रविवार, 28 अक्तूबर 2018

मंगोल और तुर्क तथा राजपूती काल-

यह सत्य है कि  मंगोलिया से आये हुए मुग़ल और  छठवीं सदी में राजस्थान के आबू पर्वत पर अग्नि संस्कार (यज्ञ) के द्वारा राजपूती करण के रूप में परिणति हुए और ब्राह्मणों के धर्म संरक्षक बने विदेशी आक्रामक जो आज स्वयं को  स्वघोषित क्षत्रिय अथवा
ठाकुर भी कहते हैं
क्या आपको विदित है कि ठाकुर शब्द  तुर्को की जमीदारीय उपाधि थी ।
ठाकुर शब्द का विकास हुआ तुर्की तक्वुर शब्द से बारहवीं सदी में !
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ठाकुर शब्द का विकास हुआ ;
तुर्की तक्वुर शब्द से बारहवीं सदी में !
जानिए इसका सम्पूर्ण इतिहास---
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हिन्दी भाषा के मध्य-काल में ठाकुर एक सम्मान सूचक उपाधि रही है ।
और जन-जाति गत रूप में परम्परागतगत रूप में राजपूतों का विशेषण है।
तुर्किस्तान में (तेकुर अथवा टेक्फुर ) परवर्ती सेल्जुक तुर्की राजाओं की उपाधि थी।
बारहवीं सदी में तक्वुर शब्द ही संस्कृत भाषा में ठक्कुर शब्द के रूप में उदिय हुआ ।
संस्कृत शब्दकोशों में इसे
ठक्कुर के रूप में लिखा गया है।
कुछ समय तक ब्राह्मणों के लिए भी इसका प्रयोग किया जाता रहा है ।
क्योंकि ब्राह्मण भी जागीरों के मालिक होते थे ।
जो उन्हें राजपूतों द्वारा दान रूप में मिलता थी।
और आज भी गुजरात तथा पश्चिमीय बंगाल में ठाकुर ब्राह्मणों की ही उपाधि है।
तुर्की ,ईरानी अथवा आरमेनियन भाषाओ का तक्वुर शब्द एक जमींदारों की उपाधि थी ।
समीप वर्ती उस्मान खलीफा के समय का हम इस सन्दर्भों में उल्लेख करते हैं।
कि " जो तुर्की राजा स्वायत्त अथवा अर्द्ध स्वायत्त होते थे ; वे ही तक्वुर अथवा ठक्कुर कहलाते थे "
उसमान खलीफ का समय (644 - 656 ) ई०सन् के समकक्ष रहा है ।
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उस्मान को शिया लोग ख़लीफा नहीं मानते थे।
सत्तर साल के तीसरे खलीफा उस्मान (644-656 राज्य करते रहे हैं) उनको एक धर्म प्रशासक के रूप में निर्वाचित किया गया था।
उन्होंने राज्यविस्तार के लिए अपने पूर्ववर्ती शासकों- की नीति प्रदर्शन को जारी रखा.
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ठाकुर शब्द विशेषत तुर्की अथवा ईरानी संस्कृति
में अफगानिस्तान के पठान जागीर-दारों में प्रचलित था
पख़्तून लोक-मान्यता के अनुसार यही जादौन पठान जाति ‘बनी इस्राएल’ यानी यहूदी वंश की है।
इस कथा की पृष्ठ-भूमि के अनुसार पश्चिमी एशिया में असीरियन साम्राज्य के समय पर लगभग 2800 साल पहले बनी-इस्राएल के दस कबीलों को देश -निकाला दे दिया गया था।
और यही कबीले पख़्तून हैं।
ॠग्वेद के चौथे खंड के 44 वें सूक्त की ऋचाओं में भी पख़्तूनों का वर्णन ‘पृक्त्याकय अर्थात् (पृक्ति आकय) नाम से मिलता है ।
इसी तरह तीसरे खंड का 91 वीं ऋचा में आफ़रीदी क़बीले का ज़िक्र ‘आपर्यतय’ के नाम से मिलता है।
भारत में हर्षवर्धन के उपरान्त कोई भी ऐसा शक्तिशाली राजा नहीं हुआ जिसने भारत के बृहद भाग पर एकछत्र राज्य किया हो।
इस युग मे भारत अनेक छोटे बड़े राज्यों में विभाजित हो गया जो आपस मे लड़ते रहते थे। तथा
इसी समय के शासक राजपूत कहलाते थे ;
तथा सातवीं से बारहवीं शताब्दी के इस युग को राजपूत युग कहा गया है।
राजपूतों के दो विशेषण और हैं ठाकुर और क्षत्रिय
ये ब्राह्मणों द्वारा प्रदत्त उपाधियाँ हैं।
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कर्नल टोड व स्मिथ आदि विद्वानों के अनुसार राजपूत वह विदेशी जन-जातियाँ है ।
जिन्होंने भारत के आदिवासी जन-जातियों पर आक्रमण किया था ; औरअपनी धाक जमाकर कालान्तरण में यहीं जम गये इनकी जमीनों पर कब्जा कर के जमीदार के रूप "
और वही उच्च श्रेणी में वर्गीकृत होकर राजपूत कहलाए
ब्राह्मणों ने इनके सहयोग से अपनी -व्यवस्था कायम की
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"चंद्रबरदाई लिखते हैं कि परशुराम द्वारा क्षत्रियों के सम्पूर्ण विनाश के बाद ब्राह्मणों ने माउंट-आबू पर्वत पर यज्ञ किया व यज्ञ कि अग्नि से चौहान, परमार, प्रतिहार व सोलंकी आदि राजपूत वंश उत्पन्न हुये।
इसे इतिहासकार विदेशियों के हिन्दू समाज में विलय हेतु यज्ञ द्वारा शुद्धिकरण की पारम्परिक घटना के रूप मे देखते हैं "
जितने भी ठाकुर उपाधि धारक हैं वे राजपूत ब्राह्मणों की इसी परम्पराओं से उत्पन्न हुए हैं
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सत्य का प्रमाणीकरण इस लिए भी है कि ठाकुर शब्द तुर्कों की जमींदारीय उपाधि थी ।
संस्कृत ग्रन्थ अनन्त संहिता में श्री दामनामा गोपाल: श्रीमान सुन्दर ठाकुर: का उपयोग भी किया गया है, जो भगवान कृष्ण के संदर्भ में है।
यह समय बारहवीं सदी ही है ।
पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय में श्रीनाथजी के विशेष विग्रह के साथ कृष्ण भक्ति की जाती है।
जिसे ठाकुर जी सम्बोधन दिया गया है ।
पुष्टिमार्गीय सम्प्रदाय का जन्म पन्द्रवीं सदी में हुआ है । और यह शब्द का आगमन बारहवीं सदी में तक्वुर शब्द के रूप में और भारतीय धरा पर इसका प्रवेश तुर्कों के माध्यम से हुआ ।

ये संस्कृत भाषा में प्राप्त जो ठक्कुर शब्द है वह निश्चित रूप से मध्य कालीन विवरण हैं ।
अनन्त-संहिता बाद की है ; इसमें विष्णु के अवतार की देव मूर्ति को भी ठाकुर कह दिया है
सैलजूक़ तुर्को की दास्तान के कुछ तजिकिरें इस प्रकार है ।         👇
सलजूक़​ साम्राज्य अथवा सेल्जूक साम्राज्य (तुर्की: Büyük Selçuklu Devleti; फ़ारसी: دولت سلجوقیان‎, दौलत-ए-सलजूक़ियान​;
अंग्रेज़ी रूप  Seljuq Empire) एक मध्यकालीन तुर्की साम्राज्य था ।
जो सन् 1037 से 1194 ईसवी तक चला।
यह एक बहुत बड़े क्षेत्र पर विस्तृत था जो पूर्व में हिन्दू कुश पर्वतों से पश्चिम में अनातोलिया तक और उत्तर में मध्य एशिया से दक्षिण में फ़ारस की खाड़ी तक फैला हुआ था।
सैलजूक़ लोग मध्य एशिया के स्तेपी क्षेत्र के तुर्की-भाषी लोगों की ओग़ुज़​ शाखा की क़िनिक़​ उपशाखा से उत्पन्न हुए थे। इनकी मूल मातृभूमि अरल सागर के पास थी जहाँ से इन्होनें पहले  ख़ोरासान​ फिर ईरान और फिर अनातोलिया पर क़ब्ज़ा किया।
सलजूक़ साम्राज्य की वजह से ईरान, उत्तरी अफ़्ग़ानिस्तान​, कॉकस और अन्य इलाक़ों में तुर्की संस्कृति का प्रभाव बना और एक मिश्रित ईरानी-तुर्की सांस्कृतिक परम्परा जन्मी।
हिन्दु कुश पर्वतों को पार कर भारत में भी इन लोगों का आगमन हुआ ।
राजपूतों का वैवाहिक सम्बन्ध तुर्को से से तो था ही मुगलों से भी प्रमाणित है ।
चिकित्सा- विज्ञान कहता है कि जब कोई नवजात जन्म लेता है तो उसमें 23 क्रोमोज़ोन (गुण-सूत्र) उसके पिता के होते हैं और 23 क्रोमोज़ोन (गुण-सूत्र)उसकी माता के भी होते हैं।

मुग़लों और राजपुताना के वैवाहिक संबन्धों में मेडिकल साईंस (चिकित्सा- विज्ञान)के इस सिद्धान्त को कम प्रकाशित किया गया ।
और मुगलों को इस देश के आक्रामकों के रूप में लगभग सभी ब्राह्मण इतिहास कारों  स्थापित  कर दिया। परन्तु यहाँ की रूढ़िवादी परम्पराओं और -जाति-व्यवस्था से उत्पन्न विसंगतियों नहीं वर्णित किया ।

यद्यपि आज मुगलों की तहजीब विरासत के तौर पर कहीं कहीं शे है ।परन्तु फिर भी  कुछ हिन्दुत्व का नारा देने वाले स्वयं ही दौगली रवायतों  को अमल कर रहे हैं
जब मुगलों का दौर था । तब
  प्रतिद्वन्द्वी राजपूत जागीरदारों ने पर मुगलों से समझौता करने के लिए मुगलों के हर शहंशाह को अपनी 2-2 , 4-4 बेटियाँ  निकाह रूप में भैंट दीं ,  और मुगलों के  शरीक ए खुसर (श्वशुर)🎀 बनकर यह अपने सीमावर्ती रियासतदारों पर धौंस जमाते रहे।

अकबर के कार्यकाल में  अर्थात 16 वीं सदी में  मुगलों को  राजपूतों ने  लगभग अपनी 34 बेटियों का निकाह किया , जहाँगीर के शासन काल में 7 , शाहजहाँ के शासनकाल में 4 और औरंगज़ेब के शासन काल में 8 और इस तरह मुगलों को 53 राजपूत राजाओं की बेटियों का निकाह नामा कबूल हुआ ।

अर्थात् क्रोमोज़ोन की थियरी जीवविज्ञान के गुण-सूतीय सिद्धान्त के अनुसार  मुगलों की ननिहालें राजपतों के घल ही थे ।क्यों कि उनकी राजपुतानी माताओं का 23 क्रोमोजोम (गुण-सूत्र) उनके रक्त में प्रवाहित था।

इस तरह के विवाह की सबसे पहले शुरुआत की बहमनी सुल्तान फ़िरोजशाह के आक्रमण से घबराए और पराजित हुए देवराय प्रथम (1406-1422 ई.) ने अपनी पुत्री का विवाह फिरोजशाह से करके की और अपनी जान बचाई।

हुमायूँ ने भी एक शादी राजपुताना शौर्य वाले एक राजा की बेटी से की पर उससे मुगल-राजपुताना वंश आगे नहीं बढ़ा और फिर अकबर का ज़माना आ गया और राजपूताना शौर्य वाले राजपूत राजाओं में महान अकबर को दामाद बनाने की होड़ सी लग गयी।

अकबर से 6 राजपूत राजाओं ने अपनी बेटी ब्याही 👇

1- आमेर के राजा भारमल ने अकबर से हार के डर से बेटी जोधा की शादी जनवरी 1562 में अकबर से कर दी।

2- बीकानेर के राजा राय कल्याण सिंह ने अपनी भतीजी का विवाह 15 नवंबर 1570 को उसी अकबर से कर दिया

3- जोधपुर के राजा मालदेव ने अपनी बेटी रुक्मावती को भी अकबर के हवाले कर दिया और अपनी जान और सिंहासन बचाया।

4- नगरकोट के राजा जयचंद ने अपनी बेटी को अकबर के हवाले करके बहादुरी दिखाई और अपने साम्राज्य को बचाया।

5- डुँगुरपुर के राजा रावल हरिराज ने भी अपनी प्रतिष्ठा बढाने के लिए अपनी बेटी नाथीबाई को अकबर से ब्याह दिया।

6- यही अस्त्र मोरता के राजा केशवदास ने भी प्रयोग किया और अपनी बेटी अकबर से ब्याह दी।

यही नहीं मुगलों की अब अगली पीढ़ी में भी राजपूतों ने बेटी देने का सिलसिला जारी रखा और यह एक रश्म अदायगी बन गयी

अकबर-जोधा के 23-23 क्रोमोजोन (गुण-सूत्र) वाली मुगल-राजपुताना सन्तानें जहाँगीर अर्थात् (सलीम) को भी राजपूत राजाओं ने अपनी बेटियाँ खूब समर्पित कीं

1- आमेर के राजा भगवन्ततदास ने अपनी बेटी का विवाह जहाँगीर से किया

2- फिर आमेर का दूसरा राजा जगत सिंह भी अपनी बेटी जहाँगीर से ब्याह दिया

3- उसके बाद ओरछा का राजा रामचंद्र बुंदेला भी अपनी बेटी जहाँगीर के हवाले कर आया।

4-मारवाड़ (जोधपुर) के मोटा राजा उदयसिंह ने भी अपने सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करने के अभिप्राय से अपनी पुत्री मानीबाई का विवाह जहाँगीर के साथ कर दिया।

5- महान अकबर का एक और बेटा था "दनियाल" 2 अक्टूबर 1595 को जोधपुर के राजा रायमल ने अपनी बेटी की शादी अकबर के इस बेटे "दनियाल" से कर दी।

6-अकबर का पोता और जहाँगीर का उसी मिक्स क्रोमोज़ोन वाला बेटा था "परवेज़" , अप्रैल 1624 में जोधपुर के राजा गजसिंह की बहन से जहांगीर के बेटे राजकुमार परवेज की शादी हूई।

7- 1654 में राठौर के राजा अमरसिंह ने भी अपनी बेटी से दाराशिकोह के बेटे सुलेमान से शादी करा दी।

आश्चर्य जनक स्थिति तो यह है कि ..........
इस देश में आज हिन्दूकुश और हिन्दूविरोधी घोषित कर दिए गये औरंगज़ेब जिनकी सगी दादी अर्थात् शाहजहाँ की माँ जगत गोसाई थीं उन हिन्दूकुश और हिन्दूविरोधी औरंगजेब की भी दो पत्नियां राजपूताना गरिमा वाले खानदानों से थीं , और उनसे पैदा हुए बच्चे कई बार बाक़ायदा उत्तराधिकार की जंग में जीते।

यही नहीं हिन्दूविरोधी औरंगजेब ने अपने तीन बेटों की शादी भी राजपुतानी खानदानों वाले घरों की बेटियों से की।

1- 17 नवंबर 1661 को किशनगढ़ के राजा रूपसिंह राठौर की बेटी से औरंगज़ेब के बेटे मो. मुअज़्ज़म की शादी हुई।

2- 5 जुलाई 1678 को आंबेर के राजा जयसिंह के बेटे कीरत सिंह की बेटी से औरंगज़ेब के बेटे मो. आज़म की शादी हुई।

3- शेखावत के राजा अमरसिंह ने 30 जुलाई 1681 को अपनी बेटी से औरंगज़ेब के बेटे कामबख्श की शादी करा दी।

फिर रिश्ते दारों को गालियाँ देना मजाकीय रबायतें हैं
अदा करके रहो !

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