ओ३म् की व्युत्पत्ति---- मूलक व्याख्या ......
ओ३म् शब्द की व्युत्पत्ति----
एक वैश्विक विश्लेषण -- यादव योगेश कुमार 'रोहि'
के द्वारा ......
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ओ३म् की अवधारणा द्रविडों की सांस्कृतिक अभिव्यञ्जना है ।
कैल्ट जन जाति के धर्म साधना के रहस्य मय अनुष्ठानों में इसी कारण से आध्यात्मिक और तान्त्रिक क्रियाओं को प्रभावात्मक बनाने के लिए ओघम् (ogham) शब्द का दृढता से उच्चारण विधान किया जाता था !
यह बात है कई सहस्राब्दी पूर्व की ...
कि उनका विश्वास था ! कि इस प्रकार आउमा(Ow- ma ) अर्थात् जिसे भारतीय देव संस्कृतियों के अनुयायी आर्यों ने ओ३म् रूप में साहित्य और कला के ज्ञान के उत्प्रेरक और रक्षक के रूप में प्रतिष्ठित किया था वह ओ३म् प्रणवाक्षर नाद- ब्रह्म स्वरूप है।
आर्य्य शब्द असुर संस्कृतियों के सन्निकट
अधिक है अत: उसे देव संस्कृतियों का जातिगत विशेषण न मानो ..
प्राचीन भारतीय देव संस्कृतियों की मान्यताओं के अनुसार सम्पूर्ण भाषा की आक्षरिक सम्पत्ति ( syllable prosperity ) यथावत् रहती है
इस ओ३म्' के उच्चारण प्रभाव से ।।।
...ओघम् का मूर्त प्रारूप (🌞) सूर्य के आकार या सादृश्य पर था ...
जैसी कि प्राचीन पश्चिमीय संस्कृतियों की मान्यताऐं भी हैं ... वास्तव में ओघम् (ogham )से बुद्धि उसी प्रकार नि:सृत होती है .
जैसे सूर्य से उसका प्रकाश 🌞☀⚡☀⚡⛅☁प्राचीन मध्य मिश्र के लीबिया प्रान्त में तथा थीब्ज में यही आमोन् रा ( ammon - ra ) के रूप ने था।
..जो वस्तुत: भारतीय मिथकों में ओ३म् -रवि के तादात्मय रूप में प्रस्तावित है।
.. आधुनिक अनुसन्धानों के अनुसार भी अमेरिकीय अन्तरिक्ष यान - प्रक्षेपण संस्थान के वैज्ञानिकों ने भी सूर्य में अजस्र रूप से निनादित ओ३म् प्लुत स्वर का श्रवण किया है ।
-रवि संज्ञा रौति इति -रवि से व्युत्पन्न है ।
अर्थात् सूर्य के विशेषण ओ३म्'और -रवि ध्वनित अनुकरण मूलक हैं।
सैमेटिक -- सुमेरियन हिब्रू आदि संस्कृतियों में अोमन् शब्द आमीन के रूप में है .. तथा रब़ का अर्थ .नेता तथा महान होता हेै !
जैसे रब्बी यहूदीयों का धर्म गुरू है .. अरबी भाषा में..रब़ -- ईश्वर का वाचक है .अमोन तथा रा प्रारम्भ में पृथक पृथक थे .. दौनों सूर्य सत्ता के वाचक थे ।
..मिश्र की संस्कृति में ये दौनों कालान्तरण में एक रूप होकर अमॉन रॉ के रूप में अत्यधिक पूज्य हुए
.. क्यों की प्राचीन मिश्र के लोगों की मान्यता थी कि ..अमोन -- रॉ.. ही सारे विश्व में प्रकाश और ज्ञान का कारण है, मिश्र की परम्पराओ से ही यह शब्द मैसोपोटामिया की सैमेटिक हिब्रु परम्पराओं में प्रतिष्ठित हुआ जो क्रमशः यहूदी ( वैदिक यदुः ) के वंशज इन्हीं से ईसाईयों में आमेन ( Amen ) तथा अ़रबी भाषा में यही आमीन् !! (ऐसा ही हो ) होगया है इतना ही नहीं जर्मन आर्य ओ३म् का सम्बोधन omi /ovin या के रूप में अपने ज्ञान के देव वॉडेन ( woden) के लिए सम्बोधित करते करते थे जो भारतीयों का बुध ज्ञान का देवता था इसी बुधः का दूसरा सम्बोधन ouvin ऑविन् भी था
यही woden अंग्रेजी मेंgoden बन गया था ..
जिससे कालान्तर में गॉड(god )शब्द बना है जो फ़ारसी में ख़ुदा के रूप में प्रतिष्ठित हैं ! सीरिया की सुर संस्कृति में यह शब्द ऑवम् ( aovm ) हो गया है ।
वेदों में ओमान् शब्द बहुतायत से रक्षक ,के रूप में आया है ।
भारतीय संस्कृति में मान्यता है कि शिव ( ओ३ म) ने ही पाणिनी को ध्वनि समाम्नाय के रूप में चौदह माहेश्वर सूत्रों की वर्णमाला प्रदान की !
जिससे सम्पूर्ण भाषा व्याकरण का निर्माण हुआ *******"****************************
पाणिनी पणि अथवा ( phoenici) पुरोहित थे जो मेसोपोटामिया की सैमेटिक शाखा के लोग थे ! ये लोग द्रविडों से सम्बद्ध थे !
वस्तुत: यहाँ इन्हें द्रुज संज्ञा से अभिहित किया गया था ... ...द्रुज जनजाति ...प्राचीन इज़राएल .. जॉर्डन ..लेबनॉन में तथा सीरिया में आज तक प्राचीन सांस्कृतिक मान्यताओं को सञ्जोये हुए है .. .द्रुजों की मान्यत थी कि आत्मा अमर है तथा..पुनर्जन्म .. कर्म फल के भोग के लिए होता है ।
...
..ठीक यही मान्यता बाल्टिक सागर के तटवर्ति druid द्रयूडों पुरोहितों( prophet,s )में प्रबल रूप में मान्य थी ! केल्ट ,वेल्स ब्रिटॉनस् आदि ने इस वर्णमाला को द्रविडों से ग्रहण किया था !
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... द्रविड अपने समय के सबसे बडे़ द्रव्य - वेत्ता और तत्व दर्शी थे ! जैसा कि द्रविड नाम से ध्वनित होता है द्रविड द्रव + विद -- समाक्षर लोप से द्रविड ...
...मैं योगेश कुमार रोहि भारतीय सन्दर्भ में भी इस शब्द पर कुछ व्याख्यान करता हूँ ! जो संक्षिप्त ही है ।
ऊँ एक प्लुत स्वर है जो सृष्टि का आदि कालीन प्राकृतिक ध्वनि रूप है जिसमें सम्पूर्ण वर्णमाला समाहित है !! इसके अवशेष एशिया - माइनर की पार्श्ववर्ती आयोनिया ( प्राचीन यूनान ) की संस्कृति में भी प्राप्त हुए है यूनानी आर्य ज्यूस और पॉसीडन ( पूषण ) की साधना के अवसर पर अमोनॉस ( amono)
इसी प्रकार प्राचीन सेल्टिक सभ्यता के दिशा-निर्देशकों को 'द्रविड' (Druids) के नाम से अभिहित किया जाता है।
भारत के ब्राम्हणों में एक वर्ग द्राविड़ कहलाता है (देखें- ब्राह्मणों का वर्गीकरण 'पंचगौड़' एवं 'पंचद्राविड़', पृष्ठ ४३)। 'द्रविड़' (अथवा 'द्रुइड') का सेल्टिक भाषा में अर्थ है- '
ओक या बलूत के जंगलों में घूमने वाले उपदेशक के रूप में कार्य करते थे।
ये द्रूड प्राचीन सेल्टिक सभ्यता के संरक्षक थे। जनता के सभी वर्ग उनका बड़ा सम्मान करते थे।
वे ही सार्वजनिक अथवा व्यक्तिगत, सभी प्रकार के विवादों में न्यायकर्ता भी थे।
वे अपराधियों को दंड भी दे सकते थे। वे युद्घ में भाग नहीं लेते थे, न सरकार को कोई कर देते थे।
न्यायधीश के कपड़ों में एक द्रविड़
वर्ष में एक बार ये द्रविड़ आल्पस पर्वत के उत्तर-पूर्व में किसी पवित्र स्थल पर इकट्ठा होते थे।
ये वार्षिक सम्मेलन प्राचीनत्तम फ्रॉन्स( गाल (Gaul) देश में होते, जहाँ अनातोलिया से लेकर आयरलैंड तक के द्रविड़ इकट्ठा होकर अपना प्रमुख चुनतेथे।
वहीं सब प्रतिनिधियों के बीच नीति विषयक बातें होती थीं।
समस्त विवादों का, जो उन्हें सौंपे जाते, वे निर्णय करते थे।
ये वैसे ही सम्मेलन थे जैसे भारत में कुंभ मेले के अवसर पर होते थे।
वे साधारणतया अपने कर्मकांड एवं पठन-पाठन बस्ती से दूर निर्जन जंगल में करते।
द्रविड़ आत्मा की अनश्वरता और पुनर्जन्म पर विश्वास करते थे और मानते थे कि आत्मा एक शरीर से नवीन कलेवर में प्रवेश करती है।
'
' इन देवमूर्तियों का वे पूजन भी करते थे। आंग्ल विश्वकोश के अनुसार- 'बहुत से विद्वान यह विश्वास करते हैं कि भारत के हिंदु ब्राह्मण और पश्चिमी प्राचीन सभ्यता के सेल्टिक 'द्रविड़' एक ही हिंदु-यूरोपीय पुरोहित वर्ग के अवशेष हैं।'
सेल्टिक सभ्यता के द्रविड़ (द्रुइड) के बारे में विद्वानों ने प्रारंभिक खोजों में 'उनके समय, उनकी दंतकथाओं, मान्यताओं, धारणाओं आदि के अध्ययन से यही निष्कर्ष निकाला कि वे भारत से आए दार्शनिक पुरोहित थे। वे भारत के ब्राह्मण थे, जो उत्तर में साइबेरिया ('शिविर' देश) से लेकर सुदूर पश्चिम आयरलैंड तक पहुँचे, जिन्होंने भारतीय सभ्यता को पश्चिम के सुदूर छोर तक पहुँचाया।' श्री पुरूषोत्तम नागेश ओक ने अपनी पुस्तक 'वैदिक विश्व-राष्ट्र का इतिहास' (देखें- अध्याय २३ और २४), जहाँ से ऊपर के उद्घरण हैं, में सेल्टिक सभ्यता के 'द्रविड़' (द्रुइड) का बड़ा विशद वर्णन उस विषय के शोधग्रंथों के आधार पर किया है।
उन्होंने 'द्रविड़' भारत के उन ज्ञानी तथा साहसी पुत्रों को कहा जो सारे संसार में 'आर्य द संस्कृति के अधीक्षक' बनकर फैले।
उनके अनुसार-'सारे मानवों को सम्मिलित करने वाले वैदिक समाज के विश्व भर के अधीक्षक, निरीक्षक, व्यवस्थापक, जो ऋषि-मुनि वर्ग होता था, उसे 'द्रविड़' की संज्ञा मिली थी।
वैदिक सामाजिक जीवन सुसंगठित रूप से चलता रहे, यह उनकी जिम्मेदारी थी।ये 'त्रिमूर्ति' को मानते थे।
एक, ब्रह्मा जिन्होंने विश्व का निर्माण किया; दूसरे, ब्रेश्चेन (Braschen) यानी विष्णु, जो विश्व के पालनकर्ता हैं और तीसरे, महदिया (Mahaddia) यानी महादेव, जो संहारकर्ता हैं।
वे उस समाज के पुरोहित, अध्यापक, गुरू, गणितज्ञ, वैज्ञानिक, पंचांगकर्ता, खगोल ज्योतिषी, भविष्यवेत्ता, मंत्रद्रष्टा, वंदपाठी, धार्मिक क्रियाओं की परिपाटी चलाने वाले; प्रयश्चित आदि का निर्णय लेने वाले गुरूजन थे।... यूरोप में उस शब्द का उच्चारण 'द्रुइड' रूढ़ है।'
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हमने खोजा केवल उन्हीं तथ्यों को
जो दुनियाँ के लिए अनजाने थे ।
सदीयों से जीवन्त रहे तहजीवों में ।
बुनियाद बन कर के सब जीवों में ।
उनके कुद में ही अपने मायने थे ।
भारतीय पुराणों में जिस ओ३म् (ऊँ) शब्द के उच्चारण करने पर शूद्र अथवा निम्न समझी जाने वाली जन-जातियाें की जिह्वा का रूढि वादी परम्पराओं के अनुगामी पुरोहितों उच्छेदन तक कर देते थे ।
और जिस ओ३म् शब्द का प्रादुर्भाव उसी द्रविड संस्कृति से हुआ हो !
जिनके लिए इसका शब्द के उच्चारण पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया हो ।
आज हम उस शब्द की जन्म-कुण्डली खोलेंने का प्रयास करेंगे -
सर्वप्रथम हम यह प्रकाशिका कर दें कि द्रविड शब्द यूरोपीय इतिहास में ड्रयूड् (Druid) है ।
और यही लोग प्राचीनत्तम विश्व में द्रव- ( जल, वायु आकाश , अग्नि और वनस्पति तथा वन्य संस्कृतियों के सूत्रधार व जन्म दिया थे ।
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सर्व-प्रथम हम विचार करते हैं ओ३म् शब्द के विकास की पृष्ठ-भूमि पर...
विश्व इतिहास के सांस्कृतिक अन्वेषणों के उपरान्त कुछ तथ्यों से हम अवगत हुए ।
कैल्ट जन जाति के धर्म साधना के रहस्य मय धार्मिक अनुष्ठानों में इसी कारण से आध्यात्मिक और तान्त्रिक क्रियाओं को प्रभावात्मक बनाने के लिए ओघम् (OGHUM )शब्द का दृढता से उच्चारण विधान किया जाता था ।
तो इसी के समानान्तरण मिश्र , असीरिया , असीरिया स्वीडन या जर्मनिक ,आयोनिया , हिब्रूू , सुमेरियन, बैबीलोनियन आदि में भी कुछ अन्तर के साथ यह शब्द विद्यमान था ।
ड्रयूडस(Druids) संस्कृति के विश्वास करने वालों का मत था ! कि इस प्रकार आउ-मा (Ow- ma) अर्थात् जिसे भारतीय आर्यों ने ओ३म् रूप में साहित्य ,कला और ज्ञान के उत्प्रेरक और रक्षक के रूप में प्रतिष्ठित किया है ...
अर्थात् प्राचीन भारतीय देव संस्कृति के अनुयायीयों की मान्यताओं के अनुसार सम्पूर्ण भाषा की आक्षरिक सम्पत्ति ( syllable prosperity ) यथावत् रहती है !
ये ड्रयूडस् पुरोहित भी इसी प्रकार की मान्यता स्थापित किए हुए थे।
प्राचीनत्तम फ्रॉन्स की संस्कृतियों में ओघम् का मूर्त प्रारूप 🌞 सूर्य के आकार के सादृश्य पर था ।
जैसा कि प्राचीन पश्चिमीय संस्कृतियों की मान्यताऐं भी हैं
वास्तव में ओघम् (ogham )से बुद्धि उसी प्रकार नि:सृत होती है जैसे सूर्य से उसका प्रकाश ।
प्राचीन मध्य मिश्र के लीबिया प्रान्त में तथा थीब्ज में भी द्रविड संस्कृति का यही ऑघम शब्द (आमोन् -रा) ( ammon - ra ) के रूप में था ।
जो वस्तुत: ओ३म् -रवि के तादात्मयी
रूप में प्रस्तावित है ..
किसी भी संस्कृत के प्रतिष्ठित वैय्याकरणिक के द्वारा
कवि शब्द की व्युत्पत्ति ध्वनि-विवृति मूलक रूप में नहीं की गयी ।
'परन्तु हमारी मान्यता तो रवि( सूर्य) के धवनि अनुकरण मूलक रूप पर थी ।
आधुनिक अनुसन्धानों के अनुसार भी अमेरिकीय अन्तरिक्ष यान - प्रक्षेपण संस्थान (नासा)
के वैज्ञानिकों ने भी सूर्य में अजस्र रूप से निनादित ओ३म् प्लुत स्वर का श्रवण किया है ।
बाकयी हर गतिशील चीज में ध्वनि होना स्वाभाविक ही है।
सुमेरियन एवं सैमेटिक हिब्रू आदि परम्पराओं में ..
रब़ अथवा रब्बी शब्द का अर्थ - नेता तथा महान एवं गुरू होता हेै !
जैसे रब्बी यहूदीयों का धर्म गुरू है ..
अरबी भाषा में रब़ -- ईश्वर का वाचक है ।
जैसा कि
रब्बुल अल अलामीन का मतलब " ईश्वर सम्पूर्ण संसार का रक्षक है ।
अमीन शब्द (अरबी:जुबान में ( آمین) या आमीन का शाब्दिक अर्थ है "ऐसा हो सकता है" या "ऐसा है"।
यह स्वीकृति बोधक अव्यय है ।
मुसलमानों में शब्द आमिन का प्रयोग आमतौर पर उसी शब्द के साथ किया जाता है जिसका अर्थ है "मुझे जवाब दें", और वाक्यांश "इलाही अमीन"
(अरबी: الهی آمین; अर्थ: हे मेरे भगवान! मुझे जवाब दें)
आधुनिक काल में यह सैमेटिक परम्पराओं के अनुयायी लोगों के बीच बहुत आम है।
इसका उपयोग अंग्रेजी में अमेन के रूप में किया जाता है (अर्थ: तो यह हो)।
वस्तुत: अमेन हिब्रू बाइबिल में वर्णित रूप है ।
शिया शरीयत में, प्रार्थनाओं में कुरान 1 (सूर अल-हम्द) को पढ़ने के बाद "अमीन" न कहने पर कि प्रार्थना को शरीयती तौर पर अमान्य कर दिया गया है।
हिब्रू परम्पराओं से ही यह अरब की रबायतों में कायम हुआ।
हिब्रू में, शब्द अमीन को सबसे पहले "सही" और "सत्य" नामक विशेषण के रूप में उपयोग किया जाता था,।
लेकिन यशायाह की किताब के मुताबिक इसका उपयोग संज्ञा के रूप में किया जाता था।
यह शब्द फिर हिब्रू में एक invariant ऑपरेटर (अर्थात्, "वास्तव में" और "निश्चित रूप से")के अर्थ में बदल गया।
इसका उपयोग बाइबिल में 30 बार और तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के यूनानी अनुवाद में 33 बार किया गया है।
इतिहास की पहली पुस्तक वेद और किंग्स बुक्स जैसी पहली पुस्तक में इस शब्द की घटना से पता चलता है।
कि यह शब्द यहूदी प्रार्थनाओं और अनुष्ठानों में चौथी शताब्दी ईसा पूर्व से पहले भी इस्तेमाल किया गया था।
प्राचीन यहूदी परम्परा में, इस शब्द का उपयोग शुरुआत या प्रार्थना के अन्त में किया गया था।
प्रार्थनाओं, और भजनों के अन्त में इसकी पुनरावृत्ति प्रासंगिक सामग्रियों की पुष्टि और समर्थन दोनों में थी ,
और उम्मीद की अभिव्यक्ति थी कि हर कोई अमेन का उल्लेख करने के दौरान अभ्यास के आशीर्वाद साझा कर सकता है।
तलमूद और अन्य यहूदी परम्पराओं की अवधि में, यह महत्वपूर्ण था कि विभिन्न स्थितियों में शब्द का उपयोग कैसे किया जाए, और ऐसा माना जाता था कि भगवान किसी भी प्रार्थना के लिए "आमीन" कहता है जो उसे सम्बोधित किया जाता है।
ईसाई धर्म में---------
यहूदी परम्पराओं को ईसाई चर्चों में अपना रास्ता मिला। "अमीन" शब्द का प्रयोग नए नियम में 119 बार किया गया था, जिनमें से 52 मामले यहूदी धर्म में इसका उपयोग कैसे किया जाता है।
नए नियम के माध्यम से, शब्द दुनिया की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में प्रवेश किया।
शब्द, अमीन, जैसा कि नए नियम में प्रयोग किया गया है, उसमें इसके चार अर्थ हैं -
पावती और अनुमोदन; एक प्रार्थना में समझौता या भागीदारी, और किसी के प्रतिज्ञा की अभिव्यक्ति।
दिव्य प्रतिक्रिया का अनुरोध, जिसका अर्थ है:
"हे भगवान! स्वीकार करें या जवाब दें!"
अर्थात् एवं अस्तु !
एक प्रार्थना या प्रतिज्ञा की पुष्टि, जिसका अर्थ है: "तो यह हो" (आज शब्द को दो अर्थों को इंगित करने के लिए प्रार्थनाओं के अंत में उपयोग किया जाता है)।
एक विशेषता या यीशु मसीह का नाम ।
अरबी में
चूंकि इस्लाम के उद्भव से पहले यहूदी धर्म और नाज़रेन ईसाई धर्म दोनों अरब प्रायद्वीप में अनुयायी थे,
इसलिए यह संभव है कि मक्का और मदीना समेत अरब, इससे परिचित थे, हालांकि जहिल्या काल की कविताओं में इसका कोई निशान नहीं मिला है।
यह शब्द कुरान में नहीं होता है, लेकिन प्रारंभिक मुस्लिम शब्द से निश्चित रूप से परिचित थे।
पैगंबर मुहम्मद ने शब्द का प्रयोग किया, लेकिन ऐसा लगता है कि शुरुआती मुस्लिम शब्द के अर्थ के बारे में निश्चित नहीं थे, क्योंकि पैगंबर ने उन्हें एक स्पष्टीकरण और शब्द की व्याख्या दी (यह कहकर कि "अमीन एक है अपने वफादार सेवकों पर दिव्य डाक टिकट ")।
और 'अब्द अल्लाह बी. अल-अब्बास " ने शब्द का व्याकरणिक विवरण देने की कोशिश की।
कुरान के निष्कर्षों में
यह शब्द कुरान 10:88 और 89 के उत्थानों में उल्लिखित है।
कुरान के लगभग सभी exegetes के अनुसार, जब पैगंबर मूसा (ए) फिरौन को शाप दिया, वह और उसके भाई, भविष्यवक्ता हारून (ए) , शब्द अमेन उद्धृत किया।
'परन्तु मूसा यहूदियों के पैगम्बर थे ।
मूसा प्रार्थना में अमीन का हवाला देते हुए कहते हैं।
सुन्नी मुस्लिम इस शब्द का हवाला देते हैं, अमीन, प्रार्थना में कुरान 1 को कविता के जवाब के रूप में पढ़ने के बाद, "हमें सही मार्ग दिखाएं", (कुरान, 1: 6)।
यदि उपासक अपनी प्रार्थना व्यक्तिगत रूप से कहता है, तो वे स्वयं को इस शब्द का हवाला देते हैं, और यदि वे एक मंडली प्रार्थना कहते हैं, जब प्रार्थना के नेता कुरान 1 को पढ़ना समाप्त कर देते हैं,
तो सभी अनुयायियों ने एक साथ उद्धृत किया है।
शिया न्यायविदों का कहना है कि प्रार्थना में अमीन का हवाला देते हुए यह अमान्य है, क्योंकि यह प्रार्थना में एक विधर्मी अभ्यास है जिसे पैगंबर की परंपरा में पुष्टि नहीं माना जाता है।
टिप्पणियाँ
↑ यशायाह 65:16
↑ धन्य है यहोवा, इस्राएल का परमेश्वर, अनन्तकाल से अनन्तकाल तक। "तब सभी लोगों ने कहा"
आमीन! "1 पुरानी
_______
हैमेटिक शाखा मिश्र में
.अमोन तथा रा प्रारम्भ में पृथक पृथक थे ..
दौनों सूर्य सत्ता के वाचक थे
..मिश्र की संस्कृति
में ये दौनों कालान्तरण में एक रूप होकर अमॉन रॉ के रूप में
अत्यधिक पूज्य था ..
क्यों की प्राचीन मिश्र के लोगों की मान्यता थी कि ..अमोन -- रॉ.. ही सारे विश्व में प्रकाश और ज्ञान का कारण
है मिश्र की परम्पराओ से ही यह शब्द मैसोपोटामिया की सैमेटिक हिब्रु परम्परओं में प्रतिष्ठित हुआ जो क्रमशः यहूदी ( वैदिक यदुः ) के वंशज थे !!
....इन्हीं से ईसाईयों में Amen तथा अ़रबी भाषा में यही आमीन् !! (ऐसा ही हो ) होगया है इतना ही नहीं जर्मन आर्य ओ३म् का सम्बोधन omi /ovin या के रूप में अपने ज्ञान के देव वॉडेन ( woden) के लिए सम्बोधित करते करते थे .....
.इसी वुधः का दूसरा सम्बोधन (ouvin )ऑविन् भी था ..
...यही !woden )अंग्रेजी में(goden) बन गया था जिससे कालान्तर में गोड(god )शब्द बना है।
जो फ़ारसी में ख़ुदा के रूप में हैं !
सीरिया की सुर संस्कृति में यह शब्द ऑवम् ( aovm ) हो गया है ।
वेदों में ओमान् शब्द बहुतायत से रक्षक ,के रूप में आया है ।
भारतीय संस्कृति में मान्यता है कि शिव ( ओ३म् ) ने ही पाणिनी को ध्वनि निकाय के रूप में चौदह माहेश्वर सूत्रों की वर्णमाला प्रदान की !
......
जिससे सम्पूर्ण भाषा व्याकरण का निर्माण हुआ पाणिनी पणि अथवा ( phoenici) पुरोहित थे जो मेसोपोटामिया की सैमेटिक शाखा के लोग थे !
ये लोग द्रविडों से सम्बद्ध थे !
वस्तुत: यहाँ इन्हें द्रुज संज्ञा से अभिहित किया गया था ...
...द्रुज जनजाति ...प्राचीन इज़राएल ..
जॉर्डन ..लेबनॉन में तथा सीरिया में
आज तक प्राचीन सांस्कृतिक मान्यताओं को सञ्जोये हुए है ..
.द्रुजों की मान्यत थी कि आत्मा अमर है ..पुनर्जन्म .. कर्म फल के भोग के लिए होता है ।
..ठीक यही मान्यता बाल्टिक सागर के तटवर्ति Druid द्रयूडों में पुरोहितों के रूप में थी !
केल्ट वेल्स ब्रिटॉनस् आदि ने
इस वर्णमाला को द्रविडों से ग्रहण किया था !
एक द्रविड अपने समय के सबसे बडे़ द्रव्य - वेत्ता और तत्व दर्शी थे !
जैसा कि द्रविड नाम से ध्वनित होता है !
...मैं यादव योगेश कुमार 'रोहि'
भारतीय सन्दर्भ में भी इस शब्द पर
कुछ व्याख्यान करता हूँ !
जो संक्षिप्त ही है ऊँ एक प्लुत स्वर है जो सृष्टि का आदि कालीन प्राकृतिक ध्वनि रूप है जिसमें सम्पूर्ण वर्णमाला समाहित है !!
इसके अवशेष एशिया - माइनर की पार्श्ववर्ती आयोनिया ( प्राचीन यूनान ) की संस्कृति में भी प्राप्त हुए है ।
यूनानी आर्य ज्यूस और पॉसीडन ( पूषण ) की साधना के अवसर पर अमोनॉस ( amonos) के रूप में ओमन् अथवा ओ३म् का उच्चारण करते थे !!!!!!!
भारतीय सांस्कृतिक संन्दर्भ में भी ओ३म् शब्द की व्युत्पत्ति परक व्याख्या आवश्यक है वैदिक ग्रन्थों विशेषतः ऋग्वेद मेंओमान् के रूप में भी है संस्कृत के वैय्याकरणों के अनुसार ओ३म् शब्द धातुज ( यौगिक) है जो अव् घातु में मन् प्रत्यय करने पर बना है ।
पाणिनीय धातु पाठ में अव् धातु के अनेक अर्थ हैं ।
अव्-- --१ रक्षक २ गति ३ कान्ति४ प्रीति ५ तृप्ति ६ अवगम ७ प्रवेश ८ श्रवण ९ स्वामी १० अर्थ ११ याचन १२ क्रिया १३ इच्छा १४ दीप्ति १५ अवाप्ति १६ आलिड्.गन १७ हिंसा १८ आदान १९ भाव वृद्धिषु ( १/३९६/ भाषायी रूप में ओ३म् एक अव्यय ( interjection) है जिसका अर्थ है -- ऐसा ही हो ! ( एवमस्तु !) it be so इसका अरबी़ तथा हिब्रू रूप है आमीन् ।
लौकिक संस्कृत में ओमन् ( ऊँ) का अर्थ--- औपचारिकपुष्टि करण अथवा मान्य स्वीकृति का वाचक है ---
मालती माधव ग्रन्थ में १/७५ पृष्ट पर-- ओम इति उच्यताम् अमात्यः" तथा साहित्य दर्पण --- द्वित्तीयश्चेदोम् इति ब्रूम १/""
ईरानीयों 'ने भी ओ३म्' शब्द को अपने मिथकों में स्थापित किया ।
प्रारम्भिक रूप में मानव-संस्कृतियों का मूल स्रोत अथवा उत्स कभी एक था
इसे यह बात भी सिद्ध होती है ।
हमारा यह संदेश प्रेषण क्रम अनवरत चलता रहेगा **** मैं यादव योगेश कुमार रोहि निवेदन करता हूँ !! कि इस महान संदेश को सारे संसार में प्रसारित कर दो !!! आमीन् ..............
योगेश कुमार रोहि के द्वारा अनुसन्धानित
भारतीय ही नहीं अपितु विश्व -इतिहास का यह एक नवीनत्तम् सांस्कृतिक शोध है |
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