वैदिक सन्दर्भों के अनुसार दास से ही कालान्तरण दस्यु शब्दः का विकास हुआ हैं।
मनुस्मृति मे दास को शूद्र अथवा सेवक के रूप में उद्धृत करने के मूल में उनका वस्त्र उत्पादन अथवा सीवन करने की अभिक्रिया कभी प्रचलन में थी।
मनुःस्मृति पुष्य-मित्र सुंग कालीन अर्थात् ई०पू० 184 की रचना है ।
यह किसी मनु की रचना नहीं है।
शूद्र शब्द भी इण्डो -यूरोपीयन है ।
वस्त्रों के कलात्मक सर्जक शम्बर असुर के वंशज कोल अधिकतर रहे हैं।
यह तो भारतीय इतिहास कार भी जानते हैं।
कोलों को भार वाहक या कुली बनाना भी उनकी दासता को सूचित करता है ।
वैसे सेवक शब्द का अर्थ "सीवन (सिलाई) करने वाला" है ।
सिव् सीवन करना
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सीवनम् :--(सिव्यु तन्तुसन्ताने + ल्युट् ।
षिवु सिव्योर्ल्युटि वा दीर्घः इति सीवनं ।।
मुग्धबोधमते “ष्ठीवनसीवने वा ।
इति सूत्रात् निपातितः )
तन्तुसन्तानम् ।
सूचीकर्म्म । सेयानी इति सिलायी क्रिया इति हिन्दीभाषा ।
सिव तन्तुसन्ताने + ल्युट् । ) सूच्यादिना वस्त्रादिसीवनम् । सेलाइ इति च भाषा ।
तत्पर्य्यायः । सीवनम् २ सूतिः ३ । इत्यमरः । ३ । २ । ५ ॥ ऊतिः ४ व्यूतिः ५ । इति शब्दरत्नावली ॥ (यथा सुश्रुते । १ । ८ । “ सूच्यः सेवने ।
इत्यष्टविधे कर्म्मण्युपयोगः शस्त्राणां व्याख्यातः ॥
सेवृ सेवने + ल्युट् । ) उपास्तिः । उपासना । इति मेदिनी ॥ (यथा भागवते । ४ । १९ । १६ । तमन्वीयुर्भागवता ये च तत्सेवनोत्सुकाः ॥
आथयः । यथा भागवते । ७ । १२ । २० । “ सत्यानृतञ्च वाणिज्यं श्ववृत्तिर्नीचसेवनम् ।
वर्ज्जयेत् तां मदा विप्रो राजन्यश्च जुगुप्सिताम् ॥ “ उपभोगः । यथा मनुः । ११ । १७९ ।
“ यत् करोत्येकरात्रेण वृषलीसेवनात् द्विजः ।
तद्भक्ष्यभुग्जपन्नित्यं त्रिभिर्व्वर्षैर्व्यपोहति )
तत्पर्य्यायः । सेवनम् २ स्यूतिः ३ । इत्यमरः कोश । ३ । २ । ५ ॥ ऊतिः ४ व्यूतिः ५ । इति शब्दरत्नावली ॥ (यथा, सुश्रुते । ४ । १ ।
शब्दरत्नावली -- मथुरेश की शब्द-कोशिय रचना है । (इसका समय १७वी शताब्दी)
यथोक्तं सीवनं तेषु कार्य्यं सन्धानमेव च ॥)
अमरकोशः
सीवन नपुं।
सूचीक्रिया
समानार्थक:सेवन,सीवन,स्यूति
3।2।5।2।2
पर्याप्तिः स्यात्परित्राणं हस्तधारणमित्यपि।
सेवनं सीवनं स्यूतिर्विदरः स्फुटनं भिदा॥
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वाचस्पत्यम्
सी(से)वन :- न॰ सिव--ल्युट् नि॰ वा दीर्घः। सीवने तन्तु-सन्ताने ( सिलने की क्रिया) अमरः कोश
२ लिङ्गमण्यधस्थसूत्रे स्त्रीहेमच॰ ङीप्।
शब्दसागरः
सीवन noun (-Neuter)
1. Sewing, stitching.
2. A seam, a suture. (feminine.) (-नी)
1. The frenum of the prepuce.
2. A needle. E. षिव् to sew, ल्युट् aff.; also सेवन |
Apte
सीवनम् [sīvanam], 1 Sewing, stitching; सीवनं कञ्चुकादीनां विज्ञानं हि कलात्मकम् Śukra.4.329.
A seam, suture.
Monier-Williams
सीवन n. sewing , stitching
सीवन n. a seam , suture
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लौकिक संस्कृत में दास शब्द का अर्थ गुलाम के समकक्ष अधिक है ।
परन्तु ऋग्वेद मे पुरोहित याचना तो कर रहे हैं कि यादवो को दास रूप में अधीन बनाने की परन्तु सफल तो वे पुरोहित हुए नही यही कारण है कि उन्होनें यहीं से घृणास्पद होकर दास शब्द अर्थ बदल देने की चेष्टा की परन्तु यादवों ने वर्ण-बद्ध व्यवस्था के प्रति विद्रोही रबैया अपनाकर अपनी दस्यु सार्थकता सिद्ध की है।
वैदिक सन्दर्भों में दस्यु और दास समानार्थक रूप हैं ।
और ये प्राय : असुरों के वाचक हैं ।
वर्ण व्यवस्था का यहा मतलब है वर्ण व्यवस्था के जरिए पुरोहित यादवों को अधीन कर दास बनाना चाहते थे। परन्तु यादव दास नही बने दस्यु बन गये।
वर्ण व्यवस्था ई०पू० 800 में ईरानीयों की वर्ग - व्यवस्था से आयात है ।
ऋग्वेद का दशम मण्डल बुद्ध के समकालिक है।
नवम मण्डल में
""कारूरहम ततो भिषग् उपल प्रक्षिणी नना।।
'मैं कारीगर हूँ पिता वैद्य हैं और माता पसीने वाली है।
।ऋग्वेद ९ । ११२ । ३“ के रूप में वर्ग-व्यवस्था को ध्वनित करता है ।
अब जो वर्ण व्यवस्था के जरिये खुद को क्षत्रिय शूद्र तय कर रहे है वो यदुवंशीय धर्म के विरोधी हैं।
उनको यदुवंशीय बोलने का कुछ अधिकार नही है
क्यों कि यदुवंशीयों ने कभी भी वर्ण-व्यवस्था को स्वीकार ही नहीं किया ।
ये ब्राह्मणों द्वारा स्थापित व्यवस्था के बागी थे ।
ब्राह्मणों द्वारा स्थापित वर्ण-बद्ध-जाति-व्यवस्था में
क्षत्रिय होता है ? ब्राह्मण का संरक्षक !
लौकिक भाषाओं में दास और दस्यु अलग अलग अर्थों को व्यक्त करने लगे ।
फिर आज के अर्थों में यदु के वंशजों ने दास बनना स्वीकार नही किया तो फिर वे दस्यु बन गये ।
दस्यु का अर्थ पहले चोर या लुटेरा नहीं था ।
दस्यु का सही अर्थ ब़ागी या विद्रोही है।
क्यों कि चोर न कभी नैतिकता का पालन करता है और न कभी धार्मिक होकर गरीबों की सेवा करता है ।
आप चम्बल के डाकुओं की बात करें तो वे जमींदारों और शोषकों के विरुद्ध लड़ने वाले थे ।
1987 में निर्मित हिन्दी फिल्म "डकैत"
भी डकैतों के जमींदारों और शोषकों के विरुद्ध विद्रोही प्रवृत्तियों का दर्शाती है ।
जिसका नायक भी अर्जुुनयादव ( सनी दियोल )है जो
एक किसान परिवार से है ।
ठाकुर जिसकी जमाव को अंग्रेजों से मिलकर हड़प लेते हैं । जिसके परिवार में माँ बहिन आदि के साथ अश्लीलता करते हैं ।
तब 'वह अर्जुुन यादव चम्बल के डाकुओं से मिलकर बदला लेता है ।
वैसे भी यहाँं की पूर्वागत जन-जातियों ने
अपने जीविकोपार्जन के लिए अर्थव्यवस्था का आधार स्तम्भ पशुपालन और कृषि को चुना कबीलाई व्यवस्था बनाई ।
एक भी यादव उपनाम के साथ आप राजा नही दिखा सकते है इतिहास में
क्यों कि ब्राह्मणों ने राजा को क्षत्रिय माना ।
और क्षत्रिय ब्राह्मणों के संरक्षक थे ।
आगे हम शूद्र शब्द पर विस्तृत विश्लेषण करेंगे ।
शूद्र कौन थे ? यह शब्द वर्ण व्यवस्था का आधार कैसे बना ? इन बिन्दुओं पर एक नवीनत्तम व्याख्या
--जो रूढ़िवादी और संकीर्ण विचार धारणाओं से पृथक है ।
भारतीय इतिहास ही नहीं अपितु विश्व इतिहास का यह प्रथम अद्भुत् शोध है सत्य का भी बोध है ।👇
विश्व सांस्कृतिक अन्वेषणों के पश्चात् एक तथ्य पूर्णतः प्रमाणित हुआ है जिस वर्ण व्यवस्था को मनु का विधान कह कर भारतीय संस्कृति के प्राणों में प्रतिष्ठित किया गया था ।
न तो 'वह मनु की व्यवस्था थी और न भारतीय धरा पर मनु नाम का कोई पूर्व पुरुष हुआ।
परन्तु मनु भारतीय धरा की विरासत नहीं थे ।
और ना हि अयोध्या उनकी जन्म भूमि थी।
वर्तमान में अयोध्या भी थाईलेण्ड में "एजोडिया" के रूप में है ।
सुमेरियन सभ्यताओं में भी अयोध्या को एजेडे "Agede" नाम से वर्णन किया है।
ईरान, मध्य एशिया, बर्मा, थाईलैंड, इण्डोनेशिया, वियतनाम, कम्बोडिया, चीन, जापान और यहां तक कि फिलीपींस में भी मनु की पौराणिक कथाऐं लोकप्रिय थीं।
विद्वान ब्रिटिश संस्कृतिकर्मी, जे. एल. ब्रॉकिंगटन के अनुसार "राम" को विश्व साहित्य का एक उत्कृष्ट शब्द मानते हैं।
यद्यपि वाल्मीकि रामायण महाकाव्य का कोई प्राचीन इतिहास नहीं है।
यह बौद्ध काल के बाद की रचना है
फिर भी इसके पात्र का प्रभाव सुमेरियन और ईरानीयों की प्राचीनत्तम संस्कृतियों में देखा जा सकता है।
राम के वर्णन की विश्वव्यापीयता का अर्थ है कि राम एक महान ऐतिहासिक व्यक्ति रहे होंगे।
इतिहास और मिथकों पर औपनिवेशिक हमला सभी महान धार्मिक साहित्यों का अभिन्न अंग है। लेकिन स्पष्ट रूप से एक ऐतिहासिक पात्र के बिना रामायण कभी भी विश्व की श्रेण्य-साहित्यिक रचना नहीं बन पाएगी।
राम, मेडियंस और ईरानीयों के एक नायक हैं
मित्रा, अहुरा मज़्दा आदि जैसे सामान्य देवताओं को वरीयता दी गई है। टी। क्यूइलर यंग, एक प्रख्यात ईरानी जो कैम्ब्रिज प्राचीन इतिहास और प्रारंभिक विश्वकोश में ईरान के इतिहास और पुरातत्व पर लिखा है:-👇
वह उप-महाद्वीप के बाहर प्रारम्भिक भारतीयों और ईरानीयों को सन्दर्भों की विवेचना करते हैं ।
💐 राम ’पूर्व-इस्लामी ईरान में एक पवित्र नाम था; जैसे आर्य "राम-एनना" दारा-प्रथम के प्रारम्भिक पूर्वजों में से थे।
जिसका सोना टैबलेट( शील या मौहर )पुरानी फ़ारसी में एक प्रारम्भिक दस्तावेज़ है;
राम जोरास्ट्रियन कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण नाम है;
"रेमियश" राम और वायु को समर्पित है
संभवतः हनुमान की एक प्रतिध्वनि;
कई राम-नाम पर्सेपोलिस (ईरानी शहर) में पाए जाते हैं।
राम बजरंग फार्स की एक कुर्दिश जनजाति का नाम है।
राम-नामों के साथ कई सासैनियन शहर: राम अर्धशीर, राम होर्मुज़, राम पेरोज़, रेमा और रुमागम -जैसे नाम प्राप्त होते हैं ।
राम-शहरिस्तान सूरों की प्रसिद्ध राजधानी थी।
राम-अल्ला यूफ्रेट्स (फरात) पर एक शहर है और यह फिलिस्तीन में भी है।
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उच्च प्रामाणिक सुमेरियन राजा-सूची में राम और भरत सौभाग्य से प्राप्त होते हैं।
सुमेरियन इतिहास का एक अध्ययन राम का एक बहुत ही ज्वलन्त चित्र प्रदान करता है।
उच्च प्रामाणिक सुमेरियन राजा-सूची में भारत (वाराद) warad पाप और (रिमसिन )जैसे पवित्र नाम दिखाई देते हैं।
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राम मेसोपोटामिया वर्तमान (ईराक और ईरान)के सबसे लम्बे समय तक शासन करने वाले सम्राट थे
जिन्होंने 60 वर्षों तक शासन किया।
भारत सिन ने 12 वर्षों तक शासन किया (1834-1822 ई.पू.)का समय
जैसा कि बौद्धों के दशरथ जातक में कहा गया है।
जातक का कथन है, "साठ बार सौ, और दस हज़ार से अधिक, सभी को बताया, / प्रबल सशस्त्र राम ने"
केवल इसका मतलब है कि राम ने साठ वर्षों तक शासन किया, जो अश्शूरियों (असुरों) के आंकड़ों से बिल्कुल सहमत हैं।
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अयोध्या सरगोन की राजधानी अगाडे (अजेय) हो सकती है ।
जिसकी पहचान अभी तक नहीं हुई है।
यह संभव है कि एजेड (Agade) (अयोध्या)डेर या हारुत के पास हरयु या सरयू के पास थी।👇
सीर दरिया का साम्य सरयू से है ।
इतिहास लेखक डी. पी. मिश्रा जैसे विद्वान इस बात से अवगत थे कि राम हेरात क्षेत्र से हो सकते हैं।
प्रख्यात भाषाविद् सुकुमार सेन ने यह भी कहा कि राम ईरानीयों को धर्म ग्रन्थ अवेस्ता में एक पवित्र नाम है।
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सुमेरियन माइथॉलॉजी में दूर्मा नाम धर्म की प्रतिध्वनि है ।
सुमेरियन माइथॉलॉजी के मितानियन ( मितज्ञु )राजाओं का तुसरत नाम दशरथ की प्रतिध्वनि प्रतीत होता है।
पाश्चात्य इतिहास विद "मार्गरेट .एस. ड्रावर ने तुसरत के नाम का अनुवाद 'भयानक रथों के मालिक' के रूप में किया है।
लेकिन यह वास्तव में 'दशरथ रथों का मालिक' या 'दस गुना रथ' हो सकता है
जो दशरथ के नाम की प्रतिध्वनि है।
दशरथ ने दस राजाओं के संघ का नेतृत्व किया। इस नाम में आर्यार्थ जैसे बाद के नामों की प्रतिध्वनि है।
सीता और राम का ऋग्वेद में वर्णन है।
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राम नाम के एक असुर (शक्तिशाली राजा) को संदर्भित करता है, लेकिन कोसल का कोई उल्लेख नहीं करता है।
वास्तव में कोसल नाम शायद सुमेरियन माइथॉलॉजी में "खास-ला" के रूप में था ।
और सुमेरियन अभिलेखों के मार-कासे (बार-कासे) के अनुरूप हो सकता है।👇
refers to an Asura (powerful king) named Rama but makes no mention of Kosala.♨
In fact the name Kosala was probably Khas-la and may correspond to Mar-Khase (Bar-Kahse) of the Sumerian records.
कई प्राचीन संस्कृतियों में मिथकों में साम्य हैं।
प्रस्तुत लेख मनु के जीवन की प्रधान घटना बाढ़ की कहानी का विश्लेषण करना है।
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2-सुमेरियन संस्कृति में 'मनु'का वर्णन जीवसिद्ध के रूप में-
महान बाढ़ आई और यह अथक थी और मछली जो विष्णु की मत्स्य अवतार थी, ने मानवता को विलुप्त होने से बचाया।
ज़ीसुद्र सुमेर का एक अच्छा राजा था और देव एनकी ने उसे चेतावनी दी कि शेष देवताओं ने मानव जाति को नष्ट करने का दृढ़ संकल्प किया है ।
उसने एक बड़ी नाव बनाने के लिए ज़ीसुद्र को बताया। बाढ़ आई और मानवता बच गई।
सैमेटिक संस्कृतियों में प्राप्त मिथकों के अनुसार
नूह (मनु:)को एक बड़ी नाव बनाने और नाव पर सभी जानवरों की एक जोड़ी लेने की चेतावनी दी गई थी। नाव को अरारात पर्वत जाना था ।
और उसके शीर्ष पर लंगर डालना था जो बाढ़ में बह गया था।
इन तीन प्राचीन संस्कृतियों में महान बाढ़ के बारे में बहुत समान कहानियाँ हैं।
बाइबिल के अनुसार इज़राइल में इस तरह की बड़ी बाढ़ का कारण कोई महान नदियाँ नहीं हैं, लेकिन हम जानते हैं कि
इब्रानियों ने उर के इब्राहीम के लिए अपनी उत्पत्ति का पता लगाया जो मेसोपोटामिया में है।
भारतीय इतिहास में यही इब्राहीम ब्रह्मा है।
जबकि टिगरिस (दजला)और यूफ्रेट्स (फरात)बाढ़ और अक्सर बदलते प्रवेश में, उनकी बाढ़ उतनी बड़े पैमाने पर नहीं होती है।
एक दिलचस्प बात यह है कि अंग्रेजी क्रिया "Meander "का अर्थ है, जिसका उद्देश्य लक्ष्यहीनता से एक तुर्की नदी के नाम से आता है ।
जो अपने परिवेश को बदलने के लिए कुख्यात है।
सिंधु और गंगा बाढ़ आती हैं लेकिन मनु द्वारा वर्णित प्रलय जैसा कुछ भी नहीं है।
महान जलप्रलय 5000 ईसा पूर्व के आसपास हुआ जब भूमध्य सागर काला सागर में टूट गया।
इसने यूक्रेन, अनातोलिया, सीरिया और मेसोपोटामिया को विभिन्न दिशाओं में (littoral) निवासियों के प्रवास का नेतृत्व किया।
ये लोग अपने साथ बाढ़ और उसके मिथक की अमिट स्मृति को ले गए।
अक्कादियों ने कहानी को आगे बढ़ाया क्योंकि उनके लिए सुमेरियन वही थे जो लैटिन यूरोपीय थे।
सभी अकाडियन शास्त्रियों को सुमेरियन, एक मृत भाषा सीखना था, जैसे कि सभी शिक्षित यूरोपीय मध्य युग में लैटिन सीखते हैं।
ईसाइयों ने मिथक को शामिल किया क्योंकि वे पुराने नियम को अवशोषित करते थे क्योंकि उनके भगवान जन्म से यहूदी थे।
बाद में उत्पन्न हुए धर्मों ने मिथक को शामिल नहीं किया। जोरास्ट्रियनवाद जो कि भारतीय वैदिक सन्दर्भों में साम्य के साथ दुनियाँ के रंगमञ्च पर उपस्थित होता है; ने मिथक को छोड़ दिया।
अर्थात् पारसी धर्म ग्रन्थ अवेस्ता में जल प्रलय के स्थान पर यम -प्रलय ( हिम -प्रलय ) का वर्णन है ।
जैन धर्म, बौद्ध धर्म और सिख धर्म। इसी तरह इस्लाम जो यहूदी धर्म, ईसाई धर्म और कुछ स्थानीय अरब रीति-रिवाजों का मिश्रण है, जो मिथक को छोड़ देता है। सभी मनु के जल प्रलय के मिथकों में विश्वास करते हैं ।
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सुमेरियन और भारतीयों के बीच एक और आम मिथक है सात ऋषियों का है।
सुमेरियों का मानना था कि उनका ज्ञान और सभ्यता सात ऋषियों से उत्पन्न हुई थी। हिंदुओं में सप्त ऋषियों का मिथक है जो इन्द्र से अधिक शक्तिशाली थे।
यह सुमेरियन कैलेंडर से है कि हमारे पास अभी भी सात दिन का सप्ताह है।
उनके पास एक दशमलव प्रणाली भी नहीं थी जिसे भारत ने शून्य के साथ आविष्कार किया था। उनकी गिनती का आधार दस के बजाय साठ था ।
और इसीलिए हमारे पास अभी भी साठ सेकंड से एक मिनट, साठ मिनट से एक घंटे और एक सर्कल में 360 डिग्री है।
सीरिया में अनदेखी मितन्नी राजधानी को वासु-खन्नी अर्थात समृद्ध -पृथ्वी का नाम दिया गया था।
मनु ने अयोध्या को बसाया यह तथ्य वाल्मीकि रामायण में वर्णित है।
वेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है, "अष्टचक्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या"
अथर्ववेद १०/२/३१ में वर्णित है।
वास्तव में यह सारा सूक्त ही अयोध्या पुरी के निर्माण के लिए है।
नौ द्वारों वाला हमारा यह शरीर ही अयोध्या पुरी बन सकता है।
अयोध्या का समानार्थक शब्द "अवध" है ।
प्राचीन काल में एशिया - माइनर ---(छोटा एशिया), जिसका ऐतिहासिक नाम -करण अनातोलयियो के रूप में भी हुआ है ।
यूनानी इतिहास कारों विशेषत: होरेडॉटस् ने अनातोलयियो के लिए एशिया माइनर शब्द का प्रयोग किया है ।
जिसे आधुनिक काल में तुर्किस्तान अथवा टर्की नाम से भी जानते हैं ।
.. यहाँ की पार्श्व -वर्ती संस्कृतियों में मनु की प्रसिद्धि उन सांस्कृतिक-अनुयायीयों ने अपने पूर्व-पुरुष { Pro -Genitor } के रूप में स्वीकृत की है ।
मनु को पूर्व- पुरुष मानने वाली जन-जातियाँ प्राय: भारोपीय वर्ग की भाषाओं का सम्भाषण करती रहीं हैं ।
वस्तुत: भाषाऐं सैमेटिक वर्ग की हो अथवा हैमेटिक वर्ग की अथवा भारोपीय , सभी भाषाओं मे समानता का कहीं न कहीं सूत्र अवश्य है।
जैसा कि मिश्र की संस्कृति में मिश्र का प्रथम पुरुष जो देवों का का भी प्रतिनिधि था , वह था "मेनेस्" (Menes)अथवा मेनिस् (Menis) इस संज्ञा से अभिहित था ।
मेनिस ई०पू० 3150 के समकक्ष मिश्र का प्रथम शासक और मेंम्फिस (Memphis) नगर में जिसका निवास था
"मेंम्फिस "प्राचीन मिश्र का महत्वपूर्ण नगर जो नील नदी की घाटी में आबाद है ।
तथा यहीं का पार्श्ववर्ती देश फ्रीजिया (Phrygia)के मिथकों में भी मनु की जल--प्रलय का वर्णन मिअॉन (Meon)के रूप में है ।
मिअॉन अथवा माइनॉस का वर्णन ग्रीक पुरातन कथाओं में क्रीट के प्रथम राजा के रूप में है ।
जो ज्यूस तथा यूरोपा का पुत्र है ।
और यहीं एशिया- माइनर के पश्चिमीय समीपवर्ती लीडिया( Lydia) देश वासी भी इसी मिअॉन (Meon) रूप में मनु को अपना पूर्व पुरुष मानते थे।
इसी मनु के द्वारा बसाए जाने के कारण लीडिया देश का प्राचीन नाम मेअॉनिया "Maionia" भी था ।
ग्रीक साहित्य में विशेषत: होमर के काव्य में "मनु" को (Knossos) क्षेत्र का का राजा बताया गया है ।
कनान देश की कैन्नानाइटी(Canaanite ) संस्कृति में बाल -मिअॉन के रूप में भारतीयों के बल और मनु (Baal- meon) और यम्म (Yamm) देव के रूप मे वैदिक देव यम से साम्य संयोग नहीं अपितु संस्कृतियों की एकरूपता की द्योतक है ।
यम और मनु दौनों को सजातिय रूप में सूर्य की सन्तानें बताया है।
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विश्व संस्कृतियों में यम का वर्णन --- यहाँ भी कनानी संस्कृतियों में भारतीय पुराणों के समान यम का उल्लेख यथाक्रम नदी ,समुद्र ,पर्वत तथा न्याय के अधिष्ठात्री देवता के रूप में हुआ है ।
कनान प्रदेश से ही कालान्तरण में सैमेटिक हिब्रु परम्पराओं का विकास हुआ था ।
स्वयम् कनान शब्द भारोपीय है , केन्नाइटी भाषा में कनान शब्द का अर्थ होता है मैदान अथवा जड्•गल यूरोपीय कोलों अथवा कैल्टों की भाषा पुरानी फ्रॉन्च में कनकन (Cancan)आज भी जड्.गल को कहते हैं ।
और संस्कृत भाषा में कानन =जंगल सर्वविदित ही है। परन्तु कुछ बाइबिल की कथाओं के अनुसार कनान एक पूर्व पुरुष था --जो हेम (Ham)की परम्पराओं में एनॉस का पुत्र था।
जब कैल्ट जन जाति का प्रव्रजन (Migration) बाल्टिक सागर से भू- मध्य रेखीय क्षेत्रों में हुआ।
तब मैसॉपोटामिया की संस्कृतियों में कैल्डिया के रूप में इनका विलय हुआ ।
तब यहाँ जीव सिद्ध ( जियोसुद्द )अथवा नूह के रूप में मनु की किश्ती और प्रलय की कथाओं की रचना हुयी ।
और तो क्या ? यूरोप का प्रवेश -द्वार कहे जाने वाले ईज़िया तथा क्रीट ( Crete ) की संस्कृतियों में मनु आयॉनिया लोगों के आदि पुरुष माइनॉस् (Minos)के रूप में प्रतिष्ठित हए।
भारतीय संस्कृति की पौराणिक कथाऐं इन्हीं घटनाओं ले अनुप्रेरित हैं।
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भारतीय पुराणों में मनु और श्रृद्धा का सम्बन्ध वस्तुत: मन के विचार (मनन ) और हृदय की आस्तिक भावना (श्रृद्धा ) के मानवीय-करण (personification) रूप है ।
शतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में मनु को श्रृद्धा-देव
(श्रृाद्ध -देव) कह कर सम्बोधित किया है।
तथा बारहवीं सदी में रचित श्रीमद्भागवत् पुराण में वैवस्वत् मनु तथा श्रृद्धा से ही मानवीय सृष्टि का प्रारम्भ माना गया है। 👇
सतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में " मनवे वै प्रात: "वाक्यांश से घटना का उल्लेख आठवें अध्याय में मिलता है।
सतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में मनु को श्रृद्धा-देव कह कर सम्बोधित किया है।👇
--श्रृद्धा देवी वै मनु (काण्ड-१--प्रदण्डिका १) श्रीमद्भागवत् पुराण में वैवस्वत् मनु और श्रृद्धा से मानवीय सृष्टि का प्रारम्भ माना गया है--
👇
"ततो मनु: श्राद्धदेव: संज्ञायामास भारत श्रृद्धायां जनयामास दशपुत्रानुस आत्मवान"(9/1/11) ---------------------------------------------------------------
छन्दोग्य उपनिषद में मनु और श्रृद्धा की विचार और भावना रूपक व्याख्या भी मिलती है।
"यदा वै श्रृद्धधाति अथ मनुते नाSश्रृद्धधन् मनुते " __________________________________________
जब मनु के साथ प्रलय की घटना घटित हुई तत्पश्चात् नवीन सृष्टि- काल में :– असुर (असीरियन) पुरोहितों की प्रेरणा से ही मनु ने पशु-बलि दी थी।
" किल आत्आकुलीइति ह असुर ब्रह्मावासतु:।
तौ हो चतु: श्रृद्धादेवो वै मनु: आवं नु वेदावेति।
तौ हा गत्यो चतु:मनो वाजयाव तु इति।।
असुर लोग वस्तुत: मैसॉपोटमिया के अन्तर्गत असीरिया के निवासी थे।
सुमेर भी इसी का एक अवयव है ।
अत: मनु और असुरों की सहवर्तीयता प्रबल प्रमाण है मनु का सुमेरियन होना ।
बाइबिल के अनुसार असीरियन लोग यहूदीयों के सहवर्ती सैमेटिक शाखा के थे।
सतपथ ब्राह्मण ग्रन्थ में मनु की वर्णित कथा हिब्रू बाइबिल में यथावत है --- देखें एक समानता !
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हिब्रू बाइबिल में नूह का वर्णन:-👇
बाइबिल उत्पत्ति खण्ड (Genesis)- "नूह ने यहोवा (ईश्वर) कहने पर एक वेदी बनायी ;
और सब शुद्ध पशुओं और सब शुद्ध पक्षियों में से कुछ की वेदी पर होम-बलि चढ़ाई।(उत्पत्ति-8:20) ।👇
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" And Noah builded an alter unto the Lord Jehovah and took of the every clean beast, and of every clean fowl or birds, and offered ( he sacrificed ) burnt offerings on the alter
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Genesis-8:20 in English translation... -------------------------------------------------------------------
हृद् तथा श्रृद् शब्द वैदिक भाषा में मूलत: एक रूप में ही हैं ; रोम की सांस्कृतिक भाषा लैटिन आदि में क्रेडॉ "credo" का अर्थ :--- मैं विश्वास करता हूँ ।
तथा क्रिया रूप में credere---to believe लैटिन क्रिया credere--- का सम्बन्ध भारोपीय धातु
"Kerd-dhe" ---to believe से है ।
साहित्यिक रूप इसका अर्थ "हृदय में धारण करना –(to put On's heart-- पुरानी आयरिश भाषा में क्रेटिम cretim रूप --- वेल्स भाषा में (credu ) और संस्कृत भाषा में श्रृद्धा(Srad-dha)---faith,
इस शब्द के द्वारा सांस्कृतिक प्राक्कालीन एक रूपता को वर्णित किया है ।
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श्रृद्धा का अर्थ :–Confidence, Devotion आदि हार्दिक भावों से है ।
प्राचीन भारोपीय (Indo-European) रूप कर्ड (kerd)--हृदय है ।
ग्रीक भाषा में श्रृद्धा का रूप "Kardia" तथा लैटिन में "Cor " है ।
आरमेनियन रूप ---"Sirt" पुरातन आयरिश भाषा में--- "cride" वेल्स भाषा में ---"craidda" हिट्टी में--"kir" लिथुअॉनियन में--"sirdis" रसियन में --- "serdce" पुरानी अंग्रेज़ी --- "heorte". जर्मन में --"herz" गॉथिक में --hairto " heart" ब्रिटॉन में---- kreiz "middle" स्लेवॉनिक में ---sreda--"middle ..
यूनानी ग्रन्थ "इलियड तथा ऑडेसी "महा काव्य में प्राचीनत्तम भाषायी साम्य तो है ही देवसूचीयों मेंभी साम्य है ।
आश्चर्य इस बात का है कि ..आयॉनियन भाषा का शब्द माइनॉस् तथा वैदिक शब्द मनु: की व्युत्पत्तियाँ (Etymologies)भी समान हैं।
जो कि माइनॉस् और मनु की एकरूपता(तादात्म्य) की सबसे बड़ी प्रमाणिकता है।
क्रीट (crete) माइथॉलॉजी में माइनॉस् का विस्तृत विवेचन है, जिसका अंग्रेजी रूपान्तरण प्रस्तुत है ।👇
------------------------------------------------------------- .. Minos and his brother Rhadamanthys
जिसे भारतीय पुराणों में रथमन्तः कहा है ।
And sarpedon wereRaised in the Royal palace of Cnossus-... Minos Marrieged pasiphae- जिसे भारतीय पुराणों में प्रस्वीः प्रसव करने वाली कहा है !
शतरूपा भी इसी का नाम था यही प्रस्वीः या पैसिफी सूर्य- देव हैलिअॉस् (Helios) की पुत्री थी।
क्यों कि यम और यमी भाई बहिन ही थे ।
जिन्हें मिश्र की संस्कृतियों में पति-पत्नी के रूप में भी वर्णित किया है ।
... उसकी प्राचीनता भी पूर्णतः संदिग्ध ही है .मिथ्या वादीयों ने वर्ण व्यवस्था को ईश्वरीय विधान घोषित भी किया तो इसके मूल में केवल इसकी प्राचीनता है वर्ण व्यवस्था प्राचीन तो है पर ईश्वरीय विधान कदापि नहीं है ..
..... मैं योगेश कुमार रोहि वर्ण व्यवस्था के विषय में केवल वही तथ्य उद्गृत करुँगा ..जो सर्वथा नवीन हैं ,...
वर्ण व्यवस्था के विषय में आज जैसा आदर्श प्रस्तुत किया जाता है वह यथार्थ की सीमाओं में नहीं है ...वैदिक काल में वर्ण व्यवस्था का स्वरूप स्वभाव प्रवृत्ति और कर्म गत भले ही हो ! ......
कालान्तरण में वर्ण व्यवस्था की विकृति -पूर्ण परिणति जाति वाद के रूप में हुई.. मनु -स्मृति तथा आपस्तम्ब गृह्य शूत्रों ने भी प्रायः जाति गत वर्ण व्यवस्था का ही अनुमोदन किया है
वर्ण व्यवस्था का वैचारिक उद्भव अपने बीज वपन रूप में आज से सात हज़ार वर्ष पूर्व बाल्टिक सागर के तट- वर्ती स्थलों पर
............जर्मन के आर्यों तथा यहीं बाल्टिक सागर के दक्षिण -पश्चिम में बसे हुए ..गोैलॉ .वेल्सों .ब्रिटों (व्रात्यों ) के पुरोहित ड्रयडों (Druids )के सांस्कृतिक द्वेष के रूप में हुआ था...यह मेरे प्रबल प्रमाणों के दायरे में है.प्रारम्भ में केवल दो ही वर्ण थे ! आर्य और शूद्र ..जिन्हें यूरोपीयन संस्कृतियों में क्रमशः Ehre एर "The honrable people in Germen tribes ".......
जर्मन भाषा में आर्य शब्द के ही इतर रूप हैं ...Arier तथाArisch आरिष यही एरिष Arisch शब्द जर्मन भाषा की उप शाखा डच और स्वीडिस् में भी विद्यमान है.........
और दूसरा शब्द शाउटर Shouter. है शाउटर शब्द का परवर्ती उच्चारण साउटर Souter शब्द के रूप में भी है शाउटर यूरोप की धरा पर स्कॉटलेण्ड के मूल निवासी थे ., इसी का इतर नाम आयरलेण्ड भी था .
.शाउटर लोग गॉल अथवा ड्रयूडों की ही एक शाखा थी जो परामपरागत से चर्म के द्वार वस्त्रों का निर्माण और व्यवसाय करती थी ...
.Shouter ---a race who had sewed Shoes and Vestriarium..for nordic Aryen Germen tribes......
...यूरोप की संस्कृति में वस्त्र बहुत बड़ी अवश्यकता और बहु- मूल्य सम्पत्ति थे ...क्यों कि शीत का प्रभाव ही अत्यधिक था.... उधर उत्तरी-जर्मन के नार्वे आदि संस्कृतियों में इन्हेैं सुटारी (Sutari ) के रूप में सम्बोधित किया जाता था यहाँ की संस्कृति में इनकी महानता सर्व विदित है
यूरोप की प्राचीन सांस्कृतिक भाषा लैटिन में यह शब्द ...सुटॉर.(Sutor ) के रूप में है ....तथा पुरानी अंग्रेजी (एंग्लो-सेक्शन) में यही शब्द सुटेयर -Sutere -के रूप में है.. जर्मनों की प्राचीनत्तम शाखा गॉथिक भाषा में यही शब्द सूतर (Sooter )के रूप में है... विदित हो कि गॉथ जर्मन आर्यों का एक प्राचीन राष्ट्र है जो विशेषतः बाल्टिक सागर के दक्षिणी किनारे परअवस्थित है ईसा कीतीसरी शताब्दी में डेसिया राज्य में प्रस्थान किया डेसिया का समावेश इटली के अन्तर्गत हो गया ! गॉथ राष्ट्र की सीमाऐं दक्षिणी फ्रान्स तथा स्पेन तक थी .. उत्तरी जर्मन में यही गॉथ लोग ज्यूटों के रूप में प्रतिष्ठित थे और भारतीय आर्यों में ये गौडों के रूप में परिलक्षित होते हैं...
...ये बातें आकस्मिक और काल्पनिक नहीं हैं क्यों कि यूरोप में जर्मन आर्यों की बहुत सी शाखाऐं प्राचीन भारतीय गोत्र-प्रवर्तक ऋषियों के आधार पर हैं
जैसे अंगिरस् ऋषि के आधार पर जर्मनों की ऐञ्जीलस् Angelus या Angle.
जिन्हें पुर्तगालीयों ने अंग्रेज कहा था ईसा की पाँचवीं सदी में ब्रिटेन के मूल वासीयों को परास्त कर ब्रिटेन का नाम- करण आंग्ल -लेण्ड कर दिया था... जर्मन आर्यों में गोत्र -प्रवर्तक भृगु ऋषि के वंशज Borough...उपाधि अब भी लगाते हैं और वशिष्ठ के वंशज बेस्त कह लाते हैं समानताओं के और भी स्तर हैं ...परन्तु हमारा वर्ण्य विषय शूद्रों से सम्बद्ध है
लैटिन भाषा में शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन क्रिया स्वेयर -- Suere = to sew सीवन करना ,वस्त्र -वपन करना
.......
विदित हो कि संस्कृत भाषा में भी शूद्र शब्द की व्युत्पत्ति मूलक अर्थ वस्त्रों का सीवन करने बाला ..सेवक .....जैसा कि सेवक का मूल अर्थ है सीवन करने बाला ..यह शोध प्रबन्ध योगेश कुमार रोहि के विश्व सांस्कृतिक शोधों पर आधारित है .....
संस्कृत में शूद्र शब्द का वास्तविक अर्थ संस्कृत की शुच् धातु से रक् प्रत्यय करने पर बना है ...शुच् तापने परिस्कारे वस्त्रस्सीवने च ...आर्यों ने शूद्र विशेषण सर्व
प्रथम यहाँ के पूर्व वासी कोलो के विशेषण रूप में किया जो पुश्तैनी रूप से आज भी कोरिया जन जाति के रुप में आज भी वस्त्रों का निर्माण करते हैं ...
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