आद्य हिन्द-ईरानी धर्म (Proto-Indo-Iranian religion) से तात्पर्य हिन्द-ईरानी लोगों के उस धर्म से है जो वैदिक एवं जरुस्थ्र धर्मग्रन्थों की रचना के पहले विद्यमान था। दोनों में अनेक मामलों में साम्य है।
जैसे, सार्वत्रिक बल 'ऋक्' (वैदिक) तथा अवेस्ता का 'आशा', पवित्र वृक्ष तथा पेय 'सोम' (वैदिक) एवं अवेस्ता में 'हाओम', मित्र (वैदिक), अवेस्तन और प्राचीन पारसी भाषा में 'मिथ्र' भग (वैदिक), अवेस्ता एवं प्राचीन पारसी में 'बग' ईरानी भाषा की गणना आर्य भाषाओं में ही की जाती है।
भाषा-विज्ञान के आधार पर कुछ यूरोपीय विद्वानों का मत है कि आर्यों का आदि स्थान दक्षिण-पूर्वी यूरोप में कहीं था।
इसी मत के अनुसार जब आर्य अपने-अपने अन्य बन्धुओँ का साथ छोड़कर आगे बढ़े तो कुछ लोग ईरान में बस गये तथा कुछ लोग और आगे बढ़कर भारत में आ बसे।
भारत और ईरान-दोनों की ही शाखा होने के कारण, दोनों देशों की भाषाओं में पर्याप्त साम्य पाया जाता है। इन देशों के प्राचीनतम ग्रन्थ क्रमश: `ऋग्वेद' तथा `जेन्द अवेस्ता' हैं।
`जेन्द अवेस्ता' का निर्माण-काल लगभग शती ई. पु. है, जबकि ऋग्वेद ई०पू०२५००वर्ष पूर्व रचा जा चुका था। `जेन्द' की भाषा पूर्णत: वैदिक संस्कृत की अपभ्रंश प्रतीत होती है।
तथा इसके अनेक शब्द या तो संस्कृत शब्दों से मिलते-जुलते है अथवा पूर्णँत: संस्कृत के ही हैं। इसके अतिरिक्त `अवेस्ता' में अनेक वाक्य ऐसे हैं, जो साधारण परिवर्तन से संस्कृत के बन सकते हैं, संस्कृत और जिन्द में इसी प्रकार का साम्य देखकर प्रो॰ हीरेन ने कहा है कि जिन्द भाषा का उद्भव संस्कृत से हुआ है। भाषा के अतिरिक्त वेद और अवेस्ता के धार्मिक तथ्यों में भी पार्याप्त समानता पाई जाती है। दोनों में ही एक ईश्वर की घोषणा की गई है।
उनमें मन्दिरों और मूर्तियों के लिए कोई स्थान नहीं है।
परन्तु कालान्तरण में अहुर-मज्द की मूर्तियाँ भी बनायी गयी हैं ।
इन दोनों में वरुण को देवताओं का अधिराज माना गया है। वैदिक `असुर' ही अवेस्ता का `अहुर' है।
ईरानी `मज्दा' का वही अर्थ है, जो वैदिक संस्कृत में `महत् का।
वैदिक `मित्र' देवता ही `अवेस्ता' का `मिथ्र' है।
वेदों का यज्ञ `अवेस्ता' का `यस्न' है।
वस्तुत: यज्ञ, होम, सोम की प्रथाएं दोनों देशों में थीं। अवेस्ता में `हफ्त हिन्दु' और ऋग्वेद में `आर्याना' का वर्णन मिलता है पहलवी और वौदिक संस्कृत लगभग समान `मित्र' और `मिथ्र' की स्तुतियां एक -से शब्दों में हैं। प्रचीन काल में दोनों देशों के धर्मो और भाषाओँ की भी एक-सी ही भूमिका रही है। ईरान में अखमनी साम्राज्य का वैभव प्रथम दरियस के समय में चरमोत्कर्ष पर रहा।
उसने अपना साम्राज्य सिन्धु घाटी तक फैलाया।
तब भारत-ईरान में परस्पर व्यापार होता था। भारत से वहां सूती कपड़े, इत्र, मसालों का निर्यात और ईरान से भारत में घोड़े तथा जवाहरात का आयात होता था। दरियस ने अपने सूसा के राजप्रासादों में भारतीय सागौन और हाथीदांत का प्रयोग किया तथा भारतीय शैली के मेराबनुमा राजमहलों का निर्माण करवाया।
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इतना होते हुए भी ईरानी असुर संस्कृति के उपासक आर्य थे । तथा भारतीय देव संस्कृति के उपासक जर्मनिक जन-जाति से सम्बद्ध आर्य थे ।
प्रारम्भिक चरण में ईरानी और भारतीय आर्य तथा जर्मनिक आर्य परस्पर सम्बद्ध थे ।
परन्तु ईरानी आर्यों ने असीरियन लोगों से प्रभावित होकर असुर संस्कृति को प्रोत्साहन दिया ..
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विचार-विश्लेषण -- योगेश कुमार रोहि ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---के सौजन्य से
सोमवार, 10 अप्रैल 2017
(भारत - ईरानी आर्यों का साम्य स्तर )
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