★-"इतिहास के बिखरे हुए पन्ने"-★
सोमवार, 16 जून 2025
गुरु -
गुरुः
कुम्भकारेव स्वशिष्यस्य अन्तः स्नेहं दत्त्वा ।।
व्यक्तित्वं अनुशासयति
बहिश्च स्थापित्वा।।१।
नेत्राभ्यामिव नीयते ऋतपथे गुरुर्नायको।
गृणाति ज्ञानं गीतं गुरुरसौ रसो गायको।२।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें
नई पोस्ट
पुरानी पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
मोबाइल वर्शन देखें
सदस्यता लें
टिप्पणियाँ भेजें (Atom)
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें