रविवार, 23 अप्रैल 2017
हिन्दी भाषा ...
भाषा मान्यता
औपचारिक : [ˈhɪndi]) संवैधानिक रूप से भारत की प्रथम राजभाषा और भारत की सबसे अधिक बोली और समझी जाने वाली भाषा है। चीनी के बाद यह विश्व में सबसे अधिक बोली जाने वाली भाषा भी है।
हिन्दी और इसकी बोलियाँ उत्तर एवं मध्य भारत के विविध राज्यों में बोली जाती हैं। भारत और अन्य देशों में भी लोग हिन्दी बोलते, पढ़ते और लिखते हैं। फ़िजी, मॉरिशस, गयाना, सूरीनाम की और नेपाल की जनता भी हिन्दी बोलती है।[4] 2001 की भारतीय जनगणना में भारत में ४२.२ करोड़ (422,048,642) लोगों ने हिंदी को अपनी मूल भाषा बताया।[5] भारत के बाहर, हिन्दी बोलने वाले संयुक्त राज्य अमेरिका में 648,983[6]; मॉरीशस में 685,170; दक्षिण अफ्रीका में 890,292; यमन में 232,760; युगांडा में 147,000; सिंगापुर में 5,000; नेपाल में 8 लाख; न्यूजीलैंड में 20,000; जर्मनी में 30,000 हैं।
इसके अलावा भारत, पाकिस्तान और अन्य देशों में १४.१ करोड़ (141,000,000) लोगों द्वारा बोली जाने वाली उर्दू, मौखिक रूप से हिंदी के काफी सामान है। लोगों का एक विशाल बहुमत हिंदी और उर्दू दोनों को ही समझता है। भारत में हिंदी, विभिन्न भारतीय राज्यों की 14 आधिकारिक भाषाओं और क्षेत्र की बोलियों का उपयोग करने वाले लगभग 1 अरब लोगों में से अधिकांश की दूसरी भाषा है।
हिन्दी राष्ट्रभाषा, राजभाषा, सम्पर्क भाषा, जनभाषा के स्तर को पार कर विश्वभाषा बनने की ओर अग्रसर है। भाषा विकास क्षेत्र से जुड़े वैज्ञानिकों की भविष्यवाणी हिन्दी प्रेमियों के लिए बड़ी सन्तोषजनक है कि आने वाले समय में विश्वस्तर पर अन्तर्राष्ट्रीय महत्त्व की जो चन्द भाषाएँ होंगी उनमें हिन्दी भी प्रमुख होगी।
अनुक्रम
1 लिपि
2 'हिन्दी' शब्द की व्युत्पत्ति
3 हिन्दी एवं उर्दू
4 परिवार
5 इतिहास क्रम
6 हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति
6.1 हिन्दी के विकास की अन्य विशेषताएँ
7 हिन्दी का मानकीकरण
8 हिन्दी की शैलियाँ
9 हिन्दी की बोलियाँ
10 शब्दावली
10.1 प्रथम वर्ग
10.2 द्वितीय वर्ग
11 हिन्दी का स्वनिमविज्ञान
11.1 स्वर
11.2 व्यंजन
11.3 नुक़्तायुक्त ध्वनियाँ
12 व्याकरण
13 हिन्दी और कम्प्यूटर
14 हिन्दी और जनसंचार
15 हिन्दी का वैश्विक प्रसार
16 कुछ सर्वाधिक प्रयुक्त हिन्दी शब्द
17 संदर्भ
18 इन्हें भी देखें
19 बाहरी कड़ियाँ
लिपि
मुख्य लेख : देवनागरी
हिंदी को देवनागरी लिपि में लिखा जाता है। इसे नागरी नाम से भी पुकारा जाता है। देवनागरी में 11 स्वर और 33 व्यंजन होते हैं और इसे बाएं से दायें और लिखा जाता है।
'हिन्दी' शब्द की व्युत्पत्ति
हिन्दी शब्द का सम्बंध संस्कृत शब्द सिन्धु से माना जाता है। 'सिन्धु' सिन्ध नदी को कहते थे और उसी आधार पर उसके आस-पास की भूमि को सिन्धु कहने लगे। यह सिन्धु शब्द ईरानी में जाकर ‘हिन्दू’, हिन्दी और फिर ‘हिन्द’ हो गया बाद में ईरानी धीरे-धीरे भारत के अधिक भागों से परिचित होते गए और इस शब्द के अर्थ में विस्तार होता गया तथा हिन्द शब्द पूरे भारत का वाचक हो गया। इसी में ईरानी का ईक प्रत्यय लगने से (हिन्द ईक) ‘हिन्दीक’ बना जिसका अर्थ है ‘हिन्द का’। यूनानी शब्द ‘इन्दिका’ या अंग्रेजी शब्द ‘इण्डिया’ आदि इस ‘हिन्दीक’ के ही विकसित रूप हैं। हिन्दी भाषा के लिए इस शब्द का प्राचीनतम प्रयोग शरफुद्दीन यज्+दी’ के ‘जफरनामा’(1424) में मिलता है।
प्रोफेसर महावीर सरन जैन ने अपने " हिन्दी एवं उर्दू का अद्वैत " शीर्षक आलेख में हिन्दी की व्युत्पत्ति पर विचार करते हुए कहा है कि ईरान की प्राचीन भाषा अवेस्ता में 'स्' ध्वनि नहीं बोली जाती थी। 'स्' को 'ह्' रूप में बोला जाता था। जैसे संस्कृत के 'असुर' शब्द को वहाँ 'अहुर' कहा जाता था। अफ़ग़ानिस्तान के बाद सिन्धु नदी के इस पार हिन्दुस्तान के पूरे इलाके को प्राचीन फ़ारसी साहित्य में भी 'हिन्द', 'हिन्दुश' के नामों से पुकारा गया है तथा यहाँ की किसी भी वस्तु, भाषा, विचार को 'एडजेक्टिव' के रूप में 'हिन्दीक' कहा गया है जिसका मतलब है 'हिन्द का'। यही 'हिन्दीक' शब्द अरबी से होता हुआ ग्रीक में 'इन्दिके', 'इन्दिका', लैटिन में 'इन्दिया' तथा अंग्रेज़ी में 'इण्डिया' बन गया। अरबी एवँ फ़ारसी साहित्य में हिन्दी में बोली जाने वाली भाषाओं के लिए 'ज़बान-ए-हिन्दी', पद का उपयोग हुआ है। भारत आने के बाद मुसलमानों ने 'ज़बान-ए-हिन्दी', 'हिन्दी जुबान' अथवा 'हिन्दी' का प्रयोग दिल्ली-आगरा के चारों ओर बोली जाने वाली भाषा के अर्थ में किया। भारत के गैर-मुस्लिम लोग तो इस क्षेत्र में बोले जाने वाले भाषा-रूप को 'भाखा' नाम से पुकराते थे, 'हिन्दी' नाम से नहीं।
हिन्दी एवं उर्दू
मुख्य लेख : हिन्दी एवं उर्दू
भाषाविद हिन्दी एवं उर्दू को एक ही भाषा समझते है। हिन्दी देवनागरी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर अधिकांशत: संस्कृत के शब्दों का प्रयोग करती है। उर्दू, फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है और शब्दावली के स्तर पर उस पर फ़ारसी और अरबी भाषाओं का प्रभाव अधिक है। व्याकरणिक रुप से उर्दू और हिन्दी में लगभग शत-प्रतिशत समानता है। केवल कुछ विशेष क्षेत्रों में शब्दावली के स्त्रोत (जैसा कि ऊपर लिखा गया है) में अंतर होता है। कुछ विशेष ध्वनियाँ उर्दू में अरबी और फ़ारसी से ली गयी हैं और इसी प्रकार फ़ारसी और अरबी की कुछ विशेष व्याकरणिक संरचना भी प्रयोग की जाती है। उर्दू और हिन्दी को खड़ी बोली की दो शैलियाँ कहा जा सकता है।
परिवार
हिन्दी हिन्द-यूरोपीय भाषा-परिवार परिवार के अन्दर आती है। ये हिन्द ईरानी शाखा की हिन्द आर्य उपशाखा के अन्तर्गत वर्गीकृत है। हिन्द-आर्य भाषाएँ वो भाषाएँ हैं जो संस्कृत से उत्पन्न हुई हैं। उर्दू, कश्मीरी, बंगाली, उड़िया, पंजाबी, रोमानी, मराठी नेपाली जैसी भाषाएँ भी हिन्द-आर्य भाषाएँ हैं।
इतिहास क्रम
मुख्य लेख : हिन्दी भाषा का इतिहास
हिन्दी भाषा का इतिहास लगभग एक हजार वर्ष पुराना माना गया है। हिन्दी भाषा व साहित्य के जानकार अपभ्रंश की अंतिम अवस्था 'अवहट्ठ' से हिन्दी का उद्भव स्वीकार करते हैं। चंद्रधर शर्मा गुलेरी ने इसी अवहट्ठ को 'पुरानी हिन्दी' नाम दिया।
अपभ्रंश की समाप्ति और आधुनिक भारतीय भाषाओं के जन्मकाल के समय को संक्रांतिकाल कहा जा सकता है। हिन्दी का स्वरूप शौरसेनी और अर्धमागधी अपभ्रंशों से विकसित हुआ है। १००० ई. के आसपास इसकी स्वतंत्र सत्ता का परिचय मिलने लगा था, जब अपभ्रंश भाषाएँ साहित्यिक संदर्भों में प्रयोग में आ रही थीं। यही भाषाएँ बाद में विकसित होकर आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं के रूप में अभिहित हुईं। अपभ्रंश का जो भी कथ्य रुप था - वही आधुनिक बोलियों में विकसित हुआ।
अपभ्रंश के सम्बंध में ‘देशी’ शब्द की भी बहुधा चर्चा की जाती है। वास्तव में ‘देशी’ से देशी शब्द एवं देशी भाषा दोनों का बोध होता है। प्रश्न यह कि देशीय शब्द किस भाषा के थे ? भरत मुनि ने नाट्यशास्त्र में उन शब्दों को ‘देशी’ कहा है ‘जो संस्कृत के तत्सम एवं सद्भव रूपों से भिन्न है। ये ‘देशी’ शब्द जनभाषा के प्रचलित शब्द थे, जो स्वभावतया अप्रभंश में भी चले आए थे। जनभाषा व्याकरण के नियमों का अनुसरण नहीं करती, परंतु व्याकरण को जनभाषा की प्रवृत्तियों का विश्लेषण करना पड़ता है, प्राकृत-व्याकरणों ने संस्कृत के ढाँचे पर व्याकरण लिखे और संस्कृत को ही प्राकृत आदि की प्रकृति माना। अतः जो शब्द उनके नियमों की पकड़ में न आ सके, उनको देशी संज्ञा दी गई।
हिन्दी की विशेषताएँ एवं शक्ति
हिंदी भाषा के उज्ज्वल स्वरूप का ज्ञान कराने के लिए यह आवश्यक है कि उसकी गुणवत्ता, क्षमता, शिल्प-कौशल और सौंदर्य का सही-सही आकलन किया जाए। यदि ऐसा किया जा सके तो सहज ही सब की समझ में यह आ जाएगा कि -
संसार की उन्नत भाषाओं में हिंदी सबसे अधिक व्यवस्थित भाषा है।
वह सबसे अधिक सरल भाषा है।
वह सबसे अधिक लचीली भाषा है।
वह एक मात्र ऐसी भाषा है जिसके अधिकतर नियम अपवादविहीन है।
वह सच्चे अर्थों में विश्व भाषा बनने की पूर्ण अधिकारी है।
हिन्दी लिखने के लिये प्रयुक्त देवनागरी लिपि अत्यन्त वैज्ञानिक है।
हिन्दी को संस्कृत शब्दसंपदा एवं नवीन शब्द-रचना-सामर्थ्य विरासत में मिली है। वह देशी भाषाओं एवं अपनी बोलियों आदि से शब्द लेने में संकोच नहीं करती। अंग्रेजी के मूल शब्द लगभग १०,००० हैं, जबकि हिन्दी के मूल शब्दों की संख्या ढाई लाख से भी अधिक है।
हिन्दी बोलने एवं समझने वाली जनता पचास करोड़ से भी अधिक है।
हिन्दी का साहित्य सभी दृष्टियों से समृद्ध है।
हिन्दी आम जनता से जुड़ी भाषा है तथा आम जनता हिन्दी से जुड़ी हुई है। हिन्दी कभी राजाश्रय की मोहताज नहीं रही।
भारत के स्वतंत्रता-संग्राम की वाहिका और वर्तमान में देशप्रेम का अमूर्त-वाहन
भारत की सम्पर्क भाषा
भारत की राजभाषा
हिन्दी के विकास की अन्य विशेषताएँ
हिन्दी पत्रकारिता का आरम्भ भारत के उन क्षेत्रों से हुआ जो हिन्दी-भाषी नहीं थे/हैं (कोलकाता, लाहौर आदि।
हिन्दी को राष्ट्रभाषा बनाने का आन्दोलन अहिन्दी भाषियों (महात्मा गांधी, दयानन्द सरस्वती आदि) ने आरम्भ किया।
हिन्दी भाषा सदा से उत्तर-दक्षिण के भेद से परे चहुंदिशी व्यावहारिक होती चली आई है। उदाहरण के लिये दक्षिण के प्रमुख संतो वल्लभाचार्य, विट्ठल, रामानुज, रामानन्द आदि महाराष्ट्र के नामदेव तथा संत ज्ञानेश्वर, गुजरात के नरसी मेहता, राजस्थान के दादू, रज्जब, मीराबाई, पंजाब के गुरु नानक, असम के शंकरदेव, बंगाल के चैतन्य महाप्रभु तथा सूफी संतो ने अपने धर्म और संस्कृति का प्रचार हिन्दी में ही किया है। इन्होने एक मात्र सशक्त साधन हिन्दी को ही माना था।
हिन्दी पत्रकारिता की कहानी भारतीय राष्ट्रीयता की कहानी है।
हिन्दी के विकास में राजाश्रय का कोई स्थान नहीं है; इसके विपरीत, हिन्दी का सबसे तेज विकास उस दौर में हुआ जब हिन्दी अंग्रेजी-शासन का मुखर विरोध कर रही थी। जब-जब हिन्दी पर दबाव पड़ा, वह अधिक शक्तिशाली होकर उभरी है।
जब बंगाल, उड़ीसा, गुजरात तथा महाराष्ट्र में उनकी अपनी भाषाएँ राजकाज तथा न्यायालयों की भाषा बन चुकी थी उस समय भी संयुक्त प्रान्त (वर्तमान उत्तर प्रदेश) की भाषा हिन्दुस्तानी थी (और उर्दू को ही हिन्दुस्तानी माना जाता था जो फारसी लिपि में लिखी जाती थी)।
19वीं शताब्दी तक उत्तर प्रदेश की राजभाषा के रूप में हिन्दी का कोई स्थान नहीं था। परन्तु 20वीं सदी के मध्यकाल तक इसे भारत की राष्ट्रभाषा बनाने का प्रस्ताव दिया गया।
हिन्दी के विकास में पहले साधु-संत एवं धार्मिक नेताओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। उसके बाद हिन्दी पत्रकारिता एवं स्वतंत्रता संग्राम से बहुत मदद मिली; फिर बंबइया फिल्मों से सहायता मिली और अब इलेक्ट्रॉनिक मीडिया (टीवी) के कारण हिन्दी समझने-बोलने वालों की संख्या में बहुत अधिक वृद्धि हुई है।
हिन्दी का मानकीकरण
मुख्य लेख : हिन्दी वर्तनी मानकीकरण
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद से हिन्दी और देवनागरी के मानकीकरण की दिशा में निम्नलिखित क्षेत्रों में प्रयास हुये हैं :-
हिन्दी व्याकरण का मानकीकरण
वर्तनी का मानकीकरण
शिक्षा मंत्रालय के निर्देश पर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय द्वारा देवनागरी का मानकीकरण
वैज्ञानिक ढंग से देवनागरी लिखने के लिये एकरूपता के प्रयास
यूनिकोड का विकास
हिन्दी की शैलियाँ
हिन्दी क्षेत्र तथा सीमावर्ती भाषाएँ
भाषाविदों के अनुसार हिन्दी के चार प्रमुख रूप या शैलियाँ हैं :
(१) उच्च हिन्दी - हिन्दी का मानकीकृत रूप, जिसकी लिपि देवनागरी है। इसमें संस्कृत भाषा के कई शब्द है, जिन्होंने फ़ारसी और अरबी के कई शब्दों की जगह ले ली है। इसे शुद्ध हिन्दी भी कहते हैं। आजकल इसमें अंग्रेज़ी के भी कई शब्द आ गये हैं (ख़ास तौर पर बोलचाल की भाषा में)। यह खड़ीबोली पर आधारित है, जो दिल्ली और उसके आस-पास के क्षेत्रों में बोली जाती थी।
(२) दक्खिनी - उर्दू-हिन्दी का वह रूप जो हैदराबाद और उसके आसपास की जगहों में बोला जाता है। इसमें फ़ारसी-अरबी के शब्द उर्दू की अपेक्षा कम होते हैं।
(३) रेख़्ता - उर्दू का वह रूप जो शायरी में प्रयुक्त होता था।
(४) उर्दू - हिन्दवी का वह रूप जो देवनागरी लिपि के बजाय फ़ारसी-अरबी लिपि में लिखा जाता है। इसमें संस्कृत के शब्द कम होते हैं, और फ़ारसी-अरबी के शब्द अधिक। यह भी खड़ीबोली पर ही आधारित है।
[7]
हिन्दी और उर्दू दोनों को मिलाकर हिन्दुस्तानी भाषा कहा जाता है। हिन्दुस्तानी मानकीकृत हिन्दी और मानकीकृत उर्दू के बोलचाल की भाषा है। इसमें शुद्ध संस्कृत और शुद्ध फ़ारसी-अरबी दोनों के शब्द कम होते हैं और तद्भव शब्द अधिक। उच्च हिन्दी भारतीय संघ की राजभाषा है (अनुच्छेद ३४३, भारतीय संविधान)। यह इन भारतीय राज्यों की भी राजभाषा है : उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, मध्य प्रदेश, उत्तरांचल, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली। इन राज्यों के अतिरिक्त महाराष्ट्र, गुजरात, पश्चिम बंगाल, पंजाब और हिन्दी भाषी राज्यों से लगते अन्य राज्यों में भी हिन्दी बोलने वालों की अच्छी संख्या है। उर्दू पाकिस्तान की और भारतीय राज्य जम्मू और कश्मीर की राजभाषा है, इसके अतिरिक्त उत्तर प्रदेश, बिहार,तेलंगाना और दिल्ली में द्वितीय राजभाषा है। यह लगभग सभी ऐसे राज्यों की सह-राजभाषा है; जिनकी मुख्य राजभाषा हिन्दी है।
हिन्दी की बोलियाँ
मुख्य लेख : हिंदी की विभिन्न बोलियाँ और उनका साहित्य
हिन्दी का क्षेत्र विशाल है तथा हिन्दी की अनेक बोलियाँ (उपभाषाएँ) हैं। इनमें से कुछ में अत्यंत उच्च श्रेणी के साहित्य की रचना भी हुई है। ऐसी बोलियों में ब्रजभाषा और अवधी प्रमुख हैं। ये बोलियाँ हिन्दी की विविधता हैं और उसकी शक्ति भी। वे हिन्दी की जड़ों को गहरा बनाती हैं। हिन्दी की बोलियाँ और उन बोलियों की उपबोलियाँ हैं जो न केवल अपने में एक बड़ी परंपरा, इतिहास, सभ्यता को समेटे हुए हैं वरन स्वतंत्रता संग्राम, जनसंघर्ष, वर्तमान के बाजारवाद के खिलाफ भी उसका रचना संसार सचेत है।[8]
हिन्दी की बोलियों में प्रमुख हैं- अवधी, ब्रजभाषा, कन्नौजी, बुंदेली, बघेली, भोजपुरी, हरयाणवी, राजस्थानी, छत्तीसगढ़ी, मालवी, झारखंडी, कुमाउँनी, मगही आदि। किन्तु हिंदी के मुख्य दो भेद हैं - पश्चिमी हिंदी तथा पूर्वी हिंदी।
शब्दावली
हिन्दी शब्दावली में मुख्यतः दो वर्ग हैं-
प्रथम वर्ग
तत्सम शब्द- ये वो शब्द हैं जिनको संस्कृत से बिना कोई रूप(पर हिंदी में विसर्ग लोप हो जाता है जैसे संस्कृत 'नामः' हिंदी में केवल 'नाम' है।[9]) बदले ले लिया गया है। जैसे अग्नि, दुग्ध दन्त, मुख।
तद्भव शब्द- ये वो शब्द हैं जिनका जन्म संस्कृत या प्राकृत में हुआ था, लेकिन उनमें काफ़ी ऐतिहासिक बदलाव आया है। जैसे— आग, दूध, दाँत, मुँह।
द्वितीय वर्ग
देशज शब्द- देशज का अर्थ है - 'जो देश में ही उपजा या बना हो'। जो न तो विदेशी हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना है। ऐसा शब्द जो न संस्कृत हो, न संस्कृत का अपभ्रंश हो और न किसी दूसरी भाषा के शब्द से बना हो, बल्कि किसी प्रदेश के लोगों ने बोल-चाल में जों ही बना लिया हो। जैसे- खटिया, लुटिया
विदेशी शब्द- इसके अलावा हिन्दी में कई शब्द अरबी, फ़ारसी, तुर्की, अंग्रेज़ी आदि से भी आये हैं। इन्हें विदेशी शब्द कहते हैं।
जिस हिन्दी में अरबी, फ़ारसी और अंग्रेज़ी के शब्द लगभग पूरी तरह से हटा कर तत्सम शब्दों को ही प्रयोग में लाया जाता है, उसे "शुद्ध हिन्दी" या "मानकीकृत हिंदी" कहते हैं।
हिन्दी का स्वनिमविज्ञान
मुख्य लेख : हिंदी स्वरविज्ञान
देवनागरी लिपि में हिन्दी की ध्वनियाँ इस प्रकार हैं :
स्वर
ये स्वर आधुनिक हिन्दी (खड़ीबोली) के लिये दिये गये हैं।
वर्णाक्षर “प” के साथ मात्रा आईपीए उच्चारण "प्" के साथ उच्चारण IAST समतुल्य अंग्रेज़ी समतुल्य हिन्दी में वर्णन
अ प / ə / / pə / a short or long en:Schwa: as the a in above or ago बीच का मध्य प्रसृत स्वर
आ पा / α: / / pα: / ā long en:Open back unrounded vowel: as the a in father दीर्घ विवृत पश्व प्रसृत स्वर
इ पि / i / / pi / i short en:close front unrounded vowel: as i in bit ह्रस्व संवृत अग्र प्रसृत स्वर
ई पी / i: / / pi: / ī long en:close front unrounded vowel: as i in machine दीर्घ संवृत अग्र प्रसृत स्वर
उ पु / u / / pu / u short en:close back rounded vowel: as u in put ह्रस्व संवृत पश्व वर्तुल स्वर
ऊ पू / u: / / pu: / ū long en:close back rounded vowel: as oo in school दीर्घ संवृत पश्व वर्तुल स्वर
ए पे / e: / / pe: / e long en:close-mid front unrounded vowel: as a in game (not a diphthong) दीर्घ अर्धसंवृत अग्र प्रसृत स्वर
ऐ पै / æ: / / pæ: / ai long en:near-open front unrounded vowel: as a in cat दीर्घ लगभग-विवृत अग्र प्रसृत स्वर
ओ पो / ο: / / pο: / o long en:close-mid back rounded vowel: as o in tone (not a diphthong) दीर्घ अर्धसंवृत पश्व वर्तुल स्वर
औ पौ / ɔ: / / pɔ: / au long en:open-mid back rounded vowel: as au in caught दीर्घ अर्धविवृत पश्व वर्तुल स्वर
/ ɛ / / pɛ / short en:open-mid front unrounded vowel: as e in get ह्रस्व अर्धविवृत अग्र प्रसृत स्वर
इसके अलावा हिन्दी और संस्कृत में ये वर्णाक्षर भी स्वर माने जाते हैं :
ऋ — आधुनिक हिन्दी में "रि" की तरह
अं — पंचचम वर्ण - न्, म्, ङ्, ञ्, ण् के लिए या स्वर का नासिकीकरण करने के लिए (अनुस्वार)
अँ — स्वर का अनुनासिकीकरण करने के लिए (चन्द्रबिन्दु)
अः — अघोष "ह्" (निःश्वास) के लिए (विसर्ग)
व्यंजन
जब किसी स्वर प्रयोग नहीं हो, तो वहाँ पर 'अ' माना जाता है। स्वर के न होने को हलन्त् अथवा विराम से दर्शाया जाता है। जैसे क् ख् ग् घ्।
स्पर्श (Plosives) अल्पप्राण
अघोष महाप्राण
अघोष अल्पप्राण
घोष महाप्राण
घोष नासिक्य
कण्ठ्य क / kə /
ख / khə /
ग / gə /
घ / gɦə /
ङ / ŋə /
तालव्य च / cə / या / tʃə /
छ / chə / या /tʃhə/
ज / ɟə / या / dʒə /
झ / ɟɦə / या / dʒɦə /
ञ / ɲə /
मूर्धन्य ट / ʈə /
ठ / ʈhə /
ड / ɖə /
ढ / ɖɦə /
ण / ɳə /
दन्त्य त / t̪ə /
थ / t̪hə /
द / d̪ə /
ध / d̪ɦə /
न / nə /
ओष्ठ्य प / pə /
फ / phə /
ब / bə /
भ / bɦə /
म / mə /
स्पर्शरहित (Non-Plosives) तालव्य मूर्धन्य दन्त्य/
वर्त्स्य कण्ठोष्ठ्य/
काकल्य
अन्तस्थ य / jə /
र / rə /
ल / lə /
व / ʋə /
ऊष्म/
संघर्षी श / ʃə /
ष / ʂə /
स / sə /
ह / ɦə / या / hə /
ध्यातव्य
इनमें से ळ (मूर्धन्य पार्विक अन्तस्थ) एक अतिरिक्त व्यंजन है जिसका प्रयोग हिन्दी में नहीं होता है। मराठी और वैदिक संस्कृत में सभी का प्रयोग किया जाता है।
संस्कृत में ष का उच्चारण ऐसे होता था : जीभ की नोक को मूर्धा (मुँह की छत) की ओर उठाकर श जैसी आवाज़ करना। शुक्ल यजुर्वेद की माध्यंदिनि शाखा में कुछ वाक़्यात में ष का उच्चारण ख की तरह करना मान्य था। आधुनिक हिन्दी में ष का उच्चारण पूरी तरह श की तरह होता है।
हिन्दी में ण का उच्चारण कभी-कभी ड़ँ की तरह होता है, यानी कि जीभ मुँह की छत को एक ज़ोरदार ठोकर मारती है। परन्तु इसका शुद्ध उच्चारण जिह्वा को मूर्धा (मुँह की छत. जहाँ से 'ट' का उच्चार करते हैं) पर लगा कर न की तरह का अनुनासिक स्वर निकालकर होता है।
नुक़्तायुक्त ध्वनियाँ
ये ध्वनियाँ मुख्यत: अरबी और फारसी भाषाओं से लिये गये शब्दों के मूल उच्चारण में होतीं हैं। इनका स्रोत संस्कृत नहीं है। देवनागरी लिपि में ये सबसे करीबी संस्कृत के वर्ण के नीचे नुक़्ता (बिन्दु) लगाकर लिखे जाते हैं किन्तु हिन्दी की मानक वर्तनी में विदेशी शब्दों को बिना नुक्ते के ही उनके देसीकृत रूप में लिखने की अनुशंशा की गयी है। इसलिये आजकल हिन्दी में नुक्ता लगाने की प्रथा को लोग अनावश्यक मानने लगे हैं और ऐसा माना जाने लगा है कि नुक्ते का प्रयोग केवल तब किया जाय जब अरबी/उर्दू/फारसी वाले अपनी भाषा को देवनागरी में लिखना चाहते हों।
वर्णाक्षर
(आईपीए उच्चारण) उदाहरण वर्णन देशी उच्चारण
क़ (/ q /) क़त्ल अघोष अलिजिह्वीय स्पर्श क (/ k /)
ख़ (/ x या χ /) ख़ास अघोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी ख (/ kʱ /)
ग़ (/ ɣ या ʁ /) ग़ैर घोष अलिजिह्वीय या कण्ठ्य संघर्षी ग (/ g /)
फ़ (/ f /) फ़र्क अघोष दन्त्यौष्ठ्य संघर्षी फ (/ pʱ /)
ज़ (/ z /) ज़ालिम घोष वर्त्स्य संघर्षी ज (/ dʒ /)
ड़ (/ ɽ /) पेड़ अल्पप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त ड (/ ɖ /)
ढ़ (/ ɽʱ /) पढ़ना महाप्राण मूर्धन्य उत्क्षिप्त ढ (/ ɖʱ /)
हिन्दी में ड़ और ढ़ व्यंजन फ़ारसी या अरबी से नहीं लिये गये हैं, न ही ये संस्कृत में पाये जाये हैं। वास्तव में ये संस्कृत के साधारण ड, "ळ" और ढ के बदले हुए रूप हैं।
व्याकरण
मुख्य लेख : हिन्दी व्याकरण
हिंदी मे दो लिंग होते हैं - पुल्लिंग और स्त्रीलिंग। संज्ञा में तीन शब्द-रूप हो सकते हैं — प्रत्यक्ष रूप, अप्रत्यक्ष रूप और संबोधन रूप। सर्वनाम में कर्म रूप और सम्बन्ध रूप भी होते हैं, पर सम्बोधन रूप नहीं होता। संज्ञा और आ-कारन्त विशेषण में प्रत्यय द्वारा रूप बदला जाता है। सर्वनाम में लिंग-भेद नहीं होता। क्रिया के भी कई रूप होते हैं, जो प्रत्यय और सहायक क्रियाओं द्वारा बदले जाते हैं। क्रिया के रूप से उसके विषय संज्ञा या सर्वनाम के लिंग और वचन का भी पता चल जात है। हिन्दी में दो वचन होते हैं— एकवचन और बहुवचन। किसी शब्द की वाक्य में जगह बताने के लिये कई कारक होते हैं, जो शब्द के बाद आते हैं (postpositions)। यदि संज्ञा को कारक के साथ ठीक से रखा जाये तो वाक्य में शब्द-क्रम काफी मुक्त होता है।
हिन्दी और कम्प्यूटर
मुख्य लेख : हिन्दी कम्प्यूटरी, हिन्दी टाइपिंग, कम्प्यूटर और हिन्दी, हिन्दी कम्प्यूटिंग का इतिहास, मोबाइल फोन में हिन्दी समर्थन और अन्तरजाल पर हिन्दी के उपकरण (सॉफ्टवेयर)
कम्प्यूटर और इन्टरनेट ने पिछ्ले वर्षों मे विश्व मे सूचना क्रांति ला दी है। आज कोई भी भाषा कम्प्यूटर (तथा कम्प्यूटर सदृश अन्य उपकरणों) से दूर रहकर लोगों से जुड़ी नही रह सकती। कम्प्यूटर के विकास के आरम्भिक काल में अंग्रेजी को छोड़कर विश्व की अन्य भाषाओं के कम्प्यूटर पर प्रयोग की दिशा में बहुत कम ध्यान दिया गया जिससे कारण सामान्य लोगों में यह गलत धारणा फैल गयी कि कम्प्यूटर अंग्रेजी के सिवा किसी दूसरी भाषा (लिपि) में काम ही नही कर सकता। किन्तु यूनिकोड (Unicode) के पदार्पण के बाद स्थिति बहुत तेजी से बदल गयी। 19 अगस्त 2009 में गूगल ने कहा की हर 5 वर्षों में हिन्दी की सामग्री में 94% बढ़ोतरी हो रही है।[10] इसके अलावा गूगल ने कहा की वह हिन्दी में खोज को और आसान बनाने जा रही है। जिससे कोई भी आसानी से इंटरनेट पर कुछ भी हिन्दी में खोज सकेगा।[11]
हिंदी की इंटरनेट पर अच्छी उपस्थिति है, गूगल जैसे सर्च इंजन हिंदी को प्राथमिक भारतीय भाषा के रूप में पहचानते हैं।[12] इसके साथ ही अब अन्य भाषा के चित्र में लिखे शब्दों का भी अनुवाद हिन्दी में किया जा सकता है।[13] हिन्दी ने प्रौद्योगिकी की भाषा को भी प्रभावित किया है जैसे अवतार शब्द कंप्यूटर विज्ञान, कृत्रिम बुद्धि और यहां तक की रोबोटिक्स में भी प्रयोग किया जाता है।
इस समय हिन्दी में सजाल (websites), चिट्ठे (Blogs), विपत्र (email), गपशप (chat), खोज (web-search), सरल मोबाइल सन्देश (SMS) तथा अन्य हिन्दी सामग्री उपलब्ध हैं। इस समय अन्तरजाल पर हिन्दी में संगणन के संसाधनों की भी भरमार है और नित नये कम्प्यूटिंग उपकरण आते जा रहे हैं। लोगों मे इनके बारे में जानकारी देकर जागरूकता पैदा करने की जरूरत है ताकि अधिकाधिक लोग कम्प्यूटर पर हिन्दी का प्रयोग करते हुए अपना, हिन्दी का और पूरे हिन्दी समाज का विकास करें।
हिन्दी और जनसंचार
मुख्य लेख : हिन्दी के संचार माध्यम और हिन्दी सिनेमा
हिन्दी सिनेमा का उल्लेख किये बिना हिन्दी का कोई भी लेख अधूरा होगा। मुम्बई मे स्थित "बॉलीवुड" हिन्दी फ़िल्म उद्योग पर भारत के करोड़ो लोगों की धड़कनें टिकी रहती हैं। हर चलचित्र में कई गाने होते हैं। हिन्दी और उर्दू (खड़ीबोली) के साथ साथ अवधी, बम्बइया हिन्दी, भोजपुरी, राजस्थानी जैसी बोलियाँ भी संवाद और गानों मे उपयुक्त होती हैं। प्यार, देशभक्ति, परिवार, अपराध, भय, इत्यादि मुख्य विषय होते हैं। अधिकतर गाने उर्दू शायरी पर आधारित होते हैं। कुछ लोकप्रिय चलचित्र हैं: महल (1949), श्री ४२० (1955), मदर इंडिया (1957), मुग़ल-ए-आज़म (1960), गाइड (1965), पाकीज़ा (1972), बॉबी (1973), ज़ंजीर (1973), यादों की बारात (1973), दीवार (1975), शोले (1975), मिस्टर इंडिया (1987), क़यामत से क़यामत तक (1988), मैंने प्यार किया (1989), जो जीता वही सिकन्दर (1991), हम आपके हैं कौन (1994), दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे (1995), दिल तो पागल है (1997), कुछ कुछ होता है (1998), ताल (1999), कहो ना प्यार है (2000), लगान (2001), दिल चाहता है (2001), कभी ख़ुशी कभी ग़म (2001), देवदास (2002), साथिया (2002), मुन्ना भाई एमबीबीएस (2003), कल हो ना हो (2003), धूम (2004), वीर-ज़ारा (2004), स्वदेस (2004), सलाम नमस्ते (2005), रंग दे बसंती (2006) इत्यादि।
हिन्दी का वैश्विक प्रसार
मुख्य लेख : आधुनिक हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास
सन् 1998 के पूर्व, मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से विश्व में सर्वाधिक बोली जाने वाली भाषाओं के जो आँकड़े मिलते थे, उनमें हिन्दी को तीसरा स्थान दिया जाता था। सन् 1997 में सैन्सस ऑफ़ इंडिया का भारतीय भाषाओं के विश्लेषण का ग्रन्थ प्रकाशित होने तथा संसार की भाषाओं की रिपोर्ट तैयार करने के लिए यूनेस्को द्वारा सन् 1998 में भेजी गई यूनेस्को प्रश्नावली के आधार पर उन्हें भारत सरकार के केन्द्रीय हिन्दी संस्थान के तत्कालीन निदेशक प्रोफेसर महावीर सरन जैन द्वारा भेजी गई विस्तृत रिपोर्ट के बाद अब विश्व स्तर पर यह स्वीकृत है कि मातृभाषियों की संख्या की दृष्टि से संसार की भाषाओं में चीनी भाषा के बाद हिन्दी का दूसरा स्थान है। चीनी भाषा के बोलने वालों की संख्या हिन्दी भाषा से अधिक है किन्तु चीनी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा सीमित है। अंग्रेज़ी भाषा का प्रयोग क्षेत्र हिन्दी की अपेक्षा अधिक है किन्तु मातृभाषियों की संख्या अंग्रेज़ी भाषियों से अधिक है।
विश्व के लगभग बीसवीं शती के अंतिम दो दशकों में हिंदी का अंतर्राष्ट्रीय विकास बहुत तेजी से हुआ है। वेब, विज्ञापन, संगीत, सिनेमा और बाजार के क्षेत्र में हिंदी की मांग जिस तेजी से बढ़ी है वैसी किसी और भाषा में नहीं। विश्व के लगभग 150 विश्वविद्यालयों तथा सैकड़ों छोटे-बड़े केंद्रों में विश्वविद्यालय स्तर से लेकर शोध स्तर तक हिंदी के अध्ययन-अध्यापन की व्यवस्था हुई है। विदेशों में 25 से अधिक पत्र-पत्रिकाएं लगभग नियमित रूप से हिंदी में प्रकाशित हो रही हैं। यूएई के 'हम एफ-एम' सहित अनेक देश हिंदी कार्यक्रम प्रसारित कर रहे हैं, जिनमें बीबीसी, जर्मनी के डॉयचे वेले, जापान के एनएचके वर्ल्ड और चीन के चाइना रेडियो इंटरनेशनल की हिंदी सेवा विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।
December 12, 2015 at 10:30am · Public
Like Page
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें