गोषा -गां सनोति सेवयति सन् (षण् )धातु विट् ङा । सनोतेरनः” पाणिनीय षत्वम् ।
अर्थात् --जो गाय की सेवा करता है ।
गोदातरि “गोषा इन्द्रीनृषामसि” सि० कौ० धृता श्रुतिः “इत्था गृणन्तो महिनस्य शर्म्मन् दिविष्याम पार्य्ये गोषतमाः” ऋग्वेद ६ । ३३ । ५ ।
अत्र “घरूपेत्यादि” पा० सू० गोषा शब्दस्य तमपि परे ह्रस्वः ।
गोषन् (गोष: )गां सनोति सन--विच् ।
“सनोतेरनः” पा० नान्तस्य नित्यषत्वनिषेधेऽपि पूर्बपदात् वा षत्वम् ।
गोदातरि “शंसामि गोषणो नपात्” ऋग्वेद ४ । ३२ । २२ ।
हैहय पुराणों में वर्णित भारत का एक प्राचीन यादव राजवंश था।
यदु के चार पुत्र थे –
(I) सहस्त्रजित, (II) क्रोष्टा, (III) नल और (IV) रिपु. हैहय वंश यदु के ज्येष्ठ पुत्र सहस्त्रजित के पुत्र का नाम शतजित था.
शतजित के तीन पुत्र थे – महाहय, वेणुहय तथा हैहय. इसी हैहय के नाम पर हैहय वंश का उदय हुआ.
हैहय का पुत्र धर्म, धर्म का नेत्र, नेत्र का कुन्ति, कुन्ति का सहजित, सहजित का पुत्र महिष्मान हुआ,
जिसने महिष्मतिपुरी को बसाया ।
महिष्मान का पुत्र भद्रश्रेन्य हुआ. भद्रश्रेन्य के दुर्दम और दुर्दम का पुत्र धनक हुआ ।
धनक के चार पुत्र हुए – कृतवीर्य, कृताग्नी, कृतवर्मा और कृतौना. कृतवीर्य का पुत्र अर्जुन था।
अजुर्न ख्यातिप्रात एकछत्र सम्राट था।
उसे कार्तवीर्य अर्जुन और सहस्त्रबाहु अर्जुन भी कहते थे।
हरिवंश पुराण के अनुसार हैहय, सहस्राजित का पौत्र तथा यदु का प्रपौत्र था।
श्रीमद्भागवत महापुराण के नवम स्कंध में इस वंश के अधिपति के रूप में एक कार्तवीर्य अर्जुन नामक राजा का उल्लेख किया गया है।👇
पुराणों में हैहय वंश का इतिहास सोम की तेईसवी पीढ़ी में उत्पन्न वीतिहोत्र के समय तक पाया जाता है।
सोम सैमेटिक संस्कृतियों से आदि प्रवर्तक साम का भारतीय रूपान्तरण है ।
जिसे बाद में सोम की अर्थ चन्द्रमा करके चन्द्र वंश कर दिया ।
श्रीमद्भागवत के अनुसार ब्रह्मा की बारहवी पीढ़ी में हैहय का जन्म हुआ।
ब्रह्मा सुमेरियन माइथॉलॉजी में अब्राहम के रूप में है ।
हरिवंश पुराण के अनुसार ग्यारहवी पीढ़ी में हैहय तीन भाई थे जिनमें हैहय सबसे छोटे भाई थे।
हैहय के शेष दो भाई-महाहय एवं वेणुहय थे जिन्होंने अपने-अपने नये वंशो की परंपरा स्थापित की।
त्रिपुरी के कलचुरी वंश को हैहय वंश भी कहा जाता है। गुजरात के सोलंकी अथवा चालुक्य वंश से इसका दीर्घ काल तक संघर्ष चलता रहा ।
महापद्म द्वारा उन्मूलित प्रमुख राजवंशों में 'हैहय', जिसकी राजधानी महिष्मती (माहिष्मति) थी, का भी नाम है।
पौराणिक कथाओं में माहिष्मती को हैहयवंशीय कार्तवीर्य अर्जुन अथवा सहस्त्रबाहु की राजधानी बताया गया है।
परशुराम से कार्तवीर्य का भयंकर युद्ध हुआ था ।
उत्तर भारत से नागरी लिपि के ढेरों अभिलेख मिलते हैं। इनमें गुहिलवंशी, चाउ-हुन (चौहान) वंशी, राष्ट्रकूट, चालुक्य (सोलंकी), परमार, चंदेलवंशी, हैहय (कलचुरी) आदि राजाओं के नागरी लिपि में लिखे हुए दानपत्र तथा शिलालेख प्रसिद्ध हैं।
चीनी यात्री युवानच्वांग, 640 ई. के लगभग इस स्थान पर आया था।
उसके लेख के अनुसार उस समय माहिष्मती में एक ब्राह्मण राजा राज्य करता था।
क्यों की यादवों की संहार परशुराम ने किया
औव स्थान यादव शून्य हो गया तब वहाँ ब्राह्मणों का राज हो गया ।
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पौराणिक संदर्भ:---
पुराणों के अनुसार महाभारत-युद्ध के बाद से लेकर महापद्मनंद के समय तक 23 शूरसेन, 24 इक्ष्वाकु, 27 पंचाल, 24 काशी, 28 हैहय, 32 कलिंग, 25 अश्मक, 36 कुरु, 28 मैथिल और 20 बीति-होत्र राजाओं ने भारत पर शासन किया।
बाहु नामक सूर्यवंश के राजा और सगर के पिता को हैहयों और तालजंधों ने परास्त कर देश-निष्कासित किया था।
परशुराम ने युद्ध में हैहयराज अर्जुन को मारा तथा केवल धनुष की सहायता से सरस्वती के तट पर हज़ारों ब्राह्मणद्वेषी क्षत्रियों को मार डाला।
एक बार कार्तवीर्य अर्जुन ने वाणों से समुद्र को त्रस्त कर किसी परम वीर के विषय में पूछा।
समुद्र ने उसे परशुराम से लड़ने को कहा।
परशुराम को उसने अपने व्यवहार से बहुत रुष्ट कर दिया। अत: परशुराम ने उसकी हज़ार भुजाएं काट डालीं।
किंवदंती है कि सहस्त्रबाहु ने अपनी सहस्त्र भुजाओं से नर्मदा का प्रवाह रोक दिया था।
एक क्षत्रिय वंश जो यदु से उत्पन्न कहा गया है ।
विशेष—पुराणों में इस वंश की पाँच शाखाएँ कही गई हैं —ताल- जंघ, वीतिहोत्र, आवंत्य, तुंडिकेर और जात (जाट) ।
लिखा है कि हैहयों ने शकों के साथ साथ भारत के अनेक देशों के जीता था ।
प्राचीन काल का इस वंश का सबसे प्रसिद्ध राजा कार्तवीर्य सहस्त्रार्जुन हुआ था जिसे सहस्त्र भुजाएँ थीं । इसने परशुराम के पिता जमदग्नि को मारकर उनकी गायों का हरण कर लिया जिससे क्रुद्ध हो परशुराम ने इसे मारा था ।
इतिहास में हैहय वंश कलचुरि के नाम से प्रसिद्ध है । विक्रम संवत् ५५० और ७९० के बीच हैहयों का राज्य चेदि देश और गुजरात में था ।
हैहयों ने एक संवत् भी चलाया था जो कलचुरि संवत् कहलाता था और विक्रम संवत् ३०६ से आरंभ होकर १४ वीं शताब्दी तक इधर उधर चलता रहा ।
हैहयों का श्रृंखलाबद्ध इतिहास विक्रम संवत् ९२० के आसपास मिलता है, इसके पूर्व चालुक्यों आदि के प्रसंग में इधर उध र हैहयों का उल्लेख मिलता है । कोकल्लदेव (वि॰ सं॰ ९२०- ९६०) मु्ग्धतुंग, बालहर्ष, केयूरवर्ष (वि॰ सं॰ ९९० के लगभग); शंकरगण युवराजदेव (वि॰ सं॰ १०५० के लगभग), गागेयदेव, कर्णदेव आदि बहुत से हैहय राजाओं के नाम शिला- लेखों में मिलते हैं ।
२. हैहयवंशी कार्तवीर्य सहस्रार्जुन ।
३. एक देश का नाम जहाँ हैहय जाति का निवास था ।
४. बृहत्संहिता के अनुसार पश्चिम दिशा का एक पर्वत ।
हैहय भारत का एक प्राचीन राजवंश था।
हरिवंश पुराण के अनुसार हैहय, सहस्राजित का पौत्र तथा यदु का प्रपौत्र था।
पुराणों में हैहय वंश का इतिहास महाराज चंद्रदेव की तेईसवी पीढ़ी में उत्पन्न महाराज वीतिहोत्र के समय तक पाया जाता है ।
श्री मदभागवत के अनुसार महाराज ब्रह्मा की बारहवी पीढ़ी में महाराज हैहय का जन्म हुआ और हरिवंश पुराणों के अनुसार ग्यारहवी पीढ़ी में महाराज हैहय तीन भाई थे , जिनमे हैहय सबसे छोटे भाई थे । शेष दो भाई - महाहय एवं वेणुहय थे जिन्होंने अपने - अपने नये वंशो की परंपरा स्थापित की ।
महाराज हैहय चन्द्रवंश के अंतर्गत यदुवंश के थे और उन्होंने इसी वंश को अपने वैशिष्ठ्य के कारण हैहयवंश नाम की नई शाखा स्थापित की ।
महाराज हैहय अपनी तेजस्वी और मेधावी बुद्धि के कारण बाल्यकाल से ही वेद , शास्त्र , धनुर्विद्या , अस्त्र - शस्त्र संचालन , राजनीति और धर्मनीति में पारंगत हों गये थे ।
महाराज हैहय का विवाह राजा रम्य की राजकुमारी एकावली तथा उनके मंत्री की सुपुत्री यशोवती के साथ हुआ । इनके एक पुत्र हुआ , जो महाराज के स्वर्गारोहण के बाद राज्याधिकारी हुए ।
महाराज हैहय ने मध्य और दक्षिण भारत में अनार्यो को बहुत दूर खदेड़ कर आर्य सभ्यता , संस्कृति और राज्य का विस्तार किया ।
इतिहास वेत्ता श्री सी सी वैद्य ने लिखा है कि इन्होने सूर्यवंशियो से भी डटकर युद्ध किया और उन्हें परास्त किया ।
हैहयो का राज्य नर्मदा नदी के आस- पास तक फैला हुआ था , जिसे इन्होने सुर्यवंश सम्राट सगर को हराकर प्राप्त किया था ।
पौराणिक काल में नहुष , भरत , सहस्त्रार्जुन , मान्धाता , भगीरथ , सगर और युधिष्ठिर ये ही सात चक्रवर्ती महाराजा हुए थे और इनमे तीन नहुष , सहस्त्रार्जुन और युधिष्ठिर को जन्म देने का श्रेय चन्द्रवंश को है ।
सहस्त्रार्जुन हैहयवंश में ही जन्मे थे तथा सूर्यवंशी सगर से महाराज हैहय ने लोहा लिया था । महाराज हैहय से पूर्व महाराज चंद्रदेव के पशचात क्रमशः महाराज बुद्धदेव , महाराज पुरुरुवा , महाराज आयु , महाराज नहुष , महाराज ययाति , महाराज यदु , महाराज सहस्त्रजित , महाराज शतजित शासक रह चुके थे ।
महाराज चंद्रदेव स्वयं बड़े प्रतापी , तेजस्वी और अमृतमय मेधावी थे ।
महाराज चंद्रदेव के पुत्र बुद्धदेव का विवाह सुर्यवंश के संस्थापक महाराज इश्चाकू क़ी बहिन कुमारी इलादेवी के साथ हुआ ।
महाराज बुद्धदेव बड़े पराक्रमी , बुद्धिमान और रूपवान थे महाराज हैहय के बाद युवराज धर्म गद्दी पर बैठे । "यथा नाम तथा गुण" के वे पालक रहे ।
उन्होंने प्रदेश में शांति , व्यवस्था और न्याय क़ी स्थापना की।
इनके नेत्र नाम का एक पुत्र था जो महाराज धर्म के बाद सिहासनासीन हुए । इन्होने अपने पिता के शासन को अधिक सुद्रढ़ बनाया तथा प्रजा के दुःख सुख क़ी ओर अधिक सक्रिय रहे ।
महाराज धर्म के पश्चात् कुन्ती महाराज बने ।
उनका विवाह विद्यावती से हुआ ।
पत्नी की प्रेरणा से महाराज कुन्ती ने धार्मिक कार्यो में अधिक रूचि ली तथा राज्य को और भी अधिक सुद्रण बनाया ।
महाराज कुन्ती के सौहंजी नाम का पुत्र हुआ जो बाद में गद्दी का मालिक बना ।
महाराज सौहंजी ने सौहंजिपुर नाम का एक नया नगर बसाया और प्रतिष्ठानपुर से हटाकर इस नगर को अपनी राजधानी बनाया ।
आजकल सौहंजिपुर sahajnava नाम से विख्यात है जो उत्तर प्रदेश के गोरखपुर जिले के अंतर्गत आता है ।
इनकी महारानी चम्पावती से महिष्मान नाम का पुत्र उत्तपन्न हुआ । महाराज महिष्मान बड़े प्रतापी और वीर पुरुष थे । इन्होने दक्षिण प्रदेश का बहुत - सा छेत्र अपने अधिकार में कर लिया तथा विजित प्रदेश में आर्य संस्कृति और सभ्यता का बहुत प्रचार किया ।
महाराज महिष्मान ने अपने नाम पर महिष्मति नामक नगर की स्थापना की जिसे अपने राज्य की राजधानी बनाया गया ।
यह नगर आजकल औंकारेश्वर या मानधाता नाम से प्रसिद्ध है जो निमाड़ जिले में पश्चिमी रेलवे की खंडवा - अजमेर शाखा पर स्थित औंकारेश्वर रोड से सात मील दूर नर्मदा तट पर बसा हुआ है ।
इनकी महारानी सुभद्रा से भद्रश्रेय नाम का पुत्र उत्तपन्न हुआ ।
महाराज महिष्मान के बाद जब भद्रश्रेय शासन पर आरुढ़ हुए तब हैहयवंशियो का राज्य बनारस से महिष्मति के आगे तक फैला हुआ था । सूर्यवंशियो और चंद्रवंशियो की अनबन प्रारंभ से ही चली आ रही थी । इसी को द्रष्टिगत करते हुए महाराज भद्रश्रेय ने अपनी राजधानी महिष्मति से हटाकर बनारस स्थापित की जो कुछ समय पश्चात् सूर्यवंशियो से लोहा लेने का कारण बना , क्योंकि उसके निकट अयोध्या सूर्यवंशियो की राजधानी थी । इस लोहा लेने का परिणाम यह निकला कि हैहयवंशियो को सदैव के लिए बनारस से हाथ धोना पड़ा ।
सन्दर्भ
↑ J.P. Mittal (2006). History Of Ancient India (a New Version) : From 7300 Bb To 4250 Bc,. Atlantic Publishers & Dist. पपृ॰ 143–. आई॰ऍस॰बी॰ऍन॰ 978-81-269-0615-4.
↑ "नवम स्कंध". श्रीमद्भागवत महापुराण (द्वितीय खंड) (८६ वाँ संस्करण). गीता प्रेस. २०१५ (संवत २०७२). पपृ॰ ७७. |date= में तिथि प्राचल का मान जाँचें (
महाभारत सभापर्व
Variations : म. स.; स.; Sabhā Parva; Śabhā Parva; Sabhā Parva, Mahābhārata; Mahābhārata, Sabhā Parva
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