रूपिम-(Morpheme) भाषा उच्चारण की लघुत्तम अर्थवान् इकाई है।
रूपिम स्वनिमों (ध्वनि समूहों)का ऐसा न्यूनतम अनुक्रम है जो व्याकरणिक दृष्टि से सार्थक होता है।
स्वनिम के बाद रूपिम भाषा का महत्वपूर्ण तत्व व अंग है।
(रूपिम को 'रूपग्राम' और 'पदग्राम' भी कहते हैं। जिस प्रकार स्वन-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई स्वनिम (ध्वनि है
उसी प्रकार रूप-प्रक्रिया की आधारभूत इकाई रूपिम है।
रूपिमवाक्य-रचना और अर्थ-अभिव्यक्ति की सहायक इकाई है।
स्वनिम -भाषा की अर्थहीन इकाई है, किन्तु इसमें अर्थभेदक क्षमता होती है।
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(रूपिम- लघुत्तम अर्थवान इकाई है, किन्तु रूपिम को अर्थिम का पर्याय नहीं मान सकते हैं;
यथा-" परमात्मा" एक अर्थिम पद है, जबकि इसमें ‘परम’ और ‘आत्मा’ दो रूपिम पद हैं।
परिभाषा - विभिन्न भाषा वैज्ञानिकों ने रूपिम को भिन्न-भिन्न रूपों में परिभाषित किया है। कुछ प्रमुख विद्वानों के अनुसार पदग्राम पदों का समूह (रूपिम) वस्तुतः परिपूरक वितरण या मुक्त वितरण मे आये हुए सहपदों (शब्दों) का समूह है। रूप भाषा की लघुतम अर्थपूर्ण इकाई होती है जिसमें एक अथवा अनेक ध्वनियों का प्रयोग किया जाता है।
डॉ॰ भोलानाथ तिवारी के मतानुसार, भाषा या वाक्य की लघुतम सार्थक इकाई रूपग्राम है।
डॉ॰ जगदेव सिंह ने लिखा है, रूप-अर्थ से संश्लिष्ट भाषा की लघुतम इकाई को रूपिम कहते हैं।
पाश्चात्य विद्वानों द्वारा प्रदत्त परिभाषाएँ:-
"ब्लॉक का रूपिम के विषय में विचार है- कोई भी भाषिक रूप, चाहे मुक्त अथवा आबद्ध हो और जिसे अल्पतम या न्यूनतम अर्थमुक्त (सार्थक) रूप में खण्डित न किया जा सके, रूपिम होता है।
"ग्लीसन का विचार है- रूपिम न्यूनतम उपयुक्त व्याकरणिक अर्थवान रूप है।
"आर. एच. रोबिन्स ने व्याकरणिक संदर्भ में रूपिम को इस प्रकार परिभाषित किया है- न्यूनतम व्याकरणिक इकाईयों को रूपिम कहा जाता है।
स्वरूप- रूपिम के स्वरूप को उसकी अर्थ-भेदक संरचना के आधार पर निर्धारित कर सकते हैं।
प्रत्येक भाषा में रूपिम व्यवस्था उसकी अर्थ-प्रवृति के आधार पर होती है। इसलिए भिन्न-भिन्न भाषाओं के रूपिमों में भिन्नता होना स्वभाविक है।
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"वाक्य विज्ञान --
दो या दो से अधिक पदों के सार्थक समूह जिसका पूरा अर्थ निकलता है, उसे वाक्य कहते हैं।
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उदाहरण के लिए 'सत्य की विजय होती है।'
यह एक वाक्य है क्योंकि इसका पूरा पूरा अर्थ निकलता है किन्तु 'सत्य विजय होता।' परन्तु यइस प्रकार यह वाक्य नहीं है क्योंकि इसका कोई अर्थ नहीं निकलता है।
शब्दकोशीय अर्थ की दृष्टि से --
- वह पद -समूह जिससे श्रोता को वक्ता के अभिप्राय का बोध हो।
भाषा के भाषा-वैज्ञानिक आर्थिक इकाई का बोधक पद समूह। वाक्य में कम से कम कारक (कर्तृ आदि) जो संज्ञा या सर्वनाम होता है और क्रिया का होना भी आवश्यक है।
क्रियापद और कारक पद से युक्त सेच्छिक ( इच्छा-सहित) अर्थबोधक पद- समूह या पदोच्चय। जो उद्देश्यांश और विधेयांश वाले सार्थक पदों का समूह हो
विशेष—नैयायिकों और अलंकारियों के अनुसार वाक्य में
(१) आकांक्षा,
(२) योग्यता और
(३) आसक्ति या सन्निधि होनी चाहिए।
'आकांक्षा' का अभिप्राय यह है कि शब्द यों ही रखे हुए न हों, वे मिलकर किसी एक तात्पर्य अथवा इच्छा का बोध कराते हों।
जैसे, कोई कहे—'मनुष्य चारपाई पुस्तक' तो यह वाक्य न होगा।
जब वह कहेगा—'मनुष्य चारपाई पर पुस्तक पढ़ता है।' तब वाक्य होगा। क्यों कि इसमें ऐच्छिकता का क्रमिक अन्वय( सम्बन्ध) है।
'योग्यता' का तात्पर्य यह है कि पदों के समूह से निकला हुआ अर्थ असंगत या असंभव न हो।
जैसे, कोई कहे—'पानी में हाथ जल गया' तो यह वाक्य न होगा क्योंकि पानी में हाथ जलाने की योग्यता का अभाव है।
'आसक्ति' या 'सन्निधि' का मतलब है सामीप्य या निकटता अर्थात् तात्पर्यबोध करानेवाले पदों के बीच देश या काल का अधिक व्यवधान अथवा दूरी न हो। जैसे, कोई यह न कहकर कि 'कुत्ता मारा, पानी पिया' यह कहे—'कुत्ता पिया मारा पानी' तो इसमें आसक्ति न होने से वाक्य न बनेगा; क्योंकि 'कुता' और 'मारा' के बीच 'पिया' शब्द का व्यवधान पड़ता है।
इसी प्रकार यदि काई 'पानी' सबेरे कहे और 'पिया' शाम को कहे, तो इसमें काल संबंधी व्यवधान होगा।
काव्य भेद का विषय मुख्यतः न्याय दर्शन के विवेचन से प्रारंभ होता है और यह मीमांसा और न्यायदर्शनों के अंतर्गत आता है।
दर्शनशास्त्रीय वाक्यों के ३ भेद मानते हैं-
"विधि-वाक्य, अनुवाद वाक्य और अर्थवाद -वाक्य किए गए हैं ; इनमें अंतिम के चार भेद- १-स्तुति, २-निंदा, ३-परकृति और ४-पुराकल्प बताए गए हैं।
(वक्ता का अभिप्रेत अथवा वक्तव्य की अबाधकता वाक्य का मुख्य उद्देश्य माना गया है।इसी की पृष्ठ भूमि में संस्कृत वैयाकरणों ने वाक्यस्फोट की उद्भावना की है।वाक्यपदोयकार द्वारा स्फोटात्मक वाक्य की अखंड सत्ता स्वीकृत है।
भाषावैज्ञानिकों की द्दष्टि में वाक्य संश्लेषणात्मक और विश्लेषणात्मक तत्व होते हैं।
आधुनिक व्याकरण की दृष्टि से वाक्य के संरचना के आधार पर तीन भेद होते हैं—
२-मिश्रित वाक्य और
३-संयुक्त वाक्य।
तथा अर्थ की दृष्टि से वाक्यों के आठ भेद होते हैं ।________________________________________
वाक्य – अर्थ की दृष्टि से वाक्य के प्रकार |
वाक्य किसे कहते हैं?
सार्थक शब्दों का ऐसा समूह जो व्यवस्थित हो तथा पूरा आशय प्रकट करता हो, वाक्य कहलाता है।
उदाहरण– 1. सोहन विद्यालय जाता है।
2. आप की इच्छा क्या है ?
वाक्यों के प्रकार के संदर्भ में जानकारी प्राप्त करने के लिए नीचे दिए गए गद्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़ें और रेखांकित वाक्य पर गौर करें।
शुभम के बड़े भाई अशोक राजनगर में रहते हैं।
शुभम् उनसे मिलने राजनगर गया।
अचानक शुभम् को देखकर अशोक ने कहा- अरे ! शुभम् तुम ! शुभम् ने बताया कि आपसे मिलने का मन हुआ तो चला आया।
अशोक ने पूछा- क्या तुम आज ही वापस जाओगे ? शुभम ने उत्तर दिया- मैं आज नहीं जाऊँगा। अशोक ने कहा ठीक है। शायद आज मैं देर से लौटू। तुम बाजार चले जाओ लो ये पैसे, माया के लिए एक अच्छा सूट खरीद लेना। अशोक ने शुभम के साथ भोजन किया और अपने काम पर चला गया।
शुभम् बाजार गया।
उसने एक छोर से दूसरे छोर तक बाजार का चक्कर लगाया किन्तु उसे कपड़ों को कोई अच्छी दुकान दिखाई नहीं दी। आखिरकार एक कोने में उसे कपड़े की एक दुकान नजर आई।
उसने वहाँ से माया के लिए एक सूट खरीदा और लौट आया। शाम को अशोक ने बताया कि कल उसकी छुट्टी रहेगी।
शुभम् ने उसे अपना लाया हुआ मोबाइल दिखाया।
अमित ने कहा- मैं चाहता हूँ कि मैं भी कल तुम्हारे साथ ही घर चलूँ।
मेरे साथ ढेर सारा सामान है।
अगर तुम मेरे साथ रहोगे तो मुझे सुविधा होगी। शुभम् ने कहा- कल हम साथ ही घर चलेंगे।
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जैसे– शुभम् के बड़े भाई अशोक राजनगर में रहते हैं।
यह शब्द समूह सार्थक है, व्याकरण के नियमों के अनुरूप व्यवस्थित है तथा पूरा आशय प्रकट कर रहा है। अतः यह एक वाक्य है।
अब रेखांकित वाक्यों को देखें।
रेखांकित वाक्य अर्थ की दृष्टि से एक दूसरे से भिन्न हैं।
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सामान्यतः वाक्य भेद दो दृष्टियों से किया जाता है -
1. अर्थ की दृष्टि से
2. रचना की दृष्टि से
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अर्थ के आधार पर वाक्य के भेद–
अर्थ के आधार पर वाक्यों के निम्नलिखित आठ भेद होते हैं।
(अ) विधानवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से किसी क्रिया के करने या होने की सामान्य सूचना मिलती है, उन्हें विधानवाचक वाक्य कहते हैं। किसी के अस्तित्व का बोध भी इस प्रकार के वाक्यों से होता है।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
अशोक राजनगर में रहता है।
(ब) निषेधवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से किसी कार्य के निषेध (न होने) का बोध होता हो, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं।
इन्हें नकारात्मक वाक्य भी कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
मैं आज नहीं जाऊंगा।
(स) प्रश्नवाचक वाक्य– जिन वाक्यों में प्रश्न किया जाए अर्थात् किसी से कोई बात पूछी जाए, उन्हें प्रश्नवाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
क्या तुम आज ही वापस जाओगे?
(द) विस्मयादिवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से आश्चर्य (विस्मय), हर्ष, शोक, घृणा आदि के भाव व्यक्त हों, उन्हें विस्मयादिवाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
अरे! शुभम् तुम!!
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(ई) आज्ञावाचक वाक्य– जिन वाक्यों से आज्ञा या अनुमति देने का बोध हो, उन्हें आज्ञावाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
तुम बाजार चले जाओ।
(फ) इच्छावाचक वाक्य– वक्ता की इच्छा, आशा या आशीर्वाद को व्यक्त करने वाले वाक्य इच्छावाचक वाक्य कहलाते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
मैं चाहता कि मैं भी कल तुम्हारे साथ ही घर चलूँ।
(ग) संदेहवाचक वाक्य– जिन वाक्यों में कार्य के होने में सन्देह अथवा संभावना का बोध हो, उन्हें संदेहवाचक वाक्य कहते हैं।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
शायद मैं आज देर से लौटूँ।
(ह) संकेतवाचक वाक्य– जिन वाक्यों से एक क्रिया के दूसरी क्रिया पर निर्भर होने का बोध हो, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। इन्हें हेतुवाचक वाक्य भी कहते हैं। इनसे कारण, शर्त आदि का बोध होता है।
ऊपर के गद्यांश में वाक्य का उदाहरण –
अगर तुम मेरे साथ रहोगे तो मुझे सुविधा होगी।
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अर्थ की दृष्टि से वाक्य में परिवर्तन–
आप पढ़ चुके हैं कि अर्थ की दृष्टि से वाक्य आठ प्रकार के होते हैं। इनमें से विधानवाचक वाक्य को मूल आधार माना जाता है। अन्य वाक्य भेदों में विधानवाचक वाक्य का मूलभाव ही विभिन्न रूपों में परिलक्षित होता है। किसी भी विधानवाचक वाक्य को सभी प्रकार के भावार्थों में प्रयुक्त किया जा सकता है।
जैसे– उपरोक्त अनुच्छेद का विधानवाचक वाक्य–
"अशोक राजनगर में रहता है।" को लेते हैं– इस वाक्य को सभी प्रकार के वाक्यों में निम्नानुसार परिवर्तित किया जा सकता है।
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1. विधानवाचक वाक्य - अशोक राजनगर में रहता है।
2. विस्मयादिवाचक वाक्य - अरे! अशोक राजनगर में रहता है।
3. प्रश्नवाचक वाक्य - क्या अशोक राजनगर में रहता है?
4. निषेधवाचक वाक्य - अशोक राजनगर में नहीं रहता है।
5. संदेहवाचक वाक्य - शायद अशोक राजनगर में रहता है।
6. आज्ञावाचक वाक्य - अशोक! तुम राजनगर में रहो।
7. इच्छावाचक वाक्य- काश, अशोक राजनगर में रहता!।
8. संकेतवाचक वाक्य - यदि अशोक राजनगर में रहना चाहता है तो रह सकता है।
वाक्यांश--
शब्दों के ऐसे समूह को जिसका अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा पूरा अर्थ नहीं निकलता, वाक्यांश (Phrase) कहते हैं। उदाहरण -
'दरवाजे पर', 'कोने में', 'वृक्ष के नीचे' आदि का अर्थ तो निकलता है किन्तु पूरा पूरा अर्थ नहीं निकलता इसलिये ये वाक्यांश हैं।
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कर्ता और क्रिया के आधार पर वाक्य के भेद करें
वाक्य के दो भेद होते हैं-
उद्देश्य और
विधेय
वाक्य में जिसके बारे में कुछ बात की जाय उसे उद्देश्य कहते हैं।
और जो बात उद्देश्य के वाले में की जाय उसे विधेय कहते हैं। उदाहरण के लिए, 'मोहन प्रयाग में रहता है'।
इसमें उद्देश्य है - 'मोहन' , और विधेय है - 'प्रयाग में रहता है।'
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वाक्य के भेद
वाक्य -भेद दो प्रकार से किए जा सकते हँ-
१- अर्थ के आधार पर वाक्य भेद
२- रचना के आधार पर वाक्य भेद
अर्थ के आधार पर वाक्य के तीन भेद हैं ।
अर्थ के आधार पर आठ प्रकार के वाक्य होते हँ-
विधानवाचक सूचक वाक्य - वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की जानकारी प्राप्त होती है,
वह विधानवाचक वाक्य कहलाता है।
उदाहरण -
भारत एक देश है।
राम के पिता का नाम दशरथ है।
दशरथ अयोध्या के राजा हैं।
निषेधवाचक वाक्य : जिन वाक्यों से कार्य न होने का भाव प्रकट होता है, उन्हें निषेधवाचक वाक्य कहते हैं। जैसे-
मैंने दूध नहीं पिया।
मैंने खाना नहीं खाया।
प्रश्नवाचक वाक्य - वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार प्रश्न किया जाता है, वह प्रश्नवाचक वाक्य कहलाता है।
उदाहरण -
भारत क्या है?
राम के पिता कौन है?
दशरथ कहाँ के राजा है?
आज्ञावाचक वाक्य - वह वाक्य जिसके द्वारा किसी प्रकार की आज्ञा दी जाती है या प्रार्थना की जाती है, वह आज्ञा वाचक वाक्य कहलाता हैं।
उदाहरण -
बैठो।
बैठिये।
कृपया बैठ जाइये।
शांत रहो।
कृपया शांति बनाये रखें।
इस प्रकार के हिन्दी वाक्यों के अन्त में ओ अथवा ए की ध्वनि निकलती है ।
विस्मयादिवाचक वाक्य - वह वाक्य जिससे किसी प्रकार की गहरी अनुभूति का प्रदर्शन किया जाता है, वह विस्मयादिवाचक वाक्य कहलाता हैं।
उदाहरण -
अहा! कितना सुन्दर उपवन है।
ओह! कितनी ठंडी रात है।
बल्ले! हम जीत गये।
इच्छावाचक वाक्य - जिन वाक्यों में किसी इच्छा, आकांक्षा या आशीर्वाद का बोध होता है, उन्हें इच्छावाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण- भगवान तुम्हेँ दीर्घायु करे।
नववर्ष मंगलमय हो।
संकेतवाचक वाक्य- जिन वाक्यों में किसी संकेत का बोध होता है, उन्हें संकेतवाचक वाक्य कहते हैं। उदाहरण-
राम का मकान उधर है।
सोनु उधर रहता है।
संदेहवाचक वाक्य - जिन वाक्यों में सन्देह का बोध होता है, उन्हें सन्देह वाचक वाक्य कहते हैं।
उदाहरण-
क्या वह यहाँ आ गया ?
क्या उसने काम कर लिया ?
रचना के आधार पर वाक्य के भेद---
रचना के आधार पर वाक्य के निम्नलिखित तीन भेद होते हैं-'
(१)सरल वाक्य/साधारण वाक्य :-
जिनमें एक ही विधेय होता है, उन्हें सरल वाक्य या साधारण वाक्य कहते हैं, इन वाक्यों में एक ही क्रिया होती है;
जैसे- मुकेश पढ़ता है।
राकेश ने भोजन किया।
(२) संयुक्त वाक्य - जिन वाक्यों में दो-या दो से अधिक सरल वाक्य समुच्चयबोधक अव्ययों से जुड़े हों, उन्हें संयुक्त वाक्य कहते है;
जैसे- वह सुबह गया और शाम को लौट आया।
प्रिय बोलो पर असत्य नहीं।
(३) मिश्रित/मिश्र वाक्य - जिन वाक्यों में एक मुख्य या प्रधान वाक्य हो और अन्य आश्रित उपवाक्य हों, उन्हें मिश्रित वाक्य कहते हैं।
इनमें एक मुख्य उद्देश्य और मुख्य विधेय के अलावा एक से अधिक समापिका क्रियाएँ होती हैं।
जैसे - ज्यों ही उसने औषधि सेवन किया, वह सो गया।
यदि परिश्रम करोगे तो, उत्तीर्ण हो जाओगे।
मैं जानता हूँ कि तुम्हारे कार्यअच्छे नहीं होते।
प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार "रोहि"
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