हिब्रू भाषा में शब्द (לְשָׂטָ֣ן) (शैतान) अथवा सैतन (שָׂטָן ) का अरबी भाषा में शय्यतन (شيطان ) रूपान्तरण है । जो कि प्राचीन वैदिक सन्दर्भों में त्रैतन तथा अवेस्ता ए जन्द़ में थ्रएतओन
के रूप में है ।
परन्तु अर्वाचीन पहलवी , तथा फारसी भाषाओं में यह थ्रएतओन शब्द शय्यतन या सेहतन के रूप में विकसित हो गया है ।
यही शब्द ग्रीक पुरातन कथाओं में त्रिटोन है ।
और सिरिया की संस्कृति में सय्यतन है
आज विचार करते हैं इसके प्रारम्भिक व परिवर्तित सन्दर्भों पर---
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त्रितॉन शब्द की व्युत्पत्ति स्पष्ट है ।
त्रैतनु त्रीणि तनूनि यस्य स: इति त्रैतनु
अर्थात् तीन शरीर हैं जिसके वह त्रैतन है ।
परन्तु यह शब्द आरमेनियन , असीरियन आदि सेमैेटिक भाषाओं में भी अपने पौराणिक रूपों विद्यमान है जैसा कि पूर्व वर्णित किया गया ।
यह शय्यतन अथवा शैतान शब्द मानव संस्कृतियों की उस एक रूपता को अभिव्यञ्जित करता है ;
जो प्रकाशित करती है ; कि प्रारम्भिक दौर में संस्कृतियाँ समान थीं ; और सेमैेटिक, हैमेटिक , ईरानी तथा यूनानी और भारत में आगत देव संस्कृतियों के अनुयायी कभी एक स्थान पर ही सम्पर्क में आये हुए थे ।
शैतान शब्द आज अपने जिस अर्थमूलक एवं वर्णमूलक रूप में विन्यस्त है ।
वह निश्चित रूप से इसका बहुत बाद का परिवर्तित रूप है ।
🌸---- वेदों में त्रैतन के रूप में ----🌸
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शैतान शब्द ऋग्वेद में त्रैतन के रूप में है ;
जो ईरानी ग्रन्थ अवेस्ता ए जेन्द में थ्रेतॉन (Traetaona) के रूप में प्रतिरूपित हुआ है ;
और परवर्ती फ़ारसी ,पहलवी या पार्थेनियन आदि में सेहतान अथवा शैतान रूप में परिवर्तित हो गया है ।
क्यों कि ?
" त्रि " तीन का वाचक संस्कृत शब्द फारसी में "सिह" के रूप में है ।
जैसे संस्कृत त्रितार वाद्य यन्त्र को फारसी भाषा में सितार कहा जाता है ।
इसी भाषायी पद्धति से वैदिक शब्द त्रैतन - सैतन और सैतान के रूप परिवर्तित हो जाता है ।
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सितार शब्द की व्युपत्ति के समान इस शब्द की व्युत्पत्ति पर भी वैचारिक साम्य परिलक्षित है ।
जैसे हिन्दी भाषा में सितार ( Sitar ) / उर्दू में ستار ( sitār ) के रूप से सम्बन्धित है । अथवा शैतान फारसी भाषा के سهتار ( se-târ) सि -तार) रूप से साम्य है जिसका शाब्दिक अर्थ है ; " तीन -तार " ) वस्तुत यह तीन ही तारों से बना हुआ वाद्य-यन्त्र है ।
व्युत्पत्ति और इतिहास सन्दर्भ में इतना तो सर्व विदित है कि दारा प्रथम के समय ईरानी संस्कृति में गायन वादन था । और सि -तार भी ई०पू० 400 के समकक्ष निर्मित है सितार नाम फारसी भाषा से आता है। जो संस्कृत में त्रि संख्या वाचक शब्द फ़ारसी
سیتار (sehtar) سیہ seh अर्थ
तीन और تار तार का अर्थ स्ट्रिंग या डोर है।
एक समान उपकरण, 'सितार' का उपयोग इस दिनों ईरान और अफगानिस्तान में किया जाता है।
और किन्हीं किन्हीं रूपों न
भारतीय संगीत में विद्यमान है
और मूल फारसी नाम का अभी भी उपयोग किया जाता है।
दोनों यन्त्र तुर्की (टैनबूर )तानपूरा से अधिकतर व्युत्पन्न होते हैं, जो एक लंबे, वीणा जैसा यन्त्र है जिसमें कोई Tembûr और (sehtar) सेह-तार दोनों को पूर्व इस्लामीयत से फारस में इस्तेमाल किया गया था ;
और आज भी तुर्की में उपयोग किया जाता है।
वैकल्पिक रूप से, रुद्र वीणा नामक एक पुराना भारतीय उपकरण कुछ महत्वपूर्ण मामलों में सितार जैसा दिखता है।
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कुछ लोगों ने काल्पनिक रूप से इस शब्द की व्युत्पत्ति की है ।
अरबी भाषा अक्सर हिब्रू से सम्बद्ध रही है ।
यहाँ तक कि अरब की हजरत मौहम्मद साहब के द्वारा मज़हबी विचार धारा भी यहूदी परम्पराओं से प्रभावित है । और शैतान अथवा सय्यतन पात्रों की परिकल्पना भी यहूदी परम्पराओं से नि:सृत है।
और शब्द व्युपत्ति के दृष्टि कोण से यह शब्द अरब के आलिमों ने स्यत् कि्रया-मूल से माना है ।
और अक्सर इसी धातु ( मूल) से आने के रूप में शय्यतन शब्द की व्याख्या की जाती है ش ي ط ( š-y-ṭ ) धातु का अर्थ है " जला देना , छिड़कना " और ان ( -ān ) प्रत्यय है । अर्थात् अग्नि से जला देने वाला ।
अर्थात् इस शब्द से विशेषण बनाते हैं।
हिब्रू ग्रन्थों की ऐतिहासिक प्राथमिकता को देखते हुए, जिसमें शब्द प्रासंगिकता भी है, यह सम्भव है कि अरबी शब्द हिब्रू शब्दों की ही पुनरावृत्ति है ।
शास्त्रीय सिरिएक (सीरियायी)के साथ संज्ञानात्मक रूप में sܢܐ ( साईंना) सैतान का वाचक है।
अरबी भाषा में सय्यतन शब्द की व्युत्पत्ति काल्पनिक है
क्यों कि इसकी पूर्व स्थिति हिब्रू आरमेनियन असीरियन आदि सेमैेटिक भाषाओं में थी ।
💐ऋग्वेद में त्रैतन शब्द का विकास 💐
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ऋग्वेद में मण्डल 1 अध्याय 22 तथा सूक्त 158 पर देखें त्रैतन के विषय में क्या लिखा है ?👇
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न मा गरन् नद्यो मातृतमा दासा यदीं सुसमुब्धमबाधु: शिरो यदस्य त्रैतनो वितक्षत् स्वयं दास उरो अंसावपिग्ध ||5।
दीर्घ तमा मामतेयो जुजुर्वान् दशमे युगे अपामर्थ यतीनां ब्रह्मा भवति सारथि ।6।।
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ऋषि - दीर्घ तमा । देवता -अश्विनौ। छन्द- त्रिष्टुप, अनुष्टुप ।
अर्थात् हे ! अश्निद्वय ! मातृ रूपी नदीयों का जल भी मुझे न डुबो सके ।
दस्युओं ने मुझे इस युद्ध में बाँध कर फैंक दिया । तो
त्रैतन दास (असुर) ने जब मेरा शिर काटने की चेष्टा की तो वह भी स्वयं ही कन्धों से आहत हो गया ।5।
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ऋग्वेद में 10/99/6 में वर्णित है कि
कथा की पृष्ठ भूमि इस प्रकार है कि
वेदों में वर्णित ममता का पति दीर्घतमा दश वर्ष पश्चात् वृद्ध हुए हैं ।
कर्म फल की इच्छा से स्तुति करने वाले स्तोता (ब्रह्मा) रथ युक्त हुए ।6।
ऋग्वेद मण्डल 1अध्याय 22 सूक्त 158
ऋग्वेद में ही अन्यत्र त्रितोनु के विषय में वर्णन है । कि
अस्य त्रितोन्वोजसा वृधानो विपा वराहम यो अग्रयाहन् ।।6। ऋग्वेद 10/99/6
अर्थात् इस त्रितोनु ने ओज के द्वारा लोह- समान तीक्ष्ण नखों से वराह को मार डाला था ।
विदित हो कि आयरिश पुराणों में थ्रित सूकर या वराह के रूप में है ।
ऋग्वेद में अन्यत्र वर्णित है कि-
आरण्वासो युयुधयोन सत्वनं त्रितं नशन्त प्रशिषन्त इष्टये
वैदिक सन्दर्भों में
त्रातन भी -दैत्य विशेष के रूप में है ।
ऋग्वेद 10/115/4
वैदिक सन्दर्भों में
-जो शब्द त्रित अप्त्यस्य (ऋग्वेद 1/124/5)
में वर्णित है ; वही ग्रीक पुरातन कथाओं में भी टाइटन व एम्फिट्राइट के रूप में ट्रिटॉन की माता है ।
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वाचस्पत्यम् कोश में १४६६ । ६७ पृ० पर एकत शब्दोक्ते आप्त्ये
१ देवभेदे ब्रह्मणो मानसपुत्ररूपे
२ ऋषिभेदे च त्रिषु क्षित्यादिस्थानेषु तायमानः ।
त्रिषु विस्त्रीर्णतमे अर्थात् जो तीनों लोगों मे तना हुआ है । वही त्रैतन त्रित है ।
३ प्रख्यातकीर्त्तौ च त्रितन ।
ऋग्वेद में अन्यत्र भी 👇
“यस्य त्रितो व्योजसा वृत्रं विपर्वमर्द्दयत्”
ऋ० १। १८७।१।
त्रित ऋभुक्षा: ,सविता चनो दधे८पां नपादाशहेमा धिया शमि ।6।
ऋग्वेद मण्डल 1अध्याय 3 सूक्त 31 ऋचा 6
हे अन्तरिक्ष के देवता अहि, सूर्य, त्रित ,इन्द्र और सविता हमको अन्न दें ।
त्रितो न यान् पञ्च होतृनभिष्टय आववर्त दवराञ्चक्रियावसे ।14।
अभीष्ट सिद्धि के निमित्त प्राण, अपान, समान,ध्यान, और उदान । इन पाँच होताओं को त्रित सञ्चालित करते हैं ।
ऋग्वेद मण्डल 1 अध्याय 4 सूक्त 34 ऋचा 14
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मूषो न शिश्ना व्यदन्ति माध्य: स्तोतारं ते शतक्रतो वित्तम् मे अस्य रोदसी ।8।
अमी ये सप्त रश्मयस्तत्रा मे नाभि:आतिता।
त्रितस्यद् वेद आप्त्य: स जामित्ववाय
रेभति वित्तं मे अस्य रोदसी ।9।
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दो सौतिनों द्वारा पति को सताए जाने के समान कुँए की दीवारे मुझे सता रही हैं । हे इन्द्र! चूहा द्वारा अपने शिश्न को चबाने के समान मेरे मन की पीड़ा मुझे सता रही है।हे रोदसी मेरे दु:ख को समझो ! इन सूर्य की सात किरणों से मेरा पैतृक सम्बन्ध है।
इस बात को आप्त्य ( जल )का पुत्र त्रित जानता है इस लिए वह उन किरणों की स्तुति करता है ।
हे रोदसी मेरे दु :ख को समझो।
ऋग्वेद के अन्य संस्करणों में क्रम संख्या भिन्न है
जैसे ख्वाजा कुतुब वेद नगर बरेली संस्करणों में 👇
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“शिरो यदस्य त्रैतनो वितक्षत् स्वयं दासः”
ऋ०१।१५८८ । ५ ।
“त्रैतन एतन्नामको दासोऽत्यन्तनिर्घृणः” भाष्य ।
अभि स्ववृष्टिं मदे अस्य युध्यतो रघ्वीरिव प्रवणे सस्त्रुरुतय: ।
इन्द्रो यद् वज्री धृषमाणो अन्धसा भिनद् वलस्य परिधीरिव त्रित: ।।5।
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अर्थात् अभिमुख गमन करने वाली नदीयों के समान वृत्र से युद्ध करने वाले इन्द्र और उसके सहायक मरुतों को सोम का आनन्द प्राप्त हुआ ।
तब सोम पान से साहस में बढ़े हुए इन्द्र ने वल की परिधि के समान त्रित को भेद दिया ।
यहाँ पर इन्द्र देवों का अधिपति त्रित का शत्रु है ।
अत: यहाँ त्रित भी त्रैतन के रूप में भासित है ।
ऋग्वेद मण्डल 1अध्याय 10 सूक्त 54 का 5 वाँ सूक्त
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ऋग्वेद के कतिपय स्थलों पर त्रित तथा पूषण को साथ साथ दर्शाया है । 👇
ऋषि-अथर्वा । देवता - पूषण -त्रैतन के पाप का वर्णन
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त्रिते देवता अमृजतैत देनस्त्रित एनन्मनुयेषु ममृजे ।
ततो यदि त्वा ग्राहिरानशे ताँ देवा
ब्रह्मणानाशयन्तु।१।
मरीचीर्धूमान प्रविशानु पाप्मन्नु दारान् गच्छोतवानीहारान् नदी नाम फेनानाँ अनुतान् विनश्य भ्रूण पूषन् दुरितानि मृक्ष्व द्वादशधानिहितं
त्रितस्यापमृष्टं मनुष्यै नसानि ततो यदि त्वा ग्राहिरानशे तांते देवा ब्रह्मणा नाशयन्तु ।
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अर्थात् देवताओं ने परिवित्ति में होने वाले पाप को त्रित के मन में स्थापित किया ।
त्रित ने इस पाप को सूर्योदय के पश्चात् सोते रहने वाले मनुष्यों में स्थापित किया।
हे परिविते ! तुझे जो पाप देवी प्राप्त हुई है ।
इसे मन्त्र शक्ति से दूर भगा ।
हे परिवेदन में उत्पन्न पाप तू परिवित्ति त्याग कर अग्नि और सूर्य के प्रकाश में प्रविष्ट हो । तू धूप में , मेघ के आवरण या कुहरे में प्रवेश कर ।
हे पाप तू नदीयों के फेन में समा जा ।
त्रित का वह पाप बारह स्थानों में स्थापित किया गया।
वही पाप मनुष्यों में प्रविष्ट हो जाता है।
हे मनुष्य यदि तू पिशाची के द्वारा प्रभावित हुआ है तो उसके प्रभाव को पूर्वोक्त देवता और ब्राह्मण इस मन्त्र द्वारा शमन करें !
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एक बात विचार-विमर्श का विषय है कि अवेस्ता और वैदिक सन्दर्भों में प्राप्त साक्ष्यों से विदित होता है कि ईरानी संस्कृति और भारतीयों की संस्कृति में परस्पर भेद था भाषायी साम्य होते हुए भी अर्थ भेद भी स्पष्ट है।
क्यों जहाँ वेदों में देवों की महिमा वर्णित है ।
और विशेषत: देवों के अधिपति इन्द्र की ।
यद्यपि लिथुआनियन , ग्रीक, तथा नॉर्स संस्कृतियों में इन्द्र क्रमशः इन-द-र ,एण्डरो, Andro है ।
जिसका अर्थ है ।
शक्ति से युक्त मानव एनर परन्तु अवेस्ता ए जन्द़ में इन्दर को एक दुष्ट प्रवृत्तियों का प्रतिरूप बताया है ।👇
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अवेस्ता ए जन्द़ में इन्दर (इन्द्र) को वेन्दीदाद् संख्या 10,9 (अवेस्ता) में मानव विरोधी और दुष्ट प्रवृत्तियों का प्रतिनिधि बताया गया है ।
इसी प्रकार सोर्व (सुर:) तरोमइति , अएम्प तथा तऊर्वी , द्रुज , नओड्.धइत्थ्य , और दएव (देव)
शब्द नकारात्मक अर्थो में हैं ।
यस्न संख्या-27,1,57,18, यस्त 9,4
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उपर्युक्त उद्धरणों में इन्द्र , देव, सुर आदि शब्द हैं जिन्हें ईरानी आर्य बुरा मानते हैं।
इसके विपरीत असुर दस्यु, दास , तथा वृत्र ईरानी संस्कृति में पूज्य अर्थों में हैं ।
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(thraetaona )थ्रेतॉन ईरानी धर्म-ग्रन्थ अवेस्ता में वर्णित देव है। इसका सामञ्जस्य वैदिक
त्रित -अापत्या के साथ है ।
अवेस्ता में यम को यिमा (Yima) के रूप में महिमा- मण्डित किया गया है ।
अवेस्ता में अज़िदाहक को मार डाला जाता है ।
जिसे वैदिक सन्दर्भों में अहि-दास कहा गया है ।
भारतीय वैदिक सन्दर्भों में --- एकत: द्वित: और त्रित:
के विषय में अनेक रूपक विद्यमान हैं ।👇
कुए में गिरे हुए त्रित ने देवों का आह्वान किया उसे देवों के पिता अथवा गुरु बृहस्पति ने सुना और त्रित को बाहर निकाला ।
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त्रित: कूपे८वहितो देवान् हवत ऊतये ।
तच्छुश्राव बृहस्पति: कृण्वन्नंहूरणादुरु
वित्तं मे अस्य रोदसी ।
(ऋग्वेद मण्डल 1अध्याय 16 सूक्त 105 ऋचा 17)
कुए में गिरे हुए त्रित ने रक्षार्थ देवाह्वान किया ;
तब उसे बृहस्पति (ज्यूस) ने सुना और पाप रूप कुएें से उसे निकाला। हे रोदसी मेरे दु:ख को सुनो त्रित इस प्रकार आकाश और पृथ्वी से प्रार्थना करता है
अब यम के द्वारा दिए गये इस अश्व त्रित पुन: जोड़ता है ; सम्भवतया त्रित ही त्रैतन के रूप में चिकित्सक के रूप में प्रतिष्ठित है ।
यहाँ त्रित को रहस्य मयी नियमों वाला बताया गया है ।
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यमेन दत्तं त्रित एनमायुनगिन्द्र एणं प्रथमो अध्यतिष्ठत् ।
गन्धर्वो अस्य रशनामगृभ्णात् सूरादश्वं वसवो निरतष्ट 2।
असि यमो अस्यादित्यो अर्वन्नसि त्रितो गुह्येन व्रतेन
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यम के द्वारा दिए गये इस अश्व को त्रित ने जोड़ा
इन्द्र ने इस पर प्रथम वार सवारी की ।
गन्धर्व ने इस की रास पकड़ी ; हे देवताओं तुमने इसे सूर्य से प्राप्त किया
हे अश्व तू यम रूप है।
सूर्य रूप है ;और गोपनीय नियम वाला त्रित है ।
यही इसका रहस्यवादी सिद्धान्त है ।
मण्डल 1अध्याय 22सूक्त
163 ऋचा संख्या 2-3
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त्रित को वैदिक सन्दर्भों में चिकित्सा का देवता मान लिया गया । अंग्रेजी भाषा में प्रचलित ट्रीट (Treat )
शब्द वस्तुत त्रित मूलक है ।
अवेस्ता ए जेन्द़ में
त्रिथ चिकित्सक का वाचक है ।
तथा त्रैतन का रूप थ्रैतान फारसी रूप फरीदून प्रद्योन /प्रद्युम्न - चिकित्सक का वाचक है।
फरीदून नाम फ़ारसी ग्रन्थ शाहनाम में त्रैतन शब्द का तद्भव रूप है ।
🌹 अवेस्ता में वर्णित थ्रएतओन 🌹
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अवेस्ता में वर्णित है कि ----
यो ज़नत अजीम् दहाकँम् थ्रित फ़नँम थ्रिक मँरँधँम्
क्षृवश् अषीम् हजृडृ़.र यओक्षीम् अश ओड्. हैम दएवीम् द्रुजँम् अघँम् ।
गएथाव्यो द्रवँतँन् यॉम् ओजस्तँ माँम् द्रुजँम् फ्रच कँरँ तत् अड.गरो मइन्युश् अओइयॉम् अरत्वइतीम् गएथाँम् मइकॉई अषहे गएथनाम् ।।
...(यस्न 9,8 अवेस्ता )----
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अर्थात् जिस थ्रएतओन जिसे वैदिक सन्दर्भों में (त्रैतन) या त्रित कहा है । वह अाप्त्य का पुत्र है ।
उसने ही अज़िदाहक (अहि दास) को मारा था।
जो अहि तीन जबड़ो वाला , तीन खोपड़ियों वाला, छ: आँखों वाला
यह हजार युक्तियों वाला बहुत ही शक्तिशाली है । धूर्त ,पापी , जीवित प्राणीयों को धोखा देने वाला था ।
जिस बलशाली को अड्.गरा मइन्यु ने सृष्टि के विरोधी रूप में अश (सत्य) की सृष्टि के विनाश के लिए निर्मित किया था ।
वस्तुत उपर्युक्त कथन अहि दास के लिए है ।
प्रस्तुत सन्दर्भ में (त्रिक मूर्धम् ) की तुलना ऋग्वेद के उस स्थल से कर सकते हैं । जहाँ इन्द्र के द्वारा प्रेरित त्रित-आप्त्य (थ्रअेतओन) विश्व रूप और तीन शिर वाले वृत्र या अहि का नाश करता है । (ऋग्वेद-10/1/8 देखें👇
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स पित्र्याण्यायुधानि विद्वानिन्द्रे त्रित-आप्त्यो अभ्यध्यत्
त्रीशीर्षाणं सप्त रश्मिं जघन्वान् (ऋग्वेद-10/1/8)
जहाँ इन्द्र के द्वारा प्रेरित त्रित-आप्त्य (थ्रअेतओन) विश्व रूप और तीन शिर वाले वृत्र या अहि का नाश करता है
इसके अतिरिक्त अन्य स्थलों पर भी अहि और त्रित एक दूसरे के शत्रुओं के रूप में हैं।
जिस प्रकार अहि को मार कर त्रित ऋग्वेद में गायों को स्वतन्त्र करते हैं।👇
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उसी प्रकार अवेस्ता ए जन्द़ में थ्रएतओन सय्यतन द्वारा अज़िदाहक को मार कर दो युवतियों को स्वतन्त्र करने की बात कही गयी है ।
अब उपर्युक्त उद्धरणों में भी थ्रएतओन वैदिक रूप (त्रैतन)
ऋग्वेद में ये सन्दर्भ इन ऋचाओं में वर्णित है-
👉 १३२, १३ १८५९।३३२।६ तथा
३६।८।४ ।१७।१।६।
अतः यह सन्दर्भ अ़हि (अज़ि) वृत्र (व्रथ्र) या वल (इबलीश)(evil)के साथ गोओं ,ऊषस् या आप:
सम्बन्धी देव शास्त्रीय भूमिका का द्योतन करता है ऋग्वेद १३२/१८७/१ तथा १/५२/५
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नॉर्स पुरा-कथाओं में (Thridi) थ्रिडी ओडिइन का पुराना नाम जिसका साम्य त्रिता के साथ है।
और ट्रिथ- समुद्र के लिए एक पुराने आयरिश नाम भी है । ध्वन्यात्मक रूप से इसका साम्य वैदिक त्रित से है ।
ट्राइटन Triton (Τρίτων ) पॉसीडॉन एवं एम्फीट्रीट का पुत्र एक यूनानी समुद्र का देवता है ।
जिसका ध्वन्यात्मक साम्य वैदिक त्रित को रूप में है ।
वैदिक और ईरानी धर्म-ग्रन्थ अवेस्ता के सन्दर्भ समानार्थक रूप में विद्यमान हैं !
THRIDI
नोर्स ज्ञान का देवता
इसे Þriðji के रूप में भी जाना जाता है
यह एक और अजीब ऋषि है ।
वह हर और जफरहर के साथ रहस्यमय-तीन (त्रिक )का तीसरा सदस्य है।
उनका नाम ' थ्रर्त ' है और जब बैठने की व्यवस्था और स्थिति की बात आती है तो वह तीसरे स्थान पर ही होता है। लेकिन वह अपने सहयोगियों के रूप में स्पुल के थ्रूडिंग के बारे में उतना ही जानता है।
थ्रिडी तथ्य और फिगर
नाम: THRIDI
उच्चारण: जल्द ही आ रहा है
वैकल्पिक नाम: Þriðji
स्थान: स्कैंडिनेविया
लिंग: नर
स्तर या प्रकार : देवता
भगवान: ज्ञान
विली (वल ) और वी (वायु)
ओडिन, विली और वी 19 वीं शताब्दी के चित्रों में लोरेन्ज़ फ्रॉलीच द्वारा ब्रह्माण्ड बनाते हैं
विली और वी (क्रमशः "विली-ए" और "वेय", भगवान ओडिन के दो भाई हैं, जिनके साथ उन्होंने ब्रह्मांड के निर्माण में निर्णायक भूमिका निभाई।
मध्ययुगीन आइसलैंडिक विद्वान स्नोरी स्टर्लुसन हमें बताता है कि ओडिन, विली और वी पहले सत्य थे जो अस्तित्व में थे। उनके माता-पिता प्रोटो-गॉड बोर और विशालकाय बेस्टला थे।
तीन भाइयों ने विशाल यमिर ( यम-अथवा हिम )को मार डाला, जो अस्तित्व में आया था, और ब्रह्मांड को अपनी मास से बना दिया।
जबकि स्नोरी आम तौर पर एक विशेष रूप से विश्वसनीय स्रोत नहीं है, इस विशेष जानकारी को पूर्व-ईसाई नोर्स विचारों के प्रामाणिक खाते के रूप में स्वीकार करने के अच्छे कारण भी हैं, यह देखते हुए कि यह अन्य सबूतों के साथ कितना अच्छा है, जिसे हम नीचे देखेंगे।
यम कनानी संस्कृतियों तथा प्राचीन ईरानी संस्कृतियों में
एवं नॉर्स और भारतीयों संस्कृतियों में समान रूप से है।
केवल इसकी भूमिकाओं में भेद है ।
विली और वी भी एक अन्य कहानी में शामिल हैं जो हमारे पास आ गया है: जब ओडिन अस्थायी रूप से एस्सार से , अस्सी देवताओं के दिव्य गढ़ को "अमानवीय" जादू का अभ्यास करने के लिए निर्वासित कर दिया गया था, विली और वी अपनी पत्नी फ्रिग के साथ सो गए थे।
दुर्भाग्यवश, घटनाओं की इस श्रृंखला में उनकी भूमिका के बारे में और अधिक जानकारी नहीं है।
पुराने नोर्स साहित्य में विली और वी के अन्य स्पष्ट सन्दर्भ ओडिन के भाई के रूप में विली के उत्तीर्ण होने तक सीमित हैं।
स्माररी के प्रोज एडडा ग्रन्थ में हहर ("हाई"), जफरहरर ("जस्ट एज़ हाई"), और Þriði ("तीसरा"), जिनकी नाममात्र कथाओं में भूमिका पूरी तरह से व्यावहारिक है, ओडिन, विली, और वी,
लेकिन यह संभावना है कि वे ओडिन तीन अलग-अलग रूपों के तहत हैं, क्योंकि ओल्ड नर्स कविता में अन्य तीन नाम ओडिन पर लागू होते हैं।
विली और वी के बारे में सबसे अधिक आकर्षक जानकारी उनके नामों में मिल सकती है। पुराने नर्स में , विली का अर्थ है "विल,"
और वे का अर्थ "मंदिर"है और यह उन शब्दों के साथ निकटता से निकटता से संबंधित है जो पवित्र के साथ करना है, और विशेष रूप से पवित्र हैं।
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रुचिकर बात यह है कि ओडिन, विली और वी के प्रोटो-जर्मनिक नाम क्रमशः वुंडानाज़ , वेल्जोन , और विक्सन थे ।
यह अलगाव शायद ही संयोगपूर्ण हो सकता है, और हम्हें सुझाव देता है कि त्रैमासिक समय उस समय की तारीख है जब प्रोटो-जर्मन भाषा बोली जाती थी - लगभग 800 ईस्वी में वाइकिंग एज शुरू होने से पहले, और सम्भवतः दो सहस्राब्दी या उससे कम नहीं उस तारीख से पहले।
यद्यपि वे केवल वाइकिंग (समुद्र के लुटेरों )का युुग था।
इन्हें साहित्य में स्पोराडिक रूप से वर्णित किया गया है। और इसके तत्काल बाद, विली और वी नॉर्स और अन्य जर्मन लोगों के लिए कम से कम जर्मनिक जनजातियों के समय, और सम्भवतः बाद में भी प्रमुख महत्व के देवताओं के रूप में होना चाहिए।
क्यों जर्मनिक भारतीयों के सहवर्ती हैं ।
और उनके और भारतीयों के पूर्वज तथा देव सूची भी समान है । जैसे मनु, को जर्मन संस्कृति में मेनुस् 🐩
रोमन लेखक टैसिटस (रोमन इतिहास कार समय ईस्वी सन् 68 के लगभग) के मुताबिक, मोनुस , जर्मनिक जनजातियों के निर्माता है ; मिथकों में जो एक आंकड़ा था। टैसिटस ही इन मिथकों का एकमात्र स्रोत है।
टैसिटस ने जर्मन संस्कृति को गहनता से जाना ।
टैसिटस ने लिखा था कि मानुस तुइस्टो (वैदिक रूप त्वष्टा )का बेटा था और जो तीन जर्मनिक जनजातियों इंजेवोन्स , हर्मिनोन्स और इस्तवाइन्स का पिता हुआ । जर्मन जनजातियों पर चर्चा करने में टैसिटस ने लिखा: कि
प्राचीन काल में, उनकी एकमात्र ऐतिहासिक परम्परा है,कि वे पृथ्वी से बाहर लाए गए एक देवता तुइस्टो का जश्न मनाते हैं। वे उन्हें एक बेटे, मानस, उनके लोगों के स्रोत और संस्थापक और मानुस के तीन पुत्रों के लिए जिम्मेदार ठहराते हैं, जिनके नाम महासागर के नजदीकी नाम हैं, उन्हें इल्वाइओन्स कहा जाता है, जो मध्य हर्मिनोन में हैं, और बाकी इस्तावाइन्स हैं।
कुछ लोग, प्राचीन काल के रूप में अटकलों को मुक्त कर देते हैं, यह सुनिश्चित करते हैं कि भगवान से पैदा हुए अधिक बेटे थे और इसलिए अधिक जनजातीय पदनाम- मंगल , गाम्ब्रिवी , सुबेई और वंदिली- और ये नाम वास्तविक और प्राचीन हैं।
( पुस्तक जर्मनिया , अध्याय संख्या 2)
कई लेखकों ने टैक्सीटस के काम में मानस नाम को इंडो-यूरोपीय मूल से रोकने के लिए माना;
पूर्व-जर्मनिक रूप मन्नाज़ , है ।
"
16 वीं शताब्दी में मैनियस फिर से साहित्य में लोकप्रिय हो गया, लेखक एनीस डी विटरबो और जोहान्स एवेन्टिनस द्वारा प्रकाशित कार्यों के बाद जर्मनी और सरमातिया पर एक प्रमुख राजा के रूप में उन्हें सूचीबद्ध करने के लिए कहा गया।
19 वीं शताब्दी में, एफ नोर्क ने लिखा था कि मानुस के तीन पुत्रों के नामों को इंगुई, इरमिन और इस्ताव या इस्सीओ (इक्कियो) या (वैदिक रूप इक्ष्वाकु )के रूप में निकाला जा सकता है।
राल्फ टी ग्रिफिथ जैसे कुछ विद्वानों ने मन्नस और अन्य प्राचीन संस्थापक-राजाओं के नामों जैसे ग्रीक पौराणिक कथाओं के मिनोस और भारतीय परम्परा के मनु के बीच एक सम्बन्ध व्यक्त किया है।
जर्मन अल्पसंख्यक सक्रिय उपयोग में हजारों सालों के इतने बड़े अनुपात में केवल मामूली महत्व का कोई पौराणिक आंकड़ा बरकरार रखा नहीं गया था, जिसके दौरान उन्होंने कई महत्वपूर्ण बदलाव किए थे। तथ्य यह है कि विली और वी ओडिन के भाइयों के रूप में वर्णित किए जाते हैं, शायद इस समय के अधिकांश में सबसे ज्यादा जर्मनिक देवता, उनके ऊंचे स्तर का एक और सुझाव है।
वस्तुत , ओडिन, विली, और वी - क्रमशः प्रेरणा, चेतना का इरादा, और पवित्र - तीन सबसे बुनियादी ताकतों या विशेषताओं के प्रतिनिधि हैं जो अराजकता से किसी भी ब्रह्माण्ड को अलग करते हैं।
इसलिए यह तीन देवताओं थे जो मूल रूप से ब्रह्माण्ड बनाते थे, और निश्चित रूप से इसके निरन्तर रख रखाव और समृद्धि के सबसे आवश्यक स्तम्भों में से तीन बने रहे।👇
सन्दर्भ तालिका
[1] स्नोरी स्टर्लुसन। प्रोज एडडा। Gylfaginning।
[2] पोएटिक एडडा। लोकसेंना, स्टेन्ज़ा 26।
[3] स्नोरी स्टर्लुसन। यंग्लिंग सागा, अध्याय 3।
[4] शिमेक, रूडोल्फ। 19 93।
उत्तरी पौराणिक कथाओं का शब्दकोश।
एंजेला हॉल द्वारा अनुवादित। पृष्ठ संख्या। 362।
[5] एलिस-डेविडसन, हिल्डा रोडरिक। 19 64.
उत्तरी यूरोप के देवताओं और मिथक। पृष्ठ-संख्या 201।
[6] शिमेक, रूडोल्फ। 1 99 3।
उत्तरी पौराणिक कथाओं का शब्दकोश। एंजेला हॉल द्वारा अनुवादित। पृष्ठ संख्या। 177।
[7] इबिड। 362।
[8] इबिड। 355।
[9] ओरल, व्लादिमीर। 2003.
जर्मनिक एटिमोलॉजी की एक पुस्तिका। पृष्ठ। 453।
अर्थात् थ्रिडी ज्ञान का नॉर्स देवता ।
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ग्रीक पौराणिक कथाओं में ट्रिटॉन Triton , (Τρίτων) एक मर्मन (जल मत्स्य मानव)है , जो एक समुद्र का देवता है जो वस्तुत वैदिक त्रैतन का प्रतिरूप है ।
यूनानी पुराणों में त्रैतन (Triton) समुद्र के देवता, पोसीडॉन और उसकी पत्नी अम्फिट्राइट (Amphitrite) का पुत्र था।
जिन्हें वैदिक सन्दर्भों में क्रमश: त्रैतन , पूषन् तथा आप्त्य कहा गया है।
वेदों में पूषण के लिए ऋचा देखें -👇
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यस्य ते पूषन् त्सख्ये पिपन्यव: कृत्वा चित्
सन्तो८वसा बभ्रुज्रिरे ।
तामनु त्वा नवीयसीं नियुतं राय ईमहे ।
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हे पूषा ! शीघ्र गामी मनुष्य को मार्ग में उचित दिशा बताने के समान तुम्हें स्तोत्र में प्रेरणा करता हूँ । जिससे तुम हमारे शत्रुओं को दूर करो। मेैं तुम्हारा आह्वान करता हूँ । तुम मुझे युद्ध में बलवान बनाओ।
पॉसीडॉन (Poseidon) यूनानी पुरा-कथाओं के अनुसार समुद्र और जल का देवता है ।
जो सूर्य के रूप में भी प्रकट होता है ।
शैतान का प्रारम्भिक रूप एक सन्त अथवा ईश्वरीय सत्ता के रूप में थी । यह तथ्य स्वयं ऋग्वेद में भी विद्यमान हैं ।👇
ऋषि-अथर्वा । देवता - पूषण -त्रैतन के पाप का वर्णन
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त्रिते देवता अमृजतैत देनस्त्रित एनन्मनुयेषु ममृजे ।
ततो यदि त्वा ग्राहिरानशे ताँ देवा
ब्रह्मणानाशयन्तु।१।
मरीचीर्धूमान प्रविशानु पाप्मन्नु दारान् गच्छोतवानीहारान् नदी नाम फेनानाँ अनुतान् विनश्य भ्रूण हिन्दुस्तान पूषन् दुरितानि मृक्ष्व द्वादशधानिहितं
त्रितस्यापमृष्टं मनुष्यै नसानि ततो यदि त्वा ग्राहिरानशे तांते देवा ब्रह्मणा नाशयन्तु ।
अर्थात् देवताओं ने परिवित्ति में होने वाले पाप को त्रित के मन में स्थापित किया ।
त्रित ने इस पाप को सूर्योदय के पश्चात् सोते रहने वाले मनुष्यों में स्थापित किया।
हे परिविते ! तुझे जो पाप देवी प्राप्त हुई है ।
इसे मन्त्र
शक्ति से दूर भगा ।
हे परिवेदन में उत्पन्न पाप तू परिवित्ति त्याग कर अग्नि और सूर्य के प्रकाश में प्रविष्ट हो । तू धूप में , मेघ के आवरण या कुहरे में प्रवेश कर ।
हे पाप तू नदीयों के फेन में समा जा ।
त्रित का वह पाप बारह स्थानों में स्थापित किया गया।
वही पाप मनुष्यों में प्रविष्ट हो जाता है।
हे मनुष्य यदि तू पिशाची के द्वारा प्रभावित हुआ है तो उसके प्रभाव को पूर्वोक्त देवता और ब्राह्मण इस मन्त्र द्वारा शमन करें !
सम्भवतया देवताओं के द्वारा त्रित में पाप के स्थापित किए जाने के कारण वह देव विरोधी हो गया ।
त्रैतनु अथवा त्रैतन या त्रित सभी एक ही सत्ता के रूप हैं
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एक ऋषि तथा देवता ।
परंतु निरुक्त में इसे एक द्रष्टा कहा है [नि.४.६] ।
इन्द्र ने त्रित के लिये अर्जुन का वध किया
[ऋ..२.११.२०] । त्रित ने त्रिशीर्ष का [ऋ.१०.८.८] ।, एवं त्वष्ट्रपुत्र विश्वरुप का वध किया [ऋ.१०.८.९] । मरुतों ने युद्ध में त्रित का सामर्थ्य नष्ट नहीं होने दिया [ऋ.८.७.२४] ।
त्रित ने सोम दे कर सूर्य को तेजस्वी बनाया
[ऋ.९.३७.४] । त्रित तथा त्रित आप्त्य, एक ही होने का संभव है ।
त्रिंत को आप्त्य विशेषण लगाया गया है ।
इसका अर्थ सायण ने उदकपुत्र किया है [ऋ.९.४७.१५] । यह अनेक सूक्तों का द्रष्टा है [ऋ.१.१०५,८.४७,६.३३,३४,१०२,१०.१-७] । एक स्थान पर इसने अग्नि की प्रार्थना की है कि, मरुदेश के प्याऊ के समान पूरुओं को धन से तुष्ट करते हो
[ऋ.१०४] । त्रित शब्द इंद्र के लिये उपयोग में लाया गया है [ऋ.१.१८७.२] । उसी प्रकार इन्द्र के भक्त के रुप में भी इसका उल्लेख है [ऋ.९.३२.२.१०,.८.७-८] ।
त्रित तथा गृत्समद कुल का कुछ सम्बन्ध था, ऐसा प्रतीत होता है [ऋ.२.११.१९] ।
त्रित को विभूवस का पुत्र कहा गया है [ऋ.१०.४६.३] । त्रित अग्नि का नाम हैं [ऋ. ५.४१.४] । त्रित की वरुण तथा सोम के साथ एकता दर्शाई है [ऋ.८.४१.६,९.९५.४] । एक बार यह कुएँ में गिर पडा । वहॉं से छुटकारा हो, इस हेतु से इसने ईश्वर की प्रार्थना की । यह प्रार्थना बृहस्पति ने सुनी तथा त्रित की रक्षा की [ऋ.१.१०५.१७]
भेडियों के भय से ही त्रित कुएँ में गिरा होगा [ऋ.१.१०५.१८] । इसी ऋचा के भाष्य में, सायण ने शाटयायन ब्राह्मण की एक कथा का उल्लेख किया है । एकत, द्वित तथा त्रित नामक तीन बंधु थे ।
त्रित पानी पीने के लिये कुएँ में उतरा । तब इसके भाईयों ने इसे कुएँ में धक्का दे कर गिरा दिया, तथा कुँआ बंद करके चले गये ।
तब मुक्ति के लिये, त्रित ने ईश्वर की प्रार्थना की
[ऋ.१.१०५] । यह तीनों बन्धु अग्नि के उदक से उत्पन्न हुएँ थे [श. ब्रा.१.२.१.१-२];[तै.ब्रा ३.२.८.१०-११] ।
महाभारत में त्रित की यही कथा कुछ अलग ढंग से दी गयी है ।
गौतम के एकत:, द्वित: तथा त्रित: नामक पुत्र थे । यह सभी ज्ञाता ( ज्ञानी ) थे ।
परन्तु कनिष्ठ पुत्र त्रित का तीनों में श्रेष्ठ होने के कारण, सर्वत्र पिता के ही समान उसका सत्कार करना पडता था दौनों भाइयों को ।
और एकत और द्वित को पिता की ओर से विशेष द्रव्य भी प्राप्त नहीं होता था ।
एक बार गौतम ने त्रित की सहायता से यज्ञ पूर्ण कर के, इन्होंने काफी गौए प्राप्त की ।
गौए ले कर जब ये सरस्वती के किनारे जा रहे थे, तब त्रित आगे था ।
दोनों भाई गौओं को हाँकते हुए पीछे जा रहे थे ।
इन दोनों को गौओं का हरण करने की सूझी ।
त्रित निःशंक मन से जा रहा था ।
इतने में सामने से एक भेडिया आया ।
उससे रक्षा करने के हेतु से त्रित बाजू हटा,
तो सरस्वती के किनारे के एक कुएँ में गिर पडा ।
इसने काफी चिल्लाहट मचाई ।
परन्तु भाईयों ने सुनने पर भी, लोभ के कारण, इसकी ओर ध्यान नहीं दिया ।
भेडिया का डर तो था ही ।
जल-हीन, धूलियुक्त तथा घास से भरे कुएें में गिरने के बाद, त्रित ने सोचा कि, ‘मृयु भय से मैं कुए में गिरा । इसलिये मृत्यु का भय ही नष्ट कर डालना चाहिये’।
इस विचार से, कुएँ में लटकने वाली वल्ली को सोम मान कर इसने यज्ञ किया ।
देवताओं ने सरस्वतीं के पानी के द्वारा इसे बाहर निकाला ।
आगे वह कूप ‘त्रित-कूप’ नामक तीर्थ स्थल हो गया । घर वापस जाने पर, शाप के द्वारा इसने भाईयों को भेडिया बनाया ।
उनकी सन्ततियों को इसने बन्दर, रीछ आदि बना दिया बलराम जब त्रित के कूप के पास आये, उस समय उन्हें यह पूर्वयुग की कथा सुनाई गयी
[महाभारत शान्तिपर्व ३५];
[ भा.१०.७८]
। आत्रेय राजा के पुत्र के रुप में, त्रित की यह कथा अन्यत्र भी आई है [स्कंद पुराण ] ।
पुराणों तथा महाभारत की ये कथाऐं पुष्य-मित्र सुंग कालीन ब्राह्मणों के द्वारा लिपि-बद्ध हैं ।
जो आनुमानिक व कल्पना-रञ्जित हैं ।
अब बात करते हैं यूरोपीय मिथकों की तो
उधर यूरोप के प्रवेश-द्वार -यूनान में
यूनानी महाकाव्य इलियड में वर्णित त्रेतन (Triton)
एक समुद्र का देवता है ।
जो पॉसीडन ( Poisidon ) तथा एम्फीट्रीट(Amphitrite) का पुत्र है ।👇
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"Triton is the a minor sea-good Son of the Poisson & Amphitrite " he is the messenger of sea "
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त्रेतन की कथा पारसीयों के धर्म - ग्रन्थ अवेस्ता ए जेन्द़ में थ्रेतॉन के रूप में वर्णित है !
इनके धर्म-ग्रन्थों में थ्रेतॉन अथव्यय से अजि-दहाक (वैदिक अहिदास) की लड़ाई हुई
यूनानी महाकाव्यों में अहि (Ophion) के रूप में है ।
ऋग्वेद के प्रारम्भिक सूक्तों में त्रेतन समुद्र तथा समुद्र का देवता है ।
वस्तुत: तीनों लोकों में तनने के कारण तथा समुद्र की यात्रा में नाविकों का सहायता करने से होने के कारण
इसके यह नाम मिला ..
वस्तुत: वैदिक , यूनानी और ईरानी मिथकों में साम्य है ।
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वेद तथा ईरानी संस्कृति में त्रेतन तथा त्रित को चिकित्सा का देवता माना गया ----
यत् सोमम् इन्द्र विष्णवि यद् अघ त्रित आपत्यये---अथर्व०२०/१५३/५
अंगेजी भाषा में प्रचलित शब्द( Treat )
लैटिन Tractare तथा Trahere के रूप संस्कृत भाषा के त्रा -- तर् से साम्य रखते है ।
बाद में इसका पद सोम ने ले लिया जिसे ईरानी आर्यों ने होम के रूप में वर्णित किया है ।
परवर्ती वैदिक तालीम संस्कृति में त्रेतन को दास तथा वाम -मार्गीय घोषित कर दिया गया था ।
और यहीं से प्रारम्भ होता है ।
इसके शैतानी रूप का उपक्रम
देखें--- 👇🐞🐞🐞🐞🐞
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यथा न मा गरन् नद्यो मातृतमा
दास अहीं समुब्धम बाधु: ।
शिरो यदस्य त्रैतनो वितक्षत
स्वयं दास उरो अंसावपिग्ध ।।
ऋग्वेद--१/१५८/५
अर्थात्--हे अश्वनि द्वय माता रूपी समुद्र का जल भी मुझे न डुबो सके ।
दस्यु ने युद्ध में बाँध कर मुझे फैंक दिया .
त्रेतन ने जब मेरा शिर काटने की चेष्टा की तो वह स्वयं ही कन्धों से आहत हो गया ..
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वेदों की ये ऋचाऐं संकेत करती हैं कि आर्य इस समय सुमेरियन बैबीलॉनियन आदि संस्कृतियों के सानिध्य में थी ।
क्योंकि सुमेरियन संस्कृति में त्रेतन को शैतान के रूप में वर्णित किया गया है ।
यही से यह त्रेतन पूर्ण रूप से हिब्रू ईसाई तथा इस्लामीय संस्कृतियों में नकारात्मक तथा अवनत अर्थों को ध्वनित करता है।
यहूदी पुरातन कथाओं में ये तथ्य सुमेरियन संस्कृति से ग्रहण किये गये ।
तब सुमेरियन बैवीलॉनियन असीरियन तथा फॉनिशियन संस्कृतियों के सानिध्य में ईरानी आर्य थे ।
असीरियन संस्कृति से प्रभावित होकर ही ईरानी आर्यों ने असुर महत् ( अहुर-मज्द़ा)को महत्ता दी निश्चित रूप से यह शब्द यूनानीयों तथा भारतीय आर्यों में समान है ।
संस्कृत भाषा में प्रचलित शब्द त्रि -(तीन ) फ़ारसी में सिह (सै)हो गया ..
फ़ारसी में जिसका अर्थ होता है ---तीन ..
जैसे संस्कृत भाषा का शब्द त्रितार (एक वाद्य)
फ़ारसी में सिहतार हो गया है ।
इसी प्रकार त्रितान, सिहतान हो गया है ।
क़ुरान शरीफ़ मे शय्यतन शब्द का प्रयोग हुआ है ।
ऋग्वेद में एक स्थान पर त्रेतन के मूल रूप त्रित का वर्णन इस प्रकार हुआ है ।
कि जब देवों ने परिवित्ति में होने वाले पाप को त्रित में ही स्थापित कर दिया तो त्रित त्रेतन हो गया ।
अनिष्ट उत्पादन जिसकी प्रवृत्ति बन गयी ।👇
देखिए-- त्रित देव अमृजतैतद् एन: त्रित एनन् मनुष्येषु ममृजे --- अथर्ववेद --६/२/१५/१६
अर्थात् त्रित ने स्वयं को पाप रूप में सूर्योदय के पश्चातआत्मा लेते रहने वाले मनुष्यों में स्थापित कर दिया ।
वस्तुत: त्रेतन पहले देव था ।
हिब्रू परम्पराओं में शैतान /सैतान को अग्नि से उत्पन्न माना है ।और ऋग्वेद में भी त्रित अग्नि का ही पुत्र है ।
अग्नि ने यज्ञ में गिरे हुए हव्य को धोने के लिए जल से तीन देव बनाए --एकत ,द्वित तथा त्रित
जल (अपस्) से उत्पन्न ये आप्त्य हुए जिसे होमर के महाकाव्यों में (Amphitrite)...
कहा गया है ।
अर्थात् इस तथ्य को उद्धृत करने का उद्देश्ययही है कि वेदों का रहस्य असीरियन अक्काडियन हिब्रू आदि संस्कृतियों के विश्लेषण कर के ही उद्घाटित होगा ..
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तथ्य-विश्लेषक --- यादव योगेश कुमार 'रोहि'
ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर
जनपद अलीगढ़।🌷🌷🌷🌷🌷🌷
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बाइबिल में शैतान का वर्णन - इस प्रकार है ।👇
परमेश्वर के द्वारा शैतान को एक पवित्र स्वर्गदूत के रूप में रचा गया था।
यशायाह 14:12 सम्भवत: शैतान को गिरने से पहले लूसीफर का नाम देता है।
यहेजकेल 28:12-14 उल्लेख करता है कि शैतान को एक करूब के रूप में रचा गया था, जो कि स्वर्गदूतों में सबसे उच्च प्राणी के रूप में दिखाई देता हुआ जान पड़ता था ।
वह अपनी सुन्दरता और पद के कारण घमण्ड से भर गया और परमेश्वर से भी ऊँचे सिहांसन पर विराजमान होना चाहता था (यशायाह 14:13-14; यहेजकेल 28:15;1 तिमुथियुस 3:6)।
यही शैतान का घमण्ड उसके पतन का कारण बना। यशायाह 14:12-15 में दिए हुए कथनानुसार " उसके पाप के कारण, परमेश्वर ने उसे स्वर्ग से निकाल दिया।
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शैतान इस संसार का हाकिम और वायु की शाक्ति का राजकुमार बन गया (यूहन्ना 12:31; 2 कुरिन्थियों 4:4; इफिसियों 2:2)।
वह दोष लगाने वाला है (प्रकाशितवाक्य 12:10), परीक्षा में डालने वाला है (मत्ती 4:3; 1 थिस्सलुनीकियों 3:5), और धोखा देने वाला है (उत्पत्ति 3; 2 कुरिन्थियों 4:4; प्रकाशितवाक्य 20:3)।
उसका नाम ही "शत्रु" है या वह जो "विरोध करता" है। उसके एक और पद, इबलीस है, जिसका अर्थ "निन्दा करने वाला" है।"
हांलाकि उसे स्वर्ग से निकाल बाहर किया है, परन्तु वो अभी भी अपने सिहांसन को परमेश्वर से ऊपर लगाना चाहता है। जो कुछ परमेश्वर करता है उस सब की वो नकल, यह आशा करते हुए करता है कि वह संसार की अराधना को प्राप्त कर लेगा और परमेश्वर के राज्य के विरोध में लोगों को उत्साहित करता है।
शैतान ही सभी तरह की झूठी शिक्षाओं और संसार के धर्मों के पीछे अन्तिम स्त्रोत है।
शैतान परमेश्वर और परमेश्वर का अनुसरण करने वालों के विरोध में अपनी शाक्ति में कुछ और सब कुछ करेगा। परन्तु फिर भी, शैतान का गंतव्य – आग की झील में अनन्तकाल के लिए डाल दिए जाने के द्वारा मुहरबन्द कर दिया गया है ।
(प्रकाशितवाक्य 20:10)।
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इय्योब नामक काव्य ग्रन्थ में शैतान एक पारलौकिक सत्व है जो ईश्वर के दरबार में इय्योब पर पाखंड का आरोप लगाता है। यहूदियों के निर्वासनकाल के बाद (छठी शताब्दी ई. पू.) शैतान एक पतित देवदूत है जो मनुष्यों को पाप करने के लिए प्रलोभन देता है।
बाइबिल के उत्तरार्ध में शैतान बुराई की समष्टिगत अथवा व्यक्तिगत सत्ता का नाम है।
उसको पतित देवदूत, ईश्वर का विरोधी, दुष्ट,
प्राचीन सर्प, परदार साँप (ड्रैगन), गरजनेवाला सिंह, इहलोक का नायक आदि कहा गया है।
त्रैतन
जहाँ मसीह अथवा उनके शिष्य जाते, वहाँ शैतान अधिक सक्रिय बन जाता क्योंकि मसीह उसको पराजित करेंगे और उसका प्रभुत्व मिटा देंगे।
किंतु मसीह की वह विजय संसार के अंत में ही पूर्ण हो पाएगी (दे. कयामत)। इतने में शैतान को मसीह और उसके मुक्तिविधान का विरोध करने की छुट्टी दी जाती है। दुष्ट मनुष्य स्वेच्छा से शैतान की सहायता करते हैं। संसार के अंत में जो ख्राीस्त विरोधी (ऐंटी क्राइस्ट) प्रकट होगा वह शैतान की कठपुतली ही है।
उस समय शैतान का विरोध अत्यंत सक्रिय रूप धारण कर लेगा किंतु अंततोगत्वा वह सदा के लिए नर्क में डाल दिया जाएगा। ईसा पर अपने विश्वास के कारण ईसाई शैतान के सफलतापूर्वक विरोध करने में समर्थ समझे जाते हैं।
बाइबिल के उत्तरार्ध तथा चर्च की शिक्षा के अनुसार शैतान प्रतीकात्मक शैली की कल्पना मात्र नहीं है; पतित देवदूतों का अस्तित्व असंदिग्ध है। दूसरी ओर वह निश्चित रूप से ईश्वर द्वारा एक सृष्ट सत्व मात्र है जो ईश्वर के मुक्तिविधान का विरोध करते हुए भी किसी भी तरह से ईश्वर के समकक्ष नहीं रखा जा सकता।
ग्रीक कवि हेसियोड के अनुसार, ट्राइटन अपने माता-पिता के साथ समुद्र की गहराई में एक सुनहरे महल में रहते था।
कभी-कभी वह विशिष्ट नहीं था लेकिन कई ट्राइटनों में से एक था।
एक मछली की पूँछ के साथ, वह अपने कमर के लिए मानव के रूप में प्रतिनिधित्व किया गया था।
ट्राइटन की विशेषता एक मुड़कर सीशेल (मछली) थी, जिस पर उसने स्वयं को शान्त होने या लहरों को बढ़ाने के लिए उड़ा दिया।
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Poseidon
पोसीडोन, ग्रीक धर्म में, समुद्र के देवता (और आम तौर पर पानी), भूकम्प और घोड़े के रूप वह है।
( Amphitrite )
एम्फिट्राइट, यूनानी पौराणिक कथाओं में समुद्र की देवी, भगवान पोसीडॉन की पत्नी ।
ग्रीक : Τρίτων Tritōn ) एक पौराणिक ग्रीक देवता , समुद्र के दूत है ।
वह क्रमशः समुद्र के देवता और देवी क्रमश: पोसीडोन और एम्फिट्राइट का पुत्र है।
और उसके पिता के लिए हेराल्ड है । उन्हें आम तौर पर एक मर्मन के रूप में दर्शाया जाता है जिसमें ओवीड [1 के अनुसार, मानव और पूंँछ, मुलायम पृष्ठीय पंख, स्पाइनी पृष्ठीय पंख, गुदा फिन, श्रोणि पंख और मछली के कौडल फिन का ऊपरी शरीर होता है।
ट्रिटॉन की विशेषता एक मुड़ता हुआ शंख खोल था, जिस पर उसने शांत होने या लहरों को बढ़ाने के लिए तुरही की तरह स्वयं को उड़ा दिया।
इसकी आवाज इतनी शोक थी, कि जब जोर से उड़ाया गया, तो उसने दिग्गजों को उड़ान भर दिया, जिसने इसे एक अंधेरे जंगली जानवर की गर्जना की कल्पना की।
सायद सूकर के सादृश्य पर --
हेसियोड के थेसिस के अनुसार, ट्रिटॉन अपने माता-पिता के साथ समुद्र की गहराई में एक सुनहरे महल में रहता था; होमर एगे से पानी में अपना आसन रखता है त्रिटोनियन झील" ले जाया गया तब से उसका नाम त्रिटोनियन हुआ।
, ट्राइटोनिस झील , जहां ट्राइटन, स्थानीय देवता ने डायोडोरस सिकुलस द्वारा " लीबिया पर शासक"
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ट्राइटन पल्लस के पिता थे और देवी एथेना के लिए पालक माता-पिता थे।
दो देवी के बीच एक विचित्र लड़ाई के दौरान गलती से एथेना ने पल्लस की हत्या कर दी थी।
ट्राइटन को कभी-कभी ट्राइटोन , समुद्र के डेमोनों में गुणा किया जा सकता है ।
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जैसा कि पहले उल्लेख किया गया था, वेल्श शब्द twrch त्रुच का मतलब है "जंगली सूअर, हॉग, तिल है " तो Twrch Trwyth का अर्थ है "सूअर Trwyth"। इसका आयरिश संज्ञान ट्रायथ, स्वाइन का राजा (पुरानी आयरिश: ट्रायथ टॉर्राइड) या लेबर गैबला इरेन में वर्णित टोरक ट्रायथ हो सकता है।
को सनस कॉर्माइक में ओल्ड आयरिश ओआरसी ट्रेथ "ट्रायथ्स सूअर" के रूप में भी रिकॉर्ड किया गया है।
राहेल ब्रॉमविच ने भ्रष्टाचार के रूप में ट्रविथ के रूप में फॉर्म का सम्मान किया।
प्रारंभिक पाठ हिस्टोरिया ब्रितोनम में, सूअर को ट्रिनट या ट्रॉइट कहा जाता है, जो वेल्श ट्र्वाइड से लैटिनिकरण की संभावना है।
प्राचीन ग्रीक पौराणिक कथाओं में ,
एम्फिट्राइट ( æ m f ɪ t r aɪ t iː / ; ग्रीक रूप Ἀμφιτρίτη )
एक समुद्री देवी और पोसीडोन की पत्नी यह समुद्र जगत् की साम्राज्ञी थी।
ओलंपियन पंथ के प्रभाव में, वह केवल पोसीडोन की पत्नी बन गई और समुद्र के प्रतीकात्मक प्रतिनिधित्व के लिए कवियों द्वारा इसे वर्णित कर दिया गया।
रोमन पौराणिक कथाओं में , तुलनात्मक रूप से मामूली आकृति, नेप्च्यून की पत्नी, साल्शिया , खारे पानी की देवी थी। जो संस्कृत शब्द सार अथवा सर से साम्य रखता है ।
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पौराणिक कथाओं का सन्दर्भ में
बिस्ली ओथेका के मुताबिक, एम्फिट्राइट हेरियस की थीगनी के अनुसार, न्यूरियस और टेरीस (और इस प्रकार एक महासागर ) के अनुसार, नेरियस और डोरिस (और इस प्रकार एक नेरीड ) की बेटी थी, जो वास्तव में उसे नीरिड्स और महासागर ।
दूसरों ने उसे समुद्र के व्यक्तित्व ( नमकीन पानी ) कहा। एम्फिट्राइट की संतान में सील और डॉल्फ़िन शामिल थे।
पोसीडॉन और एम्फिट्राइट का एक बेटा था, ट्राइटन जो एक मर्मन था, और एक बेटी, रोडोस (यदि यह रोडो वास्तव में हेलिया पर पोसीडॉन द्वारा नहीं पैदा किया गया था या अन्य लोगों के रूप में (Asopus )की बेटी नहीं थी) तो भी इनके साम्य सूत्र भारतीयों के सरस्वती , राधा , पूषन्, त्रैतन आदि पौराणिक पात्रों से हैं ।
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बिब्लियोथेका (3.15.4) में पोसीडॉन और एम्फिट्राइट की एक बेटी भी बेंथेशेइक नाम का उल्लेख करती है ।
एम्फिट्राइट कुरिंथ से एक पिनएक्स पर एक ट्राइडेंट (575-550 ईसा पूर्व)
एम्फिट्राइट होमरिक महाकाव्यों में पूरी तरह से व्यक्त नहीं है: "खुले समुद्र में, एम्फिट्राइट के ब्रेकर्स में" ( ओडिसी iii.101), "एम्फिट्राइट moaning" सभी गिनती के पीछे संख्याओं में मछलियों को पोषण "( ओडिसी xii.119)।
वह थियिसिस के साथ अपने होमरिक एपिथेट हेलोसिडेन ("समुद्री-पोषित") को कुछ अर्थों में साझा करती है, समुद्र- नीलम दोहराए जाते हैं।
प्रतिनिधित्व और पंथ
यद्यपि एम्फिट्राइट यूनानी संस्कृति में नहीं दिखता है, एक पुरातन अवस्था में वह उत्कृष्ट महत्व का था, क्योंकि होमरिक हिमन से डेलियन अपोलो में, वह ह्यूग जी। एवलिन-व्हाइट के अनुवाद में अपोलो के बीच में दिखाई देती है, "सभी प्रमुख देवियों, दीओन और रिया और इकेनिया और थीम्स और जोर से चिल्लाते हुए एम्फिट्राइट ; " हाल ही के अनुवादकों [9] एक अलग पहचान के रूप में "Ichnae" के इलाज के बजाय "Ichnaean थीम्स" प्रस्तुत करने में सर्वसम्मति से हैं। बैकचलाइड्स के एक टुकड़े के अनुसार, उनके पिता पोसीडॉन के पनडुब्बी हॉल में इनस नेरस की बेटियों को तरल पैर के साथ नृत्य और "अगस्त, बैल आंखों वाले एम्फिट्राइट" को देखा, जिन्होंने उन्हें अपनी शादी की पुष्पांजलि के साथ पुष्पित किया। जेन एलेन हैरिसन ने काव्य उपचार में मान्यता प्राप्त एम्फिट्राइट के शुरुआती महत्व की एक प्रामाणिक गूंज: "पोसीडॉन के लिए अपने बेटे को पहचानना बहुत आसान होता था ... मिथक पौराणिक कथाओं के शुरुआती स्तर से संबंधित है जब पोसीडोन अभी तक भगवान का देवता नहीं था समुद्र, या, कम से कम, कोई बुद्धिमान सर्वोच्च नहीं - एम्फिट्राइट और नेरीड्स ने अपने नौकरों के साथ ट्राइटन्स के साथ शासन किया। यहां तक कि इतने देर हो चुकी है कि इलियड एम्फिट्राइट अभी तक 'नेप्च्यूनी उक्सर' नहीं है [नेप्च्यून की पत्नी] "।
हाउस ऑफ नेप्च्यून और एम्फिट्राइट, हरक्यूलिनियम , इटली में एक दीवार पर एक रोमन मोज़ेक
एम्फिट्राइट, "तीसरा जो [समुद्र] घेरता है", समुद्र और उसके प्राणियों के प्रति अपने अधिकार में पूरी तरह से सीमित था कि वह पूजा के उद्देश्यों या कार्यों के लिए लगभग अपने पति से कभी जुड़ी नहीं थी कला के अलावा, जब उसे समुद्र को नियंत्रित करने वाले भगवान के रूप में स्पष्ट रूप से माना जाता था। एक अपवाद एम्फिट्राइट की पंथ छवि हो सकती है कि पौसानीस ने कुरिंथ के इस्तहमस में पोसीडोन के मंदिर में देखा
अपने छठे ओलंपियन ओडे में पिंडार ने पोसीडॉन की भूमिका को "समुद्र के महान देवता, एम्फिट्राइट के पति, सुनहरे स्पिंडल की देवी" के रूप में पहचाना। बाद के कवियों के लिए, एम्फिट्राइट बस समुद्र के लिए एक रूपक बन गया: साइप्रॉप्स (702) और ओविड , मेटामोर्फोस , (i.14) में यूरिपिड्स।
यूस्टैथीस ने कहा कि पोसीडॉन ने पहली बार नरेक्स में अन्य नेरेड्स के बीच नृत्य किया, [12] और उसे ले जाया गया। [13] लेकिन मिथक के एक और संस्करण में, वह समुद्र के सबसे दूर के सिरों पर एटलस की प्रगति से भाग गई, [14] वहां पोसीडॉन के डॉल्फ़िन ने उसे समुद्र के द्वीपों के माध्यम से खोजा, और उसे ढूंढकर, पोसीडोन की तरफ से दृढ़ता से बात की, अगर हम हाइजिनस [15] पर विश्वास कर सकते हैं और तारों के बीच नक्षत्र डेल्फीनस के रूप में रखा जा रहा है। [16]
पूषल्यु । कुमारानुचरमातृभेदे भा० शा० ४७ अ० । पूष्णः पृथिव्याः इदम् अण् वेदे न वृद्धिः नोपधा लोपः । पार्थिवे पदार्थे त्रि० ऋ० १० । ५ । ५ ।
पूष् + कनिन् । १ सूर्य्ये आदित्यभेदे भा० आ० ६ श्लो० ङौ तु पूष्णि पूषणि पूषि ।
२ पृथिव्यां स्त्री निघण्टुः ।
पूषणा शब्देदृश्यम् ।
अयमन्तोदात्तः । स्वार्थे क ।
तत्रार्थे ।
पूषा अस्त्यस्य मतुप् वेदे नुट् णत्वम् । पूषण्वत् सूर्य्य- युक्ते पृथिवीयुक्ते च त्रि० । ऋ० १ । ८२ । ६ । भा०
हिब्रू शब्द לְשָׂטָ֣ן, शैतान , मूसा द्वारा पेंटाटेच में उपयोग किया जाता है (लगभग 1500 ईसा पूर्व में) विरोधी का मतलब है और मानव व्यवहार का वर्णन करने वाले सामान्य शब्द के रूप में प्रयोग किया जाता है। एक नाम के रूप में यह बाइबिल की कई हिब्रू किताबों में होता है और उसके बाद यूनानी अक्षरों σαταν, शैतान में लिप्यंतरित किया जाता है, और इसके बाद 40 एडी और 9 0 ईस्वी के बीच लिखे गए नए नियम के लेखन में वर्णनात्मक नाम के रूप में उपयोग किया जाता है।
इस इकाई को पवित्रशास्त्र में दस वर्णनात्मक नाम दिए गए हैं (जिन्हें मैं जानता हूं) सर्प, शैतान, लूसिफर , डायबोलोस, बेल्जबुल या बेल्जबब ( बाल-ज़बूब से ), पोनेरोस, ड्रैकॉन, श्रेणियां, एंटीडिकोस और एनीमोस होने के बारे में जानते हैं ।
लगभग 5 9 0 ईस्वी में, कोलंबिया पोप बोनिफेस चतुर्थ (शायद लैटिन में) लिखता है और पोप ग्रेगरी को भेजे गए पिछले पत्रों को संदर्भित करता है:
त्रैतनु अथवा त्रैतन हिब्रू संस्कृतियों में कैसे गया
असुर संस्कृति के अनुयायी आर्यों का आगमन और फारसके सन्दर्भ में ऐैतिहासिक अवधारणाओं से यह तथ्य भी प्रकाशित है ।कि
ईरान में पहले पुरापाषाणयुग कालीन लोग रहते थे। यहाँ पर मानव निवास एक लाख साल पुराना हो सकता है। लगभग ५००० ईसापूर्व से खेती आरंभ हो गई थी। मेसोपोटामिया की सभ्यता के स्थल के पूर्व में मानव बस्तियों के होने के प्रमाण मिले हैं।
ईरानी लोग (आर्य) लगभग २००० ईसापूर्व के आसपास उत्तर तथा पूरब की दिशा से आए।
जिसे अवेस्ता ए जन्द़ में अजर-बेजान कहा गया है
इन्होंने यहाँ के लोगों के साथ एक मिश्रित संस्कृति की आधारशिला रखी जिससे ईरान को उसकी पहचान मिली।
आधिनुक ईरान इसी संस्कृति पर विकसित हुआ।
ये यायावर लोग ईरानी भाषा बोलते थे और धीरे धीरे इन्होंने कृषि करना आरम्भ किया।
आर्यों का कई शाखाए ईरान (तथा अन्य देशों तथा क्षेत्रों) में आई।
इनमें से कुछ मीदि, कुछ पार्थियन, कुछ फारसी, कुछ सोगदी तो कुछ अन्य नामों से जाने गए।
मिदि तथा फारसियों का ज़िक्र असीरियाई स्रोतों में 836 ईसापूर्व के आसपास मिलता है।
लगभग इसी समय जरथुस्ट्र (ज़रदोश्त या ज़ोरोएस्टर के नाम से भी प्रसिद्ध) का काल माना जाता है।
हालाँकि कई लोगों तथा ईरानी लोककथाओं के अनुसार ज़रदोश्त बस एक मिथक था कोई वास्तविक आदमी नहीं।
पर चाहे जो हो उसी समय के आसपास उसके धर्म का प्रचार उस पूरे प्रदेश में हुआ।
असीरिया के शाह ने लगभग 720 ईसापूर्व के आसपास इसरायल पर अधिपत्य जमा लिया।
उसने यहूदियों को अपने धर्म के कारण यातनाएँ दी। उनके सोलोमन (यानि सुलेमान) मंदिर को तोड़ डाला गया और कई यहूदियों को वहाँ से हटा कर मीदि प्रदेशों में लाकर बसाया गया। 530 ईसापूर्व के आसपास बेबीलोन का क्षेत्र फ़ारसी नियंत्रण में आ गया।
फ़ारस के शाह अर्तेखशत्र (465ईसापूर्व ) ने यहूदियों को उनके धर्म को पुनः अपनाने की इजाज़त दी और कई यहूदी वापस इसरायल लौट गए।
इस दौरान जो यहूदी मीदि में रहे उनपर ज़रदोश्त के धर्म का बहुत असर पड़ा और इसके बाद यहूदी धर्म में काफ़ी परिवर्तन आया।
बाइबल के पुराने ग्रंथ (पहला अहदनामा) (Old Texament ) में पारसियों के इस क्रम का वर्णन मिलता है।
fereydun (फारसी: فریدون - Feraydūn या फरीदून; मध्य फारसी: Frēdōn; अवेस्टान: Θraētaona), Freydun, फरीदोन और अफरीडुन भी उच्चारण और वर्तनी, एक ईरानी पौराणिक राजा और वीर के राज्य से नायक का नाम है। वह फारसी साहित्य में जीत, न्याय और उदारता के प्रतीक के रूप में जाना जाता है।
व्युत्पत्ति का विकास-
उपरोक्त दिखाए गए नाम के सभी रूप प्रोटो-ईरानी Θraitauna- (अवेस्तान Θraētaona-) और प्रोटो-इंडो-ईरानी ट्रातिनास से नियमित ध्वनि कानूनों से प्राप्त होते हैं।
Traitaunas एक व्युत्पन्न (त्रिगण के संवर्धन प्रत्यय -una / -auna के साथ), एक देवता या नायक का नाम वैदिक त्रिता और अवेस्तान rrita में परिलक्षित है। दोनों नाम विशेषण के समान हैं "अर्थात्" तीसरा ", एक शब्द जो दो अन्य देवताओं से जुड़े एक नाबालिग देवता का प्रयोग होता है, जो त्रिभुज बनता है। भारतीय वेदों में, त्रिता गरज और हवा के देवताओं से जुड़ा हुआ है। ट्रिता को इप्तिया भी कहा जाता है, यह नाम शायद अस्तास्ता में थ्रायेटोना के पिता का नाम Āθβiya के साथ संज्ञेय है, जो तीसरी शताब्दी में ज़ोरोस्ट्रियन ग्रंथों को मिलाया गया था। इसलिए Traitaunas को "Tritas के महान पुत्र" के रूप में व्याख्या किया जा सकता है। नाम पार्थियन से शास्त्रीय अर्मेनियाई में हुरुडन के रूप में उधार लिया गया था।
ज़ोरस्ट्रियन साहित्य में त्रैतन ---
अवेस्ता में, थ्रायेटोना एस्त्रतिया का पुत्र है, और इसे Āθβiyani कहा जाता है, जिसका अर्थ है "अस्त्रुतिया के परिवार से"। मूल रूप से, उन्हें ड्रैगन जहाक (अज़ी दहाक) के हत्यारे के रूप में दर्ज किया गया हो सकता है, लेकिन मध्य फारसी ग्रंथों में, दहाका / दहाग को अमोल में माउंट दमवंद पर कैद किया जाता है।
शाहनम में ---
फिरदोसी के शाहनाम के अनुसार, फेरेदुन जब्सिद के वंशजों में से एक Ābtin का पुत्र था। फेरेडुन, एक साथ कव के साथ, अत्याचारी राजा, जहाक के खिलाफ विद्रोह, उसे हराकर अल्बोरज़ पहाड़ों में गिरफ्तार कर लिया। बाद में, फेरेडुन राजा बन गए, अर्नावाज़ से विवाह किया और मिथक के अनुसार, देश को लगभग 500 वर्षों तक शासन किया। अपने जीवन के अंत में, उन्होंने अपने राज्य को अपने तीन बेटों सल्म, तुर और इराज में आवंटित किया।
इराज फेरेदुन का सबसे छोटा और पसंदीदा पुत्र था, और ईरान साम्राज्य का सबसे अच्छा हिस्सा विरासत में मिला। सल्म विरासत में अनातोलिया ("रुम", आमतौर पर रोमन साम्राज्य, ग्रीको-रोमन दुनिया, या सिर्फ "पश्चिम" का अर्थ है), और टूर ने मध्य एशिया ("तुरण", अमू दाराय के उत्तर और पूर्व में सभी भूमि विरासत में ली, चीन तक) क्रमशः।
इसने इराज के भाइयों की ईर्ष्या को उत्तेजित किया, और उन्हें मारने के लिए प्रोत्साहित किया। इराज की हत्या के बाद, फेरेडुन ने इराज के पोते, मनुचहर का सिंहासन किया।
मनुकाहर ने अपने दादा की हत्या का बदला लेने का प्रयास ईरानी-टुरानियन युद्धों की शुरुआत की।
इराज फेरेडुन का सबसे छोटा और पसंदीदा पुत्र था, और ईरान साम्राज्य का सबसे अच्छा हिस्सा विरासत में मिला। सल्म विरासत में अनातोलिया ("रुम", आमतौर पर रोमन साम्राज्य, ग्रीको-रोमन दुनिया, या सिर्फ "पश्चिम" का अर्थ है), और टूर ने मध्य एशिया ("तुरण", अमू दाराय के उत्तर और पूर्व में सभी भूमि विरासत में ली, चीन तक) क्रमशः।
इसने इराज के भाइयों की ईर्ष्या को उत्तेजित किया, और उन्हें मारने के लिए प्रोत्साहित किया। इराज की हत्या के बाद, फेरेडुन ने इराज के पोते, मनुचहर का सिंहासन किया।
मनुकाहर ने अपने दादा की हत्या का बदला लेने का प्रयास ईरानी-टुरानियन युद्धों की शुरुआत की!
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अन्वेषक :- यादव योगेश कुमार 'रोहि'
ग्राम आजा़दपुर पत्रालय -पहाड़ीपुर
जनपद अलीगढ़
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