बुधवार, 27 जनवरी 2021

देश का परेशान किसान !


कृषिगोरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यस्य परिकीर्तितं । 
(अग्निपुराण 151/9)


कृषि, गोपालन और व्यापार वैश्य के कर्म हैं !
कृषि करना वैश्य का काम है! 
यह भारतीय शास्त्रों का विधान हैं ।

मनुस्मृति में वर्णन है कि
वैश्यवृत्त्यापि जीवंस्तु ब्राह्मणः क्सत्रियोऽपि वा ।हिंसाप्रायां पराधीनां कृषिं यत्नेन वर्जयेत् ।।10/83

ब्राह्मण व क्षत्रिय भी वैश्य के धर्म से निर्वाह करते हुये जहाँ तक सम्भव हो कृषि (खेती) ही न करें  जो कि हल के आधीन है अर्थात् हल आदि के बिना कुछ फल प्राप्त नहीं होता।

अर्थात कृषि कार्य वैश्य  ब्राह्मण और क्षत्रिय के लिए भी निषिद्ध ही है ।

निश्चित रूप से यहाँ कृषि कार्य केवल शूद्र वर्ण का विधान है ।

जैसा कि नृसिंह पुराण में शूद्रों को निर्देश है !

दासवद्ब्राह्मणानां च विशेषेण समाचरेत ।
अयाचितं प्रदातव्यम् कृषिं वृत्यर्थमाचरेत् ।।११।

 शूद्र  दासों के समान ब्राह्मणों की विशेष रूप से सेवा करे !  विना कुछ माँगे हुए और अपनी ही सम्पत्ति का दान करे 
और जीविका उपार्जन के लिए कृषि कर्म करे ।।११।
     (नृसिंह पुराण अध्याय 58 का 11वाँ श्लोक)
_________   
परन्तु व्यास, पराशर और वैजयंती में एक कृषि वर्ग का उल्लेख है जिन्हें ‘कुटुम्बी’ कहा गया है। 
इन्हें शूद्रों के अन्तर्गत रखा गया है।

इस काल में एक और वर्ग कीनाश का उल्लेख आता है प्राचीन ग्रंथों में कीनाश वैश्य थे किन्तु आठवीं शताब्दी के नारद स्मृति के टीकाकार  ने कीनाशों को शूद्र बताया है।

परन्तु कोई वणिक कभी कृषि कार्य करते हुए नहीं देखा 
सिवाय व्यापार के सायद यही कारण है ।
किसान जो भारत के सभी समाजों को अन्न उत्पादन करता है ।

और पशुपालन के द्वारा दुग्ध सबको उपलब्ध कराता है 
वही किसान जो जीवन के कठिनत्तम संघर्षों से गुजर कर भी  अनाज उत्पन्न करता है ।
उस किसान की शान में भी यह  शासन की गुस्ताखी है ।

किसान से शक्तिशाली और जीवन का बलिदान करने वाला  सायद दूसरा कोई नहीं  इस संसार में !
परन्तु उसके बलिदान कि कोई प्रतिमान नहीं !

 फिर भी किसान जो कभी वाणिज्यिक गतिविधियों से अलग थलग ही रहता है  कभी बेईमानी नही करता कभी ठगाई नहीं करता और वणिक जिसे कभी हल चलाते और फसल उगाते नहीं देखा ; 

सिवाय ठगाई और व्यापार के और तब भी किसान और वणिक को  वर्ण-व्यवस्था के अन्तर्गत दौंनों को समान रूप में परिभाषित करने वाले धूर्तों ने  किसान को शूद्र और वैश्य को हल न पकड़ने का विधान बना डाला और  अन्तत: शूद्र  वर्ण में समायोजित कर दिया है ।

यह आश्चर्य ही है । किसानों को विधान बनाने वाले भी किसान की ही रोटी से पेट भरते हैं  ।

परन्तु गुण कर्म के आधार भी धर्म शास्त्रों में  निराधार ही थे ।

किसान भोला- है यह तो जानते सब ; परन्तु यह भाला भी बन सकता है इसे भी जानते तो अच्छा होता है ।

किसान आज मजदूर से भी आर्थिक स्तर पर पिछड़ा है ।
रूढ़िवादी समाज में व्यक्ति का आकलन रूढ़िवादी विधानों से ही होता है ।

वर्ण- व्यवस्था में कृषि गोपालन को भी वणिक से भी निम्न स्तर का माना है परन्तु ये निम्न लगभग शूद्र के स्तर पर ।

यही कारण है कि कृषकों का सामाजिक स्तर शास्त्र वेत्ता  ब्राह्मण की  दृष्टि में निम्न ही है ।
हिन्दू धर्म की नीतियों का पालन करने वाले 
 कितने किसान स्वयं को क्षत्रिय मानते हैं ?  विचार कर ले !

श्रीमद्भगवद्गीता जो पञ्चम सदी में वर्ण-व्यवस्था की भेट चढ़ी उसके अष्टादश अध्याय में भी लिख डाला है । कि

कृषिगौरक्ष्यवाणिज्यं वैश्यकर्म स्वभावजम् ।
परिचर्यात्मकं कर्म शूद्रस्यापि स्वभावजम् ॥44॥

कृषि, गोरक्षा और वाणिज्य- भूमि में हल चलाने का नाम ‘कृषि’ है, गौओं की रक्षा करनने वाला ‘गोरक्ष’ है, उसका भाव ‘गौरक्ष्य’ यानी पशुओं को पालना है तथा क्रय-विक्रय रूप वणिक् कर्म का नाम ‘वाणिज्य’ है- ये तीनों वैश्यकर्म हैं अर्थात् वैश्यजाति के स्वाभाविक कर्म हैं।

वैसे ही शूद्र का भी परिचर्यात्मक अर्थात् सेवरूप कर्म स्वाभाविक है।।44।।

पुरोहितों का कहना है कि जाति के उद्देश्य से कहे हुए इन कर्मों का भली प्रकार अनुष्ठान किये जाने पर स्वर्ग की प्राप्ति रूप स्वाभाविक फल होता है।

परन्तु किसान के लिए यह दुर्भाग्य ही है ।

किसान का जीवन आर्थिक रूप से सदैव से संकट में रहा उसकी फसल का मूल्य व्यापारी ही तय करता है ।
उसके पास कठिन श्रम करने के उपरान्त भी उनका अभाव ही रहा !

परन्तु खाद और बीज का मूल्य भी व्यापारी उच्च दामों पर तय करता है ; और ऊपर से प्राकृतिक आपदा और ईति, के प्रकोप का भी किसान भाजन होता रहता है ।

ईति खेती को हानि पहुँचानेवाले वे उपद्रव है ।
जो किसान का दुर्भाग्य बनकर आते हैं ।

 इन्हें  शास्त्रों में छह प्रकार का बताया गया था :
अतिवृष्टिरनावृष्टि: शलभा मूषका: शुका:।
प्रत्यासन्नाश्च राजान: षडेता ईतय: स्मृता:।।
(अर्थात् अतिवृष्टि,(अधिक वर्षा) अनावृष्टि(सूखा), टिड्डी पड़ना, चूहे लगना, पक्षियों की अधिकता तथा दूसरे राजा की चढ़ाई।)

परन्तु अब ईति का पैटर्न ही बदल गया है। 
गाय, नीलगाय और सूअर ।
माऊँ खर पतवार ।

खेती बाड़ी के चक्कर में 
कृषक आज बीमार !!
यद्यपि गायों के लिए कुछ मूर्ख किसान ही दोषी हैं 
जो दूध पीकर गाय दूसरों के नुकसान के लिए छोड़ देते हैं 
परन्तु सब किसान नहीं हर समाज वर्ग में कुछ अपवाद होते ही हैं ।

अब प्रश्न यह बनता है कि जो किसान अन्न और दुग्ध सबको कहें कि पूरे देश को मुहय्या कराता है; वह वैश्य या शूद्र धर्मी है ?
परन्तु वह शूद्र ही है । फिर भी उसका ही अन्न खाकर पाप नहीं लगता ,?

इसी लिए कोई ब्राह्मण अथवा जो  स्वयं को क्षत्रिय या वणिक मानने वाला उसके अधिकार पाने के समर्थन में साथ नहीं  होता है क्योंकि यह कृषक अब शूद्र ही है ।
और शूद्रों के अधिकारों का कोई मूल्य नहीं होता है 
धर्म शास्त्रों के अनुसार !

भारतीय राजनीति विशेषत: भारतीय जानता पार्टी जो आर. एस. एस . तथा धर्मशास्त्रों की अनुक्रियायों का पालन करना अपना आदर्श मानती है ।

वही लोग किसानों के अधिकार जब्त करने के षड्यंत्र लोकतांत्रिक रूप में बना रहे हैं ।

परन्तु समय, स्थान और परिस्थितियों के अनुसार सिद्धांत और नियम भी बदलने चाहिए जोकि बदलते भी हैं  ।
परन्तु रूढ़िवादी समाज इस विचार का विरोधी ही है ।

 यह सर्व विदित है वर्तमान में इस सरकार की नीतियों में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य वर्णों के प्रति वफादारी और शूद्रों के प्रति गद्दारी का भाव निहित है ।

सड़क ,घर और अब किसानों की जमीन भी सरकार के अधीन कुछ कूटनीतिपरक नियमों के तहत होगी ।
एसी सरकार की योजना है ।

 वर्तमान केन्द्र सरकार किसानों की कृषि सम्पदा को अपने अधीन करने के लिए एक कपटमूर्त विधेयक लाई थी जिस पर राष्ट्रपति की मुहर लगने के बाद वे कानून भी बन गया है । 

लेकिन किसानों के लिए बने ये कानून है । जो उसकी अस्मिता का संवैधानिक खून ही है  ।

परोक्ष रूप से इन कानूनों से किसानों को नुकसान और निजी खरीदारों व बड़े कॉरपोरेट घरानों को फायदा होगा.
जो सरकार की नीतियों में शरीक है, सामिल है

 किसानों को फसल का न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म हो जाएगा। और मजबूर किसान मिट्टी भाव में अपनी उपज व्यापारियों को बेचने पर मजबूर होगा ।

 देश के करीब 500 अलग-अलग संगठनों ने मिलकर संयुक्त किसान मोर्चे  के बैनर तले संगठित होकर सरकार के काले कानून के  विरोध में लाम बन्द  होकर आन्दोलन जारी कर दियाहैं ।,  

परन्तु उनके इस आन्दोलन को विरोधी आतंकवादी कारनामा करार दे रहे हैं ।
ये तीन काले कानून ये हैं 
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(1). किसान उपज व्यापार एवं वाणिज्य (संवर्धन एवं सुविधा) विधेयक 2020: इसका उद्देश्य विभिन्न राज्य विधानसभाओं द्वारा गठित कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी) द्वारा विनियमित मंडियों के बाहर कृषि उपज की बिक्री की अनुमति देना है.

ताकि मजबूर किसान की फसल का मूल्य मनमाने तरीके व्यापारी तय करेंगे ।

सरकार का कहना है कि किसान इस कानून के जरिये अब (एपीएमसी) मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे. निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे.

परन्तु चालवाजी की भी सरहद पार कर दी यह तो भोले किसान को भरमाकर 
उसे ठगा जाना है क्योंकि विदेश से अनाज आयात या  मंगा कर  भारतीय किसान की  फसल को मूल्य हीन कर दिया जाएगा। ।

लेकिन, सरकारी  दिखावा और दावा मात्र छलाबा है ।

 सरकार ने इस कानून के जरिये( एपीएमसी) मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है. एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमेटी (APMC) के स्वामित्व वाले अनाज बाजार (मंडियों) को उन बिलों में शामिल नहीं किया गया है. 

इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को समझौते के तहत खुली छूट दी गई है. ताकि बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं.।
परोक्ष रूप से सरकार का समर्थन कॉरपोरेट खरीददारों को रहेगा ।

सरकार धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म कर सकती है, जिस पर सरकार किसानों से अनाज खरीदती है. 

और किसान परेशान और बे शान होकर अपने अस्मिता को खो देगा ।

2. किसान (सशक्तिकरण एवं संरक्षण) मूल्य आश्वासन अनुबंध एवं कृषि सेवाएं विधेयक: - इस कानून का उद्देश्य अनुबंध खेती यानी (कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग) की अनुुुमति देना है. आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा.
तब किसान के पास झुनझुना होगा 

और किसान पैसे की तंगी से मजबूर होकर यह करेगा ही और फसल की कीमत तय करने व विवाद की स्थिति का बड़ी कंपनियां लाभ उठाने का प्रयास करेंगी और छोटे किसानों के साथ समझौता नहीं करेंगी किसान खुद बर्बाद हो जाएगा।

तीसरा कानून. (आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक) यह कानून अनाज, दालों, आलू,लहसुन प्याज और खाद्य तिलहन जैसे खाद्य पदार्थों के उत्पादन, आपूर्ति, वितरण को विनियमित (exchanged) करता है. 

यानी इस तरह के खाद्य पदार्थ आवश्यक वस्तु की सूची से बाहर करने का प्रावधान है. इसके बाद युद्ध व प्राकृतिक आपदा जैसी आपात स्थितियों को छोड़कर भंडारण की कोई सीमा नहीं रह जाएगी.

 इसके चलते कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी. उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी और सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है ?  
किसान की कृषि सम्पदा का मूल्यांकन निरस्त ही हो जाएगा ।

 नए कानूनों के तहत कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और इसका नुकसान किसानों को ही होगा.

 लेकिन केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि किसी भी कीमत पर कृषि कानून को न तो वापस लिया जाएगा और न ही उसमें कोई फेरबदल किया जाएगा. 

सरकार की यह दमन नीति कानून के तहत काम करेगी 

–  ये सरकारी कानून किसानों के हित में नहीं है और कृषि के निजीकरण को प्रोत्साहन देने वाले हैं. 
 इनसे होर्डर्स( जमा खोरी )और बड़े कॉरपोरेट.(निगमित या समष्टिगत) घरानों को ही फायदा होगा.

किसान मजदूर भी नहीं रहेगा क्योंकि कृषि कार्य नयी तकनीक की मशीनों से ही होगा । 

 होर्डस :- किसी वस्तु की जमाखोरी, नाश या बेचने या बिक्री के लिए उपलब्ध करने से इनकार या किसी सेवा को प्रदान करने से इनकार, यदि ऐसी ज़माखोरी, नाश अथवा इनकार उस या उस जैसी वस्तुओं या सेवाओं की लागत को बढ़ाता है अथवा बढ़ाने की ओर प्रवृत्त करता है।
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   प्रस्तुति करण:- यादव योगेश कुमार रोहि

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