रविवार, 16 मार्च 2025

श्रीकृष्ण-साराङ्गिणी-★ (★-प्राक्कथन-★)

★-श्रीकृष्ण-साराङ्गिणी-★

पुस्तिका "श्रीकृष्ण-साराङ्गिणी" को लिखने का  प्रमुख- उद्देश्य श्रीकृष्ण के जीवन के वैचारिक और व्यवहारिक स्वरूपों के चित्रण के साथ- साथ  उनके चरित्र-विषयक वार्तालाप के उपरान्त उत्पन्न हुए कुछ प्रश्नों तथा कुछ भ्रान्ति मूलक समस्यात्मक टिप्पणियों का सम्यक शास्त्रीय विधि से उत्तरों को खोजकर त्वरित समाधान करना तो है ही इसके साथ साथ। इस श्रीकृष्ण साराङ्गिणी" नामक ग्रन्थ को लिखने का सम्पूरक उद्देश्य भक्त' और भक्ति की यथार्थता तथा परंप्रभु परमेश्वर श्रीकृष्ण के द्वारा सृष्टि रचना और उसके विस्तार को बताते हुए गोपों के ईश्वर  श्रीकृष्ण के गुणातीत व निर्विकल्प स्वरूपों को  वर्णन करना भी है। 

परमेश्वर श्रीकृष्ण तथा उनके शाश्वत सहचारी गोपों का गोलोक से भूतल पर आगमन और प्रस्थान की वास्तविक घटनाओं के क्रम का वर्णन करना भी है। भूतल पर गोपेश्वर श्रीकृष्ण सहित गोपों की जाति विषयक -वंश, वर्ण एवं कुल की वास्तविक जानकारी देना भी ग्रन्थ की विशेषता है।


भारतीय समाज में सांस्कृतिक व आध्यात्मिक स्तर पर श्रीकृष्ण का मूल्यांकन करने के लिए प्रस्तुत पुस्तिका श्रीकृष्ण के व्यवहारिक और आध्यात्मिक जीवन चरित्र से सम्बन्धित जो समाज में समस्या मूलक मिथक व भ्रान्तियाँ हैं ।
उनका निदान और फिर समाधान भी शास्त्रीय विधि से प्रस्तुत करती है।
श्रीकृष्ण साराङ्गिणी श्रीकृष्ण के जीवन चरित्रों का नवीन और अद्भुत ज्ञान भी प्रस्तुत करने वाला ग्रन्थ है।

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अपने बहु-आयामी उद्देश्य की सम्पादिका के रूप में यह पुस्तिका एक सफल प्रयास है।  पृष्ठ संख्या तथा अन्य कलेवरीय दृष्टि से इस पुस्तिका का आकार भी न बहुत छोटा और न ही बहुत बड़ा ही निर्धारित किया गया है। इसे पाठकगण आसानी अपनी सुविधा के अनुसार से कहीं भी अन्यत्र समाज में ले जाकर जनसाधारण के समक्ष श्रीकृष्ण तथा उनके पारिवारिक सदस्य गोपों की उत्पत्ति तथा उनका चरित्र विषयक लीलाओं का प्रस्तुतिकण  प्रस्तुत कर सकता है।

यह "श्रीकृष्ण- साराङ्गिणी" पुस्तिका वास्तव में भगवान श्रीकृष्ण का ही शास्त्रीय कलेवर (शरीर) है। अत: इस भाव को मन में रखकर भक्त-गण इसे भगवान् श्रीकृष्ण के पूजा-स्थल पर रखकर श्रीकृष्ण की उपस्थिति का आभास भी कर सकते हैं। क्योंकि इसमें श्रीकृष्ण के जीवन के अद्भुत रहस्यपूर्ण चारित्रिक पहलुओं का शास्त्रोचित विधि से सरल वर्णन किया गया है।

इस पुस्तिका के लेखन कार्य से लेकर श्रीकृष्ण  जीवन के सारगर्भित चरित्रों के चित्रों का शब्दाङकन करने तक प्रेरणा-श्रोत बनकर परम श्रद्धेय, सन्त-हृदय गोपाचार्य हंस श्री आत्मानन्द जी महाराज भूमिकात्मक रूप में सदैव उपस्थित रहे हैं। एतदर्थ उनका साधुवाद !

यह पुस्तक अपने बारह (द्वादश) अध्यायों में श्रीकृष्ण के अतीव सार-गर्भित चरित्रों के साथ अपने नाम को सार्थक करती हुई उन परमेश्वर श्रीकृष्ण के ही चरणों में समर्पित है।


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