राजपूत --जो अहीरों के विषय में नहीं जानते उनके लिए ये संदेश-भारत तथा यूरोप पश्चिमीय एशिया की लगभग सभी मुख्य भाषाओं में "आर्य" शब्द यौद्धा अथवा वीर के अर्थ में प्राचीनत्तम काल से व्यवहृत होता रहा है।
नि: सन्देह यह आर्य शब्द किसी जन-जाति विशेष का सूचक नहीं कभी नहीं था ।
क्योंकि असीरियन संस्कृति में में भी अार्य शब्द अाल्ल
तथा आला के रूप में प्राप्त है ।
पारसीयों के पवित्र धर्म ग्रन्थ अवेस्ता ए जैंद में अनेक स्थलों पर आर्य शब्द आया है ।
जैसे: अवेस्ता ए जैंद के व्याख्या भाग सिरोज़ह प्रथम के यश्त संख्या (9) पर, तथा सिरोज़ह प्रथम के यश्त संख्या (25) पर है ।
अवेस्ता में आर्य शब्द का अर्थ होता है । 👇
तीव्र वाण (Arrow) चलाने वाला यौद्धा से है।
—यश्त संख्या (9 )में स्वयं ईरान शब्द आर्यन् शब्द का तद्भव रूप है !..
ईरानी असुर संस्कृति के उपासक असीरियननों से सम्बन्धित लोग थे।
परन्तु भारतीय देव संस्कृति के लोग ---जो अपने युद्ध निपुणता के कारण स्वयं को वीर: अथवा आर्य: कहते थे। आर्य शब्द केवल गुण वाचक विशेषण था ।
विदित हो कि असुर अथवा ईरानीयों के देव-संस्कृति के अनुयायी चिर सांस्कृतिक प्रतिद्वन्द्वी थे।
ये ईरानी असुर संस्कृति के उपासक आर्य थे।
देव शब्द का अर्थ भी ईरानियों की भाषाओं में निम्न व दुष्ट अर्थों में व्यवहृत है ।👇
…परन्तु अग्नि के अखण्ड उपासक आर्य तो ईरानी भी थे ।
स्वयं ऋग्वेद में असुर शब्द उच्च और पूज्य अर्थों में है :-जैसे "वृहद् श्रुभा असुरो वर्हणा कृतः" ऋग्वेद १/५४/३. तथा और भी महान देवता वरुण के रूप में
"त्वम् राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नृन पाहि असुर त्वं अस्मान् —ऋ० १/१/७४
तथा प्रसाक्षितः असुर यामहि –ऋ० १/१५/४.
ऋग्वेद में और भी बहुत से स्थल हैं जहाँ पर असुर शब्द सर्वोपरि शक्तिवान् ईश्वर का वाचक है |
पारसीयों ने असुर शब्द का उच्चारण अहुर के रूप में किया है |
अहु- प्राण (अहुर-प्राणवान)
अतः आर्य विशेषण असुर और देव दौनो ही संस्कृतियों के उपासकों का था ।
यौद्धा होने के कारण ।
आर्य अरि शब्द मूलक है ।
अरि युद्ध का अधिष्ठात्री देवता था ।
--जो विभिन्न संस्कृतियों में काल भेद तथा स्थान व जलवायु के प्रभावात्मक भेद से विभिन्न उच्चारण रूपों में व्यवहृत हुआ ।
यूनानी पुराणों में वर्णित आरीस् युद्ध का अधिष्ठात्री देवता है 👇
Ares (Esriːz); प्राचीन यूनानी: [árɛːs]) युद्ध का ग्रीक देवता है। वह ज़ीउस और हेरा के पुत्ररूप में वर्णित है ।
बारह ओलंपिक में से एक का नाम आरीस है
👇
पौराणिक इतिहास कार "हेसियोड" अपने ग्रन्थ थियोगोनी के पृष्ठ संख्या 921में (लोएब क्लासिकल लाइब्रेरी नंबरिंग); तथा यूनानी महाकाव्य इलियड, 5.890-896 में आरीस् का वर्णन है।
इसके विपरीत, आरिस् का रोमन समकक्ष रूव मार्स हे जो जूनो देवी से ओविद (फास्टी 5.229-260) के अनुसार पैदा हुआ था।
ग्रीक साहित्य में, आरीस् अक्सर अपनी बहन के विपरीत युद्ध के भौतिक या हिंसक और अदम्य पहलू का प्रतिनिधित्व करता है।
बख्तरबंद एथेना, जिसके कार्यों में बुद्धि की देवी के रूप में सैन्य रणनीति और जनशक्ति शामिल होती है।
वाल्टर बर्कर्ट, ग्रीक धर्म (ब्लैकवेल, 1985, 2004 पुनर्मुद्रण, मूल रूप से जर्मन में 1977 प्रकाशित),
पीपी 141; विलियम हैनसेन, क्लासिकल मिथोलॉजी: ए गाइड टू द मिथिकल वर्ल्ड ऑफ़ द ग्रीक्स एंड रोमन्स (ऑक्सफ़ोर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस, 2005), पृष्ठ 113।
एरेस (Ares)
युद्ध का देवता के प्रतीक
तलवार, भाला, ढाल, हेलमेट, रथ, ज्वलन्त मशाल, कुत्ता, सूअर, गिद्ध
व्यक्तिगत जानकारी
बातचीत करना
कामोद्दीपक और विभिन्न अन्य
बच्चे
इरोट्स (इरोस और एन्टेरोस), फोबोस, डीमोस, फेलगीस, हरमोनिया, एनियालियोस, थ्रैक्स, ओएनोमॉस, एमेज़ोन और एड्रेस्टिया
माता-पिता
ज़ीउस और हेरा
रोमन समकक्ष
मार्स
पहले ऋग्वेद में अरि: को देव वाचक रूप में देखें -🌸
आर्यों का आदि देव अरि है ।
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आर्यों के आदि उपास्य अरि: है ।
जब देव सुर संस्कृति का आगमन स्वीडन से हुआ जिसे प्राचीन नॉर्स माइथॉलॉजी में स्वेरिगी (Sverige) कहा गया है जो उत्तरी ध्रुव प्रदेशों पर स्थित है ।
जहाँ छ मास का दिवस तथा छ मास की दीर्घ रात्रियाँ नियमित होती हैं ।
भू- मध्य रेखीय क्षेत्रों में आगमन काल में देव संस्कृति के अनुयायीयों का युद्ध कैल्ट जन जाति के पश्चात् असीरियन लोगों से सामना हुआ था ।
वस्तुत: आर्य विशेषण जर्मनिक जन-जातियाँ ने अपने वीर और यौद्धा पुरुषों के लिए रूढ़ कर लिया ।
--जो प्रारम्भ में मेसोपोटामिया की जन-जाति के देवता एल (El) या इलु का वाचक था ।
जर्मन मूल की भाषाओं में यह शब्द अरीर ( Arier)
तथा (Arisch) के रूप में एडॉल्फ हिट्लर के समय तक रूढ़ रहा ।
यही जर्मनिक जन-जाति के आर्य भारतीय आर्यों के पूर्वज हैं ।
परन्तु एडॉल्फ हिट्लर ने भारतीय आर्यों को
वर्ण-संकर कहा था।
जब आर्य सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के सम्पर्क में आये ।
तो इन्होंने अनेक देवताओं को अपनी देव- सूची में समायोजित किया
जैसे विष्णु जो सुमेरियन में (बियस-नु) के रूप मे हिब्रूओं के कैन्नानाइटी देव डेगन (Dagan)
नर-मत्स्य देव विसार: संस्कृत भाषा में मछली का वाचक है ।
जो यूरोपीय भाषा परिवार में फिश (Fish)
के रूप में विद्यमान है ।
देव संस्कृति के उपासक जर्मनिक जन-जातियाँ से सम्बद्ध आर्यों का युद्ध असीरियन लोगों से दीर्घ काल तक हुआ , असीरी वर्तमान ईराक-ईरान (मैसॉपोटमिया) की संस्कृतियों के पूर्व प्रवर्तक हैं ।ये सैमेटिक थे ।
असुरों की भाषाओं में अरि: शब्द अलि अथवा इलु हो गया है ।
परन्तु इसका सर्व मान्य रूप एलॉह (elaoh) तथा एल (el) ही हो गया है ।
ऋग्वेद के अष्टम् मण्डल के 51 वें सूक्त का 9 वीं ऋचा में अरि: शब्द का ईश्वर के विशेषण रूप में वर्णन करता है !
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"यस्यायं विश्व आर्यो दास: शेवधिपा अरि:
तिरश्चिदर्ये रुशमे पवीरवि तुभ्येत् सोअज्यते रयि:|९
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अर्थात्-- जो अरि इस सम्पूर्ण विश्व का तथा आर्य और दास दौनों के धन का पालक अथवा रक्षक है ,
जो श्वेत पवीरु के अभिमुख होता है ,
वह धन देने वाला ईश्वर तुम्हारे साथ सुसंगत है ।
ऋग्वेद के दशम् मण्डल सूक्त( २८ )
ऋचा संख्या (१)
देखें- यहाँ भी अरि: देव अथवा ईश्वरीय सत्ता का वाचक है ।👇
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" विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम ,
ममेदह श्वशुरो ना जगाम ।
जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात्
स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् ।।
ऋग्वेद--१०/२८/१
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ऋषि पत्नी कहती है ! कि सब देवता निश्चय हमारे यज्ञ में आ गये (विश्वो ह्यन्यो अरिराजगाम,)
परन्तु मेरे श्वसुर नहीं आये इस यज्ञ में (ममेदह श्वशुरो ना जगाम )यदि वे आ जाते तो भुने हुए जौ के साथ सोमपान करते (जक्षीयाद्धाना उत सोमं पपीयात् )और फिर अपने घर को लौटते (स्वाशित: पुनरस्तं जगायात् )
प्रस्तुत सूक्त में अरि: देव वाचक है ।
देव संस्कृति के उपासक आर्यों ने और असुर संस्कृति के उपासक आर्यों ने अर्थात् असुरों ने अरि: अथवा अलि की कल्पना युद्ध के अधिनायक के रूप में की थी।
सुमेरियन और बैबीलॉनियन तथा असीरियन संस्कृतियों के पूर्वजों के रूप में ड्रयूड (Druids )अथवा द्रविड संस्कृति से सम्बद्धता है ।
जिन्हें हिब्रू बाइबिल में द्रुज़ कैल्डीयन आदि भी कहा है
ये असीरियन लोगों से ही सम्बद्ध हैं।
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हजरत इब्राहीम अलैहि सलाम को मानने वाली
धार्मिक परम्पराओं में मान्यता है ,कि
कुरान से पहले भी अल्लाह की तीन और किताबें थीं , जिनके नाम तौरेत , जबूर और इञ्जील हैं ।
, इस्लामी मान्यता के अनुसार अल्लाह ने जैसे मुहम्मद साहब पर कुरान नाज़िल की थी ,उसी तरह हजरत मूसा को तौरेत , दाऊद को जबूर और ईसा को इञ्जील नाज़िल की थी
. यहूदी सिर्फ तौरेत और जबूर को और ईसाई इन तीनों में आस्था रखते हैं ,क्योंकि स्वयं कुरान में कहा है ,
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1-कुरान और तौरेत का अल्लाह एक है:
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"कहो हम ईमान लाये उस चीज पर जो ,जो हम पर भी उतारी गयी है , और तुम पर भी उतारी गयी है ,
और हमारा इलाह और तुम्हारा इलाह एक ही है ।
हम उसी के मुस्लिम हैं " (सूरा -अल अनकबूत 29:46)
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"We believe in that which has been revealed to us and revealed to you. And our God and your God is one; and we are Muslims [in submission] to Him."(Sura -al ankabut 29;46 )"وَإِلَـٰهُنَا وَإِلَـٰهُكُمْ وَاحِدٌ وَنَحْنُ لَهُ مُسْلِمُونَ "
इलाहुना व् इलाहकुम वाहिद , व् नहनु लहु मुस्लिमून "
यही नहीं कुरान के अलावा अल्लाह की किताबों में तौरेत इसलिए महत्वपूर्ण है
अब और देखें--- आर्य शब्द के विषय में
उधर यूरोप में द्वित्तीय महा -युद्ध का महानायक ऐडोल्फ हिटलर( Adolf-Hitler )स्वयं को शुद्ध नारादिक (nordic )आर्य कहता था।
और स्वास्तिक का चिन्ह अपनी युद्ध ध्वजा पर अंकित करता था ; विदित हो कि जर्मन भाषा में स्वास्तिक को हैकैन- क्रूज. (Haken- cruez) कहते थे !
…जर्मन वर्ग की भाषाओं में आर्य शब्द के बहुत से रूप हैं । ऐरे (Ehere) जो कि जर्मन लोगों की एक सम्माननीय उपाधि है।
..जर्मन भाषाओं में ऐह्रे (Ahere) तथा (Herr) शब्द स्वामी अथवा उच्च व्यक्तिों के वाचक थे ।
आयर लेण्ड की भाषा में आयर (ire )शब्द का अर्थ स्वतन्त्र (आवारा) भी है ।
तमिल शब्द अय्यर और संस्कृत शब्द आभीर शब्दों स्वातन्त्र्तय वीरत्व व घुमक्कड़ता का भाव निहित है ।
और इसी हर्र (Herr) शब्द से यूरोपीय भाषाओं में प्रचलित सर (Sir )
…..शब्द का विकास हुआ ।
---जो पुल्लिंग में मैडम (madam) शब्द के समानान्तर प्रयुक्त होता है ।
और आरिश (Arisch) शब्द तथा आरिर् (Arier) स्वीडिश ,डच आदि जर्मन भाषाओं में श्रेष्ठ और वीरों का विशेषण है ।
इधर एशिया माइनर के पार्श्व वर्ती यूरोप के प्रवेश -द्वार ग्रीक अथवा आयोनियन भाषाओं में भी आर्य शब्द आर्च (Arch) तथा आर्क (Arck) तथा (Eirean) के रूप मे है |
हिब्रू बाइबिल में अबीर (Abeer) शब्द वीर अथवा यौद्धा अथवा सामन्त का वाचक है।
जिसका सम्बन्ध हिब्रू क्रिया अ- बिर ( ए-बिर ) से है । संस्कृत भाषा आगात अभीर शब्द का विकास भी वीर का हिब्रू करण है
क्योंकि ए (e) उपसर्ग (Prifix) का सेमेटिक भाषाओं स्वत: आगम है।
जैसे संस्कृत भाषा का ब्रह्मा हिब्रू ए-ब्राह्म संस्कृत बल: हिब्रू ए-विल संस्कृत लघु ग्रीक ए-लखुस आदि रूप ..
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ग्रीक मूल का शब्द हीरों (Hero) भी वेरोस् अथवा वीरः शब्द का ही विकसित रूप है l
और वीरः शब्द स्वयं आर्य शब्द का प्रतिरूप है ।
वीर शब्द का विकास पहले हुआ फिर उसी से आर्य शब्द का विकास
जर्मन वर्ग की भाषा ऐंग्लो -सेक्शन में वीर शब्द वर( Wer) के रूप में है ।
तथा रोम की सांस्कृतिक भाषा लैटिन में यह वीर शब्द (Vir) के रूप में है ।
आर्य शब्द का अपेक्षा वीर शब्द प्राचीनत्तम है ।
ईरानी आर्यों की संस्कृति में भी वीर शब्द आर्य शब्द का विशेषण है यूरोपीय भाषाओं में भी आर्य और वीर शब्द समानार्थक रहे हैं ।
हम यह स्पष्ट करदे कि आर्य शब्द किन किन संस्कृतियों में प्रचीन काल से आज तक विद्यमान है |
लैटिन वर्ग की भाषा आधुनिक फ्रान्च में…(Arien) तथा (Aryen )दौनों रूपों में …इधर दक्षिणी अमेरिक की ओर पुर्तगाली तथा स्पेन भाषाओं में यह शब्द आरियो (Ario) के रूप में है पुर्तगाली में इसका एक रूप ऐरिऐनॉ (Ariano) भी है और फिन्नो-उग्रियन शाखा की फिनिश भाषा में (Arialainen) ऐरियल-ऐनन के रूप में है ।
रूस की उप शाखा पॉलिस भाषा में (Aryika) के रूप में है।
कैटालन भाषा में (Ari )तथा (Arica) दौनो रूपों में है स्वयं रूसी भाषा में आरिजक (Arijec) अथवा आर्यक के रूप में है इधर पश्चिमीय एशिया की सेमेटिक शाखा आरमेनियन तथा हिब्रू और अरबी भाषा में क्रमशः (Ariacoi )तथा(Ari )तथा हिब्रू और अरबी भाषा में क्रमशः (Ariacoi )तथा(Ari )तथा अरबी भाषा मे हिब्रू प्रभाव से म-अारि. M(ariyy तथा अरि दौनो रूपों में.. तथा ताज़िक भाषा में ऑरियॉयी (Oriyoyi ) रूप. …इधर बॉल्गा नदी के मुहाने वुल्गारियन संस्कृति में आर्य शब्द ऐराइस् (Arice) के रूप में है ।
वेलारूस की भाषा में (Aryeic )तथा (Aryika) दौनों रूप में..पूरबी एशिया की जापानी कॉरीयन और चीनी भाषाओं में बौद्ध धर्म के प्रभाव से आर्य शब्द (Aria–iin)के रूप में है ।
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अनुभावास्तु तत्र स्युः सहायान्वेषणादयः ।
सञ्चारिणस्तु धृतिमतिगर्वस्मृतितर्करोमञ्चाः ।
स च दानधर्मयुद्धैर्दयथा च
समन्वितश्चतुर्द्धा स्यात् स च वीरः ।
दानवीरो धर्म- वीरा दयावीरो
भुद्धवीरश्चेति चतुर्विधः” साहित्य दर्पण ३ पृ० ।
मूल भारोपीय शब्द (wihros) विहिरॉस: - जिसके दो रूप विकसित हुए हिरॉस् तथा विर संस्कृत: - वीरा, अवेस्तान: - वीरा, लैटिन: - vir,
Umbrian: - viru, लिथुआनियाई: - वेरस, लातवियाई: - वीर, टोचिरियन: - wir, जर्मन: - wer / Werwolf, गॉथिक: - वायर, पुराना नॉर्स: -वर, अंग्रेजी: -वेर / वेयरवोल्फ, ओल्ड फ्रुशियन: -विर आयरिश: - fer / fear, वेल्श: -ग्राऊर, गोलियाँ: -इइरो-, अल्बेनियाई: - बुरे, कुर्द: -मिरो...
वीरम्, क्ली, (अज् + “स्फायितञ्चिवञ्चीति ।
उणा० १ । १३ । इत्यादिना रक् ।
अजे- र्वीभावः । वीर + अच् वा )
श्रृँङ्गी । नडः । इति मेदिनी । रे, ६७ ॥ मरिचम् । पुष्कर- मूलम् । काञ्जिकम् । उशीरम् । आरूकम् । इति राजनिर्घण्टः ॥ वीरशब्दो मेदिन्यां पव- र्गीयवकारादौ दृष्टोऽपि वीरधातोरन्तःस्थवका- रादौ दर्शनादत्र लिखितः ॥
वीरः, पुं, (वीरयतीति ।
वीर विक्रान्तौ + पचा- द्यच् । यौद्वा, विशेषेण ईरयति दूरीकरोति शत्रून् ।
वि + ईर + इगुपधात् कः ।
यद्वा, अजति क्षिपति शत्रून् ।
अज + स्फायितञ्चीत्यादिना रक् ।
अजेर्व्वीः शौर्य्यविशिष्टः । तत्पर्य्यायः । शूरः २ विक्रान्तः ३ । इत्यमरः कोश । २ । ८ । ७७ ॥
गण्डीरः ४ तरस्वी ५ । इति जटाधरः ॥ (यथा, महाभारते । १ । १४१ । ४५ । “मृगराजो वृकश्चैव बुद्धिमानपि मूषिकः ।
निर्ज्जिता यत्त्वया वीरास्तस्माद्वीरतरो भवान् ॥
” यथा च ऋग्वेदे । १ । ११४ । ८ ।
“वीरान्मानो रुद्रभामितो वधीर्हविष्यन्तः सद्मि त्वा हवामहे ॥
” “वीरान् वीक्रान्तान् ।” इति सायणः ॥ पुत्त्रः । यथा, ऋग्वेदे । ५ । २० । ४ । “वीरैः स्याम सधमादः ॥” “वीरैः पुत्त्रैश्च सधमादः सहमाद्यन्तः स्याम तथा कुरु ।” इति तद्भाष्ये सायणः ॥
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परन्तु सुमेरियन हुर्रीयन (हुर्री) शब्द का विकास अवेस्ता में लिखित (हुर) शब्द से है जो संस्कृत (सुर) शब्द का प्रतिरूप है।
अरब़ी मूल में आज़र भी इसी से सम्बन्धित है
यद्यपि ये भी देव संस्कृति से सम्बद्ध थे ।
….. आर्य शब्द के विषय में इतने तथ्य अब तक हमने दूसरी संस्कृतियों से उद्धृत किए हैं।
…. परन्तु जिस भारतीय संस्कृति का प्रादुर्भाव देव संस्कृति से हुआ l
आधुनिक इतिहास कारों ने आर्य शब्द जन-जाति विशेष के अर्थ मे रूढ़ कर दिया है ।
_________________________________________ उस के विषय में हम कुछ कहते हैं ।
विदित हो कि यह समग्र तथ्य" 📖" "यादव योगेश- कुमार 'रोहि' " के शोधों पर आधारित हैं ।
भारोपीय आर्यों के सभी सांस्कृतिक शब्द समान ही हैं ।
जैसा कि निम्न तथ्यों में दिग्दर्शन किया गया है। स्वयं आर्य शब्द का धात्विक-अर्थ :- Rootnal-Mean .."आरम् धारण करने वाला वीर ।
संस्कृत तथा यूरोपीय भाषाओं में आरम् Arrown =अस्त्र तथा शस्त्र धारण करने वाला यौद्धा अथवा वीरः आर्य शब्द की व्युत्पत्ति (Etymology) संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है—अर् धातु के तीन प्राचीनत्तम हैं .. १–गमन करना To go २– मारना to kill ३– हल (अरम्) चलाना (Harrow) मध्य इंग्लिश—रूप Harwe कृषि कार्य करना |
प्राचीन विश्व में सुसंगठित रूप से कृषि कार्य करने वाले प्रथम मानव आर्य ही थे।
इस तथ्य के प्रबल प्रमाण भी हमारे पास हैं ! पाणिनि तथा इनसे भी पूर्व ..कात्स्न्र्यम् धातु पाठ में :-ऋृ (अर्) धातु कृषिकर्मे गतौ हिंसायाम् च..परस्मैपदीय रूप :-ऋणोति अरोति वा अन्यत्र ऋृ गतौ धातु पाठ .३/१६ प० इयर्ति -जाता है l
वास्तव में संस्कृत की अर् धातु का तादात्म्य (identity.) यूरोप की सांस्कृतिक भाषा लैटिन की क्रिया -रूप इर्रेयर Errare =to go से प्रस्तावित है जर्मन भाषा में यह शब्द आइरे irre =togo के रूप में है पुरानी अंग्रेजी में जिसका प्रचलित रूप एर Err है। इसी अर् धातु से विकसित शब्द लैटिन तथा ग्रीक भाषाओं में क्रमशः Araval तथा Aravalis हैं ;
अर्थात् कृषि कार्य.सम्बन्धी देवों की संस्कृति ग्रामीण जीवन मूलक है और कृषि विद्या के जनक देव संस्कृति के आर्य ही थे
…सर्व-प्रथम अपने द्वित्तीय पढ़ाव में मध्य -एशिया में ही कृषि कार्य आरम्भ कर दिया था ।
आर्य स्वभाव से ही युद्ध-प्रिय व घुमक्कड़ थे कुशल चरावाहों के रूप में यूरोप तथा सम्पूर्ण एशिया की धरा पर अपनी महान सम्पत्ति गौओं के साथ कबीलों के रूप में यायावर जीवन व्यतीत करते थे
यहीं से इनकी ग्राम - सभ्यता का विकास हुआ था । अपनी गौओं के साथ साथ विचरण करते हुए जहाँ जहाँ भी ये विशाल ग्रास-मेदिनी (घास के मैदान) देखते और उसी स्थान पर अपना पढ़ाव डाल देते थे ।
संस्कृत तथा यूरोप की सभी भाषाओं में ग्राम शब्द का मूल अर्थ ग्रास-भूमि तथा घास है । __________________________________
जहोवा ,गॉड , ख़ुदा और अल्लाह आदि ईश्वर वाची शब्दों की व्युत्पत्ति वैदिक आर्यों से सम्बद्ध.
विचार विश्लेषण :--यादव योगेश कुमार 'रोहि'
स्पर्धायाम्, शब्दे च ( ह्वयति ह्वयते जुहाव जुहुवतुः जुहुविथ जुहोथ )
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यह्व / YHVH / yod-he-vau-he / יהוה,
--
We find, the above word is perhaps used first time in Rigveda Madala 10, 036/01.
संस्कृत यह्वः (पुं.) / यह्वी (स्त्री.)
ऋग्वेद 1/036/01
प्र वो यह्वं पुरूणां विशां देवयतीनाम् ।
We find, the above word is perhaps used last time in the Rigveda Madala 10, 110/03.
ऋग्वेद 10/110/03
त्वं देवानामसि यह्व होता ...
--
The last mention of यह्व / YHVH /yod-he-vau-he is used as an address to Lord Indra, though Rigveda Mandala 1.164.46 clearly explains all these devatA are different names and forms of the same Lord (Ishvara)
इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान्
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहुः
ऋग्वेद 10/110/03
Accordingly the above mantra in veda categorically defines 'Who' is 'यह्वः (पुं.)' / YHVH / yod-he-vau-he / יהוה,
I strongly feel this the conclusivevidence that puts to rest all further doubt and discussion, / speculation about 'God'.
(त्वं देवानामसि यह्व होता )... अर्थात् तुम देवों में यह्व (YHVH) को बुलाने वाले हो !
The last mention of यह्व / YHVH /yod-he-vau-he is used as an address to Lord Indra, though Rigveda Mandala 1.164.46 clearly explains all these devatA are different names and forms of the same Lord (Ishvara)
इन्द्रं मित्रं वरुणमग्निमाहुरथो दिव्यः स सुपर्णो गरुत्मान्
एकं सद्विप्रा बहुधा वदन्त्यग्निं यमं मातरिश्वानमाहुः
ऋग्वेद 10/110/03
Accordingly the above mantra in veda categorically defines 'Who' is 'यह्वः (पुं.)' / YHVH / yod-he-vau-he / יהוה,
I strongly feel this the conclusivevidence that puts to rest all further doubt and discussion, / speculation about 'God'.
(त्वं देवानामसि यह्व होता )... अर्थात् तुम देवों में यह्व (YHVH) को बुलाने वाले हो !
...
in Sanskrit clearly means that 'यह्वः' is either the priest to 'devata,s' or the one who Himself performed vedika sacrifice especially in Agni / Fire for them.
There are at least more than 30 places in entire Rigveda, where 'यह्वः' finds a mention.
And the first time we find यह्वीः / 'yahwI:' in Rigveda is here -
ऋग्वेद
(1.59.04)
अर्थात् यह्व YHVH शब्द अग्नि का भी वाचक है -
क्योंकि जलती हुई झाड़ियों से मूसा अलैहि सलाम को धर्म के दश आदेश यहोवा से प्राप्त हुए -
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बृहती इव सूनवे रोदसी गिरो होता मनुष्यो3 न दक्षः
स्वर्वते सत्यशुष्माय पूर्वीवैश्वानराय नृतमाय यह्वीः ॥
Obviously, this 'यह्वीः' is in accusative plural case of 'यह्वी' feminine.
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यहोवा वस्तुतः फलस्तीन (इज़राएल)के यहूदीयों का ही सबसे प्रधान व राष्ट्रीय देवता था ।
तथा यहुदह् शब्द का नाम करण यहोवा के आधार पर हुआ ।
यहुदह् शब्द का तादात्म्य वैदिक यदु: से पूर्ण रूपेण प्रस्तावित है ।
परन्तु कालान्तरण में बहुत सी काल्पनिक कथाओं का समायोजन यदु: अथवा यहुदह् के साथ कर दिया गया ।
अतः दो भिन्न व्यक्तित्वों के रूप में यह भासित हुए !
यदु शब्द यज् धातु से उण् प्रत्यय करने पर निर्मित है ।
यदु: ययातिनृपतेः १ ज्येष्ठपुत्रे यस्य वंशे श्रीकृष्णवतारः , तस्य गोत्रापत्यमण् बहुषु तस्य लुक् २-यदुवंश्ये ३- दर्शार्हदेशे आभीर देशे च व० व० हेमचन्द्र कोश ।
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यहोवा शब्द के विषय में हिब्रू बाइबिल में उल्लेख है ।
यहोवा (en:Yahweh) यहूदी धर्म में और इब्रानी भाषा में परमेश्वर का नाम है। यहूदी मानते हैं कि सबसे पहले ये नाम परमेश्वर ने हज़रत मूसा को सुनाया था। ये शब्द ईसाईयों और यहूदियों के धर्मग्रन्थ बाइबिल के पुराने नियम में कई बार आता है।
उच्चारण:--------
स्मरण रखें :--कि यहूदियों की धर्मभाषा इब्रानी (हिब्रू) की लिपि इब्रानी लिपि में केवल व्यञ्जन लिखे जा सकते हैं ,और ह्रस्व स्वर तो बिलकुल ही नहीं।
अतः यह शब्द चार व्यञ्जनों से बना हुआ है : י
(योद) ה (हे) ו (वाओ) ה (हे), या יהוה
अर्थात् :--- (य-ह-व-ह )
इसमें लोग विभिन्न स्वर प्रवेश कराकर इसे विभिन्न उच्चारण देते हैं, जैसे यहोवा, याह्वेह, याह्वेः, जेहोवा, आदि (क्योंकि प्राचीन इब्रानी भाषा लुप्त हो चुकी है)। यहूदि लोग बेकार में ईश्वर (यहोवा) का नाम लेना पाप मानते थे, इसलिये इस शब्द को कम ही बोला जाता था। ज़्यादा मशहूर शब्द था "अदोनाइ" (अर्थात मेरे प्रभु)।
बाइबिल के पुराने नियम / इब्रानी शास्त्रों में "एल" और "एलोहीम" शब्द भी परमेश्वर के लिये प्रयुक्त हुए हैं, पर हैरत की बात ये है कि यहूदी कहते हैं कि वो एक हि ईश्वर को मानते हैं, पर "एलोहीम" शब्द बहुवचन है ! यहोवा ही अल्लाह है।
यहशाहा ४५:१८, में परमेश्वर का सही अर्थ समझाता है।
अर्थ:-------
यहूदी और ईसाई मानते हैं ,कि यहोवा का शब्दिक अर्थ होता है : "मैं हूँ जो मैं हूँ" -- अर्थात स्वयंभू परमेश्वर। जब बाइबल लिखी गयी थी, तब यहोवा यह नाम ७००० बार था। - निर्गमन ३:१५, भजन ८३:१८
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प्रस्तुति-करण यादव योगेश कुमार 'रोहि'
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