आर्यों के आदि उपास्य अरि: है ।
जब आर्यों का आगमन स्वीडन से हुआ जिसे प्राचीन नॉर्स माइथॉलॉजी में स्वेरिगी (Sverige) कहा गया है जो उत्तरी ध्रुव प्रदेशों पर स्थित है ।
जहाँ छ मास का दिवस तथा छ मास की दीर्घ रात्रियाँ नियमित होती हैं ।
भू- मध्य रेखीय क्षेत्रों में आगमन काल में आर्यों का युद्ध कैल्ट जन जाति के पश्चात् असीरियन लोगों से सामना हुआ था ।
वस्तुत: आर्य विशेषण जर्मनिक जन-जातियाँ ने अपने वीर और यौद्धा पुरुषों के लिए रूढ़ कर लिया ।
जर्मन मूल की भाषाओं में यह शब्द अरीर ( Arier)
तथा (Arisch) के रूप में एडॉल्फ हिट्लर के समय तक रूढ़ रहा ।
यही आर्य भारतीय आर्यों के पूर्वज हैं ।
परन्तु एडॉल्फ हिट्लर ने भारतीय आर्यों को
वर्ण-संकर कहा था।
जब आर्य सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के सम्पर्क में आये ।
अनेक देवताओं को अपनी देव सूची में समायोजित किया
जैसे विष्णु जो सुमेरियन में बियस-न के रूप मे हिब्रूओं के कैन्नानाइटी देव डेगन (Dagan)
नर-मत्स्य देव विष: संस्कृत भाषा में मछली का वाचक है ।
जो यूरोपीय भाषा परिवार में फिश (Fish)
के रूप में विद्यमान है ।
देव संस्कृति के उपासक जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध आर्यों का युद्ध असीरियन लोगों से दीर्घ काल तक हुआ , असीरी वर्तमान ईराक-ईरान (मैसॉपोटमिया) की संस्कृतियों के पूर्व प्रवर्तक हैं ।असुरों की भाषाओं में अरि: शब्द अलि अथवा इलु हो गया है ।
परन्तु इसका सर्व मान्य रूप एलॉह (elaoh) तथा एल (el) ही हो गया है ।
""
ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के ५१ वें सूक्त का ९ वाँ श्लोक
अरि: का ईश्वर के रूप में वर्णन करता है ।
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"यस्यायं विश्व आर्यो दास: शेवधिपा अरि:
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत् सोअज्यते रयि:|९
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अर्थात्-- जो अरि इस सम्पूर्ण विश्व का तथा आर्य और दास दौनों के धन का पालक अथवा रक्षक है ,
जो श्वेत पवीरु के अभिमुख होता है ,
वह धन देने वाला ईश्वर तुम्हारे साथ सुसंगत है ।
ऋग्वेद के दशम् मण्डल सूक्त( २८ )श्लोक संख्या (१)
देखें- यहाँ भी अरि: देव अथवा ईश्वरीय सत्ता का वाचक है ।
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" विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम ,
ममेदह श्वशुरो ना जगाम ।
जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात्
स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् ।।
ऋग्वेद--१०/२८/१
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ऋषि पत्नी कहती है ! कि सब देवता निश्चय हमारे यज्ञ में आ गये (विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम,)
परन्तु मेरे श्वसुर नहीं आये इस यज्ञ में (ममेदह श्वशुरो ना जगाम )यदि वे आ जाते तो भुने हुए जौ के साथ सोमपान करते (जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात् )और फिर अपने घर को लौटते (स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् )
प्रस्तुत सूक्त में अरि: देव वाचक है ।
देव संस्कृति के उपासकआर्यों ने और असुर संस्कृति के उपासक आर्यों ने अर्थात् असुरों ने अरि: अथवा अलि की कल्पना युद्ध के अधिनायक के रूप में की थी ।
सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के पूर्वजों के रूप में ड्रयूड (Druids )अथवा द्रविड संस्कृति से सम्बद्धता है ।
जिन्हें हिब्रू बाइबिल में द्रुज़ कैल्डीयन आदि भी कहा है
ये असीरियन लोगों से ही सम्बद्ध हैं।
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हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम को मानने वाली
धार्मिक परम्पराओं में मान्यता है ,कि
कुरान से पहले भी अल्लाह की तीन और किताबें थीं , जिनके नाम तौरेत , जबूर और इञ्जील हैं ।
, इस्लामी मान्यता के अनुसार अल्लाह ने जैसे मुहम्मद साहब पर कुरान नाज़िल की थी ,उसी तरह हजरत मूसा को तौरेत , दाऊद को जबूर और ईसा को इञ्जील नाज़िल की थी
. यहूदी सिर्फ तौरेत और जबूर को और ईसाई इन तीनों में आस्था रखते हैं ,क्योंकि स्वयं कुरान में कहा है ,
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1-कुरान और तौरेत का अल्लाह एक है:---
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"कहो हम ईमान लाये उस चीज पर जो ,जो हम पर भी उतारी गयी है , और तुम पर भी उतारी गयी है , और हमारा इलाह और तुम्हारा इलाह एक ही है . हम उसी के मुस्लिम हैं " (सूरा -अल अनकबूत 29:46)
""We believe in that which has been revealed to us and revealed to you. And our God and your God is one; and we are Muslims [in submission] to Him."(Sura -al ankabut 29;46 )"وَإِلَـٰهُنَا وَإِلَـٰهُكُمْ وَاحِدٌ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ "
इलाहुना व् इलाहकुम वाहिद , व् नहनु लहु मुस्लिमून "
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यही नहीं कुरान के अलावा अल्लाह की किताबों में तौरेत इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि कुरान में तौरेत शब्द 18 बार और उसके रसूल मूसा का नाम 136 बार आया है !
, यही नहीं मुहम्मद साहब भी तौरेत और उसके लाने वाले मूसा पर ईमान रखते थे , जैसा की इस हदीस में कहा है , "अब्दुल्लाह इब्न उमर ने कहा कि एक बार यहूदियों ने रसूल को अपने मदरसे में बुलाया और ,अबुल कासिम नामक व्यक्ति का फैसला करने को कहा , जिसने एक औरत के साथ व्यभिचार किया था . लोगों ने रसूल को बैठने के लिए एक गद्दी दी , लेकिन रसूल ने उस पर तौरेत रख दी ।
और कहा मैं तुझ पर और उस पर ईमान रखता हूँ और जिस पर तू नाजिल की गयी है , फिर रसूल ने कहा तुम लोग वाही करो जो तौरेत में लिखाहै . यानी व्यभिचारि को पत्थर मार कर मौत की सजा , (महम्मद साहब ने अरबी में कहा "आमन्तु बिक व् मन अंजलक - آمَنْتُ بِكِ وَبِمَنْ أَنْزَلَكِ " . "
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I believed in thee and in Him Who revealed thee. सुन्नन अबी दाऊद -किताब 39 हदीस 4434 इन कुरान और हदीस के हवालों से सिद्ध होता है कि यहूदियों और मुसलमानों का अल्लाह एक ही है और तौरेत भी कुरान की तरह प्रामाणिक है . चूँकि लेख अल्लाह और उसकी पत्नी के बारे में है इसलिए हमें यहूदी धर्म से काफी पहले के धर्म और उनकी संस्कृति के बारे में जानना भी जरूरी है .
लगे , और यहोवा यहूदियों के ईश्वर की तरह यरूशलेम में पूजा जाने लगा ।
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जिस अल्लाह के नाम पर मुफ़्ती मौलाना दुनियाँ में सन्देश देकर फ़तवा जारी करते हैं ,कि अल्लाह नाम का उच्चारण गै़र इस्लाम के लिए हराम व ग़ुनाह है "
और फिर इनके शागिर्द
सारी दुनिया में जिहादी आतंक फैला कर रोज हजारों निर्दोष लोगों की हत्या करते रहते हैं ।
परन्तु अल्लाह भी इन जिहादीयों का नहीं है ।
, क़्योकि इस्लाम से पहले अरब में कोई अल्लाह का नाम भी नहीं जनता था ।
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वहाँ के वद्दू कौम ने यहूदीयों की परम्पराओं को आत्मसात् किया ।
तौरेत यानि बाइबिल के पुराने नियम में ईश्वर के लिए हिब्रू में " य ह वे ह - (Hahw )
: יהוה "शब्द आया है ,जो एक उपाधि ( epithet ) है . तौरेत में इस शब्द का प्रयोग तब से होने लगा जब"
यहूदियों ने यहोवा को इस्राएल और जूडिया का राष्ट्रीय ईश्वर बना दिया था ।
या:वे शब्द कैन्नानाइटी संस्कृति से हिब्रू परम्पराओं ने आत्मसात् किया ...
कैन्नानाइटी संस्कृति में यहोवा का रूप यम (Yam)
यम: है ।
वहाँ "यम" कनानीयों का नदी समुद्र तथा पर्वतों का अधिष्ठात्री देवता था ।
कैन्नानाइटी संस्कृति में यम का रूप यम्म (Yamm) है ,
कनानीयों में बहुदेववाद की पृथा विद्यमान थी ।
कनान संस्कृति में यम शब्द नदी का वाचक है ।
और समुद्र का भी ..
सम्भवत: संस्कृत भाषा में यमुना शब्द वहीं से अवतरित हुआ ।
अवेस्ता ए जेन्द़ में यिम को विबनघत ( वैदिक रूप विवस्वत्) का पुत्र स्वीकार किया है ।
परन्तु यहवती तथा यह्व जैसे शब्द ऋग्वेद में वर्णित हैं ।
कैन्नानाइटी मायथॉलॉजी में यम एल (El) के पुत्र हैं ।
क्योंकि की पौराणिक कथाओं में यमुना यम की भगिनी है ।
परन्तु यह तो एक नदी है ..
कनान संस्कृति के विषय बता दें कि यह इज़राएल फॉनिशी तथा एमॉराइट जन-जातियाँ कनानीयों की सहवर्ती रही हैं ।
तथा कनानीयों की भाषा उत्तरीय-पश्चिमीय सैमेटिक भाषा की एक उपशाखा थी ।
वर्तमान में जो रास- समरा है
वही पुरातन काल में यूगेरिट (Ugarit)
नामक पत्तन- शहर था ।
जो उत्तरी सीरिया की मुख्य-भूमि है ।
हिट्टी और मिश्र से इनका सांस्कृतिक सम्पर्क रहा ।
कैन्नानाइटी संस्कृति का ही एक रूप यहाँ की संस्कृति थी ।
यम ही यहाँ का मुख्य देव था ।
यम को हिब्रू परम्पराओं में इलहम(ilhm)
अथवा एलोहिम(Elohim)
भी कहा गया है ।
जिसका अर्थ होता है एल का यम अर्थात् एल का पुत्र यम ...
एलोहिम (Elohim)
वस्तुत: एक बहुचन संज्ञा है ।
हिब्रू भाषा में इम (im)
प्रत्यय बहुवचन पुल्लिंग संज्ञा बनाने के लिए प्रयुक्त होता है । अत: एलोहिम Elohim अक्काडियन ullu से विकसित हिब्रू इलाह अथवा इलॉही (Elohei)का बहुवचन रूप भी है।
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प्रथम वार यह शब्द तनख़ अर्थात् हिब्रू बाइबिल सर्वोपरि ईश्वरीय सत्ता का वाचक है...
सृष्टि-खण्ड ( Genesis 1:1 )
एल (El) का बहुवचन रूप एलोहिम (Elohim)
तनख़ अर्थात् हिब्रू बाइबिल में एलोहिम शब्द 2,570. वार प्रयुक्त है ।
इलॉही( Elohei) शब्द का अर्थ है ---एल सम्बन्धी अर्थात् ईश्वरीय... अथवा मेरा एल ..
Elohei Haelohim.=. "ईश्वरों का ईश्वर"
हिब्रू परम्पराओं में ईश्वर के तीन नाम में एल (el) एलॉह (elaoh) तथा बहुवचन रूप (Elaohim)
अरब़ी भाषा में अल्लाह शब्द की व्युत्पत्ति- अल् +इलाह
के द्वारा हुई है ।
अल् एक सैमेटिक भाषा परिवार में उपसर्ग (Prefix) है
जो संज्ञा की निश्चयात्मकता को सूचित करने वाला उपपद (Article) है ।
अंग्रेजी में "The "एक निश्चयात्मक उपपद है ।
जैसे अंग्रेज़ी में " The book "को अरब़ी भाषा में कहेंगे
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अल् किताब़-----
अत: अल् इलाह का अर्थ हुआ -- "The God "
हिब्रू भाषा में निश्चयात्मक उपपद (Definite Article)
वर्तमान में "हा (ha)"है ..स्पेनिश में (el) के रूप में है ।
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ऐसी भाषाविदों की मान्यता है ।
हिब्रू भाषा में( el )एल तथा (eloah) एलॉह
दो रूप प्रचीन हैं ।
यह नाम वस्तुत: पारसीयों के यिम से सम्बद्ध है----
जो अवेस्ता ए जेन्द़ में विवनघत का पुत्र है
जिसे वेदों में विवस्वत् का पुत्र यम कहा गया है ।
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यम कनानीयों की संस्कृति में पाताल (Abyss)
का देवता है ।"
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"Yam is the deity of The sea and his place is in the abyss ..."
बाइबिल पाताल अथवा नरक को तेहॉम के रूप में वर्णित करती है ।
जो वस्तुत: भारतीयों का तमस् अथवा नरक है ।
यद्यपि नरक सुमेरियन नर्गल तथा ग्रीक नारकॉ (Narco )
और नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में नारके है ।
नॉर्स माइथॉलॉजी में नारके हिम युक्त वह शीत प्रदेश है
जहाँ यमीर रहता है ,जो हिम रूप है ।
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वस्तुत: यहोवा /याह्वे अथवा एलोहिम यहूदीयों का देव है।
जिसका पिता "एल" है ।
जिससे अरब़ी संस्कृति में अल्लाह शब्द का विकास हुआ...
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एल देवता फॉनिशियन,सीरियायी, हिब्रू तथा अक्काडियन संस्कृतियों में सर्वोपरि ईश्वरीय सत्ता का वाचक है ,
अरब़ी संस्कृति में यह इल तथा इलाह दो रूपों में विद्यमान है ,
जो अक्काडियन इलु से सम्बद्ध है ।
एमॉराइट तथा अक्काडियन संस्कृतियों में यह शब्द सेमेटिक भाषा से आया ...
जिसका सम्बन्ध असीरियन मूल से है ।
ये असीरियन लोग वेदों में वर्णित असुर ही हैं ।
संस्कृत भाषा में " र" वर्ण की प्रवृति असुरों की भाषा मे "ल" वर्ण के रूप में होती है ...
"अरे अरे सम्बोधनं रूपं अले अले कुर्वन्त: तेsसुरा: पराबभूवु: " -----(यास्क निरुक्त )
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ऋग्वेद १०/१३/८,३,४, तथा शतपथ ब्राह्मण में वर्णित किया गया है कि असुर देवताओं की वाणी का भिन्न रूप में उच्चारण करते थे । अर्थात् असीरियन लोग "र"
वर्ण का उच्चारण "ल" के रूप में करते थे ।
शतपथ ब्राह्मण में वर्णित है " तेsसुरा हे अलयो !हे अलय इति कुर्वन्त: पराबभूवु: पतञ्जलि ने महाभाष्य के पस्पशाह्निक अध्याय में शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ के इस वाक्य को उद्धृत किया है ।
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ऋग्वेद के द्वित्तीय मण्डल के १२६वें सूक्त का पञ्चम छन्द में अरि शब्द आर्यों के सर्वोपरि ईश्वरीय सत्ता का वाचक है:-----
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पूर्वामनु प्रयतिमा ददे वस्त्रीन्
युक्ताँ अष्टौ-अरि(अष्टवरि) धायसो गा: ।
सुबन्धवो ये विश्वा इव व्रा
अनस्वन्त:श्रव ऐषन्त पज्रा: ।।५।।
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ऋग्वेद---२/१२६/५
तारानाथ वाचस्पति ने वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में
सन्दर्भित करते हुए..
वर्णित किया है--अरिभिरीश्वरे:धार्य्यतेधा ---असुन् पृ० युट् च ।
ईश्वरधार्य्ये ।" अष्टौ अरि धायसो गा: "
ऋग्वेद १/१२६/ ५/ अरिधायस:
" अर्थात् अरिभिरीश्वरै: धार्य्यमाणा "भाष्य ।
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अरि शब्द के लौकिक संस्कृत मे कालान्तरण में अनेक अर्थ रूढ़ हुए ---
अरि :---१---पहिए का अरा २---शत्रु ३-- विटखदिर ४-- छ: की संख्या ५--ईश्वर
वाचस्पत्यम् संस्कृत कोश में अरि धामश्शब्दे ईश्वरे
उ० विट्खरि अरिमेद:।" सितासितौ चन्द्रमसो न कश्चित बुध:शशी सौम्यसितौ रवीन्दु ।
रवीन्दुभौमा रविस्त्वमित्रा" इति ज्योतिषोक्तेषु रव्यादीनां
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, हिब्रू से पूर्व इस भू-भाग में फॉनिशियन और कनानी संस्कृति थी ,
जिनके सबसे बड़े देवता का नाम हिब्रू में "एल - אל " था ।
जिसे अरबी में ("इल -إل "या इलाह إله-" )भी कहा जाता था , और अक्कादियन लोग उसे "इलु - Ilu "कहते थे , इन सभी शब्दों का अर्थ "देवता -god " होता है ।
इस "एल " देवता को मानव जाति ,और सृष्टि को पैदा करने वाला और "अशेरा -" देवी का पति माना जाता था
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(El or Il was a god also known as the Father of humanity and all creatures, and the husband of the goddess Asherah
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(בעלה של אלת האשרה) .सीरिया के वर्तमान प्रमुख स्थलों में " रास अस शम
-رأس, "शाम की जगह) करीब 2200 साल ईसा पूर्व एक मिटटी की तख्ती मिली थी , जिसने इलाह देवता और उसकी पत्नी. .
अशेरा के बारे में लिखा था ,
पूरी कुरान में 269 बार इलाह - إله-" " शब्द का प्रयोग किया गया है
, और इस्लाम के बाद उसी इलाह शब्द के पहले अरबी का डेफ़िनिट आर्टिकल "अल - ال" लगा कर अल्लाह ( ال+اله ) शब्द गढ़ लिया गया है , जो आज मुसलमानों का अल्लाह बना हुआ है ।
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. इसी इलाह यानी अल्लाह की पत्नी का नाम अशेरा है . अशेरा का परिचय अक्कादिअन लेखों में अशेरा को अशेरथ (Athirath ) भी कहा गया है , इसे मातृृत्व और उत्पादक की देवी भी माना जाता था ,
यह सबसे बड़े देवता "एल " की पत्नी थी ।
. इब्राहिम से पहले यह देवी मदयन से इजराइल में आ गयी थी।
इस्राइलीय इसे भूमि के देवी भी मानते थे।
इजराइल के लोगों ने इसका हिब्रू नाम "अशेरह - (אֲשֵׁרָה), " कर दिया !
और यरूशलेम स्थित यहोवा के मंदिर में इसकी मूर्ति भी स्थापित कर दी गयी थी ,अरब के लोग इसे " अशरह (-عشيره ") कहते थे ,
और हजारों साल तक यहोवा के साथ इसकी पूजा होती रही थी ।
. -अशेरा अल्लाह की पत्नी अशेरा यहोवा उर्फ़ इलाह यानी अल्लाह की पत्नी है यह बात तौरेत की इन आयतों से साबित होती है ।
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, जो इस प्रकार है------
"HWH came from sinai ,and shone forth from his own seir ,He showed himself from mount Paran ,yes he came among the myriads of Qudhsu at his right hand , his own Ashera indeed , he who loves clan and all his holy ones on his left "
_______'_'"________________________________
"यहोवा सिनाई से आया , और सेईर से पारान पर्वत से हजारों के बीच में खुद को प्रकाशित किया , दायीं तरफ कुदशु (Qudshu:( Naked Goddess of Heaven and Earth') और उसकी "अशेरा ", और जिनको वह प्रेम करता है वह लोग बायीं तरफ थे " (तौरेत - व्यवस्था विवरण 33 :2 -3 (Deuteronomy 33.2-3,) ।
यहोवा और उसकी अशेरा का तात्पर्य यहोवा और उसकी पत्नी अशेरा है ।
तौरेत में अशेरा का उल्लेख अशेरा का उल्लेख तौरेत (Bible)की इन आयतों में मिलता है "उसने बाल देवता की वेदी के साथ अशेरा को भी तोड़ दिया " Judges 6:25). " और उसने अशेरा की जो मूर्ति खुदवाई उसे यहोवा के भवन में स्थापित किया "(2 Kings 21:7 " और जितने पात्र अशेरा के लिए बने हैं उन्हें यहोवा के मंदिर से निकालकर लाओ "2 ) "स्त्रियां अशेरा के लिए परदे बना करती थीं "2 Kings 23:7). "सामरिया में आहब ने अशेरा की मूर्ति लगायी ।
अशेराह वस्तुत: भारतीय संस्कृति में अपने प्रारम्भिक चरण में स्त्री रूप में है ।
स्त्री शब्द ही श्री रूप में वेदों में सन्दर्भित हुआ है ।
रोमन संस्कृति में सेरीज (Ceres)--in ancient Roman mythology
सुमेरियन संस्कृति में इनन्ना (नना) अथवा ईष्टर(ishtar)
वेदों की नना और स्त्री हैं ।
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Roman religion Ceres was a goddes
of agriculture,grain crops , fertility & motherly relationship" in roman mythology...
अर्थात् रोमन आर्यों की संस्कृति में सेरीज कृषि धन फसल तथा धन-धान्य की देवी है ।
सेरीज (Ceres) शब्द...
कैल्ट संस्कृति में शेला (Sheila)---celtic fertility goddess ..
पूरा नाम शिला ना गिग sheela Na gig...
यही शब्द यूरोपीय भाषा परिवार में अॉइष्ट्रस् (Oestrus)
पुरानी अंग्रेज़ी में eastre ..
आद्य जर्मनिक Austro .. संस्कृत ऊषा ..
वेदों में अरि तथा स्त्री शब्द गौण रह गये हैं ।
वैदिक भाषा में अरि शब्द घर तथा ईश्वर का भी वाचक है ,परन्तु लौकिक संस्कृत में यह शत्रु वाची ही हो गया
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विचार-विश्लेण---योगेश कुमार रोहि ग्राम आजा़दपुर पत्रालय पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़---
सम्पर्क सूत्र --8077160219./
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