अभिवञ्चन अधिकारों का हो !
क्या कर्तव्य भावना के मायने ?
तस्वीर बदलती है रोहि ,
अक्श नहीं बदलते आयने ।
लोकतंत्र नहीं षड्यंत्र है
केवल शोषण का सब मंत्र है
जूस डाला आम-जन को
अवशेष केवल अन्त्र हैं !
नेताओं की लूट भी संवैधानिक है यहांँ
गरीबों का विद्रोह जुल्म के मानिक यहांँ
परोक्ष राजतंत्र जहां सब परम्परागत है ।
अधिकारी हैं सामंत आगे विरासत है ।
अय्याश बने कुर्सी वाले पैसा जुगाड़ और घोटाले
शिक्षित पर बेरोजगारी है ?
सरकारी महकमे में बैठा है
वह घूस परस्त अधिकारी है ।
ऑफिस में बैठा बाबू मांगे सुविधा शुल्क !
घूस और घोटालों से कराह उठा है मुल्क
एक गरीब एक अमीर भेदों की लम्बी हुई लकीर ।
बेईमान चालाक शातिर ही बैठे खा रहे खीर ।।
राजनीत है जरिया केवल पैसा बहुत कमाने का ?
समाज सेवा का भाव कहाँं अब राजनीति में आने का ।
किस पर हम विश्वास करें कौन हमारा अपना है ?
अपने ही भावों से धोखा बीते पल तो कल्पना है ।
जीवन क्या है पता नहीं शायद कोई छोटा सपना है। पागलपन या उन्माद नहीं यह एक यथार्थ प्रतीति है ।
जीवन की प्रयोगशाला में हम पर यह सब बीती है ।
संसार नहीं बाजार है व्यापार यहांँ की रीति है ।।
सौदेबाजी ही शादी है दौलत से मिलती प्रीति है ।
एक दरिया है जिंदगी उम्र का उसमें सफीना है ।
मझधार है यौवन एक रोहि !
तट तो मरना जीना है ।
जुल्म हुए कितने हम पर
हम तुमको तनिक बताते हैं ।
हम जा रहे थे जिस महफिल से !
वहाँ फिर भी हम्हें धकियाते हैं ।
गैरों ने कहा पागल हमको
अपनों ने कहा आवारा है ।
जिसने भी देखा पास हम्हें
उसने ही महज फटकारा है ।
हम जज्बातों पर मरने वाले 'लोग'
समय को आगोश में रखते हैं ।
हालातें कितनी भी कठिन हों
दिल को डुबोकर जोश में रखते हैं ।।
हम्हें कोई फर्क नहीं पड़ता 'रोहि'
कि 'लोग' पीछे हमसे क्या बकते हैं ।।
लोकतंत्र के वृक्ष में
घोटालों की दीम ।
भ्रष्टाचार की आंधी में
हिल गई जिसकी नीम ।
चोर लुटेरे भृष्टों ने थामी
सत्ता की डोर ।
घूसखोर अधिकारी बैठे ,
मंत्री घपला खोर ।
भ्रष्टाचार का तीव्र विकिरण
घोटलों का भूकंप ।
व्यभिचारों का विकट सुनामी ,
लोकतंत्र हुआ डम्प ।
जीवन मूल्यों में आया प्रदूषण घनघोर
संस्कृति की आड़ में नंगा नाच हर ओर ।।
दोगले विधान शासन अपंग ।
अंधा काना कानून ।
बहता सड़कों पर पानी सा वहता।
"रोहि" मजलूमों का खून ।।
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यादव योगेश कुमार 'रोहि' (8077160219)
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