उपाध्याय -------औझा --------और अन्तिम रूप झा
ये उपाध्याय वेद वेदांग को शुल्क लेकर पढ़ानेवाला अध्यापक और ब्राह्मणों का एक भेद था कभी 'परन्तु
कालान्तरण इनकी श्रृद्धा में मनन का अथवा ज्ञान का अभाव हो गया देवों को भूत-प्रेत आदि के रूप में झाड़ने वाले व्यक्ति, सयाने ये बन गये और तन्त्र मन्त्र के रूप में यौनाचार का विधान भी बनाये ताकि वासना तृप्ति हो
ब्राह्मणों की एक जाति उपाध्याय, है जो प्राकृत अपभ्रंश भाषा में क्रमश उवज्झाओ, उवज्झाअ, ओज्झाय] रूप में विकसित हुआ।
ये पूर्वाँचल में सरजूपारी,( सरयूपारीण) मैथिल और गुजराती ब्राह्मणों की एक जाति को समेत्य करता है
औझा भूत प्रेत झाड़नेवाले ।
सयाने को कहते हैं
ये लोग हद से ज्यादा अन्धभक्त और अय्याश भी होते हैं
भए जीउँ बिनु तनाउत ओझा ।
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