देश की वर्तमान में सबसे ज्वलन्त समस्यायों पर केन्द्रित
यादव योगेश कुमार "रोहि" की यह हृदय स्पर्शी कविता प्रस्तुत है !
देश की सांस्कृतिक विकृतियों के निवारण के लिए प्रयास- रत रहने वाले मनीषीयों को ।
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~ आज देश में विकट समस्या !
इसका जिम्मेदार है कौन ?
घर में कन्या नहीं सुरक्षित !
फिर भी ये सरकार है मौन !!
क्यों सुन्दरता का नग्न ताण्डव.
क्या बिल्कुल नंगा होना है ?
फिल्मों जो दिखाया जा रहा
हर दृश्य बड़ा घिनौना है !
आज छात्राऐं सनी लियॉन को
अपना आदर्श मान रहीं !
अब वो सादिग़ी और सरलता .
रहा नहीं ईमान कहीं ?
इनकी भावनऐं उमड़ रहीं हैं
जानो इनके अरमानों को !
अपने हुश़्न की समा दिखा कर
झुलसाती ये परव़ानों को !
आज फॉल्ट करने का इरादा !
"रोहि" लिए फिरते लड़के !
ऋण धन के आवेश मिले तो .
काम (sex)की ये ज्वाला भड़के !!
ये लड़के भी अब क्या कम हैं !
ताक-झाँक करने रत बड़े बेहया - बेशर्म हैं ।
कॉबिंग और हेयर स्टाइल !
ये चहरे टूटे हुए हैं शीशे ।
हर तरह ये वीरान हो गये
क्यों कि दिल --जो लगा लिए लड़की से
गाल पिचक गये आँखें धँसगयीं
बालों की स्टाइल हो- हो हनी सींघ
पिछबाड़ा सूख कर झुरमुट ।
जैसे हाथरस की हींघ !!
सूखे छुआरे से ऩजर आ रहे .
और गाल में पान धरा !
फैशन है या ढ़ीला पन है .
कमर से पेण्ट नीचे उतरा !
ब्रह्म चर्य नालीयों में बहता !
पाप छा रहा है सर्वत्र घना !
हर तरफ आज अय्याशी है !
अब सीरीज का दौर बना !!
जिनकी नज़रों में हरकत है !
"रोहि" उनकी नीयत खोटी है !
व्यवहार विचार की व्याख्या है !
यही व्यक्तित्व कषौटी है !
नीति धर्म और मर्यादा!
इनके जीवन का उद्देश्य नहीं !
जहाँ एकता सदाचारिता .
ये भारत अब वो देश नहीं !
बलात्कार अब जन रीति है !
संयम से जनता रीति है !
स्वाभाविकता का दमन नहीं है
न मन ने इन्द्रियाँ जीती हैं ?
राज नीति में नीति नहीं है
मानों वैश्या की प्रीति है ?
साम्प्रदायिकता का दौर भयंकर ,
-जाति-व्यवस्था की प्रतीति है
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