रविवार, 22 अक्टूबर 2017

टिप्पणी लेखन :-

टिप्पण लेखन (Noting) की परिभाषा- किसी भी विचारधीन पत्र या आवेदन पर उसके निष्पादन (Disposal) को सरल बनाने के लिए होती हैं ।
जो टिप्पणियाँ सरकारी कार्यालयों में लिपकों, सहायकों तथा कार्यालय अधीक्षकों द्वारा लिखी जाती है, उन्हें टिप्पण-लेखन कहते हैं। इन टिप्पणों में तीन बातें रहती हैं:--
(1) उस पत्र से पूर्व के पत्र आदि का सारांश (2) जिस प्रश्न पर निर्णय किया जाता है, उसका विवरण या विश्लेषण और (3) उस सम्बन्ध में क्या कार्रवाई की जाय, इस विषय में सुझाव और क्या आदेश दिये जाय "
इस विषय में भी सुझावों का उल्लेख।
अभिप्राय यह  , कि टिप्पण-लेखन में विचारधीन प्रश्न के बारे में वे सब बातें लिखी जाती हैं, जिनसे उस प्रश्न के सम्बन्ध में निर्णय करने और आदेश देने में सुविधा होती है।
उस विचारधीन प्रश्न का पुराना इतिहास क्या है ? उस सम्बन्ध में नियम क्या है ? सरकारी नीति क्या है ? इत्यादि सारी बातों का उल्लेख कर अन्त में यह सुझाव देना चाहिए कि इस सम्बन्ध में अमुक प्रकार का निर्णय करना उचित होगा।
इसके बाद वह पत्र निर्णय करने वाले उच्च अधिकारी के सामने रखा जायेगा। ऊपर दिये गये निर्देशों के साथ लिखे गये टिप्पण को पढ़कर उस अधिकारी को निर्णय करने में आसानी होगी।
टिप्पण के सम्बन्ध में कुछ विशिष्ट बातें इस प्रकार हैं- (1) टिप्पण बहुत कठिन व  लम्बा अथवा विस्तृत नहीं होना चाहिए। उसे यथा-सम्भव संक्षिप्त और सुस्पष्ट होना चाहिए। (2) कोई भी टिप्पण मूलपत्र (original letter) पर नहीं लिखा जाना चाहिए।
उसके लिए कोई अन्य कागज या बफ-शीट का प्रयोग करना चाहिए। (3) टिप्पण में यदि किसी पत्र का खण्डन करना हो, तो वह बहुत ही शिष्ट और संयत भाषा में किया जाना चाहिए और किसी भी दशा में किसी प्रकार का व्यक्तिगत आरोप या आक्षेप नहीं किया जाना चाहिए। (4) यदि एक ही मामले में कई बातों पर अलग-अलग आदेश लिए जाने की आवश्यकता हो तो उनमें से हर बात पर अलग-अलग टिप्पण लिखना चाहिए। (5) टिप्पण लिखने के बाद लिपिक या सहायक को " नीचे बाई ओर अपना हस्ताक्षर करना चाहिए। दाई ओर का स्थान उच्च अधिकारियों के हस्ताक्षर के लिए छोड़ देना चाहिए।
(6) कार्यालय की ओर से लिखे जा रहे टिप्पण में उन सभी बातों या तथ्यों का सही-सही उल्लेख होना चाहिए जो उस पत्रावली के निस्तारण के लिए आवश्यक हों। (7) यथासम्भव एक विषय पर कार्यालय की ओर से एक ही टिप्पण लिखा जाना चाहिए। (8) जहाँ तक सम्भव हो, टिप्पण इस ढंग से लिखा जाना चाहिए कि पत्रावली में पत्र जिस क्रम से लगे हों, टिप्पण में भी उनका वही क्रम रहे। (9) टिप्पण सदा स्याही से लिखे या टंकित होने चाहिए। (10) लिपिक, सहायक और कार्यालय अधीक्षक को कागज की बाई ओर अपने नाम के प्रथमाक्षरों का ही प्रयोग करना चाहिए। उच्च अधिकारी को अपना पूरा नाम लिखना पड़ता है। (11) टिप्पणों में ऐसे शब्दों का प्रयोग कभी नहीं करना चाहिए, जिनके अर्थ समझने में कठिनाई हो। टिप्पण लेखन का उदाहरण विहार राज्य के एक स्कूल के प्रधानाध्यापक ने राज्यसभा सचिवालय के सचिव को पत्र लिखकर दिनांक १० अक्टूबर २०१७ को होनेवाले उपवेशन में अध्यापकों के नेतृत्व में 950 छात्रों के साथ उपस्थित होने के लिए प्रवेशपत्रों की व्यवस्था के सन्दर्भ में प्रार्थनापत्र लिखा। उस कार्यालय के लिपिक ने निम्नलिखित टिप्पण लिखा।
- प्राप्त पत्रसंख्या 8, पृष्ठांक 9 । टिप्पण- यह पत्र पटना विद्यालय, पाटिलीपुत्र , विहार राज्य के प्रधानाध्यापक ने भेजा है। इसमें प्रार्थना की गयी है कि उक्त विद्यालय के 950 छात्र थे । 5 अध्यापकों के लिए राज्यसभा के दिनांक १० अक्टूबर २०१७को होनेवाले उपवेशन में उपस्थित होने के लिए आवश्यक प्रवेशपत्रों की व्यवस्था की जाय। प्रवेशपत्र-वितरण-सम्बन्धी विनियम-संख्या 90 के अधीन हम उक्त प्रार्थना को स्वीकार कर सकते है। किन्तु हमें उक्त विद्यालय के प्रधानाध्यापक को यह सूचित करना होगा कि हमारी दर्शक दीर्घा (visitors gallery) में स्थान अत्यन्त सीमित है, अतः एक साथ केवल 25 छात्र ही दीर्घा में उपस्थित रह सकेंगे। इसके लिए इन छात्रों को 25-25 के 6 समूहों में विभक्त होकर ही दीर्घा में जाना होगा। हमें प्रार्थी को यह भी सूचित करना होगा कि जिन छात्रों के लिए प्रवेश-पत्रों की प्रार्थना की गयी है उनमें से प्रत्येक का नाम, पिता का नाम, स्थायी पता तथा दिल्ली में ठहरने का पता इत्यादि की सूचना प्राप्त होने पर ही प्रवेशपत्र जारी किये जा सकते है।
साथ ही, प्रत्येक छात्र के लिए पृथक प्रवेशपत्र जारी करने के स्थान पर यदि हम 25-25 के समूह के नाम एक-एक प्रवेशपत्र बना दें, तो इससे कार्य में अधिक सुविधा होगी। आदेशार्थ निवेदित डी०अवरसचिव: मैंने आलेख में कुछ परिवर्तन कर दिये है। टंकित आलेख प्रेषित करें।
'टिप्पण शब्द संस्कृत की 'टिप् धातु से बना है। 'टिप् का अर्थ है :--भेजना
तथा टिप्पणी का अर्थ है:- टीका।
इस प्रकार टिप्पण का अर्थ है. भेजे जाने वाली टीका। यह व्युत्पत्तिपरक अर्थ टिप्पणी शब्द के वर्तमान अर्थ का समानार्थी न होने पर भी उससे मिलता-जुलता अवश्य है।
संस्कृत भाषा में टिप्पनी शब्द का विकास इस प्रकार हुआ :- (टेपयति व्याख्यायतेऽनया अर्थात् इसके द्वारा व्याख्या की जाती है वह टिप्पणी है ।
टिप + करणे ल्युट् ङीप् च :- टिप्पनी  पृषोदरादित्वात् पस्य द्बित्वे साधुः ) :-- टीका ।
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यथा  - “श्रीमतङ्गाननं नत्वा लीलावत्याः सुटिप्पनी ।   भवेशेन सुबोधार्थं क्रियते यद्गुरोः श्रुतम् ।। ”)
टिप--क्विप् टिपा पन्यते स्तूयते पन--धञर्थे क गौरा० ङीष् । टीकायाम् । सा च टीकाव्याख्यारूप- तयैव व्यवह्रियते यथा चिन्तामणिटीकाया दीधितिव्या- ख्यायाः टीका जगदीशकृता गदाधरकृता च । यथा शारीरिकसूत्रभाव्यव्याख्या पञ्चपादिका भामती च । महाभाष्यव्याख्या कैयटकृता इत्यादि । प्रथमव्याख्याया- मपि क्वचित् प्रयुज्यते यथा “श्रीमतङ्गाननं नत्वा- लीलावत्याः सुटिप्पनी । भवेशेन सुबोधार्थं क्रियते यद्गुरोः श्रुतम्” “टिप्पनी दायझागस्य...
(वाचस्पत्यम् कोश )
संस्कृत भाषा में टिप् धातु का विकास क्रिया रूप में इस प्रकार है :--- - दाभयति दिम्भयति दभि इति नन्दी दम्भयति तेपयति टेपयति डेपयति स्तेपयति डबि डिबि इति चन्द्रः विडम्बयति आडम्बरः, डिम्बयति डिम्बं शस्त्रकलहः"
तथा इतर रूप
स्तिप् :--क्षेपे ( भेजने में ) भी प्रचलित है ।
'टिप्पण शब्द का प्रयोग अंग्रेजी शब्द( noting) के हिंदी पर्याय रूप में किया जाता है।
"a song, music, instrumental music; a musical note," from Latin nota "letter, character, note," originally "a mark, sign, means of recognition," which traditionally has been connected to notus,
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past participle of noscere (Old Latin *gnoscere) "to know,"
संस्कृत भाषा में ज्ञान रूप फ़ारसी ज़ान
ken
kɛn/
noun
noun: ken
one's range of knowledge or understanding.
"politics are beyond my ken"
समानार्थी:knowledge, awareness, perception, understanding, grasp, comprehension, realization, apprehension, appreciation, consciousness, recognition, notice
"their talk hinted at mysteries beyond my ken" (ज्ञान)
verb (SCOTTISHNORTHERN ENGLISH)
verb: ken; 3rd person present: kens; past tense: kenned; past participle: kenned; past tense: kent; past participle: kent; gerund or present participle: kenning
know. :- जानना
"d'ye ken anyone who can boast of that?"
recognize; identify.
"that's him—d'ye ken him?"
मूल
Old English cennan ‘tell, make known’, of Germanic origin; related to Dutch and German kennen ‘know, be acquainted with’, from an Indo-European root shared by can1 and know. Current senses of the verb date from Middle English; the noun from the mid 16th century.
ken का अनुवाद इस भाषा में करें:
1. केन
noun
1. ज्ञान
2. विद्या
3. संज्ञा का दायरा
verb
1. जानना
2. परिचित होना
पुरानी लैटिन भाषा की क्रिया नॉसेयर (noscere):--जानना , का पूर्ण भूत काल का रूप है ।
but de Vaan reports this is "impossible," and with no attractive alternative explanation, it is of unknown origin. Meaning "notice, attention, reputation" is early . Meaning "brief writing" is from
note (v.):-- "observe, take mental note of, mark carefully," from Old French noter "indicate, designate; take note of, write down," from Latin notare "to mark, note, make a note," from nota "mark, sign, note, character, letter" (see note (n.)). Meaning "to set in writing" is from early
Related: Noted; noting.
*gno- संस्कृत ज्ञा (जन् )
*gnō-, Proto-Indo-European root meaning "to know."
It forms all or part of: acknowledge; acquaint; agnostic; anagnorisis; astrognosy; (केन can (v.1) "have power to, be able;" अर्थात्  शक्ति धारण करना २:-  योग्यों होना । निश्चित रूप से ज्ञान ही संसार की सबसे बड़ी शक्ति है ।ये व्युत्पत्तियाँ इसी भाव को ध्वनित करती हैं ।
cognition; cognizance; con (n.2) "study;" connoisseur; could; couth; cunning; diagnosis; ennoble; gnome; (n.3) "short, pithy statement of general truth;" gnomic; gnomon; gnosis; gnostic; Gnostic; ignoble; ignorant; ignore; incognito; ken (n.1) "cognizance, intellectual view;" kenning; kith; know; knowledge; narrate; narration; nobility; noble; notice; notify; notion; notorious; physiognomy; prognosis; quaint; recognize; reconnaissance; reconnoiter; uncouth; Zend.
It is the hypothetical source of/evidence for its existence is provided by: Sanskrit jna- जना "know;" Avestan zainti- (जेन्ती ) "knowledge," Old Persian xšnasatiy "he shall know;"
Old Church Slavonic znati "recognizes," Russian znat "to know;" Latin gnoscere "get to know," nobilis "known, famous, noble;" Greek :- gignoskein "to know," gnotos "known," gnosis "knowledge, inquiry;" Old Irish gnath "known;" German kennen :-- "to know," Gothic:--- kannjan "to make known."
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औपचारिक सन्दर्भो में 'टिप्पण शब्द का प्रयोग मुख्यतया दो अर्थो में किया जाता है ,
प्रशासनिक कामकाज में किसी विचाराधीन पत्र या कागज के निपटान के लिए समय-समय पर जो अभ्युक्तियाँ  लिखी जाती हैं, उन्हें टिप्पण कहते हैं।
और किसी विचारयोग्य सामाजिक, साहित्यिक, शास्त्राीय विषय पर किसी विद्वान व्यक्ति द्वारा संक्षेप में प्रस्तुत विचार विमर्श या टीका को भी टिप्पण कहा जाता है।
''टिप्पण वे लिखित अभ्युक्तियाँ हैं ।
जो किसी विचाराधीन कागज के संबंध में लिखी जाती हैं, जिससे उसके निस्तारण में सुविधा हो सके।
ये टिप्पणियां दो प्रकार की होती हैं.संक्षिप्त और विस्तृत टिप्पणियां। संक्षिप्त टिप्पणियां प्राय: अधिकारियों द्वारा की जाती हैं। जैसे.'प्रारूप पर सहमति दी जा रही है या अनुमति देना लोकहित के प्रतिकूल होगा। 'प्रार्थना अस्वीकार कर दी जाए। आदि। विस्तृत टिप्पणियां प्राय: संबंधित अधीनस्थ कर्मचारियों द्वारा लिखी जाती हैं, जिनमें विचाराधीन विषय की पूरी जानकारी, सुझाव या समीक्षा आदि प्रस्तुत किए जाते हैं।
प्रशासनिक कार्यो से अलग.सामाजिक, साहित्यिक आदि विषयों पर लिखी जाने वाली टिप्पणी अलग प्रकार की होती है। इसमें लेखक विचारणीय विषय को पूरी तरह समझकर उसके संबन्ध में कुछ बिन्दुओं का निर्धारण करता है ,और इनकी समीक्षा करते हुए अपने दृष्टि-कोण के अनुसार टिप्पण प्रस्तुत करता है। अच्छी टिप्पणी की कुछ प्रमुख विशेषताएं मानी गर्इ हैं, जिनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
पूर्णता - अच्छी टिप्पणी विचारणीय विषय से जुड़ी सभी आवश्यक-व-महत्त्वपूर्ण बातों को स्पष्ट करती है।
समस्या का समाधन - टिप्पण लिखते समय विचारणीय समस्या के समाधन के लिए हल अवश्य सुझाना चाहिए। यदि समाधन के लिए कर्इ विकल्प हों तो सारे विकल्प बताते हुए उचित विकल्प को समाधन के रूप में देना चाहिए।
व्यक्ति गत आक्षेपों सें मुक्त - टिप्पणी औपचारिक कामकाज के लिए लिखी जाती है। उसमें किसी बड़े या छोटे अधिकारी या कर्मचारी पर व्यकितगत आक्षेप नहीं होने चाहिए।
संक्षिप्तता और तारतम्यता - टिप्पण में अनावश्यक या अप्रासंगिक बातें नहीं होनी चाहिए। अत्यन्त संक्षेप में तथ्यों को तारतम्य से बनाते हुए ऐसा विकल्प सुझाना चाहिए, जिससे लगे कि कार्यवाही के लिए यही निर्देश और समाधन सर्वोत्तम है।
संयत भाषा का प्रयोग - अलग-अलग विषयों पर टिप्पण की भाषा शैली में अंतर स्वाभाविक है। साहित्यिक विषयों की टिप्पणी में लक्षणा-व्यंजना युक्त भाषा का प्रयोग हो सकता है, जबकि वैज्ञानिक शास्त्राीय विषयों से संबन्धित टिप्पणी पारिभाषिक शब्दों से युक्त भाषा में लिखी हो सकती है। इसी प्रकार प्रशासनिक काम-काज से संबंधित टिप्पणी में अभिधात्मक शब्दों से युक्त, संयत और प्रभावशाली भाषाशैली का प्रयोग आवश्यक है।   
इसमें द्वयार्थक या व्यंग्यात्मक शब्दों का प्रयोग नहीं होना चाहिए।

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