बभूवुस्तु यदोः पुत्राः पञ्च देवसुतोपमाः ।
सहस्रदः पयोदश्च क्रोष्टा नीलोऽञ्जिकस्तथा
श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: त्रयोविंश अध्यायः श्लोक 23-39 में सहस्रबाहु के पूर्वज और यदु के प्रपौत्र हैहय के वंशजों का विवरण प्रस्तुत है। हैहय का पुत्र धर्म, धर्म का पुत्र नेत्र, नेत्र का पुत्र कुन्ति, कुन्ति का पुत्र सोहंजि, हुआ और सोहंजि का पुत्र महिष्मान और महिष्मान का पुत्र भद्रसेन हुआ भद्रसेन के दो पुत्र थे- दुर्मद और धनक। धनक के चार पुत्र हुए- कृतवीर्य, कृताग्नि, कृतवर्मा और कृतौजा। कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था। वह सातों द्वीप का एकछत्र सम्राट् था। उसने भगवान् के अंशावतार श्रीदत्तात्रेय जी से योग विद्या और अणिमा-लघिमा आदि बड़ी-बड़ी सिद्धियाँ प्राप्त की थीं। इसमें सन्देह नहीं कि संसार का कोई भी सम्राट् यज्ञ, दान, तपस्या, योग शस्त्रज्ञान, पराक्रम और विजय आदि गुणों में कृतवीर्य अर्जुन की बराबरी नहीं कर सकेगा। सहस्रबाहु अर्जुन पचासी हजार वर्ष तक छहों इन्द्रियों से अक्षय विषयों का भोग करता रहा। इस बीच में न तो उसके शरीर का बल ही क्षीण हुआ. और न तो कभी उसने यही स्मरण किया कि मेरे धन का नाश हो जायेगा। उसके धन के नाश की तो बात ही क्या है, उसका ऐसा प्रभाव था कि उसके स्मरण से दूसरों का खोया हुआ धन भी मिल जाता था। उसके हजार पुत्रों में से केवल पाँच ही जीवित रहे - जयध्वज, शूरसेन, वृषभ, मधु और ऊर्जित। जयध्वज के पुत्र का नाम था तालजंघ। तालजंघ के सौ पुत्र हुए। वे ‘तालजंघ’ नामक क्षत्रिय कहलाये। उन सौ पुत्रों में सबसे बड़ा था वीतिहोत्र। वीतिहोत्र का पुत्र मधु हुआ। मधु के सौ पुत्र थे। उनमें वृष्णि सबसे बड़ा था ।** परीक्षित ! इन्हीं मधु, वृष्णि और यदु के कारण यह वंश माधव, वार्ष्णेय और यादव के नाम से प्रसिद्ध हुआ। (यदुनन्दन क्रोष्टु के पुत्र का नाम था वृजिनवान ) वृजिनवान का पुत्र श्वाहि, श्वाहि का (रुशेकु), रुशेकु का चित्ररथ और चित्ररथ के पुत्र का नाम था शशबिन्दु। शशबिन्दु सम्राट- वह परम योगी, महान् भोगैश्वर्य-सम्पन्न और अत्यन्त पराक्रमी था। वह चौदह रत्नों का स्वामी, चक्रवर्ती और युद्ध में अजेय था। परम यशस्वी शशबिन्दु की दस हजार पत्नियाँ थीं। उनमें से एक-एक के लाख-लाख सन्तान हुई थीं। इस प्रकार उसके सौ करोड़-एक अरब सन्तानें उत्पन्न हुईं। महाभारत के अनुशासन पर्व तथा ब्रह्मपुराण के अनुसार चित्ररथ - यादव वंश के एक राजा हैं। जो कि उषङ्क: के पुत्र थे। और यही उषङ्क(रुशेकु ) शूरसेन के पिता थे। इस प्रमाण के लिए देखें- (श्लोक 29, अध्याय- 251, अनुशासन पर्व)। ___________________ यदुस्तस्मान्महासत्वः क्रोष्टा तस्माद्भविष्यति। क्रोष्टुश्चैव महान्पुत्रो वृजिनीवान्भविष्यति।28। (महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय-251) वृजिनीवतश्च भविता उषङ्गुरपराजितः। उषङ्गोर्भविता पुत्रः शूरश्चित्ररथस्तथा। तस्य त्ववरजः पुत्रः शूरो नाम भविष्यति।29।(महाभारत अनुशासनपर्व अध्याय-251) तेषां विख्यातवीर्याणां चरित्रगुणशालिनाम्। यज्वनां सुविशुद्धानां वंशे ब्राह्मणसम्मते।।30। (महाभारत अनुशासन-पर्व अध्याय-251) स शूरः क्षत्रियश्रेष्ठो महावीर्यो महायशाः। स्ववंशविस्तरकरं जनयिष्यति मानदः। वसुदेव इति ख्यातं पुत्रमानकदुन्दुभिम्।।31। तस्य पुत्रश्चतुर्बाहुर्वासुदेवो भविष्यति। दाता ब्राह्मणसत्कर्ता ब्रह्मभूतो द्विजप्रियः।32। राज्ञो मागधसंरुद्धान्मोक्षयिष्यति यादवः। जरासंधं तु राजानं निर्जित्य गिरिगह्वरे।33। सर्वपार्थिवरत्नाढ्यो भविष्यति स वीर्यवान्। पृथिव्यामप्रतिहतो वीर्येण च भविष्यति।34। विक्रमेण च सम्पन्नः सर्वपार्थिवपार्थिवः।। शूरसेनेषु भूत्वा स द्वारकायां वसन्प्रभुः।35। अनुवाद:- यदु से क्रोष्टा का जन्म होगा, क्रोष्टा से महान् पुत्र वृजिनीवान् होंगे। वृजिनीवान् से विजय वीर उषंक का जन्म होगा। उषंक के दो पुत्र शूर तथा चित्ररथ हुए उसका छोटा पुत्र शूर नाम से विख्यात होगा। वे सभी यदुवंशी विख्यात पराक्रमी, सदाचार और सद्गुण से सुशोभित, यज्ञशील और विशुद्ध आचार-विचार वाले होंगे। उनका कुल ब्राह्मणों द्वारा सम्मानित होगा। उस कुल में महापराक्रमी, महायशस्वी और दूसरों को सम्मान देने वाले क्षत्रिय-शिरोमणि शूर अपने वंश का विस्तार करने वाले वसुदेव नामक पुत्र को जन्म देंगे, जिसका दूसरा नाम आनकदुन्दुभि होगा। उन्हीं के पुत्र चार भुजाधारी भगवान वासुदेव होंगे। भगवान वासुदेव दानी, ब्राह्मणों का सत्कार करने वाले, ब्रह्मभूत और ब्राह्मणप्रिय होंगे। वे यदुकुलतिलक श्रीकृष्ण मगधराज जरासंध की कैद में पड़े हुए राजाओं को बन्धन से छुड़ायेंगे। वे पराक्रमी श्रीहरि पर्वत की कन्दरा(राजगृह)- में राजा जरासंध को जीतकर समस्त राजाओं के द्वारा उपहृत रत्नों से सम्पन्न होंगे। वे इस भूमण्डल में अपने बल-पराक्रम द्वारा अजेय होंगे। विक्रम से सम्पन्न् तथा समस्त राजाओं के भी राजा होंगे। नीतिवेत्ता भगवान श्रीकृष्ण शूरसेन देश (मथुरा-मण्डल)- में अवतीर्ण होकर वहाँ से द्वारकापुरी में जाकर रहेंगे और समस्त राजाओं को जीतकर सदा इस पृथ्वी देवी का पालन करेंगे। "श्रीमन्महाभारत अनुशासनपर्व दानधर्मपर्व नामक एकपञ्चाशदधिकद्विशततमोऽध्यायः।251। ________ इसी प्रकार का वर्णन यथावत् ब्राह्मपुराण के (226) वें अध्याय में हैं। सम्भवतः दोनों समान श्लोक एक लेखक के द्वारा लिखित हैं। यदुस्तस्मान्महासत्त्वः क्रोष्टा तस्माद्भविष्यति। क्रोष्टुश्चैव महान्पुत्रो वृजीनीवान्भविष्यति।२२६.३६। वृजिनीवतश्च भविता उषङ्गरपराजितः। उषङ्गोर्भविता पुत्रः शूरश्चित्ररथस्तथा।२२६.३७ । तस्य त्ववरजः पुत्रः शुरो नाम भविष्यति। तेषां विख्यातवीर्याणां चारित्रगुणशालिनाम्। २२६.३८। यज्विनां च विशुद्धानां वंशे ब्राह्मणसत्तमाः। स शूरः क्षत्रियश्रेष्ठो महावीर्यो महायशाः।२२६.३९। स्ववंशविस्तारकरं जनयिष्यति मानदम्। वसुदेवमिति ख्यातं पुत्रमानकदुन्दुभिम्। २२६.४०। तस्य पुत्रश्चतुर्बाहुर्वासुदेवो भविष्यति। दाता ब्राह्मणसत्कर्ता ब्रह्मभूतो द्विजप्रियः। २२६.४१ श्री ब्रह्मपुराणे आदिब्राह्मे ऋषिमहेश्वरसंवादे षड़विंशत्यधिकद्विशततमोऽध्यायः।। २२६ ।। उनमें पृथुश्रवा आदि छः पुत्र प्रधान थे। पृथुश्रवा के पुत्र का नाम था धर्म। धर्म का पुत्र उशना हुआ। उसने सौ अश्वमेध यज्ञ किये थे। उशना का पुत्र हुआ रुचक। रुचक के पाँच पुत्र हुए, उनके नाम सुनो। पुरुजित्, रुक्म, रुक्मेषु, पृथु और ज्यामघ। ज्यामघ की पत्नी का नाम था शैब्या। ज्यामघ के बहुत दिनों तक कोई सन्तान न हुई, परन्तु उसने अपनी पत्नी के भय से दूसरा विवाह नहीं किया। एक बार वह अपने शत्रु के घर से भोज्या नाम की कन्या हर लाया। जब शैब्या ने पति के रथ पर उस भोज्या कन्या को देखा, तब वह चिढ़कर अपने पति से बोली- ‘कपटी! मेरे बैठने की जगह पर आज किसे बैठाकर लिये आ रहे हो ?’ ज्यामघ ने कहा- ‘यह तो तुम्हारी पुत्रवधू है।’ शैव्या ने मुस्कराकर अपने पति से कहा- ‘मैं तो जन्म से ही बाँझ हूँ और मेरी कोई सौत भी नहीं है। फिर यह मेरी पुत्रवधू कैसे हो सकती है?’ ज्यामघ ने कहा- ‘रानी! तुमको जो पुत्र होगा, उसकी ये पत्नी बनेगी’। राजा ज्यामघ के इस वचन का विश्वेदेव और पितरों ने अनुमोदन किया। फिर क्या था, समय पर शैब्या को गर्भ रहा और उसने बड़ा ही सुन्दर बालक उत्पन्न किया। उसका नाम हुआ विदर्भ। उसी ने शैव्या(चेैत्रा) की साध्वी पुत्रवधू भोज्या से विवाह किया। विदर्भ के वंश का वर्णन विदर्भ की भोज्या नामक पत्नी से तीन पुत्र हुए- कुश, क्रथ और रोमपाद। रोमपाद विदर्भ वंश में बहुत ही श्रेष्ठ पुरुष हुए। रोमपाद का पुत्र बभ्रु, बभ्रु का पुत्र कृति, कृति का पुत्र उशिक और उशिक का पुत्र चेदि हुआ। विदर्भ के दूसरे पुत्र क्रथ हुआ । क्रथ का पुत्र हुआ कुन्ति, कुन्ति का धृष्टि, धृष्टि का निर्वृति, निर्वृति का दशार्ह और दशार्ह का व्योम। व्योम का जीमूत, जीमूत का विकृति, विकृति का भीमरथ, भीमरथ का नवरथ और नवरथ का दशरथ। दशरथ से शकुनि, शकुनि से करम्भि, करम्भि से देवरात, देवरात से देवक्षत्र, देवक्षत्र से मधु, मधु से कुरुवश और कुरुवश से अनु हुए। अनु से पुरुहोत्र, पुरुहोत्र से आयु और आयु से ही सात्वत का जन्म हुआ। १-निम्लोचि, २-किंकिण और ३-धृष्टि। और दूसरी पत्नी से भी तीन पुत्र हुए- १-शताजित, २-सहस्रजित् और ३-अयुताजित। सात्वत के अन्य पुत्र देवावृध के पुत्र का नाम था बभ्रु था। देवावृध और बभ्रु के सम्बन्ध में यह बात कही जाती है- ‘ सात्वत के पुत्रों में महाभोज भी बड़ा धर्मात्मा था। उसी के वंश में भोजवंशी यादव हुए। ******** अनमित्र से निम्न का जन्म हुआ। सत्रजित् और. प्रसेन नाम से प्रसिद्ध यदुवंशी निम्न के ही पुत्र थे। अनमित्र का एक और पुत्र था, जिसका नाम था शिनि। शिनि से ही सत्यक का जन्म हुआ। इसी सत्यक के पुत्र युयुधान थे, जो सात्यकि के नाम से प्रसिद्ध हुए। सात्यकि का जय, जय का कुणि और कुणि का पुत्र युगन्धर हुआ। ______________ अनमित्र के तीसरे पुत्र का नाम वृष्णि था।*****‡‡‡ वृष्णि के दो पुत्र हुए- श्वफल्क और चित्ररथ। श्वफल्क की पत्नी का नाम था गान्दिनी। उनमें सबसे श्रेष्ठ अक्रूर के अतिरिक्त बारह पुत्र उत्पन्न हुए- आसंग, सारमेय, मृदुर, मृदुविद्, गिरि, धर्मवृद्ध, सुकर्मा, क्षेत्रोपेक्ष, अरिमर्दन, शत्रुघ्न, गन्धमादन और प्रतिबाहु। इनके एक बहिन भी थी, जिसका नाम था सुचीरा। अक्रूर के दो पुत्र थे- देववान् और उपदेव। श्वफल्क के भाई चित्ररथ के पृथु, विदूरथ आदि बहुत-से पुत्र हुए-जो वृष्णिवंशियों में श्रेष्ठ माने जाते हैं। उनमें कुकुर का पुत्र वह्नि, वह्नि का विलोमा, विलोमा का कपोतरोमा और कपोतरोमा का अनु हुआ। तुम्बुरु गन्धर्व के साथ अनु की बड़ी मित्रता थी। अनु का पुत्र अन्धक, अन्धक का दुन्दुभि, दुन्दुभि का अरिद्योत, अरिद्योत का पुनर्वसु और श्रीमद्भागवत महापुराण: नवम स्कन्ध: चतुर्विंश अध्यायः से उद्धृत सात्वत पुत्र अन्धक की वंशावली- - उग्रसेन के नौ पुत्र थे- कंस, सुनामा, न्यग्रोध, कंक, शंकु, सुहू, राष्ट्रपाल, सृष्टि और तुष्टिमान। उग्रसेन के पाँच कन्याएँ भी थीं- कंसा, कंसवती, कंका, शूरभू और राष्ट्रपालिका। इनका विवाह देवभाग आदि वसुदेव जी के छोटे भाइयों से हुआ था। "अन्धकानामिमं वंशं यः कीर्तयति नित्यशः आत्मनो विपुलं वंशं प्रजामाप्नोत्ययं ततः।६९। .जो व्यक्ति प्रतिदिन अंधकों के इस वंश का कीर्तन करता था , फलस्वरूप उसका परिवार और संतान बहुत समृद्ध हो जाती हैं।६९। ____________ गान्धारी चैव माद्री च क्रोष्टोर्भार्ये बभूवतुः गान्धारी जनयामास सुनित्रं मित्रवत्सलम्।७०। क्रोष्ट्र की दो पत्नियाँ थीं: गांधारी और माद्री थी । गांधारी ने अपने मित्रों से स्नेह करने वाली सुनित्र को जन्म दिया।७०। _____________________________ माद्रीं युधाजितं पुत्रं ततो वै देवमीढुषं अनमित्रं शिनिं चैव पंचात्र कृतलक्षणाः।७१। -माद्री ने एक पुत्र युधाजित (नाम से), फिर. देवमीढुष , (फिर) अनामित्र और शिनि को जन्म दिया । इन पांचों के शरीर पर शुभ चिन्ह थे।७१। अनमित्रसुतो निघ्नो निघ्नस्यापि च द्वौ सुतौ प्रसेनश्च महावीर्यः शक्तिसेनश्च तावुभौ।७२। अनामित्र का पुत्र निघ्न था; निघ्न के दो बेटे थे: प्रसेन और बहुत बहादुर शक्तिसेन थे ।७२। ________________ स्यमंतकं प्रसेनस्य मणिरत्नमनुत्तमं पृथिव्यां मणिरत्नानां राजेति समुदाहृतम्।७३। .प्रसेन के पास ' स्यमन्तक ' नाम की सर्वोत्तम और अद्वितीय मणि थी । इसे 'दुनिया के सर्वश्रेष्ठ रत्नों का राजा' के रूप में वर्णित किया गया था।७३। सर्वे च प्रतिहर्तारो रत्नानां जज्ञिरे च ते। अक्रूराच्छूरसेनायां सुतौ द्वौ कुलनन्दनौ।१०३। "अनुवाद:-103-अक्रूर ने शूरसेना नामक पत्नी में देवताओं के समान दो पुत्र पैदा किए : देववानुपदेवश्च जज्ञाते देवसम्मतौ। अश्विन्यां त्रिचतुः पुत्राः पृथुर्विपृथुरेव च।१०४। देववान और उपदेव। अक्रूर से अश्विनी में बारह पुत्र :१-पृथु २-विपृथु , अश्वग्रीवो श्वबाहुश्च सुपार्श्वक गवेषणौ। रिष्टनेमिः सुवर्चा च सुधर्मा मृदुरेव च।१०५। अभूमिर्बहुभूमिश्च श्रविष्ठा श्रवणे स्त्रियौ। इमां मिथ्याभिशप्तिं यो वेद कृष्णस्य बुद्धिमान्।१०६। -एक बुद्धिमान व्यक्ति, जो कृष्ण के इस मिथ्या आरोप के बारे में जान जाता है, उसे कभी भी भविष्य में कोई मिथ्या श्राप नहीं लग सकता है। न स मिथ्याभिशापेन अभिगम्यश्च केनचित् एक्ष्वाकीं सुषुवे पुत्रं शूरमद्भुतमीढुषम्।१०७।। किसी इक्ष्वाकी से मिथ्या शाप के प्राप्त होने पर एक शूर - मीढुष उत्पन्न हुआ। **** मीढुषा जज्ञिरे शूरा भोजायां पुरुषा दश वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुंदुभिः।१०८। 108-. मिढुष द्वारा भोजा नाम कपत्नीसेदश शूर वीर पुत्र उत्पन्न हुए : पहले वासुदेव का जन्म हुए), जिनका नाम अनकदुन्दुभि भी था ; देवभागस्तथा जज्ञे तथा देवश्रवाः पुनः अनावृष्टिं कुनिश्चैव नन्दिश्चैव सकृद्यशाः।१०९। इसी प्रकार देवभाग भी उत्पन्न हुआ (मिधुष द्वारा); और देवश्रवस , अनावृष्टि, कुंती, और नंदी और सकृद्यशा, । श्यामः शमीकः सप्ताख्यः पंच चास्य वरांगनाः श्रुतकीर्तिः पृथा चैव श्रुतदेवी श्रुतश्रवाः।११०। श्यामा, शमीका (भी) जिन्हें सप्त के नाम से जाना जाता है। उनकी पाँच सुंदर पत्नियाँ थीं: श्रुतकीर्ति , पृथा , और श्रुतदेवी और श्रुतश्रवा । राजाधिदेवी च तथा पंचैता वीरमातरः वृद्धस्य श्रुतदेवी तु कारूषं सुषुवे नृपम्।१११। और राजाधिदेवी । ये पांचों वीरों की माताएं थीं। वृद्ध की पत्नी श्रुतदेवी ने राजा करुष को जन्म दिया। कैकेयाच्छ्रुतकीर्तेस्तु जज्ञे संतर्दनो नृपः श्रुतश्रवसि चैद्यस्य सुनीथः समपद्यत।११२। 112. कैकय से श्रुतकीर्ति ने राजा संतर्दन को जन्म दिया । सुनीथा का जन्म श्रुतश्रवस के चैद्य से हुआ था। राजाधिदेव्याः संभूतो धर्माद्भयविवर्जितः शूरः सख्येन बद्धोसौ कुंतिभोजे पृथां ददौ।११३। 113. धर्म से भयविवर्जिता का जन्म राजधिदेवी के यहां हुआ। मित्रता के बंधन में बंधे शूर ने पृथा को कुन्तिभोज को गोद दे दिया । एवं कुंती समाख्या च वसुदेवस्वसा पृथा कुंतिभोजोददात्तां तु पाण्डुर्भार्यामनिंदिताम्।११४। 114. इस प्रकार, वासुदेव की बहन पृथा को कुंती भी कहा जाता था । कुन्तिभोज ने उस प्रशंसनीय पृथा को पाण्डु को पत्नी के रूप में दे दिया। पद्मपुराण सृष्टिखण्ड अध्याय(13-) चित्ररथ के पुत्र विदूरथ से शूर, शूर से भजमान, भजमान से शिनि, शिनि से स्वयम्भोज और स्वयम्भोज से हृदीक( ) हुए। हृदीक से तीन पुत्र हुए- देवबाहु, शतधन्वा और कृतवर्मा। ____________________________________ _(२-सात्वत के पुत्र वृष्णि ) अश्मक्यां जनयामास शूरं वै देवमीढुषः । महिष्यां जज्ञिरे शूराद् भोज्यायां पुरुषा दश।१७। वसुदेवो महाबाहुः पूर्वमानकदुन्दुभिः। जज्ञे यस्य प्रसूतस्य दुन्दुभ्यः प्राणदन् दिवि।१८। आकानां च संह्रादः सुमहानभवद् दिवि। पपात पुष्पवर्षं च शूरस्य भवने महत् ।१९। मनुष्यलोके कृत्स्नेऽपि रूपे नास्ति समो भुवि । यस्यासीत्पुरुषाग्र्यस्य कान्तिश्चन्द्रमसो यथा। 1.34.२०। देवभागस्ततो जज्ञे तथा देवश्रवाः पुनः । अनाधृष्टिः कनवको वत्सावानथ गृञ्जिमः।२१। श्यामः शमीको गण्डूषः पञ्च चास्य वराङ्गनाः । पृथुकीर्तिः पृथा चैव श्रुतदेवा श्रुतश्रवाः ।२२। राजाधिदेवी च तथा पञ्चैता वीरमातरः । पृथां दुहितरं वव्रे कुन्तिस्तां कुरुनन्दन ।२३। शूरः पूज्याय वृद्धाय कुन्तिभोजाय तां ददौ । तस्मात्कुन्तीति विख्याता कुन्तिभोजात्मजा पृथा ।२४। अन्त्यस्य श्रुतदेवायां जगृहुः सुषुवे सुतः । श्रुतश्रवायां चैद्यस्य शिशुपालो महाबलः ।२५। हरिवंशपुराण हरिवशपर्व अध्याय- (34) देवमीढ के पुत्र शूर की पत्नी का नाम था मारिषा। उन्होंने उसके गर्भ से दस निष्पाप पुत्र उत्पन्न किये- वसुदेव, देवभाग, देवश्रवा, आनक, सृंजय, श्यामक, कंक, शमीक, वत्सक और वृक। ये सब-के-सब बड़े पुण्यात्मा थे। वसुदेव जी के जन्म के समय देवताओं के नगारे और नौबत स्वयं ही बजने लगे थे। अतः वे ‘आनन्ददुन्दुभि’ भी कहलाये। वे ही भगवान् श्रीकृष्ण के पिता हुए। वसुदेव आदि की पाँच बहनें भी थीं- पृथा (कुन्ती), श्रुतदेवा, श्रुतकीर्ति, श्रुतश्रवा और राजाधिदेवी। वसुदेव के पिता शूरसेन के एक मित्र थे- कुन्तिभोज। कुन्तिभोज के कोई सन्तान न थी। इसलिये शूरसेन ने उन्हें पृथा नाम की अपनी सबसे बड़ी कन्या गोद दे दी। पृथा का विवाह पाण्डु से हुआ ! पृथा की छोटी बहिन श्रुतदेवा का विवाह करुष देश के अधिपति वृद्धशर्मा से हुआ था। उसके गर्भ से दन्तवक्त्र का जन्म हुआ। यह वही दन्तवक्त्र है, जो पूर्व जन्म में सनकादि ऋषियों के शाप से हिरण्याक्ष हुआ था। कैकय देश के राजा धृष्टकेतु ने श्रुतकीर्ति से विवाह किया था। उससे सन्तर्दन आदि पाँच कैकय राजकुमार हुए। राजाधिदेवी का विवाह जयसेन से हुआ था। उसके दो पुत्र हुए- विन्द और अनुविन्द। वे दोनों ही अवन्ती के राजा हुए। चेदिराज दमघोष ने श्रुतश्रवा का पाणिग्रहण किया। उसका पुत्र था शिशुपाल । वसुदेव जी के भाइयों में से देवभाग की पत्नी कंसा के गर्भ से दो पुत्र हुए- चित्रकेतु और बृहद्बल। देवश्रवा की पत्नी कंसवती से सुवीर और इषुमान नाम के दो पुत्र हुए। आनक की पत्नी कंका के गर्भ से भी दो पुत्र हुए- सत्यजित और पुरुजित। सृंजय ने अपनी पत्नी राष्ट्रपालिका के गर्भ से वृष और दुर्मर्षण आदि कई पुत्र उत्पन्न किये। इसी प्रकार श्यामक ने शूरभूमि (शूरभू) नाम की पत्नी से हरिकेश और हिरण्याक्ष नामक दो पुत्र उत्पन्न किये। मिश्रकेशी अप्सरा के गर्भ से वत्सक के भी वृक आदि कई पुत्र हुए। वृक ने दुर्वाक्षी के गर्भ से तक्ष, पुष्कर और शाल आदि कई पुत्र उत्पन्न किये। शमीक की पत्नी सुदामिनी ने भी सुमित्र और अर्जुनपाल आदि कई बालक उत्पन्न किये। कंक की पत्नी कर्णिका के गर्भ से दो पुत्र हुए- ऋतधाम और जय। आनकदुन्दुभि वसुदेव जी की पौरवी, रोहिणी, भद्रा, मदिरा, रोचना, इला और देवकी आदि बहुत-सी पत्नियाँ थीं। रोहिणी के गर्भ से वसुदेव जी के बलराम, गद, सारण, दुर्मद, विपुल, ध्रुव और कृत आदि पुत्र हुए थे। पौरवी के गर्भ से उनके बारह पुत्र हुए- भूत, सुभद्र, भद्रवाह, दुर्मद और भद्र आदि। नन्द, उपनन्द, कृतक, शूर आदि मदिरा के गर्भ से उत्पन्न हुए थे। कौशल्या ने एक ही वंश-उजागर पुत्र उत्पन्न किया था। उसका नाम था केशी। उसने रोचना से हस्त और हेमांगद आदि तथा इला से उरुवल्क आदि प्रधान यदुवंशी पुत्रों को जन्म दिया। वसुदेव जी के धृतदेवा के गर्भ से विपृष्ठ नाम का एक ही पुत्र हुआ और शान्तिदेवा से श्रम और प्रतिश्रुत आदि कई पुत्र हुए। उपदेवा के पुत्र कल्पवर्ष आदि दस राजा हुए और श्रीदेवा के वसु, हंस, सुवंश आदि छः पुत्र हुए। देवरक्षिता के गर्भ से गद आदि नौ पुत्र हुए तथा स्वयं धर्म ने आठ वसुओं को उत्पन्न किया था, वैसे ही वसुदेव जी ने सहदेवा के गर्भ से पुरुविश्रुत आदि आठ पुत्र उत्पन्न किये। परम उदार वसुदेव जी ने देवकी के गर्भ से भी आठ पुत्र उत्पन्न किये, जिसमें सात के नाम हैं- कीर्तिमान, सुषेण, भद्रसेन, ऋजु, संमर्दन, भद्र और शेषावतार श्रीबलराम जी। उन दोनों के आठवें पुत्र स्वयं श्रीभगवान् ही थे। परीक्षित! तुम्हारी परासौभाग्यवती दादी सुभद्रा भी देवकी जी की ही कन्या थीं। (परन्तु अन्पुराणों हरिवंश आदि में सुभद्र बलराम की बहिन थीं।) श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: प्रथम अध्याय: श्लोक 23-39 का हिन्दी अनुवाद:- वसुदेवगृहे साक्षाद् भगवान् पुरुषः परः । जनिष्यते तत्प्रियार्थं संभवन्तु सुरस्त्रियः ॥ २३ (भागवत पुराण-9/1/23) वसुदेव जी के घर स्वयं पुरुषोत्तम भगवान प्रकट होंगे। उनकी और उनकी प्रियतम की सेवा के लिए देवांगनाएँ जन्म ग्रहण करें। "क्रोष्टा से देवमीढ़ तक के गोपों के वंश का विवरण-पद्मपुराणम्/खण्डः(१ )(सृष्टिखण्डम्)अध्यायः (१३) (क्रोष्टा वंश वर्णन) (पुलस्त्य उवाच) क्रोष्टोः शृणु त्वं राजेंद्र वंशमुत्तमपूरुषम् यस्यान्ववाये संभूतो विष्णुर्वृष्णिकुलोद्वहः।१। 1. हे राजेन्द्र !, क्रोष्ट्र के परिवार का (वृत्तांत) सुनो (जिसमें) उत्कृष्ट लोग पैदा हुए थे। उनके परिवार में वृष्णि कुल के संस्थापक विष्णु का जन्म हुआ। क्रोष्टोरेवाभवत्पुत्रो वृजिनीवान्महायशाः तस्य पुत्रोभवत्स्वातिः कुशंकुस्तत्सुतोभवत्।२। 2. क्रोष्ट्र से महान् ख्याति प्राप्त वृजिनिवान् का जन्म हुआ । उनका पुत्र स्वाति था , और कुशांकु उनका (अर्थात् स्वाति का) पुत्र था। कुशंकोरभवत्पुत्रो नाम्ना चित्ररथोस्य तुु। शशबिन्दुरिति ख्यातश्चक्रवर्ती बभूव ह,।३। महाभारत के अनुशासन पर्व में शशबिन्दु के स्थान पर शूर नामक पुत्र का उल्लेख हुआ है। __________ अत्रानुवंशश्लोकोयं गीतस्तस्य पुराभवत् शशबिंदोस्तु पुत्राणां शतानामभवच्छतम्।४। 4-उनके विषय में वंशावली तालिका वाला यह पद पहले गाया जाता था। शतबिन्दु के सौ पुत्र थे। धीमतां चारुरूपाणां भूरिद्रविणतेजसाम् तेषां शतप्रधानानां पृथुसाह्वा महाबलाः।५। 5-. उन सौ बुद्धिमान, सुंदर और महान धन से संपन्न महत्वपूर्ण पुत्रों से पृथु नाम वाले अत्यंत शक्तिशाली राजा पैदा हुए । पृथुश्रवाः पृथुयशाः पृथुतेजाः पृथूद्भवःः' पृथुकीर्तिः पृथुमतो राजानः शशबिंदवः।६। शंसंति च पुराणज्ञाः पृथुश्रवसमुत्तमम् ततश्चास्याभवन्पुत्राः उशना शत्रुतापनः।७।। 7-. पुराणों के अच्छे जानकार -पृथुश्रवा को सर्वश्रेष्ठ बताते हुए उनकी प्रशंसा करते हैं। उसके बेटे उशनों ने शत्रुओं को पीड़ा दी। पुत्रश्चोशनसस्तस्य शिनेयुर्नामसत्तमः आसीत्शिनेयोः पुत्रो यःस रुक्मकवचो मतः।८। 8- उशनस के पुत्र का नाम सिनेयु था और वह परम गुणी था। सिनेयु के पुत्र को रुक्मकवच के नाम से जाना जाता था । निहत्य रुक्मकवचो युद्धे युद्धविशारदः धन्विनो विविधैर्बाणैरवाप्य पृथिवीमिमाम्।९। 9-. युद्ध में कुशल रुक्मकवच ने विभिन्न बाणों से धनुर्धारियों को मारकर इस पृथ्वी को प्राप्त कर लिया अश्वमेधे ऽददाद्राजा ब्राह्मणेभ्यश्च दक्षिणां जज्ञे तु रुक्मकवचात्परावृत्परवीरहा।१०। 10-और अश्व मेध-यज्ञ में ब्राह्मणों को दान दिया। रुक्मकवच से प्रतिद्वन्द्वी वीरों का हत्यारा परावृत उत्पन्न हुआ। ____________________ तत्पुत्रा जज्ञिरे पंच महावीर्यपराक्रमाः रुक्मेषुः पृथुरुक्मश्च ज्यामघः परिघो हरिः।११। 11. उनके पांच पुत्र पैदा हुए जो बहुत शक्तिशाली और वीर थे। रुक्मेशु , पृथुरुक्म , ज्यमाघ , परिघ और हरि । परिघं च हरिं चैव विदेहे स्थापयत्पिता रुक्मेषुरभवद्राजा पृथुरुक्मस्तथाश्रयः।१२। 12. पिता ने परिघ और हरि को विदेह में स्थापित कर दिया । रुक्मेशु राजा बन गया और पृथुरुक्म उसके साथ रहने लगा। ताभ्यां प्रव्राजितो राज्याज्ज्यामघोवसदाश्रमे प्रशांतश्चाश्रमस्थस्तु ब्राह्मणेन विबोधितः।१३। 13-. इन दोनों द्वारा राज्य से निर्वासित ज्यामघ एक आश्रम में रहते थे। वह आश्रम में शांति से रह रहा था और एक ब्राह्मण द्वारा उकसाए जाने पर उसने अपना धनुष उठाया । जगाम धनुरादाय देशमन्यं ध्वजी रथी नर्मदातट एकाकी केवलं वृत्तिकर्शितः।१४। 14 -और एक ध्वज लेकर और रथ पर बैठकर दूसरे देश में चला गया। नितांत अकेले होने और जीविका के अभाव से व्यथित होने के कारण ऋक्षवंतं गिरिं गत्वा मुक्तमन्यैरुपाविशत् ज्यामघस्याभवद्भार्या शैब्या परिणता सती।१५। 15-वह अन्य लोगों द्वारा छोड़े गए स्थान नर्मदा के तट पर "ऋक्षवन्त पर्वत पर चले गए और वहीं बैठ गए। ज्यमाघ की शैब्या नाम की एक पवित्र पत्नी ( अधिक उम्र में) हुई थी। अपुत्रोप्यभवद्राजा भार्यामन्यामचिंतयन् तस्यासीद्विजयो युद्धे तत्र कन्यामवाप्य सः।१६। 16-राजा ने भी पुत्रहीन होने के कारण दूसरी पत्नी लेने का विचार किया। एक युद्ध में उसे विजय प्राप्त हुई और युद्ध में एक कन्या प्राप्त होने पर उसने भार्यामुवाच संत्रासात्स्नुषेयं ते शुचिस्मिते एवमुक्त्वाब्रवीदेनं कस्य केयं स्नुषेति वै।१७। 17. डरते हुए अपनी पत्नी से कहा, "हे उज्ज्वल मुस्कान वाली, यह तुम्हारी पुत्रवधू है।" जब उस ने यह कहा, तो उस ने उस से कहा, वह कौन है ? किसकी बहू है ?” ( राजोवाच) यस्ते जनिष्यते पुत्रस्तस्य भार्या भविष्यति तस्याःसातपसोग्रेण कन्यायाःसंप्रसूयत।१८। 18-. राजा ने उत्तर दिया, “वह तुम्हारे पुत्र की पत्नी होगी।” उस कन्या की कठोर तपस्या के फलस्वरूप उस वृद्ध शैव्या ने पुत्र को जन्म दिया। पुत्रं विदर्भं सुभगं शैब्या परिणता सती राजपुत्र्यां तु विद्वांसौ स्नुषायां क्रथकौशिकौ।१९। 19-विदर्भ नामक पुत्र को जन्म दिया । सौभाग्यवती शैव्या प्रसन्न हुई ,विदर्भ ने राजकुमारी, (ज्यामघ की पुत्रबधु) में ,दो पुत्र, क्रथ और कौशिक उत्पन्न किये।। लोमपादं तृतीयं तु पुत्रं परमधार्मिकम् पश्चाद्विदर्भो जनयच्छूरं रणविशारदम्।२०। 20. और बाद में लोमपाद नाम का तीसरा पुत्र उत्पन्न किया , जो अत्यंत परमधार्मिक, बहादुर और युद्ध में कुशल था। लोमपादात्मजो बभ्रुर्धृतिस्तस्य तु चात्मजः कौशिकस्यात्मजश्चेदिस्तस्माच्चैद्यनृपाः स्मृताः।२१। 21. बभ्रु लोमपाद का पुत्र था; और बभ्रु का पुत्र धृति था ; विदर्भ एक पुत्र कौशिक का पुत्र चेदि था और उससे ही चैद्य नाम से जाने जाने वाले राजा उत्पन्न हुए थे। ******* क्रथो विदर्भपुत्रो यः कुन्तिस्तस्यात्मजोभवत् कुंतेर्धृष्टस्ततो जज्ञे धृष्टात्सृष्टः प्रतापवान्।२२। 22. विदर्भ के पुत्र क्रथ के पुत्र कुन्ति थे। कुंती का पुत्र धृष्ट था; उस धृष्ट से वीर सृष्ट का जन्म हुआ। सृष्टस्य पुत्रो धर्मात्मा निवृत्तिः परवीरहा निवृत्तिपुत्रो दाशार्हो नाम्ना स तु विदूरथः।२३। 23. सृष्ट का पुत्र पवित्र निवृत्ति हुआ वह , प्रतिद्वंद्वी नायकों का हत्यारा था। निवृत्ति के दशार्ह नामक पुत्र हुआ उसक विदुरथ हुआ था । दाशार्हपुत्रो भीमस्तु भीमाज्जीमूत उच्यते जीमूतपुत्रो विकृतिस्तस्यभीमरथः सुतः।२४। 24-. दशार्ह का पुत्र भीम था ; भीम का पुत्र जिमूत कहा जाता है ; जीमूत का पुत्र विकृति था ; उनका पुत्र भीमरथ था; अथ भीमरथस्यापि पुत्रो नवरथः किल तस्य चासीद्दशरथः शकुनिस्तस्य चात्मजः।२५। तस्मात्करंभस्तस्माच्च देवरातो बभूव ह देवक्षत्रोभवद्राजा देवरातान्महायशाः।२६। 26. उससे करम्भ उत्पन्न हुआ , और उससे देवरात उत्पन्न हुआ ; देवरात से अत्यंत प्रसिद्ध देवक्षेत्र का जन्म हुआ । देवगर्भसमो जज्ञे देवक्षत्रस्य नन्दनः मधुर्नाममहातेजा मधोः कुरुवशः स्मृतः।२७। 27. देवक्षत्र से मधु नामक देवतुल्य एवं अत्यन्त तेजस्वी पुत्र उत्पन्न हुआ। कहा जाता है कि कुरुवश का जन्म मधु से हुआ था। आसीत्कुरुवशात्पुत्रः पुरुहोत्रः प्रतापवान् अंशुर्जज्ञेथ वैदर्भ्यां द्रवंत्यां पुरुहोत्रतः।२८। 28. कुरुवश से एक वीर पुत्र पुरुहोत्र का जन्म हुआ। पुरुहोत्र से वैदर्भी नामक पत्नी में अंशु नामक पुत्र हुआ। वेत्रकी त्वभवद्भार्या अंशोस्तस्यां व्यजायत सात्वतः सत्वसंपन्नः सात्वतान्कीर्तिवर्द्धनः।२९। इमां विसृष्टिं विज्ञाय ज्यामघस्य महात्मनः प्रजावानेति सायुज्यं राज्ञः सोमस्य धीमतः।३०। 30- महाराज ज्यामघ की. इन संतानों को जानकर कोई भी सन्तान वाला व्यक्ति पुत्र जुड़कर, सोम के साथ एक रूपता प्राप्त करता है। । सात्वतान्सत्वसंपन्ना कौसल्यां सुषुवे सुतान् तेषां सर्गाश्च चत्वारो विस्तरेणैव तान्शृणु।३१। 31-. कौशल्या में सत्व सम्पन्न सात्वत से चार पुत्र को जन्म हुआ उन्हें विस्तार से सुनो भजमानस्य सृंजय्यां भाजनामा सुतोभवत् सृंजयस्य सुतायां तु भाजकास्तु ततोभवन्।३२। 32-(जैसा कि मैं तुम्हें बताता हूं): सृंजया नामक पत्नी में भजमान का भाज नामक पुत्र प्राप्त हुआ। फिर सृंजय की पुत्री सृंजया के गर्भ से भाजक का जन्म हुआ । तस्य भाजस्य भार्ये द्वे सुषुवाते सुतान्बहून् नेमिं चकृकणं चैव वृष्णिं परपुरञ्जयं।३३। 33. उस भाज की दो पत्नियों ने कई पुत्रों को जन्म दिया: नेमि, कृकण-और शत्रुओं के नगरों के विजेता वृष्णि। ते भाजकाः स्मृता यस्माद्भजमानाद्वि जज्ञिरे देवावृधः पृथुर्नाम मधूनां मित्रवर्द्धनः।३४। 34. चूंकि वे भजमान से पैदा हुए थे इसलिए उन्हें भाजक कहा जाने लगा। वहाँ मधु के मित्रों का वर्द्धन करने वाले देववृध, का दूसरा नाम पृथु था। अपुत्रस्त्वभवद्राजा चचार परमं तपः पुत्रः सर्वगुणोपेतो मम भूयादिति स्पृहन्।३५। -35. यह राजा देवावृध पुत्रहीन था, इसलिए 'मुझे सभी गुणों से संपन्न एक पुत्र मिले' उसने ये इच्छा करते हुए परम तप किया ़। संयोज्य कृष्णमेवाथ पर्णाशाया जलं स्पृशन् सा तोयस्पर्शनात्तस्य सांनिध्यं निम्नगा ह्यगात्।३६। 36-और केवल कृष्ण पर ध्यान केंद्रित करके और पर्णाशा (नदी) के पानी को स्पर्श कर , उसने बड़ी तपस्या की। उसके पानी छूने से नदी उसके पास आ गयी। (पुराणकार ने नदी पर कोई स्त्री मिली होगी उसी भाव को नदी रूप में दर्शाया है। कल्याण चरतस्तस्य शुशोच निम्नगाततः चिंतयाथ परीतात्मा जगामाथ विनिश्चयम्।३७। 37-तब नदी (नदी के पास स्त्री) को उसकी भलाई की चिंता हुई जो देववृथ तपस्या कर रहा था। चिन्ता से भरे हुए मन से उसने निश्चय किया, भूत्वा गच्छाम्यहं नारी यस्यामेवं विधः सुतः जायेत तस्मादद्याहं भवाम्यस्य सुतप्रदा।३८। 38-मैं स्त्री बनकर उसके पास जाऊँगी, जिससे ऐसा (अर्थात् सर्वगुण सम्पन्न) पुत्र उत्पन्न होगा। इसलिए आज मैं (उसकी पत्नी बन कर) उससे एक पुत्र उत्पन्न करुँगी ।' अथ भूत्वा कुमारी सा बिभ्रती परमं वपुः ज्ञापयामास राजानं तामियेष नृपस्ततः।३९। 39. तब उस ने कुमारी होकर सुन्दर शरीर धारण करके राजा को (अपने विषय में) समाचार दिया; तब राजा को उसकी लालसा हुई। अथसानवमेमासिसुषुवेसरितांवरा पुत्रं सर्वगुणोपेतं बभ्रुं देवावृधात्परम्।४०। 40 फिर नौवें महीने में उस सर्वोत्तम नदी ने देववृध से एक महान पुत्र को जन्म दिया। जिसका नाम बभ्रु था वह सर्वगुण सम्पन्न था। अत्र वंशे पुराणज्ञा ब्रुवंतीति परिश्रुतम् गुणान्देवावृधस्याथ कीर्त्तयंतो महात्मनः।४१। 41. हमने सुना है कि जो लोग पुराणों को जानते हैं, वे महापुरुष देववृध के गुणों का वर्णन करते हुए कहते हैं कि: _________ बभ्रुः श्रेष्ठो मनुष्याणां देवैर्देवावृधः समः षष्टिः शतं च पुत्राणां सहस्राणि च सप्ततिः।४२। 42. बभ्रु मनुष्यों में सबसे महान था; देववृध देवताओं के सदृश थे; बभ्रु और देववृध से सत्तर हजार छह सौ पुत्र पैदा हुए और वे अमर हो गये। एतेमृतत्वं संप्राप्ता बभ्रोर्देवावृधादपि यज्ञदानतपोधीमान्ब्रह्मण्यस्सुदृढव्रतः।४३। 43-बभ्रु और देवावृध के अनृत-उपदेश से भी यज्ञ ,दान और तपस्या में धैर्यसम्पन्न, ब्राह्मण भक्त तथा सुदृढ़ व्रत वाला हो जाता है। रूपवांश्च महातेजा भोजोतोमृतकावतीम् शरकान्तस्य दुहिता सुषुवे चतुरः सुतान् ।४४। 44-. बभ्रु से उत्पन्न रूपवान और महातेजस्वी भोज ने शरकान्त की पुत्री अमृतकावती से विवाह कर चार पुत्र उत्पन्न किए। कुकुरं भजमानं च श्यामं कंबलबर्हिषम् कुकुरस्यात्मजो वृष्टिर्वृष्टेस्तु तनयो धृतिः।४५। 45- ये चार पुत्र थे (कुकुर , भजमान, श्याम और कम्बलबर्हिष) । कुकुर के पुत्र वृष्टि हुए और वृष्टि के पुत्र धृति थे। कपोतरोमा तस्यापि तित्तिरिस्तस्य चात्मजः तस्यासीद्बहुपुत्रस्तु विद्वान्पुत्रो नरिः किल।४६। 46-उस धृति का पुत्र कपोतारोमा था ; और उसका पुत्र तित्तिर था ; और उनका पुत्र बाहुपुत्र था । ऐसा कहा जाता है कि उन बाहुपुत्र का विद्वान पुत्र नरि था ख्यायते तस्य नामान्यच्चंदनोदकदुंदुभिः अस्यासीदभिजित्पुत्रस्ततो जातः पुनर्वसुः।४७। नरि का अन्य नाम (चन्दनोदक और -दुन्दुभि) 47-भी बताया जाता है । चन्दनोदक का पुत्र अभिजित् था ;और उसका पुत्र पुनर्वसु हुआ। अपुत्रोह्यभिजित्पूर्वमृषिभिः प्रेरितो मुदा अश्वमेधंतुपुत्रार्थमाजुहावनरोत्तमः।४८। 48. अभिजीत पहले पुत्रहीन थे; लेकिन पुरुषों में सर्वश्रेष्ठ इस (राजा) ने, ऋषियों द्वारा प्रोत्साहित किये जाने पर, पुत्र प्राप्ति के लिए ख़ुशी-ख़ुशी अश्वमेध-यज्ञ किया। तस्य मध्ये विचरतः सभामध्यात्समुत्थितः अन्धस्तु विद्वान्धर्मज्ञो यज्ञदाता पुनर्वसु ।४९।। 49. जब वह सभा में (यज्ञ स्थल पर) घूम रहा था तो उसमें से अंधा पुनर्वसु विद्वान, धर्म में पारंगत और यज्ञ देने वाला उत्पन्न हुआ। तस्यासीत्पुत्रमिथुनं वसोश्चारिजितः किल आहुकश्चाहुकी चैव ख्याता मतिमतां वर।५०। 50. कहा जाता है कि उस शत्रुविजेता पनर्वसु के दो पुत्र थे। हे बुद्धिमानों में श्रेष्ठ, वे आहुका और आहुकी के नाम से जाने जाते थे । ____________________________________ इमांश्चोदाहरंत्यत्र श्लोकांश्चातिरसात्मकान् सोपासंगानुकर्षाणां तनुत्राणां वरूथिनाम्।५१। 51- इस विषय में वे बड़ी दिलचस्प उदाहरण रूप में श्लोक उद्धृत किया जाता हैं। उनके पास दस हजार बख्तरबंद सेनिक थे।, रथानां मेघघोषाणां सहस्राणि दशैव तु नासत्यवादिनो भोजा नायज्ञा गासहस्रदाः।५२। 52. दशों हजार रथ जो बादलों की तरह गरजते थे और उनके निचले हिस्से में संलग्नक लगे हुए थे। भोज ने कभी झूठ नहीं बोला; वे यज्ञ किये बिना कभी नहीं रहते थे; और कभी एक हजार से कम गाय दान नहीं करते थे। नाशुचिर्नाप्यविद्वांसो न भोजादधिकोभवत् आहुकां तमनुप्राप्त इत्येषोन्वय उच्यते।५३। 53. भोज से अधिक पवित्र या अधिक विद्वान कोई व्यक्ति कभी नहीं हुआ। कहा जाता है कि इसी परिवार में आहुका उत्पन्न हुआ था इसी वंश को भोज इस नाम से कहा गया। आहुकश्चाप्यवंतीषु स्वसारं चाहुकीं ददौ आहुकस्यैव दुहिता पुत्रौ द्वौ समसूयत।५४। 54-. और आहुका ने अपनी बहन आहुकी का विवाह ( अवन्ती के राजा ) से कर दिया और अहुका से ही पहले पुत्री और फिर पुत्र दो सन्तानें उत्पन्न हुईं। उपर्युक्त श्लोक का इस प्रकार अनुवाद भी है। कुछ अनुवादक निम्न अर्थ भी करते हैं। आहुक ने अपनी बहिन आहुकी का व्याह अवन्ती देश में किया था। आहुक की एक पुत्री भी थी, जिसने दो पुत्र उत्पन्न किये। उनके नाम हैं- देवक और उग्रसेन वे दोनों देवकुमारों के समान तेजस्वी हैं। परन्तु ये उपर्युक्त श्लोक प्रक्षेप हैं। फिर भी सही वंशावली का निर्धारण करने का हमारा प्रयास रहा है। __________________________ हरिवंश पुराण में वर्णन है। कि आहुक के काशीराज की पुत्री काश्या से दो पुत्र उत्पन्न हुए आहुकश्चाहुकी चैव ख्यातौ ख्यातिमतां वरौ” इत्याहुकोत्- पत्तिमभिधाय “आहुकस्य तु काश्यायां द्वौ पुत्रौ संबमूवतुः । देवकश्चोग्रसेनश्च देवगर्भसमावुभौ । नवोग्रसे- नस्य सुताः तेषां कंसस्तु पूर्व्वजः” हरिवंश पुराण- ३८ अध्याय। तित्तिरेस्तु नरः पुत्रस्तस्य चन्दनदुन्दुभिः। पुनर्वसुस्तस्य पुत्र आहुकश्चाहुकीसुतः।२९। आहुकाद्देवको जज्ञे उग्रसेनस्ततोऽभवत्। देववानुपदेवश्च देवकस्य सुताः स्मृता।३०। तेषां स्वसारः सप्तासन् वसुदेवाय ता ददौ ।३१। अनुवाद:- 29.तित्तिर के वंश में नरि हुआ। नरि के अन्य नाम चंदन और दुंदुभि भी थे। इसी दुंदुभि के वंश में अभिजित का पुत्र पुनर्वसु हुआ उसके पुत्र और पुत्री आहुक आहुकी थे। 30-.आहुका से देवक का जन्म हुआ और फिर उग्रसेन का जन्म हुआ देववन और उपदेव को देवक का पुत्र माना जाता है। उनकी सात बहनें थीं। (देवक ने) उनका विवाह वासुदेव से किया। (अग्निपुराणम्/अध्यायः- २७५) मत्स्य पुराण में भी आहुक के पुत्रों का वर्णन है।आहुकश्चाप्यवन्तीषु स्वसारं चाहुकीं ददौ। आहुकात् काश्यदुहिता द्वौ पुत्रौ समसूयत।। ४४.७० ।। देवकश्चोग्रसेनश्च देवगर्भसमावुभौ। देवकस्य सुता वीरा जज्ञिरे त्रिदशोपमाः।। ४४.७१ ।। देवानुपदेवश्च सुदेवो देवरक्षितः। तेषां स्वसारः सप्तासन् वसुदेवाय ता ददौ।। ४४.७२ ।। देवकी श्रुतदेवी च यशोदा च यशोधरा। श्री देवी सत्यदेवी च सुतापी चेति सप्तमी।। ४४.७३ ।। मत्स्यपुराणम्/अध्यायः ४४
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