आभीरस्यापि नन्दस्य पूर्वपुत्र: प्रकीर्तित:।
वसुदेवो मन्यते तं मत्पुत्रोऽयं गतत्रप: ।१४।
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कृष्ण वास्तव में नन्द अहीर का पुत्र है ।
उसे वसुदेव ने वरबस अपना पुत्र माने लिया है उसे इस बात पर तनिक भी लाज ( त्रप) नहीं आती है ।१४।।
(गर्ग संहिता उद्धव शिशुपालसंवाद ( विश्ववजित् खण्ड अध्याय सप्तम )
ये सरल हिन्दी व्याख्या देखें
देवता: मरुतः ऋषि: गोेैतमो राहूगणपुत्रः छन्द: निचृज्जगती स्वर: निषादः अलंकार: उपमा
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श्रियसे- ऊष्मा के लिए
कम्- प्रकाश को
भानुऽभिः- प्रकाशकों सूर्यों द्वारा
सम्मिमिक्षिरे। समान सिंचित करने की इच्छा वाले
ते- वे सब
रश्मिऽभिः- किरण रूपी वाणों द्वारा
ते- वे सब
ऋक्वऽभिः स्तुतियों के द्वारा
सुऽखादयः -सुखादि ।
ते- वे सब
वाशीऽमन्तः- उद्घोष करते हुओं को ।
इष्मिणः -वाणों के स्वामी।
अभीर - अहीर यौद्धा
वः -बलवान् ।
विद्रे- केन्द्र में ।
प्रियस्य प्रिय का ।
मारुतस्य - मारुत का ।
धाम्नः - गृहस्थान से ॥
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श्रियसे कं भानुभिः सं मिमिक्षिरे ते रश्मिभिस्त ऋक्वभिः सुखादयः।
जैसे सूर्य अपनी किरणों की ऊष्मा से अपनी सतुति करने वालो के लिए सुख से सिंचित करता है ..
ते वाशीमन्त (वाश तिरश्चां शब्दे आह्वाने वशीकरणे च सकारात्मक दि० आत्मनेपदीय सेट् ऋदित् चङि न ह्रस्वः)
। इष्मिणो (वेग शाली) अभीर( निर्भीक यौद्धा ) वो (बलवान् )विद्रे (केन्द्र में)
इषुणा विध्यन्तिइषौ कुशलो वा ये अभीरव: जना: विद्रे लक्ष्ये केन्द्रे वा !
प्रियस्य मारुतस्य धाम्नः( प्रिय मारुत के गृह से ) ॥
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शब्द के अर्थ ---
श्रि॒यसे _ श्रयसे (तुम ऊष्मा करते हो ) कम् _कमु
कान्तौ। भा॒नुऽभिः॑ रविभिः| सम् समानम् । मि॒मि॒क्षि॒रे॒ (मिह् धातौ लिट्लकार प्रथम पुरूष बहुवचन रूप )। ते अमी । र॒श्मिऽभिः॑किरणैः । ते अमी । ऋक्व॑ऽभिः स्तुतिभिः । सु॒ऽखा॒दयः॑। ते। वाशीऽमन्तः। इ॒ष्मिणः॑ _गतिमन्तः। अभी॑र बलवान् _वः। वि॒द्रे_छिद्रे। प्रि॒यस्य॑। मारु॑तस्य। धाम्नः॑ ॥
ऋग्वेद » मण्डल: प्रथम » सूक्त:87» ऋचा:6 |
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पदो के अर्थान्वय : -
(भानुभिः) सूर्यों से
(कम्) प्रकाश को
(श्रियसे) ऊष्मा के लिये
(ते) वे (प्रियस्य) प्रिय का (मारुतस्य) मारुत का
(धाम्नः) धाम से, घर से (सम्+मिमिक्षिरे) मिमिहुः इष्णन्ति अच्छे प्रकार प्रकीर्ण सिंचन करना चाहते हैं (ते)
(रश्मिभिः) किरणों से (विद्रे) केन्द्रे (ऋक्वभिः)स्तुतिभिः स्तुतियों से (सुखादयः)
(ते) वे (वाशीमन्तः) उद्घोष करते हुए (इष्मिणः) गतिशील वे (अभीरवः) वे अभीर निर्भय पुरुष मारुतों के घर से युद्ध में प्रवृत्त होते हैं,
॥ ६ ॥
वैसे ही अभीर बलवान् यौद्धा अपने स्फूर्तिमयी वाणों से विरोधीयों को वश में करते हुए अथवा आह्वान करते हुए होते हैं !
जैसे सूर्य अपनी ऊष्मामयी किरणों से अन्धकार और शीत को
आक्रान्त करता हुआ होता है ..
यहाँ उपमा अलंकार है गुण वीरता अथवा तेज और वाचक शब्द सम है |
अभीरु मितज्ञु और एमोराइत मारुत ये जन जातियाँ प्राचीनत्तम हैं |
जिनका वर्णन मेसोपोटामिया की सभ्यताओं मेंभी है |
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श्रियसे। कम्। भानुऽभिः। सम्। मिमिक्षिरे। ते। रश्मिऽभिः। ते। ऋक्वऽभिः। सुऽखादयः। ते। वाशीऽमन्तः। इष्मिणः। अभीर वः। विद्रे। प्रियस्य। मारुतस्य। धाम्नः ॥
जैसे सूर्य अपनी किरणों की ऊष्मा और प्रकाश अपनी सतुति करने वालो के लिए सुख से सिंचित करता है
और अपने शत्रु अन्धकार..और जडता को अपने किरण रूपी वाणों से डुबो देता है !
उसी प्रकार अभीर जो बलवान् जो मरुतों के गृहस्थान से उदघोष करते हुए गतिमान होकर वाणों को केन्द्र में सन्धान करते हैं |
पदार्थान्वयभाषाः - (भानुभिः) सूर्यों से (कम्) प्रकाश को (श्रियसे) ऊष्मा के लिये (ते) वे (प्रियस्य) प्रिय का (मारुतस्य) मारुत का (धाम्नः) धाम से, घर से (सम्+मिमिक्षिरे) मिमिहुः इष्णन्ति अच्छे प्रकार प्रकीर्ण सिंचन करना चाहते हैं (ते) (रश्मिभिः) किरणों से (विद्रे) केन्द्रे (ऋक्वभिः)स्तुतिभिः स्तुतियों से (सुखादयः)
(ते) वे (वाशीमन्तः) उद्घोष करते हुए (इष्मिणः) गतिशील वे (अभीरवः) वे अभीर निर्भय पुरुष मारुतों के घर से युद्ध में प्रवृत्त होते हैं,
॥ ६ ॥
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वैसे ही अभीर बलवान् यौद्धा अपने स्फूर्तिमयी वाणों से विरोधीयों को वश में करते हुए अथवा आह्वान करते हुए होते हैं !
जैसे सूर्य अपनी ऊष्मामयी किरणों से अन्धकार और शीत को
आक्रान्त करता हुआ होता है ..
यहाँ उपमा अलंकार है गुण वीरता अथवा तेज और वाचक शब्द सम है |
अभीरु मितज्ञु और एमोराइत मारुत ये जन जातियाँ प्राचीनत्तम हैं |
जिनका वर्णन मेसोपोटामिया की सभ्यताओं में भी है |
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