🐇~• पहले कभी देखा नहीं .
और न किया कभी सम्वाद !
वो लोग भी भी देखने आये हमको .
फिर हमारे मरने के बाद !!
ये पृथा वृथा दिखती है हमको .
रोहि बाँट नहीं पाया कोई ग़मको
हम ग़म से कहाँ आज़ाद!
कौन हमार दर्द सुनेगा .
हम किससे करें फरियाद !!
कितनी वार मरे हम तन से .
हुए कितनी वार आबाद !🐇
सायद हमको नहीं है
और नहीं है कुछ भी याद !
वख़्त की तन्हा राहों पर. ..
एक राग लिए अपनी आहों पर
अब मन को रखा है साध ..
मुसाफि़र कोई जुदा होकर !
बस ! चला जा रहा रो रोकर
रोहि आशाओं की गठरी लाद !!
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देखा कहीं दृश्य यही हमने .
बैठे नदिया के तीर ~~~
जीवन की सत्ता क्या आखिर ?
किया विचार गम्भीर !....
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एक नदी संसार ये केवल
वेग इच्छाओं के गम्भीर . ~~
लोभ के भवँर ,मोह के गोते .
इस माया में अक्सर सब रोते .
मन हुआ है बहुत अधीर .!!
प्रबल वेग वासनाओं के रोहि
कोई पार करे गुरु पीरः
दौनों हैं विपरीत प्रतिष्ठित .
आत्मा परमात्मा दो तीर .~~~~
गुरु नदिया का पुल मेरा .~~~~~
यह गाये कोई अहीर !
जिन्हें गुरु सम पुल मिला .
उनकी सम्हल गयी तक़दीर
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🐂🐄🐇🐏🐄🐃🐑🏌🌾✍✍✍✍✍✍🌾..........
अर्थात् यह संसार एक नदी के तुल्य है ..जीवात्मा और परमात्मा इस नदी के दो विपरीत किनारे हैं
...........गुरु पुल के समान है .
आध्यात्मिक कवि व विचारक योगेश कुमार रोहि की मसिधर से.... दूरभाष सम्पर्क सूत्र ..8077160219. व्हाटअप सम्पर्क भी यहीं ....
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