मै यादव योगेश कुमार 'रोहि' अपने विषय में कुछ बताया हूँ !
मेरा जन्म ज़िला फिरोजाबाद के पॉष्ट फरिया कोटला - तहसील जसराना के अन्तर्गत दभारा गाँव में सन् 10 मार्च 1983 में हुआ । यद्यपि वर्तमान में हम अपनी ननिहाल जिला अलीगढ़ के अन्तर्गत ग्राम-आज़ादपुर पत्रालय-पहाड़ीपुर तहसील अतरौली में रहते हैं ।
वर्तमान में आजा़दपुर अहीरों का वह गाँव है; जिसमें दशवार (दाशार्ह) गोत्र के अहीर तथा कठेले गोत्र के अहीर बहुतायत से हैं । ये सभी घोषी अहीर यादव समुदाय के अन्तर्गत हैं । ये हमारे ननिहाल के लोग हैं । हम भी मोटेमर्द नामक घोषी अहीर हैं ।
यह मेरा सामाजिक जातीय नाम है
'रोहि' केवल एक साहित्यिक टाइटल है ।
जिसका अर्थ होता है मूल के प्रति चलने वाला "
और मुझे लगा कि हम्हें मूल तथ्यों का अन्वेषण करना ही चाहिए ! इसी लिए मैंने 'रोहि' टाइटल अपने द्वारा लिखित पुस्तक पत्र पत्रिकाओं में लगाना प्रारम्भ किया;यह कोई जाति या गोत्र नाम नहीं है !
इस लिए मेरे ही अपने समुदाय के लोग मुझ पर यादवों अथवा अहीरों को शूद्र रूप में प्रस्तुत करने का आरोप लगाते हैं ।
भीमटा या जाटव दलित आदि वर्ग का मानकर पूर्ण रूपेण भ्रमित होते रहते हैं ।
यद्यपि भारतीय पुराणों अथवा वाल्मीकि-रामायण या महाभारत के मूसल पर्व आदि में अहीरों को लेकर काल्पनिक कथानक भी लिखे गये दस्यु या शूद्र रूप में ..
परन्तु भारतीय पुराणों में जो वर्णित है अहीरों के विषय में वह भी दो प्रकार का वर्णन उसे ही मैं प्रस्तुत करते हुए अहीरों को ही वास्तविक यादव रूप में प्रमाणित करता हूँ ।
वह भी वैदिक ऋचाओं के प्रबल प्रमाणों का आश्रय लेकर.. क्योंकि यादवों की वंश परम्परागत वृत्ति ( जीवनकार्य) गो पालन रहा है । यदु भी गायों से घिरे रहने वाले तथा नित्य यजन करने वाले होने से गोप और यदु नामों को चरितार्थ करते थे । हिब्रू बाइबिल के -सृष्टि खण्ड ( जेनेसिस ) में भी यहुदह् शब्द का अर्थ ---जो ईश्वर का यजन करने से उसकी प्रार्थनाओं के प्रभाव से उत्पन्न हुआ हो ।
परन्तु भारतीय पुराणों विशेषत भागवतपुराण के स्कन्ध प्रथम के अध्याय एक के श्लोक 20 मे द्वेष वश गोपो अर्थात् अहीरों को कृष्ण की पत्नीयाें गोपिकाओं को लूटने वाला लिख दिया है । परन्तु हरिवंश पुराण में कृष्ण का जन्म गोपो के घर में वर्णित किया है ।
और स्वयं वसुदेव को गोप बताया है ।
तब यह कैसे माना जाय कि गोपों ने गोपों को लूट लिया
अत: अहीरों (गोपों) के विषय में ब्राह्मणों ने मनगढ़न्त बातें लिख कर हिन्दू समाज को भी अहीरों के प्रति विरोधी बना दिया है ।
परन्तु यह वर्णन तो अहीरों के चिरकालिक विरोधी ब्राह्मणों के द्वारा किये गये हैं । क्योंकि वे नहीं चाहते थे; कि अहीर ब्राह्मणों से भी अधिक पूज्य हों समाज में ?
परन्तु सभी ब्राह्मण जिस गायत्री मन्त्र को अपनी ज्ञान सिद्धि के लिए नित्य वाचन करते हैं ।
वह गायत्री भी नरेन्द्र सेन अहीर की कन्या थी ।
पुराणों में भी जब अहीरों अथवा गोपों को ईश्वर का अंश अवतार बताया गया हो ! फिर उन्हीं अहीरों के प्रति ब्राह्मणों और राजपूतों की घृणा सही नहीं मालुम पड़ती है ।
मुझे भी तब अधिक दु:ख हुआ था ; जब मैं अलीगढ़--- के वार्ष्णेय महाविद्यालय से संस्कृत भाषा में एम.ए. कर रहा था ---जो आगरा विश्वविद्यालय से सम्बद्ध है ।
तब हमारे संस्कृत के प्रोफेसर महेन्द्र मिश्र ने भी हमसे कहा कि " अहीर तो दस्यु और शूद्र होते हैं और उन्होंने यादव टाइटल जादौन ठाकुरों का चुरा लिया है ! "
उन्होंने मेरे ऊपर कटाक्ष कर के यह बात कही !
क्योंकि उन्हें मालुम हो गया था कि मैं (योगेश कुमार 'रोहि') अहीर हूँ ।
---मैं प्रोफेसर के इस अपमान जनक कथन को सहन तो नहीं कर सका और मैंने कहा कि सर! क्या सभी अहीर डाँकू होते हैं ? और ये डाँकू ही क्यों होते हैं ?
उन्होंने कोई सन्तोष जनक उत्तर नहीं दिया केवल अहीरों के प्रति चिरसञ्चित ---जो द्वेष था वही प्रकट किया !.... और फिर मैंने भी मन ही मन
संकल्प लिया कि हम अहीरों में केवल हीन भावना भलने के लिए कपटी धूर्त ब्राह्मणों की षड्यन्त्र कारी योजनाऐं ही हैं ।
अहीरों को शूद्र बनाकर उनके ज्ञान-अर्जन के द्वार भी बन्द कर दिये गये ! क्योंकि वैदिक विधानों के अनुसार स्त्री और शूद्र पढ़ने के अधिकारी नहीं हैं
"स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम "
यादवों के इतिहास को यथार्थ के धरातल पर खोजने का
मेरा जीवन का बड़ा लक्ष्य था, है ।
मैनें देखा कि यादवों के इतिहास को
बिगाड़ने के लिए अहीर और यादवों को पाखण्डी ब्राह्मणों ने काल्पनिक जोड़ तोड के द्वारा पूर्ण रूपेण बिगाड़ने में कोई कस़र नहीं छोड़ी है ।
यदु का इतिहास वेदों की ऋचाओं में भी प्राप्त होता है ।
और दशम् मण्डल में सूक्त संख्या 62 की ऋचा 10 में
यादवों के आदि पुरुष यदु का वर्णन गोप के रूप में हुआ है ।
परन्तु दास विशेषण के द्वारा !
और यह सभी जानते हैं कि वेदों में दास असुर अथवा देव विरोधीयों का वाचक है ।
देवताओं के राजा इन्द्र का युद्ध यमुना नदी की तलहटी में होना ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल में दर्शाया गया है।
परन्तु अहीरों इस संसार में तुम ईश्वरीय शक्तियों के सन्निकट हो ।
दुनियाँ के अनेक -ग्रन्थों में ऐसा वर्णन है ।
यहूदीयों की हिब्रू बाइबिल में अबीर Abeer रूप में और भारतीय पुराणों में अभीर (आभीर) रूप में
और तुम्हें किसी को क्षत्रिय प्रमाण पत्र या शूद्र कह कर वर्णित करने वाले रूपों 'की आवश्यकता नहीं है ।
आज के परिप्रेक्ष्य में हम देखते हैं कि कुछ मूर्ख और रूढ़ि वादी ब्राह्मणवाद में अन्धे व्यक्तियों ने कभी भी किसी अन्य समुदाय को तरक्की के रास्ते पर बढ़ने नहीं दिया !
क्योंकि मूर्ख ब्राह्मणों के मन में जो अहंकार होता है वह अहंकार समाज के किसी अन्य व्यक्ति को आगे बढ़ते हुए देखना नहीं चाहता !
वह चाहते हैं कि सिर्फ देवी देवताओं के समान उन्हीं की पूजा हो ; उन्हीं का वन्दन हो ! हम यहाँ एक बात स्पष्ट कर देना चाहते हैं कि जाति से कोई भी ब्राह्मण नहीं हो सकता! यह मेरा दावा है ब्राह्मण कहलाने के लिए ब्रह्म ज्ञान होना चाहिए ! जैसा कि कथन है
" ब्रह्म जानाति इति ब्राह्मण: कथ्यते !
तभी उसे ब्राह्मण कहा जाना चाहिए ! कभी स्कूल का मुंह नहीं देखा वेद की शक्ल नहीं देखी वे भी द्विवेदी त्रिवेदी चतुर्वेदी पण्डित जी आदि कहला रहे हैं ।
पण्डित का मतलब विद्वान होता है !
महा मूर्खों को भी पण्डित कहने की प्रथा एशिया महाद्वीप के भारत में ही पाई जाती है।
पाखण्डीयों का हमें पुरजोर तरीके से विरोध करना होगा और इनके पाखण्ड पूर्ण विचारों को भी समझना होगा ! जिसके तहत समाज के ताने-बाने को इन्होंने नष्ट करने की वैदिक काल से ! और अब तक कोशिश की है । हम अपने जीवन में तमाम ऐसे मूर्खों से मिले हैं जो केवल ब्राह्मण गोत्र में पैदा होने के कारण ही स्वयं को महाज्ञानी समझने लगते हैं ! यहाँ तक तो ठीक है कि वह महाज्ञानी समझें लेकिन वह किसी अन्य पढ़े-लिखे व्यक्ति अथवा किसी ज्ञानी व्यक्ति का आदर सम्मान तक नहीं करना चाहते हैं !
पता नहीं उन्हें किसने समझा दिया कि ब्राह्मण को सिर्फ स्वयं का आदर करवाना चाहिए दूसरों का नहीं !
करना चाहिए हम दूसरे शब्दों में कहें तो भारत के सामाजिक ताने-बाने को इन्हीं मूर्खों ने बर्बाद किया है । मुगलकालीन इतिहास को पढ़ने पर यह ज्ञात होता है कि ब्राह्मणों के द्वारा सताई गई सनातन जातियाँ हिंदू धर्म छोड़ने के लिए विवश होकर दूसरे धर्मों को अपना लगी थी ।
एक तरफ तो यही झूठा नारा लगाते हैं कि हिंदुत्व को मजबूत करने का सुदृढ़ करने का !
और दूसरी ओर वहीं हिन्दुत्व की कब्र खोदने का काम सिर्फ इन्हीं मूर्खों ने किया है ।
हम यहाँ कतई इस बात को नहीं कहना चाहते हैं कि ब्राह्मण समाज में पैदा हुए सभी लोग बुरे हैं !
क्योंकि हम कई एक ब्राह्मणों को जानते हैं जो कि इतिहास में की गई गलतियों के लिए अपने पुरखों को दोषी मानते हैं ।
इन्सान का घमण्ड उसे कहीं का नहीं छोड़ता , प्रकार के लोगों का घमण्ड भी धीरे-धीरे इन्हें गलत रास्तों की ओर ले जा रहा है ईश्वर इन्हें सद्बुद्धि दे!
नमस्कार ! नमस्कार ! नमस्कार!
यादव योगेश कुमार'रोहि'
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