घर के अंदर रहती थी। उनका पेज उनके लिंग परिवर्तन से संबंधित था और उनका अब पहले जैसा सम्मान नहीं था। जब पुरुरवा वयस्क हो गया, तो सुद्युम्मा ने अपना राज्य पुरुरवा पर विजय प्राप्त कर ली और तपस्या के लिए जंगल में चली गई। ऋषिनारदने सुद्युम्मा को नौ पेपर वालामंत्र, नवाक्षर , निर्देशित , जोसर्वोच्च देवी कोइच्छा । उनकी तपस्या से अभिनीत, देवी सुद्युम्मा के रूप में प्रकट हुईं, जो उनकी महिला के रूप में इला में थीं। सुद्युम्मा ने देवी की स्तुति की, राजा की आत्मा को अपने साथ मिला लिया और इस प्रकार, इला को मोक्ष प्राप्त हुआ। [3]
भागवत पुराण , देवी-भागवत पुराण और लिंग पुराण में यह घोषणा की गई है कि इला पुरुष और महिला दोनों की शारीरिक रचना के साथ स्वर्ग में व्याख्या की गई है। [19] इला को पुरुरवा के माध्यम से चंद्र राजवंश का और उनके भाई इक्ष्वाकु और पुत्रों का उत्कल, और विन्तश्व के माध्यम से सौर राजवंश का मुख्य पूर्वज माना जाता है। [9] [23] सूर्य की संतान इला और चंद्रमा के पुत्र बुद्ध का विवाह, शास्त्रों में दर्ज सूर्य और चंद्र के पुत्र का पहला मिलन है। [11]
"वैदिक साहित्य में इला-
वैदिक साहित्य इला को इदा के नाम से भी जाना जाता है।ऋग्वेदइदा में भोजन और जलपान का प्रतीक है, जिसे वाणी की देवी के रूप में जाना जाता है। [24] इला-इदा का संबंध ज्ञान की देवी से हैसरस्वती से भी है। [6] इला-इदा का उल्लेखऋग्वेदमें कई बार किया गया है, ज्यादातरअप्रसूक्त नामकभजनों में । उनका उल्लेख अक्सर सरस्वती और भारती (या माही) के साथ किया जाता है और पुरुरवा को उनके पुत्र के रूप में वर्णित किया गया है। [25] इडा अनुष्ठानिक यज्ञ करने में मनु के प्रशिक्षक हैं। वेदों के भाष्यकारसयानाके अनुसार - वह पृथ्वी की राजधानी है। [24] ऋग्वेद 3.123.4 में उल्लेख है कि "इला की भूमि" सरस्वती नदी के किनारे स्थित थी। [26] ऋग्वेद 3.29.3 में अग्नि को इला का पुत्र बताया गया है। [27]
शतपथ ब्राह्मणमें ,मनु नेसंतमूर्ति के लिए अग्नि-यज्ञ किया गया था। इदा यज्ञ से प्रकट हुई। उस परमित्र-वरुणने दावा किया था, लेकिन वह मनु के साथ रहे और उन्होंने मनु की रचना की शुरुआत की। [24] [28] इस पाठ में, इडा बलि के भोजन की देवी है। उन्हें मानवी (मनु की बेटी) और घृतपदी (घीटपकाने वाले पैर वाली) के रूप में वर्णित है और एक यज्ञ के दौरान उनके प्रतिनिधि एक गायक द्वारा किया जाता है, जिसे इडा भी कहा जाता है। [29] [30] पाठ में पुरुरवा का उल्लेख इला के पुत्र के रूप में किया गया है। [31]
" टिप्पणियाँ-
- ^ श्रवण ("नरकट का जंगल") को उस स्थान के रूप में वर्णित किया गया है जहाँ शिव के पुत्र हैं स्कंद का जन्म हुआ था। देवी -भागवत पुराण में बताया गया है कि एक बार ऋषियों ने शिव और पार्वती के प्रेम-प्रसंग में हस्तक्षेप किया, इसलिए शिव ने जंगल को शाप दिया कि इसमें प्रवेश करने वाले सभी पुरुष महिलाएं बदल जाएंगी।
( सन्दर्भ-)
उत्तर
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