वैष्णव ही इन अहीरों का इनका वर्ण हैं।
हरि बोल! हरि बोल! हरि बोल!
राधा ,दुर्गा और गायत्री जिनका अवतरण आभीर जाति में हुआ
शुद्ध आदि वैष्णवी शक्तियाँ थीं जिनकी कोई भौतिक सन्तान नहीं थी यह प्रमाण है।
सन्तानें तो मानवीय उत्पादन है।
गोपो की उत्पत्ति के विषय में भी ब्रह्मवैवर्त पुराण में लिखा है कि वे विष्णु के रोमकूपों से (क्लोनविधि) द्वारा उत्पन्न हुए।।👇
"कृष्णस्य लोमकूपेभ्य: सद्यो गोपगणो मुने:
"आविर्बभूव रूपेण वैशैनेव च तत्सम:।४१।
(ब्रह्म-वैवर्त पुराण अध्याय -5 श्लोक 41)
अनुवाद:- कृष्ण के रोमकूपों से गोपोंं (अहीरों) की उत्पत्ति हुई है , जो रूप और वेश में उन्हीं कृष्ण ( विष्णु) के समान थे। वास्तव में कृष्ण का ही गोलोक धाम का रूप विष्णु है।
यही गोपों की उत्पत्ति की बात गर्गसंहिता श्रीविश्वजित्खण्ड के ग्यारहवें अध्याय में यथावत् वर्णित है।
"नन्दो द्रोणो वसुःसाक्षाज्जातो गोपकुलेऽपिसः॥ गोपाला ये च गोलोके कृष्णरोम समुद्भवाः।२१।
"राधारोमोद्भवा गोप्यस्ताश्च सर्वा इहागताः॥
काश्चित्पुण्यैःकृतैः पूर्वैः प्राप्ताः कृष्णं वरैःपरैः॥२२॥
इति श्रीगर्गसंहितायां श्रीविश्वजित्खण्डे श्रीनारदबहुलाश्वसंवादे दंतवक्त्रयुद्धे करुषदेशविजयो नामैकादशोऽध्यायः॥११॥
शास्त्रों में वर्णन है कि गोप ( आभीर) वैष्णव (विष्णु के रोमकूप) से उत्पन्न वैष्णव अञ्श ही थे।
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ब्रह्मक्षत्त्रियविट्शूद्राश्चतस्रो जातयो यथा । स्वतन्त्रा जातिरेका च विश्वस्मिन्वैष्णवाभिधा।४३।।
ब्रह्मवैवर्तपुराण ब्रह्मखण्ड अध्याय- एकादश( ग्यारह)
अनुवाद- ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य ,और शूद्र जैसे चार वर्ण-और उनके अनुसार जातियाँ हैं । इनसे पृथक स्वतन्त्र एक वर्ण और उसके अनुसार जाति है वह वर्ण इस विश्व में वैष्णव नाम से है और उसकी एक स्वतन्त्र जाति है।(१.२.४३)
उपर्युक्त श्लोक में परोक्ष रूप से आभीर जाति का ही संकेत है। जो कि स्वयं विष्णु के रोम कूपों से प्रादुर्भूत वैष्णव वर्ण हैं।
अहीरों का गोपालन वृत्ति मूलक विशेषण गोप है ।
अहीरों का वर्ण चातुर्यवर्ण से पृथक पञ्चम् वर्ण वैष्णव है।
अत:ब्रह्मा की वर्णव्यवस्था के माननेवालों ने अहीरों को शूद्र तो कहीं वैश्य वर्णन कर दिया। परन्तु इनके कार्य सभी चारों वर्णों के होने पर भी ये वैष्णव वर्ण के थे। वैष्णव के अन्य नाम भागवत सात्वत और पाञ्चरात्र भी है।
वैष्णवों की महानता का वर्णन तो शास्त्र भी करते हैं।
ध्यायन्ति वैष्णवाः शश्वद्गोविन्दपदपङ्कजम् ।ध्यायते तांश्च गोविन्दः शश्वत्तेषां च सन्निधौ ।४४।।
अनुवाद:-
वैष्णव जन सदा गोविन्द के चरणारविन्दों का ध्यान करते हैं और भगवान गोविन्द सदा उन वैष्णवों के निकट रहकर उन्हीं का ध्यान किया करते हैं।[४४]
वे पेशे से गोपालक थे। तथा गोप नाम से प्रसिद्ध थे। लेकिन साथ ही उन्होंने कुरुक्षेत्र की लड़ाई में भाग लेते हुए क्षत्रियों का दर्जा हासिल किया। इसका प्रमाण निम्न श्लोक है।
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"मत्सहननं तुल्यानाँ , गोपानामर्बुद महत् ।
नारायण इति ख्याता सर्वे संग्राम यौधिन: ।107।
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संग्राम में गोप यौद्धा नारायणी सेना के रूप में अरबों की महान संख्या में हैं ---जो शत्रुओं का तीव्रता से हनन करने वाले हैं ।
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"नारायणेय: मित्रघ्नं कामाज्जातभजं नृषु ।
सर्व क्षत्रियस्य पुरतो देवदानव योरपि ।108।
(स्वनाम- ख्याता श्रीकृष्णसम्बन्धिनी सेना । इयं हि भारतयुद्धे दुर्य्योधनपक्षमाश्रितवती"
महाभारत के उद्योगपर्व अध्याय 7,18,22,में
वर्तमान ये गोप अहीर भी वैष्णव वर्ण के हैं।
अहीर या यादव महान योद्धा हैं, अहीर नारायणी/यादव सेना में थे।
द्वारका साम्राज्य के भगवान कृष्ण की यादव सेना को सर्वकालिक सर्वोच्च सेना कहा जाता है। महाभारत में इस पूरी नारायणी सेना को अहीर जाति के रूप में वर्णित किया गया है। इससे सिद्ध होता है कि अहीर, गोप और यादव अलग अलग लोग नहीं थे, अपितु सभी पर्यायवाची हैं।
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