शनिवार, 26 अक्टूबर 2024

वैष्णव का वाचक दास शब्द-

                'विष्णूवाच!

वरं वरय राजेन्द्र यत्ते मनसि वर्तते।
तत्ते ददाम्यसन्देहं मद्भक्तोसि महामते ।७९।

अनुवाद:- हे राजाओं के स्वामी ! वर माँगो जो तुम्हारे मन नें स्थित है।
वह सब तुमको दुँगा 
तुम मेरे भक्त हो!।७९।

                    "राजोवाच
यदि त्वं देवदेवेश तुष्टोसि मधुसूदन ।
दासत्वं देहि सततमात्मनश्च जगत्पते।८०।
अनुवाद:-
राजा ने कहा ! हे देवों के स्वामी हे जगत के स्वामी! यदि तुम प्रसन्न हो तो मुझे अपना शाश्वत दासत्व( वैष्णव- भक्ति) दो। ८०।

                'विष्णुरुवाच-
एवमस्तु महाभाग मम भक्तो न संशयः ।
लोके मम महाराज स्थातव्यमनया सह ।८१।

अनुवाद:- विष्णु ने कहा 
! ऐसा ही हो !  तू मेरा भक्त है इसमें सन्देह नहीं!  अपनी पत्नी के साथ  तुम  मेरे लोक में  निवास करो !।८१।

एवमुक्तो महाराजो ययातिः पृथिवीपतिः।
प्रसादात्तस्य देवस्य विष्णुलोकं प्रसाधितम्।८२।
अनुवाद:-
इस प्रकार कहकर महाराज ययाति! पृथ्वी पति ने विष्णु भगवान की कृपा से विष्णु लोक को प्राप्त किया।८२।


निवसत्येष भूपालो वैष्णवं लोकमुत्तमम् ।८३।

और इस प्रकार ययाति पत्नी सहित लोकों में उत्तम वैष्णव लोक में निवास करने लगे।८४।

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पद्मपुराण /खण्डः (२) (भूमिखण्डः)
अध्यायः(83)

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