सैकड़ों साल पहले सुदूर अरब से चल कर हिन्दी में दाखिल हुए हिम्मत के साथ साथ उसके और भी न जाने कितने नाते-रिश्तेवाले शब्द हिन्दुस्तानी बोलियों में डेरा डालने चले आए और फिर यूँ घुल मिल गए कि अब इनकी परदेसी शिनाख़्त भी कोई बताए तो भरोसा न हो । शब्दों का सफ़र यानी शब्दों-भाषाओं की यात्रा करते हुए सभ्यताओं, संस्कृतियों की विभिन्नता के बीच भी मानवीय विकास के ऐसे अनेक सूत्र मिलते हैं जहाँ धर्म-संस्कृतियों से परे, विभिन्नता के बीच भी हमारी एकता सिद्ध होती है । अग्नि, ताप के लिए सेमिटिक भाषा परिवार और इंडो-यूरोपीय भाषा परिवारों में ह वर्ण से जुड़ी शब्दावली में एकरूपता आश्चर्यजनक है । हिम्मत के मूल में है सेमिटिक धातु हम्म है जिसमें मूलतः एक किस्म के ताप का भाव है । अधिकांश अर्थों में यह यह मानसिक ताप है मगर यह भौतिक ताप भी है । ध्यान रहे सेमिटिक मूल के हम्म में जो ताप का भाव है वही भारोपीय भाषा के होम में भी ही । होम बना है संस्कृत की हु धातु से जिसका अर्थ है देवता के सम्मान में भेंट प्रस्तुत करना। वृहत्तर भारत के प्राचीन अग्निपूजक समाज में देवताओं को प्रसन्न करने के लिए यज्ञकुंड में ही अग्नि के माध्यम से भेंट समर्पित करने की परंपरा थी। आस्था कहती थी कि अग्नि के माध्यम से वह सामग्री देवताओं तक पहुँच जाएगी। इस तरह हु धातु का एक अर्थ यज्ञ करना भी हुआ। इससे ही बना हुत शब्द जिसका अर्थ है अग्नि में डाला हुआ मगर भाव दाह, ताप और अग्नि का ही है क्योकि ऐसा करने से अग्नि ही प्रज्जवलित होती है। हुत में आ उपसर्ग लगने से बना आहुति शब्द जिसका अर्थ भी यज्ञ कुंड में हवन सामग्री डालना है। हवन बना है हवः से जिसका मूल भी हु से है। इसी तरह होम शब्द भी इसी कड़ी में आता है जिसमें यज्ञाग्नि, आहुति देना, आदि शामिल है। सामी मूल के हम्म में बुखार के साथ साथ दुख, रंज , खेद आदि भाव भी शामिल हैं। गौर करें कि ये सभी भाव मानसिक संताप ( ताप ) से जुड़े हुए हैं। हम्म में उद्विग्नता, संताप, व्याकुलता, उत्साह, शोक, दुख, बेचैनी या फ़िक्र जैसे तमाम भावों के साथ कुछ कर डालने का भाव जुड़ा हुआ है । इसी तरह अल सईद एम बदावी, एमए अब्देल इस्लाम, डिक्शनरी ऑफ कुरानिक यूसेज़ में हम्म के साथ उद्धेश्य के साथ कुछ करना, ज़िम्मेदारी वहन करना, किसी के लिए कुछ करना, अपने लिए कुछ प्राप्त करना आदि बातें में इसमें हैं । हम्म से बना है अरबी का हिम्मा जिसमें कुछ ठानना, संकल्प करना, जोश के साथ प्रयत्न में जुटना जैसी बाते हैं । फ़ारसी में इसका रूप हेम्मत / हिम्मत होता है । हिन्दी ने हिम्मत रूप अपनाया जिसमें साहस, उत्साह, बहादुरी, वीरता, हौसला, जुर्रत, धृष्टता जैसे भाव हैं । “उसने बड़ी हिम्मत दिखाई” मे साहस का भाव है जबकि “...तुम्हारी ये हिम्मत ?” में धृष्टता सिद्ध हो रही है । “वह बड़ी हिम्मत से लड़ा” में वीरता की बात है । हिम्मत करना, हिम्मत दिखाना जैसे मुहावरे हिन्दी में उत्साह, साहस प्रदर्शन के सन्दर्भ में कहे जाते हैं । हिम्मतवाला वह है जो साहसी है । विपरीत परिस्थिति में निराश हो जाने की स्थिति को हिम्मत हारना कहा जाता है । हम्म में निहित ताप के भाव की व्याख्या हिम्मत के सन्दर्भ में बेहद आसान है । जोश, उत्साह की अवस्था शरीर में रक्त का संचार बढ़ाती है । हमारी नसों में बहते गर्म खून की आभा से चेहरा भी दमकता है । जोश के साथ जिस गर्माहट का ज़िक्र होता है वह यही है । किसी विकट कार्य, बड़े उद्धेश्य के लिए किए जा रहे कार्य को हिन्दी में अभियान भी कहा जाता है और योजना भी । फ़ारसी के ज़रिए हिन्दी में आया अरबी का मुहिम शब्द अभियान के लिए काफ़ी प्रचलित है । मुहिम के मूल में भी हिम्मा ही है जिससे हिम्मत बना है । यहाँ भी ताप का जो भाव है वह मुहिम में निहित सरगर्मी में स्पष्ट हो रहा है । मद्दाह के कोश के मुताबिक मुहिम का अर्थ है कोई बड़ा काम, लड़ाई, युद्ध या संग्राम आदि । पुराने ज़माने में युद्ध ही अधिक होते थे और राज्यविस्तार ही प्रत्येक शासक का एकमात्र उद्धेश्य होता था । उसके लिए विभिन्न योजनाएँ, अभियान और मुहिम बनती थीं । हालाँकि मूल अरबी में मुहिम में भी व्यग्रतापूर्ण, फ़िक्रमंद जैसे भाव हैं और क्रिया रूप में मुहिम में खतरनाक, रोमांचक अभियान अथवा बड़े उद्यम की अर्थवत्ता निहित है । मगर अब तो जिनका नैतिक पतन हो चुका है, उनके भ्रष्टाचरण को हम उनकी मुहिम मानते हैं और फिर उसे मिटाने की जो क़ानूनू पहल होती है उसे क़ानून की मुहिम मानते हैं । मुहिम अब सिर्फ़ अभियान भर रह गया है । सार्वजनिक स्नानागार, गुस्लख़ाना को अरबी-फारसी में हम्माम कहा जाता है । यह अरबी भाषा का शब्द है और उर्दू- फारसी-हिन्दी में हमाम के रूप में भी प्रचलित है। इसका मतलब होता है गर्म पानी पानी के प्रसाधनों से युक्त स्नानागार। यह बना है सामी परिवार की हिब्रू, आरमेइक, अरबी जैसी भाषाओं की प्रसिद्ध धातु हम्म में गर्म, ऊष्ण, तप्त जैसे भाव हैं । हिब्रू में ही गर्म के लिए होम और हम शब्द भी हैं । हम्म के ही एक अन्य धातुरूप हाम् का अर्थ हिब्रू में काला, सियाह होता है । गौर करें आग की भेंट चढ़ने के बाद वस्तु काली पड़ जाती है । हम्माम की परंपरा प्राचीन सुमेरी सभ्यता से चली आ रही है । पत्थर की शिलाओं को तेज आंच में तपा कर उन पर पानी छोड़ा जाता था जिनसे उत्पन्न वाष्प से ये स्नानागार गर्म रहते थे । बाद में यह प्रणाली समूचे पश्चिम में फैल गई और हमाम शब्द भी कई भाषाओं में प्रसारित हुआ जैसे अंग्रेजी में यह हमाम है , अज़रबैजानी में यह हमाम है तो अफ्रीका की स्वाहिली में यह हमामू है और हिन्दी मे हम्माम । ग्रीक में इसका रूप हमामी है और ताजिकिस्तानी में यह हमोम है । उज्बेकी में यह ख़म्मोम है । ये सफर आपको कैसा लगा ? पसंद आया हो तो यहां क्लिक करें
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