आज से दश सहस्र ( दस हज़ार )वर्ष पूर्व मानव सभ्यता की व्यवस्थित संस्था आर्य जनजाति का प्रस्थान स्वर्ग से भू- मध्य रेखीय स्थल अर्थात् आधुनिक भारत में हुआ था
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यद्यपि अवान्तर यात्रा काल में सुमेरियन तथा बैवीलॉनियन संस्कृतियों से भी साक्षात्कार किया ।
यह समय ई०पू० २५०० से प्रारम्भ होकर ई०पू० १५०० के समकक्ष है।
परन्तु अपनी प्रारम्भिक स्मृतियों को ये सँजोए रखे ।
स्वर्ग और नरक की धारणाऐं सुमेरियन संस्कृति में शियोल और नरगल के रूप में अवशिष्ट रहीं ,
सुमेरियन लोगों ने शियॉल नाम से एक काल्पनिक लोक की कल्पना की थी ।
जहाँ मृत्यु के बाद आत्माऐं जाती हैं ।
और शियोल स्वर्ग जैसी ही था ।
हमारा वर्ण्य- विषय भी विशेषत: स्वर्ग और नरक ही है
.......यह तथ्य अपने आप में यथार्थ होते हुए भी रूढ़िवादी जन समुदाय की चेतनाओं में समायोजित होना कठिन है !!
फिर भी प्रमाणों के द्वारा इस तथ्य को सिद्ध किया गया है ! यह नवीन शोध .....📚📘📝📖..... यादव योगेश कुमार रोहि की दीर्घ कालिक आध्यात्मिक और सांस्कृतिक साधनाओं का परिणाम है .
विश्व इतिहास में यह अब तक का सबसे नवीनत्तम और अद्भुत शोध है !!!
निश्चित रूप से रूढ़िवादी जगत् के लिए यह शोध एक बबण्डर सिद्ध होगा , एेसा हमारा विश्वास है ।
बुद्धि जीवीयों तक यह सन्देश न पहँच पाए इस हेतु के लिए अनिष्ट कारी शक्तियों ने अनेक विघ्न उत्पन्न भी किए हैं । तीन वार यह विघ्न उत्पन्न हुआ है ! पूरा सन्देश डिलीट कर दिया गया है परन्तु वह कारक अज्ञात ही था जिसके द्वारा यह संदेश नष्ट किया गया था ,फिर भी ईश्वर की कृपा निरन्तर बनी रही .।
.........आर्य संस्कृति का प्रादुर्भाव देवों अथवा स्वरों { सुरों} से हुआ है | ये भारतीय संस्कृति की चिर-प्रचीन उद्घोषणा है ।
यह भारतीय संस्कृति की दृढ़ मान्यता है ,कि सुर { स्वर } जिस स्थान { रज} पर पर रहते थे उसे ही स्वर्ग कहा गया है --- "स्वरा: सुरा:वा राजन्ते यस्मिन् देशे तद् स्वर्गम् कथ्यते ".
...जहाँ छःमहीने का दिन और छःमहीने की दीर्घ कालिक दिन और रातें होती हैं वास्तव में आधुनिक समय में यह स्थान स्वीडन { Sweden} है ।
जो उत्तरी ध्रुव पर हैमर पाष्ट के समीप है , प्राचीन नॉर्स भाषाओं में स्वीडन को ही स्वरगे { Svirge } कहा है ..🌓⛅🌓⛅🌑🌚🌝
भारतीय आर्यों को इतना स्मरण था । कि उनके पूर्वज सुर { देव} उत्तरी ध्रुव के समीप स्वेरिगी में रहते थे, इस तथ्य के भारतीय सन्दर्भ भी विद्यमान् हैं बुद्ध के परवर्ती काल खण्ड में लिपि बद्ध ग्रन्थ मनु स्मृति में वर्णित है .......
..अहो रात्रे विभजते सूर्यो मानुष देैविके !! देवे रात्र्यहनी वर्ष प्र वि भागस्तयोःपुनः || अहस्तत्रोदगयनं रात्रिः स्यात् दक्षिणायनं ------ मनु स्मृति १/६७ .........
..अर्थात् देवों और मनुष्यों के दिन रात का विभाग सूर्य करता है , मनुष्य का एक वर्ष देवताओं का एक दिन रात होता है ,अर्थात् छः मास का दिन .जब सूर्य उत्तारायण होता है ! 🌓⚡और छःमास की ही रात्रि होती है जब सूर्य दक्षिणायनहोता है ! प्रकृति का यह दृश्य केवल ध्रुव देशों में ही होता है ! वेदों का उद्धरण भी है .
......📖📝..."अस्माकं वीरा: उत्तरे भवन्ति " हमारे वीर { आर्य } उत्तर में हुए ..इतना ही नहीं भारतीय पुराणों मे वर्णन है कि ...कि स्वर्ग उत्तर दिशा में है !! वेदों में भी इस प्रकार के अनेक संकेत हैं ।
.....मा नो दीर्घा अभिनशन् तमिस्राः ऋग्वेद २/२७/१४।
वैदिक काल के ऋषि उत्तरीय ध्रुव से निम्मनतर प्रदेश बाल्टिक सागर के तटों पर अधिवास कर रहे थे , उस समय का यह वर्णन है ।
......कि लम्बी रातें हम्हें अभिभूत न करें
वैदिक पुरोहित भय भीत रहते थे, कि प्रातः काल होगा भी अथवा नहीं , क्यों कि रात्रियाँ छः मास तक लम्बी रहती थी..रात्रि र्वै चित्र वसुख्युष्ट़इ्यै वा एतस्यै पुरा ब्राह्मणा अभैषुः --- तैत्तीरीय संहित्ता १ ,५, ७, ५ अर्थात् चित्र वसु रात्रि है अतः ब्राह्मण भयभीत है कि सुबह ( व्युष्टि ) न होगी !!! आशंका है . .......
ध्यातव्य है कि ध्रुव बिन्दुओं पर ही दिन रात क्रमशः छः छः महीने के होते है | परन्तु उत्तरीय ध्रुव से नीचे क्रमशः चलने पर भू - मध्य रेखा पर्यन्त स्थान भेद से दिन रात की अवधि में भी भेद हो जाता है ।
. और यह अन्तर चौबीस घण्टे से लेकर छः छः महीने का हो जाता है |
...... अग्नि और सूर्य की महिमा आर्यों को उत्तरीय ध्रुव के शीत प्रदेशों में ही हो गयी थी "
..अतः अग्नि -अनुष्ठान वैदिक सांस्कृतिक परम्पराओं का अनिवार्यतः अंग बन गया
.जो धार्मिक सांस्कृतिक परम्पराओं के द्वारा यज्ञ के रूप में रूढ़ हो गया है ...
.अग्निम् ईडे पुरोहितम् यज्ञस्य देवम् ऋतुज्यं होतारं रत्नधातव ...ऋग्वेदऋग्वेद १/१/१ ........
सम्पूर्ण ऋग्वेद में अग्नि के लिए २००सूक्त हैं ।
अग्नि और वस्त्र आर्यों की अनिवार्य आवश्यकताएें थी |
वास्तव में तीन लोकों का तात्पर्य पृथ्वी के तीन रूपों से ही था |
उत्तरीय ध्रुव उच्चत्तम स्थान होने से स्वर्ग है !
जैसा कि जर्मन आर्यों की मान्यता थी ।
.....उन्होंने स्वेरिकी या स्वेरिगी को अपने पूर्वजों का प्रस्थान बिन्दु माना ।
यह स्थान आधुनिक स्वीडन { Sweden} ही था |
प्राचीन नॉर्स भाषाओं में स्वीडन का ही प्राचीन नाम स्वेरिगे { Sverige } है !
यह स्वेरिगे Sverige .} देव संस्कृति का आदिम स्थल था, वास्तव में स्वेरिगे (Sverige )..शब्द के नाम करण का कारण भी उत्तर- पश्चिम जर्मनीय आर्यों की स्वीअर { Sviar } नामकी जन जाति थी ।
विदित हो कि वाल्मीकि-रामायण मे सुर शब्द की व्युत्पत्ति भी यूरोपीय स्वीअर जर्मनिक जन-जातियाँ की संस्कृति से प्रेरित है ।
" सुरा प्रति ग्रहाद् देवा: सुरा: इति अभिश्रुता:
.अतः स्वेरिगे शब्द की व्युत्पत्ति भी सटीक है Sverige is The region of sviar ....This is still the formal Names for Sweden in old Swedish Language..Etymological form ....Svea ( स्वः + Rike - Region रीजन अर्थात् रज = स्थान .. तथा शासन क्षेत्र | संस्कृत तथा ग्रीक /लैटिन शब्द लोक के समानार्थक है ....... "रज् प्रकाशने अनुशासने च"पुरानी नॉर्स Risa गौथ भाषा में Reisan अंग्रेजी Rise .. पाणिनीय धातु पाठ .देखें ...लैटिन फ्रेंच तथा जर्मन वर्ग की भाषाओं में लैटिन ...Regere = To rule अनुशासन करना ..इसी का present perfect रूप Regens ,तथ regentis आदि हैं Regence = goverment राज प्रणाली .. जर्मनी भाषा में Rice तथा reich रूप हैं !! पुरानी फ्रेंच में Regne .,reign लैटिन रूप Regnum = to rule ..... संस्कृत लोक शब्द लैटिन फ्रेंच आदि में Locus के रूप में है जिसका अर्थ होता है प्रकाश और स्थान ..तात्पर्य स्वर अथवा सुरों ( आर्यों ) का राज ( अनुशासन क्षेत्र ) ही स्वर्ग स्वः रज ..समाक्षर लोप से सान्धिक रूप हुआ स्वर्ग !
स्वर्ग उत्तरीय ध्रुव पर स्थित पृथ्वी का वह उच्चत्तम भू - भाग है जहाँ छःमास का दिन और छःमास की दीर्घ रात्रियाँ होती हैं भौगोलिक तथ्यों से यह प्रमाणित हो गया है दिन रात की एसी दीर्घ आवृत्तियाँ केवल ध्रुवों पर ही होती हैं इसका कारण पृथ्वी अपने अक्ष ( धुरी ) पर २३ १/२ ° अर्थात् तैईस सही एक बट्टे दो डिग्री अंश दक्षिणी शिरे पर झुकी हुई है | अतः उत्तरीय शिरे पर उतनी ही उठी हुई है ! और भू- मध्य स्थल दौनो शिरों के मध्य में है ..पृथ्वी अण्डाकार रूप में सूर्य का परिक्रमण करती है जो ऋतुओं के परिवर्तन का कारण है अस्तु ..स्वर्ग को ही संस्कृत के श्रेण्य साहित्य में पुरुः और ध्रुवम् भी कहा है पुरुः शब्द प्राचीनत्तम भारोपीय शब्द है ********** जिसका ग्रीक / तथा लैटिन भाषाओं में Pole रूप प्रस्तावित है ** पॉल का अर्थ हीवेन Heaven या Sky है Heaven = to heave उत्थान करना उपर चढ़ना ।
संस्कृत भाषा में भी उत्तर शब्द यथावत है जिसका मूल अर्थ है अधिक ऊपर।
Utter-- Extreme = अन्तिम उच्चत्तम विन्दु ।
अपने प्रारम्भिक प्रवास में स्वीडन ग्रीन लेण्ड ( स्वेरिगे ) आदि स्थलों परआर्य लोग बसे हुए थे । , यूरोपीय भाषा में भी इसी अर्थ को ध्वनित करता है ।
हम बताऐं की नरक भी यहीं स्वीलेण्ड ( स्वर्ग) के दक्षिण में स्थित था ।----------
Narke ( Swedish pronunciation) is a swedish traditional province or landskap situated in Sviar-land in south central ...sweden
नरक शब्द नॉर्स के पुराने शब्द नार( Nar )
से निकला है, जिसका अर्थ होता है - संकीर्ण अथवा तंग narrow
ग्रीक भाषा में नारके Narke तथा narcotic जैसे शब्दों का विकास हुआ ।
ग्रीक भाषा में नारके Narke शब्द का अर्थ जड़ ,सुन्न ( Numbness, deadness है ।
संस्कृत भाषा में नड् नल् तथा नर् जैसे शब्दों का मूल अर्थ बाँधना या जकड़ना है ।
इन्हीं से संस्कृत का नार शब्द जल के अर्थ में विकसित हुआ ।
संस्कृत धातु- पाठ में नी तथा नृ धातुऐं हैं आगे ले जाने के अर्थ में - नये ( आगे ले जाना ) नरयति / नीयते वा इस रूप में है ।
अर्थात् गतिशीलता जल का गुण है ।
उत्तर दिशा के वाचक नॉर्थ शब्द नार मूलक ही है
क्योंकि यह दिशा हिम और जल से युक्त है ।
भारोपीय धातु स्नर्ग *(s)nerg- To turn, twist
अर्थात् बाँधना या लपेटना से भी सम्बद्ध माना जाता है
परन्तु जकड़ना बाँधना ये सब शीत की गुण क्रियाऐं हैं ।
अत: संस्कृत में नरक शब्द यहाँ से आया और इसका अर्थ है --- वह स्थान जहाँ जीवन की चेतनाऐं जड़ता को प्राप्त करती हैं ।
वही स्थान नरक है ।
निश्चित रूप से नरक स्वर्ग ( स्वीलेण्ड)या स्वीडन के दक्षिण में स्थित था !
स्वर्ग का और नरक का वर्णन तो हमने कर दिया
परन्तु भारतीय संस्कृति में जिसे स्वर्ग का अधिपति
माना गया उस इन्द्र का वर्णन न किया जाए तो
पाठक- गण हमारे शोध को कल्पनाओं की उड़ान
और निर् धार ही मानेंगे ----
अत: हम आपको ऐसा अवसर ही प्रदान नहीं करेंगे
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यूरोपीय पुरातन कथाओं में इन्द्र को एण्ड्रीज (Andreas)
रॉधामेण्टिस (Rhadamanthys) से सम्बद्ध था ।
रॉधमेण्टिस ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र और मिनॉस (मनु) का भाई था ।
ग्रीक पुरातन कथाओं में किन्हीं विद्वानों के अनुसार एनियस (Anius) का पुत्र एण्ड्रस( Andrus)
के नाम से एण्ड्रीज प्रायद्वीप का नामकरण हुआ ..जो अपॉलो का पुजारी था ।
परन्तु पूर्व कथन सत्य है ।
ग्रीक भाषा में इन्द्र शब्द का अर्थ
शक्ति-शाली पुरुष है ।
जिसकी व्युत्पत्ति- ग्रीक भाषा के ए-नर (Aner)
शब्द से हुई है ।
जिससे एनर्जी (energy) शब्द विकसित हुआ है।
संस्कृत भाषा में अन् श्वसने प्राणेषु च
के रूप में धातु विद्यमान है । जिससे प्राण तथा अणु जैसे शब्दों का विकास हुआ...
कालान्तरण में संस्कृत भाषा में नर शब्द भी इसी रूप से व्युत्पन्न हुआ....
वेल्स भाषा में भी नर व्यक्ति का वाचक है ।
फ़ारसी मे नर शब्द तो है ।
परन्तु इन्द्र शब्द नहीं है ।
वेदों में इन्द्र को वृत्र का शत्रु बताया है ।
जिसे केल्टिक माइथॉलॉजी मे ए-बरटा ( Abarta )
कहा है ।
जो दनु और त्वष्टा परिवार का सदस्य है ।
इन्द्रस् आर्यों का नायक अथवा वीर यौद्धा था ।
भारतीय पुरातन कथाओं में त्वष्टा को इन्द्र का पिता बताया है ।
शम्बर को ऋग्वेद के द्वित्तीय मण्डल के
सूक्त १४ / १९ में कोलितर कहा है पुराणों में इसे दनु
का पुत्र कहा है ।
जिसे इन्द्र मारता है ।
ऋग्वेद में इन्द्र पर आधारित २५० सूक्त हैं ।
यद्यपि कालान्तरण मे आर्यों अथवा सुरों के नायक को ही इन्द्र उपाधि प्राप्त हुई ...
अत: कालान्तरण में भी जब आर्य भू- मध्य रेखीय भारत भूमि में आये ... जहाँ भरत अथवा वृत्र की अनुयायी व्रात्य ( वारत्र )नामक जन जाति पूर्वोत्तरीय स्थलों पर निवास कर रही थी ...
जो भारत नाम का कारण बना ...
इन से आर्यों को युद्ध करना पड़ा ...
भारत में भी यूरोप से आगत आर्यों की सांस्कृतिक मान्यताओं में भी स्वर्ग उत्तर में है ।
और नरक दक्षिण में है । स्मृति रूप में अवशिष्ट रहीं ...
और विशेष तथ्य यहाँ यह है कि नरक के स्वामी यम हैं
यह मान्यता भी यहीं से मिथकीय रूप में स्थापित हुई ..
नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में नारके का अधिपति यमीर को बताया गया है ।
यमीर यम ही है ।
हिम शब्द संस्कृत में यहीं से विकसित है
यूरोपीय लैटिन आदि भाषाओं में हीम( Heim)
शब्द हिम के लिए यथावत है।
नॉर्स माइथॉलॉजी प्रॉज-एड्डा में यमीर (Ymir)
Ymir is a primeval being , who was born from venom that dripped from the icy - river ......
earth from his flesh and from his blood the ocean , from his bones the hills from his hair the trees from his brains the clouds from his skull the heavens from his eyebrows middle realm in which mankind lives"
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(Norse mythology prose adda)
अर्थात् यमीर ही सृष्टि का प्रारम्भिक रूप है।
यह हिम नद से उत्पन्न , नदी और समुद्र का अधिपति हो गया ।
पृथ्वी इसके माँस से उत्पन्न हुई ,इसके रक्त से समुद्र और इसकी अस्थियाँ पर्वत रूप में परिवर्तित हो गयीं इसके वाल वृक्ष रूप में परिवर्तित हो गये ,मस्तिष्क से बादल और कपाल से स्वर्ग और भ्रुकुटियों से मध्य भाग जहाँ मनुष्य रहने लगा उत्पन्न हुए ...
ऐसी ही धारणाऐं कनान देश की संस्कृति में थी ।
वहाँ यम को यम रूप में ही ..नदी और समुद्र का अधिपति माना गया है।
जो हिब्रू परम्पराओं में या: वे अथवा यहोवा हो गया
उत्तरी ध्रुव प्रदेशों में ...
जब शीत का प्रभाव अधिक हुआ तब नीचे दक्षिण की ओर ये लोग आये जहाँ आज बाल्टिक सागर है,
यहाँ भी धूमिल स्मृति उनके ज़ेहन ( ज्ञान ) में विद्यमान् थी ।
बाल्टिक सागर के तट वर्ती प्रदेशों पर दीर्घ काल तक क्रीडाएें करते रहे .पश्चिमी बाल्टिक सागर के तटों पर इन्हीं आर्यों ने मध्य जर्मन स्केण्डिनेवीया द्वीपों से उतर कर बोल्गा नदी के द्वारा दक्षिणी रूस .त्रिपोल्जे आदि स्थानों पर प्रवास किया आर्यों के प्रवास का सीमा क्षेत्र बहुत विस्तृत था ।
आर्यों की बौद्धिक सम्पदा यहाँ आकर विस्तृत हो गयी थी 🐌🌠🌚🌝मनुः जिसे जर्मन आर्यों ने मेनुस् Mannus कहा आर्यों के पूर्व - पिता के रूप में प्रतिष्ठित थे !
मेन्नुस mannus थौथा (त्वष्टा)--- (Thautha ) की प्रथम सन्तान थे !
मनु के विषय में रोमन लेखक टेकिटस
(tacitus) के अनुसार--
Tacitus wrote that mannus was the son of tuisto and
The progenitor of the three germanic tribes ---ingeavones--Herminones and istvaeones ....
This Thesis is researched by the full message series Yadav Yogesh Kumar 'Rohi'.
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in ancient lays, their only type of historical tradition they celebrate tuisto , a god brought forth from the earth they attributeto him a son mannus, the source and founder of their people and to mannus three sons from whose names those nearest the ocean are called ingva eones , those in the middle Herminones, and the rest istvaeones some people inasmuch as anti quality gives free rein to speculation , maintain that there were more tribal designations-
Marzi, Gambrivii, suebi and vandilii-__and that those names are genuine and Ancient Germania
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Chapter 2
ग्रीक पुरातन कथाओं में मनु को मिनॉस (Minos)कहा गया है ।
जो ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र तथा क्रीट का प्रथम राजा था
जर्मन जाति का मूल विशेषण डच (Dutch)
था ।
जो त्वष्टा नामक इण्डो- जर्मनिक देव पर आधारित है ।
टेकिटिस लिखता है , कि
Tuisto ( or tuisto) is the divine encestor of German peoples......
ट्वष्टो tuisto---tuisto--- शब्द की व्युत्पत्ति- भी जर्मन भाषाओं में
*Tvai----" two and derivative *tvis --"twice " double" thus giving tuisto---
The Core meaning -- double
अर्थात् द्वन्द्व -- अंगेजी में कालान्तरण में एक अर्थ
द्वन्द्व- युद्ध (dispute / Conflict )भी होगया
यम और त्वष्टा दौनों शब्दों का मूलत: एक समान अर्थ था
इण्डो-जर्मनिक संस्कृतियों में ..
मिश्र की पुरातन कथाओं में त्वष्टा को (Thoth) अथवा tehoti ,Djeheuty कहा गया
जो ज्ञान और बुद्धि का अधिपति देव था ।
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आर्यों में यहाँ परस्पर सांस्कृतिक भेद भी उत्पन्न हुए विशेषतः जर्मन आर्यों तथा फ्राँस के मूल निवासी गॉल ( Goal ) के प्रति जो पश्चिमी यूरोप में आवासित ड्रूयूडों की ही एक शाखा थी l
जो देवता जर्मनिक जन-जातियाँ के थे लगभग वही देवता ड्रयूड पुरोहितों के भी थे ।
यही ड्रयूड( druid ) भारत में द्रविड कहलाए इन्हीं की उपशाखाएें वेल्स wels केल्ट celt तथा ब्रिटॉन Briton के रूप थीं जिनका तादात्म्य (एकरूपता ) भारतीय जन जाति क्रमशः भिल्लस् ( भील ) किरात तथा भरतों से प्रस्तावित है ये भरत ही व्रात्य ( वृत्र के अनुयायी ) कहलाए आयरिश अथवा केल्टिक संस्कृति में वृत्र ** का रूप अवर्टा ( Abarta ) के रूप में है यह एक देव है जो थौथा thuatha (जिसे वेदों में त्वष्टा कहा है !) और दि - दानन्न ( वैदिक रूप दनु ) की सन्तान है .Abarta an lrish / celtic god amember of the thuatha त्वष्टाः and De- danann his name means = performer of feats अर्थात् एक कैल्टिक देव त्वष्टा और दनु परिवार का सदस्य वृत्र या Abarta जिसका अर्थ है कला या करतब दिखाने बाला देव यह अबर्टा ही ब्रिटेन के मूल निवासी ब्रिटों Briton का पूर्वज और देव था इन्हीं ब्रिटों की स्कोट लेण्ड ( आयर लेण्ड ) में शुट्र--- (shouter )नाम की एक शाखा थी , जो पारम्परिक रूप से वस्त्रों का निर्माण करती थी । वस्तुतःशुट्र फ्राँस के मूल निवासी गॉलों का ही वर्ग था , जिनका तादात्म्य भारत में शूद्रों से प्रस्तावित है , ये कोल( कोरी) और शूद्रों के रूप में है ।
जो मूलत: एक ही जन जाति के विशेषण हैं
एक तथ्य यहाँ ज्ञातव्य है कि प्रारम्भ में जर्मन आर्यों
और गॉलों में केवल सांस्कृतिक भेद ही था जातीय भेद कदापि नहीं ।
क्योंकि आर्य शब्द का अर्थ यौद्धा अथवा वीर होता है ।
यूरोपीय
लैटिन आदि भाषाओं में इसका यही अर्थ है
बाल्टिक सागर से दक्षिणी रूस के पॉलेण्ड त्रिपोल्जे आदि स्थानों पर बॉल्गा नदी के द्वारा कैस्पियन सागर होते हुए भारत ईरान आदि स्थानों पर इनका आगमन हुआ ।
आर्यों के ही कुछ क़बीले इसी समय हंगरी में दानव नदी के तट पर परस्पर सांस्कृतिक युद्धों में रत थे ...भरत जन जाति यहाँ की पूर्व अधिवासी थी संस्कृत साहित्य में भरत का अर्थ जंगली या असभ्य किया है ।
और भारत देश के नाम करण कारण यही भरत जन जाति थी ।
भारतीय प्रमाणतः जर्मन आर्यों की ही शाखा थे जैसे यूरोप में पाँचवीं सदी में जर्मन के एेंजीलस कबीले के आर्यों ने ब्रिटिश के मूल निवासी ब्रिटों को परास्त कर ब्रिटेन को एञ्जीलस - लेण्ड अर्थात् इंग्लेण्ड कर दिया था
और ब्रिटिश नाम भी रहा जो पुरातन है ।
इसी प्रकार भारत नाम भी आगत आर्यों से पुरातन है
दुष्यन्त और शकुन्तला पुत्र भरत की कथा बाद में जोड़ दी गयी
जैन साहित्य में एक भरत ऋषभ देव परम्परा में थे।
जिसके नाम से भारत शब्द बना ।
प्रस्तुत शोध ---
योगेश कुमार रोहि के द्वारा
प्रमाणित श्रृंखलाओं पर आधारित है !
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