चैतन्य परम्परा के श्री रूप गोस्वामी ने अपने मित्र श्री सनातन गोस्वामी के आग्रह पर कृष्ण और श्री राधा जी के भाव मयी आख्यानकों का संग्रह किया
श्रीश्री राधा कृष्ण गणोद्देश्य दीपिका के नाम से ...
यह ग्रन्थ उस समय का है विवरण है जब भागवत पुराण भी नहीं लिखा गया था ...
इसी ग्रन्थ में लेखक ने एक स्थान पर लिखा
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पशुपालस्त्रिधा वैश्या आभीरा गुर्जरास्तथा ।
गोप वल्लभ पर्याया यदुवंश समुद्भवा : ।।७।।
भषानुवाद – पशुपाल भी वणिक , अहीर और गुर्जर भेद से तीन प्रकार के हैं ।
इन तीनों का उत्पत्ति यदुवंश से हुई है ।
तथा ये सभी गोप और वल्लभ जैसे समानार्थक नामों से जाने जाते हैं ।७।।
प्रायो गोवृत्तयो मुख्या वैश्या इति समारिता: ।
अन्ये८नुलोमजा: केचिद् आभीरा इति विश्रुता:।।८।
भषानुवाद– वैश्य प्राय: गोपालन के द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते है ।और आभीर तथा गुर्जरों से श्रेष्ठ माने जाते हैं ।
अनुलोम जात ( उच्च वर्ण के पिता और निम्न वर्ण की माता द्वारा उत्पन्न ) वैश्यों को आभीर नाम से जाना जाता है ।८।।
आचाराधेन तत्साम्यादाभीराश्च स्मृता इमे ।।
आभीरा: शूद्रजातीया गोमहिषादि वृत्तय: ।।
घोषादि शब्द पर्याया: पूर्वतो न्यूनतां गता: ।।९।।
भाषानुवाद–आचरण में आभीर भी वैश्यों के समान जाने जाते हैं । ये शूद्रजातीया हैं ।
तथा गाय भैस के पालन द्वारा अपना जीवन निर्वाह करते हैं ।
इन्हें घोष भी कहा जाता है ये पूर्व कथित वैश्यों से कुछ हीन माने जाते हैं ।९।।
किञ्चिदाभीरतो न्यूनाश्च छागादि पशुवृत्तय:।
गोष्ठप्रान्त कृतावासा: पुष्टांगा गुर्जरा: स्मृता :।।१०।
भाषानुवाद – अहीरों से कुछ हीन बकरी आदि पशुओं को पालन करने वाले तथा गोष्ठ की सीमा पर वास करने वाले गोप ही गुर्जर कहलाते हैं ये प्राय हृष्ट-पुष्टांग वाले होते हैं ।१०।
वास्तव में उपर्युक्त रूप में वर्णित तथ्य की अहीर और गुर्जर यदुवंश से उत्पन्न होकर भी बात के पुरोहितों ने द्वेष वश वैश्य और शूद्र मानने की बड़ी भूल की हैं ।
और वैश्य शूद्र मानना शास्त्र सम्मत व युक्ति- युक्त नहीं हैं क्यों कि पद्मपुराण सृष्टि खण्ड अग्निपुराण और नान्दी -उपपुराण आदि में वेदों की अधिष्ठात्री देवी गायत्री नरेन्द्र सेन आभीर की कन्या हैं जिसे गूजर और अहीर दौनों समान रूप से अपनी कुल देवी मानते हैं ।
जिस गायत्री मन्त्र के वाचन से ब्राह्मण स्वयं को तथा भी दूसरों को पवित्र और ज्ञानवान बनाने का अनुष्ठान करता है वह गायत्री एक अहीर नरेन्द्र सेन की कन्या है ।
जब शास्त्रों में ये बात है ते फिर
अहीर तो ब्राह्मणों के भी पूज्य हैं
फिर षड्यन्त्र के तहत किस प्रकार अहीर शूद्र और वैश्य हुए ।
वास्तव में जिन तथ्यों का अस्तित्व नहीं उनको उद्धृत करना भी महा मूढ़ता ही है ।
इस लिए अहीर यादव या गोप आदि विशेषणों से नामित यादव कभी शूद्र नहीं हो सकते हैं और यदि इन्हें किसी पुरोहित या ब्राह्मण का संरक्षक या सेवक माना जाए तो भी युक्ति- युक्त बात नहीं
क्यों ज्वाला प्रसाद मिश्र अपने ग्रन्थ जाते भाष्कर में आभीरों को ब्राह्मण लिखते हैं ।
परन्तु नारायणी सेना आभीर या गोप यौद्धा जो अर्जुन जैसे महारथी यौद्धा को क्षण-भर में परास्त कर देते हैं ।
क्या ने शूद्र या वैश्य माने जाऐंगे
सम्पूर्ण विश्व की माता गो को पालन करने वाले वाले वैश्य या शूद्र माने जाऐंगे
किस मूर्ख ने ये विधान बनाया ?
हम इस आधार हीन बातों और विधानों को सिरे से खारिज करते हैं ।
इसी लिए यादवों ने वर्ण व्यवस्था को खण्डित किया और षड्यन्त्र कारी पुरोहितों को दण्डित भी किया ।
यादव भागवत धर्म का स्थापन करने वाले थे ।
जहाँ सारे कर्म काण्ड और वर्ण व्यवस्था आदि का कोई महत्व व मान्यता नहीं थी ।
प्रस्तुति करण - यादव योगेश कुमार "रोहि" 8077160219
"ते कृष्णस्य परीवारा ये जना: व्रजवासिन: ।
पशुपालस्तथा विप्रा बहिष्ठाश्चेति ते त्रिथा। ६।।
अलबरूनी नेन तहकीक ए हिन्द के पाँचवें चेप्टर में
नन्द को कभी अही तो कहीं गूजर
और जाट भी बताया है यह बात दशवीं सदी के समकक्ष है ....
परन्तु आज भले ही गूर्जर संघ के रूमें अनेक कबीलों का रूप है जाट भी सघ है जिसमें घोसी अहीर हीर जैसे गोत्र उनकी पूर्व कालिक एकरूपता के चिन्ह है ...
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