मंगलवार, 26 नवंबर 2024

जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैर्द्विज


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जन्मना ब्राह्मणो ज्ञेयः संस्कारैर्द्विज उच्यते।
विद्यया याति विप्रत्वं त्रिभिः श्रोत्रिय उच्यते॥
- (अत्रिसंहिता, श्लोकः -(१४०)

ब्राह्मणकुल में उत्पन्न हाेने वाला जन्म से ही 'ब्राह्मण' कहलाता है।
उपनयन संस्कार हाे जाने पर 'द्विजश्रेष्ठ' कहलाता है।विद्या प्राप्त कर लेने पर 'विप्र' कहलाता है।
इन तीनाें नामाें से युक्त हुआ ब्राह्मण 'श्राेत्रिय' कहा जाता है।


ब्राह्मणो जन्मना श्रेयान् सर्वेषां प्राणिनामिह ।
 तपसा विद्यया तुष्ट्या किमु मत्कलया युतः॥५३ ॥
भागवत , स्कन्ध 10 , अध्याय 86 , श्लोक 53
जन्मगतरूप से ब्राह्मण सभी जीवों में श्रेष्ठ है । इसके साथ तपस्या , विद्या , आत्मसन्तुष्टियुक्त होनेपर और भी उन्नत है । और यदि मद्भक्तिसंपन्न भी हो तो कहना ही क्या ! “

तद्य इह रमणीयचरणा अभ्याशो ह यत्ते रमणीयां योनिमापद्येरन्ब्राह्मणयोनिं वा क्षत्रिययोनिं वा वैश्ययोनिं वाथ य इह कपूयचरणा अभ्याशो ह यत्ते कपूयां योनिमापद्येरन् श्वयोनिं वा सूकरयोनिं वा चण्डालयोनिं वा ॥

छान्दोग्योपनिषद् 5.10.7
” अपने पूर्व कर्म के अनुसार ब्राह्मण योनि, क्षत्रिययोनि , वैश्ययोनि में जन्म लेता है , किन्तु बुरे कर्म वाला कुत्तायोनि, सुकर योनि, चंडालयोनि, में जाता है । ”
योनि शब्द जन्मवाचक है । यहाँ कुत्ते, सुकरादि योनि के समान ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य के लिए भी योनिशब्द प्रयुक्त है।

तद्य इह रमणीयचरण अभ्यासो ह यत्ते रमणीयं योनिमापद्येरंगब्रह्मणयोनिं वा क्षत्रिययोनि वाथ य इहा कप्यचरण अभ्यासो ह यत्ते कपुयं योनिमापकरणं योनिमापयोनिम् कैंडेलब्रा || 5.10.7 ||

  1. उनमें से जिन्होंने इस संसार में [अपने पिछले जन्म में] अच्छे कर्म किए हैं, वे उसी के अनुसार अच्छे जन्म प्राप्त करते हैं। वे ब्राह्मण, क्षत्रिय या वैश्य के रूप में जन्म लेते हैं। लेकिन जिन्होंने इस संसार में [अपने पिछले जन्म में] बुरे कर्म किए हैं, वे उसी के अनुसार बुरे जन्म प्राप्त करते हैं, जैसे कुत्ता, सुअर या जातिहीन व्यक्ति के रूप में जन्म लेना।

छान्दोग्य उपनिषद ५.१०.

किसी भी उत्तर ने वस्तुनिष्ठ रूप से इस श्लोक को अप्रमाणिक साबित नहीं किया। सभी श्रुतियाँ और स्मृतियाँ एकमत से कई स्थानों पर वर्ण को जन्म के आधार पर घोषित करती हैं। जो लोग इस श्लोक को अप्रमाणिक बता रहे हैं, उन्हें इसे प्रमाणों के साथ साबित करना चाहिए।

  1.   भगवद्गीता में भी ऐसे ही श्लोक हैं जो यही दर्शाते हैं।

धर्मात्माओं के लोकों को प्राप्त करने के बाद, वे हमेशा-हमेशा के लिए जीवित रहेंगे पवित्र और धनवान के घर में वह जन्म लेता है जो योग से पतित है || 41|| अथवा योगियों के कुल में ही बुद्धिमान पैदा होते हैं यह संसार का सबसे दुर्लभ जन्म है जो ऐसा है || 42||

BG 6.41-42: असफल योगी मृत्यु के पश्चात पुण्यात्माओं के लोकों में जाते हैं। वहाँ अनेक युगों तक निवास करने के पश्चात वे पुनः पृथ्वी लोक में पवित्र और समृद्ध लोगों के परिवार में जन्म लेते हैं। अन्यथा, यदि उन्होंने योग के दीर्घ अभ्यास के कारण वैराग्य विकसित कर लिया हो, तो वे दिव्य ज्ञान से संपन्न परिवार में जन्म लेते हैं। इस संसार में ऐसा जन्म प्राप्त करना बहुत कठिन है।

Bhagavad Gita 6.41-42

का॒रुर॒हं त॒तो भि॒षगु॑पलप्र॒क्षिणी॑ न॒ना । नाना॑धियो वसू॒यवोऽनु॒ गा इ॑व तस्थि॒मेन्द्रा॑येन्दो॒ परि॑ स्रव ॥

ऋग्वेद » मण्डल:9» सूक्त:112»  ऋचा:3 |
-(कारुः, अहं) मैं कारीगर हूँ (ततः) तात- पिता (भिषक्) वैद्य हैं। (नना) मेरी माता।  (उपलप्रक्षिणी) पाषाणों से पीसने वाली। निर्माता  (नानाधियः) नाना कर्मोंवाले मेरे भाव (वसुयवः) जो ऐश्वर्य्य को चाहते हैं, वे विद्यमान हैं। हम लोग (अनु, गाः) इन्द्रियों की वृत्तियों के समान ऊँच-नीच की ओर जानेवाले (तस्थिम) हैं, इसलिये (इन्दो) हे प्रकाशस्वरूप परमात्मन् ! हमारी वृत्तियों को (इन्द्राय) इन्द्र के लिये (परि,स्रव) प्रवाहित करें ॥३॥

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