जिस घर में रोहि संस्कार नहीं,
और शिक्षा का प्रसार नहीं ||
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उन्मुक्त Sex का ताण्डव है ,
वहाँ चरित्र सलामत कब है||
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इस काम की उच्छ्रंखलता से
दुनियाँ में जो कुकर्म है ,
पाप पतन कारी कितना .?
आदमी अब बेशर्म है ||
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इन सभी विकृतियों की जड़ में
स्वाभाविक प्राणी की वृत्ति,
काम प्रधान पापों का निधान.
है इसकी की धर्म से निवृत्ति |
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तुमको मैं इतना समझा दूँ .
कि धर्म वास्तव में क्या है ?
धर्म साधना है मन की ,
इन्द्रिय-नियमन की क्रिया है|
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माला तिलक जनेऊ से तो
केवल आडम्बर का नाता है
चित्त वृति का निरोध हो जिससे
रोहि वही धर्म कहलाता है ||
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दुनियाँ के सागर में रोहि
ये धर्म ही एक पतवार है !!
स्वाभाविकता के प्रबल वेग हैं
और प्रवृत्तियों की धार है
मझधार जवानी है जिसमें
जीवन बुलबुलों का सार है
लोभ के भँवर मोह के गोते
जहाँ होना मुश्किल पार है ||
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यौनि-गत ये प्रवृत्तियाँ है .
इनका ज्ञान जन्म से आता है ,
व्यवहार गत जो ज्ञान है रोहि
वो दुनियाँ में सीखा जाता है !!
बड़ी सरल है उपमा इसकी
जैसे कम्प्यूटर में सी. पी.यू.
साफ्टवेयर स्थाई और एप्पस्
अस्थिर हैं जिसमें न्यू !!
इनसे ही कम्प्यूटरकी गतिविधि
मन के प्रवृत्ति और स्वभावों से
जीवन की गति- विधि सारी है |
इस मन में जीवन के रहस्य
यह सृष्टि प्रभु की न्यारी है ||
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दार्शिनिक कवि व सामाजिक विश्लेषक---
यादव योगेश कुमार रोहि
ग्राम- आज़ादपुर, पत्रालय- पहाड़ीपुर जनपद अलीगढ़ उ०प्र०----
8077160219.
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