बुधवार, 9 जनवरी 2019

आज देश में विकट समस्या !         इसका जिम्मेदार है कौन ? घर में कन्या नहीं सुरक्षित ! फिर भी ये सरकार है मौन !!

देश की वर्तमान में सबसे ज्वलन्त समस्यायों पर केन्द्रित
यादव योगेश कुमार "रोहि" की यह हृदय स्पर्शी कविता प्रस्तुत है !
देश की सांस्कृतिक विकृतियों के निवारण के लिए प्रयास- रत रहने वाले मनीषीयों को ।
__________________________________________

~ आज देश में विकट समस्या !
        इसका जिम्मेदार है कौन ?
घर में कन्या नहीं सुरक्षित !
         फिर भी ये सरकार है मौन !!
क्यों सुन्दरता का नग्न ताण्डव.
          क्या बिल्कुल नंगा होना है ?
फिल्मों जो दिखाया जा रहा
           हर दृश्य बड़ा घिनौना है !
आज छात्राऐं सनी लियॉन को
           अपना आदर्श मान रहीं !
अब वो सादिग़ी और सरलता .
            रहा नहीं ईमान कहीं ?
इनकी भावनऐं उमड़ रहीं हैं
            जानो  इनके अरमानों को !
अपने हुश़्न की समा दिखा कर
             झुलसाती ये परव़ानों को !
आज फॉल्ट करने का इरादा !
       "रोहि" लिए फिरते  लड़के !
ऋण धन के आवेश मिले तो .
        काम (sex)की  ये ज्वाला भड़के !!
ये लड़के भी अब क्या कम हैं !
ताक-झाँक करने रत बड़े बेहया - बेशर्म  हैं ।
कॉबिंग और हेयर स्टाइल !
      ये चहरे टूटे हुए हैं  शीशे ।
हर तरह ये वीरान हो गये
       क्यों कि दिल --जो लगा लिए लड़की से
  
गाल पिचक गये आँखें धँसगयीं
              बालों की स्टाइल हो- हो हनी सींघ
पिछबाड़ा सूख कर  झुरमुट ।
                जैसे हाथरस की हींघ !!
सूखे छुआरे से ऩजर आ रहे .
              और गाल में पान धरा !
फैशन है या ढ़ीला पन है .
               कमर से पेण्ट नीचे उतरा !
ब्रह्म चर्य नालीयों में बहता !
                पाप छा रहा है सर्वत्र घना !
हर तरफ आज अय्याशी है !
                अब सीरीज का दौर बना !!
जिनकी नज़रों में हरकत है !
             "रोहि" उनकी नीयत खोटी है !
व्यवहार  विचार की व्याख्या है !
                यही व्यक्तित्व कषौटी है  !
नीति धर्म और मर्यादा!
                इनके जीवन का उद्देश्य नहीं !
जहाँ एकता सदाचारिता .
                 ये भारत अब वो देश नहीं !
बलात्कार अब जन रीति है !
                संयम से जनता रीति है !
स्वाभाविकता का दमन नहीं है
                  न मन ने इन्द्रियाँ जीती हैं ?
राज नीति में नीति नहीं है
                   मानों  वैश्या की प्रीति  है ?
साम्प्रदायिकता का दौर भयंकर ,
                    -जाति-व्यवस्था की प्रतीति है

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें