दर्द जान की पहिचान है।
बाल बढ़ाए तीनगुण लोग कहें महाराज ।
साधक सा जीवन बने सिद्धों में सरताज।।
सिद्धों में सरताज साधना जब हो सच्ची।
भोगों - रोगों से रहित ज़िन्दगी सबसे अच्छी ।
साधना के पथ पर चलें, फाँसे जगत के जाल ।
सबको सुलझाते रहो , यह याद दिलाते बाल!
व्यक्ति का कर्म ही उसके उच्च और निम्न स्तर के मानक को सुनिश्चित करता है।
न कि उसका जन्म ! अभावों और विकटताओं में जन्म लेने वाले भी महान बन जाते हैं और सम्पन्नता और भोग विलास में जीवन यापन करने वाले भी पतित और चरित्रहीन हो जाते हैं।
"सराफत की दुहाई देने वाले अधिकर दोषी निकले।
परिवार का जिनको हम समझ रहे वे पड़ोसी निकले।।
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