शनिवार, 29 मार्च 2025

बाबर और राणा सांगा

लो भई! आप भी बाँच लो; "भविष्यपुराण'' में उल्लिखित अकबर मानसिंह आदि की जन्मकुंडली👇

अकबर आदि अन्तिम मुगल शासकोंका चरित्र; तुलसीदास, सूरदास, मीराबाई, तानसेन तथा बीरबल आदि के पूर्वजन्मोंका वृत्तान्त.

    सूतजी बोले-- शौनक ! इस प्रकार दैत्योने बलि के पास जाकर अपनी पराजय का वृत्तांत बतलाया। दैत्यराज बलि ने देवताओं की महान विजय सुनकर रोषण नामक दैत्येन्द्र को बुलाकर कहा- 'तुम तिमिरलिंग (तैमूरलंग)- के पुत्र होकर सरुष नामसे प्रसिद्ध होगे। अतः दैत्यों के श्रेष्ठ कार्य का सम्पादन करो। इसपर उसने क्रुद्ध हो देहली आकर वेदमार्गस्थ पुरुषों का नाश करना शुरू कर दिया। उसने पाँच वर्षतक राज्य किया। उसीका पुत्र बाबर हुआ, बीस वर्ष तक उसने राज्य किया। (कु वर्ष समरकन्दमें ओर कुछ दिन भारतमें ।) उसका पुत्र होमायु (हुमायू) हुआ। मदान्ध होमायुने देवताओंका निरादर किया । तब देवताओ ने नदीहा के उपवनमें स्थित कृष्णचैतन्य की स्तुति की । स्तुति सुनकर हरि क्रुद्ध हुए और उन्होने अपने तेज से उसके राज्य में विघ्न उत्पन्न किया। उनके सैन्यों द्वारा होमायु का पराजय हुआ। उस समय शेषशाक (शेरशाह )-ने रमणीय देहली नगर में आकर पाँच वर्ष तक अत्यन्त कुशलतापूर्वक राज्य किया । उन्हीं दिनोंकी बात है, शंकराचार्य के गोत्र में उत्पन्न मुकुन्द नामक एक श्रेष्ठ ब्राह्मण अपने बीस शिष्यो के साथ प्रयाग में तप कर रहा था । 'म्लेच्छराज बाबरके द्वारा देवताओंकी प्रतिमाओं आदिको नष्ट-भ्रष्ट कर दिया गया है ' यह जानकर ब्राह्मण मुकुन्दने दुःखी होकर अग्नि में अपने प्राणों की आहुति दे दी। उसके बीस शिष्यो ने भी गुरु के मार्ग का ही अनुगमन किया। किसी समय ब्राह्मण मुकुन्दने गौके दूधके साथ गौके रोमका भी पान कर लिया था, इसी दोषके कारण वह दूसरे जन्म में म्लेच्छयोनि में उत्पन्न हुआ । जब हुमायूं कश्मीर (अपने भाई मकरानके यहां काबुल-कश्मीरकी सीमा) -में निवास कर रहा था, तब उसे एक पुत्र उत्पन्न हुआ और उसी समय यह आकाशवाणी हुईं कि "तुम्हारा पुत्र बड़ा प्रतापी और भाग्यशाली होगा। यह अकस्मात्‌ (अक) प्राप्त वर (वरदान)-से उत्पन्न हुआ है, अतः इसका नाम 'अकबर' होगा और यह म्लेच्छ या पिशाच के मार्गका अनुसरण नहीं करेगा । यह श्रीधर, श्रीपति, शम्भु, वरेण्य, मधुत्रती, विमल, देववान्‌, सोम, वर्धन, वर्तक, रुचि, मान्धाता, मानकारी, केशव, माधव, मधु, देवापि, सोमपा, सूर तथा मदन--ये बीस जिसके शिष्य हैँ, वही पूर्वजन्मका मुकुन्द ब्राह्यण भाग्यवश तुम्हारे घरमे इस रूपमे आया है ।'
    ऐसी आकाशवाणी सुनकर प्रसन्नचित्त हुमायू ने भूख से पीडित व्यक्तियो को दान दिया और प्रेमपूर्वक पुत्रका पालन किया । पुत्र की दस वर्ष की अवस्था होनेपर वह देहलीमें आया ओर शेषशाक को पराजित कर वहांका राजा हो गया। उसने एक वर्षं राज्य किया ओर बादमें उसका पुत्र अकबर राजा हुआ।

अकबर (मुकुन्द ब्राह्यण)-के राज्य प्राप्ति के बाद उसके पूर्वजन्म के सात प्रिय शिष्य (केशव, माधव, मधु, देवापि, सोमपा, सूर तथा मदन) इस जन्म में भी पुनः उत्पन्न होकर अकबर के दरबार में आये। मुकुन्द ब्राह्यणके शिष्य केशव अकबरके समय में गानसेन (तानसेन) नामसे उत्पन्न हुए। पूर्वजन्मके माधव अकबरके समयमें वेजवाक्‌ (बेजूबावरा) नामसे प्रसिद्ध हुए । पूर्वजन्मके मधु अकबरके समयमे सभी रागोके ज्ञाता "हरिदास गायक' नाम से विख्यात हुए । ये माध्वाचार्यमतानुयायी प्रसिद्ध वैष्णव थे । पूर्वजन्मके देवापि अकबरके समय में ' बीरबल ' नामसे प्रसिद्ध हुए। वे पश्चिमी ब्राह्मण थे और उन्हें वाणीकी अधिष्ठात्री सरस्वतीदेवीका अभिमान था । पूर्वजन्म का गौतमवंश में उत्पन्न सोमपा अकबर के समय में 'मानसिंह' नामसे उत्पन्न हुआ और वह आर्यभूपशिरोमणि अकबरका सेनापति बना । पूर्वजन्म का शूर दक्षिण देशमें ब्राह्मण-कुलमें उत्पन्न हुआ, यह पण्डित था, इसका नाम हुआ 'बिल्वमगल' यह अकबरका मित्र बना। पूर्वजन्म का पूर्वी देश का ब्राह्मण मदन अकबरके समय में 'चन्दल' नामसे प्रसिद्ध हुआ। यह नर्तक और क्रीडाविशारद था।
     ये सात राजा अकबरके दरबारमें स्थित हुए और पूर्वजन्म के श्रीधर आदि तेरह शिष्य दूसरे स्थानो में प्रतिष्ठित हुए। अकबर के समय में अनप के पुत्र श्रीधर ही पुराणो में निपुण तुलसीशर्मा (तुलसीदास) हुए.
★सन्दर्भित पेज संलग्न हैं!
"बाबर बनाम राणा सांगा"
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        बाबर को राणा सांगा द्वारा आमंत्रित करने संबंधी सारे फ़साद की जड़ शायद यह 'बाबरनामा' ही है, जिसका हिंदी तर्जुमा, जोधपुर राज्य के मुंशिफ देवीप्रसाद कायस्थ द्वारा किया गया है। जिसके पेज संख्या 252 पर 'राना सांगा और खंडार' शीर्षक से वो उद्धृत करते हैं- 
       बादशाह लिखते हैं कि, "जब हम काबुल में थे तो राणा ने खैर ख़्वाही से एलची भेज कर यह बात ठहराई थी कि, जब बादशाह उधर से दिल्ली तक आ जावेंगे तो मैं आगरा की तरफ कूँच करूंगा। मैंने इब्राहिम को जेर करके दिल्ली और आगरा ले लिया, वहां तक भी इस हिंदू की तरफ से कुछ हरकत जाहिर न हुई मगर इसने एक मंजिल बढ़कर खंडार का किला जो मुकन के बेटे हुसैन के कब्जे में था घेर लिया। हसन के आदमी कई दफ़े आए पर मुकन अब तक नहीं आकर मिला था और आसपास के किले इटावा धौलपुर ग्वालियर और बयाना ही हाथ नहीं आए थे। पास ही के कोनों कुचालों से अभी दिल जमई नहीं हुई थी इसलिए मैं उसकी मदद के वास्ते आदमियों को अपने पास से अलग न कर सका। 3 महीने के पीछे हसन ने लाचार होकर उससे सुलह कर ली और खंडार का किला सौंप दिया."
       शायद 'बाबरनामा' के हवाले से ही, डॉ वीडी महाजन अपनी इतिहास की पुस्तक 'मध्यकालीन भारत' में लिखते हैं कि, "राणा सांगा महान योद्धा था। अपनी विजय से उसने मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बना दिया था। यह मेवाड़ के गौरव और शक्ति का चरम काल था। उसकी महत्वाकांक्षा राजपूत शक्ति का आगरा और दिल्ली में भी विस्तार करना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, उसने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। संभवतः उसे आशा थी कि, इससे लोधी सल्तनत पूर्णरूप से दुर्बल हो जाएगी और आगरा दिल्ली पर राजपूत नियंत्रण स्थापित हो जाएगा। खानवा के युद्ध में बाबर को राणा सांगा से युद्ध करना पड़ा। भारतीय इतिहास के युद्ध में यह एक निर्णायक युद्ध था."
सन्दर्भ- 1- 'बाबरनामा' का हिंदी तर्जुमा. तर्जुमाकार- जोधपुर राज्य के मुंसिफ देवीप्रसाद कायस्थ.
2- 'मध्यकालीन भारत' का इतिहास- वीडी महाजन.
नोट- सन्दर्भित पृष्ठ संलग्न हैं.

       सत्ता की सियासी चालें सदैव से ही चली जाती रही हैं। जिन्हें आज ग्लोबलाइजेशन के दौर में मुद्दा बनाकर पुनः मध्यकालीन बर्बरता जैसा माहौल पैदा करके, समाज के ताने-बाने को तोड़ना उचित नहीं है। अतः आओ! गड़े हुए मुर्दों को खोदने की बजाय, उनकी कब्र पर प्यार के पुष्प उगाकर, अपने देश व समाज को आपसी सुलह-सौहार्द की सुगंध से भर दें.

      भीष्मपाल सिंह यादव
      संस्थापक- "सजग समाज"



"बाबर बनाम राणा सांगा"
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        बाबर को राणा सांगा द्वारा आमंत्रित करने संबंधी सारे फ़साद की जड़ शायद यह 'बाबरनामा' ही है, जिसका हिंदी तर्जुमा, जोधपुर राज्य के मुंशिफ देवीप्रसाद कायस्थ द्वारा किया गया है। जिसके पेज संख्या 252 पर 'राना सांगा और खंडार' शीर्षक से वो उद्धृत करते हैं- 
       बादशाह लिखते हैं कि, "जब हम काबुल में थे तो राणा ने खैर ख़्वाही से एलची भेज कर यह बात ठहराई थी कि, जब बादशाह उधर से दिल्ली तक आ जावेंगे तो मैं आगरा की तरफ कूँच करूंगा। मैंने इब्राहिम को जेर करके दिल्ली और आगरा ले लिया, वहां तक भी इस हिंदू की तरफ से कुछ हरकत जाहिर न हुई मगर इसने एक मंजिल बढ़कर खंडार का किला जो मुकन के बेटे हुसैन के कब्जे में था घेर लिया। हसन के आदमी कई दफ़े आए पर मुकन अब तक नहीं आकर मिला था और आसपास के किले इटावा धौलपुर ग्वालियर और बयाना ही हाथ नहीं आए थे। पास ही के कोनों कुचालों से अभी दिल जमई नहीं हुई थी इसलिए मैं उसकी मदद के वास्ते आदमियों को अपने पास से अलग न कर सका। 3 महीने के पीछे हसन ने लाचार होकर उससे सुलह कर ली और खंडार का किला सौंप दिया."
       शायद 'बाबरनामा' के हवाले से ही, डॉ वीडी महाजन अपनी इतिहास की पुस्तक 'मध्यकालीन भारत' में लिखते हैं कि, "राणा सांगा महान योद्धा था। अपनी विजय से उसने मेवाड़ को एक शक्तिशाली राज्य बना दिया था। यह मेवाड़ के गौरव और शक्ति का चरम काल था। उसकी महत्वाकांक्षा राजपूत शक्ति का आगरा और दिल्ली में भी विस्तार करना था। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए, उसने बाबर को भारत पर आक्रमण करने के लिए आमंत्रित किया था। संभवतः उसे आशा थी कि, इससे लोधी सल्तनत पूर्णरूप से दुर्बल हो जाएगी और आगरा दिल्ली पर राजपूत नियंत्रण स्थापित हो जाएगा। खानवा के युद्ध में बाबर को राणा सांगा से युद्ध करना पड़ा। भारतीय इतिहास के युद्ध में यह एक निर्णायक युद्ध था."
सन्दर्भ- 1- 'बाबरनामा' का हिंदी तर्जुमा. तर्जुमाकार- जोधपुर राज्य के मुंसिफ देवीप्रसाद कायस्थ.
2- 'मध्यकालीन भारत' का इतिहास- वीडी महाजन.
नोट- सन्दर्भित पृष्ठ संलग्न हैं.

       सत्ता की सियासी चालें सदैव से ही चली जाती रही हैं। जिन्हें आज ग्लोबलाइजेशन के दौर में मुद्दा बनाकर पुनः मध्यकालीन बर्बरता जैसा माहौल पैदा करके, समाज के ताने-बाने को तोड़ना उचित नहीं है। अतः आओ! गड़े हुए मुर्दों को खोदने की बजाय, उनकी कब्र पर प्यार के पुष्प उगाकर, अपने देश व समाज को आपसी सुलह-सौहार्द की सुगंध से भर दें.

      भीष्मपाल सिंह यादव
      संस्थापक- "सजग समाज"

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