मंगलवार, 5 नवंबर 2024

देवमीढ-

देवमीढ (देवमीढ) - ययाति के पुत्र यदु के कुल में जन्मे एक प्रतिष्ठित यादव देवमीढ थे। वे वसुदेव के दादा और राजा शूरसेन के पिता थे। 

( महाभारत-द्रोणपर्व, अध्याय- 144, श्लोक 6) में देवमीढ का एक नाम आजमीढ भी वर्णित है

नहुषस्य ययातिस्तु राजा देवर्षिसम्मतः।
ययातेर्देवयान्यां तु यदुर्ज्येष्ठोऽभवत्सुतः।।६।

यदोरभूदन्ववाये (आजमीढ) इति स्मृतः।
यादवस्तस्य तु सुतः शूरस्त्रैलोक्यसम्मतः।।७।

शूरस्य शौरिर्नृवरो वसुदेवो महायशाः।
धनुष्यनवरः शूरः कार्तवीर्यसमो युधि।
धनुष्यनवरः शूरः कार्तवीर्यसमो युधि।
तद्वार्यश्चापि तत्रैव कुले शिनिरभून्नृप।। ८।

महाभारत -7-द्रोणपर्व-अध्याय-(144,)

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शूरसेन के पिता देवमीढ़ का एक अन्य नाम " चित्ररथ भी महाभारत के अनुशासन पर्व में वर्णित है।  (महाभारत अनुशासन पर्व, अध्याय -147, श्लोक 29)

चित्ररथ - यादव वंश के एक राजा जो कि उषाङ्कु के पुत्र और शूर के पिता थे। (श्लोक 29, अध्याय- (147), अनुशासन पर्व)।


रुषेकु (उषाङ्कु ) के पुत्र और शशबिन्दु के पिता। *

* भागवत-पुराण IX. 23. 31; ब्रह्माण्ड विज्ञान-पौराणिक कथा III. 70. 18; मत्स्य-पुराण 44. 17; विष्णु-पुराण IV. 12. 2-3.

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देवमीढ( चित्ररथ)- भागवत पुराण के मत में कृतिरथ का तथा वायुपुराण के मत में कीर्तिरथ(ह्रदीक) के पुत्र हैं ।

देवमीढ - भागवतमत में ह्रदीक का पुत्र । इसका पुत्र शूर । इसकी पत्नी का नाम ऐक्ष्वाकी था [मत्स्य.४६] । देवमीढुष, देवमानुषि एवं देवमेधस् इसी के नामांतर हैं ।
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देवमीढ - द्विमीढ का नामांतर ।
देवमीढ (सो. वृष्णि.) वृष्णि के पॉंच पुत्रों में से तीसरा [पद्म.सृष्टि खण्ड.१३] ।

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सात्वत के पुत्र वृष्णि के वंशज-मत्स्यपुराण-

     स्यमन्तकमणिसंक्षिप्तचरित्रम्।

                  "सूत उवाच।
गान्धारी चैव माद्री च वृष्णिभार्ये बभूवतुः।
गान्धारी जनयामास सुमित्रं मित्रनन्दनम्।४५.१।

माद्री युधाजितं पुत्रं ततो वै देवमीढुषम्।
अनमित्रं शिबिं चैव पञ्चमं कृतलक्षणम्। ४५.२ ।
(मत्स्यपुराण /अध्यायः ४५)

सूतजी कहते हैं-ऋषियो!  ( अब आप लोग सात्त्वत के कनिष्ठ( सबसे छोटे) पुत्र वृष्णि का वंश-वर्णन सुनिये) गान्धारी और माद्री- ये दोनों वृष्णि की पत्नियाँ हुईं। उनमें गान्धारी ने सुमित्र और मित्रनन्दन नामक दो पुत्रों को जन्म दिया तथा माद्री ने युधाजित्,  देवमीढुष, अनमित्र, शिवि और पाँचवें कृतलक्षण नामक पुत्रों को जन्म दिया

              (कृष्णोत्पत्तिवर्णनम्)

                   "सूत उवाच।
ऐक्ष्वाकी सुषुवे शूरं ख्यातमद्भुत मीढुषम्।
पौरुषाज्जज्ञिरे शूरात् भोजायां पुत्रकादश।४६.१।

वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः।
देवमार्गस्ततो जज्ञे ततो देवश्रवाः पुनः।। ४६.२
 ।

सूतजी कहते हैं- ऋषियों ! ऐक्ष्वाकी (माद्री) ने शूर (शूरसेन) नामक एक अद्भुत पुत्र को जन्म दिया, जो आगे चलकर मीढुष (देवमीढुष) नाम से विख्यात हुआ। पुरुषार्थी शूर के सम्पर्क से भोजा ( मारिषा- ) के गर्भ से दस पुत्रों और पाँच सुन्दरी कन्याओं की उत्पत्ति हुई। पुत्रों में सर्वप्रथम महाबाहु वसुदेव उत्पन्न हुए, जिनकी आनकदुन्दुभि नामसे भी प्रसिद्धि हुई। उसके बाद  देवभाग- ( देवमार्ग) का जन्म हुआ।

मत्स्यपुराण /अध्यायः (४६)

अस्मक्यां जनयामास शूरो वै देवमानुषिम्।
माष्यान्तु जनयामास शूरो वै देवमीढुषम् ।। ३४.१४३ ।।

भाष्यान्तु जज्ञिरे शूराद्भोजायां पुरुषा दश।
वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः ।३४.१४४ ।।

जज्ञे तस्य प्रसूतस्य दुन्दुभिः प्राणदद्दिवि।
आनकानाञ्च संह्रादः सुमहानभवद्दिवि ।। ३४.१४५ ।।

पपात पुष्पवर्षञ्च शूरस्य भवने महत्।
मनुष्यलोके कृत्स्नेऽपि रूपे नास्ति समो भुवि ।। ३४.१४६ ।।

वायुपुराण उत्तरार्द्ध म्/अध्यायः (३४)

चित्ररथ - यादव वंश के एक राजा। वे उषङ्क: के पुत्र और शूरसेन के पिता थे। (श्लोक 29, अध्याय- 251, अनुशासन पर्व)।

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यदुस्तस्मान्महासत्वः क्रोष्टा तस्माद्भविष्यति।
क्रोष्टुश्चैव महान्पुत्रो वृजिनीवान्भविष्यति।28। (महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय-251)

वृजिनीवतश्च भविता उषङ्गुरपराजितः
उषङ्गोर्भविता पुत्रः शूरश्चित्ररथस्तथा
तस्य त्ववरजः पुत्रः शूरो नाम भविष्यति।29।(महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय-251)

तेषां विख्यातवीर्याणां चरित्रगुणशालिनाम्।
यज्वनां सुविशुद्धानां वंशे ब्राह्मणसम्मते।।30।
(महाभारत अनुशासन-पर्व अध्याय-251)

स शूरः क्षत्रियश्रेष्ठो महावीर्यो महायशाः।
स्ववंशविस्तरकरं जनयिष्यति मानदः।
वसुदेव इति ख्यातं पुत्रमानकदुन्दुभिम्।।31।

तस्य पुत्रश्चतुर्बाहुर्वासुदेवो भविष्यति।
दाता ब्राह्मणसत्कर्ता ब्रह्मभूतो द्विजप्रियः।32।

राज्ञो मागधसंरुद्धान्मोक्षयिष्यति यादवः।
जरासंधं तु राजानं निर्जित्य गिरिगह्वरे।33।

सर्वपार्थिवरत्नाढ्यो भविष्यति स वीर्यवान्।
पृथिव्यामप्रतिहतो वीर्येण च भविष्यति।34।

विक्रमेण च सम्पन्नः सर्वपार्थिवपार्थिवः।।
शूरसेनेषु भूत्वा स द्वारकायां वसन्प्रभुः।35।

अनुवाद:-
यदु से क्रोष्टा का जन्म होगा, क्रोष्टा से महान् पुत्र वृजिनीवान् होंगे। वृजिनीवान् से विजय वीर उषंक का जन्म होगा। उषंक का पुत्र शूरवीर चित्ररथ होगा। उसका छोटा पुत्र शूर नाम से विख्यात होगा। 
वे सभी यदुवंशी विख्यात पराक्रमी, सदाचार और सद्गुण से सुशोभित, यज्ञशील और विशुद्ध आचार-विचार वाले होंगे। 
उनका कुल ब्राह्मणों द्वारा सम्मानित होगा।
 उस कुल में महापराक्रमी, महायशस्वी और दूसरों को सम्मान देने वाले क्षत्रिय-शिरोमणि शूर अपने वंश का विस्तार करने वाले वसुदेव नामक पुत्र को जन्म देंगे, 
जिसका दूसरा नाम आनकदुन्दुभि होगा।

उन्हीं के पुत्र चार भुजाधारी भगवान वासुदेव होंगे। भगवान वासुदेव दानी, ब्राह्मणों का सत्कार करने वाले, ब्रह्मभूत और ब्राह्मणप्रिय होंगे। वे यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण मगधराज जरासंध की कैद में पड़े हुए राजाओं को बन्धन से छुड़ायेंगे। 

वे पराक्रमी श्रीहरि पर्वत की कन्दरा(राजगृह)- में राजा जरासंध को जीतकर समस्त राजाओं के द्वारा उपहृत रत्नों से सम्पन्न होंगे।
 वे इस भूमण्डल में अपने बल-पराक्रम द्वारा अजेय होंगे। विक्रम से सम्पन्न् तथा समस्त राजाओं के भी राजा होंगे। नीतिवेत्ता भगवान श्रीकृष्ण शूरसेन देश (मथुरा-मण्डल)- में अवतीर्ण होकर वहाँ से द्वारकापुरी में जाकर रहेंगे और समस्त राजाओं को जीतकर सदा इस पृथ्वी देवी का पालन करेंगे। 

"श्रीमन्महाभारत अनुशासनपर्व
दानधर्मपर्व नामक एकपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।251


इसी प्रकार का वर्णन यथावत् ब्राह्मपुराण के (226) वें अध्याय में हैं। सम्भवतः दोनों  समान  श्लोक एक लेखक के द्वारा लिखित हैं।

यदुस्तस्मान्महासत्त्वः क्रोष्टा तस्माद्‌भविष्यति।
क्रोष्टुश्चैव महान्पुत्रो वृजीनीवान्भविष्यति।। २२६.३६ ।।

वृजिनीवतश्च भविता उषङ्गरपराजितः।
उषङ्गोर्भविता पुत्रः शूरश्चित्ररथस्तथा।२२६.३७ ।

तस्य त्ववरजः पुत्रः शुरो नाम भविष्यति।
तेषां विख्यातवीर्याणां चारित्रगुणशालिनाम्। २२६.३८।

यज्विनां च विशुद्धानां वंशे ब्राह्मणसत्तमाः।
स शूरः क्षत्रियश्रेष्ठो महावीर्यो महायशाः।२२६.३९।

स्ववंशविस्तारकरं जनयिष्यति मानदम्।
वसुदेवमिति ख्यातं पुत्रमानकदुन्दुभिम्। २२६.४०।

तस्य पुत्रश्चतुर्बाहुर्वासुदेवो भविष्यति।
दाता ब्राह्मणसत्कर्ता ब्रह्मभूतो द्विजप्रियः। २२६.४१

श्री ब्रह्मपुराणे आदिब्राह्मे ऋषिमहेश्वरसंवादे षड़विंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। २२६ ।

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