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अहमेवाऽऽसमेवाग्रे पश्चादप्यहमेव च ।
यथाऽहं च तथा त्वं च यथा धावल्यदुग्धयोः।५४।
अनुवाद:- सबसे पहले( आगे) मैं ही था। और बाद में( पश्चात) भी मैं ही रहुँगा। जैसे मैं हूँ वैसी ही तुम भी हो जैसे दुग्ध और उसकी धवलता ( श्वेतता)होती है।५४।
भेदः कदाऽपि न भवेन्निश्चितं च तथाऽऽवयोः।
अहं महान्विराट् सृष्टौ विश्वानि यस्य लोमसु।५५।
अनुवाद:- जैसे दुग्ध और उसकी धवलता में कभी कोई भेद नहीं होता है उसी प्रकार निश्चय ही हम दोनों में भी कभी भेद नहीं होता है। प्रारम्भिक सृष्टि में मैं ही महाविराट् हूँ। जिसकी रोमावलियों में असंख्य विश्व (ब्रह्माण्ड) विद्यमान हैं।५५।
अंशस्त्वं तत्र महती स्वांशेन तस्य कामिनी ।
अहं क्षुद्रविराट् सृष्टौ विश्वं यन्नाभिपद्मतः।५६।
अनुवाद:- मेरे अंश से उत्पन्न उस महान- विराट् की वहाँ तुम ही महती अंश रूप से पत्नी हो। बाद की सृष्टि में मैं ही क्षुद्रविराट हूँ । जिसके नाभि कमल से ब्रह्मा का जन्म हुआ है।५६।
अयं विष्णोर्लोमकूपे वासो मे चांशतः सति।
तस्य स्त्री त्वं च बृहती स्वांशने सुभगा तथा ।५७।
अनुवाद:- इस विष्णु के रोमकूप में मेरा अंश रूप में निवास है। तुम ही बृहती अंश रूप में इसकी सुन्दर पत्नी हो।५७।
ब्रह्मवैवर्तपुराण (श्रीकृष्णजन्मखण्डः) अध्यायः (६७)
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