ब्राह्मणों को कन्यादान।
कन्यादान से अर्थ क्या है? जिस की माहवारी शुरू न हुई हो, उस लड़की का दान, जैसे गाय दान, गले में डाली हुई रस्सी किसी दूसरे को थमा दो ।
तीस वर्ष का पुरुष दस वर्ष की कन्या को जो रजस्वला न हुई हो पत्नी रूप में प्राप्त करे अथवा इक्कीस वर्ष का पुरुष सात वर्ष की कुमारी के साथ विवाह करे । महाभारत गीता प्रेस गोरखपुर अनुशासन पर्व 44/14
हिन्दी साहित्य सम्मेलन प्रयाग द्वारा प्रकाशित भविष्य पुराण पार्ट 1 के ब्रह्मा पर्व के 172 अध्याय में लिखा है :–
वस्त्रों और आभूषणों से अलंकृत की हुई कन्या को किसी वेद विद्वान गरीब ब्राह्मण को देनी चाहिए क्योंकि इसे ही कन्यादान बताया गया हैं। कन्या भी सभी दोषों से मुक्त, अपने कुल के योग्य और अलंकृत होनी चाहिए।
श्रीमद् देवी भागवत महापुराण स्कंद 9 अध्याय 30 श्लोक 27 से 30 में लिखा है:–
भारत में जो मनुष्य उपभोग करने योग्य पतिव्रता तथा सुन्दर कन्या को अलंकारों तथा वस्त्रोंसे विभूषित करके उसे किसी ब्राह्मण को भार्या रूप में अर्पण करता है, वह चौदहों इन्द्रों की स्थिति पर्यन्त चन्द्रलोक में प्रतिष्ठा प्राप्त करता है और वहाँ पर स्वर्ग की अप्सराओं के साथ दिन-रात आनन्द प्राप्त करता रहता है। उसके बाद वह निश्चय ही गन्धर्वलोक में दस हजार वर्षो तक निवास करता है और वहाँ पर उर्वशी के साथ क्रीडा करते हुए दिन-रात आनन्द प्राप्त करता है। तत्पश्चात् उसे हजारों जन्म तक सुन्दर, साध्वी, सौभाग्यवती, कोमल तथा प्रिय सम्भाषण करने वाली भार्या प्राप्त होती है।
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