बुधवार, 30 अक्टूबर 2024

दीपावली-

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श्रीकृष्ण और युधिष्ठिर
शिव जी और स्कंद)कार्तिकेय का संवाद
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दीवावली शब्द दीप और अवली _पंक्ति से बना है अर्थात दीप माला।

कारण लिखित पौराणिक  संदर्भ के अनुसार 
दीवाली मनाने का सीधा संबध असुर राजा बलि से है।

शास्त्र के अनुसार इस त्योहार को कौमुदी भी कहते है। कु का मतलब मही अर्थात पृथ्वी और मुदी का अर्थ प्रसन्न रहना।
जिस त्योहार में प्रसन्न रहे है,उसे कौमुदी कहते है।

पौराणिक संदर्भ के अनुसार असुर राजा बलि का त्रैलोक्य पर प्रभुत्व हो गया था। सभी देवता विष्णु जी से इस संदर्भ में कुछ उपाय करने का आग्रह करते है।

राजा बलि खुद *बलि यज्ञ*

करते है तभी विष्णु जी *वामन* के रूप में उस यज्ञ में पहुंचते है। 
वे राजा बलि से दान स्वरूप तीन पग जमीन मांगते है।
दो पग में पृथ्वी और आकाश उनका हो जाता है। तीसरा पग रखने के लिए बलि के अनुसार बलि की पीठ बचती है।,,,,
अंत में विष्णु जी अपने असली रूप में सामने आते है। बलि को पाताल लोक भेज दिया जाता है। 
इंद्र भगवान पुनः स्वर्ग के अधिपति बन जाते है।

विष्णु भगवान अंत में बलि को आशीर्वाद देते है कि वर्ष में
एक दिन आप को लोग दीपदान करेगे। आप की पूजा होगी। तभी से दीपदान,दीवाली ,कौमुदी मनाई जाती है

इस त्योहार में लक्ष्मी की पूजा का विधान भगवान शंकर द्वारा किया गया है।
लक्ष्मी जी चुकी
पार्वती जी  पूजित रही थी,अतः  लक्ष्मी पूजन का विधान इसमें है।

द्युतपूजा /जुआ भी दीपाली का एक अभिन्न अंग है। आज के दिन जो विजेता,प्रसन्न या जो कुछ खाता है,साल भर वैसा ही रहता,चलता ,होता है है।
स्रोत

वामन पुराण पेज 458
भविष्य पुराण ,भाग 535

पदम पुराण,उत्तर खंड  प्रथम
पेज 3152

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