यहूदीयों की हिब्रू बाइबिल के सृष्टि खण्ड नामक अध्याय "Genesis 49: 24 " पर --- अहीर (अबीर )शब्द को जीवित ईश्वर का वाचक बताया है।👇
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" The name Abir is one of The titles of the living god for some reason it,s usually translated (for some reason all god,s in Isaiah 1:24
we find four names of The lord in rapid succession as Isaiah Reports " Therefore Adon - YHWH - Saboath and Abir --Israel declares...Abir (अभीर )---The name reflects protection more than strength although one obviously -- has to be Strong To be any good at protecting still although all modern translations universally translate this name whith Mighty One , it is probably best translated whith Protector ..
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यह नाम अबीर किसी जीवित देवता के शीर्षक में से किसी एक कारण से है।
जिसे आमतौर पर अनुवाद किया गया है। (यशायाह 1:24 में किसी भी कारण से सभी ईश्वर के रूप में बहुतायत से उत्तराधिकार में भगवान के चार नाम मिलते हैं
1- अदोन - 2-YHWH यह्व : 3-सबोथ और 4-अबीर -इजराइल की घोषणा अबीर (अबर) नाम ताकत से अधिक सुरक्षा को दर्शाता है।
यद्यपि एक अर्थ स्पष्ट रूप से होना जरूरी है।
यद्यपि अभी भी सभी आधुनिक अनुवादक सार्वभौमिक रूप से इस नाम का अनुवाद करते हैं।
अबीर शब्द का शक्तिशाली (ताकतवर)यह शायद सबसे अच्छा अनुवाद किया है।
अबीर शब्द का परवर्ती अर्थ --रक्षक । 👇
हिब्रू बाइबिल में तथा यहूदीयों की परम्पराओं में ईश्वर के पाँच नाम प्रसिद्ध हैं :-
(१)-अबीर
(२)--अदॉन
(३)--सबॉथ
(४)--याह्व्ह् तथा
(५)--(इलॉही)
बाइबल में अबीर का अर्थ > सशक्त>
हिब्रू> अबीर ► सशक्त कमान अबीर: मजबूत मूल शब्द: है ( אֲבִיר ) विशेषण 'पौरुष ' लिप्यान्तरण: अबीर ध्वन्यात्मक :-वर्तनी: (अ-बियर ')
लघु परिभाषा: एक सम्पूर्ण संक्षिप्तता शब्द उत्पत्ति:- अबर के समान ही परिभाषा "बलवान" अनुवाद शक्तिशाली
एक [אבִיר ]विशेषण रूप मजबूत;
एवर = सशक्त ।
एबर भगवान के लिए पुराने नाम (कविता में प्रयुक्त अबीर); है ।
हिब्रू बाइबिल उत्पत्ति खण्ड(Genesis) 49:24 और उसके बाद से यह शब्द भजन संहिता मेंआया (132: 2; भजन
132: 5; यशायाह (49:26; )यशायाह 60:16; יִשְׂרָאֵל 'या यशायाह 1:24
( सशक्त की संपूर्णता पराक्रमी 'Abar से; शक्तिशाली (भगवान की बात की) -
शक्तिशाली (एक) हिब्रू भाषा में 'अबीर रूप और लिप्यंतरण אֲבִ֖יר אֲבִ֣יר אֲבִ֥יר אביר לַאֲבִ֥יר לאביר 'ר ·יי' רḇייר एक वैर ला'एरीर ला · 'ḇ ḇîr laaVir 'Ă ḇîr - 4 ओक ला '' ırîr -
2 प्राक् उत्पत्ति खण्ड बाइबिल:-- (49:24) יָדָ֑יו מִידֵי֙ אֲבִ֣יר יַעֲקֹ֔ב מִשָּ
: याकूब के शक्तिशाली [परमेश्वर] (अबीर )के हाथों से; : हाथ याकूब के पराक्रमी हाथ वहाँ भजन 132: 2 और याकूब के पराक्रमी को याकूब के पराक्रमी [ईश्वर] को वचन दिया; ।
भगवान के लिए और याकूब के शक्तिशाली करने के लिए कसम खाई भजन 132: 5 : लेट्वाः लिबियूः יהו֑֑֑ מִ֝שְּנ֗וֹת לַאֲבִ֥יר יַעֲקֹֽב: याकूब के पराक्रमी एक के लिए एक आवास स्थान केजेवी: याकूब के शक्तिशाली [परमेश्वर] के लिए एक निवासस्थान :
भगवान एक याकूब की ताकतवर(अबीर) निवास यशायाह 1:24 : יְהוָ֣ה צְבָא֔וֹת אֲבִ֖יר יִשְׂרָאֵ֑ל ה֚וֹי : मेजबान के, इज़राइल के पराक्रमी, केजेवी: सेनाओं के, इस्राएल के पराक्रमी, :
सेनाओं के सर्वशक्तिमान इस्राएल के शक्तिशाली अहा यशायाह 49:26 : מֽוֹשִׁיעֵ֔ךְ וְגֹאֲלֵ֖ךְ אֲבִ֥יר יַעֲקֹֽב: : और अपने उद्धारकर्ता, याकूब के शक्तिशाली व्यक्ति : और तेरा उद्धारकर्ता, याकूब के शक्तिशाली व्यक्ति।
: अपने उद्धारकर्ता और अपने उद्धारक याकूब की ताकतवर हूँ यशायाह 60:16 : מֽוֹשִׁיעֵ֔ךְ וְגֹאֲלֵ֖ךְ אֲבִ֥יר יַעֲקֹֽב: और अपने उद्धारकर्ता, याकूब के शक्तिशाली व्यक्ति : और तेरा उद्धारकर्ता, याकूब के शक्तिशाली व्यक्ति।
अपने उद्धारकर्ता और अपने उद्धारक याकूब की ताकत हूँ।
यह आपने देखा हिब्रू एक सैमेटिक भाषा है ।
--जो आरमेेनियन की सहोदरा है ।
ईरानीयों में दारा प्रथम के समय से भी लगभग 3000 हजार साल पूर्व से बोली जाती थी ।
हिब्रू भाषा मे अबीर (अभीर) शब्द के बहुत ऊँचे अर्थ हैं- अर्थात् जो रक्षक है, सर्व-शक्ति सम्पन्न है।
इज़राएल देश में याकूब अथवा इज़राएल-- ( एल का सामना करने वाला )को अबीर का विशेषण दिया था ।
इज़राएल एक फ़रिश्ता है जो भारतीय पुराणों में यम के समान है ।
हाकिम शब्द का विकास भी याकूब शब्द से हुआ।
ये कालान्तरण में राजा या निजा़म के लिए रूढ़ हो गया
जिसे भारतीय पुराणों में ययाति कहा है ।
ययाति यम का भी विशेषण है ।
अब आप समझने की प्रयास करेंगे कि शब्द चिरजीवी तो होते हैं परन्तु ये बहुरूपिया भी होते हैं ।
भारतीय पुराणों में विशेषतः महाभारत तथा श्रीमद्भागवत् पुराण में वसुदेव और नन्द दौनों को परस्पर सजातीय वृष्णि वंशी यादव बताया है ।
और अहीर भी !
परन्तु भारतीय पुराणों में अभीर (अबीर) शब्द और इसकी धारक जन-जाति को ब्राह्मणों ने सहन नहीं किया ।
क्यों कि इनकी संस्कृतियों में कर्मकाण्ड और बहुदेववाद को कोई स्थान नहीं ।
ये वन - संस्कृतियों के पोषक थे ।
और महिलाओं पर भी रूढ़िवादी बन्दिशों की छाया नहीं थी ।
किन्हीं विशेष अवसरों पर ये लोग स्त्री- पुरुष सम्मिलित रूप में हल्लीषम् नृत्य करते थे ।
--जो एक भाव नृत्य की प्रतिछाया था ।
यादवों का सम्बन्ध पणियों ( Phoenician) सैमेटिक जन-जाति से भी है ।
अत: इनकी कुछ शाखाएें सोने-चाँदी का व्यवसाय भी करती थीं ।
फॉनिशियन लोग भी यहूदीयों तथा असीरियन लोगों के समान ही है ।
भारतीय इतिहास कारों ने इन पणियों ( Phoenician) को वणिक अथवा पणिक कहा है ;
आज के बनियों के पूर्वज यही हैं।
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विश्व-इतिहास में पणियों का अपना एक अलग महत्वपूर्ण स्थान है ।
पणि कौन थे ? इस तथ्यों का उल्लेख हम आगे यथाक्रम करेंगे ।
संक्षेप में तो इस तथ्य पर यहाँं विश्लेषण हो जाय ।
राथ के मतानुसार "यह शब्द 'पण्=विनिमय' से बना है तथा पणि वह व्यक्ति है, जो कि बिना बदले के कुछ नहीं दे सकता।
इस मत का समर्थन जिमर तथा लुड्विग ने भी किया है।
लड्विग ने इस पार्थक्य के कारण पणिओं को यहाँ का आदिवासी व्यवसायी माना है।
मान लो ये द्रविडों की ही दूसरा शाखा थे ।
ये अपने साथीयों को अरब, पश्चिमी एशिया तथा उत्तरी अफ़्रीका में भेजते थे और अपने धन की रक्षा के लिए बराबर युद्ध करने को भी प्रस्तुत रहते थे।
बल इनका देवता था ।
--जो देव संस्कृति के अनुयायीयों का इन्द्र का प्रतिद्वन्द्वी वल है ।
दास या दस्यु शब्द का प्रयोग वेदों में समानार्थक व असुरों के लिए बहुतायत से हुआ है ।
दस्यु अथवा दास शब्द के प्रसंगों के आधार पर उपर्युक्त मत पुष्ट होता है।
कि ये परस्पर विरोधी संस्कृतियों के अनुपालक हों ।
किन्तु आवश्यक है कि आर्यों के देवों की पूजा न करने वाले और पुरोहितों को दक्षिणा न देने वाले इन पणियों को धर्मनिरपेक्ष, शर्तों पर सौदा करने वाले व्यापारी कहा जा सकता है।
ये आर्य और अनार्य दोनों हो सकते हैं।
क्यों कि आर्य्य का कोई जातिगत अर्थ नहीं है ।
फिर आर्य शब्द को जन-जाति गत लबादा पहनाने की मूर्खता पूर्ण मनोवृत्ति है ।
आर्य्य शब्द ऋ (अर्) धातु से व्युपन्न है।
अर् का रूप उर् और विर् भाषा विज्ञान की सम्प्रसारण क्रिया से हुए ।
अत: आर्य्य शब्द ही वीर हो गया
फिर दौनों को भाषा विज्ञान के सिद्धान्तों से अनभिज्ञ लोगों ने अलग अलग धातुओं से उत्पन्न मान लिया
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वीर :– शौर्य्ये । इति कविकल्पद्रुमः ॥
(अदन्तचुरा०-आत्म०-अक०-सेट् ।)
अवि- वीरत । शौर्य्यमुद्यमः । इति दुर्गादासः ॥
वीरम (अज् + “स्फायितञ्चिवञ्चीति ।
उणादि सूत्र १ । १३ । इत्यादिना रक् प्रत्यय।
अजे- र्वीभावः भूत्वा इति वीर निष्पद्यते ।
वीरः पुंल्लिङ्ग (वीरयतीति । वीर विक्रान्तौ + पचा- द्यच्
यद्वा, विशेषेण ईरयति दूरीकरोति शत्रून् ।
वि + ईर + इगुपधात् कः ।
यद्वा, अजति क्षिपति शत्रून् । अज + स्फायितञ्चीत्या दिना रक् । अजेर्व्वीः रूपं भूत्वा।)
शौर्य्यविशिष्टः । तत्पर्य्यायः । शूरः २ विक्रान्तः ३ । इत्यमरःकोश । २ । ८ । ७७ ॥ गण्डीरः ४ तरस्वी ५ ।
इति जटाधरः कोश
वीरः, शब्द ऋग्वेद में भी आर्य्य के समानार्थक रूप में आया है ।
ऋग्वेदे । ८ । २३ । १९ । 👇
“इमं धा वीरो अमृतं वीरं कृण्वीतमर्त्त्यः ॥
“वीरः कर्म्मणि समर्थः ।” इति तद्भाष्ये सायणः ॥
यथा च । तत्रैव । ६ । २३ । ३ ।
“कर्त्ता वीराय सुष्वय उलोकं दाता वसु स्तुवते कीरये चित् ॥
“वीराय यज्ञादि कर्म्मसु दक्षाय ।” इति तद्भाष्ये सायणः ॥ प्रेरयिता । यथा, तत्रैव । ६ । ६५ । ४ । “इदा हि वो विधते रत्नमस्तीदा वीराय दाशुष उषासः ॥👇
“वीराय प्रेरयित्रे ।” इति तद्भाष्ये सायणः ॥)
हमने प्रतिपादित किया कि आर्य जन-जाति सूचक शब्द नहीं है ।
यह केवल यौद्धा का वाचक है ।
वस्तुत: वीर( vir) कोई भी हो सकता है ।
फोएनशियन सैमेटिक भाषाओं में भी अबीर और बीर -जैसे रूप हैं ।
• भारत तथा यूरोप एवं सैमेटिक हैमेटिक आदि सभी भाषाओं में आर्य शब्द यौद्धा अथवा वीर के अर्थ में व्यवहृत है !
और हिब्रू भाषा में इसके वे मूल श्रोत प्राप्त हो जाते हैं --जो वीर और आर्य्य रूपान्तरण की क्रियाओं को स्पष्ट करते हैं।
विदित हो कि पारसी शासकों -जैसे दारा प्रथम आदि ने राजकीय भाषाओं के रूप में सैमेटिक भाषाओं के वरीयता दी है।
पारसीयों के पवित्र धर्म ग्रन्थ अवेस्ता में अनेक स्थलों पर आर्य शब्द आया है जैसे –सिरोज़ह प्रथम- के यश्त ९ पर, तथा सिरोज़ह प्रथम के यश्त २५ पर
…अवेस्ता में आर्य शब्द का अर्थ है :–तीव्र वाण (Arrow ) चलाने वाला यौद्धा —यश्त ८.
स्वयं ईरान शब्द आर्यन शब्द का तद्भव रूप है ।
परन्तु भारतीयों ने स्वयं को आर्यों के रूप में अपनी यौद्धिक प्रवृत्तियों को सूचित करने के लिए सम्बोधित किया ।
जिसमें केवल यौद्धा वर्ग के लोग थे ।
व्यवसायी अथवा पुरोहिताई करने वाले नहीं थे ।
परन्तु कालान्तरण में आर्य्य शब्द का मूल अर्थ यौद्धा श्रेष्ठ या दृढ-निश्चयी भाव के बलाघात से लुप्त हो गया ।
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जिन्हें इतिहास मे आर्य्य शब्द से अभिहित किया गया है उससे इण्डो यूरोपीयन जन-जाति का विशेषण "सुर"
था नकि आर्य्य
सुमेरियन माइथॉलॉजी में ये हुरियनों अथवा हुर कहलाए
ईरानीयों ने भी इन्हें हुर ही कहा ।
क्यों कि ईरानीयों की भाषा में "स" वर्ण का उच्चारण "ह" रूप में होता है ।
ग्रीक भाषाओं में भी यही प्रवृत्ति है
सुर असुर (असीरियन) संस्कृतियों के धुर विरोधी थे ।
इरानीयों के
ये चिर सांस्कृतिक प्रतिद्वन्द्वी अवश्य थे !!
ईरानी असुर संस्कृति के उपासक आर्य थे.
देव (दाएव)शब्द का अर्थ इनकी भाषाओं में निम्न व दुष्ट अर्थों में है ।
अग्नि की उपासना दौने संस्कृतियों में थी ।
…परन्तु अग्नि के अखण्ड उपासक तो ईरानी ही आर्य थे ये लोग अश्शुर के उपासक थे।
और स्वयं ऋग्वेद में असुर शब्द उच्च और पूज्य अर्थों में है —जैसे वृहद् श्रुभा असुरो वर्हणा कृतः ऋग्वेद १/५४/३.
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अर्चा दिवे बृहते शूष्यं वचः स्वक्षत्रं यस्य धृषतो धृषन्मनः
बृहच्छ्रवा असुरो बर्हणा कृतः पुरो हरिभ्यां वृषभो रथो हि षः ॥३॥ऋग्वेद १/५४/३.
सायण का भाष्य भी असुर शब्द पर देखें👇
असुः प्राणो बलं वा । तद्वान् । रो मत्वर्थीयः । अथवा। असवः प्राणाः तेन च आपो लक्ष्यन्ते, ‘ प्राणा वा आपः ' ( तै. ब्रा. ३. २. ५. २ ) इति श्रुतेः । तान् राति ददातीति असुरः ।
तथा और भी महान देवता वरुण के रूप में
"त्वम् राजेन्द्र ये च देवा रक्षा नृन पाहि .
असुर त्वं अस्मान् —ऋ० १/१/७४
तथा प्रसाक्षितः असुर यामहि –ऋ० १/१५/४.
ऋग्वेद में और भी बहुत से स्थल हैं जहाँ पर असुर शब्द सर्वोपरि शक्तिवान् ईश्वर का वाचक है ।
पारसीयों ने असुर शब्द का उच्चारण ..अहुर ….के रूप में किया है।
….अतः आर्य विशेषण.. असुर और देव दौनो ही संस्कृतियों के उपासकों का था।
और उधर यूरोप में द्वित्तीय महा -युद्ध का महानायक ऐडोल्फ हिटलर Adolf-Hitler स्वयं को शुद्ध नारादिक nordic आर्य कहता था ; और स्वास्तिक का चिन्ह अपनी युद्ध ध्वजा पर अंकित करता था।
विदित हो कि जर्मन भाषा में स्वास्तिक को हैकैन- क्रूज. Haken- cruez कहते थे ।
…जर्मन वर्ग की भाषाओं में आर्य शब्द के बहुत से रूप हैं ।
..ऐरे Ehere जो कि जर्मन लोगों की एक सम्माननीय उपाधि है ।
जर्मन भाषाओं में ऐह्रे (Ahere) तथा (Herr) शब्द स्वामी अथवा उच्च व्यक्तिों के वाचक थे।
और इसी हर्र (Herr) शब्द से यूरोपीय भाषाओं में..प्रचलित सर (Sir)शब्द का विकास हुआ.
और आरिश (Arisch) शब्द तथा आरिर् (Arier) स्वीडिश डच आदि जर्मन भाषाओं में आर्य्य शब्द श्रेष्ठ और वीरों का विशेषण है।
इधर एशिया माइनर के पार्श्व वर्ती यूरोप के प्रवेश -द्वार ग्रीक अथवा आयोनियन भाषाओं में भी आर्य शब्द. …आर्च (Arch )तथा आर्क (Arck) के रूप मे है जो हिब्रू तथा अरबी भाषा में आक़ा हो गया है।
ग्रीक मूल का शब्द हीरों (Hero) भी वेरोस् अथवा वीरः शब्द का ही विकसित रूप है।
और "वीरः" शब्द स्वयं "आर्य "शब्द का प्रतिरूप है जर्मन वर्ग की भाषा ऐंग्लो -सेक्शन में वीर शब्द वर Wer के रूप में है ।
तथा रोम की सांस्कृतिक भाषा लैटिन में यह वीर शब्द Vir के रूप में है।
ईरानी आर्यों की संस्कृति में भी वीर शब्द आर्य शब्द का विशेषण है यूरोपीय भाषाओं में भी आर्य और वीर शब्द समानार्थक रहे हैं !
….हम यह स्पष्ट करदे कि आर्य शब्द किन किन संस्कृतियों में प्रचीन काल से आज तक विद्यमान है.. लैटिन वर्ग की भाषा आधुनिक फ्रान्च में…Arien तथा Aryen दौनों रूपों में …इधर दक्षिणी अमेरिक की ओर पुर्तगाली तथा स्पेन भाषाओं में यह शब्द आरियो Ario के रूप में है पुर्तगाली में इसका एक रूप ऐरिऐनॉ Ariano भी है और फिन्नो-उग्रियन शाखा की फिनिश भाषा में Arialainen ऐरियल-ऐनन के रूप में है .. रूस की उप शाखा पॉलिस भाषा में Aryika के रूप में है.. कैटालन भाषा में Ari तथा Arica दौनो रूपों में है स्वयं रूसी भाषा में आरिजक Arijec अथवा आर्यक के रूप में है।👇
इधर पश्चिमीय एशिया की सेमेटिक शाखा आरमेनियन तथा हिब्रू और अरबी भाषा में क्रमशः Ariacoi तथाAri तथा अरबी भाषा मे हिब्रू प्रभाव से म-अारि.
M(ariyy तथा अरि दौनो रूपों में आर्य्य शब्द ही विद्यमान है।
तथा ताज़िक भाषा में ऑरियॉयी Oriyoyi रूप है।
…इधर बॉल्गा नदी मुहाने वुल्गारियन संस्कृति में आर्य शब्द ऐराइस् Arice के रूप में है ।
रूसी परिवार की वेलारूस की भाषा में "Aryeic" तथा Aryika दौनों रूप में..पूरबी एशिया की जापानी कॉरीयन और चीनी भाषाओं में बौद्ध धर्म के प्रभाव से आर्य शब्द .Aria–iin..के रूप में है ।
आर्य शब्द के विषय में इतने तथ्य अब तक हमने दूसरी संस्कृतियों से उद्धृत किए है।
समग्र विश्लेषण यादव योगेश कुमार "रोहि" के शोधों पर आधारित हैं ।
भारोपीय आर्यों के सभी सांस्कृतिक शब्द समान ही हैं
स्वयं आर्य शब्द का धात्विक-अर्थ Rootnal-Mean ..आरम् धारण करने वाला वीर …..संस्कृत तथा यूरोपीय भाषाओं में आरम् Arrown =अस्त्र तथा शस्त्र धारण करने वाला यौद्धा ….अथवा वीरः ।
आर्य शब्द की व्युत्पत्ति Etymology संस्कृत की अर् (ऋृ) धातु मूलक है—अर् धातु के तीन प्राचीनत्तम हैं ..
अन्य विकसित रूप (इर्)
१–गमन करना To go २– मारना to kill ३– हल
फोएनशियन लोगों को यूरोपीय इतिहास विद् हिलब्रैण्ट ने इन्हें स्ट्राबो द्वारा उल्लिखित पर्नियन जाति के तुल्य माना है।
जिसका सम्बन्ध दाहा (दास) लोगों से था।
फ़िनिशिया इनका पश्चिमी उपनिवेश था, जहाँ ये भारत से व्यापारिक वस्तुएँ, लिपि, कला आदि लेकर आए।
मिश्र में रहने वाले ईसाई कॉप्ट (Copt )यहूदीयों की ही शाखा से सम्बद्ध हैं । 👇
--जो सोने-चाँदी का व्यवसाय करने वाले गुप्ता ही हैं ।👇
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Copts are one of the oldest Christian communities in the Middle East.
Although integrated in the larger Egyptian nation, the Copts have survived as a distinct religious community forming today between 10 and 20 percent of the native population.
They pride themselves on the apostolicity of the Egyptian Church whose founder was the first in an unbroken chain of patriots
कॉप्ट (Copt) मध्य पूर्व में सबसे पुराना ईसाई समुदायों में से एक है |
यद्यपि बड़े मिस्र के राष्ट्र में एकीकृत, कॉप्ट्स आज एक अलग धार्मिक समुदाय के रूप में बचे हैं, जो आज की जनसंख्या के 10 से 20 प्रतिशत के बीच हैं।
वे खुद को मिस्र के चर्च की धर्मोपयोगी गीता पर गर्व करते थे ।
जिनके संस्थापक देशभक्तों की एक अटूट श्रृंखला में सबसे पहले थे जो भारतीय इतिहास में गुप्त अथवा गुप्ता के रूप में देवमीढ़ के दो रानीयाँ मादिष्या तथा वैश्यवर्णा नाम की थी ;
मादिषा के शूरसेन और वैश्यवर्णा के पर्जन्य हुए ।
अब इस समय तक तो भारतीय में भी वर्ण व्यवस्था केवल वर्ग-व्यवस्था थी ।
शूरसेन के वसुदेव तथा पर्जन्य के नन्द हुए नन्द नौ भाई थे धरानन्द ,ध्रुवनन्द ,उपनन्द ,अभिनन्द सुनन्द कर्मानन्द धर्मानन्द नन्द तथा वल्लभ ;हरिवंश पुराण में वसुदेव को भी गोप कहकर सम्बोधित किया है।
गोप का अर्थ आभीर होता है ।👇
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“आभीरवामनयनाहृतमानसाय दत्तं मनो यदुपते !
तदिदं गृहाण” उद्भटः स च सङ्कीर्ण्ण वर्ण्णः।
यहाँ आभीर और यदुपति परस्पर पर्याय वाची हैं ।
और आपको हम यह भी बता दे कि भारत की प्राय: सभी शूद्र तथा पिछड़े तबके (वर्ग-) की जन-जातियाँ यदु की सन्ताने हैं।
इसका कारण वेदों में यदु का वर्णन दास या असुर रूप में करना ही है ।
महाराष्ट्र में जादव जो शिवाजी महाराज के वंशज महारों का एक कब़ीलाई विशेषण है।
संवैधानिक रूप से (Schedule
caste) अनुसूचित जन-जाति के दायरे में है ।
सन् १९२२ में इसी मराठी जादव( जाधव) शब्द से पञ्जाबी प्रभाव से जाटव शब्द का विकास हुआ।
यादवों की शाखा जाट ,गुर्जर ,(गौश्चर) गो चराने वाला होने से हैं ।
तथा लगभग ८७५ गोत्र यादवों के हैं।
शिक्षा से ये लोग वञ्चित किए गये इस कारण इनमें संस्कार हीनता तथा अाराधिक प्रवृत्तियों का भी विकास हुआ ;
ब्राह्मण जानते हैं कि ज्ञान ही संसार की सबसे बड़ी शक्ति है ;
और ज्ञान के अभाव में मनुष्यों में अशभ्यता ही प्रवेश करता है ।
यदि ये ज्ञान सम्पन्न हो गये तो हमारी गुलामी कौन करेगा ?
अतः ब्राह्मणों ने "स्त्रीशूद्रौ नाधीयताम्" वेद वाक्य के रूप में विधान पारित कर दिया।
यादवों का एक विशेषण है घोष भी थाईलेण्ड -👇
परन्तु अहीर और गोप शब्द को ज्यादा ब्राह्मणों द्वारा घसीटा गया ।
भक्ति-काल के कृष्ण भक्ति शाखा के सगुणवादी कवि सूरदास वृष्णि वंशी उद्धव को गोष कहते हैं 👇
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आयो घोष बड़ो व्यापारी लादि खेप
गुन-ज्ञान जोग की, ब्रज में आन उतारी ||
फाटक दैकर हाटक मांगत,
भोरै निपट सुधारी धुर ही तें खोटो खायो है,
लए फिरत सिर भारी ||
इनके कहे कौन डहकावै ,ऐसी कौन
अजानी अपनों दूध छाँड़ि को पीवै,
खार कूप को पानी ||
ऊधो जाहु सबार यहाँ ते, बेगि गहरु जनि लावौ |
मुंह मांग्यो पैहो सूरज प्रभु, साहुहि आनि दिखावौ ||
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वह गोपियाँ उद्धव नामक घोष की शुष्क ज्ञान चर्चा को अपने लिए निष्प्रयोज्य बताते हुए उनकी व्यापारिक-सम योजना का विरोध करते हुए कहती हैं ।
घोष शब्द यद्यपि गौश्च: अथवा गौष: का परवर्ती तद्भव रूप है परन्तु इसे भी संस्कृत में मान्य कर दिया गया ।
और इसकी घुष् धातु से व्युत्पत्ति कर दी गयी ।👇
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घोषः– पुंल्लिङ्ग (घोषन्ति शब्दायन्ते गावो यस्मिन् ।
घुषिर् विशब्दने + “हलश्च ।” ३ । ३ । १२१। इति घञ् )
आभीरपल्ली (अहीरों का गाँव)
अर्थात् जहाँ गायें रम्हाती या आवाज करती हैं 'वह स्थान घोष है ।
वस्तुत यह काल्पनिक व्युत्पत्ति मात्र है ।
(यथा, रघुः । १ । ४५ ।
“हैयङ्गवीनमादाय घोषवृद्धानुपस्थितान् ।
नामधेयानि पृच्छन्तौ वन्यानां मार्गशाखिनाम् ”
द्वितीय व्युत्पत्ति गोप अथवा आभीर के रूप में है 👇
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घोषति शब्दायते इति । घुष् + कर्त्तरि अच् ।)
गोपालः । (घुष् + भावे घञ् ) ध्वनिः ।
( कायस्थादीनां पद्धतिविशेषः में बंगाल में घोष कायस्थों का एक वर्ग है ।
(यथा, कुलदीपिकायाम् “वसुवंशे च मुख्यौ द्वौ नाम्ना लक्षणपूषणौ । घोषेषु च समाख्यातश्चतुर्भुज
महाकृती )
अमरकोशः व्रज में गोप अथवा आभीर घोष कहलाते हैं संज्ञा स्त्री०[संघोष + कुमारी] गोपबालिका । गोपिका ।
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उदाहरण —प्रात समै हरि को जस गावत
उठि घर घर सब घोषकुमारी ।—(भारतेंदु ग्रन्थावली भाग २, पृ० ६०६ )
घोष:–. अहीर । ग्वाल ।
गोप — आभीर जमन किरात खस स्वपचादि अति अघ रुप जे । (राम चरित मानस । ७ । १३० )
तुलसी दास ने अहीरों का वर्णन भी विरोधाभासी रूप में किया है ।
यह तथ्य हमने प्रथम भाग में उद्धृत किया
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कभी अहीरों को निर्मल मन बताते हैं तो कभी अघ ( पाप )रूप देखें -
"नोइ निवृत्ति पात्र बिस्वासा ।
निर्मल मन अहीर निज दासा-
(राम चरित मानस, ७ ।११७ )
विशेष—इतिहासकारों के अनुसार भारत की एक वीर और प्रसिद्ध यादव जाति जो कुछ लोगों के मत से बाहर से आई थी।
इस जातिवालों का विशेष ऐतिहसिक महत्व माना जाता है ।
कहा जाता है कि उनकी संस्कृति का प्रभाव भी भारतीय संस्कृति पर पड़ा ।
वे आगे चलकर देव संस्कृति के अनुयायीयों में घुलमिल गए ।
इनके नाम पर आभीरी नाम की एक अपभ्रंश (प्राकृत) भाषा भी थी ।
—आभीरपल्ली= अहीरों का गाँव । ग्वालों की बस्ती । २. एक देश का नाम ।
आभीर] [स्त्री० अहीरिन] एक जाति जिसका काम गाय भैंस रखना और दूध बेचना है । ग्वाला ।
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रसखान ने अहीरों को अपने -ग्रन्थों में कृष्ण के वंश के रूप में वर्णित करते हैं । 👇
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या लकुटी अरु कामरिया पर,
राज तिहूँ पुर को तजि डारौं।
आठहुँ सिद्धि, नवों निधि को सुख,
नन्द की धेनु चराय बिसारौं॥
रसखान कबौं इन आँखिन सों,
ब्रज के बन बाग तड़ाग निहारौं।
कोटिक हू कलधौत के धाम,
करील के कुंजन ऊपर वारौं॥
सेस गनेस महेस दिनेस,
सुरेसहु जाहि निरंतर गावै।
जाहि अनादि अनंत अखण्ड,
अछेद अभेद सुबेद बतावैं॥
नारद से सुक व्यास रहे,
पचिहारे तऊ पुनि पार न पावैं।
ताहि अहीर की छोहरियाँ,
छछिया भरि छाछ पै नाच नचावैं॥
हरिवंश पुराण में यादवों अथवा गोपों के लिए घोष (घोषी) शब्द का बहुतायत से प्रयोग है ।👇
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ताश्च गाव: स घोषस्तु स च सकर्षणो युवा।
कृष्णेन विहितं वासं तमध्याससत निर्वृता ।३५।
अर्थात् उस वृदावन में सभी गौएें गोप (घोष) तथा संकर्षण आदि सब कृष्ण के साथ आनन्द पूर्वक निवास करने लगे ।३५।
(उद्धृत अंश)👇
हरिवंश पुराण श्रीकृष्ण का वृन्दावन गमन नामक ४१वाँ अध्याय।
प्राय: विद्वानों का प्रस्ताव है कि अहीर वंश न होकर
एक नस्ल है ।
जिसका सम्बन्ध पश्चिमीय एशिया की पुरा-कथाओं में वर्णित एबर नामक प्राचीन पुरुष से है ।
एबर का वर्णन हिब्रू बाइबिल में कुछ अंशों में है ।
(हिब्रू: עֶבֶר, हिब्रू ,Aver, तिबेरियन हिब्रू iaber, अरबी: عٰبِر )Abir)
एबर इजरायल और इस्माईल दौनों जन-जातियों का एक पूर्वज है जो उत्पत्ति 10-11 में "राष्ट्रों की तालिका" के अनुसार है।
एबेर
एबर नूह के बेटे शेम का एक महान पौत्र ( नाती)और पेलेग के पिता के रूप जन्म हुआ था
जब एबेर 34 साल का था, और जोकटन का।
वह इब्राहीम के दूर के पूर्वज शेला का बेटा था।
हिब्रू बाइबिल के अनुसार, एबर की मृत्यु 464 वर्ष की (उत्पत्ति 11: 14-17) की उम्र में हुई जब जैकब 79 वर्ष के थे।
सेप्टुआजेंट में, एबर के पिता को साला (άαλά) कहा जाता है।
उनके बेटे को फेलीज़ (έγαλ,) कहा जाता है, जब हेबर 134 साल का था, तब पैदा हुआ था और उसके दूसरे बेटे और बेटियाँ थीं।
हेबर 404 वर्ष की आयु में जीवित था। (सेप्टुआजेंट उत्पत्ति 11: 14-17; [1
अरामी / हिब्रू मूल עבר को पार और उससे परे के साथ जोड़ा जाता है।
यह मानते हुए कि शेम के वंशजों के अन्य नाम भी स्थानों के नाम से सम्बद्ध हैं ।
एबर को एक क्षेत्र का नाम भी माना जा सकता है
शायद असीरिया के पास है ।
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माइकल के सीरियन, बार हेब्राईस और अगापियस द हिस्टोरियन जैसे कई मीडियाविदों ने प्रचलित दृष्टिकोण का उल्लेख किया, कि इब्रियों ने अपना नाम एबर से प्राप्त किया था।
साथ ही यह भी इंगित किया था कि दूसरों के अनुसार, "हिब्रू" का अर्थ "उन लोगों से" था जो पार करते है ,या रहते हैं " विशेषत: उन लोगों के सन्दर्भ में, जिन्होंने अब्राहम के साथ सुमेर के उर नगर से हर्रान के साथ, और फिर कनान देश को पार किया।
नए नियम के कुछ अनुवादों में, उन्हें एक बार हेबर (लूका 3:35] ... सेरु के बेटे, रेउ के पुत्र, पेलेग के पुत्र, हेबर के पुत्र, सालाह के पुत्र के रूप में संदर्भित किया गया है।
हालाँकि, उसे हेबर ऑफ द ओल्ड टेस्टामेंट (अलग हिब्रू वर्तनी )
अाशेर के पोते (उत्पत्ति 46:17) के साथ भ्रमित नहीं होना चाहिए।
आशेर और एबर दौनों अलग अलग हैं ।
हैं तो दौनों सेमिटिक ।
हिब्रू भाषा
अबू ईसा के अनुसार, शेम के पोते, एबर ने बाबुल के टॉवर के निर्माण में मदद करने से इनकार कर दिया था।
इसलिए जब इसे छोड़ दिया गया था, तो उनकी भाषा भ्रमित नहीं थी।
उन्होंने और उनके परिवार ने मूल मानव भाषा (लैटिन में लिंगुआ मानव के रूप में संदर्भित एक अवधारणा) को जन्म दिया ।
हिब्रू, एबर के नाम पर एक भाषा को बनाए रखा।
परन्तु (इस मुद्दे पर भाषावैज्ञानिकों की अलग-अलग धार्मिक मत हैं।
इस्लाम में एबर की मान्यताऐं --
एबर को कभी-कभी शास्त्रीय इस्लामिक लेखन में "प्रागैतिहासिक, मूल अरब" ("एराब अल-अरीबा") के "पिता" के रूप में सन्दर्भित किया जाता है!
जो डेल्यूज के बाद अरब प्रायद्वीप में रहते थे।
एबर की पहचान कुरान के पैगंबर हुद के साथ कुछ शुरुआती मुस्लिम अधिकारियों द्वारा भी की गई थी।
अन्य स्रोत नबी हुद को एबर के पुत्र के रूप में पहचानते हैं।
यद्यपि ये कथाऐं भी किंवदन्तियों पर आधारित रचनाऐं हैं।
जिनमें व्यतिक्रम दोष है ।
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